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भारत-श्रीलंका संबंधों के नए समीकरण

  • 29 Nov 2019
  • 18 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत-श्रीलंका के संबंधों और श्रीलंका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति की भारत यात्रा के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

श्रीलंका में संपन्न हुए हालिया राष्ट्रपति चुनावों के बाद से भारत-श्रीलंका संबंधों के समीकरण तेज़ी से बदलते दिखाई दे रहे हैं। ध्यातव्य है कि इसी महीने श्रीलंका में हुए चुनावों में गोतबाया राजपक्षे को श्रीलंका के सातवें राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित किया गया था, जिसके बाद गोतबाया राजपक्षे को बधाई देने के लिये विदेश मंत्री एस जयशंकर अपने कार्यकाल की पहली श्रीलंकाई यात्रा पर गए थे। उनकी इस यात्रा को भारत के नज़रिये से काफी अहम माना गया था और अब उनकी यात्रा के बाद नवनिर्वाचित श्रीलंकाई राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे भारत के दौरे पर आए हैं। गोतबाया राजपक्षे की भारत यात्रा के महत्त्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि पदभार संभालने के बाद यह उनकी पहली विदेश यात्रा है। ऐसे में यह देखना होगा कि दोनों देशों के मध्य बदलते समीकरण उनके संबंधों को नया आयाम देने में सक्षम होंगे या नहीं।

भारत-श्रीलंका संबंध- एक नज़र

  • उल्लेखनीय है कि भारत और श्रीलंका के मध्य संबंध 2500 वर्षों से भी अधिक पुराने हैं। दोनों देशों के पास महत्त्वपूर्ण बौद्धिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषायी विरासत मौजूद है।
  • विगत कुछ वर्षों में दोनों देशों ने अपने संबंधों को लगभग प्रत्येक स्तर पर बेहतर करने के प्रयास किये हैं। दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश में बढ़ोतरी देखी गई है और दोनों ही बुनियादी ढाँचे के विकास, शिक्षा, संस्कृति और रक्षा के क्षेत्र में सहयोग कर रहे हैं।
    • साथ ही विकास सहायता परियोजनाओं के कार्यान्वयन में महत्त्वपूर्ण प्रगति ने दोनों देशों के बीच दोस्ती के बंधन को और मजबूत किया है।
  • श्रीलंकाई सेना और लिट्टे के बीच लगभग तीन दशक तक चला लंबा सशस्त्र संघर्ष वर्ष 2009 में समाप्त हुआ जिसमें भारत ने आतंकवादी ताकतों के खिलाफ कार्रवाई करने हेतु श्रीलंका सरकार के अधिकार का समर्थन किया था।

वाणिज्यिक संबंध

  • लंबे समय से भारतीय प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिये श्रीलंका एक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है।
  • ध्यातव्य है कि SAARC में श्रीलंका भारत के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदारों में से एक है। वहीं भारत भी वैश्विक स्तर पर श्रीलंका का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
  • मार्च 2000 में लागू हुए भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौते के बाद दोनों देशों के बीच व्यापार काफी तेज़ी से बढ़ा है।
  • वर्ष 2015-2017 के दौरान श्रीलंका को किया गया भारत का निर्यात 5.3 बिलियन डॉलर का था, जबकि श्रीलंका से भारत का आयात लगभग 743 मिलियन डॉलर का था।
  • साथ ही भारत वर्ष 2003 से 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के कुल निवेश के साथ श्रीलंका के शीर्ष चार निवेशकों में शामिल है।
    • भारतीय निवेशकों द्वारा श्रीलंका के विभिन्न क्षेत्रों जैसे- पेट्रोलियम, आईटी (IT), वित्तीय सेवाएँ, रियल एस्टेट, दूरसंचार, पर्यटन, बैंकिंग, धातु उद्योग और बुनियादी ढाँचा विकास (रेलवे) आदि में निवेश किया जाता रहा है।
  • श्रीलंका के पर्यटन उद्योग में भारतीय पर्यटकों का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है, एक अध्ययन के मुताबिक श्रीलंका का हर पाँच में से एक पर्यटक भारतीय है।

सांस्कृतिक और शैक्षिक संबंध

  • 29 नवंबर, 1977 को हस्ताक्षरित सांस्कृतिक सहयोग समझौता दोनों देशों के बीच समय-समय पर सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों के आधार के रूप में कार्य करता है।
  • कोलंबो में स्थित भारतीय सांस्कृतिक केंद्र सक्रिय रूप से भारतीय संगीत, नृत्य, हिंदी और योग की कक्षाओं के माध्यम से भारतीय संस्कृति के बारे में जागरूकता बढ़ाता है।
  • कुछ ही समय पूर्व भारत और श्रीलंका ने संयुक्त गतिविधियों के माध्यम से भगवान बुद्ध द्वारा आत्मज्ञान की प्राप्ति की 2600वीं जयंती मनाई थी। इसके अलावा दोनों देशों की सरकारों ने वर्ष 2014 में बौद्ध भिक्षु अनागारिक धर्मपाल की 150वीं जयंती भी मनाई थी
  • इसके अलावा दिसंबर 1998 में एक अंतर-सरकारी पहल के रूप में भारत-श्रीलंका फाउंडेशन की स्थापना की गई थी जिसका उद्देश्य दोनों देशों के नागरिकों के मध्य वैज्ञानिक, तकनीकी, शैक्षिक और सांस्कृतिक सहयोग तथा दोनों देशों की युवा पीढ़ी के बीच संपर्क को बढ़ाना है।

रक्षा संबंध

  • भारत और श्रीलंका के मध्य रक्षा सहयोग का एक लंबा इतिहास रहा है। हाल के कुछ वर्षों में दोनों देशों ने अपने सैन्य संबंधों को मज़बूती प्रदान करने के काफी प्रयास किये हैं।
  • गौरतलब है कि दोनों देशों (भारत और श्रीलंका ) के मध्य संयुक्त सैन्य (मित्र शक्ति) और नौसेना अभ्यास (SLINEX) भी आयोजित किये जाते हैं।
  • भारत द्वारा श्रीलंका की सेना को रक्षा प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाता है।
  • अप्रैल 2019 में भारत और श्रीलंका ने ड्रग एवं मानव तस्करी का मुकाबला करने पर भी एक समझौता किया था।

संबंधों में मतभेद

  • भारत और श्रीलंका के संबंधों में मतभेद की शुरुआत श्रीलंका के गृहयुद्ध के समय से ही हो गई थी। जहाँ एक ओर श्रीलंकाई तमिलों को लगता है कि भारत ने उन्हें धोखा दिया है, वहीं सिंहली बौद्धों को भारत से खतरा महसूस होता है।
  • विदित है कि नवनिर्वाचित राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे के भाई और श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे वर्ष 2015 में राष्ट्रपति चुनाव हार गए थे, हार के बाद राजपक्षे शासन के कई समर्थकों ने उनकी अप्रत्याशित और आश्चर्यजनक हार के लिये भारत को ज़िम्मेदार ठहराया था।
  • इसके अलावा राजपक्षे शासन का चीन की ओर आकर्षण भी भारत के लिये चिंता का विषय है। अपने चुनाव प्रचार के दौरान भी गोतबाया राजपक्षे ने यह बात खुलकर कही थी कि यदि वे सत्ता में आते हैं तो चीन के साथ रिश्तों को मज़बूत करने पर अधिक ज़ोर दिया जाएगा।
  • यह भी सत्य है कि श्रीलंका में चीनी प्रभाव का उदय महिंदा राजपक्षे की अध्यक्षता के समानांतर ही हुआ था। राजपक्षे के कार्यकाल में ही श्रीलंका ने चीन के साथ अरबों डॉलर के आधारिक संरचना संबंधी समझौतों पर हस्ताक्षर किये थे।
  • उपरोक्त तथ्य श्रीलंका में चीन के अनवरत बढ़ते प्रभाव को दर्शाते हैं, जो कि भारत के दृष्टिकोण से बिलकुल भी अनुकूल नहीं है।

श्रीलंका का गृहयुद्ध

  • वर्ष 1948 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्र होने के बाद से ही श्रीलंका या तत्कालीन सीलोन जातीय संघर्ष का सामना कर रहा था।
  • वर्ष 2001 की सरकारी जनगणना के अनुसार, श्रीलंका की मुख्य जातीय आबादी में सिंहली (82%), तमिल (9.4%) और श्रीलंकाई मूर (7.9%) शामिल हैं।
  • ज्ञातव्य है कि सिंहलियों ने औपनिवेशिक काल के दौरान तमिलों के प्रति ब्रिटिश पक्षपात का विरोध किया और आज़ादी के बाद के वर्षों में उन्होंने तमिल प्रवासी बागान श्रमिकों को देश से विस्थापित कर दिया और सिंहल को आधिकारिक भाषा बना दिया।
  • वर्ष 1972 में सिंहलियों ने देश का नाम ‘सीलोन’ से बदलकर श्रीलंका कर दिया और बौद्ध धर्म को राष्ट्र का प्राथमिक धर्म घोषित कर दिया गया।
  • तमिलों और सिंहलियों के बीच जातीय तनाव और संघर्ष बढ़ने के बाद वर्ष 1976 में वेलुपिल्लई प्रभाकरन के नेतृत्व में लिट्टे (LTTE) का गठन किया गया और इसने उत्तरी एवं पूर्वी श्रीलंका, जहाँ अधिकांश तमिल निवास करते थे, में ‘एक तमिल मातृभूमि’ के लिये प्रचार करना प्रारंभ कर दिया।
  • वर्ष 1983 में लिट्टे ने श्रीलंकाई सेना की एक टुकड़ी पर हमला कर दिया, इसमें 13 सैनिकों की मौत हो गई। विदित है कि इस घटनाक्रम से श्रीलंका में दंगे भड़क गए जिसमें लगभग 2,500 तमिल लोग मारे गए।
  • इसके पश्चात् श्रीलंकाई तमिलों और बहुसंख्यक सिंहलियों के मध्य प्रत्यक्ष युद्ध शुरू हो गया। ध्यातव्य है कि भारत ने श्रीलंका के इस गृहयुद्ध में सक्रिय भूमिका निभाई और श्रीलंका के संघर्ष को एक राजनीतिक समाधान प्रदान करने के लिये वर्ष 1987 में भारत-श्रीलंका समझौते पर हस्ताक्षर किये।
  • भारत ने ऑपरेशन पवन के तहत लिट्टे को समाप्त करने के लिये श्रीलंका में इंडियन पीस कीपिंग फोर्स (IPKF) तैनात कर दी। हालाँकि हिंसा बढ़ने के 3 वर्षों बाद ही IPKF को वहाँ से हटा दिया गया।
  • वर्ष 2009 श्रीलंकाई गृहयुद्ध का महत्त्वपूर्ण समय माना जाता है, क्योंकि इसी वर्ष श्रीलंकाई सेना ने लिट्टे को उखाड़ फेंका। ज्ञात हो कि यह वही समय था जब गोतबाया राजपक्षे के भाई महिंदा राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति थे और स्वयं गोतबाया राजपक्षे श्रीलंका के रक्षा सचिव के रूप में कार्य कर रहे थे।

श्रीलंका पर चीन का बढ़ता प्रभाव

  • हाल के कुछ वर्षों में चीन ने नई अवसंरचना परियोजनाओं के लिये श्रीलंका सरकार को अरबों डॉलर का ऋण दिया है, जो हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के दृष्टिकोण से ठीक नहीं है।
  • आँकड़ों के अनुसार, 2008 से 2012 के बीच श्रीलंका का 60 प्रतिशत विदेशी उधार चीन से आया था।
  • श्रीलंका ने अपने हंबनटोटा बंदरगाह को भी 99 साल की लीज पर चीन को सौंप दिया है। माना जा रहा है कि यह बंदरगाह चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में अहम भूमिका निभा सकता है।
  • कोलंबो बंदरगाह के कार्यभार को कम करने के लिये चीन ने तकरीबन एक अरब डॉलर की लागत से श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह का विकास किया था।
  • गौरतलब है कि यह निवेश श्रीलंका को कर्ज के रूप में दिया गया था, परंतु इस बंदरगाह से श्रीलंका को कोई विशेष लाभ नहीं मिल पाया जिससे वह चीन के उधार के बोझ में दब गया।
  • कई जानकार अक्सर श्रीलंका को एक ऐसे देश के रूप में संबोधित करते हैं जो चीन द्वारा वित्तपोषित सार्वजनिक निवेश परियोजनाओं के परिणामस्वरूप कर्ज के जाल में फँस गया है।
  • आँकड़ों के मुताबिक, वर्तमान में श्रीलंका का कुल विदेशी उधार लगभग 55 बिलियन डॉलर का है, जिसमें से तकरीबन 10 प्रतिशत हिस्सा चीन का भी है।

भारत के लिये श्रीलंका का महत्त्व

  • भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिणी सिरे पर स्थित श्रीलंका भारत के लिये रणनीतिक रूप से काफी महत्त्वपूर्ण है।
    • विदित है कि यह द्वीप यूरोप से लेकर पूर्वी एशिया तक सभी प्रमुख समुद्री संचार गलियारों तथा बड़े तेल निर्यातक एवं तेल आयातक देशों के बीच स्थित है जो इसे भू-राजनैतिक दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण बना देता है।
  • श्रीलंका के रणनीतिक महत्त्व को देखते हुए कई जानकर मानते हैं कि श्रीलंका के साथ संबंधों में किसी भी प्रकार का मतभेद देश की भू-राजनैतिक स्थिति को प्रभावित कर सकता है।
    • हिंद महासागर में श्रीलंका की भौगोलिक और रणनीतिक स्थिति को देखते हुए भारत ने अपनी हिंद महासागर संबंध रणनीति में श्रीलंका को विशेष स्थान दिया है।
    • गौरतलब है कि ब्रिटेन ने भी ब्रिटिश भारत और हिंद महासागर की सुरक्षा के लिये श्रीलंका को सामरिक दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण माना था तथा उन्होंने श्रीलंका के पूर्वी तट पर त्रिंकोमाली में एक प्रमुख नौसेना बेस भी विकसित किया था।
  • भारत सदैव ही श्रीलंका का एक मुख्य आर्थिक भागीदार रहा है और दोनों देश काफी सुदृढ़ सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध साझा करते हैं।
    • बीते दिनों श्रीलंका के एक प्रतिनिधिमंडल को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने कहा था कि श्रीलंका ‘नेबरहुड फर्स्ट’ (Neighbourhood First) नीति के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है।

हालिया यात्रा के निहितार्थ

  • विगत कुछ वर्षों से गहरे तनाव का सामना कर रहे भारत और श्रीलंका के संबंधों को गोतबाया राजपक्षे की पहली आधिकारिक यात्रा से एक नई दिशा मिल सकेगी।
  • ज्ञातव्य है कि अपने पहले कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने श्रीलंका के साथ संबंधों को सामान्य करने के कई प्रयास किये थे, परंतु श्रीलंका के राजनीतिक संकट के कारण इसकी संभावनाएँ काफी सीमित हो गईं थीं।
  • पिछले हफ्ते कोलंबो की अपनी यात्रा के दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी संकेत दिये थे कि भारत और श्रीलंका अपने रिश्तों को नए सिरे से शुरू करने के लिये तैयार हैं।
  • साथ ही गोतबाया ने भी इस बात की पुष्टि की थी कि कोलंबो ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाएगा जिससे दिल्ली के हितों को नुकसान पहुँचे। साथ ही उन्हें यह भी उम्मीद है कि दिल्ली श्रीलंका की विदेश और घरेलू नीतियों के संचालन में उसकी स्वतंत्रता का सम्मान करेगा।

निष्कर्ष

गोतबाया ने बार-बार यह पुष्टि की है कि श्रीलंका प्रमुख शक्तियों के मध्य प्रतिद्वंद्विता में फँसना नहीं चाहता और इसीलिये वह तटस्थता की नीति का पालन करेगा। श्रीलंका का यह बड़ा राजनीतिक परिवर्तन भारत के लिये श्रीलंका के साथ अपने संबंध सुधारने हेतु एक अच्छा अवसर साबित हो सकता है। आवश्यक है कि दोनों देशों के प्रतिनिधि द्विपक्षीय वार्ताओं के माध्यम से सभी मतभेदों को सुलझाने का प्रयास करें ताकि इस अवसर का लाभ उठाया जा सके।

प्रश्न: हिंद महासागर में रणनीतिक दृष्टिकोण से श्रीलंका भारत के लिये अति महत्त्वपूर्ण है। श्रीलंका में बढ़ते चीन के प्रभाव के संदर्भ में भारत-श्रीलंका संबंधों की समीक्षा कीजिये।

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