भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत के लिये विश्व बैंक का जीडीपी अनुमान
- 09 Oct 2021
- 5 min read
प्रिलिम्स के लिये:विश्व बैंक, मानव पूंजी सूचकांक, विश्व विकास रिपोर्ट मेन्स के लिये:कोविड-19 के प्रभावों से अर्थव्यवस्था रिकवरी और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
विश्व बैंक के अनुसार, भारत की अर्थव्यवस्था दक्षिण एशिया में सबसे अधिक वृद्धि के साथ वित्तीय वर्ष 2021-22 में 8.3% से बढ़ने की उम्मीद है।
- दक्षिण एशिया आर्थिक फोकस रिपोर्ट 2021 और 2022 में इस क्षेत्र के 7.1% बढ़ने का अनुमान है। यह हाल के आर्थिक विकास एवं दक्षिण एशिया के लिये एक निकट अवधि आर्थिक दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने वाला एक द्विवार्षिक आर्थिक अद्यतन है।
- विश्व बैंक की अन्य प्रमुख रिपोर्टों में मानव पूंजी सूचकांक, विश्व विकास रिपोर्ट शामिल हैं। हाल ही में इसने 'डूइंग बिज़नेस रिपोर्ट' का प्रकाशन बंद करने का फैसला लिया है।
प्रमुख बिंदु
- GDP वृद्धि:
- अनुमानित वृद्धि (8.3%) घरेलू मांग को बढ़ाने के लिये सार्वजनिक निवेश में वृद्धि और विनिर्माण को बढ़ावा देने हेतु उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीआईएल) जैसी योजनाओं द्वारा समर्थित है।
- भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वित्तीय वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून तिमाही) में “बेस इफेक्ट, घरेलू मांग में सीमित कमी और मज़बूत निर्यात वृद्धि" की पृष्ठभूमि में 20.1% की वृद्धि हुई।
- वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में देशव्यापी कोरोनावायरस लॉकडाउन के कारण भारत की जीडीपी में 24.4% की कमी आई।
- विश्व बैंक ने यह भी देखा कि महामारी की दूसरी लहर के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था में व्यवधान पहली की तुलना में सीमित था।
- आर्थिक रिकवरी:
- भारत में विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक सुधार असमान रहा है।
- विनिर्माण और निर्माण क्षेत्रों में 2021 में तेज़ी से सुधार हुआ लेकिन कम कुशल व्यक्ति, स्वरोज़गार वाले लोग, महिलाएँ और छोटी फर्मों में सीमित वृद्धि देखी गई।
- वित्तीय वर्ष 2021-22 में रिकवरी की सीमा इस बात पर निर्भर करेगी कि घरेलू आय में कितनी तेज़ी से वृद्धि होती है और अनौपचारिक क्षेत्र एवं छोटी फर्मों में गतिविधियाँ कब तक सामान्य होती हैं।
- भारत के आर्थिक क्षेत्र में सुधार की संभावनाओं का निर्धारण कोविड-19 के खिलाफ टीकाकरण की गति और कृषि एवं श्रम सुधारों के सफल कार्यान्वयन से होगा।
- बेस इफेक्ट:
- आर्थिक डेटा जैसे 'जीडीपी विकास दर' की गणना साल-दर-साल की जाती है।
- इस प्रकार पिछले वर्ष की कम विकास दर चालू वर्ष में सीमित आधार प्रदान करती है।
- संबद्ध जोखिम:
- वसूली की सीमा से जुड़े जोखिमों में शामिल हैं- वित्तीय क्षेत्र में अत्यधिक तनाव, टीकाकरण की धीमी गति, उच्च मुद्रास्फीति, मौद्रिक-नीति समर्थन आदि।
- सुझाव:
- मध्यम अवधि की वृद्धि:
- कोविड-19 जैसे संकट से सबक लेकर मध्यम अवधि के विकास के बारे में नीतियों पर पुनर्विचार शुरू करने का समय आ गया है।
- यह सामाजिक सुरक्षा बनाए रखना और हरित नीतियों को अपनाने का समय है, क्योंकि अगला झटका पर्यावरण से हो सकता है।
- असमानता को कम करने के लिये अनौपचारिक क्षेत्र व महिलाओं को अर्थव्यवस्था में एकीकृत करना बहुत ज़रूरी है। यह भी मध्यम अवधि की विकास रणनीति का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व होना चाहिये।
- नियामक प्रयोग की आवश्यकता:
- बैंक ने दक्षिण एशियाई देशों से सेवा क्षेत्र में प्रवेश बाधाओं को कम करने का आह्वान किया, ताकि ‘नई एकाधिकार शक्तियों के उद्भव’ पर अंकुश लगाते हुए अधिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा; श्रम बाज़ार की गतिशीलता एवं कौशल उन्नयन के साथ हाउसहोल्ड व फर्मों द्वारा इन नई सेवाओं को सक्षम किया जा सके।
- मध्यम अवधि की वृद्धि: