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डेली न्यूज़

  • 12 Dec, 2022
  • 59 min read
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सामाजिक न्याय

मुस्लिम महिलाओं हेतु न्यूनतम विवाह योग्य आयु में वृद्धि

प्रिलिम्स के लिये:

महिलाओं हेतु न्यूनतम विवाह योग्य आयु में वृद्धि, बाल विवाह, जया जेटली टास्क फोर्स, महिला अधिकारिता और लैंगिक समानता।

मेन्स के लिये:

न्यूनतम विवाह आयु संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women- NCW) द्वारा मुस्लिम महिलाओं के लिये विवाह की न्यूनतम आयु को अन्य धर्मों के लोगों के समान करने के लिये दायर याचिका पर जवाब देने के लिये कहा।

विवाह हेतु न्यूनतम आयु कानूनी ढाँचा

  • पृष्ठभूमि:
    • भारत में विवाह की न्यूनतम आयु पहली बार शारदा अधिनियम, 1929 के रूप में जाने जाने वाले कानून द्वारा निर्धारित की गई थी। बाद में इसका नाम बदलकर बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम (Child Marriage Restraint Act- CMRA), 1929 कर दिया गया।
    • वर्ष 1978 में लड़कियों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़कों के लिये 21 वर्ष करने के लिये CMRA में संशोधन किया गया था।
    • बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम (Prohibition of Child Marriages Act- PCMA), 2006 नामक नए कानून में भी यही स्थिति बनी हुई है, जिसने CMRA, 1929 का स्थान लिया है।
  • वर्तमान:
    • हिंदुओं के लिये हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 लड़कियों के लिये न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़कों के लिये न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित करता है।
    • इस्लाम में नाबालिग की शादी जो तरुण अवस्था (प्यूबर्टी) प्राप्त कर चुकी है, वैध मानी जाती है।
    • विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 भी क्रमशः महिलाओं और पुरुषों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु 18 एवं 21 वर्ष निर्धारित करते हैं।
    • शादी की नई उम्र को लागू करने के लिये इन कानूनों में संशोधन किये जाने की उम्मीद है।
      • वर्ष 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महिलाओं के लिये विवाह की कानूनी आयु 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष करने का प्रस्ताव दिया।

महिलाओं के कम उम्र में विवाह संबंधी मुद्दे:

  • मानवाधिकारों का उल्लंघन: बाल विवाह महिलाओं के मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है और नीति निर्माताओं का इस पर ध्यान नहीं जाता है।
    • इन बुनियादी अधिकारों में शिक्षा का अधिकार, आराम और अवकाश का अधिकार, मानसिक या शारीरिक शोषण से सुरक्षा का अधिकार (बलात्कार एवं यौन शोषण सहित) शामिल हैं।
  • महिलाओं का अशक्तीकरण: चूँकि बालिकाएँ अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पाती हैं, इसलिये वे आश्रित और शक्तिहीन बनी रहती हैं, जो लैंगिक समानता प्राप्त करने की दिशा में एक बड़ी बाधा के रूप में कार्य करती है।
  • संबद्ध समस्याएँ: बाल विवाह के साथ ही किशोर गर्भावस्था एवं चाइल्ड स्टंटिंग, जनसंख्या वृद्धि, बच्चों के खराब लर्निंग आउटकम और कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी की हानि जैसे परिणाम भी जुड़ जाते हैं।
    • घर में किशोर पत्नियों का निम्न दर्जा आमतौर पर उन्हें लंबे समय तक घरेलू श्रम, बदतर पोषण और एनीमिया की समस्या, सामाजिक अलगाव, घरेलू हिंसा और घरेलू विषयों में निर्णय लेने की कम शक्तियों की ओर धकेलता है।
    • कमज़ोर शिक्षा, कुपोषण और कम आयु में गर्भावस्था बच्चों के जन्म के समय कम वजन का कारण बनती है, जिससे कुपोषण का अंतर-पीढ़ी चक्र बना रहता है।

निष्कर्ष:

  • विवाह संबंधी वर्तमान कानून आयु-केंद्रित हैं और किसी धर्म विशेष इसमें कोई अपवाद नहीं है और 'युवावस्था' मात्र के आधार पर वर्गीकरण का कोई वैज्ञानिक समर्थन नहीं है और न ही विवाह करने की क्षमता के साथ कोई प्रत्यक्ष संबंध है।
  • एक व्यक्ति जिसने तरुणावस्था प्राप्त कर ली है वह प्रजनन के लिये जैविक रूप से सक्षम हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उक्त व्यक्ति मानसिक या शारीरिक रूप से यौन क्रियाओं में संलग्न होने और बच्चे को जन्म देने के लिये पर्याप्त रूप से परिपक्व है।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

विश्व मलेरिया रिपोर्ट 2022

प्रिलिम्स के लिये:

मलेरिया, मलेरिया को नियंत्रित करने हेतु किये जाने वाले प्रयास

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य, मलेरिया और इसका उन्मूलन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा विश्व मलेरिया रिपोर्ट 2022 जारी की गई।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • मलेरिया के कारण हुई मौतें:
    • मलेरिया जैसी बीमारी से जूझने वाले अनेकों देश कोविड-19 महामारी के बावजूद वर्ष 2021 में मलेरिया के विरुद्ध मज़बूती से डटे रहे और इससे मलेरिया संबद्ध मामलों और मौतों में स्थिरता आई है।
      • महामारी के पहले वर्ष में मलेरिया से होने वाली मृत्यु 625,000 से घटकर वर्ष 2021 में 619,000 हो गई, लेकिन फिर भी यह वर्ष 2019 में महामारी पूर्व के वर्ष में हुई 568,000 मौतों से ही अधिक रही।
  • मलेरिया के मामले:
    • मलेरिया के मामलों में वृद्धि देखी गई लेकिन इसकी दर धीमी रही, आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2019 में 232 मिलियन मामलों, वर्ष 2020 में 247 मिलियन मामले और वर्ष में 2021 में 247 मिलियन मामले दर्ज किये गए।
  • मलेरिया जैसी बीमारी से त्रस्त देश:
    • मलेरिया जैसी बीमारी से त्रस्त देशों की संख्या 11 है, उनमे से प्रमुख कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, घाना, भारत, नाइज़र और संयुक्त गणराज्य तंज़ानिया हैं जहाँ मलेरिया से होने वाली मौतों में गिरावट दर्ज की गई है।
    • लेकिन फिर भी इन देशों के कारण बीमारी संबंधी वैश्विक दबाव में वृद्धि होती है।
  • नियंत्रण हेतु देशों द्वारा किये जाने वाले उपाय:
    • कीटनाशक-उपचारित मच्छरदानी (Insecticide-treated bednets- ITNs) प्रमुख वेक्टर नियंत्रण उपाय हैं जिनका उपयोग स्थानिक देशों द्वारा किया जाता है।
    • वर्ष 2021 में इंटरमिटेंट प्रिवेंटिव ट्रीटमेंट इन प्रेग्नेंसी (IPTP) का प्रचलन वर्ष 2020 की तुलना में स्थिर रहा।
  • मलेरिया को समाप्त करने में बाधाएँ:
    • मलेरिया को समाप्त करने की प्रक्रिया को बाधित करने वाली बाधाओं में शामिल हैं - उत्परिवर्तन परजीवी, जिन पर रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्ट का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, दवाओं के प्रतिरोध में वृद्धि और विशेष रूप से अफ्रीका में शहरी-अनुकूलित मच्छरों का आक्रमण।
      • मलेरिया को हराने में मदद के लिये नए उपकरण का उपयोग करने हेतु धन की तत्काल आवश्यकता है।

मलेरिया

  • परिचय:
    • मलेरिया एक मच्छर जनित रक्त रोग (Mosquito Borne Blood Disease) है।
    • जो प्लाज़्मोडियम परजीवी (Plasmodium Parasites) के कारण होता है। यह मुख्य रूप से अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और एशिया के उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है।
    • इस रोग की रोकथाम एवं इलाज़ दोनों संभव हैं।
  • प्रसार:
    • इस परजीवी का प्रसार संक्रमित मादा एनाफिलीज़ मच्छरों (Female Anopheles Mosquitoes) के काटने से होता है।
      • मानव शरीर में प्रवेश करने के बाद यकृत कोशिकाओं के भीतर इन परजीवियों गुणात्मक वृद्धि होती है। उसके बाद लाल रक्त कोशिकाओं (Red Blood Cells- RBC) को नष्ट कर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप RBCs की क्षति होती है।
    • ऐसी 5 परजीवी प्रजातियांँ हैं जो मनुष्यों में मलेरिया संक्रमण का कारण हैं, इनमें से 2 प्रजातियाँ- प्लाज़्मोडियम फाल्सीपेरम (Plasmodium Falciparum) और प्लाज़्मोडियम विवैक्स (Plasmodium Vivax) हैं, जिनसे मलेरिया संक्रमण का सर्वाधिक खतरा विद्यमान है।
  • लक्षण:
    • मलेरिया के लक्षणों में बुखार और फ्लू जैसे लक्षण शामिल होते हैं, जिसमें ठंड लगना, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द और थकान महसूस होती है।
  • मलेरिया का टीका:
    • RTS,S/AS01 जिसे मॉसक्यूरिक्स (Mosquirix) के नाम से भी जाना जाता है, एक इंजेक्शन वैक्सीन है। इस टीके को एक लंबे वैज्ञानिक परीक्षण के बाद प्राप्त किया गया है जो कि पूर्णतः सुरक्षित है। इस टीके के प्रयोग से मलेरिया का खतरा 40 प्रतिशत तक कम हो जाता है तथा इसके परिणाम अब तक के टीकों में सबसे अच्छे देखे गए हैं।
    • इसे ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (GlaxoSmithKline- GSK) कंपनी द्वारा विकसित किया गया था तथा इसे वर्ष 2015 में यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी (European Medicines Agency) द्वारा अनुमोदित किया गया।
    • RTS,S वैक्सीन मलेरिया परजीवी, प्लाज़्मोडियम पी. फाल्सीपेरम (Plasmodium P. Falciparum) जो कि मलेरिया परजीवी की सबसे घातक प्रजाति है, के विरुद्ध प्रतिरक्षा प्रणाली को विकसित करती है।

मलेरिया नियंत्रण के प्रयास:

  • वैश्विक:
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अपनी 'ई-2025 पहल' के अंतर्गत वर्ष 2025 तक मलेरिया उन्मूलन क्षमता वाले 25 देशों की पहचान की है।
    • मलेरिया के लिये WHO की वैश्विक तकनीकी रणनीति 2016-2030 का उद्देश्य वर्ष 2020 तक मलेरिया के मामलों और मृत्यु दर को कम से कम 40%, 2025 तक कम से कम 75% और वर्ष 2015 की बेसलाइन के मुकाबले वर्ष 2030 तक कम से कम 90% तक कम करना है।
  • भारत:
    • भारत में मलेरिया उन्मूलन के प्रयास वर्ष 2015 में शुरू किये गए थे तथा वर्ष 2016 में स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय के नेशनल फ्रेमवर्क फॉर मलेरिया एलिमिनेशन (NFME) की शुरुआत के बाद इन प्रयासों में और अधिक तेज़ी आई।
      • NFME मलेरिया के लिये WHO की वैश्विक तकनीकी रणनीति 2016–2030 (GTS) के अनुरूप है। ज्ञात हो कि वैश्विक तकनीकी रणनीति WHO के वैश्विक मलेरिया कार्यक्रम (GMP) का मार्गदर्शन करती है।
    • मलेरिया उन्मूलन के लिये राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (2017-22) जुलाई 2017 में शुरू की गई थी जिसमें आगामी पांँच वर्षों हेतु रणनीति निर्धारित की गई है।
      • यह मलेरिया की स्थानिकता के आधार पर देश के विभिन्न हिस्सों में वर्ष-वार उन्मूलन का लक्ष्य प्रदान करता है।
    • ‘हाई बर्डन टू हाई इम्पैक्ट’ (High Burden to High Impact-HBHI) पहल का कार्यान्वयन जुलाई 2019 में चार राज्यों (पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश) में शुरू किया गया था।
    • इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने मलेरिया उन्मूलन अनुसंधान गठबंधन-भारत (MERA-India) की स्थापना की है जो मलेरिया नियंत्रण पर काम करने वाले भागीदारों का एक समूह है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):  

प्रश्न. क्लोरोक्वीन जैसी दवाओं के लिये मलेरिया परजीवी के व्यापक प्रतिरोध ने मलेरिया से निपटने हेतु एक मलेरिया वैक्सीन विकसित करने के प्रयासों को प्रेरित किया है। एक प्रभावी मलेरिया टीका विकसित करना कठिन क्यों है? (2010)

(a) मलेरिया प्लाज़्मोडियम की कई प्रजातियों के कारण होता है।
(b) प्राकृतिक संक्रमण के दौरान मनुष्य मलेरिया के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित नहीं करता है।
(c) टीके केवल बैक्टीरिया के खिलाफ विकसित किये जा सकते हैं।
(d) मनुष्य केवल एक मध्यवर्ती मेज़बान है, निर्धारित मेज़बान नहीं है।

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • मलेरिया एक जानलेवा बीमारी है जो प्लाज़्मोडियम परजीवी के कारण होती है, यह संक्रमित मादा एनाफिलीज़ मच्छरों के माध्यम से लोगों में फैलती है।
  • मलेरिया परजीवी में प्रतिरक्षा प्रणाली से बचने की असाधारण क्षमता होती है, जो एक प्रभावी मलेरिया वैक्सीन विकसित करने में कठिनाई को संदर्भित करती है।
  • RTS,S/AS01 (RTS,S) छोटे बच्चों में मलेरिया के खिलाफ आंशिक सुरक्षा प्रदान करने वाला पहला और अब तक का एकमात्र टीका है।

अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन

प्रिलिम्स के लिये:

क्रिप्टोग्राफिक कुंजियाँ, डेटा सुरक्षा, डेटा सुरक्षा कानून।

मेन्स के लिये:

एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन के लाभ और हानि।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में Apple ने घोषणा की है कि वह आईक्लाउड (iCloud) पर एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन (E2EE) द्वारा संरक्षित डेटा पॉइंट्स को 14 से 23 श्रेणियों तक बढ़ाएगा।

घोषणा का उद्देश्य:

  • Apple द्वारा डेटा-ब्रीच-रिसर्च (data-breach-research) के अनुसार, वर्ष 2013 और 2021 के बीच डेटा ब्रीच की कुल संख्या तीन गुना से अधिक हो गई। अकेले वर्ष 2021 में 1.1 विधेयकियन व्यक्तिगत रिकॉर्ड का डेटा सामने आया।
  • एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन के साथ, क्लाउड में डेटा का उल्लंघन होने की स्थिति में भी उपयोगकर्त्ता का डेटा सुरक्षित रहेगा। अच्छी तरह से वित्त पोषित समूहों द्वारा शुरू किये गए हैकिंग हमलों के लक्ष्यों हेतु सुरक्षा की अतिरिक्त परत मूल्यवान होगी।

एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन:

  • परिचय:
    • एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन एक संचार प्रक्रिया है जो दो उपकरणों के बीच साझा किये जा रहे डेटा को एन्क्रिप्ट करती है।
    • यह क्लाउड सेवा प्रदाताओं, इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (ISPs) और साइबर अपराधियों जैसे तीसरे पक्षों को डेटा तक पहुँचने से रोकता है, विशेषतः जब डेटा स्थानांतरित किया जा रहा हो।
  • तंत्र:
    • संदेशों को एन्क्रिप्ट और डिक्रिप्ट करने के लिये उपयोग की जाने वाली क्रिप्टोग्राफिक कुंजियों को एंडपॉइंट्स पर संग्रहीत किया जाता है।
    • एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन की प्रक्रिया एक एल्गोरिथ्म का उपयोग करती है जो मानक पाठ को अपठनीय प्रारूप में बदल देती है।
    • इस प्रारूप को केवल डिक्रिप्शन कुंजियों वाले लोगों द्वारा अनस्क्रैम्बल किया और पढ़ा जा सकता है, जो केवल एंडपॉइंट्सं पर संग्रहीत होते हैं और सेवा प्रदान करने वाली कंपनियों सहित किसी भी तीसरे पक्ष के साथ नहीं।
  • उपयोग:
    • व्यावसायिक दस्तावेज़ों, वित्तीय विवरणों, कानूनी कार्यवाहियों और व्यक्तिगत वार्तालापों को स्थानांतरित करते समय E2EE का लंबे समय से उपयोग किया जाता रहा है।
    • संग्रहीत डेटा तक पहुँचने के दौरान इसका उपयोग उपयोगकर्त्ताओं के प्राधिकरण को नियंत्रित करने के लिये भी किया जा सकता है।
    • संचार को सुरक्षित करने के लिये एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन का उपयोग किया जाता है।
    • इसका उपयोग पासवर्ड सुरक्षित करने, संग्रहीत डेटा की सुरक्षा और क्लाउड स्टोरेज पर डेटा की सुरक्षा के लिये भी किया जाता है।

एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन के लाभ (E2EE):

  • संप्रेषण में सुरक्षा:
    • एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन सार्वजनिक कुंजी क्रिप्टोग्राफी का उपयोग करता है, जो एंडपॉइंट उपकरणों पर निजी कुंजी संग्रहीत करता है। संदेशों को केवल इन कुंजियों का उपयोग करके डिक्रिप्ट किया जा सकता है, इसलिये केवल एंडपॉइंट डिवाइस तक पहुँच रखने वाले लोग ही संदेश को पढ़ने में सक्षम होते हैं।
  • तीसरे पक्ष से सुरक्षा::
    • E2EE यह सुनिश्चित करता है कि उपयोगकर्त्ता डेटा सेवा प्रदाताओं, क्लाउड स्टोरेज प्रदाताओं और एन्क्रिप्टेड डेटा को प्रबंधित करने वाली कंपनियों सहित अनुचित पार्टियों से सुरक्षित है।
  • हस्तक्षेप रहित:
    • डिक्रिप्शन कुंजी को E2EE के साथ प्रदान करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह प्राप्तकर्ता के पास पहले से ही मौज़ूद होती है।
    • यदि सार्वजनिक कुंजी के साथ एन्क्रिप्ट किया गया किसी संदेश भेजे जाने के दौरान किसी प्रकार की छेड़छाड़ की जाती है, तो प्राप्तकर्त्ता इसे डिक्रिप्ट नहीं कर पाएगा छेड़छाड़ की गई सामग्री तक पहुँच की सुविधा भी नहीं रहेगी।
  • अनुपालन:
    • कई उद्योग विनियामक अनुपालन कानूनों से बँधे हैं जिनके लिये एन्क्रिप्शन-स्तर की डेटा सुरक्षा की आवश्यकता होती है।
    • E2EE डेटा को अपठनीय बनाकर उसे सुरक्षित रखने में संगठनों की मदद कर सकता है।

E2EE से हानि:

  • समापन बिंदुओं को परिभाषित करने में जटिलता:
    • कुछ E2EE कार्यान्वयन एन्क्रिप्टेड डेटा को ट्रांसमिशन के दौरान कुछ बिंदुओं पर एन्क्रिप्ट और पुनः एन्क्रिप्ट करने की अनुमति देते हैं।
    • यह संचार सर्किट के समापन बिंदुओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित और अलग करता है। यदि एंडपॉइंट्स/समापन बिंदुओं से छेड़छाड़ की जाती है, तो एन्क्रिप्टेड डेटा प्रकट हो सकता है।
  • बहुत अधिक गोपनीयता:
    • सरकार और कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ चिंता व्यक्त करती हैं कि E2EE अवैध सामग्री साझा करने वाले लोगों की रक्षा कर सकता है क्योंकि सेवा प्रदाता कानून प्रवर्तन को सामग्री तक पहुँच प्रदान करने में असमर्थ हैं।।
  • मेटाडेटा हेतु सुरक्षा का अभाव:
    • हालाँकि संप्रेषण में संदेश एन्क्रिप्टेड होते हैं, सन्देश से संबंधित सूचना जैसे संदेश की तिथि और भेजने वाले की जानकारी अभी भी दिखाई दे रही होती है और यह डेटा का दुरुपयोग करने वालों के लिये सहायक हो सकती है।

भारत में एन्क्रिप्शन के लिये कानूनी ढाँचा:

  • न्यूनतम एन्क्रिप्शन मानक:
    • भारत में एन्क्रिप्शन संबंधी  कोई विशिष्ट कानून नहीं है। हालाँकि, बैंकिंग, वित्त और दूरसंचार उद्योगों को नियंत्रित करने वाले कई उद्योग मानदंडों में न्यूनतम एन्क्रिप्शन मानक शामिल हैं जिनका उपयोग लेनदेन की सुरक्षा के लिये किया जाना चाहिये।
  • एन्क्रिप्शन प्रौद्योगिकियों पर प्रतिबंध:
    • ISP और DoT के बीच लाइसेंसिंग समझौते के अनुसार, उपयोगकर्त्ताओं को पूर्व मंज़ूरी के बिना सममित (सिमिट्रिक) कुंजी एल्गोरिदम या तुलनीय तरीकों का उपयोग करके 40 बिट्स से बड़े एन्क्रिप्शन मानकों का उपयोग करने की अनुमति नहीं है।
    • ऐसे कई अतिरिक्त नियम और अनुशंसाएँ हैं जो विशेष क्षेत्रों के लिये 40 बिट्स से अधिक एन्क्रिप्शन स्तर का उपयोग करते हैं।
  • सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021:
    • सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 पूर्व के सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश) नियम 2011 के स्थान पर लाया गया।
    • नियमों के एक नए सेट में व्हाट्सएप, टेलीग्राम, सिग्नल आदि जैसे सोशल मैसेजिंग एप्लिकेशन की एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन तकनीकों को प्रभावित करने की क्षमता है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000:
    • यह संचार के इलेक्ट्रॉनिक और वायरलेस मोड को नियंत्रित करता है और यह एन्क्रिप्शन संबंधी किसी भी ठोस प्रावधान या नीति से रहित है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

चुनाव आयोग के संदर्भ में निजी सदस्य विधेयक

्रिलिम्स के लिये:

भारत निर्वाचन आयोग (ECI), अनुच्छेद 324, भारत की संचित निधि, इनर पार्टी डेमोक्रेसी

मेन्स के लिये:

चुनाव आयोग की शक्तियाँ और ज़िम्मेदारियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में देश में राजनीतिक दलों के आंतरिक संचालन को विनियमित करने और निगरानी के लिये भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission- ECI) को ज़िम्मेदार बनाने के लिये लोकसभा में एक निजी सदस्य विधेयक पेश किया गया।

  • यह विधेयक ऐसे समय में प्रस्तुत किया गयाा है जब सर्वोच्च न्यायालय, मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में सुधार की आवश्यकता पर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है।
  • यह तर्क दिया गया था कि बड़ी संख्या में राजनीतिक दलों की आंतरिक कार्यप्रणाली और संरचनाएँ बहुत "अपारदर्शी एवं जटिल" हो गई हैं तथा और उनके कामकाज़ को पारदर्शी, जवाबदेह और नियम आधारित बनाने की आवश्यकता है।

िजी सदस्य विधेयक

  • संसद के ऐसे सदस्य जो केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री नहीं हैं, को एक निजी सदस्य के रूप में जाना जाता है।
  • निजी सदस्य विधेयक का उद्देश्य सरकार का ध्यान उस ओर आकर्षित करना है, जो कि सांसदों (मंत्रियों के अतिरिक्त) के मुताबिक, एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है और जिसे विधायी हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
    • इस प्रकार यह सार्वजनिक मामलों पर विपक्षी पार्टी के रुख को दर्शाता है।
  • सदन में इसे पेश करने के लिये एक महीने के नोटिस की आवश्यकता होती है और इसे प्रस्तुत करने तथा इस पर चर्चा करने का कार्य केवल शुक्रवार को ही किया जा सकता है।
    • सदन द्वारा इसे अस्वीकृत किये जाने से सरकार में संसदीय विश्वास या उसके त्याग-पत्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
  • पिछली बार दोनों सदनों द्वारा एक निजी सदस्य विधेयक 1970 में पारित किया गया था।
    • यह ‘सर्वोच्च न्यायालय (आपराधिक अपीलीय क्षेत्राधिकार का विस्तार) विधेयक, 1968’ था।

विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:

  • CEC की नियुक्ति:
    • यह प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह मंत्री, विपक्ष के नेता या लोकसभा में सदन के नेता, विपक्ष के नेता या राज्यसभा में सदन के नेता, भारत के मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश, से मिलकर बने एक पैनल द्वारा नियुक्त किये जाने वाले मुख्य चुनाव आयुक्त सहित चुनाव आयोग के सदस्यों की भी मांग करता है।
  • CEC के लिये कार्यकाल:
    • विधेयक में CEC और EC के लिये छह साल के निश्चित कार्यकाल और क्षेत्रीय आयुक्तों के लिये नियुक्ति की तिथि से तीन वर्ष के कार्यकाल की परिकल्पना की गई है।
  • CEC को हटाने की प्रक्रिया:
    • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिये निर्धारित प्रक्रिया के अलावा उन्हें पद से हटाया नहीं जा सकता।
    • साथ ही, सेवानिवृत्ति के बाद, वे भारत सरकार, राज्य सरकारों और संविधान के तहत किसी भी कार्यालय में किसी भी पुनर्नियुक्ति के लिये पात्र नहीं होने चाहिये।
  • गैर-अनुपालन की स्थिति में प्रक्रिया:
    • यदि कोई पंजीकृत राजनीतिक दल अपने आंतरिक कार्यों के संबंध में ECI द्वारा जारी सलाह, व निर्देशों का पालन करने में विफल रहता है, तो चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश 1968 की धारा 16A के तहत ऐसे राजनीतिक दल की राज्य या राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता चुनाव आयोग द्वारा वापस ली जा सकती है

ECI की संरचना:

  • मूल रूप से आयोग में केवल एक चुनाव आयुक्त था लेकिन चुनाव आयुक्त संशोधन अधिनियम, 1989 के बाद इसे एक बहु-सदस्यीय निकाय बना दिया गया है।
  • आयोग में एक CEC और दो EC होते हैं।
    • भारत के राष्ट्रपति CEC और EC की नियुक्ति करते हैं। इनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, होता है।
    • वे भी सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समान वेतन और भत्ते प्राप्त करते हैं।

ECI की शक्तियाँ और कार्य:

  • संसद के परिसीमन आयोग अधिनियम के आधार पर देश भर में चुनाव निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण करना।
  • मतदाता सूची तैयार करना और समय-समय पर संशोधित करना तथा सभी पात्र मतदाताओं को पंजीकृत करना।
  • राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना और उन्हें चुनाव चिह्न आवंटित करना।
  • आयोग के पास संसद और राज्य विधानसभाओं के मौजूदा सदस्यों को चुनाव के बाद अयोग्य ठहराने के मामले में सलाहकारी क्षेत्राधिकार भी है।
  • यह चुनावों के संचालन हेतु चुनाव कार्यक्रम तय करता है, चाहे आम चुनाव हों या उपचुनाव।
  • चुनाव आयोग राजनीतिक दलों की आम सहमति से विकसित आदर्श आचार संहिता के सख्त पालन के माध्यम से राजनीतिक दलों के लिये चुनाव में समान अवसर सुनिश्चित करता है।

चुनाव आयोग से जुड़े मुद्दे:

  • CEC का संक्षिप्त कार्यकाल: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में टिप्पणी की कि ‘‘वर्ष 2004 से किसी भी मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने छह साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया है’’ और इस संक्षिप्त कार्यकाल के कारण CEC कोई विशेष भूमिका निभाने में असमर्थ रहा है।
    • संविधान का अनुच्छेद 324 निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति का प्रावधान तो करता है, लेकिन इस संबंध में वह केवल इस आशय के एक कानून के अधिनियमन की परिकल्पना करता है और इन नियुक्तियों के लिये कोई प्रक्रिया निर्धारित नहीं करता है।
  • नियुक्ति पर कार्यपालिका का प्रभाव: निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति वर्तमान सरकार द्वारा की जाती है और इसलिये वे संभावित रूप से सरकार के प्रति कृतज्ञ होते हैं या उन्हें ऐसा लग सकता कि उन्हें सरकार के प्रति एक विशिष्ट स्तर की निष्ठा का प्रदर्शन करना है।
  • वित्त के लिये केंद्र पर निर्भरता: ECI को एक स्वतंत्र निकाय बनाने के लिये अभिकल्पित विभिन्न प्रावधानों के बावजूद अभी भी इसके वित्त का नियंत्रण केंद्र सरकार के पास है। निर्वाचन आयोग का व्यय भारत की संचित निधि पर भारित नहीं रखा गया है।
  • स्वतंत्र कर्मचारियों की कमी: चूँकि ECI के पास स्वयं के कर्मचारी नहीं होते, इसलिये जब भी चुनाव आयोजित होते हैं तो उन्हें केंद्र और राज्य सरकारों के कर्मचारियों पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • आदर्श आचार संहिता के प्रवर्तन के लिये सांविधिक समर्थन का अभाव: आदर्श आचार संहिता के प्रवर्तन के लिये और निर्वाचन संबंधी अन्य निर्णयों के संबंध में भारत निर्वाचन आयोग के पास उपलब्ध शक्तियों के दायरे एवं प्रकृति के बारे में स्पष्टता नहीं है।
  • आंतरिक-पार्टी लोकतंत्र को विनियमित करने की सीमित शक्ति: राजनीतिक दलों के आंतरिक चुनावों के संबंध में ECI की शक्ति एवं भूमिका सलाह देने तक सीमित है और उसके पास राजनीतिक दल के अंदर लोकतंत्र को लागू करने या उनके वित्त को विनियमित करने का कोई अधिकार नहीं है।

आगे की राह

  • जस्टिस तारकुंडे समिति (1975), दिनेश गोस्वामी समिति (1990), विधि आयोग (2015) जैसी विभिन्न समितियों ने सिफारिश की है कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और CJI की सदस्यता वाली समिति की सलाह पर की जाए।
  • कार्यालय से हटाने के मामलों में ECI के सभी सदस्यों को समान संवैधानिक संरक्षण दिया जाना चाहिये। एक समर्पित चुनाव प्रबंधन संवर्ग और कार्मिक प्रणाली लाना समय की मांग है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. भारत का चुनाव आयोग पांँच सदस्यीय निकाय है।
  2. केंद्रीय गृह मंत्रालय आम चुनाव और उपचुनाव दोनों के संचालन के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है।
  3. चुनाव आयोग मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवादों का समाधान करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (d)

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार, भारत का चुनाव आयोग एक स्वायत्त संवैधानिक प्राधिकरण है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं के प्रशासन के लिये ज़िम्मेदार है। यह निकाय भारत में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधान सभाओं और देश में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के कार्यालयों के चुनावों का संचालन करता है।
  • मूल रूप से आयोग में केवल एक मुख्य चुनाव आयुक्त था। वर्तमान में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त शामिल हैं। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • आयोग के पास मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवादों को निपटाने की अर्द्ध-न्यायिक शक्ति निहित है। अतः कथन 3 सही है।
  • यह चुनावों के संचालन के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है, चाहे आम चुनाव हों या उपचुनाव। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • अतः विकल्प (d) सही है।

प्रश्न. आदर्श आचार संहिता के विकास के आलोक में भारत के चुनाव आयोग की भूमिका पर चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2022)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


कृषि

उर्वरक सब्सिडी

प्रीलिम्स के लिये:

उर्वरक सब्सिडी, यूरिया, DAP, पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (NBS) योजना

मेन्स के लिये:

उर्वरक सब्सिडी से संबंधित मुद्दे और आगे की राह।

चर्चा में क्यों?

 उच्च सरकारी सब्सिडी के कारण दो उर्वरकों - यूरिया और डाई-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) का अत्यधिक उपयोग हो रहा है।

उर्वरक सब्सिडी

  • उर्वरक:
    • उर्वरक एक प्राकृतिक या कृत्रिम पदार्थ होता है जिसमें नाइट्रोजन (N), फास्फोरस (P) और पोटेशियम (K) रासायनिक तत्त्व होते हैं, जो पौधों की वृद्धि और उत्पादकता में सुधार करते हैं।
    • भारत में 3 मुख्य उर्वरक हैं - यूरिया, DAP और म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP)।
  • उर्वरक सब्सिडी के बारे में:
    • सरकार उर्वरक उत्पादकों को सब्सिडी का भुगतान करती है ताकि किसानों को बाज़ार दर से कम मूल्य पर  उर्वरक खरीदने की अनुमति मिल सके।
    • उर्वरक के उत्पादन/आयात की लागत और किसानों द्वारा भुगतान की गई वास्तविक राशि के बीच का अंतर सरकार द्वारा वहन की जाने वाली सब्सिडी का हिस्सा होता है।
  • यूरिया पर सब्सिडी:
    • भारत में, यूरिया सबसे अधिक उत्पादित, आयातित, खपत और भौतिक रूप से विनियमित उर्वरक है। यह केवल कृषि उपयोगों के लिये अनुदानित है। 
    • केंद्र प्रत्येक संयंत्र में उत्पादन लागत के आधार पर उर्वरक निर्माताओं को यूरिया पर सब्सिडी का भुगतान करता है और इकाइयों को सरकार द्वारा निर्धारित अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) पर उर्वरक बेचती है।
      • यूरिया की MRP फिलहाल 5,628 रुपये प्रति टन तय की गई है।
  • गैर-यूरिया उर्वरकों पर सब्सिडी:
    • गैर-यूरिया उर्वरकों की अधिकतम खुदरा मूल्य कंपनियों द्वारा नियंत्रित या तय नहीं की जाती है।
    • लेकिन सरकार ने हाल ही में और विशेष रूप से रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद उर्वरकों के वैश्विक मूल्य में वृद्धि आने के के बाद से उर्वरकों को सरकारी नियंत्रण व्यवस्था के अंतर्गत शामिल कर दिया है।
    • सभी गैर-यूरिया आधारित उर्वरकों को पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी योजना के तहत विनियमित किया जाता है।
    • गैर-यूरिया उर्वरकों के उदाहरण - DAP और MOP।
      • कंपनियों द्वारा DAP की प्रति टन निर्धारित मूल्य 27,000 रुपए है।

उर्वरकों हेतु पहलें:

  • नीम कोटेड यूरिया’:
    • उर्वरक विभाग (DoF) ने सभी घरेलू उत्पादकों के लिये शत-प्रतिशत यूरिया का उत्पादन ‘नीम कोटेड यूरिया’ (NCU) के रूप में करना अनिवार्य कर दिया है।
  • नई यूरिया नीति 2015:
    • इस नीति के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
      • स्वदेशी यूरिया उत्पादन को बढ़ावा देना।
      • यूरिया इकाइयों में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना।
      • भारत सरकार पर सब्सिडी के भार को युक्तिसंगत बनाना।
  • सिटी कम्पोस्ट के प्रोत्साहन हेतु नीति:
    • भारत सरकार ने सिटी कम्पोस्ट के उत्पादन और खपत को बढ़ाने के लिये 1500 रुपए की बाज़ार विकास सहायता (Market Development Assistance) प्रदान करने हेतु वर्ष 2016 में उर्वरक विभाग द्वारा अधिसूचित सिटी कम्पोस्ट को बढ़ावा देने की नीति को मंज़ूरी दी।
    • बिक्री में वृद्धि करने के लिये, शहर के खाद को बेचने के इच्छुक खाद निर्माताओं को सीधे किसानों को खाद थोक में बेचने की अनुमति दी गई।
    • शहरी खाद का विपणन करने वाली उर्वरक कंपनियाँ  को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) के अंतर्गत शामिल किया गया है।
  • उर्वरक क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग:
    • उर्वरक विभाग ने भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) और परमाणु खनिज निदेशालय (AMD) के सहयोग से इसरो के तहत राष्ट्रीय्र रिमोट सेंसिंग सेंटर द्वारा "रॉक फॉस्फेट का रिफ्लेक्सेंस स्पेक्ट्रोस्कोपी और पृथ्वी अवलोकन डेटा का उपयोग करके संसाधन मानचित्रण" पर तीन साल का पायलट अध्ययन शुरू किया।

उर्वरक सब्सिडी से संबंधित मुद्दे:

  • उर्वरकों की कीमत में असंतुलन:
    • यूरिया और DAP पर उच्च सब्सिडी उन्हें किसानों के लिये अन्य उर्वरकों की तुलना में बहुत सस्ता बनाती है।
    • जहाँ यूरिया पैक्ड नमक के मुकाबले एक चौथाई दाम पर बिक रहा है, वहीं DAP भी अन्य उर्वरकों के मुकाबले काफी सस्ता हो गया है।
    • अन्य उर्वरक जो नियंत्रण मुक्त किये गए थे उनकी कीमतें बढ़ गई हैं जिससे किसान पहले की तुलना में अधिक यूरिया और DAP का उपयोग कर रहे हैं।
  • पोषक तत्त्व असंतुलन:
    • देश में N, P और K का उपयोग पिछले कुछ वर्षों में 4:2:1 के आदर्श NPK उपयोग अनुपात से तेज़ी से विचलित हुआ है।
    • यूरिया और DAP किसी भी एक पोषक तत्व का 30% से अधिक होता है।
      • यूरिया में 46% N होता है, जबकि DAP में 46% P और 18% N होता है।
    • अन्य, अधिक महंगे उर्वरकों की तुलना में इनके उपयोग के कारण पोषक तत्त्वों के असंतुलन का मिट्टी के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है, जो अंततः फसल की पैदावार को प्रभावित कर सकता है।
  • वित्तीय स्वास्थ्य को नुकसान:
    • उर्वरक सब्सिडी अर्थव्यवस्था के राजकोषीय स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा रही है।
    • सब्सिडी वाले यूरिया को थोक खरीदारों/व्यापारियों या यहाँ तक कि गैर-कृषि उपयोगकर्त्ताओं जैसे कि प्लाइवुड और पशु चारा निर्माताओं को दिया जा रहा है।
      • इसकी तस्करी बांग्लादेश और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों में की जा रही है।

आगे की राह

  • यह देखते हुए कि सभी तीन पोषक तत्त्व अर्थात् N (नाइट्रोजन), P (फास्फोरस) और K (पोटेशियम) फसल की पैदावार और उपज की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, सरकार को आवश्यक रूप से सभी उर्वरकों के लिये एक समान नीति अपनानी चाहिये।
  • लंबे समय में, NBS को ही एक फ्लैट प्रति एकड़ नकद सब्सिडी द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना चाहिये जिसका उपयोग किसी भी उर्वरक को खरीदने के लिये किया जा सकता है।
    • इस सब्सिडी में मूल्य वर्द्धित और अनुकूलित उत्पाद शामिल होने चाहिये जिनमें न केवल अन्य पोषक तत्त्व शामिल हों बल्कि यूरिया की तुलना में नाइट्रोजन भी अधिक कुशलता से वितरित हो।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)  

प्रश्न: भारत में रासायनिक उर्वरकों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. वर्तमान में रासायनिक उर्वरकों का खुदरा मूल्य बाज़ार संचालित है और यह सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं है।
  2. अमोनिया, जो यूरिया बनाने में काम आता है, प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होता है।
  3. सल्फर, जो फॉस्फोरिक अम्ल उर्वरक के लिये एक कच्चा माल है, तेलशोधन कारखानों का उपोत्पाद है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • भारत सरकार उर्वरकों पर सब्सिडी देती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि किसानों को उर्वरक आसानी से उपलब्ध हो तथा देश कृषि उत्पादन में आत्मनिर्भर बना रहे। यह काफी हद तक उर्वरक की कीमत और उत्पादन की मात्रा को नियंत्रित करके प्राप्त किया जाता है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • प्राकृतिक गैस से अमोनिया (NH3) का संश्लेषण किया जाता है। इस प्रक्रिया में प्राकृतिक गैस के अणु कार्बन और हाइड्रोजन में परिवर्तित हो जाते हैं। फिर हाइड्रोजन को शुद्ध किया जाता है तथा अमोनिया के उत्पादन के लिये नाइट्रोजन के साथ प्रतिक्रिया कराई जाती है। इस सिंथेटिक अमोनिया को यूरिया, अमोनियम नाइट्रेट तथा मोनो अमोनियम या डायमोनियम फॉस्फेट के रूप में संश्लेषण के बाद प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उर्वरक के तौर पर प्रयोग किया जाता है। अत: कथन 2 सही है।
  • सल्फर तेलशोधन और गैस प्रसंस्करण का एक प्रमुख उप-उत्पाद है। अधिकांश कच्चे तेल ग्रेड में कुछ सल्फर होता है, जिनमें से अधिकांश को परिष्कृत उत्पादों में सल्फर सामग्री की सख्त सीमा को पूरा करने के लिये शोधन प्रक्रिया के दौरान हटाया जाना चाहिये। यह कार्य हाइड्रोट्रीटिंग के माध्यम से किया जाता है और इसके परिणामस्वरूप H2S गैस का उत्पादन होता है जो मौलिक सल्फर में परिवर्तित हो जाता है। सल्फर का खनन भूमिगत, प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले निक्षेपों से भी किया जा सकता है लेकिन यह तेल और गैस से प्राप्त करने की तुलना में अधिक महँगा है तथा इसे काफी हद तक बंद कर दिया गया है। सल्फ्यूरिक एसिड का उपयोग मोनोअमोनियम फॉस्फेट (Monoammonium Phosphate- MAP) एवं डाइअमोनियम फॉस्फेट (Diammonium Phosphate- DAP) दोनों के उत्पादन में किया जाता है। अत: कथन 3 सही है।

अतः विकल्प (b) सही है।


मेन्स

प्रश्न. सब्सिडी फसल प्रतिरूप, फसल विविधता और किसानों की अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करती है? छोटे और सीमांत किसानों के लिये फसल बीमा, न्यूनतम समर्थन मूल्य और खाद्य प्रसंस्करण का क्या महत्त्व है? (मुख्य परीक्षा, 2017)

प्रश्न. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) के साथ मूल्य सब्सिडी के प्रतिस्थापन से भारत में सब्सिडी का परिदृश्य कैसे बदल सकता है? चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2015)

प्रश्न. राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर किसानों को दी जाने वाली विभिन्न प्रकार की कृषि सब्सिडी क्या हैं? इसके द्वारा उत्पन्न विकृतियों के संदर्भ में कृषि सब्सिडी व्यवस्था का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2013)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

NMCG और नमामि गंगे कार्यक्रम

प्रिलिम्स के लिये:

NMCG, नमामि गंगे कार्यक्रम, अर्थ गंगा, प्राकृतिक खेती, SBM 2.0, AMRUT 2.0, 'प्रोजेक्ट डॉल्फिन’

मेन्स के लिये:

गंगा नदी के कायाकल्प में नमामि गंगे कार्यक्रम का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (National Mission for Clean Ganga- NMCG) की 10वीं अधिकारिता कार्य बल (Empowered Task Force- ETF) बैठक की अध्यक्षता की।

  • नमामि गंगे कार्यक्रम के हिस्से के रूप में, स्वच्छता संबंधी प्रयासों की तुलना में केंद्र सरकार का ध्यान गंगा नदी के संरक्षण, पर्यटन संबंधी सुधार और आर्थिक विकास सुनिश्चित करने की ओर अधिक केंद्रित हो गया है।

गंगा नदी के कायाकल्प संबंधी हालिया विकास :

  • पर्यटन मंत्रालय अर्थ गंगा परियोजना के अनुरूप गंगा के किनारे पर्यटन सर्किट के विकास के लिये एक व्यापक योजना पर काम कर रहा है।
    • 'अर्थ गंगा' का तात्पर्य गंगा से संबंधित आर्थिक गतिविधियों पर ध्यान देने के साथ सतत् विकास मॉडल विकसित करना है।
  • आज़ादी का अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में गंगा नदी के किनारे 75 शहरों में प्रदर्शनियों और मेलों के आयोजन की योजना बनाई गई है।
  • कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय (MoA&FW) गंगा नदी के किनारे जैविक खेती और प्राकृतिक खेती के गलियारों (कॉरिडोर) के निर्माण हेतु कई आवश्यक कदम उठाने की तैयारी कर रहा है।
    • MoA&FW द्वारा गंगा के निकट के गाँवों में जल-उपयोग दक्षता में सुधार के प्रयासों के साथ ही पर्यावरण-अनुकूल कृषि को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • आवासन एवं शहरी मामले मंत्रालय स्वच्छ भारत मिशन 2.0 और अमृत 2.0 (AMRUT 2.0) के तहत शहरी नालों की मैपिंग तथा गंगा शहरों में ठोस और तरल कचरे के प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय गंगा बेल्ट में वनीकरण गतिविधियों और 'प्रोजेक्ट डॉल्फिन' को आगे बढ़ाने की एक विस्तृत योजना पर भी काम कर रहा है।

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG):

  • परिचय:
    • राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन गंगा नदी के कायाकल्प, संरक्षण और प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय परिषद द्वारा कार्यान्वित किया जाता है जिसे ‘राष्ट्रीय गंगा परिषद’ भी कहा जाता है। 
    • राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) राष्ट्रीय गंगा परिषद की कार्यान्वयन शाखा के रूप में कार्य करता है, जिसे अगस्त 2011 को सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत एक सोसाइटी के रूप में पंजीकृत किया गया था।
  • उद्देश्य:
    • मिशन में मौजूदा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) को पूर्व अवस्था में लाना और बढ़ावा देना तथा सीवेज के प्रवाह की जाँच के लिये रिवरफ्रंट के निकास बिंदुओं पर प्रदूषण को रोकने हेतु तत्काल अल्पकालिक कदम उठाना शामिल हैं।
    • प्राकृतिक मौसम परिवर्तन में बदलाव के बिना जल प्रवाह की निरंतरता बनाए रखना।
    • सतही प्रवाह और भूजल को बढ़ाना तथा उसे बनाए रखना।
    • क्षेत्र की प्राकृतिक वनस्पतियों के पुनर्जीवन और उनका रखरखाव करना।
    • गंगा नदी बेसिन की जलीय जैव विविधता के साथ-साथ तटवर्ती जैव विविधता को संरक्षित और पुनर्जीवित करना।
    • नदी के संरक्षण, कायाकल्प और प्रबंधन की प्रक्रिया में जनता की भागीदारी की अनुमति देना।

नमामि गंगे कार्यक्रम

  • परिचय:
    • नमामि गंगे कार्यक्रम एक एकीकृत संरक्षण मिशन है, जिसे जून 2014 में केंद्र सरकार द्वारा ‘फ्लैगशिप कार्यक्रम' के रूप में अनुमोदित किया गया था, ताकि प्रदूषण के प्रभावी उन्मूलन और राष्ट्रीय नदी गंगा के संरक्षण एवं कायाकल्प के दोहरे उद्देश्यों को पूरा किया जा सके।
    • यह जल संसाधन मंत्रालय, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग तथा जल शक्ति मंत्रालय के तहत संचालित किया जा रहा है।
    • यह कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) और इसके राज्य समकक्ष संगठनों यानी राज्य कार्यक्रम प्रबंधन समूहों (SPMGs) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
    • नमामि गंगे कार्यक्रम (2021-26) के दूसरे चरण में राज्य परियोजनाओं को तेज़ी से पूरा करने और गंगा के सहायक शहरों में परियोजनाओं के लिये विश्वसनीय विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (Detailed Project Report- DPR) तैयार करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
      • छोटी नदियों और आर्द्रभूमि के पुनरुद्धार पर भी ध्यान दिया जा रहा है।
      • प्रत्येक प्रस्तावित गंगा जिले में कम से कम 10 आर्द्रभूमि हेतु वैज्ञानिक योजना और स्वास्थ्य कार्ड विकसित करना है और उपचारित जल एवं अन्य उत्पादों के पुन: उपयोग के लिये नीतियों को अपनाना है।
  • कार्यक्रम के मुख्य स्तंभ हैं:
    • सीवेज ट्रीटमेंट अवसंरचना
    • रिवर फ्रंट डेवलपमेंट
    • नदी-सतह की सफाई
    • जैव विविधता
    • वनीकरण
    • जन जागरण
    • औद्योगिक प्रवाह निगरानी
    • गंगा ग्राम

संबंधित पहलें:

  • गंगा एक्शन प्लान: यह पहली नदी कार्ययोजना थी जो 1985 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा लाई गई थी। इसका उद्देश्य जल अवरोधन, डायवर्ज़न और घरेलू सीवेज के उपचार द्वारा पानी की गुणवत्ता में सुधार करना तथा विषाक्त एवं औद्योगिक रासायनिक कचरे (पहचानी गई प्रदूषणकारी इकाइयों से) को नदी में प्रवेश करने से रोकना था।
    • राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना गंगा एक्शन प्लान का ही विस्तार है। इसका उद्देश्य गंगा एक्शन प्लान के फेज-2 के तहत गंगा नदी की सफाई करना है।
  • राष्ट्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण (NRGBA): इसका गठन भारत सरकार द्वारा वर्ष 2009 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा-3 के तहत किया गया था।
  • इसने गंगा नदी को भारत की 'राष्ट्रीय नदी' घोषित किया।
  • स्वच्छ गंगा कोष: वर्ष 2014 में इसका गठन गंगा की सफाई, अपशिष्ट उपचार संयंत्रों की स्थापना तथा नदी की जैविक विविधता के संरक्षण के लिये किया गया था।
  • भुवन-गंगा वेब एप: यह गंगा नदी में होने वाले प्रदूषण की निगरानी में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करता है।
  • अपशिष्ट निपटान पर प्रतिबंध: वर्ष 2017 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा गंगा नदी में किसी भी प्रकार के कचरे के निपटान पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)  

मेन्स

प्रश्न: नमामि गंगे और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) कार्यक्रमों पर और इससे पूर्व की योजनाओं से मिश्रित परिणामों के कारणों पर चर्चा कीजिये। गंगा नदी के परिरक्षण में कौन-सी प्रमात्रा छलांगे, क्रमिक योगदानों की अपेक्षा ज़्यादा सहायक हो सकती हैं? (2015)

स्रोत: पी.आई.बी.


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