डेली न्यूज़ (13 Dec, 2023)



UNFCCC में पार्टियों का 28वाँ सम्मेलन

प्रिलिम्स के लिये:

पार्टियों का 28वाँ सम्मेलन (COP28), जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC), लॉस एंड डैमेज (L&D) फंड, अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य, ग्लोबल स्टॉकटेक ड्राफ्ट, पेरिस समझौता

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन और उसका प्रभाव, पर्यावरण प्रदूषण तथा क्षरण, पार्टियों का 28वाँ सम्मेलन (COP28)

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC) के लिये पार्टियों का 28वाँ  सम्मेलन (कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़-28) दुबई, संयुक्त अरब अमीरात में आयोजित किया गया था।

COP28 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • लॉस एंड डैमेज (L&D) फंड:
    • COP28 के सदस्य देश जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना कर रहे देशों को प्रतिपूर्ति प्रदान करने के उद्देश्य से लॉस एंड डैमेज (L&D) फंड को संचालित करने के लिये एक समझौते पर पहुँचे।
    • सभी विकासशील देश आवेदन करने के पात्र हैं तथा प्रत्येक देश को स्वेच्छा से योगदान देने के लिये "आमंत्रित" किया जाता है।
      • अल्प विकसित देशों तथा लघु द्वीपीय विकासशील देशों के लिये फंड का एक विशिष्ट प्रतिशत निर्धारित किया गया है।
  • वैश्विक स्टॉकटेक टेक्स्ट:
    • ग्लोबल स्टॉकटेक (GST) वर्ष 2015 में पेरिस समझौते के तहत स्थापित एक आवधिक समीक्षा तंत्र है।
    • ग्लोबल स्टॉकटेक (GST) टेक्स्ट का 5वाँ संस्करण COP28 में जारी किया गया जिसे बिना किसी आपत्ति के अपनाया गया।
      • टेक्स्ट में वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस के दायरे में रखने के लिये आठ कदम प्रस्तावित हैं:
        • विश्व स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करना और वर्ष 2030 तक ऊर्जा दक्षता सुधार की वैश्विक औसत वार्षिक दर को दोगुना करना;
        • अनअबेटेड कोयला ऊर्जा को चरणबद्ध तरीके से बंद करने की दिशा में प्रयासों में तेज़ी लाना;
        • शुद्ध शून्य उत्सर्जन ऊर्जा प्रणालियों की दिशा में विश्व स्तर पर प्रयासों में तेज़ी लाना, शून्य और निम्न कार्बन ईंधन का उपयोग सदी के मध्य से पहले या उसके आसपास करना;
        • ऊर्जा प्रणालियों में स्थिर जीवाश्म ईंधन के प्रतिस्थापन की दिशा में प्रयासों को बढ़ाने के लिये शून्य और निम्न उत्सर्जन प्रौद्योगिकियों में तेज़ी लाना, जिसमें अन्य बातों के अलावा, नवीकरणीय, परमाणु, अबेटमेंट एवं निष्कासन प्रौद्योगिकियाँ शामिल हैं, जिनमें कार्बन कैप्चर तथा उपयोग और भंडारण, व निम्न कार्बन हाइड्रोजन उत्पादन शामिल हैं;
        • ऊर्जा प्रणालियों में जीवाश्म ईंधन से परे, उचित, व्यवस्थित और न्यायसंगत तरीके से संक्रमण, इस दशक में कार्रवाई में तेज़ी लाना, ताकि विज्ञान के अनुसार वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्य हासिल किया जा सके;
        • वर्ष 2030 तक वैश्विक स्तर पर विशेष रूप से मीथेन उत्सर्जन सहित गैर-CO2 उत्सर्जन में तेज़ी लाना और उसे कम करना;
        • बुनियादी ढाँचे के विकास एवं शून्य और कम उत्सर्जन वाले वाहनों की तेज़ी से तैनाती सहित कई मार्गों के माध्यम से सड़क परिवहन से उत्सर्जन में कटौती में तेज़ी लाना;
        • जितनी जल्दी हो सके अप्रभावी जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना जो व्यर्थ खपत को प्रोत्साहित करती है और ऊर्जा की कमी या बदलावों को संबोधित नहीं करती है।
    • पाँचवाँ पुनरावृत्ति लेख ग्लासगो में COP26 के साथ निरंतरता बनाए रखता है, जो विविध ऊर्जा आवश्यकताओं वाले भारत जैसे देशों की वैश्विक आकांक्षाओं को संतुलित करता है।
      • India argues that it needs to continue using coal to meet its developmental needs and emphasizes the importance of adhering to nationally determined contributions (NDCs). भारत का तर्क है कि उसे अपनी विकास संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कोयले का उपयोग जारी रखने की ज़रूरत है और राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) का पालन करने के महत्त्व पर ज़ोर देता है।
    • COP28 में लगभग 200 देश "ऊर्जा प्रणालियों में जीवाश्म ईंधन से दूर जाने" पर सहमत हुए।
      • यह समझौता पहली बार है जब देशों ने यह प्रतिज्ञा की है। इस सौदे का उद्देश्य नीति निर्माताओं और निवेशकों को यह संकेत देना है कि दुनिया जीवाश्म ईंधन से अलग होने के लिये प्रतिबद्ध है।
    • विकासशील और गरीब देश COP28 में ग्लोबल स्टॉकटेक टेक्स्ट (GST) के नवीनतम प्रारूप पर असंतोष व्यक्त कर रहे हैं और महत्त्वपूर्ण बदलावों की मांग कर रहे हैं।
    • भारत सहित कई देश मीथेन उत्सर्जन में कटौती के किसी भी आदेश का अत्यंत विरोध कर रहे हैं, क्योंकि इसका एक प्रमुख स्रोत कृषि और पशुधन है।
      • मीथेन उत्सर्जन में कटौती में कृषि पैटर्न में बदलाव शामिल हो सकता है जो भारत जैसे देश में बेहद संवेदनशील हो सकता है।
      • संभवतः ऐसे देशों की चिंताओं के का सम्मान रखते हुए समझौते में वर्ष 2030 के लिये मीथेन उत्सर्जन में कटौती के किसी भी लक्ष्य का उल्लेख नहीं किया गया है, हालाँकि लगभग 100 देशों के एक समूह ने वर्ष 2021 में ग्लासगो में अपने मीथेन उत्सर्जन को वर्ष 2030 तक 30% कम करने के लिये एक स्वैच्छिक प्रतिबद्धता जताई थी। 
        • इस प्रतिज्ञा को ग्लोबल मीथेन प्लेज के रूप में जाना जाता है। हालाँकि भारत ग्लोबल मीथेन प्लेज का हिस्सा नहीं है।
    • विकासशील देश अमीर देशों से नकारात्मक कार्बन उत्सर्जन हासिल करने का आह्वान करते हैं, न कि 2050 तक शुद्ध शून्य तक पहुँचने का। वे जलवायु परिवर्तन से निपटने में समान लेकिन विभेदित ज़िम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं (CBDR-RC) के सिद्धांतों पर भी बल देते हैं।
    • विकासशील देशों का तर्क है कि अमीर देश, जिन्होंने वैश्विक कार्बन बजट का 80% से अधिक उपभोग किया है, उन्हें विकासशील देशों को भविष्य के उत्सर्जन में उनका उचित हिस्सा प्रदान करना चाहिये।
  • वैश्विक नवीकरणीय और ऊर्जा दक्षता प्रतिज्ञा:
    • प्रतिज्ञा में कहा गया है कि हस्ताक्षरकर्त्ता 2030 तक दुनिया की स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन क्षमता को कम से कम 11,000 गीगावॉट तक तीन गुना करने और 2030 तक हर साल ऊर्जा दक्षता सुधार की वैश्विक औसत वार्षिक दर को लगभग 2% से दोगुना करके 4% से अधिक करने तथा मिलकर काम करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
  • COP28 के लिए वैश्विक शीतलन प्रतिज्ञा:
    • इसमें 66 राष्ट्रीय सरकारी हस्ताक्षरकर्त्ता शामिल हैं जो 2050 तक 2022 के स्तर के सापेक्ष वैश्विक स्तर पर सभी क्षेत्रों में शीतलन-संबंधी उत्सर्जन को कम से कम 68% कम करने के लिये मिलकर काम करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
  • जलवायु वित्त:
    • व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) का अनुमान है कि जलवायु वित्त के लिये नए सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य (NCQG) के तहत धनी देशों पर 2025 में विकासशील देशों का 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर बकाया है।
      • 2015 में पेरिस समझौते के तहत विकसित देशों द्वारा NCQG की पुष्टि की गई थी।
      • इसका लक्ष्य 2025 से पूर्व एक नया सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य निर्धारित करना है। यह लक्ष्य प्रति वर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर से शुरू होगा।
      • इसमें शमन के लिये 250 बिलियन अमेरिकी डॉलर, अनुकूलन के लिये 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर और हानि व क्षतिपूर्ति के लिये 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर शामिल हैं।
      • वर्ष 2030 तक यह आँकड़ा बढ़कर 1.55 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर होने की उम्मीद है।
    • प्रति वर्ष 100 बिलियन अमरीकी डॉलर का वर्तमान जलवायु वित्त लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है, और विकासशील देश ऋण संकट का सामना कर रहे हैं।
    • विशेषज्ञ संरचनात्मक मुद्दों के समाधान और सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये वैश्विक वित्तीय ढाँचे में सुधार का आह्वान करते हैं।
  • अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य (GGA): 
    • अनुकूलन पर वैश्विक लक्ष्य (GGA) पर प्रारंभिक डेटा पेश किया गया था। इसकी स्थापना पेरिस समझौते के तहत 1.5/2°C लक्ष्य के संदर्भ में देशों की अनुकूलन आवश्यकताओं के प्रति जागरूकता एवं वित्तपोषण बढ़ाकर जलवायु परिवर्तन अनुकूलन को बेहतर करने के लिये की गई थी।
    • प्रारूप पाठ महत्त्वपूर्ण मुद्दों को हल करता है:
      • जलवायु-प्रेरित जल की कमी की समस्या का हल।
      • जलवायु-अनुकूल भोजन और कृषि उत्पादन।
      • जलवायु-संबंधी स्वास्थ्य प्रभावों के विरुद्ध समुत्थान शक्ति को मज़बूत करना।
  • ट्रिपल न्यूक्लियर एनर्जी की घोषणा:
    • COP28 में शुरू की गई घोषणा का लक्ष्य वर्ष 2050 तक वैश्विक परमाणु ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करना है।
    • 22 राष्ट्रीय सरकारों द्वारा समर्थित घोषणा में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के शेयरधारकों से समर्थन का आह्वान किया गया है। यह शेयरधारकों को ऊर्जा ऋण नीतियों में परमाणु ऊर्जा को शामिल करने का समर्थन करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
  • पावरिंग पास्ट कोल एलायंस (PPCA): 
    • PPCA राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय सरकारों, व्यवसायों एवं संगठनों का एक गठबंधन है जो निर्बाध कोयला बिजली उत्पादन से स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण को आगे बढ़ाने के लिये कार्य कर रहा है।
      • COP28 में PPCA ने नई राष्ट्रीय और उपराष्ट्रीय सरकारों का स्वागत किया तथा स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों का आह्वान किया।
  • कोयला संक्रमण त्वरक:
    • फ्राँस ने विभिन्न देशों और संगठनों के सहयोग से कोयला संक्रमण त्वरक की शुरुआत की।
      • उद्देश्यों में कोयले से स्वच्छ ऊर्जा में परिवर्तन की सुविधा के लिये ज्ञान-साझाकरण, नीति डिज़ाइन और वित्तीय सहायता शामिल है।
      • इस पहल का उद्देश्य प्रभावी कोयला परिवर्तन नीतियों के लिये सर्वोत्तम प्रथाओं और प्राप्त सीख का लाभ उठाना है।
  • जलवायु कार्रवाई के लिये उच्च महत्त्वाकांक्षा बहुस्तरीय भागीदारी गठबंधन (CHAMP):
    • कुल 65 राष्ट्रीय सरकारों ने जलवायु रणनीतियों की योजना, वित्तपोषण, कार्यान्वयन एवं निगरानी में उपराष्ट्रीय सरकारों के साथ, जहाँ लागू और उचित हो, सहयोग बढ़ाने के लिये CHAMP प्रतिबद्धताओं पर हस्ताक्षर किये।
  • COP28 में भारत के नेतृत्व वाली पहल:
    • ग्लोबल रिवर सिटीज़ अलायंस (GRCA):
      • इसे भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) के नेतृत्व में COP28 में लॉन्च किया गया था।
      • GRCA एक अनूठा गठबंधन है जो विश्व के 11 देशों के 275+ नदी-शहरों को कवर करता है।
        • भागीदार देशों में मिस्र, नीदरलैंड, डेनमार्क, घाना, ऑस्ट्रेलिया, भूटान, कंबोडिया, जापान एवं नीदरलैंड से हेग (डेन हाग), ऑस्ट्रेलिया से एडिलेड और हंगरी के स्ज़ोलनोक के नदी-शहर शामिल हैं।
      • GRCA सतत् नदी-केंद्रित विकास तथा जलवायु लचीलेपन में भारत की भूमिका पर प्रकाश डालता है।
    • हरित ऋण पहल:
      • GRCA मंच ज्ञान के आदान-प्रदान, नदी-शहर के जुड़ाव एवं सर्वोत्तम प्रथाओं के प्रसार की सुविधा प्रदान करेगा।
      • भारत ने नवीन पर्यावरण कार्यक्रमों और उपकरणों के आदान-प्रदान तथा एक भागीदारीपूर्ण वैश्विक मंच बनाने के लिये यहाँ COP28 में ग्रीन क्रेडिट पहल शुरू की।
      • इस पहल की दो मुख्य प्राथमिकताएँ जल संरक्षण और वनीकरण हैं।
      • इस पहल का मुख्य उद्देश्य देश के सामने आने वाले जलवायु संबंधी मुद्दों में बदलाव लाने वाले बड़े निगमों और निजी कंपनियों को प्रोत्साहित करके वृक्षारोपण, जल संरक्षण, टिकाऊ कृषि एवं अपशिष्ट प्रबंधन जैसी स्वैच्छिक पर्यावरणीय गतिविधियों को बढ़ावा देना है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021)


बिहार आरक्षण कानून और 50% की सीमा का उल्लंघन

प्रिलिम्स के लिये:

बिहार आरक्षण कानून और 50% सीमा का उल्लंघन, सर्वोच न्यायालय  (SC), अनुसूचित जाति, अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ा वर्ग, 77वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1995।

मेंस के लिये:

बिहार आरक्षण कानून और 50% सीमा का उल्लंघन, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप तथा उनके योजना एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बिहार विधानसभा में बिहार आरक्षण कानून पारित किया गया, जिससे राज्य में नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण की मात्रा बढ़कर 75% हो गई, जो सर्वोच न्यायालय  (SC) द्वारा बरकरार रखे गए 50% नियम का उल्लंघन है।

  • इसने भारत में आरक्षण की अनुमेय सीमा के बारे में बहस छेड़ दी है, विशेष रूप से मंडल आयोग मामले (इंद्रा साहनी, 1992) में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित "50%" सीमा के मद्देनज़र।

बिहार आरक्षण कानून की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • ये कानून हैं बिहार पदों और सेवाओं में रिक्तियों का आरक्षण (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के लिये) संशोधन अधिनियम 2023 तथा बिहार (शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश में) आरक्षण अधिनियम, 2023।
  • संशोधित अधिनियम के तहत, दोनों मामलों में कुल 65% आरक्षण होगा, जिसमें अनुसूचित जाति के लिये 20%, अनुसूचित जनजाति के लिये 2%, पिछड़ा वर्ग के लिये 18% और अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिये 25% आरक्षण होगा।
  • इसके अलावा केंद्रीय कानून के तहत पहले से मंज़ूरी प्राप्त EWS (आर्थिक रूप से कमज़ोर सामान्य वर्ग के लोगों) को 10% आरक्षण मिलता रहेगा।

50% नियम क्या है?

  • परिचय:
    • 50% नियम, जिसे ऐतिहासिक रूप से सर्वोच्च न्यायालय ने बरकरार रखा है, यह निर्देश देता है कि भारत में नौकरियों या शिक्षा के लिये आरक्षण कुल सीटों या पदों के 50% से अधिक नहीं होना चाहिये।
    • प्रारंभ में वर्ष 1963 के एम.आर. बालाजी मामले में सात-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा स्थापित, आरक्षण को संवैधानिक ढाँचे के तहत एक “अपवाद” या “विशेष प्रावधान” माना जाता था, जिससे उपलब्ध सीटों की अधिकतम 50% तक सीमित थी।
    • हालाँकि आरक्षण की समझ वर्ष 1976 में विकसित हुई जब यह स्वीकार किया गया कि आरक्षण कोई अपवाद नहीं है बल्कि समानता का एक घटक है। परिप्रेक्ष्य में इस बदलाव के बावजूद 50% की सीमा अपरिवर्तित रही।
    • वर्ष 1990 में मंडल आयोग मामले में नौ-न्यायाधीशों की पीठ ने 50% की सीमा की फिर से पुष्टि की और कहा कि यह एक बाध्यकारी नियम है, न कि केवल विवेक का मामला है। हालाँकि यह अपवाद के बिना कोई नियम नहीं है।
    • राज्य हाशिये पर और सामाजिक मुख्यधारा से बाहर किये गए समुदायों को आरक्षण प्रदान करने के लिये विशिष्ट परिस्थितियों में सीमा को पार कर सकते हैं, विशेष रूप से भौगोलिक स्थिति के बावजूद
    • इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय की 103वें संवैधानिक संशोधन की हालिया पुष्टि आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (EWS) के लिये अतिरिक्त 10% आरक्षण को मान्य करती है।
      • इसका मतलब है कि 50% की सीमा केवल गैर-EWS आरक्षण पर लागू होती है और राज्यों को EWS आरक्षण सहित कुल 60% सीटें/पद आरक्षित करने की अनुमति है।
  • अन्य राज्य सीमा पार कर रहे हैं:
    • अन्य राज्य जो EWS कोटा को छोड़कर भी पहले ही 50% की सीमा को पार कर चुके हैं, वे हैं छत्तीसगढ़ (72%), तमिलनाडु (69%, वर्ष 1994 के अधिनियम के तहत संविधान की नौवीं अनुसूची के तहत संरक्षित) और कई उत्तर-पूर्वी राज्य जिसमें अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिज़ोरम और नगालैंड (80% प्रत्येक) शामिल हैं।
    • लक्षद्वीप में अनुसूचित जनजातियों के लिये 100% आरक्षण है।
    • महाराष्ट्र और राजस्थान के पिछले प्रयासों को न्यायालयों ने खारिज़ कर दिया है।

संविधान और आरक्षण

  • 77वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1995: इंद्रा साहनी मामले में कहा गया था कि आरक्षण केवल प्रारंभिक नियुक्तियों में होगा, पदोन्नति में नहीं।
  • हालाँकि संविधान में अनुच्छेद 16(4A) को जोड़ने से राज्य को SC/ST कर्मचारियों के लिये पदोन्नति के मामलों में आरक्षण के प्रावधान करने का अधिकार मिल गया, अगर राज्य को लगता है कि उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
  • 81वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2000: इसमें अनुच्छेद 16(4B) पेश किया गया, जिसके अनुसार किसी विशेष वर्ष का रिक्त SC/ST कोटा, जब अगले वर्ष के लिये आगे बढ़ाया जाएगा, तो उसे अलग से माना जाएगा एवं उस वर्ष की नियमित रिक्तियों के साथ नहीं जोड़ा जाएगा।
  • 85वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2001: इसमें पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान किया गया है जिसे जून 1995 से पूर्वव्यापी प्रभाव से अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के सरकारी कर्मचारियों के लिये ‘पारिणामिक वरिष्ठता’ के साथ लागू किया जा सकता है।
  • संविधान में 103वाँ संशोधन (2019): EWS (आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग) के लिये 10% आरक्षण।
  • अनुच्छेद 335: इसके अनुसार संघ या राज्य के कार्यों से संसक्त सेवाओं और पदों के लिये नियुक्तियाँ करने में प्रशासनिक प्रभावशीलता को बनाए रखते हुए अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जातियों के सदस्यों की मांगों को पूरी तरह से ध्यान में रखा जाना चाहिये

आगे की राह 

  • न्यायालयों को विकसित सामाजिक गतिशीलता, समानता सिद्धांतों तथा बदलते सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य पर विचार करते हुए 50% आरक्षण सीमा का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिये।
  • भौगोलिक सीमाओं के बावजूद, ऐतिहासिक क्षति का सामना करने वाले समुदायों के लिये व्यापक मानदंडों को शामिल करने के लिये सामाजिक बहिष्कार से परे अपवादों का विस्तार करने पर विचार-विमर्श करने की आवश्यकता है।
  • मौजूदा आरक्षण नीतियों की विस्तृत समीक्षा करना, उनकी प्रभावशीलता, प्रभाव एवं वर्तमान सामाजिक आवश्यकताओं के साथ संरेखण करना।


वेब ब्राउज़र

प्रिलिम्स के लिये:

वेब ब्राउज़र, WWW (वर्ल्ड वाइड वेब), HTML, CSS और जावास्क्रिप्ट, वर्चुअल रियलिटी (VR) और ऑगमेंटेड रियलिटी (AR)।

मेंस के लिये:

वेब ब्राउज़र, विकास और उनके अनुप्रयोग और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में प्रभाव।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

वेब ब्राउज़र इंटरनेट के विशाल ब्रह्मांड के लिये हमारे डिजिटल पासपोर्ट जैसा है, जिससे हमारे लिये केवल एक क्लिक से वेबपेजों को खोजना और उन तक पहुँचना सरल हो जाता है।

वेब ब्राउज़र क्या है?

  • परिचय:
    • वेब ब्राउज़र WWW (वर्ल्ड वाइड वेब) का पता लगाने के लिये एक एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर है। यह सर्वर और क्लाइंट के बीच एक इंटरफेस प्रदान करता है तथा वेब दस्तावेज़ों एवं सेवाओं के लिये सर्वर से अनुरोध करता है।
    • यह हाइपरटेक्स्ट मार्कअप लैंग्वेज (HTML) को रेंडर करने के लिये एक कंपाइलर के रूप में काम करता है जिसका उपयोग वेबपेज को डिज़ाइन करने के लिये किया जाता है।
    • जब भी हम इंटरनेट पर कुछ भी खोजते हैं, तो ब्राउज़र HTML में लिखा एक वेबपेज लोड करता है, जिसमें टेक्स्ट, लिंक, छवियाँ और स्टाइलशीट तथा जावास्क्रिप्ट फंक्शन जैसे अन्य आइटम शामिल होते हैं।
      • गूगल क्रोम, माइक्रोसॉफ्ट एज, मोज़िला फायरफॉक्स और सफारी वेब ब्राउज़र के उदाहरण हैं।
  • उत्पत्ति:
    • इंटरनेट के शुरुआती दिनों में ब्राउजिंग एक टेक्स्ट-आधारित उद्यम था, जब तक कि टिम बर्नर्स-ली ने वर्ष 1990 में वेब ब्राउज़र, 'वर्ल्डवाइडवेब' के साथ वर्ल्ड वाइड वेब की शुरुआत नहीं की।
    • वर्ष 1993 में परिवर्तनकारी मोज़ेक ब्राउज़र वेब परिदृश्य में छवियों को लाया, जिससे उपयोगकर्त्ता इंटरैक्शन में क्रांति आ गई।
    • नेटस्केप नेविगेटर के आगमन ने बुकमार्क एवं उपयोगकर्त्ता-अनुकूल सुविधाओं को पेश करके ब्राउज़िंग को और बढ़ाया, जिससे इसके एवं इंटरनेट एक्सप्लोरर के बीच 'ब्राउज़र युद्ध' छिड़ गया।
  • विकासवादी कदम :
    • वर्ष 2004-2005 में मोज़िला फायरफॉक्स द्वारा इंटरनेट एक्सप्लोरर के प्रभुत्व के एकाधिकार का उन्मूलन किया,टैब्ड ब्राउज़िंग और ऐड-ऑन के साथ नवाचार को बढ़ावा दिया गया तथा नए मानक स्थापित किये गए।
    • Google का Chrome, अपनी गति और अतिसूक्ष्मवाद के साथ वर्ष 2008 में उभरा, जिससे ब्राउज़र बाज़ार में पुनरोद्धार हुआ।
    • अन्य प्रतियोगी जैसे कि Apple की Safari और Microsoft Edge (इंटरनेट एक्सप्लोरर का उत्तराधिकारी) विकसित हुए, जो उपयोगकर्त्ता की प्राथमिकताओं के अनुरूप विविध विकल्प प्रदान करते हैं।
  • वेब ब्राउज़र की एनाटॉमी:
    • अनुरोध और प्रतिक्रिया: वेबसाइट पर विज़िट शुरू करने से डिजिटल संचार का एक क्रम शुरू हो जाता है, जो सर्वर के नेटवर्क के माध्यम से संदेश भेजने और प्राप्त करने के समान है।
    • प्रतिक्रिया को विखंडित करना: वेबपेज की जानकारी HTML, CSS (कैस्केडिंग स्टाइल शीट्स) और जावास्क्रिप्ट में एन्कोड की गई फाइलों में आती है, जिसमें से प्रत्येक अंतिम वेबपेज के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
      • HTML एक वेबपेज का आर्किटेक्चर ब्लूप्रिंट प्रदान करता है शीर्षक, पैराग्राफ, चित्र और लिंक जैसे तत्त्वों की रूपरेखा होती है।
      • CSS को डिजिटल दुनिया का इंटीरियर डिज़ाइनर माना जाता है। यह जानकारी रंग योजनाओं, फॉन्ट, रिक्ति और स्थिति जैसी विशेषताओं को नियंत्रित करके HTML संरचना में स्टाइल और एस्थेटिक्स प्रदान करती है।
      • जावास्क्रिप्ट एक गतिशील इंजन है, जो वेबपेजों को इंटरैक्टिव और प्रतिक्रियाशील बनाता है। किसी इमारत में विद्युत प्रणाली के अनुरूप, जावास्क्रिप्ट भी स्थिर सामग्री में जान डाल देता है। यह पॉप-अप, फॉर्म, एनिमेशन और रियल टाइम अपडेट जैसे इंटरैक्टिव तत्त्वों की अनुमति देता है, जिससे एक उपयोगकर्त्ता को आकर्षक अनुभव प्राप्त होता है।
    • रेंडरिंग: ब्राउज़र HTML संरचना को डिकोड करके, एस्थेटिक्स के लिये CSS लागू करके और इंटरैक्टिविटी के लिये जावास्क्रिप्ट निष्पादित करके, कुछ ही सेकंड में वेबपेज़ को असेंबल करता है।
    • डेटा प्रबंधन: कुकीज़ निर्बाध नेविगेशन के लिये ब्राउज़िंग डेटा संग्रहीत करती है, जबकि कैश बार-बार एक्सेस की गई फाइलों को बरकरार रखता है, जिससे पेज़ लोडिंग समय में तेज़ी
    • आती है।
    • सुरक्षा उपाय: उपयोगकर्त्ताओं को संभावित खतरों से बचाने और सचेत करने के लिये ब्राउज़र HTTPS तथा चेतावनी प्रणाली जैसे एन्क्रिप्शन प्रोटोकॉल का उपयोग करते हैं।

ब्राउज़िंग का भविष्य क्या है?

  • जैसे-जैसे तकनीक आगे बढ़ती है, वेब ब्राउज़र भी उसी के साथ विकसित होते जाते हैं। ये WebAssembly, एक ऐसा प्रारूप जो ब्राउज़र वातावरण के भीतर लगभग मूल प्रदर्शन को सक्षम बनाता है, जैसी अत्याधुनिक तकनीकों को अपना रहे हैं।
  • आभासी वास्तविकता (VR) और संवर्धित वास्तविकता (AR) अनुभवों के लिये समर्थन भी होराइज़न पर है, जो व्यापक ऑनलाइन इंटरैक्शन का वादा करता है।
  • इसके अतिरिक्त, गोपनीयता सुविधाओं को बढ़ाया जा रहा है, जिससे उपयोगकर्त्ताओं को अपने डिजिटल फुटप्रिंट पर अधिक नियंत्रण मिल सके।
  • वेब ब्राउज़र हमारे डिजिटल प्रयासों के नायक हैं, जो गतिशील वेबपेजों में कूट का अनुवाद करते हैं जो हमारे ऑनलाइन अनुभवों का आधार हैं।
  • उनके संचालन को रेखांकित करने वाली प्रक्रियाओं की जटिल प्रणालियों को उजागर करके, हम प्रत्येक क्लिक के साथ उत्पन्न होने वाले त्वरित परिणाम की एक नई समझ प्राप्त कर सकते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

डिजिटल हस्ताक्षर-

  1. एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख है, जो इसे जारी करने वाले प्रमाणन प्राधिकारी की पहचान करता है।
  2. इंटरनेट पर सूचना या सर्वर तक पहुँच के लिये किसी व्यक्ति की पहचान के प्रमाण के रूप में प्रयुक्त होता है।
  3. इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने की एक इलेक्ट्रॉनिक पद्धति है और सुनिश्चित करता है कि मूल अंश अपरिवर्तित है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: C

व्याख्या:

  • डिजिटल हस्ताक्षर कोई अभिलेख नहीं है और प्रमाणन प्राधिकारी की पहचान डिजिटल प्रमाण-पत्र से सुनिश्चित की जाती है, डिजिटल हस्ताक्षर से नहीं। अत: कथन 1 सही नहीं है।
  • डिजिटल हस्ताक्षर का उपयोग किसी संदेश के प्रेषक या दस्तावेज़ के हस्ताक्षरकर्त्ता की पहचान को प्रामाणित करने के लिये किया जाता है, न कि इंटरनेट पर किसी वेबसाइट या जानकारी तक पहुँचने के लिये उपयोगकर्त्ताओं की प्रामाणिकता के प्रमाण के रूप में काम करने के लिये। अत: कथन 2 सही नहीं है।
  • डिजिटल हस्ताक्षर, हस्ताक्षर का एक इलेक्ट्रॉनिक रूप है जो प्राप्तकर्त्ता को इस तथ्य पर विश्वास करने की अनुमति देता है कि एक ज्ञात प्रेषक ने संदेश भेजा है और पारगमन में इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। अतः कथन 3 सही है।

विकल्प C सही उत्तर है।


मेन्स:

प्रश्न: साइबर अपराध के विभिन्न प्रकारों और इस खतरे से लड़ने के आवश्यक उपायों की विवेचना कीजिये। (2020)

प्रश्न: सरकारी कार्यकलापों के लिये सर्वरों की क्लाउड होस्टिंग बनाम स्वसंस्थागत मशीन-आधारित होस्टिंग के लाभों और सुरक्षा निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। (2015)

प्रश्न: ‘आँगुलिक हस्ताक्षर’ (Digital Signature) क्या होता है? इसके द्वारा प्रामाणीकरण का क्या अर्थ है? ‘आँगुलिक हस्ताक्षर’ की प्रमुख विविध अंतस्थ विशेषताएँ बताइये। (2013)


क्रिप्टो परिसंपत्ति मध्यस्थों के बारे में FSB की चिंताएँ

प्रिलिम्स के लिये:

वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB), क्रिप्टोकरेंसी, बिटकॉइन, एथेरियम, लाइटकॉइन

मेन्स के लिये:

वैश्विक वित्तीय प्रणाली की निगरानी में वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) का महत्त्व

स्रोत:  द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में क्रिप्टो-परिसंपत्ति मध्यस्थों पर वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) की नवीनतम रिपोर्ट में स्थानीय अधिकारियों के बीच सीमा पार सहयोग और सूचना साझाकरण को बढ़ाने के उपायों की मांग की गई है। इसका उद्देश्य विश्व स्तर पर संचालित मल्टी-फंक्शन क्रिप्टो-एसेट इंटरमीडियरीज़ (MCI) में अंतराल को कम कर प्रभावी ढंग से विनियमित करना है।

क्रिप्टो एसेट/परिसंपत्तियाँ क्या हैं?

  • क्रिप्टो परिसंपत्तियाँ मूल्य का एक डिजिटल प्रतिनिधित्व हैं जो इलेक्ट्रॉनिक रूप से स्थानांतरित, संग्रहीत या व्यापार कर सकती हैं। इसमें अपूरणीय टोकन (NFT) भी शामिल हैं।
    • NFT ब्लॉकचेन-आधारित टोकन हैं जो प्रत्येक कला, डिजिटल सामग्री या मीडिया जैसी एक अनूठी संपत्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं। NFT को किसी दी गई संपत्ति के स्वामित्व और प्रामाणिकता का एक अपरिवर्तनीय डिजिटल प्रमाण-पत्र माना जा सकता है, चाहे वह डिजिटल हो या भौतिक।
  • क्रिप्टो परिसंपत्तियाँ डिजिटल संपत्तियों का एक उप-समूह हैं जो डिजिटल डेटा की सुरक्षा के लिये क्रिप्टोग्राफी का उपयोग करती हैं और लेनदेन को रिकॉर्ड करने के लिये वितरित लेज़र तकनीक का उपयोग करती हैं।

मल्टी-फंक्शन क्रिप्टो-एसेट इंटरमीडियरीज़ (MCI) क्या हैं?

  • MCI एक व्यक्तिगत फर्म है या संबद्ध फर्मों का समूह है जो क्रिप्टो-आधारित सेवाओं, उत्पादों और कार्यों की एक शृंखला की पेशकश करता है जो मुख्य रूप से ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म के संचालन पर आधारित हैं।
    • उदाहरणों में बिनेंस, बिटफिनेक्स और कॉइनबेस शामिल हैं।
  • इन प्लेटफाॅर्मों के लिये राजस्व का प्राथमिक स्रोत व्यापार-संबंधित गतिविधियों से उत्पन्न संव्यवहार /लेनदेन शुल्क है।
  • ये MCI ब्लॉकचेन इन्फ्रास्ट्रक्चर के संचालन से भी राजस्व प्राप्त कर सकते हैं जिसके लिये वे लेनदेन सत्यापन शुल्क एकत्र कर सकते हैं।

FSB की रिपोर्ट के अनुसार MCI से संबंधित चिंताएँ क्या हैं? 

  • पारदर्शिता: रिपोर्ट में पाया गया है कि अधिकांश MCI अमूमन अपने कॉर्पोरेट ढाँचे के बारे में पारदर्शी नहीं हैं। यदि वे जानकारी का खुलासा करते हैं तो यह आम तौर पर उनके व्यवसाय के एक छोटे से हिस्से के लिये होता है।
    • MCI, संव्यवहार गतिविधियों अथवा ऑडिट रिपोर्टों का स्पष्ट विवरण प्रदान करने में विफल रही।
  • प्रतिस्पर्द्धा-रोधी प्रवृत्ति: एक ही स्थान पर सेवाओं का बड़ा संकेंद्रण होने से प्रतिस्पर्द्धा-रोधी व्यवहार हो सकता है, जिससे प्रणाली अधिक असुरक्षित हो सकती है।
    • यह एकाग्रता नए प्रतिस्पर्धियों के लिये बाज़ार में प्रवेश करना कठिन बना सकती है तथा उन उपयोगकर्त्ताओं के लिये लागत बढ़ा सकती है जो एक अलग सेवा प्रदाता पर स्विच करना चाहते हैं।
  • क्रिप्टो-अनुकूल बैंक: क्रिप्टो परिसंपत्तियों के अनुकूल बैंकों को बंद करने से क्रिप्टो परिसंपत्तियों पर निर्भर व्यवसायों से संबंधित जमा राशि का एक गंभीर संकेंद्रण होने का व्यापक जोखिम उजागर होता है।
    • क्रिप्टो-परिसंपत्ति बाज़ारों में बाज़ार तनाव के कारण निवेशकों की काफी हानि हुई, जिससे इन बाज़ारों की विश्वसनीयता कम हो गई।
  • क्रिप्टोकरेंसी और फिएट करेंसी: MCI संव्यवहार सेवाओं के लिये बैंकों तथा भुगतान प्रदाताओं पर निर्भर हैं, जिसमें क्रिप्टोकरेंसी एवं (ऑन-रैंप व ऑफ-रैंप सेवाओं) के बीच रूपांतरण भी शामिल है।
    • यदि ट्रेडिंग प्लेटफाॅर्म संचालन बंद कर देता है अथवा यदि बैंक वास्तविक समय संचालन की प्रस्तुति करने में विफल रहता है, तो प्रतिपक्ष मुद्दों का जोखिम उत्पन्न होता है।
    • इसके अतिरिक्त, बैंकों द्वारा एमसीआई को ऋण और क्रेडिट लाइनें प्रदान करने में क्रेडिट जोखिम शामिल होता है, खासकर क्रिप्टो-आधारित संपार्श्विक का उपयोग करते समय, जो भविष्य में मूल्य में गिरावट आ सकती है।

वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) क्या है?

  • FSB एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जो वैश्विक वित्तीय प्रणाली की निगरानी करती है और उसके बारे में सिफारिशें करती है।
  • FSB की स्थापना वर्ष 2009 में G20 के तत्वावधान में की गई थी।
  • भारत FSB का एक सक्रिय सदस्य है, जिसके पूर्ण सत्र में तीन सीटों का प्रतिनिधित्व आर्थिक मामलों के सचिव, वित्त मंत्रालय, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के उप-गवर्नर, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के अध्यक्ष द्वारा किया जाता है।

आगे की राह

  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सूचना साझा करना:
    • MCI के संचालन में कमियों को प्रभावी ढंग से विनियमित करने और संबोधित करने के लिये स्थानीय अधिकारियों के बीच सीमा पार सहयोग तथा सूचना साझाकरण को बढ़ावा देना।
    • सभी न्यायक्षेत्रों में MCI के संचालन की व्यापक समझ सुनिश्चित करने के लिये पारदर्शिता और रिपोर्टिंग के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानक स्थापित करें।
  • विनियामक उपायः
    • MCI द्वारा उत्पन्न अद्वितीय चुनौतियों का समाधान करने, बाज़ार की अखंडता, निवेशक सुरक्षा और वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये विशेष रूप से तैयार किये गए स्पष्ट नियामक ढाँचे को विकसित और कार्यान्वित करें।
  • कॉर्पोरेट पारदर्शिता:
    • MCI को उनकी कॉर्पोरेट संरचना, व्यवसाय लाइनों और संचालन के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करके कॉर्पोरेट पारदर्शिता बढ़ाने का आदेश दें।
    • पारदर्शिता मानकों का अनुपालन न करने पर दंडित करने के उपाय लागू करें, यह सुनिश्चित करें कि MCI व्यापक नियामक निरीक्षण के लिये प्रासंगिक जानकारी का खुलासा करें।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: ‘वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद’ (Financial Stability and Development Council) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

1- यह नीति आयोग का एक अंग है।
2- संघ का वित्त मंत्री इसका प्रमुख होता है।
3- यह अर्थव्यवस्था के समष्टि सविवेक (मेक्रो-प्रूडेंशियल) पर्यवेक्षण का अनुवीक्षण (मॉनिटरिंग) करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: C