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डेली न्यूज़

  • 13 Jul, 2022
  • 64 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

श्रीलंका संकट

प्रिलिम्स के लिये:

श्रीलंका, आर्थिक संकट, विदेशी मुद्रा, आयात और निर्यात, आईएमएफ, सार्वजनिक ऋण, जैविक खेती।

मेन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था पर श्रीलंका के संकट का प्रभाव, श्रीलंका संकट में भारत की भूमिका, भारत के हित पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

श्रीलंका जिसकी आबादी 22 मिलियन है, अभूतपूर्व आर्थिक संकट का सामना कर रहा है, यह सात दशकों में सबसे खराब स्थिति है, जिसके कारण लाखों लोगों को भोजन, दवा, ईंधन और अन्य आवश्यक वस्तुओं को खरीदने के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है।

  • राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता के बाद सैकड़ों सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों ने श्रीलंका के राष्ट्रपति के इस्तीफे की मांग को लेकर राष्ट्रपति के आवास पर धावा बोल दिया।

Sri-Lanka

श्रीलंका संकट का कारण:

  • पृष्ठभूमि:
    • जब वर्ष 2009 में श्रीलंका 26 साल के लंबे गृहयुद्ध से उभरा तो युद्ध के बाद की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि वर्ष 2012 तक प्रतिवर्ष 8-9% पर काफी अधिक थी।
    • हालांँकि वर्ष 2013 के बाद इसकी औसत GDP वृद्धि दर लगभग आधी हो गई क्योंकि वैश्विक कमोडिटी की कीमतें गिर गईं, निर्यात धीमा हो गया और आयात बढ़ गया।
    • युद्ध के दौरान श्रीलंका का बजट घाटा बहुत अधिक था और वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट ने इसके विदेशी मुद्रा भंडार को खत्म कर दिया, जिसके कारण देश ने वर्ष 2009 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से 2.6 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का ऋण लिया।
    • इसने वर्ष 2016 में फिर से 1.5 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के ऋण के लिये IMF से संपर्क किया, हालांँकि IMF की शर्तों ने श्रीलंका के आर्थिक स्थिति को और खराब कर दिया।
  • आर्थिक कारक:
    • कोलंबो के चर्चों में अप्रैल 2019 के ईस्टर बम विस्फोटों के कारण 253 लोग हताहत हुए, परिणामस्वरूप पर्यटकों की संख्या में तेज़ी से गिरावट आई, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार में भी गिरावट आई।
    • वर्ष 2019 में गोटबाया राजपक्षे की नई सरकार ने अपने अभियान के दौरान किसानों के लिये कम कर दरों और व्यापक SoP का वादा किया था।
      • इन बेबुनियाद वादों के त्वरित कार्यान्वयन ने समस्या को और बढ़ा दिया।
    • वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी ने स्थिति को और खराब कर दिया:
      • चाय, रबर, मसालों और कपड़ों के निर्यात को नुकसान हुआ।
      • पर्यटन आगमन और राजस्व में और गिरावट आई।
      • सरकारी व्यय में वृद्धि के कारण राजकोषीय घाटा वर्ष 2020-21 में 10% से अधिक हो गया और ऋण-सकल घरेलू उत्पाद अनुपात वर्ष 2019 में 94% से बढ़कर वर्ष 2021 में 119% हो गया।
    • श्रीलंका में संकट विदेशी मुद्रा भंडार की कमी के कारण उत्पन्न हुआ है, जो पिछले दो वर्षों में 70% घटकर फरवरी 2022 के अंत तक केवल 2 बिलियन अमेरिकी डाॅलर रह गया है।
      • इस बीच देश पर वर्ष 2022 के लिये लगभग 7 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का विदेशी ऋण दायित्व है।
  • जैविक खेती की ओर कदम:
    • वर्ष 2021 में सभी उर्वरक आयातों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था और यह घोषित किया गया था कि श्रीलंका रातोंरात 100% जैविक खेती वाला देश बन जाएगा।
    • जैविक खादों के प्रयोग ने खाद्य उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित किया।
    • परिणामस्वरूप श्रीलंका के राष्ट्रपति ने बढ़ती खाद्य कीमतों, मूल्यह्रास मुद्रा और तेज़ी से घटते विदेशी मुद्रा भंडार को रोकने के लिये आर्थिक आपातकाल की घोषणा कर दी।
  • चीन का कर्ज जाल:
    • श्रीलंका ने वर्ष 2005 से बुनियादी ढांँचा परियोजनाओं के लिये बीजिंग से काफी धन उधार लिया है, जिनमें से कई परियोजनाएँ सफेद हाथी (अब इणकी आवश्यकता नहीं है/उपयोगी नहीं) बनकर रह गई हैं।
    • श्रीलंका ने वर्ष 2017 में एक चीनी कंपनी को अपना हंबनटोटा बंदरगाह तब पट्टे पर दिया, जब वह बीजिंग से लिया गया 1.4 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का कर्ज चुकाने में असमर्थ हो गया था।
    • चीन का श्रीलंका पर कुल कर्ज 8 अरब अमेरिकी डॉलर का है, जो उसके कुल विदेशी कर्ज का लगभग छठा हिस्सा है
  • वर्तमान राजनीतिक शून्यता:
    • प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे और राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने इस्तीफा देने की मंशा जताई है , जिससे सर्वदलीय सरकार बनने का रास्ता साफ हो गया है।

भारत को श्रीलंका संकट की चिंता क्यों?

  • चुनौतियांँ:
    • आर्थिक:
      • भारत के कुल निर्यात में श्रीलंका की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2015 में 2.16% से घटकर वित्त वर्ष 2022 में केवल 1.3 प्रतिशत रह गई है।
      • टाटा मोटर्स और टीवीएस मोटर्स जैसी ऑटोमोटिव फर्मों ने श्रीलंका को वाहन किट का निर्यात बंद कर दिया है और अस्थिर विदेशी मुद्रा भंडार तथा ईंधन की कमी के कारण अपनी श्रीलंकाई असेंबलिंग इकाइयों में उत्पादन रोक दिया है।
    • शरणार्थी:
      • जब भी श्रीलंका में कोई राजनीतिक या सामाजिक संकट उत्पन्न हुआ है, तो भारत ने पाक जलडमरूमध्य और मन्नार की खाड़ी के माध्यम से सिंहली भूमि से भारत में तमिल जातीय समुदाय के शरणार्थियों का बड़ा अंतर्वाह देखा है।
      • हालांँकि भारत के लिये इस तरह के अंतर्वाह को संभालना मुश्किल हो सकता है तथा ऐसे संकट से निपटने के लिये एक मज़बूत नीति की आवश्यकता है।
      • तमिलनाडु राज्य ने पहले ही संकट के प्रभाव को महसूस करना शुरू कर दिया है क्योंकि अवैध तरीकों से श्रीलंका से 16 व्यक्तियों के आगमन की सूचना है।

भारत के लिये अवसर:

  • चाय बाज़ार:
    • वैश्विक चाय बाज़ार में श्रीलंका द्वारा चाय की आपूर्ति अचानक रोक दिये जाने के बीच भारत आपूर्ति अंतराल को पाटने का इच्छुक है।
    • ईरान और साथ ही तुर्की, इराक जैसे नए बाज़ारों में भारत अपनी भूमिका को मज़बूत कर सकता है।
    • ईरान, तुर्की, इराक और रूस जैसे श्रीलंका के बड़े चाय आयातक कथित तौर पर भारत के चाय बागानों ( विशेष रूप से असम और कोलकाता में चाय बागानों में) की ओर रुख कर रहे हैं।
    • नतीज़तन हाल ही में कोलकाता में आयोजित चाय बागानों की नीलामी में पारंपरिक तरीके से उत्पादित पत्तियों की औसत कीमत में पिछले वर्ष की तुलना में 41% तक की वृद्धि देखी गई।
  • परिधान (वस्त्र) बाज़ार:
    • यूनाइटेड किंगडम, यूरोपीय संघ और लैटिन अमेरिकी देशों के कई परिधान ऑर्डर अब भारत को मिल रहे हैं।
    • तमिलनाडु में कपड़ा उद्योग के केंद्र तिरुपुर में कंपनियों को कई ऑर्डर मिले हैं।

श्रीलंका संकट में भारत द्वारा मदद:

  • श्रीलंका भारत के लिये रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण भागीदार रहा है। भारत इस अवसर का उपयोग श्रीलंका के साथ अपने राजनयिक संबंधों को संतुलित करने के लिये कर सकता है, चीन के साथ श्रीलंका की निकटता के कारण इनमें दूरी देखी गई थी।
    • चूंँकि उर्वरक के मुद्दे पर श्रीलंका और चीन के बीच असहमति के बीच भारत द्वारा श्रीलंका के अनुरोध पर भारत द्वारा उर्वरक आपूर्ति को द्विपक्षीय संबंधों में सकारात्मक विकास के रूप में देखा जा रहा है।
  • श्रीलंका के साथ राजनयिक संबंधों का विस्तार करने से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल' की नीति से श्रीलंकाई द्वीपसमूह को दूर रखने के प्रयासों में भारत को आसानी होगी।
    • श्रीलंका के लोगों की कठिनाइयों को कम करने के लिये भारत मदद कर सकता है, लेकिन उसे इस बात का ध्यान रखते हुए मदद करनी चाहिये कि उसकी सहायता दृष्टिगोचर होने के साथ ही मायने रखती है।

आगे की राह

  • लोकतंत्र को मज़बूती से लागू करना:
    • बेहतर संकट-प्रबंधन के लिये श्रीलंका में मज़बूत राजनीतिक सहमति की आवश्यकता है। इससे प्रशासन के सैन्यीकरण को कम किया जा सकता है।
      • गरीबों और कमज़ोरों को फिर से सक्षम बनाने और दीर्घकालिक क्षति को रोकने में मदद के लिये विचार करने की आवश्यकता है।
      • उठाए गए कदमों में कृषि उत्पादकता में वृद्धि, गैर-कृषि क्षेत्रों में नौकरी के अवसरों में वृद्धि, सुधारों का बेहतर कार्यान्वयन और पर्यटन क्षेत्र को पुनर्जीवित करना शामिल है।
  • भारत से समर्थन:
    • भारत, जिसने अपने पड़ोसियों के साथ सबंध को मज़बूत करने हेतु "नेबरहुड फर्स्ट नीति" का अनुसरण किया है, श्रीलंका को मौजूदा संकट से बाहर निकालने में अतिरिक्त सहायता देकर उसे संकट से उबरने में मदद कर सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से राहत:
    • श्रीलंका ने बेलआउट के लिये IMF से संपर्क किया है। IMF मौजूदा आर्थिक संकट से उबरने के श्रीलंका के प्रयासों का समर्थन कर सकता है।
  • चक्रीयर्थव्यवस्था की संभावनाएँं:
    • श्रीलंका में आर्थिक अस्थिरता के संदर्भ में आयात पर निर्भरता को चक्रीय अर्थव्यवस्था द्वारा कम किया जा सकता है यह रिकवरी में सहायता के लिये एक स्थायी विकल्प प्रदान करेगा।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला हाथी दर्रा का उल्लेख निम्नलिखित में से किसके मामलों के संदर्भ में किया गया है? (2009)

(a) बांग्लादेश
(b) भारत
(c) नेपाल
(d) श्रीलंका

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • हाथी दर्रा (जो इस्थमस का कार्य करता है) श्रीलंका की उत्तरी मुख्य भूमि जो वान्नी के नाम से जाना जाता है, को जाफना प्रायद्वीप के साथ जोड़ता है।
  • श्रीलंका पर डचों के कब्ज़े के दौरान हाथियों का निर्यात करैतिवु से किया जाता था, जो जाफना प्रायद्वीप से दूर स्थित द्वीपों में से एक था और हाथियों की वार्षिक बिक्री भी जाफना में आयोजित की जाती थी। देश के अन्य हिस्सों में पकड़े गए हाथियों को इस लैगून के पार जाफना प्रायद्वीप में ले जाया जाता था, जिसके कारण इसे हाथी दर्रा नाम दिया गया।
  • लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) और श्रीलंका के इतिहास में एलीफेंट पास के पतन ने पहली बार चिह्नित किया कि तमिल ईलम ने श्रीलंकाई मुख्य भूमि और जाफना प्रायद्वीप के बीच रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण लिंक को नियंत्रित किया।
  • अतः विकल्प (d) सही उत्तर है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

श्रम संहिताओं के लिये केंद्र का प्रयत्न

प्रिलिम्स के लिये:

श्रम संहिता, श्रम और रोज़गार मंत्रालय, संबंधित सरकारी पहल एवं नियम

मेन्स के लिये:

लेबर कोड और उनका मैंडेट, भारतीय अर्थव्यवस्था में लेबर कोड का महत्त्व, लेबर कोड की चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार वर्ष 2020 में प्रस्तुत किये गए चार श्रम संहिताओं (2019 में वेतन संहिता अधिनियम) को लागू करने पर ज़ोर दे रही है, जो श्रम कानूनों के 29 सेटों का स्थान लेंगी।

  • श्रम संहिताओं में 4 संस्करण शामिल हैं: वेतन संहिता अधिनियम, 2019; औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक, 2020; सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2020; व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति संहिता विधेयक, 2020।

श्रम संहिताओं के बारे में:

  • वेतन संहिता अधिनियम, 2019:
    • परिचय:
      • विधेयक का उद्देश्य पुराने और अप्रचलित श्रम कानूनों को अधिक जवाबदेह एवं पारदर्शी बनाना तथा देश में न्यूनतम वेतन श्रम सुधारों की शुूरुआत का मार्ग प्रशस्त करना है।
      • यह उन सभी रोज़गार क्षेत्रों में वेतन और बोनस भुगतान को नियंत्रित करता है जहांँ कोई उद्योग, व्यापार, व्यवसाय या विनिर्माण किया जा रहा है।
      • विधेयक निम्नलिखित चार श्रम कानूनों को समाहित करता है:
        • न्यूनतम मज़दूरी कानून, 1948
        • मज़दूरी भुगतान कानून, 1936
        • बोनस भुगतान कानून, 1965
        • समान पारितोषिक कानून, 1976
      • वेतन संहिता सभी कर्मचारियों के लिये न्यूनतम वेतन और वेतन के समय पर भुगतान के प्रावधानों को सार्वभौमिक बनाती है तथा प्रत्येक कर्मचारी के लिये "निर्वाह का अधिकार" सुनिश्चित करने का प्रयास करती है, साथ ही न्यूनतम मज़दूरी के विधायी संरक्षण को मज़बूत करती है।
      • विधेयक में यह सुनिश्चित किया गया है कि मासिक वेतन पाने वाले कर्मचारियों को हर महीने की 7 तारीख तक वेतन मिलेगा, साप्ताहिक आधार पर काम करने वालों को सप्ताह के आखिरी दिन वेतन मिलेगा और दैनिक वेतनभोगियों को उसी दिन वेतन मिल जाएगा।
      • केंद्र सरकार को श्रमिकों के जीवन स्तर को ध्यान में रखते हुए न्यूनतम मज़दूरी तय करने का अधिकार है। यह विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के लिये अलग-अलग न्यूनतम मज़दूरी निर्धारित कर सकती है।
        • केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा तय की गई न्यूनतम मज़दूरी, फ्लोर वेज (Floor Wage) से अधिक होनी चाहिये।
  • औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक, 2020:
    • औद्योगिक रोज़गार (स्थायी आदेश) अधिनियम 1946 ऐसे औद्योगिक प्रतिष्ठान के नियोक्ताओं के लिये अनिवार्य है जहांँ 100 या अधिक श्रमिक हैं, रोज़गार की शर्तों और कामगारों के लिये आचरण के नियमों को स्थायी आदेशों/सेवा नियमों के माध्यम से स्पष्ट रूप से परिभाषित करने तथा काम करने वाले कर्मचारियों को उनसे अवगत कराना अनिवार्य बनाता है।
      • स्थायी आदेश का नया प्रावधान हर उस औद्योगिक प्रतिष्ठान पर लागू होगा जिसमें पिछले बारह महीनों के किसी भी दिन 300 या 300 से अधिक कर्मचारी कार्यरत रहे या कार्यरत थे।
      • यह पहली श्रम संबंधी स्थायी समिति द्वारा सुझाया गया था जिसने यह भी सुझाव दिया था कि सीमा को संहिता के अनुसार बढ़ाया जाए औरउपयुक्त सरकार द्वारा अधिसूचित शब्दों को हटा दिया जाए क्योंकि कार्यकारी मार्ग के माध्यम से श्रम कानूनों में सुधार अवांछनीय है तथा जहाँ तक संभव हो इससे बचना चाहिये।
      • कानून बनने के बाद आदेश राज्य सरकारों के अधिकारियों की मर्जी और पसंद पर निर्भर नहीं होंगे।
    • यह वैध हड़ताल करने के लिये नई शर्तें भी पेश करता है। वैध हड़ताल पर जाने से पहले श्रमिकों के लिये शर्तों में मध्यस्थता की कार्यवाही अवधि को शामिल किया गया है, जबकि वर्तमान में केवल समझौते का समय शामिल है।
      • किसी औद्योगिक प्रतिष्ठान में कार्यरत कोई भी व्यक्ति बिना 60 दिन के नोटिस और न्यायाधिकरण या राष्ट्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण के समक्ष लंबित कार्यवाही के दौरान तथा ऐसी कार्यवाही के समापन के 60 दिन बाद हड़ताल पर नहीं जाएगा।
      • वर्तमान में जनोपयोगी सेवा में कार्यरत कोई व्यक्ति तब तक हड़ताल पर नहीं जा सकता जब तक कि वह हड़ताल पर जाने से पहले छह सप्ताह के भीतर या ऐसा नोटिस देने के 14 दिनों के भीतर हड़ताल का नोटिस नहीं देता, यह IR कोड अब सभी औद्योगिक प्रतिष्ठानों पर लागू करने का प्रस्ताव करता है।
    • इसने छंटनी किये गए कामगारों के प्रशिक्षण के लिये नियोक्ता के योगदान के साथ पुनः कौशल निधि स्थापित करने का भी प्रस्ताव किया है, जो श्रमिक द्वारा प्राप्त अंतिम वेतन के 15 दिनों की राशि के बराबर होगी।
  • सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2020:
    • संहिता ने असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों, निश्चित अवधि के कर्मचारियों और गिग वर्कर्स, प्लेटफॉर्म वर्कर्स, अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों आदि को शामिल करके कवरेज क्षेत्र को व्यापक बना दिया है।
    • साथ ही गिग वर्कर्स को नियोजित करने वाले एग्रीगेटर्स को सामाजिक सुरक्षा के लिये अपने वार्षिक टर्नओवर का 1-2% योगदान करना होगा, कुल योगदान एग्रीगेटर द्वारा गिग एवं प्लेटफॉर्म वर्कर्स को देय राशि के 5% से अधिक नहीं होना चाहिये।
  • व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति सहिंता विधेयक, 2020:
    • इसने अंतर-राज्यीय प्रवासी कामगारों को ऐसे श्रमिक के रूप में परिभाषित किया है जो एक राज्य से आकर दूसरे राज्य में अपने दम पर रोज़गार प्राप्त करते हैं और प्रतिमाह 18,000 रुपए तक आय अर्जित करते हैं।
    • प्रस्तावित परिभाषा संविदात्मक रोज़गार की वर्तमान परिभाषा से अलग है।
    • इसने कार्यस्थलों के पास श्रमिकों के लिये अस्थायी आवास हेतु पहले के प्रावधान को हटा दिया है और यात्रा भत्ता का प्रस्ताव दिया है जो कर्मचारी को रोज़गार के स्थान से उनके मूल स्थान तक की यात्रा के लिये नियोक्ता द्वारा भुगतान की जाने वाली एकमुश्त राशि का भुगतान किया जाएगा।

श्रम संहिता के लाभ:

  • वेतन अधिनियम की संहिता, 2019:
    • इससे मुकदमेबाज़ी कम होने और नियोक्‍ता के लिये इसका अनुपालन सरलता से किये जाने की उम्‍मीद है।
    • यह न्यूनतम मज़दूरी की मौजूदा 2000 से अधिक दरों से देश में न्यूनतम मज़दूरी की संख्या को काफी हद तक कम कर देगा।
    • इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि हर कामगार को न्‍यूनतम वेतन मिले, जिससे कामगार की क्रय शक्ति बढ़ेगी और अर्थव्‍यवस्‍था में प्रगति को बढ़ावा मिलेगा।
  • जटिल कानूनों का समेकन और सरलीकरण:
    • तीन संहिताएँ (IR, SS और OSHW) 25 केंद्रीय श्रम कानूनों को कम करके श्रम कानूनों को सरल बनाती हैं।
      • यह उद्योग और रोज़गार को बढ़ावा देगा तथा परिभाषाओं की बहुलता एवं व्यवसायों के लिये प्राधिकरण की बहुलता को कम करेगा।
  • एकल लाइसेंसिंग तंत्र:
    • संहिता एकल लाइसेंसिंग तंत्र प्रदान करती है।
      • यह लाइसेंसिंग तंत्र में व्यापक सुधार लाकर उद्योगों को प्रोत्साहन देगा। वर्तमान में उद्योगों को विभिन्न कानूनों के तहत अपने लाइसेंस के लिये आवेदन करना होता है।
  • आसान विवाद समाधान:
    • संहिता औद्योगिक विवादों से निपटने वाले पुरातन कानूनों को भी सरल बनाती है और विवाद प्रक्रियाओं को संशोधित करती है जो विवादों के शीघ्र समाधान के लिये मार्ग प्रशस्त करेगी।
  • व्यापार करने में आसानी:
    • कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार, इस तरह के सुधार से निवेश को बढ़ावा मिलेगा तथा व्यापार करने में आसानी होगी।
    • यह जटिलता को कम करता है और आंतरिक विरोधाभास बढ़ाता है तथा सुरक्षा/कार्य स्थितियों पर नियमों का आधुनिकीकरण करता है।
  • श्रमिकों हेतु अन्य लाभ:
    • तीनों संहिताएँ निश्चित अवधि के रोज़गार को बढ़ावा देंगी, मज़दूर संघ के प्रभाव को कम और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिये सामाजिक सुरक्षा जाल का विस्तार करेंगी।
  • लैंगिक समानता:
    • महिलाओं को हर क्षेत्र में रात में काम करने की अनुमति दी जानी चाहिये, लेकिन यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि उनकी सुरक्षा का प्रावधान नियोक्ता द्वारा किया जाए और रात में काम करने से पहले महिलाओं की सहमति ली जाए।
    • मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया गया हैप्रधानमंत्री रोज़गार प्रोत्त्साहन योजना (PMRPY) के तहत महिलाओं को खदानों में काम करने की अनुमति दी गई थी।
    • महिला श्रमिकों को उनके पुरुष समकक्षों के समान भुगतान करना।

श्रम संहिताओं के समक्ष चुनौतियांँ:

  • संवैधानिक चुनौती:
    • श्रम समवर्ती सूची का विषय होने के कारण केंद्र और राज्यों दोनों को इस पर कानून एवं नियम बानने का अधिकार है।
      • जबकि संसद ने वर्ष 2020 में चार श्रम संहिताओं को मंज़ूरी दे दी और केंद्र ने सभी चार संहिताओं के लिये मसौदा नियमों को पूर्व-प्रकाशित कर दिया था, वहीँ कुछ राज्य सरकारों ने अभी तक प्रक्रिया को पूरा नहीं किया है।
  • औद्योगिक संबंध संहिता विधेयक:
    • यह 300 से कम श्रमिकों वाले छोटी कंपनियों में श्रमिकों के श्रम अधिकारों में कमी करेगा और कंपनियों को श्रमिकों के लिये मनमानी सेवा शर्तें पेश करने में सक्षम बनाएगा।
  • मज़दूरी संहिता अधिनियम:
    • यह आरोप लगाया गया है कि नया वेतन कोड संगठित श्रमिकों की आय क्षमता और क्रय शक्ति को बढ़ाएगा जबकि असंगठित श्रमिकों में भुखमरी को और आगे बढ़ाएगा।
  • बहिष्करण की चुनौती:
    • मसौदा नियम श्रम सुविधा पोर्टल पर सभी श्रमिकों (आधार कार्ड के साथ) के पंजीकरण को किसी भी प्रकार के सामाजिक सुरक्षा लाभ प्राप्त करने में सक्षम होने के लिये अनिवार्य करते हैं।
    • इससे श्रमिकों का आधार-संचालित बहिष्करण हो जाएगा और जानकारी की कमी के कारण श्रमिक स्वयं पंजीकरण करने में असमर्थ होंगे।
  • शहरी केंद्रित:
    • ये कोड असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के बहुमत के लिये सामाजिक सुरक्षा के किसी भी रूप का विस्तार करने में विफल रहते हैं, जिसमें प्रमुख रूप से प्रवासी श्रमिक, स्व-नियोजित श्रमिक, घरेलू श्रमिक और अन्य कमज़ोर समूह सहित ग्रामीण क्षेत्र शामिल हैं।
  • अधिकार विहीन आधारित ढांँचा:
    • संहिता सामाजिक सुरक्षा को एक अधिकार के रूप में महत्त्व नहीं देती है, न ही यह संविधान द्वारा निर्धारित इसके प्रावधान का संदर्भ प्रदान करती है।

आगे की राह

  • प्रवासी कार्यबल की देखभाल:
    • मसौदा नियमों के लिये यह स्पष्ट रूप से बताना महत्त्वपूर्ण है कि प्रवासी असंगठित कार्यबल के संबंध में उनकी प्रयोज्यता कैसे सामने आएगी।
    • इस संदर्भ में सरकार की एक भारत एक राशन कार्ड की योजना सही दिशा में एक कदम है।
  • CSR व्यय के तहत कौशल:
    • बड़े कॉरपोरेट घरानों को भी CSR खर्च के तहत असंगठित क्षेत्रों में लोगों को कुशल बनाने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिये।
  • अदृश्य श्रम को पहचानना:
    • घरेलू कामगारों के अधिकारों को पहचानने और बेहतर काम करने की स्थिति को बढ़ावा देने के लिये जल्द-से-जल्द एक राष्ट्रीय नीति लाने की ज़रूरत है।
  • अन्य उपाय:
    • असंगठित क्षेत्रों के श्रमिकों के लिये भी एक बहुत ही मज़बूत, विश्वसनीय और अनुकूल सामाजिक सुरक्षा पैकेज तैयार करने की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

डार्क मैटर

प्रिलिम्स के लिये:

डार्क मैटर, डार्क एनर्जी, यूनिवर्स, गैलेक्सी, बुलेट क्लस्टर।

मेन्स के लिये:

डार्क मैटर और डार्क एनर्जी।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका द्वारा ब्रह्मांड में डार्क मैटर का पता लगाने के लिये लक्स-ज़ेप्लिन (LUX-ZEPLIN-LZ) नामक अत्यधिक संवेदनशील प्रयोग किया गया।

  • इससे पहले यह जांँच करते हुए कि डार्क मैटर का आकार कुछ आकाशगंगाओं (तारकीय पट्टी) के केंद्र में तारों की गति को कैसे प्रभावित करता है, जिसमे वैज्ञानिकों ने पाया है कि अवरुद्ध आकाशगंगाओं में डार्क मैटर हेलो के माध्यम से अक्ष के बाहर की ओर झुकने (Out-of-Plane) के कारण को समझा जा सकता है।

डार्क मैटर:

  • डार्क मैटर उन कणों से बना होता है जिन पर कोई आवेश नहीं होता है।
    • ये कण "डार्क" हैं क्योंकि वे प्रकाश का उत्सर्जन नहीं करते हैं, जो एक विद्युत चुंबकीय घटना है, और "मैटर/पदार्थ" के पास सामान्य पदार्थ की तरह द्रव्यमान होता है, अतः गुरुत्वाकर्षण के साथ अंतःक्रिया करते हैं।
  • हम जो ब्रह्मांड देखते हैं, वह कणों पर लगने वाले चार मौलिक बलों के बीच विभिन्न अंतःक्रियाओं का परिणाम है, अर्थात्-
    • मज़बूत परमाणु बल
    • कमज़ोर परमाणु बल
    • विद्युत चुंबकीय बल
    • गुरुत्वाकर्षण
  • पूरे दृश्यमान ब्रह्मांड का केवल 5% ही सभी पदार्थों से बना है और शेष 95% डार्क मैटर और डार्क एनर्जी है।
    • अभी तक गुरुत्वाकर्षण बल को इसकी अत्यंत कमज़ोर शक्ति के रूप में कम समझा जाता है और यही कारण है कि गुरुत्वाकर्षण बल के साथ अंतःक्रिया करने वाले किसी भी कण का पता लगाना आसान नहीं है।

डार्क एनर्जी:

  • डार्क एनर्जी सैद्धांतिक प्रकार की ऊर्जा है जो गुरुत्वाकर्षण की विपरीत दिशा में कार्य करते हुए नकारात्मक, प्रतिकारक बल लगाती है।
    • इसे दूर से देखी गई सुपरनोवा की विशेषताओं की व्याख्या करने के लिये प्रस्तावित किया गया है, जो ब्रह्मांड के त्वरित दर से विस्तार करने का खुलासा करती है।
    • डार्क एनर्जी का अनुमान डार्क मैटर की तरह स्पष्ट रूप से देखे जाने के बजाय आकाशीय पिंडों के बीच गुरुत्वाकर्षण अंतःक्रिया के मापन से लगाया जाता है।

डार्क मैटर और डार्क एनर्जी में अंतर:

  • डार्क मैटर एक आकर्षक शक्ति के रूप में कार्य करता है, एक प्रकार का ब्रह्मांडीय मोर्टार जो हमारी दुनिया को एक साथ रखता है।
    • ऐसा इसलिये है क्योंकि डार्क मैटर गुरुत्वाकर्षण के साथ इंटरैक्ट करता है फिर भी प्रकाश को प्रतिबिंबित, अवशोषित या उत्सर्जित नहीं करता है। वहीं डार्क एनर्जी एक प्रतिकारक बल है, एक प्रकार का एंटी-ग्रेविटी जो ब्रह्मांड के विस्तार को धीमा कर देता है।
  • डार्क एनर्जी दोनों में कहीं अधिक शक्तिशाली है, जो ब्रह्मांड के कुल द्रव्यमान और ऊर्जा का लगभग 68% है।
    • डार्क मैटर कुल का 27% हिस्सा है, बाकी का 5% साधारण मैटर है जिसे हम दैनिक आधार पर देखते हैं और जो परस्पर क्रिया करते हैं।
    • यह ब्रह्मांड के विस्तार को तेज़ करने में भी मदद करता है।

डार्क मैटर का प्रमाण:

  • डार्क मैटर के लिये मज़बूत अप्रत्यक्ष प्रमाण विभिन्न स्तरों (या दूरी के पैमाने) पर परिलक्षित होता है।
    • उदाहरण के लिये जब आप आकाशगंगा के केंद्र से इसकी परिधि की ओर बढ़ते हैं, तो तारे की गति के अवलोकित क्षेत्र और उनके अनुमानित आंँकड़े के बीच एक महत्त्वपूर्ण असमानता होती है।
    • इसका तात्पर्य है कि आकाशगंगा में पर्याप्त मात्रा में डार्क मैटर है।
  • अन्य दूरी मापक प्रमाण:
    • ब्रह्मांड का निरीक्षण करने के लिये कई स्तर हैं जैसे परमाणुओं, आकाशगंगाओं, आकाशगंगा समूहों, या उससे भी बड़ी दूरी के इलेक्ट्रॉनों और नाभिकों का स्तर जहाँ पूरे ब्रह्मांड का मानचित्रण एवं अध्ययन किया जा सकता है।
    • आकाशगंगाओं के बुलेट क्लस्टर्स हैं जो दो आकाशगंगाओं के विलय से बनते हैं, वैज्ञानिकों के अनुसार, उनके विलय को केवल कुछ डार्क मैटर की उपस्थिति के माध्यम से समझा जा सकता है।

डार्क मैटर को देखने के लिये किस कण का उपयोग किया जाता है?

  • न्यूट्रिनो डार्क मैटर का पता लगाने में बहुत मददगार है लेकिन वे बहुत हल्के होते हैं, इसलिये उपयोगी नहीं हैं।
  • अन्य नियत तत्त्वों में Z बोसॉन, जो वैद्युत रूप से क्षीण पारस्परिक क्रियाओं में मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है, का अति संतुलित (supersymmetric) युग्म शामिल है।
  • लेकिन अभी तक ऐसा कोई उचित कण नहीं मिला है जो गुरुत्वाकर्षण के साथ परस्पर क्रिया कर सके और जिसका  पृथ्वी पर मौज़ूद तकनीक का उपयोग करके पता लगाया जा सके।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रश्न. आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान के संदर्भ में हाल ही में समाचारों में आए दक्षिणी ध्रुव पर स्थित एक कण संसूचक (पार्टिकल डिटेक्टर) आइसक्यूब के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)

  1. यह विश्व का सबसे बड़ा, बर्फ में एक घन किलोमीटर घेरे वाला न्यूट्रिनो संसूचक (न्यूट्रिनो डिटेक्टर) है।
  2. यह डार्क मैटर की खोज के लिये बनी शक्तिशाली दूरबीन है।
  3. यह बर्फ में गहराई में दबा हुआ है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

  • आइसक्यूब न्यूट्रिनो वेधशाला अंटार्कटिक में बर्फ के अंदर गहराई में स्थित है जो एक घन किलोमीटर के क्षेत्र में विस्तृत रूप से फैली हुई है। अत: कथन 1 और 3 सही हैं।
  • बड़े पैमाने पर कमज़ोर अंतःक्रिया करने वाले कण (WIMP) डार्क मैटर, सूर्य जैसी विशाल वस्तुओं के गुरुत्त्वाकर्षण द्वारा खींचे जा सकते हैं जो सूर्य के कोर में जमा हो सकते हैं।
  • कणों की उच्च घनत्व क्षमता के साथ वे एक-दूसरे को महत्त्वपूर्ण दर से नष्ट कर देते हैं। इस विनाश के उत्पाद के रूप में न्यूट्रिनो का क्षय होता है, जिसे आइसक्यूब द्वारा सूर्य की दिशा से न्यूट्रिनो की अधिकता के रूप में देखा जा सकता है।
  • आइसक्यूब को विशेष रूप से उच्च-ऊर्जा न्यूट्रिनो को पहचानने और उसकी निगरानी करने के लिये बनाया गया था। अत: कथन 2 सही है।
  • नेशनल साइंस फाउंडेशन (एक अमेरिकी एजेंसी जो मौलिक शोध का समर्थन करती है) ने आइसक्यूब न्यूट्रिनो वेधशाला को प्राथमिक अनुदान प्रदान किया है।
  • अतः विकल्प D सही है।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

‘यूथ इन इंडिया 2022’ रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

जनसांख्यिकीय लाभांश, मृत्यु दर, प्रजनन दर, बुजुर्ग, सामाजिक सुरक्षा।

मेन्स के लिये:

‘यूथ इन इंडिया 2022’ रिपोर्ट।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने 'यूथ इन इंडिया 2022' रिपोर्ट जारी की है, जिससे पता चलता है कि युवाओं की जनसंख्या में गिरावट आ रही है, जबकि 2021-2036 के दौरान बुजुर्गों की हिस्सेदारी बढ़ने की उम्मीद है।

  • प्रजनन क्षमता में निरंतर गिरावट के कारण कामकाजी उम्र (25 से 64 वर्ष के बीच) की जनसंख्या में वृद्धि हुई है, जिससे प्रति व्यक्ति त्वरित आर्थिक विकास का अवसर पैदा हुआ है। आयु वितरण में यह बदलाव त्वरित आर्थिक विकास के लिये एक समयबद्ध अवसर प्रदान करता है जिसे "जनसांख्यिकीय लाभांश" के रूप में जाना जाता है।

रिपोर्ट के निष्कर्ष:

  • युवा आबादी में गिरावट: वर्ष 2011-2036 की अवधि के शुरुआत में युवा आबादी में वृद्धि हुई है, लेकिन उतरार्द्ध में गिरावट शुरू हो गई है।
    • वर्ष 1991 में कुल युवा आबादी 222.7 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2011 में 333.4 मिलियन हो गई और वर्ष 2021 तक 371.4 मिलियन तक पहुँचने का अनुमान है और उसके बाद वर्ष 2036 तक घटकर 345.5 मिलियन हो जाएगी।
  • युवाओं और बुजुर्गों की आबादी का अनुपात: कुल आबादी में युवाओं का अनुपात वर्ष 1991 के 26.6% से बढ़कर वर्ष 2016 में 27.9% हो गया था और फिर नीचे की ओर रुझान शुरू होकर वर्ष 2036 तक 22.7% तक पहुँचने का अनुमाना है।
    • इसके विपरीत कुल आबादी में बुजुर्ग आबादी का अनुपात वर्ष 1991 में 6.8% से बढ़कर वर्ष 2016 में 9.2% हो गया है और वर्ष 2036 में इसके 14.9% तक पहुँचने का अनुमान है।
  • राज्यों में परिदृश्य: केरल, तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में वर्ष 2036 तक युवाओं की तुलना में अधिक बुजुर्ग आबादी का अनुमान है।
    • बिहार एवं उत्तर प्रदेश ने वर्ष 2021 तक कुल जनसंख्या में युवा आबादी के अनुपात में वृद्धि का अनुभव किया है और फिर इसमें गिरावट की संभावना है।
    • महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान के साथ इन दोनों राज्यों में देश के आधे से अधिक (52%) युवाओं के होने का अनुमान है।

महत्त्व:

  • भारत में जनसांख्यिकीय लाभांश के लिये अवसर मौजूद हैं, जहाँ "युवा उभार (Youth bulge)" देखा गया है। हालाँकि युवाओं को शिक्षा तक पहुंँच, लाभकारी रोज़गार, लैंगिक असमानता, बाल विवाह, युवाओं के अनुकूल स्वास्थ्य सेवाओं और किशोर गर्भावस्था जैसी विभिन्न विकास चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • युवा उभार जनसांख्यिकीय स्वरुप को संदर्भित करता है जहांँ आबादी का एक बड़ा हिस्सा बच्चों और युवा वयस्कों का होता है।
  • वर्तमान में युवाओं के अधिक अनुपात के परिणामस्वरूप भविष्य में जनसंख्या में बुजुर्गों का अनुपात अधिक होगा। इससे बुजुर्गों के लिये बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं और कल्याणकारी योजनाओं/कार्यक्रमों के विकास की मांग पैदा होगी।
  • बुजुर्ग आबादी की हिस्सेदारी में वृद्धि से सामाजिक सुरक्षा और लोक कल्याण प्रणालियों पदबाव पड़ेगा तथाअगले 4-5 वर्षों में उत्पादन, रोज़गार सृजन में तेज़ी लाने के लिये इसका अच्छी तरह से उपयोग करने की आवश्यकता है।
    • आमतौर पर असंगठित रोज़गार वाले लोगों के पास सामाजिक सुरक्षा नहीं होती है, इससे संबंधित राज्य पर बोझ बढ़ेगा।

पहल:

  • विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार की हिस्सेदारी बढ़ाने की आवश्यकता है क्योंकि जो लोग वर्तमान श्रम शक्ति का हिस्सा हैं, जब वे सेवानिवृत्त होंगे,साथ ही बहुत अधिक आबादी वाले राज्यों में बुजुर्गों की हिस्सेदारी बढ़ने लगेगी तो यह विस्फोटक स्थिति उत्पन्न कर देगा, जिससे निपटना या इसे नियंत्रित करना मुश्किल हो जाएगा।
  • अगले 4-5 वर्षों में उत्पादक रोज़गार सृजन में तेज़ी लाने के लिये सक्रिय श्रम बाज़ार नीतियों को अपनाने की आवश्यकता है।
  • सामाजिक सुरक्षा और पेंशन प्रणालियों की स्थिरता में सुधार तथा सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल एवं दीर्घकालिक देखभाल प्रणालियों की स्थापना सहित वृद्ध व्यक्तियों के बढ़ते अनुपात में सार्वजनिक कार्यक्रमों को अनुकूलित करने के लिये कदम उठाने की आवश्यकता है।

युवाओं से संबंधित योजनाएंँ:

NYP

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भूगोल

भू-विज्ञान में नई अंतर्दृष्टि

प्रिलिम्स के लिये:

भौतिक भूगोल, भू-विज्ञान, ज्वालामुखी, पृथ्वी की संरचना, टेक्टोनिक प्लेट्स के मूल तत्त्व

मेन्स के लिये:

ज्वालामुखी के निर्माण में मैग्मा की भूमिका, पृथ्वी की संरचना में विभिन्न परतें, टेक्टोनिक प्लेट्स की गति का प्रभाव, महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटना

चर्चा में क्यों?

गोवा स्थित नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (NCPOR) के वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा हाल ही में किये गए एक अध्ययन ने पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटों की गति में शामिल महत्त्वपूर्ण प्रक्रियाओं के बारे में नई अंतर्दृष्टि प्रदान की है।

नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (NCPOR):

  • NCPOR की स्थापना 25 मई, 1998 को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (पूर्व में महासागर विकास विभाग) के एक स्वायत्त अनुसंधान और विकास संस्थान के रूप में की गई थी।
  • इसे अंटार्कटिक में भारत के स्थायी स्टेशन के रखरखाव सहित भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम के समन्वय और कार्यान्वयन के लिये नोडल संगठन के रूप में नामित किया गया है।
  • अंटार्कटिक में दो भारतीय स्टेशनों (मैत्री और भारती) का साल भर रखरखाव इस केंद्र की प्राथमिक ज़िम्मेदारी है।
    • ध्रुवीय अनुसंधान के सभी विषयों में भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा अनुसंधान करने के लिये मैत्री (1989) और भारती (2011) की स्थापना की गई थी।

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि:
    • पृथ्वी के आंतरिक भाग से सतह की ओर गर्म और निम्न-घनत्व वाले मैग्मा या प्लम के उछाल से व्यापक ज्वालामुखी और समुद्र तल के ऊपर समुद्री पर्वतों और ज्वालामुखी शृंखलाओं का निर्माण होता है।
      • हालाँकि कई बार मैग्मा का उत्प्लावक बल स्थलमंडल को भेदने के लिये पर्याप्त नहीं होता है।
        • ऐसे मामलों में प्लम सामग्री को उप-लिथोस्फेरिक गहराई पर डंप करते हैं। जब स्थलमंडल के ऊपर स्थित टेक्टोनिक प्लेट्स हिलती हैं, तो वे अपने साथ जमा हुई सामग्री को खींचती है।
    • एक मौलिक प्रश्न जो पृथ्वी की प्रक्रियाओं को समझने में अभी बाकी है, वह यह है कि प्लम के साथ प्रारंभिक प्रभाव के बाद एक टेक्टोनिक प्लेट प्लम सामग्री को उसके आधार पर कितनी दूर खींच सकती है।
  • अध्ययन के बारे में:
    • वैज्ञानिकों ने इंटरनेशनल ओशन डिस्कवरी प्रोग्राम (IODP) के तहत एक अभियान के दौरान हिंद महासागर में नाइंटी ईस्ट रिज के पास से एकत्र किये गए आग्नेय चट्टानों के नमूनों का अध्ययन किया।
      • नाइंटी ईस्ट रिज हिंद महासागर में लगभग 90 डिग्री पूर्वी देशांतर के समानांतर स्थित एक एसिस्मिक रिज है। इसकी लंबाई लगभग 5,000 किमी. है और इसकी औसत चौड़ाई 200 किमी. है।
      • आग्नेय चट्टान, या मैग्मैटिक चट्टान, तीन मुख्य चट्टान प्रकारों में से एक है, अन्य अवसादी और कायांतरित हैं।
        • यह मैग्मा या लावा के ठंडा होने और जमने से बनता है।
    • जांँच से पता चला कि कुछ बेसाल्टिक नमूने अत्यधिक क्षारीय थे और उनमें केर्ज्यूलेन हॉटस्पॉट (दक्षिणी हिंद महासागर में केर्ज्यूलेन पठार पर ज्वालामुखीय हॉटस्पॉट) के नमूनों के समान संयोजन था।
      • इसके अलावा क्षारीय नमूनों की न्यूनतम आयु लगभग 58 मिलियन वर्ष थी, जो नाइंटी ईस्ट रिज के आसपास के समुद्री क्रस्ट (लगभग 82-78 मिलियन वर्ष पुराना) से बहुत कम थी।
    • इस अध्ययन का दावा है कि भारतीय टेक्टोनिक प्लेट जो समकालीन में बहुत तेज़ गति से उत्तर की ओर बढ़ रही थी, ने भारतीय स्थलमंडल के नीचे 2,000 किमी से अधिक गहराई से काफी मात्रा में केर्ज्यूलेन प्लम सामग्री को खींच लिया था।
    • गहरे भ्रंसन के बाद पुनः सक्रियण से अंतर्निहित प्लम सामग्री पर कम दबाव ने इसे पिघलने से रोक दिया जिससे लगभग 58 मिलियन वर्ष पहले नाइंटी ईस्ट रिज के पास मैग्मैटिक सिल्स और लावा प्रवाह के रूप में स्थापित हो सकता है।

पृथ्वी की आतंरिक संरचना:

  • भू-पर्पटी/क्रस्ट:
    • पृथ्वी की बाहरी सतह की परत को "क्रस्ट" कहा जाता है। महाद्वीपीय क्षेत्रों में क्रस्ट को दो परतों में विभाजित किया जा सकता है।
      • ऊपरी परत जिसकी विशेषता कम घनी और दानेदार होती है, उसे "सियाल" के रूप में जाना जाता है, जबकि निचली परत जो बेसाल्टिक होती है उसे "सिमा" के रूप में जाना जाता है।
    • यह महाद्वीपों के नीचे 30 या 40 किलोमीटर तक और महासागरीय घाटियों के नीचे लगभग 10 किमी. तक फैली है।
  • मेंटल:
    • मेंटल पृथ्वी की पपड़ी के नीचे स्थित है और इसकी मोटाई लगभग 2900 किमी. है।
    • इसे दो परतों में विभाजित किया गया है: (i) ऊपरी मेंटल और (ii) निचला मेंटल।
    • इनके बीच की सीमा लगभग 700 किमी. गहराई पर है।
    • ऊपरी मेंटल में सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है जिसे "एस्थेनोस्फीयर" कहा जाता है। यह 50 से 100 किमी. की गहराई पर स्थित है।
    • यह क्षेत्र ज्वालामुखी विस्फोट के लिये लावा प्रदान करता है।
  • कोर:
    • कोर (आंतरिक कोर और बाह्य कोर) पृथ्वी के आयतन का लगभग 16% लेकिन पृथ्वी के द्रव्यमान का 33% है।
    • मेंटल की तरह कोर को भी दो परतों में विभाजित किया जा सकता है, अर्थात् बाह्य कोर और आंतरिक कोर।
    • बाह्य कोर निकेल के साथ मिश्रित लोहे से बना है और हल्के तत्त्वों की मात्रा का पता लगाता है।
    • बाह्य कोर में पर्याप्त दबाव नहीं है कि वह ठोस में परिवर्तित हो जाए , यही कारण है कि यह तरल अवस्था में है, भले ही इसकी संरचना आंतरिक कोर के समान हो।

Geology

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. बैरेन द्वीप ज्वालामुखी भारतीय क्षेत्र में स्थित एक सक्रिय ज्वालामुखी है।
  2. बैरेन द्वीप ग्रेट निकोबार से लगभग 140 किमी. पूर्व में स्थित है।
  3. पिछली बार वर्ष 1991 में बैरन द्वीप ज्वालामुखी विस्फोट हुआ था और तब से यह निष्क्रिय है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1 और 3

उत्तर: A

व्याख्या:

  • बैरेन द्वीप भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है जो अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में स्थित है। अत: कथन 1 सही है।
  • यह अंडमान सागर में अंडमान द्वीप के दक्षिणी भाग पोर्ट ब्लेयर से लगभग 140 किमी. की दूरी पर स्थित है। बैरेन द्वीप से ग्रेट निकोबार के बीच की दूरी दी गई दूरी से अधिक है। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • ज्वालामुखी का पहला रिकॉर्डेड विस्फोट वर्ष 1787 में हुआ था। पिछले 100 वर्षों में इसमें कम-से-कम पाँच बार विस्फोट हो चुका है। फिर अगले 100 वर्षों तक यह शांत रहा। वर्ष 1991 में बड़े पैमाने पर फिर से इसमें विस्फोट हुआ  तथा तब से हर दो-तीन वर्षों में इसमें विस्फोट दर्ज किया गया है, इस शृंखला में नवीनतम विस्फोट फरवरी 2016 में हुआ था। अत: कथन 3 सही नहीं है।

अतः विकल्प (a) सही है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिये स्वीकृत ईंधन: CAQM

प्रिलिम्स के लिये:

वायु प्रदूषण, पाइप्ड नेचुरल गैस, स्टबल बर्निंग, सीपीसीबी।

मेन्स के लिये:

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग, अनुमोदित ईंधन की मानक सूची।

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) राज्यों को वायु प्रदूषण को कम करने के लिये अनुमोदित ईंधन की एक मानक सूची अपनाने का निर्देश दिया है।

  • CAQM द्वारा अनुमोदित ईंधन की मानक सूची में पेट्रोल, डीज़ल, हाइड्रोजन/मीथेन, प्राकृतिक गैस, तरल पेट्रोलियम गैस (LPG) और विद्युत् शामिल हैं।
  • कई उद्योग पाइप्ड नेचुरल गैस (PNG) एवं बायोमास जैसे स्वच्छ ईंधन स्रोत की ओर स्थानांतरित हो गए हैं, जबकि कई अन्य औद्योगिक क्षेत्र जैसे- खाद्य प्रसंस्करण, आसवनी और रसायन उद्योग आदि  स्वच्छ ईंधन स्रोत की ओर  स्थानांतरित होने की प्रक्रिया में हैं।
  • एनसीआर क्षेत्र के उद्योगों को बायोमास और PNG जैसे स्वच्छ ईंधनों स्रोतों की ओर स्थानांतरित करना प्रदूषण को कम करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है (उदाहरण के लिये राजस्थान में अलवर और भिवाड़ी के उद्योग)।

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM):

  • परिचय:
    • CAQM राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम, 2021 के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है।
      • इससे पहले आयोग का गठन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अध्यादेश, 2021 की घोषणा के माध्यम से किया गया था।
    • राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम, 2021 ने 1998 में NCR में स्थापित पर्यावरण प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण प्राधिकरण (EPCA) को भी भंग कर दिया।
  • उद्देश्य:
    • वायु गुणवत्ता सूचकांक की समस्याओं से जुड़े या उसके आनुषंगिक मामलों के लिये उचित समन्वय, अनुसंधान, पहचान और समाधान सुनिश्चित करना।
  • विस्तार:
    • आसपास के क्षेत्रों को NCR से सटे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्यों के क्षेत्रों के रूप में परिभाषित किया गया है जहांँ प्रदूषण का कोई भी स्रोत NCR में वायु गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
  • संरचना:
  • कार्य:
    • संबंधित राज्य सरकारों (दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश) द्वारा की गई समन्वित कार्रवाई।
    • एनसीआर में वायु प्रदूषण को रोकने और नियंत्रित करने के लिये योजना बनाना तथा उसे क्रियान्वित करना।
    • वायु प्रदूषकों की पहचान के लिये एक रूपरेखा प्रदान करना।
    • तकनीकी संस्थानों के साथ नेटवर्किंग के माध्यम से अनुसंधान और विकास का संचालन करना।
    • वायु प्रदूषण से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिये एक विशेष कार्यबल का प्रशिक्षण और गठन करना।
    • वृक्षारोपण बढ़ाने और पराली जलाने से रोकने से संबंधित विभिन्न कार्य योजनाएँ तैयार करना।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय अर्थव्यवस्था

पूर्वोत्तर क्षेत्र को कृषि निर्यात हब के रूप में बढ़ावा देने की रणनीति

प्रिलिम्स के लिये:

उत्तर पूर्वी क्षेत्र, कृषि निर्यात, बागवानी।

मेन्स के लिये:

कृषि निर्यात में पूर्वोत्तर क्षेत्र का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद विकास प्राधिकरण (APEDA) ने पूर्वोत्तर (NE) राज्यों में उगाए जाने वाले कृषि और बागवानी उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये एक रणनीति तैयार की है।

  • APEDA का लक्ष्य निर्यातकों के लिये सीधे उत्पादक समूहों तथा प्रोसेसरों से उत्पादों को प्राप्त करने के लिये असम में एक प्लेटफॉर्म का सृजन करना है।
  • यह प्लेटफॉर्म असम के उत्पादकों तथा प्रोसेसरों एवं देश के अन्य हिस्सों से निर्यातकों को जोड़ेगा जो असम सहित पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों में निर्यात पॉकेट के आधार को विस्तारित करेगा

कृषि निर्यात में NER का महत्त्व:

  • पूर्वोत्तर क्षेत्र भौगोलिक रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह चीन तथा भूटान, म्यांँमार, नेपाल और बांग्लादेश के साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमाएंँ साझा करता है जो इसे पड़ोसी देशों एवं साथ में विदेशी गंतव्य स्थानों को कृषि ऊपज के निर्यात के लिये संभावित हब बनाता है।
    • पिछले छह वर्षों में कृषि उत्पादों के निर्यात में 85.34% की वृद्धि देखी गई क्योंकि यह वर्ष 2016-17 में 2.52 मिलियन अमेरिकी डाॅलर से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 17.2 मिलियन अमेरिकी डाॅलर हो गया।
    • निर्यात का प्रमुख गंतव्य बांग्लादेश, भूटान, मध्य-पूर्व, यूके और यूरोप रहा है।
  • असम और उत्तर-पूर्व क्षेत्र के अन्य राज्यों में अनुकूल जलवायु स्थिति है तथा लगभग सभी कृषि एवं बागवानी फसलों को उगाने के लिये मृदा मौजूद है।
  • NER कई खराब होने वाली वस्तुओं, जैसे-केला, अनानास, संतरा और टमाटर के मामले में भारी बिक्री योग्य अधिशेष पैदा करता है।

NER को कृषि निर्यात हब के रूप में बढ़ावा देने हेतु पहल:

  • उत्तर-पूर्व क्षेत्र हेत मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट (MOVCD-NER): यह 12वीं योजना अवधि के दौरान अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा राज्यों में कार्यान्वयन के लिये कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा शुरू की गई राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA) के तहत एक उप-मिशन है।
    • इस योजना का उद्देश्य उत्पादकों को उपभोक्ताओं के साथ जोड़ने के लिये मूल्य शृंखला मोड में प्रमाणित जैविक उत्पादन का विकास करना और आदानों, बीज, प्रमाणन से लेकर संग्रह, एकत्रीकरण, प्रसंस्करण, विपणन तथा ब्रांड निर्माण पहल हेतु सुविधाओं के निर्माण तक संपूर्ण मूल्य शृंखला के विकास का समर्थन करना है।
  • प्रशिक्षण कार्यक्रम:
    • APEDA ने असम कृषि विश्वविद्यालय, ज़ोरहाट के साथ क्षेत्र से निर्यात को बढ़ावा देने के लिये पूर्व-कटाई और कटाई के बाद के प्रबंधन एवं अन्य अनुसंधान गतिविधियों पर विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने हेतु एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये।
  • आभासी क्रेता-विक्रेता बैठक:
    • कोविड -19 अवधि के दौरान APEDA ने अनानास, अदरक, नींबू, संतरा आदि की सोर्सिंग के संबंध में NER के निर्यातकों सहित विभिन्न देशों में स्थित भारत के दूतावासों के साथ वर्चुअल क्रेता-विक्रेता मीट के माध्यम से अपनी निर्यात योजनाओं को आगे बढ़ाना जारी रखा।
  • ट्रेड फेयर:
    • APEDA ने महामारी के दौरान आभासी व्यापार मेलों (Virtual Trade Fairs) का भी आयोजन किया और विदेशों में निर्यात की सुविधा प्रदान की।
  • स्थानीय उत्पादों की ब्रांडिंग:
    • APEDA, कीवी वाईन, प्रसंस्कृत खाद्य, जोहा चावल पुलाव, काले चावल की खीर आदि का ताज़ा नमूना जैसे पूर्वोत्तर क्षेत्र के उत्पादों की ब्रांडिंग तथा संवर्द्धन के लिये भी सहायता प्रदान करता है।
  • क्षमता निर्माण:
    • APEDA ने मूल्यवर्द्धन के लिये स्थानीय उत्पादों का उपयोग करने हेतु निर्माताओं, निर्यातकों और उद्यमियों हेतु कौशल विकास कार्यक्रम आयोजित किये।
  • खाद्य गुणवत्ता और सुरक्षा प्रबंधन पर कार्यशाला:
    • APEDA ने टिकाऊ खाद्य मूल्य शृंखला विकास के माध्यम से पूर्वोत्तर क्षेत्र से कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात हेतु खाद्य गुणवत्ता और सुरक्षा प्रबंधन पर एक कार्यशाला की सुविधा प्रदान की।

स्रोत: पी.आई.बी.


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