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‘फूड फोर्टिफिकेशन’ के प्रतिकूल प्रभाव

  • 03 Aug 2021
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आकांक्षी ज़िले, फूड फोर्टिफिकेशन, समेकित बाल विकास सेवा, मध्याह्न भोजन योजना

मेन्स के लिये:

फूड फोर्टिफिकेशन’ के प्रतिकूल प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिकों एवं कार्यकर्त्ताओं के एक समूह ने भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) को स्वास्थ्य तथा आजीविका पर ‘फूड फोर्टिफिकेशन’ के प्रतिकूल प्रभावों के संबंध में चेतावनी दी है।

  • यह विटामिन और खनिजों के साथ चावल एवं खाद्य तेलों को अनिवार्य रूप से फोर्टिफाइड करने की केंद्र की योजना के खिलाफ है।
  • एनीमिया और कुपोषण से लड़ने के लिये सरकार वर्ष 2021 से देश भर में समेकित बाल विकास सेवाओं एवं मध्याह्न भोजन योजना के माध्यम से फोर्टिफाइड चावल वितरित करने की योजना बना रही है, जिसमें आकांक्षी ज़िलों पर विशेष ध्यान दिया गया है।

Food-Fortification

प्रमुख बिंदु

अनिर्णायक साक्ष्य:

  • फोर्टिफिकेशन का समर्थन करने वाले साक्ष्य अनिर्णायक हैं और निश्चित रूप से प्रमुख राष्ट्रीय नीतियों को लागू करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं।
  • फोर्टिफिकेशन को बढ़ावा देने के लिये FSSAI जिन अध्ययनों पर निर्भर है। वे खाद्य कंपनियों द्वारा प्रायोजित हैं, जो इससे लाभान्वित होंगीं तथा हितों का टकराव होगा।

हाइपरविटामिनोसिस:

  • मेडिकल जर्नल ‘लैंसेट’ और ‘अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन’ में प्रकाशित हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि एनीमिया तथा विटामिन ए की कमी दोनों का निदान अधिक होता है, जिसका अर्थ है कि अनिवार्य फोर्टिफिकेशन से ‘हाइपरविटामिनोसिस’ हो सकता है।
    • हाइपरविटामिनोसिस विटामिन के असामान्य रूप से उच्च भंडारण स्तर की स्थिति है, जो विभिन्न लक्षणों जैसे कि अत्यधिक उत्तेजना, चिड़चिड़ापन या यहाँ तक ​​कि विषाक्तता को जन्म दे सकती है।

विषाक्तता:

  • खाद्य पदार्थों के रासायनिक फोर्टिफिकेशन के साथ एक बड़ी समस्या यह है कि पोषक तत्त्व अलगाव में काम नहीं करते हैं, लेकिन अधिकतम अवशोषण के लिये एक-दूसरे की आवश्यकता होती है। भारत में अल्पपोषण सब्जियों और पशु प्रोटीन की कम खपत वाले अनाज आधारित आहार के कारण होता है।
  • एक या दो सिंथेटिक रासायनिक विटामिन और खनिजों को जोड़ने से बड़ी समस्या का समाधान नहीं होगा तथा अल्पपोषित आबादी में विषाक्तता हो सकती है।
    • वर्ष 2010 के एक अध्ययन में बताया गया है कि कुपोषित बच्चों में आयरन फोर्टिफिकेशन के कारण आँत में सूजन और रोगजनक आँत माइक्रोबायोटा प्रोफाइल की स्थिति उत्पन्न होती है।

कार्टेलाइज़ेशन:

  • गुटबाज़ी (Fortification) के चलते भारतीय किसानों, स्थानीय तेल और चावल मिलों सहित खाद्य प्रसंस्करणकर्त्ताओं की विशाल अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा तथा  बहुराष्ट्रीय निगमों के एक छोटे समूह को लाभ मिलेगा, जिसके चलते 3,000 करोड़ रुपए का बाज़ार प्रभावित  होगा।
  • सिर्फ पांँच निगमों/व्यापार संघ ने वैश्विक गुटबाज़ी प्रवृत्तियों के अधिकांश लाभ प्राप्त किये हैं और ये कंपनियांँ/निगम ऐतिहासिक रूप से कार्टेलिज़िंग व्यवहार में लगी हुई हैं जिससे कीमतों में बढ़ोतरी हुई है।
    • यूरोपीय संघ को इस तरह के व्यवहार हेतु इन कंपनियों पर ज़ुर्माना लगाने के लिये मजबूर किया गया है।

नेचुरल फूड की कीमत में कमी:

  • कुपोषण से लड़ने के लिये आहार विविधता को एक स्वस्थ और अधिक लागत प्रभावी तरीका माना गया है। जब से एनीमिया के उपचार हेतु आयरन युक्त फोर्टिफाइड चावल बाज़ार में बेचा जाने लगा, तब से इसने प्राकृतिक रूप से उपलब्ध कुछ लौह युक्त खाद्य पदार्थों, जैसे- बाजरा, हरी पत्तीदार सब्जियों की किस्में, मांस व अन्य खाद्य पदार्थों के बाज़ार को नितिगत्त रुप से सीमित कर  दिया है।

फूड फोर्टिफिकेशन

फूड फोर्टिफिकेशन के बारे में: 

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, फूड फोर्टिफिकेशन से आशय खाद्य पदार्थों में एक या अधिक सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की जान-बूझकर की जाने वाली वृद्धि से है ताकि इन पोषक तत्त्वों की न्यूनता में सुधार या निवारण किया जा सके तथा स्वास्थ्य लाभ प्रदान किया जा सके।
  • यह ध्यान देने की बात है कि बायोफोर्टिफिकेशन (Biofortification) पारंपरिक फूड फोर्टिफिकेशन से भिन्न है। बायोफोर्टिफिकेशन का उद्देश्य फसलों के प्रसंस्करण के दौरान मैनुअल साधनों के बजाय पौधों की वृद्धि के दौरान ही फसलों में पोषक तत्त्वों के स्तर को बढ़ाना है। अर्थात् बायोफोर्टिफिकेशन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कृषि संबंधी प्रथाओं, पारंपरिक पौधों के प्रजनन या आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से खाद्य फसलों की पोषण गुणवत्ता में सुधार किया जाता है।

प्रकार: 

  • लक्षित:
    • सामान्य आबादी (मास फोर्टिफिकेशन) द्वारा व्यापक रूप से उपभोग किये जाने वाले खाद्य पदार्थों हेतु फूड फोर्टिफिकेशन किया जा सकता है, विशिष्ट जनसंख्या उपसमूहों के लिये डिज़ाइन किये गए खाद्य पदार्थों के पोषण स्तर में वृद्धि की जा सकती है जैसे- छोटे बच्चों के पूरक खाद्य पदार्थ या विस्थापित आबादी के लिये राशन।
  • प्रचलित बाज़ार :
    • खाद्य निर्माताओं को बाज़ार में उपलब्ध खाद्य पदार्थों को स्वेच्छा से मज़बूत करने की अनुमति देना (बाज़ार संचालित फोर्टिफिकेशन)।

प्रक्रिया: 

  • जिस व्यापक स्तर तक राष्ट्रीय या क्षेत्रीय खाद्य आपूर्ति मज़बूत होती है, वह काफी भिन्न होती है। एक ही खाद्य पदार्थ (जैसे नमक का आयोडीनीकरण) में सिर्फ एक सूक्ष्म पोषक तत्त्व की सांद्रता बढ़ाई जा सकती है या यह पैमाने के दूसरे छोर पर खाद्य-सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के संयोजन की एक पूरी  शृंखला हो सकती है।

सरकारी हस्तक्षेप:

  • FSSAI विनियमन:
    • अक्तूबर 2016 में FSSAI ने खाद्य सुरक्षा और मानक (खाद्य पदार्थों का फोर्टिफिकेशन) विनियम, 2016 को मज़बूत करने वाली सूची जारी की जैसे-  गेहूँ का आटा और चावल (आयरन, विटामिन बी 12 एवं फोलिक एसिड के साथ), दूध तथा खाद्य तेल (विटामिन ए और डी के साथ) व  भारत में सूक्ष्म पोषक तत्वों के कुपोषण के उच्च बोझ को कम करने के लिये डबल फोर्टिफाइड नमक (आयोडीन और आयरन के साथ)।
  • पोषण संबंधी रणनीति:
    •  भारत की राष्ट्रीय पोषण रणनीति, 2017 ने पूरक आहार और आहार विविधीकरण के अलावा एनीमिया, विटामिन ए तथा आयोडीन की कमी को दूर करने के लिये फूड फोर्टिफिकेशन को एक हस्तक्षेप के रूप में सूचीबद्ध किया था।
  • मिल्क फोर्टिफिकेशन प्रोजेक्ट :
    • वर्ष 2017 में मिल्क फोर्टिफिकेशन प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) द्वारा विश्व बैंक तथा  टाटा ट्रस्ट के सहयोग से एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लॉन्च किया गया था।

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI)

परिचय:

  • भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India-FSSAI) खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 (FSS अधिनियम) के तहत स्थापित एक स्वायत्त वैधानिक निकाय है।
  • इसका मुख्यालय दिल्ली में है।
  • इसका संचालन भारत सरकार के स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत किया जाता है।

कार्य:

  • खाद्य सुरक्षा के मानकों और दिशा-निर्देशों को निर्धारित करने के लिये विनियम बनाना।
  • खाद्य व्यवसायों के लिये FSSAI खाद्य सुरक्षा लाइसेंस और प्रमाणन प्रदान करना।
  • खाद्य व्यवसायों में प्रयोगशालाओं के लिये प्रक्रिया और दिशा-निर्देश निर्धारित करना।
  • नीतियाँ बनाने में सरकार को सुझाव देना
  • खाद्य उत्पादों में संदूषकों के संबंध में डेटा एकत्र करना, उभरते जोखिमों की पहचान करना और एक त्वरित चेतावनी प्रणाली की शुरुआत करना।
  • खाद्य सुरक्षा के संबंध में देश भर में एक सूचना नेटवर्क बनाना।

स्रोत: द हिंदू

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