भारतीय अर्थव्यवस्था
मौद्रिक नीति: RBI
- 07 Dec 2020
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) की ‘मौद्रिक नीति समिति’ (Monetary Policy Committee- MPC) ने रेपो रेट में कोई बदलाव न करते हुए अपने समायोजन नीति के रुख को जारी रखा है। गौरतलब है कि वर्तमान में COVID-19 महामारी के बीच RBI ने महँगाई की अपेक्षा आर्थिक सुधार को समर्थन को अधिक प्राथमिकता दी है।
- RBI द्वारा अन्य कई तरलता प्रबंधन उपायों के साथ वित्तीय प्रणाली के नियामकीय निरीक्षण में सुधार के लिये आवश्यक कदमों की भी घोषणा की गई है।
- RBI की ‘मौद्रिक नीति समिति’ ‘भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934’ के तहत स्थापित एक संविधिक निकाय है। यह आर्थिक विकास के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए मुद्रा स्थिरता को बनाए रखने हेतु कार्य करती है। यह महँगाई दर (4%) को प्राप्त करने के लिये रेपो रेट के निर्धारण का कार्य करती है।
प्रमुख बिंदु:
रेपो रेट:
- मौद्रिक नीति समिति ने रेपो रेट (Repo Rate) को 4% पर और रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) को 3.35% पर बनाए रखा है।
- रेपो रेट या नीतिगत दर, वह ब्याज़ दर होती है जिस पर RBI बैंकों को ऋण उपलब्ध कराता है।
- रिवर्स रेपो रेट, वह ब्याज़ दर होती है जिस पर बैंकों को RBI में धन जमा कराने पर ब्याज़ प्राप्त होता है।
- MPC ने वर्तमान में खुदरा मुद्रास्फीति में हो रही वृद्धि के बीच लगातार तीसरी बार प्रमुख मौद्रिक नीतिगत दरों को यथावत बनाए रखने का निर्णय लिया है।
- RBI ने COVID-19 महामारी और इसके नियंत्रण हेतु लागू लॉकडाउन के कारण उत्पन्न हुई आर्थिक चुनौतियों से निपटने में अर्थव्यवस्था को सहयोग प्रदान करने के लिये मार्च 2020 से रेपो रेट में 115 बेसिस पॉइंट्स की कटौती की है।
- सामान्य तौर पर रेपो रेट के कम होने से सामान्य जनता को बैंकों से पूर्व की अपेक्षा सस्ता ऋण प्राप्त होता है।
सकल घरेलू उत्पाद अनुमान:
- वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product-GDP) में 7.5% की गिरावट का अनुमान व्यक्त किया गया है।
- वास्तविक GDP में मुद्रास्फीति को समायोजित किया जाता है, यह किसी दिये गए एक वर्ष में अर्थव्यवस्था द्वारा उत्पादित कुल वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को दर्शाता है।
- हालाँकि लॉकडाउन के बाद वर्तमान वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में देश के अधिकांश हिस्सों में औद्योगिक गतिविधियों में सुधार को देखते हुए तीसरी तिमाही में जीडीपी में 0.1% और चौथी तिमाही में 0.7% की वृद्धि का अनुमान है।
- गौरतलब है कि वर्ष 2020 की पहली तिमाही में देश की जीडीपी में 23.9% की गिरावट (वर्ष 2019 की पहली तिमाही की तुलना में) देखने को मिली थी।
मुद्रास्फीति
- मुद्रास्फीति मौजूदा समय में नीति निर्माताओं के लिये चिंता का विषय बनी हुई है, क्योंकि आपूर्ति बाधित होने से मुद्रास्फीति में तीव्र वृद्धि देखी गई, जिसके कारण उपभोक्ता से काफी अधिक शुल्क लिया जा रहा था।
- कोर मुद्रास्फीति पर लागत जनित मुद्रास्फीति का प्रभाव अभी भी जारी है, इसमें अधिक बदलाव नहीं हुआ है और आर्थिक गतिविधियों के सामान्य होने तथा माँग में तेजी के साथ यह और भी दृढ़ हो सकती है।
- लागत जनित मुद्रास्फीति: किसी वस्तु के उत्पादन से जुड़े कारकों (भूमि, पूंजी, श्रम, कच्चा माल आदि) की लागत में वृद्धि से वस्तुओं की कीमतों में होने वाली वृद्धि लागत जनित मुद्रास्फीति (Cost-Push Inflation) कहलाती है।
- कोर मुद्रास्फीति: कोर मुद्रास्फीति बाज़ार में वस्तुओं और सेवाओं की लागत के अंतर को दर्शाती है परंतु इसमें खाद्य और ऊर्जा क्षेत्र को शामिल नहीं किया जाता।
- RBI द्वारा चालू वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही में खुदरा महँगाई के औसतन 6.8% और चौथी तिमाही में 5.8% रहने का अनुमान लगाया गया है, साथ ही वित्तीय वर्ष 2021-22 की पहली और दूसरी तिमाही में यह घटकर क्रमशः 5.2% तथा 4.6% तक पहुँचने का अनुमान है।
- उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति (Consumer Price Inflation): अक्तूबर में CPI पिछले 6 वर्षों के अपने सबसे अधिकतम स्तर (7.6%) पर पहुँच गई, जो कि इसके मध्यम लक्ष्य 4% (+/-2%) से बहुत ही अधिक है।
उदार रुख:
- मौद्रिक नीति समिति ने COVID-19 महामारी के कारण उत्पन्न आर्थिक चुनौतियों को कम करने और अर्थव्यवस्था की वृद्धि को स्थायी गति प्रदान करने के लिये जहाँ तक आवश्यक (कम-से-कम वर्तमान वित्तीय वर्ष और अगले वित्तीय वर्ष में भी) हो, अपने उदार रूख को जारी रखने का निर्णय लिया है।
जोखिम-आधारित आंतरिक लेखा परीक्षा मानदंड:
- RBI ने बड़े शहरी सहकारी बैंकों (Urban Cooperative Banks- UCBs) और ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों’ (Non-Banking Financial Companies- NBFC) के लिये जोखिम-आधारित आंतरिक लेखा परीक्षा मानदंड शुरू करने की घोषणा की है, RBI की यह पहल इसकी निगरानी में सक्रिय संस्थाओं में शासन और विश्वसनीयता को बेहतर बनाने के उद्देश्य से शुरू किये गए प्रयासों का हिस्सा है।
- RBI द्वारा वित्तीय रिपोर्टिंग की गुणवत्ता में सुधार के लिये वाणिज्यिक बैंकों, UCB और NBFC के सांविधिक लेखा परीक्षकों की नियुक्ति पर दिशा-निर्देशों के सामंजस्य के लिये भी कदम उठाए गए हैं।
- NBFC की विभिन्न श्रेणियों द्वारा लाभांश की घोषणा के लिये पारदर्शी मापदंड अपनाने का निर्णय लिया गया है।
- वित्तीय बाज़ार को और अधिक व्यापक करने के लिये क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को रिज़र्व बैंक की ‘तरलता समायोजन सुविधा’ (Liquidity Adjustment Facility- LAF) और ‘सीमांत स्थायी सुविधा’ (Marginal Standing Facility- MSF) के साथ कॉल/नोटिस मनी मार्केट का उपयोग करने की भी अनुमति दी जाएगी।
- तरलता समायोजन सुविधा (Liquidity Adjustment Facility- LAF): LAF भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति के तहत प्रयोग किया जाने वाला उपकरण है जो बैंकों को पुनर्खरीद समझौतों, रेपो एग्रीमेंट के माध्यम से ऋण प्राप्त करने या रिवर्स रेपो एग्रीमेंट के माध्यम से RBI को ऋण प्रदान करने की अनुमति प्रदान करता है।
- सीमांत स्थायी सुविधा (Marginal Standing Facility- MSF): सीमांत स्थायी सुविधा (MSF) के तहत बैंक अंतर-बैंक तरलता (Inter-Bank Liquidity) की कमी को पूरा करने के लिये आपातकालीन स्थिति में भारतीय रिज़र्व बैंक से उधार लेते हैं।
डिजिटल भुगतान सुरक्षा:
- उपयोगकर्त्ता के लिये मज़बूत सुरक्षा और सुविधा के साथ डिजिटल भुगतान चैनलों के ईको-सिस्टम में महत्त्वपूर्ण सुधार के लिये RBI ने विनियमित संस्थाओं हेतु ‘भारतीय रिज़र्व बैंक (डिजिटल भुगतान सुरक्षा नियंत्रण) निर्देश’ जारी करने का प्रस्ताव किया है।
- इन निर्देशों में इंटरनेट, मोबाइल बैंकिंग और कार्ड से भुगतान जैसे माध्यम के लिये सामान्य सुरक्षा नियंत्रण को लेकर कुछ न्यूनतम मानकों को सुदृढ़ करने, उनके प्रशासन, कार्यान्वयन और निगरानी की आवश्यकता होगी।
लक्षित दीर्घकालिक रेपो परिचालन:
- RBI ने कामथ समिति द्वारा चिह्नित 26 तनावग्रस्त क्षेत्रों को लक्षित दीर्घकालिक रेपो परिचालन (Targeted Long Term Repo Operation- TLTRO) के तहत पात्र क्षेत्रों के दायरे में लाने का निर्णय लिया है ताकि सुस्त अर्थव्यवस्था को और अधिक तरलता उपलब्ध कराई जा सके।
- RBI ने अक्तूबर 2020 में TLTRO की घोषणा की थी, जो 31 मार्च 2021 तक उपलब्ध होगी।
- तद्नुसार, योजना को लेकर प्राप्त प्रतिक्रिया की समीक्षा के बाद धनराशि और अवधि बढ़ाने हेतु लचीलेपन के साथ पॉलिसी रेपो दर से सहलग्न अस्थायी दर पर कुल 1,00,000 करोड़ रुपए तक की राशि के लिये तीन वर्षों तक के लक्षित दीर्घावधि रेपो परिचालनों को माँग पर संचालित करने का निर्णय लिया गया था।
- TLTRO के तहत बैंक अर्थव्यवस्था में ऋण प्रवाह को बढ़ाने के लिये कॉर्पोरेट बॉण्ड, वाणिज्यिक पत्र और गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर (Non-Convertible Debentures) जैसे ऋण माध्यमों से विशिष्ट क्षेत्रों में निवेश कर सकते हैं।
- आत्मनिर्भर भारत पैकेज 3.0 के हिस्से के रूप में केंद्र सरकार ने आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना 2.0 (Emergency Credit Line Guarantee Scheme- ECLGS 2.0) शुरू की।
- इसके तहत रिज़र्व बैंक की कामथ कमेटी द्वारा चिह्नित 26 तनावग्रस्त क्षेत्रों में संस्थाओं को मौजूदा ECLGS 1.0 के 3.0 लाख करोड़ रुपए के कोष को 100 प्रतिशत गारंटीकृत संपार्श्विक मुक्त अतिरिक्त ऋण प्रदान करने की सुविधा दी गई।
- RBI के अनुसार, बैंकों को दो योजनाओं के तालमेल के लिये रिज़र्व बैंक से मांग के आधार पर TLTRO के तहत प्राप्त धनराशि का लाभ उठाने और तनावग्रस्त क्षेत्रों को ऋण सहायता प्रदान करने के लिये ECLGS 2.0 के तहत गारंटी लेने हेतु प्रोत्साहित किया जाता है।