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कृषि

उर्वरक सब्सिडी: अर्थ और महत्त्व

  • 20 Oct 2020
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये

नीम कोटेड यूरिया (NCU), पॉइंट ऑफ सेल (PoS)

मेन्स के लिये

उर्वरक सब्सिडी भुगतान की नई प्रणाली और गैर-कृषि कार्यों के लिये यूरिया के उपयोग को रोकने के उपाय

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार एक फसल सीज़न के दौरान किसी किसान द्वारा खरीदे जाने वाले सब्सिडी युक्त उर्वरक बैगों की संख्या की एक निश्चित सीमा निर्धारित करने पर विचार कर रही है।

प्रमुख बिंदु

उर्वरक सब्सिडी का अर्थ

  • विदित हो कि किसान उर्वरकों को अपनी आवश्यकतानुसार, अधिकतम खुदरा मूल्य (MRPs) के आधार पर खरीदते हैं, जो कि मांग और आपूर्ति आधारित बाज़ार मूल्य तथा उत्पादन/आयात में आने वाले खर्च की अपेक्षा काफी कम होता है।
  • उदाहरण के लिये सरकार द्वारा नीम कोटेड यूरिया (NCU) का अधिकतम खुदरा मूल्य (MRPs) 5,922.22 रुपए प्रति टन तय किया गया है, जबकि घरेलू निर्माताओं और आयातकों को इसके लिये औसतन क्रमशः 17,000 रुपए और 23,000 रुपए प्रति टन के हिसाब से कीमत चुकानी पड़ती है।
  • इस प्रकार दोनों मूल्यों में जो अंतर आता है उसका भुगतान केंद्र सरकार द्वारा उर्वरक सब्सिडी के रूप में किया जाता है।
  • ग़ौरतलब है कि गैर-यूरिया उर्वरकों का अधिकतम खुदरा मूल्य (MRPs) सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं किया जाता और यह निजी कंपनियों द्वारा तय किया जाता है, हालाँकि सरकार इनके उचित मूल्य को बनाए रखने के लिये कुछ हद तक हस्तक्षेप करती है।

कैसे और किसे मिलती है सब्सिडी?

  • सरकार द्वारा उर्वरक सब्सिडी, उर्वरक कंपनियों को दी जाती है, हालाँकि इस सब्सिडी का अंतिम लाभार्थी किसान ही होता है, जो कि बाज़ार निर्धारित दरों से कम पर अधिकतम खुदरा मूल्य (MRPs) का भुगतान करता है।
  • मार्च 2018 तक सब्सिडी भुगतान प्रणाली के तहत उर्वरक कंपनियों को सब्सिडी का भुगतान तब किया जाता था, जब कंपनी द्वारा भेजे गए उर्वरक के बैग उस ज़िले के रेलहेड पॉइंट या स्वीकृत गोदाम में पहुँच जाते थे।
  • मार्च 2018 में सरकार द्वारा इस संबंध में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) प्रणाली शुरू की गई, जिसमें उर्वरक कंपनियों को सब्सिडी का भुगतान तभी किया जाता है जब किसानों द्वारा खुदरा विक्रेताओं से वास्तविक खरीद की जाती है। 
  • वर्तमान में भारत में 2.3 लाख से अधिक खुदरा विक्रेता हैं और अब नई व्यवस्था के तहत प्रत्येक खुदरा विक्रेता के पास एक पॉइंट ऑफ सेल (PoS) मशीन है, जो कि भारत सरकार के उर्वरक विभाग के ‘ई-उर्वरक डीबीटी पोर्टल’ (e-Urvarak DBT Portal) से जुड़ी है।
    • साथ ही सब्सिडी युक्त उर्वरक खरीदने वाले किसान को अब केवल अपने आधार कार्ड नंबर या किसान क्रेडिट कार्ड नंबर की आवश्यकता होती है।
  • नई व्यवस्था के तहत ई-उर्वरक पोर्टल पर पंजीकृत बिक्री होने के बाद ही कोई कंपनी उर्वरक के लिये सब्सिडी का दावा कर सकती है। इसके तहत सब्सिडी का भुगतान कंपनियों के बैंक खाते में किया जाता है। 

नई भुगतान प्रणाली का उद्देश्य

  • सब्सिडी युक्त होने के कारण यूरिया (Urea) का सदैव ही गैर-कृषि कार्यों हेतु उपयोग होने का भय रहता है। उदाहरण के लिये इसका प्रयोग दूध विक्रेताओं द्वारा दूध में मिलावट के लिये किया जा सकता है। इसके अलावा भारत में सब्सिडी के कारण सस्ती होने की वजह से  नेपाल और बांग्लादेश में भी यूरिया की तस्करी की जाती है।
  • भुगतान की पूर्ववर्ती प्रणाली में इस इस तरह के कार्यों के लिये यूरिया के उपयोग की गुंजाइश काफी अधिक थी, किंतु नई प्रणाली के तहत इस प्रकार की चोरी की संभावना काफी कम हो गई है, क्योंकि अब भुगतान केवल तभी किया जाता है, जब यूरिया की बिक्री हो जाती है।

सरकार के नए प्रस्ताव के निहितार्थ

  • प्रस्तावित योजना के अनुसार, किसी भी किसान द्वारा खरीफ अथवा रबी फसल के मौसम में खरीदे जाने वाले सब्सिडी युक्त उर्वरक बैग की कुल संख्या निर्धारित कर दी जाए, इससे यूरिया की चोरी करने वाले लोगों को बड़े पैमाने पर यूरिया खरीदने से रोकने में मदद मिलेगी।
  • प्रभाव
    • मौजूदा नियमों के अनुसार, कोई भी व्यक्ति (किसान अथवा गैर-किसान) अपने आधार कार्ड नंबर या किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) नंबर की सहायता से जितनी चाहे उर्वरक की खरीद कर सकता है।
    • यह उन लोगों को थोक मात्रा में उर्वरक खरीदने में मदद करता है, जो असल में किसान नहीं हैं अथवा कृषि के अतिरिक्त किसी अन्य कार्य के लिये उर्वरक का उपयोग करना चाहते हैं।
    • यद्यपि सरकार ने यह निर्धारित किया है कि एक व्यक्ति द्वारा एक बार में केवल 100 बैग ही खरीदे जा सकते हैं, किंतु यह सीमा निर्धारित नहीं की गई है कि कोई व्यक्ति कितनी बार 100 बैग खरीद कर सकता है।
    • अतः यदि इस प्रस्तावित योजना को कार्यान्वित किया जाता है तो इससे गैर-कृषि कार्यों के लिये यूरिया के उपयोग पर रोक लगाई जा सकेगी।

आगे की राह

  • कई विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि किसानों को प्रति एकड़ सब्सिडी का भुगतान प्रत्यक्ष तौर पर उनके खाते में किया जा सकता है, जिसका उपयोग वे स्वयं उर्वरक की खरीद के लिये कर सकते हैं।
    • उगाई गई फसलों की संख्या के आधार पर और भूमि सिंचित है अथवा नहीं इस आधार पर भी सब्सिडी की राशि अलग-अलग हो सकती है।
  • यह संभवतः गैर-कृषि कार्यों के लिये यूरिया की चोरी को रोकने का एकमात्र विकल्प हो सकता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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