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न्यूनतम मज़दूरी

  • 07 Nov 2019
  • 16 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में न्यूनतम मज़दूरी तथा निगम कर की आर्थिक विकास में भूमिका पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

भारत की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ समय से लगातार सुस्ती के कारण आर्थिक संकट का सामना कर रही है। इससे निरंतर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की वृद्धि दर में भी कमी आ रही है। इसके लिये मांग पक्ष में लगातार आ रही कमी को ज़िम्मेदार माना गया है। सरकार ने मांग पक्ष को सुधारने तथा इस आर्थिक संकट से निपटने के लिये हाल ही में दो घोषणाएँ की हैं। प्रथम, मनरेगा कार्यक्रम के अंतर्गत लोगों की मज़दूरी में वृद्धि की जाएगी, साथ ही इसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (ग्रामीण) के अनुरूप तय करके एक निश्चित समय पर बढ़ाया भी जाएगा। दूसरा, सरकार ने निगम कर की दर में भी कटौती की है, ताकि उद्योग लागत प्रभावी हो सकें, साथ ही लोगों को रोज़गार प्रदान करने में सक्षम हो सकें। सरकार के उपर्युक्त कदम लोगों को न्यूनतम मज़दूरी के साथ जोड़ने के प्रयास की ओर संकेत करते हैं।

न्यूनतम मज़दूरी की अवधारणा

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, एक समूह के साथ अथवा व्यक्तिगत स्तर पर किया गया समझौता, जिसमें एक निश्चित अवधि के लिये कार्य करने पर नियोक्ता द्वारा उस कार्य के एवज में किसी कर्मचारी अथवा श्रमिक को किये जाने वाले भुगतान को न्यूनतम मज़दूरी की संज्ञा दी जाती है। उपर्युक्त परिभाषा न्यूनतम मज़दूरी की बंधनकारी प्रकृति को रेखांकित करती है। न्यूनतम मज़दूरी का निर्धारण किसी भी सक्षम प्राधिकारी द्वारा किया जा सकता है। हालाँकि राज्य सरकारें अपने राज्य की मुद्रास्फीति को ध्यान में रखकर कानून के माध्यम से न्यूनतम मज़दूरी का निर्धारण करती हैं, जिससे नीचे मज़दूरी प्रदान करना गैर-कानूनी माना जाता है।

न्यूनतम मज़दूरी की आवश्यकता क्यों?

न्यूनतम मज़दूरी की आवश्यकता मज़दूरों को अत्यंत कम भुगतान से रक्षा प्रदान करने के लिये होती है। कई बार बेरोज़गारी की अधिकता के कारण या फिर रोज़गार की कमी के कारण नियोक्ता को कम मज़दूरी पर भी कर्मचारी उपलब्ध हो जाते हैं, इससे नियोक्ता अत्यधिक कम मज़दूरी के माध्यम से कर्मचारियों का शोषण करने लगते हैं। इसके अतिरिक्त किसी भी उद्यम अथवा कार्य से उत्पन्न होने वाले लाभ पर उससे जुड़े हुए सभी हित समूहों का अधिकार होता है। यह अधिकार अलग-अलग अनुपात में हो सकता है लेकिन एक उचित न्यूनतम मज़दूरी के माध्यम से कर्मचारी वर्ग को भी इस लाभ से जोड़ा जा सकता है। वर्ष 1929 की मंदी के बाद कींस के विचारों को भी बल मिला, इनके अनुसार यदि उद्योगों के लिये मांग में सुधार करना है तो उन्हें अत्यधिक लाभ की मानसिकता से बाहर आकर अपने मज़दूरों को एक उचित वेतन देना होगा, ताकि निरंतर मांग बनी रहे। भारत जैसे विकासशील देशों में रोज़गार एवं वेतन को गरीबी को समाप्त करने तथा विषमता को कम करने के उपकरण के रूप में भी उपयोग किया जाता है। न्यूनतम मज़दूरी लोगों को अपने परिवार के उचित पोषण, साथ ही उनके शिक्षा, स्वास्थ्य पर ध्यान देने के योग्य बनाती है। इसके अलावा विभिन्न स्तरों पर स्थिति विषमता यथा-सामाजिक, लैंगिक आदि को भी न्यूनतम मज़दूरी प्रदान करके मज़दूरों के सशक्तीकरण का प्रयास किया जाता है। इसके परिणामतः विषमता में कमी आती है तथा एक अधिक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना में सहायता मिलती है।

मनरेगा कार्यक्रम

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) को 2005 में लागू किया गया। इसके तहत केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा कार्यक्रम की शुरुआत की गई। यह कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्र में रोज़गार प्रदान करने वाला अधिकार आधारित कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम को वर्ष 2008 में संपूर्ण भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में लागू किया गया। इसके अंतर्गत 100 दिन का गारंटीशुदा रोज़गार प्रदान किया जाता है। जिसे कुछ क्षेत्रों में 150 दिन तक भी बढ़ाया गया है। इसके अंतर्गत 220 रुपए की न्यूनतम मज़दूरी दी जाती है, हालाँकि यह विभिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न हो सकती है। यह योजना महिलाओं के लिये 33 प्रतिशत रोज़गार आरक्षित करती है। इस प्रकार यह योजना न सिर्फ रोज़गार के लिये प्रवास को रोकने बल्कि गरीबी निवारण तथा महिला सशक्तीकरण में भी उपयोगी साबित हुई है। ध्यातव्य है कि वित्त वर्ष 2019-20 के लिये 60 हज़ार करोड़ का केंद्रीय बजट निर्धारित किया गया है।

Mgnrega

निगम कर में कटौती

निगम कर एक प्रकार का प्रत्यक्ष कर है, जिसे कंपनियों को अपने लाभ पर सरकार को देना होता है। कराधान कानून (संशोधन) अध्यादेश 2019 के तहत निगम कर में कटौती की गई है। इस अध्यादेश के माध्यम से आयकर अधिनियम, 1961 तथा वित्त अधिनियम, 2019 में बदलाव किया गया। कंपनियों के लिये कॉर्पोरेट कर की आधार दर 30% से घटाकर 22% कर दी गई, इससे कॉर्पोरेट कर की प्रभावी दर 34.94% से कम होकर 25.17% पर आ गई है, जिसमें अधिभार और उपकर भी शामिल हैं। विनिर्माण के क्षेत्र में अक्तूबर 2019 या उसके बाद स्थापित कंपनियों के लिये कॉर्पोरेट कर की आधार दर 25% से घटाकर 15% कर दी गई है। इससे इन कंपनियों के लिये प्रभावी कॉर्पोरेट कर की दर 29.12% से कम होकर 17.01% पर आ जाएगी।

वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष उपस्थित आर्थिक संकट ने निजी क्षेत्र के उद्यमों की स्थिति को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। निगम कर में कटौती उद्यमों को इस संकट में स्वयं को जीवित रखने में सहयोग करेगी, साथ ही कर की कटौती से होने वाले आर्थिक लाभ के चलते रोज़गारों में कटौती करने की ओर विवश नहीं होंगी। इसके अतिरिक्त किसी अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास में वृद्धि के लिये उद्योगों की सर्वप्रमुख भूमिका होती है। यदि उद्यम की स्थिति अच्छी होगी तो इससे GDP की वृद्धि दर में तीव्रता आएगी, परिणामतः इससे प्राप्त होने वाले लाभ को सरकार अपने प्राथमिकता वाले क्षेत्रों जिनमें सामाजिक कल्याण शामिल है, की स्थिति में सुधार कर सकेगी।

मज़दूरी का सूचीकरण

आर्थिक विकास के साथ-साथ मुद्रास्फीति की दर में भी वृद्धि की प्रवृत्ति होती है। यह मुद्रास्फीति खाद्यान्न वस्तुओं के साथ-साथ गैर-खाद्यान्न वस्तुओं के मामले में भी देखी जाती है। यदि लोगों की आय मुद्रास्फीति के अनुपात में वृद्धि न करे तो लोगों का कल्याण प्रभावित होता है। सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र में प्रदत्त रोज़गारों में प्रायः इस बात का ध्यान रखा जाता है लेकिन असंगठित क्षेत्र और श्रमिकों के मामले में इस तथ्य को सर्वथा दरकिनार कर दिया जाता है। मनरेगा कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्र में लोगों को रोज़गार प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है लेकिन इसका आय स्तर निम्न है, इससे लोग उचित मात्रा में अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते। परिणामतः यह दोहरा प्रभाव उत्पन्न करती है, एक ओर ग्रामीण लोगों की क्रय शक्ति में कमी आती है, तो दूसरी ओर इससे उद्योगों के लिये ग्रामीण मांग भी सुस्त हो जाती है। इससे अर्थव्यवस्था में मंदी की स्थिति आने की संभावना बनी रहती है। ध्यातव्य है कि भारत की 70 प्रतिशत आबादी अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। इसलिये यह सुनिश्चित करना आवश्यक हो जाता है कि मनरेगा जैसे कार्यक्रम, जिसके तहत वर्ष 2019 के लिये औसत मज़दूरी 179 रुपए थी, वर्ष 2020 के लिये कितनी हो। अतः मज़दूरी निर्धारण के लिये एक उपयुक्त मापदंड की आवश्यकता है। इसके लिये ग्रामीण समुदायों द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं को आधार बनाया जा सकता है (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-CPI-R), किंतु इसमें समस्या बनी रहेगी क्योंकि यह आय लोगों के पोषण स्तर को तो सुधार सकेगी लेकिन उनके जीवन स्तर को ऊपर नहीं उठा पाएगी। जीवन स्तर को ऊँचा करने के लिये आवश्यक है कि कम-से-कम शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, स्वच्छता, पेयजल, सामाजिक सुरक्षा आदि का भी ध्यान रखा जाए। इन बातों के लिये आय स्तर को केवल वस्तुओं के उपभोग से जोड़ना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि न्यूनतम आय की सीमा को और ऊँचा करना होगा।

सूचीकरण की चुनौतियाँ

मनरेगा की मज़दूरी बढ़ाकर ग्रामीण आय में प्रभावी वृद्धि नहीं की जा सकती है, जब तक कि मनरेगा की आधारभूत आय में वृद्धि नहीं होती। यदि केरल का उदाहरण लें, जिसे ऐसे राज्य के रूप में पहचाना जाता है, जहाँ मनरेगा के तहत अधिक मज़दूरी प्रदान की जाती है। वर्ष 2019 में केरल में मनरेगा के तहत प्रतिदिन 271 रुपए की मज़दूरी प्रदान की जाती है यदि इसमें 10 प्रतिशत की भी वृद्धि की जाएगी तब भी यह 298 रुपए तक ही पहुँच सकेगी। जबकि ध्यान देने योग्य है कि यदि केरल में मनरेगा की मज़दूरी राज्य की न्यूनतम मज़दूरी के समान हो तो यह 490 रुपए से बढ़कर 540 रुपए हो जाएगी। इस प्रकार यह आवश्यक होगा कि मनरेगा की मज़दूरी में एक उचित वृद्धि की जाए, साथ ही इसको उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (ग्रामीण) से जोड़ा जाए।

निगम कर में कटौती एवं आर्थिक विषमता

निगम कर में कटौती अन्य लाभों के अतिरिक्त आर्थिक विषमता में वृद्धि में भी सहायक मानी गई है। कुछ रिपोर्ट इस बारे में निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत करती हैं-

  • ऑक्सफेम (Oxfam) की विषमता रिपोर्ट 2018 के अनुसार, एक वर्ष की अवधि में भारत के एक प्रतिशत सबसे अधिक धनी लोगों की आय में 20.91 लाख करोड़ रुपए की वृद्धि हुई है, यह मात्रा वित्त वर्ष 2017-18 के भारत के केंद्रीय बजट के बराबर है।
  • क्रिसिल (CRISIL) के अनुमान के अनुसार, मौजूदा निगम कर में कटौती से 1000 कंपनियाँ लगभग 37 हजार करोड़ की बचत करने में सक्षम होंगी।
  • वर्ष 2015 के अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की रिपोर्ट के अनुसार, यदि किसी अर्थव्यवस्था के टॉप 20 प्रतिशत लोगों की आय में वृद्धि होती है तो इससे एक अवधि में GDP की वृद्धि दर में गिरावट आती है, जबकि बॉटम के 20 प्रतिशत लोगों की आय में यदि वृद्धि होती है तो इससे GDP की वृद्धि दर में तेज़ी आती है।

निष्कर्ष

भारतीय अर्थव्यवस्था पर पिछले कुछ समय से मंदी के बादल छाए हुए हैं। इसकी पृष्ठभूमि में ग्रामीण मांग की कमी को प्रमुख रूप से ज़िम्मेदार माना गया। एक ओर रोज़गारों की कमी और वहीं दूसरी ओर उपलब्ध रोज़गारों में उचित वेतन न होना, इस मांग में कमी का कारण रहा। मनरेगा का प्रभाव ग्रामीण क्षेत्र में रोज़गार प्रदान करने के मामले में अतुलनीय रहा है। किंतु इसकी मज़दूरी दर पर सदैव सवाल उठते रहे हैं। वर्तमान में सरकार इसमें वृद्धि की योजना बना रही है ताकि ग्रामीण क्षेत्र में उचित मज़दूरी प्रदान करके समग्र ग्रामीण मांग में वृद्धि की जा सके। मनरेगा के अतिरिक्त असंगठित क्षेत्र में भी श्रमिकों को उचित वेतन प्रदान नहीं किया जाता, इससे लोग गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार से प्रायः वंचित हो जाते हैं। आवश्यकता है कि सरकार मनरेगा एवं अन्य क्षेत्र की मज़दूरी दर को राज्य मज़दूरी दर के समान लाए तथा इसके क्रियान्वयन के लिये उपाय करे। साथ ही सरकार को सामाजिक क्षेत्र के लिये खर्च में वृद्धि करनी होगी। सामाजिक खर्च में वृद्धि न सिर्फ सामाजिक कल्याण एवं उसके सशक्तीकरण के लिये आवश्यक है बल्कि यह अर्थव्यवस्था के ज़रूरी पक्ष मांग की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। इस प्रकार भारत में एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना करना संभव होगा, जिसमें आर्थिक विषमता सीमित हो तथा लोगों को एक गरिमापूर्ण जीवन जीने हेतु उचित वेतन भी प्रदान किया जाता रहे।

प्रश्न: आर्थिक विकास के लिये उचित न्यूनतम मज़दूरी उतनी ही आवश्यक है, जितनी निगम कर में कटौती। कथन की समीक्षा कीजिये।

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