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सामाजिक न्याय

भारत में कुपोषण को रोकना

  • 29 Jul 2022
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये:

NFHS-5, कुपोषण, स्टंटिंग, वेस्टिंग।

मेन्स के लिये:

NFHS -5 के निष्कर्ष, स्वास्थ्य, महिलाओं से संबंधित मुद्दे, जनसंख्या से संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने भारत में कुपोषण पर अंकुश लगाने के लिये लक्ष्य निर्धारित किये हैं।

कुपोषण पर अंकुश लगाने के लिये निर्धारित लक्ष्य:

  • 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में स्टंटिंग और अल्प पोषण (कम वज़न के प्रसार) को प्रतिवर्ष 2% कम करने का लक्ष्य है।
  • 0 से 6 वर्ष के बच्चों का अल्प पोषण से बचाव एवं इसमें कुल 6 प्रतिशत यानी प्रतिवर्ष 2%की दर से कमी लाना।
  • 6 से 59 माह के बच्चों में एनीमिया के प्रसार में कुल 9 प्रतिशत यानी प्रतिवर्ष 3%की दर से कमी लाना ।
  • 15 से 49 वर्ष की किशोरियों, गर्भवती एवं धात्री माताओं में एनीमिया के प्रसार में कुल 9 प्रतिशत यानी प्रतिवर्ष 3% की दर से कमी लाना।
    • एनीमिया एक ऐसी स्थिति होती है जिसमे शारीर में रक्त की ज़रूरत को पूरा करने के लिये लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या या उसकी ऑक्सीजन वहन क्षमता अपर्याप्त होती है।
  • NFHS -5 रिपोर्ट में इस पर प्रकाश डाला गया है जिसमें जनसंख्या के प्रमुख क्षेत्रों पर विस्तृत जानकारी शामिल है, जैसे:
    • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, प्रजनन क्षमता, परिवार नियोजन, शिशु और बाल मृत्यु दर, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, पोषण और रक्ताल्पता, रुग्णता तथा स्वास्थ्य देखभाल, महिला सशक्तीकरण आदि।

NFHS-5 के निष्कर्ष:

  • अविकसित बच्चों पर डेटा:
    • मेघालय में अविकसित बच्चों की संख्या सबसे अधिक (46.5%) है, इसके बाद बिहार (42.9%) का स्थान है।
    • महाराष्ट्र में 25.6% चाइल्ड वेस्टिंग/बच्चों में निर्बलता सबसे अधिक हैं, इसके बाद गुजरात (25.1%) का स्थान है।
    • झारखंड में 15 से 49 वर्ष के बीच की महिलाओं का उच्चतम प्रतिशत (26%) है, जिनका बॉडी मास इंडेक्स (BMI) सामान्य से कम है।
  • अन्य निष्कर्ष:
    • कुल प्रजनन दर (TFR) प्रति महिला बच्चों की औसत संख्या, NFHS -4 और 5 के बीच राष्ट्रीय स्तर पर 2.2 से घटकर 2.0 हो गई है।
    • समग्र गर्भनिरोधक प्रसार दर (CPR) देश में 54% से बढ़कर 67% हो गई है।
    • भारत में संस्थागत जन्म 79% से बढ़कर 89% हो गया है।
    • रिपोर्ट के अनुसार, स्टंटिंग/बौनापन 4% से घटकर 35.5% हो गया है, वेस्टिंग 21.0% से घटकर 19.3% हो गया है और कम वज़न 35.8% से घटकर 32.1% हो गया है।
    • महिलाएँ (15-49 वर्ष) जिनका बॉडी मास इंडेक्स (BMI) सामान्य से कम है, NFHS-4 में 22.9% से घटकर NFHS-5 में 18.7% हो गया है।

कुपोषण और संबंधित पहल:

  • परिचय:
    • कुपोषण वह स्थिति है जो तब विकसित होती है जब शरीर विटामिन, खनिज और अन्य पोषक तत्त्वों से वंचित हो जाता है, जिससे उसे स्वस्थ ऊतक और अंग के कार्य को बनाए रखने की आवश्यकता होती है।
    • कुपोषण उन लोगों में होता है जो या तो कुपोषित हैं या अधिक पोषित हैं।
  • पहल:
    • पोषण अभियान: भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक "कुपोषण मुक्त भारत" सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय पोषण मिशन (NNM) या पोषण अभियान शुरू किया है।
    • एनीमिया मुक्त भारत अभियान: इसे वर्ष 2018 में शुरू किया गया, मिशन का उद्देश्य एनीमिया की वार्षिक दर को एक से तीन प्रतिशत अंक तक कम करना है।
    • मध्याह्न भोजन (MDM) योजना: इसका उद्देश्य स्कूली बच्चों के बीच पोषण स्तर में सुधार करना है, जिसका स्कूलों में नामांकन, प्रतिधारण और उपस्थिति पर प्रत्यक्ष एवं सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
    • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013: इसका उद्देश्य अपनी संबद्ध योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से सबसे कमज़ोर लोगों के लिये खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना है, जिससे भोजन तक पहुँच कानूनी अधिकार बन जाए।
    • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): गर्भवती महिलाओं को डिलीवरी के लिये बेहतर सुविधाएँ प्राप्त करने हेतु 6,000 रुपए सीधे उनके बैंक खातों में स्थानांतरित किये जाते हैं।
    • समेकित बाल विकास सेवा (ICDS) योजना: इसे वर्ष 1975 में शुरू किया गया था और इस योजना का उद्देश्य 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों तथा उनकी माताओं को भोजन, पूर्व स्कूली शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, टीकाकरण, स्वास्थ्य जाँच और अन्य सेवाएँ प्रदान करना है।

आगे की राह

  • वित्तीय प्रतिबद्धताएँ बढ़ाना:
    • महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण में उनके सतत् विकास एवं जीवन की बेहतर गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये निवेश बढ़ाने की अधिक आवश्यकता है।
  • परिणामोन्मुखी दृष्टिकोण:
    • भारत को पोषण कार्यक्रमों पर परिणामोन्मुखी दृष्टिकोण अपनाना चाहिये।
    • पोषण की दृष्टि से कमज़ोर समूहों (इसमें बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएँ, विशेष आवश्यकता वाले और छोटे बच्चे शामिल हैं) के साथ सीधा जुड़ाव होना चाहिये तथा प्रमुख पोषण सेवाओं और हस्तक्षेपों के अंतिम-मील वितरण को सुनिश्चित करने में योगदान करना चाहिये।
  • बुनियादी शिक्षा और सामान्य जागरूकता:
    • विभिन्न अध्ययन माताओं की शिक्षा और बच्चों के बीच पोषण संबंधी हस्तक्षेपों के साथ बेहतर अनुपालन को एक मज़बूत संबंध के रूप में रेखांकित करते हैं।
    • हमें युवा आबादी के लिये प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ सुनिश्चित करना चाहिये; पोषण व स्वास्थ्य उस परिणाम के लिये आधारभूत तत्त्व हैं।
  • कार्यक्रमों की निगरानी और मूल्यांकन:
    • कार्यक्रमों की निगरानी और मूल्यांकन तथा प्रणालीगत एवं आधारभूत चुनौतियों का समाधान करने के लिये एक प्रक्रिया की स्थपाना की जानी चाहिये।
    • प्रभावी नीतिगत निर्णयों पर विचार-विमर्श करने, योजनाओं के कार्यान्वयन की निगरानी करने और राज्यों में पोषण की स्थिति की समीक्षा करने की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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