नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


सामाजिक न्याय

प्रवासियों का समर्थन

  • 08 Apr 2022
  • 11 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 05/04/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Push the Policy Needle Forward on Migrant Support” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में प्रवासी कामगारों के लिये नीति निर्माण की आवश्यकता और संबद्ध चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

देशव्यापी लॉकडाउन के परिदृश्य में भूख, थकावट और हिंसा का सामना करते सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल अपने गाँव-घरों को लौटते प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा पर देश हैरान रह गया था।

प्रवासियों की विकट परिस्थितियों को देखते हुए ही सरकारों और नागरिक समाज द्वारा समान रूप से उन पर विशेष ध्यान रखते हुए बड़े पैमाने पर राहत अभियान चलाए गए।

‘वन नेशन वन राशन कार्ड’ (ONORC) परियोजना का विस्तार और एफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्पलेक्सेज़ (Affordable Rental Housing Complexes- ARHC) योजना के साथ ही ई- श्रम पोर्टल की शुरूआत ने आशा की नई किरण जगाई। हालाँकि प्रवासियों की कथा अभी भी भारत में संकट की गाथा बनी हुई है।

प्रवासन और प्रवासी

महत्त्व 

  • प्रवासन कुशल श्रम, अकुशल श्रम और सस्ते श्रम की दक्षतापूर्ण उपलब्धता के साथ श्रम की मांग और आपूर्ति के बीच के अंतराल को भरता है।
  • यह बाहरी दुनिया के साथ संपर्क और अंतःक्रिया के माध्यम से प्रवासियों के ज्ञान एवं कौशल की वृद्धि करता है।
  • यह रोज़गार और आर्थिक समृद्धि की संभावनाओं को भी बढ़ाता है जो बदले में जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाता है।
  • प्रवासियों की आर्थिक सेहत उद्गम क्षेत्रों में परिवारों को जोखिम के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करती है और उपभोक्ता व्यय तथा स्वास्थ्य, शिक्षा एवं परिसंपत्ति सृजन में निवेश की वृद्धि करती है।

प्रवासी श्रमिकों की वर्तमान स्थिति 

  • वर्तमान में देश का एक तिहाई कार्यबल गतिशील है। भारत में प्रवासी श्रमिक विनिर्माण, निर्माण, आतिथ्य, लॉजिस्टिक्स और वाणिज्यिक कृषि जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को ऊर्जा प्रदान करते हैं।
  • वर्ष 1991 के बाद से लगभग 300 मिलियन भारतीयों के गरीबी उन्मूलन (जो कृषि कार्य से पलायन/प्रवासन से प्रेरित रहा था) की उपलब्धि पर कोविड-19 ने पानी फेर दिया है।
  • बार-बार किये गए सर्वेक्षणों में पाया गया है कि शहरों की ओर पुनः लौटने के बाद भी प्रवासी श्रमिक परिवारों की आय महामारी-पूर्व के स्तर से निम्न बनी हुई है। प्रवासियों को कम कार्य मिल रहा है और उनके बच्चे कम आहार प्राप्त कर रहे हैं।

प्रवासियों के लिये नीति परिदृश्य 

  • नीतिगत विमर्श में प्रवासियों को वापस लाने के स्पष्ट आर्थिक और मानवीय तर्क के बावजूद, वर्तमान नीति परिदृश्य खंडित और बदतर स्थिति में ही है।
  • हाल ही में नीति आयोग ने अधिकारियों और नागरिक समाज के सदस्यों के एक कार्यकारी उपसमूह के साथ राष्ट्रीय प्रवासी श्रम नीति (National Migrant Labour policy) का मसौदा तैयार किया है।
  • मसौदे में प्रवासन को विकास प्रक्रिया के एक अभिन्न अंग के रूप में स्वीकार करने की अनुशंसा की गई है और कहा गया है कि सरकारी नीतियों को बाधाकारी नहीं बनना चाहिये बल्कि आंतरिक प्रवास को सुविधाजनक बनाने की कोशिश करनी चाहिये।

प्रवासन नीति की गति को कौन से कारक धीमा कर रहे हैं?

  • राजनीतिकरण: भारत में प्रवासन एक अत्यधिक राजनीतिकृत परिघटना है जहाँ राज्य प्रवासन की राजनीतिक अर्थव्यवस्था से अत्यधिक प्रभावित हैं।
    • ‘गंतव्य राज्य’ (Destination States) आर्थिक आवश्यकताओं (जहाँ प्रवासी श्रम की आवश्यकता होती है) और राजनीतिक आवश्यकताओं (जहाँ रोज़गार और सामाजिक सुरक्षा पर अधिवास प्रतिबंध लगाने की स्थानीयतावादी या ‘नेटिविस्ट’ नीतियों को प्रश्रय दिया जाता है) के बीच एक तनाव का अनुभव करते हैं।  
    • हालाँकि ‘प्रेषक राज्य’ (Sending States) ‘अपने लोगों’ की सेवा करने के लिये अत्यधिक प्रेरित होते हैं क्योंकि वे अपने स्रोत गाँवों में मतदान करते हैं।
    • आंतरिक प्रवास के प्रति नीति राज्य-विशिष्ट गणनाओं से प्रभावित होती है कि प्रवासियों के लिये वित्तीय और प्रशासनिक संसाधनों का निवेश करने से किस राजनीतिक लाभ (या हानि) की स्थिति बनेगी।
  • प्रवासियों की गलत पहचान: प्रवासी दो बड़ी श्रेणियों के अंतर्गत शामिल हैं जो लंबे समय से नीति-निर्माताओं के लिये कठिनाई का कारण रही हैं: असंगठित श्रमिक और शहरी गरीब। यहाँ तक कि ई-श्रम पोर्टल भी प्रवासियों की सही पहचान करने और उन्हें लक्षित करने में असमर्थ रहा है।
    • प्रमुख शहरी गंतव्यों में नीतिगत हस्तक्षेप शहरी गरीबों और निम्न-आय वाले प्रवासियों के बीच अंतर करने में भ्रमित बना रहा है।
    • इस परिदृश्य में प्रवासी संबंधी चिंताओं को संबोधित करने के लिये गंदी बस्ती विकास या ‘स्लम डेवलपमेंट’ ही प्राथमिक माध्यम बना रहा है, जबकि वास्तव में अधिकांश प्रवासी अपने कार्यस्थलों पर ही निवास करते हैं जो नीति दृष्टिकोण से पूरी तरह ओझल बने हुए हैं।
  • प्रवासन के संबंध में आधिकारिक डेटासेट्स की विफलता: भारत में आंतरिक प्रवास के वास्तविक पैमाने और आवृत्ति को दर्ज करने में आधिकारिक डेटासेट्स विफल रहे हैं (इस बात को अब स्वीकार भी किया जाता है) जो प्रवासन नीति पर विमर्श को स्पष्ट रूप से गतिहीन बनाते हैं।
    • केवल एक ही स्थानिक जगह को समय-समय पर रिकॉर्ड करने के लिये डिज़ाइन किये गए डेटा सिस्टम ने बहु-स्थानीय प्रवासी परिवारों से संबद्ध 500 मिलियन लोगों हेतु कल्याण वितरण के लिये बड़ी चुनौतियाँ पेश कर रखी हैं।
    • कोविड-19 महामारी ने प्रवासी माता-पिता के साथ आने वाले बच्चों की शिक्षा एवं उनका टीकाकरण या विभिन्न स्थानों पर प्रवासी महिलाओं के लिये मातृत्व लाभ सुनिश्चित कर सकने जैसी समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया है।

आगे की राह 

  • केंद्र की भूमिका: यदि केंद्र रणनीतिक नीति-मार्गदर्शन और अंतर-राज्य समन्वय के लिये एक मंच प्रदान कर सक्रिय भूमिका निभाए तो प्रवासियों के हितों की पूर्ति हो सकेगी।
    • राज्य-स्तरीय राजनीतिक अर्थव्यवस्था की बाधाओं के संदर्भ में ‘गंतव्य राज्यों’ में अंतर-राज्य प्रवासी श्रमिकों के मुद्दों को संबोधित करने में केंद्र की भूमिका विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
  • प्रवासन नीति को लागू करना: एक ऐसे समय, जब आर्थिक सुधार और समावेशी विकास अति आवश्यक नीतिगत लक्ष्य के रूप में कार्यान्वित हैं, प्रवासन नीति के संबंध में देरी करना उपयुक्त नहीं होगा।
    • नीति आयोग की प्रवासी श्रमिकों पर मसौदा नीति नीतिगत प्राथमिकताओं को स्पष्ट करने और उपयुक्त संस्थागत ढाँचे का संकेत देने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है और इसे शीघ्र ही प्रवर्तित किया जाना चाहिये। 
    • स्थान पर विचार किये बिना प्रवासियों को सुरक्षा जाल प्रदान करने और इसके साथ ही सुरक्षित एवं किफायती रूप से प्रवास कर सकने की उनकी क्षमता को बढ़ाने के लिये की गई रणनीतिक पहलें प्रवासी-सहायक नीति की गति को बनाए रखने में भी योगदान करें।
  • प्रवासियों को मान्यता देना: भारत की शहरी आबादी के अंग के रूप में चक्रीय प्रवासियों को मान्यता देना अधिकारियों पर कम से कम इस बात पर विचार करने के लिये दबाव रखेगा कि प्रस्तावित नीतियाँ इन समुदायों को कैसे प्रभावित कर सकती हैं।
  • महिला प्रवासी: विशेष उपायों को खासकर प्रवासी महिलाओं की स्थिति को भी ध्यान में रखना चाहिये, जो मुख्य रूप से घरेलू कार्यों में संलग्न होती हैं।
    • यद्यपि नई नीति का उद्देश्य सभी प्रकार के हाशिए पर स्थित प्रवासियों का समावेशन करना है, इसमें घरेलू कामगारों के समक्ष विद्यमान चुनौतियों को स्पष्ट रूप से संबोधित किया जाना चाहिये।
    • उनका बहिर्वेशित बने रहना बहुत आसान होगा क्योंकि भारत ने ‘घरेलू कामगारों पर ILO कन्वेंशन’ की पुष्टि नहीं की है और ‘घरेलू कामगार विधेयक 2017अभी तक अधिनियम नहीं बन पाया है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में प्रवासन नीति की गति को धीमा करने वाले प्रमुख कारकों और प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं को संबोधित करने में सरकार की भूमिका पर चर्चा कीजिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow