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भारतीय राजव्यवस्था

समान नागरिक संहिता

  • 20 Oct 2022
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये:

समान नागरिक संहिता, अनुच्छेद 44, अनुच्छेद 25, अनुच्छेद 14.

मेन्स के लिये:

व्यक्तिगत कानूनों पर समान नागरिक संहिता के प्रभाव

चर्चा में क्यों?

कानून और न्याय मंत्रालय ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया है कि न्यायालय संसद को कोई कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकता है और इसने देश में समान नागरिक संहिता (UCC) की मांग करने वाली जनहित याचिकाओं (PIL) को खारिज करने की मांग की है।

जनहित याचिकाओं के विषय:

  • याचिकाकर्त्ताओं ने विवाह, तलाक, भरण-पोषण और गुजारा भत्ता (पूर्व पत्नी या पति को कानून द्वारा भुगतान किया जाने वाला धन) को विनियमित करने वाले व्यक्तिगत कानूनों में एकरूपता की मांग की है।
  • याचिकाओं में तलाक के कानूनों के संबंध में विसंगतियों को दूर करने और उन्हें सभी नागरिकों के लिये एक समान बनाने तथा बच्चों को गोद लेने एवं संरक्षकता के लिये समान दिशा-निर्देश देने की मांग की गई थी।

सरकार का रुख:

  • न्यायालय इस मामले में कोई मार्गदर्शन नहीं दे सकती क्योंकि यह नीति का मामला है जिसका फैसला जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों को करना चाहिये। विधायिका को कानून पारित करने या वीटो करने की शक्ति है।
  • विधि मंत्रालय ने विधि आयोग से सामान नागरिक संहिता से संबंधित विभिन्न मुद्दों की जाँच करने और समुदायों को शासित करने वाले विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों की संवेदनशीलता, उनके गहन अध्ययन के आधार पर विचार करते हुए सिफारिशें करने का अनुरोध किया था।
  • 21वें विधि आयोग ने अगस्त 2018 में 'परिवार कानून में सुधार' शीर्षक से एक परामर्श पत्र जारी किया था लेकिन 21वें विधि आयोग का कार्यकाल अगस्त 2018 में ही समाप्त हो गया।

समान नागरिक संहिता:

  • परिचय:
    • समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिये एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों में भी एकरूपता प्रदान करने का प्रावधान करती है।
    • संविधान के अनुच्छेद 44 में वर्णित है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।
      • अनुच्छेद-44, संविधान में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों में से एक है।
      • अनुच्छेद 44 का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में निहित "धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य" की अवधारणा को मजबूत करना है।
  • पृष्ठभूमि:
    • समान नागरिक संहिता (UCC) की अवधारणा का विकास औपनिवेशिक भारत में तब हुआ, जब ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1835 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसमें अपराधों, सबूतों और अनुबंधों जैसे विभिन्न विषयों पर भारतीय कानून के संहिताकरण में एकरूपता लाने की आवश्यकता पर बल दिया गया, हालाँकि रिपोर्ट में हिंदू व मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को इस एकरूपता से बाहर रखने की सिफारिश की गई।
    • ब्रिटिश शासन के अंत में व्यक्तिगत मुद्दों से निपटने वाले कानूनों की संख्या में वृद्धि ने सरकार को वर्ष 1941 में हिंदू कानून को संहिताबद्ध करने के लिये बी.एन. राव समिति गठित करने के लिये मजबूर किया।
    • इन सिफारिशों के आधार पर हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों के लिये निर्वसीयत उत्तराधिकार से संबंधित कानून को संशोधित एवं संहिताबद्ध करने हेतु वर्ष 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के रूप में एक विधेयक को अपनाया गया।
      • हालाँकि मुस्लिम, इसाई और पारसी लोगों के लिये अलग-अलग व्यक्तिगत कानून थे।
    • कानून में समरूपता लाने के लिये विभिन्न न्यायालयों ने अक्सर अपने निर्णयों में कहा है कि सरकार को एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने की दिशा में प्रयास करना चाहिये।
      • शाह बानो मामले (1985) में दिया गया निर्णय सर्वविदित है।
      • सरला मुद्गल वाद (1995) भी इस संबंध में काफी चर्चित है, जो कि बहुविवाह के मामलों और इससे संबंधित कानूनों के बीच विवाद से जुड़ा हुआ था।
    • प्रायः यह तर्क दिया जाता है ट्रिपल तलाक’ और बहुविवाह जैसी प्रथाएँ एक महिला के सम्मान तथा उसके गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं, केंद्र ने सवाल उठाया है कि क्या धार्मिक प्रथाओं को दी गई संवैधानिक सुरक्षा उन प्रथाओं तक भी विस्तारित होनी चाहिये जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं।

भारत में समान नागरिक संहिता की स्थिति

  • वर्तमान में अधिकांश भारतीय कानून, सिविल मामलों में एक समान नागरिक संहिता का पालन करते हैं, जैसे- भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882, भागीदारी अधिनियम, 1932, साक्ष्य अधिनियम, 1872 आदि।
  • हालाँकि राज्यों ने कई कानूनों में संशोधन किये हैं परंतु धर्मनिरपेक्षता संबंधी कानूनों में अभी भी विविधता है।
    • हाल ही में कई राज्यों ने एक समान रूप से मोटर वाहन अधिनियम, 2019 को लागू करने से इनकार कर दिया था।
    • वर्तमान में गोवा, भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ UCC लागू है।

व्यक्तिगत कानूनों पर समान नागरिक संहिता का निहितार्थ:

  • समाज के संवेदनशील वर्ग को संरक्षण:
    • समान नागरिक संहिता का उद्देश्य महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित संवेदनशील वर्गों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है, जबकि एकरूपता से देश में राष्ट्रवादी भावना को भी बल मिलेगा।
  • कानूनों का सरलीकरण
    • समान नागरिक संहिता विवाह, विरासत और उत्तराधिकार समेत विभिन्न मुद्दों से संबंधित जटिल कानूनों को सरल बनाएगी। परिणामस्वरूप समान नागरिक कानून सभी नागरिकों पर लागू होंगे, चाहे वे किसी भी धर्म में विश्वास रखते हों।
  • धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को बल:
    • भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द सन्निहित है और एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य को धार्मिक प्रथाओं के आधार पर विभेदित नियमों के बजाय सभी नागरिकों के लिये एक समान कानून बनाना चाहिये।
  • लैंगिक न्याय
    • यदि समान नागरिक संहिता को लागू किया जाता है, तो वर्तमान में मौजूद सभी व्यक्तिगत कानून समाप्त हो जाएंगे, जिससे उन कानूनों में मौजूद लैंगिक पक्षपात की समस्या से भी निपटा जा सकेगा।

चुनौतियाँ

  • विविध व्यक्तिगत कानून:
    • विभिन्न समुदायों के बीच रीति-रिवाज़ बहुत भिन्न होते हैं।
      • यह भी एक मिथक है कि हिंदू एक समान कानून द्वारा शासित होते हैं। उत्तर में निकट संबंधियों के बीच विवाह वर्जित है लेकिन दक्षिण में इसे शुभ माना जाता है।  
    • पर्सनल लॉ में एकरूपता का अभाव मुसलमानों और ईसाइयों के लिये भी सही है।
    • संविधान द्वारा नगालैंड, मेघालय और मिज़ोरम के स्थानीय रीति-रिवाजोंं को सुरक्षा दी गई है।
    • व्यक्तिगत कानूनों की अत्यधिक विविधता (जिस भाव के साथ उनका पालन किया जाता है) किसी भी प्रकार की एकरूपता को प्राप्त करना बहुत कठिन बना देते हैं। विभिन्न समुदायों के बीच साझे विचार स्थापित करना जटिल कार्य है।
  • सांप्रदायिकता की राजनीति:
    • कई विश्लेषकों का मत है कि समान नागरिक संहिता की मांग केवल सांप्रदायिकता की राजनीति के संदर्भ में की जाती है।
    • समाज का एक बड़ा वर्ग सामाजिक सुधार की आड़ में इसे बहुसंख्यकवाद के रूप में देखता है।
  • संवैधानिक बाधा:
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25, जो किसी भी धर्म को मानने और प्रचार की स्वतंत्रता को संरक्षित करता है, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित समानता की अवधारणा के विरुद्ध है।

आगे की राह

  • परस्पर विश्वास के निर्माण के लिये सरकार और समाज को कड़ी मेहनत करनी होगी, किंतु इससे भी महत्त्वपूर्ण यह है कि धार्मिक रूढ़िवादियों के बजाय इसे लोकहित के रूप में स्थापित किया जाए।
  • एक सर्वव्यापी दृष्टिकोण के बजाय सरकार विवाह, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे अलग-अलग पहलुओं को चरणबद्ध तरीके से समान नागरिक संहिता में शामिल कर सकती है।
  • सभी व्यक्तिगत कानूनों को संहिताबद्ध किया जाना आवश्यक है, ताकि उनमें से प्रत्येक में पूर्वाग्रह और रुढ़िवादी पहलुओं को रेखांकित कर मौलिक अधिकारों के आधार पर उनका परीक्षण किया जा सके।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत के संविधान में निहित राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के तहत निम्नलिखित प्रावधानों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. भारत के नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करना
  2. ग्राम पंचायतों का गठन
  3. ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना
  4. सभी श्रमिकों के लिये उचित अवकाश और सांस्कृतिक अवसर सुरक्षित करना

उपर्युक्त में से कौन से गांधीवादी सिद्धांत हैं जो राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में परिलक्षित होते हैं?

(a) केवल 1, 2 और 4
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


प्रश्न. कानून जो कार्यकारी या प्रशासनिक प्राधिकरण को कानून लागू करने के मामले में अनियंत्रित विवेकाधीन शक्तियाँ प्रदान करता है, भारत के संविधान के निम्नलिखित में से किस अनुच्छेद का उल्लंघन करता है?

(a) अनुच्छेद 14
(b) अनुच्छेद 28
(c) अनुच्छेद 32
(d) अनुच्छेद 44

उत्तर: (a)


प्रश्न. उन संभावित कारकों पर चर्चा कीजिये जो भारत को अपने नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता लागू करने से रोकते हैं, जैसा कि राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में प्रदान किया गया है। (मुख्य परीक्षा, 2015)

स्रोत: द हिंदू

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