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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

भारत में जल संकट दूर करने के उपाय

पंचतत्व जीवन के लिए आधार माने गए हैं। उसमें से एक तत्व जल भी है। अगर जल ही नहीं रहेगा तो जीवन की कल्पना कैसी और सृष्टि का निर्माण कैसा? जल का महत्व इस बात का भी परिचायक है कि दुनिया की बड़ी-बड़ी सभ्यताएँ और प्राचीन नगर नदियों के किनारे ही बसे और फले-फूले। लेकिन,आज विकास की अंधी दौड़ और विलासिता भरी जिंदगी में प्राकृतिक संसाधनों का तो जैसे कोई मोल नहीं रह गया है।

"बड़बोले पृथ्वी पर

मनुष्य की अन्यतम उपलब्धियों के

अंत की घोषणा कर चुके हैं

और अंत में बची है पृथ्वी

उनकी जठराग्नि से जल-जंगल-ज़मीन

खतरे में हैं

खतरे में हैं पशु-पक्षी-पहाड़

नदियाँ-समुद्र-हवा खतरे में हैं।"

लेखक दिनेश कुरावाहा की उपरोक्त पंक्तियाँ स्पष्टतः बताती हैं कि मनुष्य ने किस तरह प्रकृति का संतुलन बिगाड़ा है और अपने लिए खतरे की स्थिति उत्पन्न कर ली है। आज अधिकांश प्राकृतिक संसाधन समाप्ति की कगार पर हैं जिनमें से जल भी एक है। इसमें कोई संदेह नहीं कि-

जल है तो जीवन है, जीवन है तो ये पर्यावरण है,

पर्यावरण से ये धरती है, और इस धरती से हम सब है।

लेकिन, पर्यावरण के साथ निरंतर खिलवाड़ का यह परिणाम हुआ कि आज दुनिया के अधिकांश देश अपनी आबादी को पीने का स्वच्छ पानी तक मुहैया नहीं करा पा रहे हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। तमाम रिपोर्टे इस बात को चीख-चीखकर कह रही हैं कि यदि आज हम जल-संसाधन का उचित प्रबंधन नहीं कर पाते हैं तो भावी पीढ़ी जल के एक-एक बूंद के लिए तरस जाएगी। एक शोध के मुताबिक आज जिस रफ्तार से जंगल खत्म हो रहे हैं उससे तीन गुना अधिक रफ्तार से जल के स्रोत सूख रहे हैं। नीति आयोग के 'समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (Composite Water Management Index)' की माने तो भारत के लगभग 600 मिलियन से अधिक लोग गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं। रिपोर्ट में इस बात का भी अंदेशा जताया गया है कि साल 2030 तक भारत में पानी की मांग उपलब्ध आपूर्ति की तुलना में दोगुनी हो जाएगी। इसके अलावा भारत इस समय पेयजल के साथ-साथ कृषि उपयोग हेतु जल संकट से भी गुजर रहा है और यह संकट वैश्विक स्तर पर साफ दिख रहा है। 'सक्रिय भूमि जल संसाधन मूल्यांकन रिपोर्ट 2022' के मुताबिक भारत में कुल वार्षिक भू-जल पुनर्भरण 437.60 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) है, जबकि वार्षिक भू-जल निकासी 239.16 BCM है। इन आँकड़ों से एक बात यह भी स्पष्ट होती है कि भारत विश्व में भू-जल का सबसे अधिक निष्कर्षण करता है। हालाँकि, भारत में निष्कर्षित भू-जल का केवल 8 फीसद ही पेयजल के रूप में उपयोग किया जाता है। जबकि, इसका 80 फीसद भाग सिंचाई में और शेष 12 प्रतिशत हिस्सा उद्योगों द्वारा उपयोग किया जाता है। ऐसे में देश में भू-जल की मात्रा में भी दिनों-दिन कमी आ रही है।

लिहाजा, दुनियाभर के देशों को इस जल संकट को दूर करने की दिशा में ठोस कदम उठाने पर विचार करना चाहिए। इस संकट के निवारण हेतु हमें तीन स्तरों पर विचार करना होगा। पहला यह कि अब तक हम जल का उपयोग किस तरह से करते आ रहे थे? दूसरा यह कि भविष्य में इसका उपयोग कैसे करना है? और तीसरा एवं सबसे आखिरी यह कि जल संरक्षण हेतु क्या कदम उठाए जाने चाहिए?

अब तक की पूरी स्थिति पर अगर नजर डालेंगे तो पायेंगे कि अभी तक हम पानी का उपयोग अनुशासित ढंग से नहीं करते आ रहें है। जरूरत से ज्यादा पानी का नुकसान करना तो जैसे हमारी आदत बन गई हो। ऐसे में हमारी भावी पीढ़ी के लिए भी जल की उपलब्धता सुनिश्चित हो, इसके लिए हमें कई कदम उठाने होंगे; जैसे कि-

  1. घरेलू स्तर पर जल का उचित व संयमित उपयोग एवं उद्योगों में पानी के चक्रीय उपयोग जल संरक्षण में सहायक हो सकते हैं
  2. इस्तेमाल किये हुए पानी का फिर से शौचालयों अथवा बगीचों में फिर से इस्तेमाल और रिसाइकिलिंग करके
  3. जल का सदुपयोग कैसे करना है, इस दिशा में जन-जागरूकता बढ़ायी जाए
  4. वर्षा-जल का संग्रहण करके हम पानी को बचा सकते हैं
  5. विभिन्न जलाशयों का निर्माण करके उनमें जल संग्रह करना जल संसाधन का सबसे पुराना उपाय है, इसे आगे भी बढ़ाया जा सकता है
  6. भूमिगत जल संरक्षण के लिए भूमिगत जल का कृत्रिम रूप से पुनर्भरण किया जा सकता है
  7. टपकन टैंक/ड्रिप/स्प्रिंकल सिंचाई के उपयोग से सिंचाई जल के संरक्षण को बढ़ावा दिया जा सकता है
  8. Catchment Area Protection (CAP) के माध्यम से जलग्रहण क्षेत्रों का संरक्षण करके जल के साथ-साथ मृदा का भी संरक्षण किया जा सकता है। यह विधि सामान्यतः पहाड़ी क्षेत्रों में प्रयोग में लायी जाती है
  9. फसल उगाने के तरीकों का प्रबंधन करके; जैसे कि कम जल क्षेत्रों में ऐसे पौधों का चयन करके जिनकी पैदावार के लिए कम पानी की जरूरत हो
  10. नहरों की तली व नालियों को पक्का करके नहरों-नालियों से बहने वाले अतिरिक्त जल को बचाया जा सकता है

अगर हम बात मौजूदा समय में भारत की जल जरूरत की बात करें तो इसके लगभग 1,100 बिलियन क्यूबिक मीटर प्रति वर्ष होने का अनुमान है। इस उच्च आवश्यकता को पूरा करने के लिए, भारत सरकार भी विभिन्न साधनों और उपायों के जरिए जल निकायों की स्थिति और बेहतर उपचार प्रणालियों में सुधार करने की कोशिश कर रही है। इनमें से कुछ प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं, जिन्हें अपनाया गया है और आगे बढ़ाया गया है-

  • जल की उपलब्धता, संरक्षण और गुणवत्ता में सुधार के उद्देश्य से 2019 में 'जल शक्ति अभियान' शुरू किया गया।
  • जल शक्ति मंत्रालय द्वारा राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को मॉडल बिल का वितरण ताकि वे इसके नियमन और विकास के लिए एक उपयुक्त 'भूजल कानून' इनेक्ट कर सकें। इस कानून को अब तक 19 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अपनाया जा चुका है।
  • भूजल विकास और प्रबंधन के विनियमन और नियंत्रण के लिए 'पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986' के तहत 'केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (CGWA)' का गठन किया गया।
  • भूजल के कृत्रिम पुनर्भरण के लिए 'सेंट्रल ग्राउण्ड वॉटर बोर्ड (CGWB)'द्वारा 'मास्टर प्लान- 2020' तैयार किया गया है, जिसमें मानसूनी वर्षा के 185 बिलियन क्यूबिक मीटर का उपयोग करने के लिए देश में लगभग 1.42 करोड़ वर्षा जल संचयन और कृत्रिम पुनर्भरण संरचनाओं के निर्माण की परिकल्पना की गई है
  • जल संरक्षण की दिशा में प्रशिक्षण, सेमिनार, कार्यशालाएँ, प्रदर्शनियाँ, और चित्रकला प्रतियोगिता आदि जैसे जन-जागरूकता कार्यक्रमों का नियमित आयोजन किया गया।
  • केंद्र सरकार द्वारा 'प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना - वाटरशेड डेवलपमेंट कंपोनेंट (PMKSY-WDC)' के जरिए जल संचयन और संरक्षण कार्यों के निर्माण में सहायता प्रदान की जाती है।
  • अटल भूजल योजना (ABHY)- भूजल प्रबंधन पर इस बड़ी योजना का शुभारंभ प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 25 दिसंबर 2019 को किया गया। 6000 करोड़ रुपये की इस योजना में 50 फीसदी फंड विश्व बैंक का और 50 फीसदी भारत सरकार लगाएगी। इस योजना का मकसद देश के 7 चुनिंदा राज्यों के भूजल की कमी से जूझने वाले क्षेत्रों में बेहतर भूजल प्रबंधन करना है। इन राज्यों में गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश शामिल हैं।
  • गंगा बेसिन की नदियों के संरक्षण के लिए जल शक्ति मंत्रालय की 'नमामी गंगे पहल' और अन्य नदियों के संरक्षण के लिए 'राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (NRCP)'
  • सरकार के 'जल समृद्ध भारत' के दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिए राज्यों, जिलों, व्यक्तियों, संस्थानों, संगठनों आदि द्वारा किए गए प्रयासों को पहचानने और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए जल शक्ति मंत्रालय द्वारा 2018 में 'राष्ट्रीय जल पुरस्कारों' की शुरुआत
  • जल संरक्षण के लिए लोगों के सहयोग से जन जागरुकता अभियान चलाने के लिए 2021 में 'कैच द रैन अभियान' की शुरुआत
  • ग्रामीण क्षेत्रों में जल संकट को दूर करने के लिये भारत के प्रत्येक ज़िले में कम-से-कम 75 अमृत सरोवरों के निर्माण के लिए 24 अप्रैल, 2022 को 'अमृत सरोवर मिशन' का शुभांरभ; 15 अगस्त, 2023 तक इस मिशन का लक्ष्य 50,000 अमृत सरोवरों का निर्माण करना है

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि ‘जल संरक्षण’ आज समूची दुनिया के लिए अहम चिंता का विषय है। प्रकृति हमें निरंतर वायु, जल, प्रकाश आदि शाश्वत गति से दे रही है लेकिन हम प्रकृति के इस नैसर्गिक संतुलन को बिगाड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं। पानी को बचाने की दिशा में हमें पहले से चेत जाने की जरूरत है क्योंकि-

"रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।

पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥"

  करिश्मा शाह  

करिश्मा शाह, मूलत: बिहार के रोहतास जिले से हैं। इन्होंने समाजशास्त्र में एम. ए. और सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में एडवांस्ड डिप्लोमा (ADSE - Aptech). किया है। इन्होंने दृष्टि आई.ए.एस. संस्थान के मीडिया डिपार्टमेंट में बतौर 'कंटेन्ट राइटर' चार साल तक अपनी सेवाएँ दी हैं। इनके आर्टिकल 'दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण' और निबंध 'प्रतियोगिता दर्पण' में प्रकाशित हो चुके हैं। वर्तमान में यह सिविल सेवा परीक्षाओं के लिए अध्ययनरत् हैं।

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