लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

‘नेबरहुड फर्स्ट’ एवं भारत

  • 28 Apr 2022
  • 13 min read

यह एडिटोरियल 24/04/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “Don’t Lose Sight Of The Neighbourhood” लेख पर आधारित है। इसमें निकटतम पड़ोसियों के साथ भारत के संबंधों और इसमें सुधार की गुंजाइश के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

‘नेबरहुड फर्स्ट’ (Neighbourhood First) भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख घटक रहा है। जब तक भारत उपमहाद्वीप में अपनी परिधि को अच्छी तरह से प्रबंधित नहीं करता, तब तक एशियाई भूभाग और विश्व में अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकने की उसकी महत्त्वाकांक्षा पूरी नहीं होगी।

  • पड़ोसी देशों में बार-बार उभरने वाले राजनीतिक अथवा आर्थिक संकट भारत को उपमहाद्वीप की ओर ही वापस खींचते रहते हैं और वृहत क्षेत्रीय एवं वैश्विक मुद्दों से संबोधित होने के उसके अवसर को बाधित करते हैं। इसके अलावा, चीन जैसा विरोधी देश भी भारतीय उपमहाद्वीप में ही उलझे रहने की इच्छा रखता है।
  • हाल के वैश्विक और साथ ही पड़ोसी देशों के भीतर आंतरिक राजनीतिक और आर्थिक बदलावों के बीच भारत को अपनी ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति को सक्रिय करने का एक नया अवसर प्राप्त हुआ है। भारत को तत्परता से इस अवसर का लाभ उठाना चाहिये।

भारतीय उपमहाद्वीप 

  • भारतीय उपमहाद्वीप (Indian subcontinent) एक एकल भू-राजनीतिक इकाई है जिसके घटक अंगों के बीच सुदृढ़ आर्थिक अन्योन्याश्रितता या अनुपूरकता पाई जाती है।
  • यह एक साझा सांस्कृतिक क्षेत्र है जहाँ एक सुदीर्घ एवं साझा इतिहास के कारण उपमहाद्वीप में स्थित देशों के लोगों के बीच गहरे और स्थायी संबंध पाए जाते हैं।
    • इसमें बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका शामिल हैं।
  • हालाँकि, इस व्यापक एकता के बावजूद उपमहाद्वीप कई स्वतंत्र और संप्रभु देशों में विभाजित है, जहाँ प्रत्येक देश की अपनी चुनौतियाँ और अपनी आकांक्षाएँ हैं।

भारत इस क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण इकाई कैसे है?

  • निकटस्थता एक महत्त्वपूर्ण आस्ति है जो सीमाओं के पार माल, सेवाओं और लोगों के निम्न-लागत और समयबद्ध प्रवाह को सक्षम बनाती है।
  • आर्थिक और प्रौद्योगिकीय शक्ति (जो भारत को प्राप्त है) की विषमता संपूर्ण उप-क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को रूपांतरित करने के लिये एक परिसंपत्ति है।
  • भारत इस उपमहाद्वीप के लिये सबसे बड़ा पारगमन देश (Transit Country) है जो पाकिस्तान, नेपाल, भूटान एवं बांग्लादेश के साथ स्थल सीमाएँ और श्रीलंका एवं मालदीव के साथ समुद्री सीमाएँ साझा करता है।
  • भारत ने गंभीर आर्थिक संकट झेल रहे श्रीलंका और नेपाल की ओर मदद का हाथ भी बढ़ाया है।
    • श्रीलंका को दी गई 400 मिलियन डॉलर की मुद्रा विनिमय सुविधा (Currency Swap Facility) का नवीनीकरण किया गया है।
    • नेपाल के प्रधानमंत्री की हालिया भारत यात्रा के दौरान कई आर्थिक सहायता कार्यक्रमों को पुनर्जीवित किया गया है और कुछ नए कार्यक्रमों की भी घोषणा की गई है।
  • मालदीव और भूटान के साथ भी भारत के संबंध सकारात्मक हैं, लेकिन इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिये, बल्कि उन्हें निरंतर पोषित किये जाने की आवश्यकता है।

एक मैत्रीपूर्ण उपमहाद्वीप के निर्माण में संभावित बाधाएँ

  • बाह्य प्रभाव: छोटे पड़ोसी देशों के लिये यह स्वाभाविक ही है कि वे एक अधिक शक्तिशाली भारत के वर्चस्व को लेकर सावधान रहें और भारत के प्रभाव को संतुलित करने के लिये बाह्य शक्तियों के साथ निकट संबंध विकसित करने की आकांक्षा रखें। अतीत में अमेरिका ऐसी ही एक बाह्य शक्ति रहा था और वर्तमान में चीन ने यह स्थिति प्राप्त कर ली है।
    • पिछले कुछ वर्षों में संपूर्ण दक्षिण एशिया क्षेत्र में और भारत के समुद्री पड़ोस में (हिंद महासागर में स्थित द्वीप देशों सहित) में चीन की कार्रवाइयों और नीतियों ने भारत के लिये आवश्यक बनाया है कि वह पड़ोसियों के प्रति अपने दृष्टिकोण पर गहनता से विचार करे।
  • विभिन्न पड़ोसी देशों के साथ भारत के द्विपक्षीय मुद्दे:
    • बांग्लादेश: अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों और सांप्रदायिक दंगों में उनकी कथित संलिप्तता के बारे में भारत में घरेलू राजनीतिक शोर की देश में नकारात्मक गूंज रही है और इसकी छाया हमारे द्विपक्षीय संबंधों पर भी पड़ी है।
      • यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि घरेलू राजनीति की मजबूरियाँ भारत की विदेश नीति पर प्रतिकूल प्रभाव न डालें।
    • पाकिस्तान: स्वतंत्रता और विभाजन के समय से ही भारत-पाकिस्तान के बीच एक ऐतिहासिक शत्रुता रही है और दोनों देशों के बीच चार युद्ध भी हुए हैं।
      • सीमा-पार आतंकवाद एक सर्वप्रमुख विषय है जो दोनों देशों के संबंधों में सामान्य स्थिति की बहाली के लिये एक कील बना रहा है।
    • नेपाल: भारत-नेपाल संबंधों में कालापानी सीमा विवाद ने एक तनाव उत्पन्न किया है।
      • वर्ष 2019 में नेपाल ने एक नया राजनीतिक मानचित्र जारी करते हुए उत्तराखंड के कालापानी, लिंपियाधुरा एवं लिपुलेख और बिहार के पश्चिम चंपारण ज़िले के सुस्ता पर अपना दावा जताया है।
    • श्रीलंका: श्रीलंकाई नौसेना द्वारा भारतीय मछुआरों पर हिंसक कार्रवाई इन दोनों देशों के बीच एक पुराने विवाद का विषय रहा है।
      • वर्ष 2019-20 में श्रीलंकाई सेना द्वारा 284 भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार किया गया था और 53 भारतीय नौकाओं को जब्त कर लिया गया था।
  • पाकिस्तान में हाल की राजनीतिक अस्थिरता, श्रीलंका में आर्थिक संकट, मालदीव में ‘इंडिया आउट’ अभियान और नेपाल में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिये कुछ अन्य प्रमुख चुनौतियाँ हैं।

भारत इस क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण खिलाड़ी कैसे बन सकता है?

  • एक पुनर्विलोकित विदेश एवं सुरक्षा नीति: उपमहाद्वीप के सबसे बड़े और शक्तिशाली देश के रूप में भारत की सुरक्षा परिधि इसकी राष्ट्रीय सीमाओं से परे तक जाती है; इस परिदृश्य में एक मज़बूत भारतीय विदेश एवं सुरक्षा नीति को यह सुनिश्चित करना होगा कि भारत का पड़ोस शांतिपूर्ण, स्थिर एवं अनुकूल रहे और कोई भी शत्रुतापूर्ण उपस्थिति उपमहाद्वीप में कहीं भी पैठ बनाते हुए भारत की सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न न करे।
    • भारतीय विदेश नीति के समक्ष चुनौती यह है कि पड़ोसी देशों में प्रभावी और स्थायी प्रेरण का सृजन करें कि वे भारत के सुरक्षा हितों के प्रति संवेदनशील बने रहें और भारत की अधिक शक्तिशाली अर्थव्यवस्था का उपयोग उनके लिये विकास का इंजन बनने के लिये कर सकें।
    • भारत को अपने पडोसी देशों के लिये इस भूभाग में एक शुद्ध सुरक्षा प्रदाता के रूप में उभरना होगा।
  • न्यूनतम हस्तक्षेप: बाह्य शक्तियों के साथ छोटे पड़ोसी देशों की बढ़ती संलग्नता के विषय में भारत को उनमें से प्रत्येक देश के लिये एक स्पष्ट ‘रेडलाइन’ खींचने से बचना चाहिये क्योंकि यह फिर उनकी ओर से संप्रभुता के अनादर के आरोप को आमंत्रित करेगा।
    • बेहतर तरीका यह होगा कि पड़ोसी देशों के आंतरिक राजनीतिक मामलों में कम हस्तक्षेप किया जाए और सूक्ष्मता से यह प्रकट कर दिया जाए कि भारत को उन देशों में शत्रु विदेशी शक्ति की भौतिक उपस्थिति इस रूप में मंज़ूर नहीं होगी उसकी सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डाले, विशेष रूप से जब किसी देश के साथ भारत खुली सीमाएँ रखता हो।
  • राजनीतिक बदलाव का लाभ उठाना: भारत के पड़ोस में महत्त्वपूर्ण राजनीतिक बदलाव आ रहे हैं। पाकिस्तान में नेतृत्व परिवर्तन हुआ है जो भारत-पाकिस्तान संबंधों को पुनर्जीवित करने की एक संभावना प्रदान करता है।
    • उद्देश्य अति-महत्त्वाकांक्षी नहीं हों; इनमें पूर्व के व्यापक संवाद प्रारूप के समान द्विपक्षीय वार्ता की पुनर्बहाली करना शामिल होगा।
    • क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देना भारत के हित में है और सार्क (SAARC) इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपलब्ध मंच हो सकता है।
    • बिम्सटेक (BIMSTEC ) को सार्क के विकल्प के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये बल्कि इसे अपनी विशिष्टताओं के आधार पर आगे बढ़ाना चाहिये।

भारत अपनी शक्ति का पूर्ण उपयोग कैसे कर सकता है?

  • ‘क्रॉस-बॉर्डर कनेक्टिविटी’: अन्य देशों के साथ अपनी निकटता का उपयोग करने के लिये भारत को अवसंरचना और प्रक्रियाओं दोनों ही विषयों में कुशल सीमा-पार संपर्क/क्रॉस-बॉर्डर कनेक्टिविटी की आवश्यकता है ताकि माल और लोगों के सुचारू एवं निर्बाध पारगमन का अवसर मिल सके।
  • व्यापार के लिये अधिक खुलना: भारत की आर्थिक और प्रौद्योगिकीय शक्ति एक विशाल और विस्तारित बाज़ार में निहित है।
    • यदि पड़ोसी देशों के उत्पादन और बिक्री के लिये भारतीय बाज़ारों को पूरी तरह से खोल दिया जाए तो भी यह भारत के बाज़ार का एक छोटा भाग ही ग्रहण करेगा, लेकिन यह उनके लिये एक बड़ा सौदा होगा।
  • परिवहन: अधिक विकसित स्थल और समुद्री परिवहन प्रणाली के साथ भारत को व्यापार एवं परिवहन के लिये ‘पसंद के भागीदार’ (partner of choice) के रूप में अपनी भूमिका विकसित करनी चाहिये।
    • यह पड़ोसी देशों के साथ मज़बूत अंतर-निर्भरता का भी सृजन करेगा; इस प्रकार उनके अंदर हमारी सुरक्षा चिंताओं के प्रति अधिक संवेदनशीलता उत्पन्न होगी।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘पड़ोस के साथ भारत के संबंध सभ्यतागत हैं, जो अद्वितीय हैं और इन्हें स्थानापन्न नहीं किया जा सकता। धैर्य और दृढ़ता के साथ यह सांस्कृतिक, आर्थिक और भौतिक निकटस्थता का लाभ उठा सकता है।’’ टिप्पणी कीजिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2