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डेली न्यूज़

  • 02 Sep, 2021
  • 28 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

तीव्र आर्थिक रिकवरी

प्रिलिम्स के लिये

सकल घरेलू उत्पाद, वी-शेप्ड आर्थिक रिकवरी, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय

मेन्स के लिये

हालिया अथिक रिकवरी के निहितार्थ और कारण

चर्चा में क्यों?

‘राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय’ के हालिया आँकड़ों के मुताबिक, अप्रैल-जून 2021 तिमाही के दौरान पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में भारतीय अर्थव्यवस्था में 20.1% की रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई।

  • पिछले वर्ष इसी अवधि के दौरान ‘सकल घरेलू उत्पाद’ (GDP) में 24.4% का संकुचन दर्ज किया गया था, ज्ञात हो कि यह वह समय था जब कोविड-19 महामारी के कारण राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की वजह से लगभग सभी आर्थिक गतिविधियों को रोक दिया गया था।

प्रमुख बिंदु

  • आर्थिक रिकवरी के विषय में 
    • कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर, जो कि अप्रैल-मई 2021 में अपने चरम स्तर पर थी, के बावजूद पहली तिमाही के दौरान आर्थिक वृद्धि देखने को मिली है।
    • हालाँकि यह तीव्र वृद्धि मुख्य तौर पर वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में संकुचन (-24.4%) के कारण हुई है।
    • यह तीव्र वृद्धि बीते वर्ष सरकार द्वारा की गई वी-शेप्ड रिकवरी की भविष्यवाणी की पुष्टि करती है।
    • इस अभूतपूर्व आर्थिक सुधार के बावजूद इस वर्ष पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर अभी भी पूर्व-कोविड वर्ष 2019-20 के दौरान इसी अवधि की जीडीपी वृद्धि दर से 9.2% कम है।
    • अन्य क्षेत्रों के अलावा विनिर्माण (49.63%) और निर्माण (68.3%) क्षेत्र ने अप्रैल-जून तिमाही में अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
      • हालाँकि सेवा क्षेत्र अभी भी लगातार पिछड़ रहा है।
    • 'कृषि, वानिकी एवं मत्स्य पालन’ और 'बिजली, गैस, पानी की आपूर्ति तथा अन्य उपयोगी सेवाओं' से संबंधित क्षेत्र पूर्व-कोविड वर्ष 2019-20 के स्तर से ऊपर आए हैं।
  • वी-शेप्ड आर्थिक रिकवरी 
    • वी-शेप्ड आर्थिक रिकवरी एक तीव्र आर्थिक गिरावट के बाद आर्थिक प्रदर्शन में त्वरित एवं निरंतर वसूली को दर्शाती है।
    • इस तरह की रिकवरी आमतौर पर उपभोक्ता मांग एवं व्यावसायिक निवेश के तेज़ी से पुन: समायोजन के कारण आर्थिक गतिविधि में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव से प्रेरित होती है। 
  • NSO के बारे में:
    • यह सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत सांख्यिकीय सेवा अधिनियम 1980 के तहत सरकार की केंद्रीय सांख्यिकीय एजेंसी है।
    • यह सरकार और अन्य उपयोगकर्त्ताओं की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये सांख्यिकीय सूचना सेवाएँ प्रदान करने की व्यवस्था के विकास हेतु ज़िम्मेदार है, ताकि इसके आधार पर नीति, योजना, निगरानी और प्रबंधन हेतु निर्णय लिये जा सकें।

Shape of recovery

  • NSO द्वारा जारी रिपोर्ट और सूचकांक:
  • अर्थव्यवस्था का कुल उत्पादन मापक:
    • एक अर्थव्यवस्था में कुल उत्पादन को दो तरीकों से मापा जा सकता है:
      • कुल मांग का मापन: सकल घरेलू उत्पाद (GDP)
      • कुल आपूर्ति मापन: सकल मूल्यवर्द्धित (GVA)
    • GDP के बारे में:
      • यह अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का कुल मौद्रिक मूल्य है, जिन्हें अंतिम उपयोगकर्त्ता द्वारा खरीदा जाता है और एक निश्चित अवधि में किसी देश में उत्पादन किया जाता है।
      • जीडीपी के आँकड़े बताते हैं कि किसी भी अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास के चार इंजनों की क्या स्थिति है। ये चार इंजन हैं:
        • निजी अंतिम उपभोग व्यय (C)
        • निवेश ( I)
        • सरकारी अंतिम उपभोग व्यय (G)
        • शुद्ध निर्यात” (NX) (निर्यात-आयात)
      • GDP = C + I + G + NX
    • GVA क्या है?
      • यह दर्शाता है कि अर्थव्यवस्था के विभिन्न उत्पादक क्षेत्रों (जैसे कृषि, बिजली आदि) में कितना मूल्य जोड़ा गया (धन के संदर्भ में)।
      • यह बताता है कि कौन से विशिष्ट क्षेत्र अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं और कौन से मूल्यवर्द्धन हेतु संघर्ष कर रहे हैं।
    • GDP और GVA के मध्य अंतर:
      • कुल मांग या कुल आपूर्ति को मापने की तुलना में कुल उत्पादन समान होना चाहिये।
      • हालाँकि हर अर्थव्यवस्था में एक सरकार होती है, जो कर लगाती है और सब्सिडी भी प्रदान करती है।
      •  GDP को GAV से प्राप्त डेटा और विभिन्न उत्पादों पर लगने वाले करों को जोड़कर  तथा सभी उत्पादों पर मिलने वाली सब्सिडी को घटाकर प्राप्त किया जाता है। 
      • दूसरे शब्दों में GDP = (GVA) + (सरकार द्वारा अर्जित कर) - (सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सब्सिडी)।
      • इन दो निरपेक्ष मूल्यों के बीच का अंतर सरकार द्वारा निभाई गई भूमिका के बारे में बताता है। 
        • अगर सरकार सब्सिडी पर खर्च की तुलना में करों से अधिक राजस्व अर्जित करती है, तो सकल घरेलू उत्पाद GVA से अधिक होगा।
        • दूसरी ओर, यदि सरकार अपने कर राजस्व से अधिक सब्सिडी प्रदान करती है, तो GVA का पूर्ण स्तर सकल घरेलू उत्पाद के पूर्ण स्तर से अधिक होगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

तालिबान पर संकल्प 2593: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद

प्रिलिम्स के लिये 

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति 

मेन्स के लिये 

अफगानिस्तान में अशांति संबंधी मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में तालिबान पर लाए गए एक संकल्प 2593 को भारत द्वारा अपनाया गया।

  • फ्राँस, ब्रिटेन और अमेरिका द्वारा प्रायोजित इस संकल्प के पक्ष में भारत सहित 13 सदस्यों ने मतदान किया, जबकि इसके विपक्ष में कोई भी वोट नहीं पड़ा।
    • दो स्थायी और वीटो-धारक सदस्य रूस और चीन ने मतदान में भाग नहीं लिया।
  • संकल्प को स्वीकार किया जाना सुरक्षा परिषद और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के अफगानिस्तान के प्रति उनके दृष्टिकोण को प्रदर्शित करता है।

प्रमुख बिंदु

  •  संकल्प 2593 के बारे में:
    • संकल्प 1267 (1999) के अनुसार, नामित व्यक्तियों और संस्थाओं सहित यह अफगानिस्तान में आतंकवाद का मुकाबला करने के महत्त्व को दोहराता है।
    • तालिबान से अफगानिस्तान छोड़ने के इच्छुक लोगों के लिये सुरक्षित मार्ग की सुविधा प्रदान करने, मानवतावादियों को देश में प्रवेश की अनुमति देने, महिलाओं और बच्चों सहित मानवाधिकारों को बनाए रखने तथा समावेशी एवं बातचीत के ज़रिये राजनीतिक समझौता करने का आह्वान किया गया है।
  • रूस और चीन की तटस्थता:
    • रूस ने इस संकल्प से स्वयं को अलग रखा क्योंकि इसमें आतंकी खतरों के बारे में पर्याप्त और विशिष्ट विवरण नहीं था, इसके अतिरिक्त संकल्प में अफगानों को निकालने से "ब्रेन ड्रेन" प्रभाव की बात नहीं की गई थी। साथ ही तालिबान के अधिग्रहण के बाद अफगान सरकार के अमेरिकी खातों को फ्रीज करने संबंधी अमेरिका के आर्थिक और मानवीय परिणामों को भी संकल्प के विवरण में संबोधित नहीं किया।
    • चीन ने रूस की कुछ चिंताओं को साझा किया। वह मानता है कि वर्तमान अराजकता पश्चिमी देशों की "अव्यवस्थित वापसी" का प्रत्यक्ष परिणाम थी।
      • चीन का विचार है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिये तालिबान के साथ जुड़ना और उसे  सक्रिय रूप से मार्गदर्शन प्रदान करना आवश्यक है।
    • इसके अतिरिक्त रूस और चीन चाहते थे कि सभी आतंकवादी समूहों, विशेष रूप से इस्लामिक स्टेट (ISIS) और उइगर ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) को विशेष रूप से दस्तावेज़ में नामित किया जाए।
  • भारत के हालिया कदम:
    • भारत ने विदेश मंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) और वरिष्ठ अधिकारियों के एक उच्च-स्तरीय समूह को भारत की तात्कालिक प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करने का निर्देश दिया है।
      • इस समूह द्वारा अफगानिस्तान में फँसे भारतीयों की सुरक्षित वापसी और अफगानिस्तान के क्षेत्र का उपयोग भारत के खिलाफ निर्देशित आतंकवाद के लिये न होने देने संबंधी मुद्दों पर प्रतिबद्धता व्यक्त की गई।
    • हाल ही में कतर में भारत के राजदूत ने तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख से मुलाकात की।
      • यह पहली बार है जब सरकार ने सार्वजनिक रूप से ऐसी बैठक को स्वीकार किया है जो तालिबान के अनुरोध पर बुलाई गई थी।
      • तालिबान नेता ने आश्वासन दिया कि सभी मुद्दों को सकारात्मक रूप से संबोधित किया जाएगा।
  • बहुपक्षीय संगठनों में अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व:
    • तालिबान के तहत अफगानिस्तान के अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व पर अनिश्चितता के साथ दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) में देश की सदस्यता को लेकर सवाल खड़ा हो गया है।
      • सार्क में अफगानिस्तान के प्रतिनिधित्व का प्रश्न विशेष रूप से तब आया है जब संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसी तरह के मुद्दे को संबोधित किया जाना बाकी है।
      • सार्क पहले से ही कई मुद्दों का सामना कर रहा है तथा अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति ने इसके लिये मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।
      • अफगानिस्तान को सार्क में 2007 में आठवें सदस्य के रूप में शामिल किया गया था।
    • परंपरागत रूप से घरेलू राजनीतिक परिवर्तन के कारण देशों, क्षेत्रीय या वैश्विक प्लेटफार्मों की सदस्यता समाप्त नहीं होती है।
    • हालाँकि काठमांडू स्थित अंतर-सरकारी संगठन एकीकृत पर्वतीय विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (International Centre for Integrated Mountain Development-ICIMOD) में भी इसी तरह का सवाल उठने की संभावना है।

आगे की राह:

  • भारत द्वारा 1988 प्रतिबंध समिति की अध्यक्षता किये जाने की उम्मीद है जो तालिबान प्रतिबंधों की निगरानी करती है और अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (UNAMA) के जनादेश का विस्तार करने संबंधी निर्णयन में भाग लेती है। इस दौरान भारत को रूस और चीन के खिलाफ अमेरिका, ब्रिटेन तथा फ्राँस ब्लॉक की प्रतिस्पर्द्धी मांगों को भी संतुलित करना होगा।
  • भारत की अफगान नीति एक बड़े व्यवधान की स्थिति में है; वहाँ अपनी संपत्ति की रक्षा करने के साथ-साथ अफगानिस्तान में और उसके आसपास होने वाले 'ग्रेट गेम' में प्रासंगिक बने रहने के लिये भारत को तद्नुसार अपनी अफगानिस्तान नीति का पुनरावलोकन करना होगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

विश्व सामाजिक संरक्षण रिपोर्ट: आईएलओ

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY), राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017, सामाजिक सुरक्षा कोड 2020, प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन

मेन्स के लिये:

सामाजिक सुरक्षा की अवधारणा, सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने हेतु भारत सरकार की पहलें 

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की 'वर्ल्ड सोशल प्रोटेक्शन रिपोर्ट 2020-22' से पता चला है कि वैश्विक स्तर पर 4.1 बिलियन लोगों को किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा प्राप्त नही है।

  • रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी की प्रतिक्रिया असमान रूप से अप्रत्याशित थी। इस प्रकार कोविड -19 ने सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा के महत्त्व को रेखांकित किया है।
  • ILO संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है। यह संयुक्त राष्ट्र की एकमात्र त्रिपक्षीय एजेंसी है। यह 187 सदस्य राज्यों की सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को श्रम मानकों को स्थापित करने, नीतियों को विकसित करने तथा सभी महिलाओं एवं पुरुषों के लिये अच्छे काम को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम तैयार करने हेतु एक साथ लाती है।

प्रमुख बिंदु 

  • सामाजिक सुरक्षा (अवधारणा):
    • यह नुकसान में कमी या रोकने, व्यक्ति और उसके आश्रितों के लिये एक बुनियादी न्यूनतम आय का आश्वासन देने तथा किसी भी अनिश्चितता से व्यक्ति की रक्षा करने हेतु डिज़ाइन किया गया एक व्यापक दृष्टिकोण है।
    • सामाजिक सुरक्षा में विशेष रूप से वृद्धावस्था, बेरोज़गारी, बीमारी, विकलांगता, कार्य के दौरान चोट, मातृत्व अवकाश , स्वास्थ्य देखभाल तथा आय सुरक्षा उपायों तक पहुंँच के साथ-साथ बच्चों वाले परिवारों हेतु अतिरिक्त सहायता शामिल है।
  • रिपोर्ट की मुख्य बातें:
    • सामाजिक संरक्षण के साथ वैश्विक जनसंख्या: वर्ष 2020 में वैश्विक आबादी के केवल 46.9% (सामाजिक सुरक्षा के दायरे में आने वाले) लोगों को एक ही प्रकार की सुरक्षा का लाभ प्राप्त हुआ है।
    • कोविड -19 महामारी के दौरान उत्पन्न चुनौतियाँ: आर्थिक असुरक्षा का उच्च स्तर, लगातार बढ़ती गरीबी और असमानता, लोगों के मध्य बढ़ती व्यापक अनौपचारिकता एवं नाजुक सामाजिक अनुबंध जैसी व्यापक चुनौतियों को कोविड -19 ने बढ़ा दिया है।
    • बढ़ती असमानताएँ: सामाजिक सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय असमानताएँ व्याप्त हैं, यूरोप और मध्य एशिया में इन असमानताओं की उच्चतम दर है जहाँ 84% लोगों को एक ही प्रकार का सामाजिक सुरक्षा लाभ प्राप्त है।
      • अमेरिका 64.3% के साथ वैश्विक औसत से ऊपर है, जबकि एशिया और प्रशांत में 44%, अरब राज्य में 40% तथा अफ्रीका में  17.4% का कवरेज अंतराल (Coverage Gaps) देखा गया है।
    • सामाजिक सुरक्षा व्यय में असमानता: देश अपने सकल घरेलू उत्पाद का औसतन 12.9% सामाजिक सुरक्षा (स्वास्थ्य को छोड़कर) पर खर्च करते हैं, लेकिन यह आंँकड़ा चौंका देने वाला है।
      • उच्च आय वाले देश औसतन 16.4%, उच्च-मध्यम आय वाले देश 8%, निम्न-मध्यम आय वाले देश 2.5% और निम्न-आय वाले देश 1.1% सामाजिक सुरक्षा पर खर्च करते हैं।
    • महिलाओं, बच्चों और विकलांग लोगों के लिये सीमित सुरक्षा: विश्व स्तर पर अधिकांश बच्चों के पास अभी भी कोई प्रभावी सामाजिक सुरक्षा कवरेज नहीं है और चार बच्चों में से केवल एक (26.4%) को सामाजिक सुरक्षा लाभ प्राप्त होता है।   
      • दुनिया भर में नवजात शिशुओं वाली सिर्फ 45% महिलाओं को नकद मातृत्व लाभ प्राप्त होता है।
      • दुनिया भर में गंभीर रूप से विकलांग तीन में से केवल एक व्यक्ति को ही विकलांगता लाभ मिलता है।
    • सीमित बेरोज़गारी संरक्षण: दुनिया भर में केवल 18.6% बेरोज़गार श्रमिकों के पास बेरोज़गारी के लिये प्रभावी कवरेज है और इस प्रकार वास्तव में कुछ सीमित लोग ही बेरोज़गारी लाभ प्राप्त कर पाते हैं।
      • यह सामाजिक सुरक्षा का सबसे कम विकसित हिस्सा है।
    • स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच में बाधाएँ: यद्यपि जनसंख्या कवरेज बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है, किंतु स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में बाधाएँ अभी भी बनी हुई हैं:
      • स्वास्थ्य सेवाओं पर अत्यधिक भुगतान, स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता और स्वीकार्यता, लंबे समय तक प्रतीक्षा समय, अवसर लागत आदि।
  • सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने हेतु भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

आगे की राह

  • इस बात को स्वीकार करने की आवश्यकता है कि प्रभावी और व्यापक सामाजिक सुरक्षा न केवल सामाजिक न्याय के लिये बल्कि एक स्थायी भविष्य के निर्माण हेतु भी आवश्यक है।
  • सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा की स्थापना और सभी के लिये सामाजिक सुरक्षा संबंधी मानव अधिकारों को साकार करना सामाजिक न्याय प्राप्ति हेतु मानव-केंद्रित दृष्टिकोण की आधारशिला है।
  • सामूहिक वित्तपोषण, जोखिम-पूलिंग और अधिकार-आधारित पात्रता सभी के लिये स्वास्थ्य देखभाल तक प्रभावी पहुँच का समर्थन करने हेतु महत्त्वपूर्ण शर्तें हैं।
  • स्वास्थ्य के प्रमुख निर्धारकों को अधिक प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये चिकित्सा देखभाल एवं आय सुरक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करने संबंधी तंत्र के बीच मज़बूत संबंध और बेहतर समन्वय की आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

पोषण 2.0

प्रिलिम्स के लिये

पोषण 2.0, आकांक्षी ज़िले, एकीकृत बाल विकास सेवा

मेन्स के लिये

भारत में कुपोषण की स्थिति और भारत सरकार द्वारा किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘महिला एवं बाल विकास मंत्रालय’ ने ‘पोषण 2.0’ का उद्घाटन किया और सभी आकांक्षी ज़िलों से 1 सितंबर से पोषण माह के दौरान ‘पोषण वाटिका’ (पोषण उद्यान) स्थापित करने का आग्रह किया है।

  • ‘पोषण अभियान मिशन’ एक महीने तक चलने वाला उत्सव है, जो मुख्य तौर पर गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों पर विशेष ध्यान केंद्रित करता है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय
    • यह ‘एकीकृत बाल विकास सेवा’ (ICDS) (आँगनवाड़ी सेवाएँ, पोषण अभियान, किशोरियों के लिये योजना, राष्ट्रीय शिशु गृह योजना) को कवर करने वाली एक अम्ब्रेला योजना है।
    • केंद्रीय बजट 2021-22 में पूरक पोषण कार्यक्रमों और पोषण अभियान को मिलाकर इसकी घोषणा की गई थी। 
    • इसे देश में स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती के साथ-साथ रोग एवं कुपोषण के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने वाली पोषण प्रथाओं पर नए सिरे से ध्यान देने के साथ पोषण सामग्री, वितरण, आउटरीच और मज़बूत परिणाम प्राप्त करने के लिये लॉन्च किया गया था।
  • पोषण माह 
    • बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिये पोषण संबंधी परिणामों में सुधार हेतु सितंबर माह को वर्ष 2018 से पोषण माह के रूप में मनाया जाता है।
    • इसमें प्रसवपूर्व देखभाल, इष्टतम स्तनपान, एनीमिया, विकास निगरानी, ​​लड़कियों की शिक्षा, आहार, शादी की सही उम्र, स्वच्छता और स्वच्छ एवं स्वस्थ भोजन (फूड फोर्टिफिकेशन) पर केंद्रित एक महीने तक चलने वाली गतिविधियाँ शामिल हैं।
    • ये गतिविधियाँ ‘सामाजिक एवं व्यवहार परिवर्तन संचार’ (SBCC) पर केंद्रित हैं और जन आंदोलन दिशा-निर्देशों पर आधारित हैं।
      • SBCC का आशय मौजूदा ज्ञान, दृष्टिकोण, मानदंड, विश्वास और व्यवहार में परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिये संचार का उपयोग करने से है।
  • पोषण वाटिका
    • इसका मुख्य उद्देश्य जैविक रूप से घर में उगाई गई सब्जियों और फलों के माध्यम से पोषण की आपूर्ति सुनिश्चित करना है ताकि मिट्टी भी स्वस्थ रहे।
    • आँगनबाड़ियों, स्कूल परिसरों और ग्राम पंचायतों में उपलब्ध स्थानों में सभी हितधारकों द्वारा पोषण वाटिका के लिये वृक्षारोपण अभियान चलाया जाएगा।
  • पोषण अभियान:
    • 8 मार्च, 2018 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सरकार द्वारा राष्ट्रीय पोषण मिशन  शुरू किया गया था।
    • इसका उद्देश्य स्टंटिंग, अल्पपोषण, एनीमिया (छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोर लड़कियों में) और जन्म के समय कम वज़न को क्रमशः 2%, 2%, 3% और 2% प्रतिवर्ष कम करना है।
    • इसमें वर्ष 2022 तक 0-6 वर्ष की आयु के बच्चों में स्टंटिंग को 38.4% से कम कर 25% तक करने का भी लक्ष्य शामिल है।
  • भारत में कुपोषण का परिदृश्य:
    • विश्व बैंक की 2010 की एक रिपोर्ट के अनुसार, शौचालयों की कमी के कारण भारत को 24,000 करोड़ रुपए का आर्थिक नुकसान हुआ।
    • वर्ष 2018 के एसोचैम (Assocham) के अध्ययन के अनुसार, कुपोषण के कारण सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 4% की गिरावट आई है।
      • रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि बड़े होकर कुपोषण से पीड़ित बच्चे स्वस्थ बचपन वाले बच्चों की तुलना में 20% कम कमाते हैं।
    • देश में गंभीर रूप से कुपोषित( Severe Acute Malnourished- SAM) बच्चों की संख्या पहले 80 लाख थी, जो अब घटकर 10 लाख हो गई है।
  • संबंधित सरकारी पहलें:

कुपोषण

  • कुपोषण तब भी होता है जब किसी व्यक्ति के आहार में पोषक तत्त्वों की सही मात्रा उपलब्ध नहीं होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ के अनुसार, कुपोषण के तीन प्रमुख लक्षण हैं:
    • कम वज़न (Underweight)- अल्पपोषण: इसमें वेस्टिंग (कद के अनुपात में कम वज़न), स्टंटिंग (आयु के अनुपात में कम लंबाई) और कम वज़न (आयु के अनुपात से कम वज़न) शामिल हैं।
    • सूक्ष्म पोषक-संबंधी (Micronutrient-Related): इसमें सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी (महत्त्वपूर्ण विटामिन और खनिजों की कमी) या सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की अधिकता शामिल है।
    • अधिक वज़न: मोटापा और आहार से संबंधित गैर-संचारी रोग (जैसे हृदय रोग, स्ट्रोक, मधुमेह और कैंसर)।
  • सतत् विकास लक्ष्य (SDG 2: ज़ीरो हंगर) का उद्देश्य वर्ष 2030 तक सभी प्रकार की भूख और कुपोषण को समाप्त करना है, साथ ही यह सुनिश्चित करना कि सभी लोगों को विशेष रूप से बच्चों को पूरे वर्ष पर्याप्त और पौष्टिक भोजन उपलब्ध हो।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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