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भारतीय अर्थव्यवस्था

विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहन

  • 12 May 2022
  • 17 min read

यह एडिटोरियल 10/05/2022 को ‘हिंदू बिज़नेसलाइन’ में प्रकाशित “How to Give Manufacturing a Leg-up” लेख पर आधारित है। इसमें उन उपायों के बारे में चर्चा की गई है जो देश के विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये किये जा सकते हैं और इस प्रकार भारत को भविष्य का ‘मैन्युफैक्चरिंग हब’ बना सकते हैं।

संदर्भ

विनिर्माण क्षेत्र पर देश द्वारा नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने हेतु वर्ष 2014 में सरकार द्वारा ‘मेक इन इंडिया’ (Make in India) पहल शुरू की गई। इस क्रम में भारत में विनिर्माण, डिज़ाइन, नवाचार और स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के लिये कई सुधार किये गए।

  • वर्ष 2020 में घोषित ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान भी भारत को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के अपने घोषित लक्ष्य के तहत स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहन देने का उद्देश्य रखता है।
  • भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश और सस्ते श्रम बल की उपलब्धता के कारण देश में विनिर्माण क्षेत्र में वृहत संभावनाएँ मौजूद हैं। हालाँकि वृहत निवेश, कार्यबल की अपस्किलिंग और अवसंरचना उन्नयन कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ अभी अधिकाधिक कार्य किये जाने की आवश्यकता है।

भारत में विनिर्माण क्षेत्र की स्थिति

  • विनिर्माण प्रमुख आर्थिक गतिविधियों में से एक है जिसमें मूल्य वर्द्धन (Value Addition) शामिल है और जिसका अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। भारत में विश्व का पाँचवाँ सबसे बड़ा विनिर्माण आधार मौजूद है।
  • केंद्रीय श्रम मंत्रालय द्वारा आयोजित तिमाही रोज़गार सर्वेक्षण की दूसरी तिमाही की रिपोर्ट के अनुसार चयनित नौ क्षेत्रों में सृजित सभी रोज़गार अवसरों में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान लगभग 39% है।
  • भारत में 45% से अधिक विनिर्माण उत्पादन MSME क्षेत्र से प्राप्त होता है।
    • भारत में विभिन्न कौशल स्तरों पर उपलब्ध मानव पूंजी का विशाल पूल उन फर्मों को एक विशिष्ट प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ प्रदान करता है जो भारत के भीतर विनिर्माण गतिविधियों का संचालन करते हैं।
  • गुज़रते वर्षों में निश्चित रूप से कुछ ऐसे क्षेत्र उभरे हैं जहाँ भारत ने विनिर्माण में नेतृत्वकारी स्थिति प्राप्त कर ली है, जैसे परिधान एवं सहायक साज-सज्जा, वस्त्र, ड्रग्स एवं फार्मास्यूटिकल्स, पेट्रोलियम उत्पादों और मोटर वाहन।
    • हालाँकि सेवाओं के निर्यात में भारत की सफलता जैसी उपलब्धि विनिर्माण क्षेत्र में पाने के लिये भारत को अभी लंबी यात्रा तय करनी है।

भारत में विनिर्माण के प्रोत्साहन के लिये उठाए गए कदम

  • अवसंरचना विकास परियोजनाएँ: उदाहरण के लिये, ‘संपूर्ण सरकार दृष्टिकोण’ (Whole-of-Government Approach) पर निर्मित राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (National Infrastructure Pipeline- NIP) पहले से ही मौजूद है जो वित्त वर्ष 2019-20 से 2024-25 को कवर करती है।
    • ‘इंडिया इन्वेस्टमेंट ग्रिड’ पर उपलब्ध आँकड़े बताते हैं कि 5 मई, 2022 तक की स्थिति के अनुसार कुल 15,454 परियोजनाएँ उपलब्ध हैं, जिनकी कुल परियोजना लागत 1,981.83 बिलियन डॉलर है।
    • मल्टी-मोडल कनेक्टिविटी के साथ ‘प्लग एंड प्ले इंफ्रास्ट्रक्चर’ वाले औद्योगिक स्मार्ट शहरों के एकीकृत विकास को सुविधाजनक बनाने के लिये राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम (National Industrial Corridor Development Programme) लॉन्च किया गया था।
    • इसके अलावा, विभिन्न क्षेत्रों के लिये वर्ष 2020 से कई उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं की घोषणा की गई है, जो ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनाने के लक्ष्य के साथ विनिर्माण को प्रोत्साहित करते हैं। 
  • वेयरहाउस मैन्युफैक्चरिंग (Warehouses Manufacturing): केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) ने बॉन्डेड वेयरहाउसों (bonded warehouses) में विनिर्माण और अन्य कार्यों पर केंद्रित कार्यक्रम का एक नया एवं बेहतर संस्करण प्रस्तुत किया है।
    • ‘वेयरहाउस मैन्युफैक्चरिंग’ से कार्यशील पूंजी की बचत होती है, जो आमतौर पर छोटे उद्यमों के मामले में दुर्लभ होती है और वैश्विक आपूर्ति शृंखला में वितरण कार्यक्रम को संक्षिप्त कर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में MSMEs को बेहतर स्थिति प्राप्त करने में मदद करती है।
    • संगठनों को प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ प्राप्त करने में सक्षम बनाने हेतु CBIC द्वारा ‘बॉन्डेड मैन्युफैक्चरिंग स्कीम’ (Bonded Manufacturing Scheme) को नया रूप दिया गया है।
  • सीमा शुल्क नियम: भारत के भीतर घरेलू विनिर्माण को सीमा शुल्क (शुल्क की रियायती दर पर माल का आयात) नियम जैसे वैधानिक उपायों के माध्यम से भी प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिसे समय-समय पर उद्योग और व्यापार की गतिशील आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए संशोधित किया गया है। 

‘बॉन्डेड मैन्युफैक्चरिंग स्कीम’ 

  • ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम का समर्थन करने के लिये CBIC ने सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 के तहत बॉन्डेड मैन्युफैक्चरिंग स्कीम शुरू की है।
  • इस कार्यक्रम के अंतर्गत कोई विनिर्माण इकाई बिना किसी ब्याज देयता के सीमा शुल्क आस्थगन (Customs duty deferment) के तहत माल (इनपुट और पूंजीगत सामान दोनों) का आयात कर सकती है।
  • इस योजना में कोई निवेश सीमा और निर्यात दायित्व नहीं है।
  • यदि बॉन्डेड वेयरहाउसों में किये गए ऐसे विनिर्माण कार्यों के परिणामस्वरूप माल का निर्यात किया जाता है तो शुल्क पूरी तरह से हटा दिया जाता है।
    • आयात शुल्क केवल उस स्थिति में देय होता है जहाँ तैयार माल या आयातित माल घरेलू बाज़ार में अनुमति पाता है (एक्स-बॉन्डिंग)।
  • बॉन्डेड विनिर्माण कार्यक्रम की ऑनबोर्डिंग पूरी तरह से डिजिटल है और इसके लिये माइक्रोसाइट 'इन्वेस्ट इंडिया' पोर्टल पर उपलब्ध है।

विनिर्माण क्षेत्र के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ:

  • प्रमाणित कारखानों की कमी: दुनिया भर के निगम ISO या BSI प्रमाणित कारखानों से वस्तु खरीदना पसंद करते हैं।
    • चीन में अधिकांश कारखाने ISO या BSI प्रमाणित हैं, लेकिन भारत के कारखानों की यह स्थिति नहीं है। उनमें से अधिकांश किसी भी बुनियादी निरीक्षण मानकों को पूरा नहीं करते हैं।
    • इस तरह के व्यावहारिक मुद्दे गंभीर अंतर्राष्ट्रीय खरीदारों को भारत को सोर्सिंग गंतव्य के रूप में देखने से हतोत्साहित करने के लिये पर्याप्त हैं।
  • अविकसित विनिर्माण क्षेत्र: जबकि पड़ोसी के साथ-साथ प्रतिस्पर्द्धी देश चीन वर्तमान में एक 10-वर्षीय रूपांतरणकारी अभियान ‘मेड इन चाइना 2025’ के मध्य में है और श्रम-गहन विनिर्माण से परे रोबोटिक्स एवं एरोस्पेस जैसे अत्याधुनिक क्षेत्रों में आगे बढ़ रहा है, भारत अभी भी पुरानी सोच और ढर्रे पर आधारित श्रम-गहन विनिर्माण को अपनी ऐसी अर्थव्यवस्था में लाने का लक्ष्य बना रहा है, जहाँ लाखों नए रोज़गार सृजित करने की सख्त ज़रूरत है।
    • यह छोटा सा लक्ष्य भी पिछले दो वर्षों में लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था से प्रभावित हुआ है।
  • कमज़ोर अवसंरचना: भारत की कमज़ोर अवसंरचना विनिर्माण क्षेत्र के लिये एक प्रभावपूर्ण दोष बनी हुई है।
    • भारत हर साल अवसंरचना निर्माण के लिये अपने सकल घरेलू उत्पाद का केवल 3% उपयोग करता है (चीन के सकल घरेलू उत्पाद के 20% की तुलना में)।
    • आज भी भारत की भूतल परिवहन प्रणालियाँ आधुनिक हाई-स्पीड लॉजिस्टिक्स (जो कुशल विनिर्माण की रीढ़ है) की अपेक्षाओं की पूर्ति नहीं कर सकती हैं।
  • अपर्याप्त बिजली आपूर्ति: बाधित और अनिश्चित बिजली आपूर्ति एक और दोष है जो देश के विनिर्माताओं को विशेष हानि की स्थिति में रखती है।
    • भारत का वार्षिक बिजली अंतराल 10% से अधिक है और यहाँ विश्व में सबसे कम प्रति व्यक्ति बिजली खपत में से एक की स्थिति है।
  • योजनाओं की भरमार: इन घोषणाओं में दो प्रमुख कमियाँ थीं-
    • सर्वप्रथम, विनिर्माण संबंधी योजनाओं में से अधिकांश निवेश के लिये विदेशी पूंजी और उत्पादन के लिये वैश्विक बाज़ारों तक पहुँच पर बहुत अधिक निर्भर रहे हैं।
      • इसने एक अंतर्निहित अनिश्चितता उत्पन्न की, क्योंकि घरेलू उत्पादन की योजना कहीं और मांग एवं आपूर्ति की स्थिति के अनुसार बनाई जानी थी।
    • दूसरा, नीति-निर्माताओं ने अर्थव्यवस्था में तीसरे घाटे की उपेक्षा की जो कि कार्यान्वयन है।

भारत में विनिर्माण के प्रोत्साहन के  लिये किये जा सकने वाले उपाय

  • अवसंरचना में निवेश: वृहत अवसंरचना निवेश पर अधिकाधिक ध्यान केंद्रित करते हुए विनिर्माण का समर्थन करने के लिये एक बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिये क्योंकि यह स्वयं ही विकास के वृहत अवसर उत्पन्न करेगा।
    • अनुसंधान से पता चला है कि दृढ़ अवसंरचना में निवेश से विनिर्माण की रसद लागत में भी कमी आती है।
  • नीतिगत हस्तक्षेप: भारत की विनिर्माण रणनीति का एक अंतिम वैचारिक खंड यह होना चाहिये कि नीतियों का ऐसा रूपाकार हो जो श्रमिकों के कौशल की वृद्धि करता हो और फर्मों के लिये वित्त तक पहुँच को बेहतर बनाता हो।
    • फर्मों की वित्त तक अधिकाधिक पहुँच अर्थव्यवस्था में एक सामान्य आवश्यकता है, लेकिन निर्माण फर्मों को निश्चित पूंजी निवेश की आवश्यकता होने की अधिक संभावना रहती है, जबकि विस्तार, उन्नयन या कार्यशील पूंजी के लिये पर्याप्त वित्त की कमी से वे अधिक आघात पाते हैं।
  • विवेकपूर्ण आयात नीति: आयात नीति के विवेकपूर्ण उपयोग के माध्यम से देश के भीतर उत्पादन को नियंत्रित किया जा सकता है ताकि अर्थव्यवस्था में अधिक से अधिक रोजगार पैदा करने के उद्देश्य की पूर्ति की जा सके।
    • अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में निर्यात (सीमा शुल्क के समर्थन के साथ) को देश के भीतर विनिर्माण क्षमता से उत्पन्न घरेलू अधिशेष से भी बढ़ाया जा सकता है।
  • ‘पॉलिसी कैजुअलनेस’ को खत्म करना: कार्यान्वित कर सकने की तैयारी के बिना ही नीति घोषणाओं का सिलसिला ‘पॉलिसी कैजुअलनेस’ या नीति-अनौपचारिकता का परिदृश्य बनाता है। सरकार को अपने निर्णयों में कार्यान्वयन घाटे के निहितार्थों को भी ध्यान में रखना होगा।
    • सुदृढ़ और सावधानीपूर्वक तैयार किये गए नीति कार्यान्वयन से भारत के समग्र निवेश माहौल में सुधार आएगा, जिससे निवेश, रोज़गार अवसरों और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
  • स्थिर बिजली आपूर्ति: उद्योगों के विकास को बढ़ावा देने के लिये स्थिर, कम लागतपूर्ण और निर्बाध बिजली की आपूर्ति महत्त्वपूर्ण है।
    • यद्यपि बिजली की उपलब्धता में काफी हद तक सुधार हुआ है, लेकिन भारत को विनिर्माण विकास के लाभों को प्राप्त करने के लिये औद्योगिक स्तर पर इसे जल्द से जल्द सुनिश्चित करना चाहिये।
  • राज्य विशिष्ट योजनाएँ: वर्तमान में विनिर्माण मुख्य रूप से महाराष्ट्र और गुजरात जैसे कुछ राज्यों में केंद्रित है जो भारत के भौगोलिक क्षेत्र के एक बड़े हिस्से को कवर करते हैं।
    • आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी वृहत भूमि क्षेत्र उपलब्ध हैं जो भारतीय विनिर्माण की सफलता की कहानियों में योगदान कर सकते हैं।
    • इन राज्यों में निम्न विनिर्माण गतिविधि के कारणों की सावधानीपूर्वक जाँच की जानी चाहिये और इसके आधार पर केंद्र सरकार द्वारा सक्रिय रूप से समर्थन देते हुए राज्य विशिष्ट औद्योगीकरण रणनीतियों को मिशन मोड में तैयार और कार्यान्वित करने की आवश्यकता है।
  • कौशल प्रदान करना: स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षण की गुणवत्ता में सुधार किया जाना चाहिये। शिक्षा प्रणाली के भीतर उच्च गुणवत्तापूर्ण व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिये।
    • भारत की श्रम उत्पादकता पिछले दशक में बढ़ी है, लेकिन चीन की तुलना में यह कम है। वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धा के लिये इसे संबोधित किया जाना चाहिये। नई शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की शुरूआत एक स्वागतयोग्य कदम है।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘भारत के विनिर्माण क्षेत्र के लिये नीतिगत दृष्टिकोण को निवेश के लिये एक अनुकूल वातावरण का निर्माण करने, आधुनिक एवं कुशल अवसंरचना को विकसित करने और विदेशी पूंजी के लिये नए क्षेत्रों को खोलने की आवश्यकता है।" टिप्पणी कीजिये।

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