भारतीय राजनीति
परिसीमन
- 14 Mar 2020
- 18 min read
संदर्भ
हाल ही में केंद्र सरकार ने केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के साथ पूर्वोत्तर के चार राज्यों में निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन की मंज़ूरी दी है। ध्यातव्य है कि अगस्त 2019 में केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के विशेष प्रावधानों को खत्म करने के साथ ही जम्मू-कश्मीर राज्य को विभाजित कर दो नए केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की स्थापना की गई थी। दोनों केंद्रशासित प्रदेशों में चुनावी प्रक्रिया के संचालन के लिये नए निर्वाचन क्षेत्रों का निर्माण और उनकी सीमा का निर्धारण (परिसीमन) किया जाएगा। लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिये निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं के निर्धारण हेतु संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत केंद्र सरकार द्वारा प्रत्येक जनगणना के पश्चात परिसीमन आयोग का गठन किया जाता है।
मुख्य बिंदु:
- हाल ही में केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के साथ पूर्वोत्तर के चार राज्यों असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड में निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के लिये परिसीमन आयोग का गठन किया गया है।
- उच्चतम न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई को इस परिसीमन आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। वह आगामी एक वर्ष या अगले आदेश तक इस आयोग की अध्यक्षता करेंगी।
- चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा के साथ जम्मू-कश्मीर तथा अन्य चार राज्यों के चुनाव आयुक्तों को इस आयोग का पदेन सदस्य नियुक्त किया गया है।
जम्मू-कश्मीर :
- परिसीमन आयोग ‘जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून, 2019’ के प्रावधानों के तहत जम्मू-कश्मीर में लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन करेगा।
- ध्यातव्य है कि अगस्त 2019 में केंद्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के विशेष प्रावधानों को खत्म कर दिया गया था और 31 अक्तूबर, 2019 से जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख दो अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेश बन गए थे।
- ‘जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून, 2019’ की धारा 60 के तहत परिसीमन के पश्चात् जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश में विधानसभा सीटों की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 की जाएगी।
- विभाजन से पूर्व जम्मू-कश्मीर राज्य की विधानसभा में 111 सीटें थीं, इनमें से 24 सीटें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (Pakistan Occupied Kashmir-POK) में पड़ती हैं।
- शेष 87 सीटों में से कश्मीर घाटी में 46 सीटें , जम्मू में 34 सीटें और लद्दाख में 4 सीटें पड़ती हैं।
- लद्दाख के अलग केंद्रशासित प्रदेश बन जाने के बाद मौजूदा केंद्रशासित प्रदेश में 83 विधानसभा सीटें ऐसी बचती हैं जिन पर चुनाव होता है।
- POK की 24 सीटें मिलाकर वर्तमान में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 107 सीटें हैं जो परिसीमन के बाद बढ़कर 114 हो जाएंगी। POK को छोड़कर अब जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल सीटें बढ़कर 83 से 90 हो जाएंगी। जम्मू-कश्मीर में अंतिम परिसीमन वर्ष 1995 में हुआ था।
- राज्य के पुनर्गठन के बाद जम्मू-कश्मीर में लोकसभा की 5 सीटें है और लद्दाख में मात्र 1 सीट है।
पूर्वोत्तर राज्य:
- देश में पिछली/आखिरी बार वर्ष 2008 में परिसीमन आयोग अधिनियम, 2002 के तहत निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण किया गया था।
- परंतु असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड में अशांति एवं सामाजिक सौहार्द बिगड़ने के भय से वर्ष 2008 में परिसीमन नहीं किया गया था।
- 28 फरवरी, 2020 को केंद्र सरकार द्वारा असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड में परिसीमन को स्थगित करने वाले अपने नोटिस को रद्द कर दिया गया था।
- सरकार के आदेश के बाद अब इन राज्यों में ‘परिसीमन आयोग अधिनियम, 2002’ के तहत परिसीमन की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।
परिसीमन (Delimitation):
परिसीमन से तात्पर्य किसी राज्य में विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिये निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं का निर्धारण करना है।
परिसीमन की प्रक्रिया में (सामान्यतः) लोकसभा या विधानसभा की सीटों में बिना कोई परिवर्तन किये उनकी सीमाओं का पुनर्निर्धारण किया जाता है।
परिसीमन का उद्देश्य:
- परिसीमन का उद्देश्य समय के साथ जनसंख्या में हुए बदलाव के बाद भी सभी नागरिकों के लिये सामान प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करना है।
- जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का उचित विभाजन करना जिससे प्रत्येक वर्ग के नागरिकों को प्रतिनिधित्व का समान अवसर प्रदान किया जा सके।
- अनुसूचित वर्ग के लोगों के हितों की रक्षा के लिये आरक्षित सीटों का निर्धारण भी परिसीमन की प्रक्रिया के तहत ही किया जाता है।
परिसीमन आयोग
(Delimitation Commission):
- परिसीमन आयोग को सीमा आयोग (Boundary Commission) के नाम से भी जाना जाता है।
- प्रत्येक जनगणना के बाद भारत की संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद-82 के तहत एक परिसीमन अधिनियम लागू किया जाता है।
- परिसीमन अधिनियम के लागू होने के बाद राष्ट्रपति द्वारा परिसीमन आयोग की नियुक्ति की जाती है और यह संस्था/निकाय निर्वाचन आयोग के साथ मिलकर काम करती है।
परिसीमन आयोग की संरचना:
- परिसीमन आयोग की अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय के एक अवकाश प्राप्त न्यायाधीश द्वारा की जाती है।
- इसके अतिरिक्त इस आयोग में निम्नलिखित सदस्य शामिल होते हैं -
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त या मुख्य निर्वाचन आयुक्त द्वारा नामित कोई निर्वाचन आयुक्त।
- संबंधित राज्यों के निर्वाचन आयुक्त।
- सहयोगी सदस्य (Associate Members): आयोग परिसीमन प्रक्रिया के क्रियान्वयन के लिये प्रत्येक राज्य से 10 सदस्यों की नियुक्ति कर सकता है, जिनमें से 5 लोकसभा के सदस्य तथा 5 संबंधित राज्य की विधानसभा के सदस्य होंगे।
- सहयोगी सदस्यों को लोकसभा स्पीकर तथा संबंधित राज्यों के विधानसभा स्पीकर द्वारा नामित किया जाएगा।
इसके अतिरिक्त परिसीमन आयोग आवश्यकता पड़ने पर निम्नलिखित अधिकारियों को बुला सकता है:
- महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त, भारत (Registrar General and Census Commissioner of India)।
- भारत के महासर्वेक्षक (The Surveyor General of India)।
- केंद्र अथवा राज्य सरकार से कोई अन्य अधिकारी।
- भौगोलिक सूचना प्रणाली का कोई विशेषज्ञ।
- या कोई अन्य व्यक्ति, जिसकी विशेषज्ञता या जानकारी से परिसीमन की प्रक्रिया में सहायता प्राप्त हो सके।
परिसीमन आयोग के कार्य:
- संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन: परिसीमन आयोग लोकसभा सदस्यों के चुनाव के लिये चुनावी क्षेत्रों की सीमा को निर्धारित करने का कार्य करता है। परिसीमन की प्रक्रिया में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि (राज्य में) लोकसभा सीटों की संख्या और राज्य की जनसंख्या का अनुपात पूरे देश में सभी राज्यों के लिये समान रहे।
- विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन: विधानसभा चुनावों के लिये निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा का निर्धारण परिसीमन आयोग द्वारा किया जाता है। विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के दौरान इस बात का ध्यान रखा जाता है कि राज्य के सभी चुनावी क्षेत्रों में विधानसभा सीटों की संख्या और क्षेत्र की जनसंख्या का अनुपात समान रहे। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि एक विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र सामान्यतया एक से अधिक ज़िलों में विस्तारित न हो।
- अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिये सीटों का आरक्षण: परिसीमन आयोग द्वारा परिसीमन आयोग अधिनियम, 2002 की धारा 9(1) के तहत निर्वाचन क्षेत्रों में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति समुदायों के लोगों की संख्या के आधार पर आरक्षित सीटों का निर्धारण किया जाता है।
परिसीमन की प्रक्रिया:
- परिसीमन की प्रक्रिया में निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं होता बल्कि जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों की भौगोलिक सीमाओं में परिवर्तन किया जाता है।
- परिसीमन प्रक्रिया के तहत अंतिम/नवीन जनगणना के आँकड़ों को आधार माना जाता है।
- परिसीमन के सिद्धांतों और आतंरिक निर्णयों के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों में प्रस्तावित परिवर्तनों के लिये एक आधार-पत्र तैयार किया जाता है।
- परिसीमन आयोग के अनुमोदन के बाद प्रस्तावित परिवर्तनों पर विचार-विमर्श के लिये आधार-पत्र को सहयोगी सदस्यों (Associate Members) के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। हालाँकि सहयोगी सदस्य आधार-पत्र में प्रस्तावित परिवर्तनों के संदर्भ में सिर्फ अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं, किसी भी परिवर्तन के संदर्भ में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ आयोग को होता है।
- आधार-पत्र पर विचार-विमर्श के पश्चात् प्रारूप प्रस्तावों को सहयोगी सदस्यों की असहमतियों (यदि कोई हो/ सदस्य की इच्छा के अनुसार) सहित भारत के राजपत्र और संबंधित राज्य के राजपत्र के साथ ही दो विशिष्ट समाचार पत्रों में प्रकाशित किया जाता है।
- इसके साथ ही प्रारूप प्रस्तावों के संदर्भ में जनता से अपनी आपत्तियों एवं सुझावों को भेजने का आग्रह किया जाता है।
- प्रारूप प्रस्तावों के संबंध में जनता की आपत्तियों एवं सुझावों पर चर्चा के लिये निर्धारित तिथि पर जन-सुनवाई का आयोजन किया जाता है।
- जनता के मौखिक और लिखित सुझावों के आधार पर प्रस्तावों में अपेक्षित परिवर्तनों के पश्चात् परिसीमन के संदर्भ में अंतिम आदेश जारी किया जाता है।
परिसीमन आयोग की शक्तियाँ:
- परिसीमन आयोग एक स्वतंत्र निकाय है, यह आयोग भारतीय संविधान के तहत प्रदत्त शक्तियों के माध्यम से देश में परिसीमन का कार्य करता है।
- परिसीमन आयोग के आदेश राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट तिथि से लागू होते हैं।
- आयोग के आदेशों को कानून की तरह जारी किया जाता है और इन आदेशों को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
- परिसीमन की प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद आयोग के आदेशों की प्रतियाँ लोकसभा और संबंधित विधानसभा के समक्ष रखी जाती हैं।
- लोकसभा अथवा विधानसभा को परिसीमन आयोग के आदेशों में किसी भी प्रकार के संशोधन की अनुमति नहीं होती है।
परिसीमन आयोग का इतिहास:
स्वतंत्रता के बाद से आज तक देश में चार परिसीमन आयोगों का गठन किया जा चुका है।
- परिसीमन आयोग अधिनियम, 1952 के तहत पहले परिसीमन आयोग का गठन वर्ष 1952 में किया गया था।
- दूसरे परिसीमन आयोग का गठन ‘परिसीमन आयोग अधिनियम, 1962’ के तहत वर्ष 1963 में किया गया था।
- तीसरे परिसीमन आयोग का गठन ‘परिसीमन आयोग अधिनियम, 1972’ के तहत वर्ष 1973 में किया गया।
- चौथे परिसीमन आयोग का गठन ‘परिसीमन आयोग अधिनियम, 2002’ के तहत वर्ष 2002 किया गया।
परिसीमन प्रक्रिया में संशोधन:
- परिसीमन की प्रक्रिया के तहत निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा निर्धारण का मुख्य आधार क्षेत्र की जनसंख्या होती है, ऐसे में कम आबादी वाले क्षेत्रों/राज्यों को अधिक आबादी वाले क्षेत्रों/राज्यों की तुलना में समान प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता।
- वर्ष 1976 में राज्यों की परिवार नियोजन योजनाओं को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार द्वारा परिसीमन के तहत सीटों की संख्या में परिवर्तन किये जाने पर वर्ष 2001 की जनगणना तक रोक लगा दी गई थी।
- वर्ष 1981 और वर्ष 1991 की जनगणना के बाद परिसीमन नहीं किया गया।
- वर्ष 2002 में संविधान के 84वें संशोधन के साथ इस प्रतिबंध को वर्ष 2026 तक के लिये बढ़ा दिया गया।
- परिसीमन की प्रक्रिया को प्रतिबंधित करने के पीछे सरकार का तर्क यह था कि वर्ष 2026 तक (अनुमानतः) सभी राज्यों में जनसंख्या वृद्धि का औसत समान हो जाएगा।
- संविधान के 84वें संशोधन के अनुसार, वर्ष 2026 की जनगणना के आँकड़े जारी होने तक लोकसभा का परिसीमन वर्ष 1971 की जनगणना के आधार पर ही किया जाएगा।
- साथ ही राज्यों के विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर किया जाएगा।
चौथा परिसीमन आयोग :
- चौथे परिसीमन आयोग का गठन परिसीमन आयोग अधिनियम, 2002 के तहत 12 जुलाई, 2002 को उच्चतम न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में किया गया था।
- आयोग ने अपने सुझाव वर्ष 2007 में तत्कालीन केंद्र सरकार को भेज दिए थे परंतु तब इन्हें लागू नहीं किया गया।
- उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद जनवरी 2008 में कैबिनेट कमिटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स (Cabinet Committee on Political Affairs-CCPA) ने परिसीमन आयोग की सिफारिशों को मंज़ूरी दी।
- परिसीमन प्रस्तावों पर राष्ट्रपति की मंज़ूरी के बाद देश के कई राज्यों में परिसीमन की प्रक्रिया पूरी की गई।
- देश में सबसे पहले कर्नाटक राज्य में परिसीमन आयोग 2002 की सिफारिशों के आधार पर विधानसभा चुनाव हुए थे।
- वर्तमान में जम्मू-कश्मीर व अन्य प्रस्तावित राज्यों का परिसीमन ‘परिसीमन आयोग अधिनियम, 2002’ के तहत ही किया जाएगा।
निष्कर्ष: परिसीमन का मुख्य उद्देश्य देश के सभी नागरिकों को प्रतिनिधित्व का समान अधिकार प्रदान करना है। परिसीमन के माध्यम से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजन के पश्चात उत्पन्न हुए राजनैतिक असंतुलन को दूर करने में सहायता प्राप्त होगी। साथ ही पूर्वोत्तर के राज्यों में भी परिसीमन के माध्यम से वर्ष 1973 से वर्तमान तक क्षेत्र की आबादी में हुए परिवर्तनों के अनुरूप निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण किया जा सकेगा।
अभ्यास प्रश्न: देश की राजनीति पर परिसीमन के प्रभावों की चर्चा कीजिये।