शासन व्यवस्था
डेस्टिनेशन नॉर्थ ईस्ट
प्रिलिम्स के लिये:आज़ादी का अमृत महोत्सव, पूर्वोत्तर का सात दिवसीय सांस्कृतिक उत्सव, राष्ट्रीय संग्रहालय, मौरिस ग्वायर समिति, काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, हॉर्नबिल महोत्सव मेन्स के लिये:पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास कार्यक्रम एवं पूर्वोत्तर क्षेत्र का भारत के लिये महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ कार्यक्रम के तहत आज़ादी के 75 वर्ष के जश्न के हिस्से के रूप में पूर्वोत्तर का सात दिवसीय सांस्कृतिक उत्सव ‘डेस्टिनेशन नॉर्थ ईस्ट’, राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली में संपन्न हुआ।
- इसके अंतर्गत ‘उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय’ और ‘उत्तर-पूर्वी परिषद’ (NEC) की पहल "डेस्टिनेशन नॉर्थ ईस्ट इंडिया" के तहत उत्तर-पूर्व भारत की समृद्ध विरासत का जश्न मनाया गया।
प्रमुख बिंदु
- उद्देश्य: शेष भारत को उत्तर-पूर्व से जोड़ना।
- इसमें आठ पूर्वोत्तर राज्यों की कला और शिल्प, वस्त्र, जनजातीय उत्पाद, पर्यटन एवं इसके प्रचार आदि की विशेष प्रस्तुति दर्शाई है।
- शामिल संगठन:
- उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय।
- उत्तर पूर्वी परिषद (NEC): यह पूर्वोत्तर क्षेत्र के आर्थिक और सामाजिक विकास हेतु नोडल एजेंसी है जिसमें अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा के आठ राज्य शामिल हैं। इसका गठन वर्ष 1971 में संसद के एक अधिनियम द्वारा किया गया था।
- राष्ट्रीय संग्रहालय: दिल्ली में राष्ट्रीय संग्रहालय की स्थापना का खाका ‘मौरिस ग्वायर समिति’ द्वारा मई 1946 में तैयार किया गया था।
- अपनी शुरुआत में वर्ष 1957 तक यह पुरातत्त्व महानिदेशक के अंतर्गत कार्यरत था, बाद में शिक्षा मंत्रालय ने इसे एक अलग संस्थान घोषित किया और अपने प्रत्यक्ष नियंत्रण में रखा।
- वर्तमान में राष्ट्रीय संग्रहालय संस्कृति मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र का महत्त्व:
- सामरिक स्थान: NER रणनीतिक रूप से पूर्वी भारत के पारंपरिक घरेलू बाज़ार तक पहुँच के साथ-साथ पूर्व के पड़ोसी देशों, जैसे- बांग्लादेश और म्याँमार के साथ निकटता से जुड़ा है।
- दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ संबंध: आसियान के साथ जुड़ाव भारत की विदेश नीति की दिशा का केंद्रीय स्तंभ होने के साथ-साथ पूर्वोत्तर राज्य भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच भौतिक सेतु के रूप में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ पूर्वोत्तर राज्यों को भारत के पूर्वी देशों से जुड़ाव की क्षेत्रीय सीमा से संबंधित करती है।
- आर्थिक महत्त्व: NER में विशाल प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं, जो देश के जल संसाधनों का लगभग 34% और भारत की जलविद्युत क्षमता का लगभग 40% हैं।
- सिक्किम भारत का पहला जैविक राज्य है।
- पर्यटन क्षमता: भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में कई वन्यजीव अभयारण्य स्थित हैं, जैसे- काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, जो कि एक सींग वाले गैंडे के लिये प्रसिद्ध है, मानस राष्ट्रीय उद्यान, नामेरी, ओरंग, असम में डिब्रू सैखोवा, अरुणाचल प्रदेश में नामदफा, मेघालय में बालपक्रम, मणिपुर में केबुल लामजाओ, नागालैंड में इटांकी, सिक्किम में कंचनजंगा।
- सांस्कृतिक महत्त्व: NER में जनजातियों की अपनी संस्कृति है। लोकप्रिय त्योहारों में नगालैंड का हॉर्नबिल महोत्सव, सिक्किम का ‘पांग ल्हाबसोल’ आदि शामिल हैं।
पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये सरकारी पहल:
- उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय (DoNER): वर्ष 2001 में उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के विकास विभाग (Ministry of Development of North Eastern Region- DoNER) की स्थापना हुई। वर्ष 2004 में इसे एक पूर्ण मंत्रालय का दर्जा प्रदान कर दिया गया।
- अवसंरचना संबंधी पहल:
- भारतमाला परियोजना (Bharatmala Pariyojana- BMP) के तहत पूर्वोत्तर में लगभग 5,301 किलोमीटर सड़क के विस्तार व सुधार के लिये अनुमोदन प्रदान किया गया है।
- उत्तर-पूर्व को आरसीएस-उड़ान (उड़ान को और अधिक किफायती बनाने हेतु) के तहत प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में शामिल किया गया है।
- कनेक्टिविटी परियोजनाएंँ: कलादान मल्टी मॉडल पारगमन परिवहन परियोजना (म्याँमार) और बांग्लादेश-चीन-भारत-म्याँमार (Bangladesh-China-India-Myanmar- BCIM) कॉरिडोर।
- पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु पर्यटन मंत्रालय की स्वदेश दर्शन योजना के तहत पिछले पांँच वर्षों में पूर्वोत्तर के लिये 140.03 करोड़ रुपए की परियोजनाओं को मंज़ूरी दी गई है।
- मिशन पूर्वोदय: पूर्वोदय का उद्देश्य इस्पात क्षेत्र में एक एकीकृत इस्पात हब की स्थापना के माध्यम से पूर्वी भारत के त्वरित विकास को गति प्रदान करना है।
- एकीकृत स्टील हब, जिसमें ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और उत्तरी आंध्र प्रदेश शामिल हैं, पूर्वी भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु एक पथ-प्रदर्शक के रूप में कार्य करेगा।
- पूर्वोत्तर औद्योगिक विकास योजना (NEIDS): पूर्वोत्तर राज्यों में रोज़गार को बढ़ावा देने हेतु सरकार मुख्य रूप से इस योजना के माध्यम से एमएसएमई क्षेत्र को प्रोत्साहित कर रही है।
- पूर्वोत्तर के लिये राष्ट्रीय बांँस मिशन का विशेष महत्त्व है।
- उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विज़न 2020: यह दस्तावेज़ पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिये एक व्यापक ढांँचा प्रदान करता है ताकि इस क्षेत्र को अन्य विकसित क्षेत्रों के बराबर लाया जा सके जिसके तहत उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय सहित अन्य मंत्रालयों ने विभिन्न पहलें शुरू की हैं।
- डिजिटल नॉर्थ ईस्ट विज़न 2022: यह पूर्वोत्तर के लोगों के जीवन में बदलाव लाने और उसे आसान बनाने हेतु डिजिटल तकनीकों का लाभ उठाने पर ज़ोर देता है।
स्रोत: पीआईबी
भारतीय अर्थव्यवस्था
इनपुट टैक्स क्रेडिट पर रोक के संबंध में CBIC के दिशा-निर्देश
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड, वस्तु एवं सेवा’ कर, इनपुट टैक्स क्रेडिट मेन्स के लिये:इनपुट टैक्स क्रेडिट संबंधी प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड’ (CBIC) ने ‘वस्तु एवं सेवा’ कर के फील्ड अधिकारियों द्वारा टैक्स क्रेडिट को अवरुद्ध किये जाने संबंधी दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा कि इस तरह का अवरोध 'भौतिक साक्ष्य' के आधार पर होना चाहिये, न कि केवल 'संदेह' के आधार पर।
प्रमुख बिंदु
- इनपुट टैक्स क्रेडिट:
- इसका अभिप्राय ऐसे कर से है, जिसका भुगतान एक व्यवसाय द्वारा खरीद के समय किया जाता है और जब वह बिक्री करता है तो वह अपनी कर देयता को कम करने के लिये इसका उपयोग कर सकता है।
- इसका अर्थ है कि आउटपुट पर टैक्स का भुगतान करते समय इनपुट पर पहले से चुकाए गए टैक्स को कम किया जा सकता है और शेष राशि का भुगतान किया जा सकता है।
- अपवाद: ‘कंपोज़िशन स्कीम’ के तहत शामिल व्यवसाय इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ नहीं उठा सकते हैं। व्यक्तिगत उपयोग के लिये या छूट प्राप्त सामानों के लिये भी इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा नहीं किया जा सकता है।
- ‘कंपोज़िशन स्कीम’ वस्तु एवं सेवा कर के तहत एक योजना है, जिसे जटिल औपचारिकताओं से छुटकारा पाने के लिये चुना जा सकता है। इसे कोई भी करदाता चुन सकता है जिसका टर्नओवर 1.5 करोड़ रुपए से कम है।
- ‘इनपुट टैक्स क्रेडिट’ का दावा करने संबंधी प्रावधान:
- CGST (केंद्रीय जीएसटी) नियम, 2017 के संशोधित नियम 36 (4) में प्रावधान है कि इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ तभी उठाया जा सकता है जब माल आपूर्तिकर्त्ता प्रत्येक बिल के माध्यम से आपूर्ति का विवरण ऑनलाइन अपडेट और अपलोड करता है।
- नए दिशा-निर्देश:
- इसने कुछ विशिष्ट परिस्थितियों को निर्धारित किया जिसमें इस तरह के ITC को एक वरिष्ठ कर अधिकारी द्वारा अवरुद्ध किया जा सकता है।
- इनमें बिना किसी चालान या किसी वैध दस्तावेज़ के क्रेडिट प्राप्त करना या ऐसे चालान पर खरीदारों द्वारा क्रेडिट प्राप्त करना शामिल है, जिस पर विक्रेताओं द्वारा जीएसटी का भुगतान नहीं किया गया है।
- आयुक्त या उनके द्वारा अधिकृत कोई अधिकारी, जो सहायक आयुक्त के पद से नीचे का न हो, को मामले के सभी तथ्यों पर विचार करते हुए अपने विवेक के आधार पर ITC को अवरुद्ध करने संबंधी निर्णय लेना चाहिये।
- सरकार ने दिसंबर 2019 में जीएसटी नियमों में नियम 86A पेश किया था, जिससे करदाताओं के इलेक्ट्रॉनिक क्रेडिट लेज़र में उपलब्ध आईटीसी को ब्लॉक करने का प्रावधान किया गया था, यद्यपि अधिकारी के पास मज़बूत कारण उपलब्ध थे कि आईटीसी का धोखाधड़ी से लाभ उठाया गया था।
- यह निर्णय 86A के उप-नियम (1) के तहत शर्तों के अनुसार इनपुट टैक्स क्रेडिट के कपटपूर्ण लाभ के संबंध में उपलब्ध या एकत्र किये गए भौतिक साक्ष्य के आधार पर होना चाहिये।
- इन दिशा-निर्देशों ने टैक्स क्रेडिट को अवरुद्ध करने पर आयोगों, संयुक्त आयुक्तों और सहायक आयुक्तों के बीच शक्तियों के विभाजन के लिये मौद्रिक सीमा की सिफारिश की है।
- एक डिप्टी या असिस्टेंट कमिश्नर 1 करोड़ रुपए तक, अतिरिक्त या ज्वाइंट कमिश्नर 1 करोड़ रुपए से ऊपर लेकिन 5 करोड़ रुपए से कम और प्रिंसिपल कमिश्नर या कमिश्नर 5 करोड़ रुपए से ऊपर ITC को ब्लॉक कर सकता है।
- यदि कोई अधिकारी उचित प्रक्रिया के तहत आईटीसी को अवरुद्ध करता है, तो करदाता को जीएसटी पोर्टल पर कार्रवाई के साथ-साथ उस अधिकारी के विवरण के बारे में सूचित किया जाएगा जिसने इसे अवरुद्ध किया है।
केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC):
- यह वित्त मंत्रालय के तहत राजस्व विभाग का एक हिस्सा है।
- जीएसटी लागू होने के बाद वर्ष 2018 में ‘केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड’ (CBEC) का नाम बदलकर CBIC कर दिया गया था।
- यह सीमा शुल्क, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, केंद्रीय जीएसटी (CGST) और एकीकृत जीएसटी (IGST) अधिरोपित करने एवं संग्रह करने से संबंधित नीति तैयार करने के कार्य में संलग्न है।
- जीएसटी कानून में शामिल हैं- (i) केंद्रीय माल और सेवा कर अधिनियम, 2017 (ii) राज्य माल और सेवा कर अधिनियम, 2017 (iii) केंद्रशासित प्रदेश माल एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 (iv) एकीकृत माल और सेवा कर अधिनियम, 2017 (v) माल और सेवा कर (राज्यों को मुआवज़ा) अधिनियम, 2017।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजनीति
विशेषाधिकार प्रस्ताव
प्रिलिम्स के लिये:संसदीय विशेषाधिकार, राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण, सिविल प्रक्रिया संहिता मेन्स के लिये:विशेषाधिकारों का वर्गीकरण, विशेषाधिकार का अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंध |
चर्चा में क्यों?
राज्यसभा में कॉन्ग्रेस के मुख्य सचेतक ने राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (NMA) के अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर केंद्रीय संस्कृति मंत्री के खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव लाने की मांग की।
- NMA के वर्तमान अध्यक्ष की शैक्षिक और व्यावसायिक पृष्ठभूमि मार्च 2010 में संसद द्वारा पारित कानून की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती है।
राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण (NMA):
- स्थापना: NMA की स्थापना ‘प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्त्व स्थल और अवशेष (संशोधन और सत्यापन) अधिनियम’ (AMASR) के प्रावधानों के अनुसार, संस्कृति मंत्रालय के तहत की गई है, जिसे मार्च 2010 में अधिनियमित किया गया था।
- कार्य: केंद्र द्वारा संरक्षित स्मारकों के आसपास निषिद्ध और विनियमित क्षेत्रों के प्रबंधन के माध्यम से स्मारकों एवं स्थलों के संरक्षण व सुरक्षा के लिये NMA को कई कार्य सौंपे गए हैं।
- NMA प्रतिबंधित और विनियमित क्षेत्रों में निर्माण संबंधी गतिविधियों के लिये आवेदकों को अनुमति देने पर भी विचार करता है।
- अध्यक्ष की नियुक्ति के लिये योग्यता: AMASR अधिनियम कहता है कि NMA के अध्यक्ष के पास "पुरातत्त्व, देश और नगर नियोजन, वास्तुकला, विरासत, संरक्षण वास्तुकला या कानून के क्षेत्र में अनुभव और विशेषज्ञता होनी चाहिये।”
प्रमुख बिंदु
- परिचय: यह एक मंत्री द्वारा संसदीय विशेषाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित है।
- संसदीय विशेषाधिकारों का उल्लंघन: संसदीय विशेषाधिकार व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से संसद सदस्यों द्वारा प्राप्त कुछ अधिकार और उन्मुक्तियाँ हैं, ताकि वे ‘प्रभावी रूप से अपने कार्यों का निर्वहन’ कर सकें।
- जब इनमें से किसी भी अधिकार और उन्मुक्ति की अवहेलना की जाती है, तो अपराध को विशेषाधिकार का उल्लंघन कहा जाता है और यह संसद के कानून के तहत दंडनीय है।
- किसी भी सदन के सदस्य द्वारा विशेषाधिकार के उल्लंघन के दोषी पाए जाने वाले के खिलाफ प्रस्ताव के रूप में एक नोटिस पेश किया जाता है।
- इसका मकसद संबंधित मंत्री की निंदा करना है।
- स्पीकर/राज्यसभा (RS) अध्यक्ष की भूमिका:
- स्पीकर/राज्यसभा अध्यक्ष विशेषाधिकार प्रस्ताव की जाँच का पहला स्तर है।
- स्पीकर/अध्यक्ष विशेषाधिकार प्रस्ताव पर स्वयं निर्णय ले सकता है या इसे संसद की विशेषाधिकार समिति को संदर्भित कर सकता है।
- यदि स्पीकर/सभापति प्रासंगिक नियमों के तहत सहमति देता है, तो संबंधित सदस्य को एक संक्षिप्त वक्तव्य देने का अवसर दिया जाता है।
- विशेषाधिकार को नियंत्रित करने वाले नियम:
- लोकसभा नियम पुस्तिका के अध्याय 20 में नियम संख्या 222 और राज्यसभा नियम पुस्तिका के अध्याय 16 में नियम 187 के अनुरूप विशेषाधिकार को नियंत्रित करती है।
- नियम कहते हैं कि कोई भी सदस्य, अध्यक्ष या चेयरपर्सन की सहमति से किसी सदस्य या सदन या उससे संबंधित समिति के विशेषाधिकार के उल्लंघन के संबंध में प्रश्न उठा सकता है।
संसदीय विशेषाधिकार
- संसदीय विशेषाधिकार का आशय संसद के दोनों सदनों, उनकी समितियों और उनके सदस्यों द्वारा प्राप्त विशेष अधिकार, उन्मुक्तियाँ और छूट प्रदान करना है।
- संविधान उन व्यक्तियों को भी संसदीय विशेषाधिकार प्रदान करता है जो संसद के किसी सदन या उसकी किसी समिति की कार्यवाही में बोलने और भाग लेने के हकदार हैं। इनमें भारत के महान्यायवादी और केंद्रीय मंत्री शामिल हैं।
- संसदीय विशेषाधिकार राष्ट्रपति को नहीं मिलते जो संसद का अभिन्न अंग भी है। संविधान का अनुच्छेद 361 राष्ट्रपति को विशेषाधिकार प्रदान करता है।
- संविधान के अनुच्छेद 105 में स्पष्ट रूप से दो विशेषाधिकारों का उल्लेख है, अर्थात् संसद में बोलने की स्वतंत्रता और इसकी कार्यवाही के प्रकाशन का अधिकार।
- संविधान में निर्दिष्ट विशेषाधिकारों के अलावा सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 सदन या उसकी समिति की बैठक के दौरान और उसके प्रारंभ होने से 40 दिन पहले तथा इसके समापन के 40 दिन बाद तक सिविल प्रक्रिया के अंतर्गत सदस्यों को गिरफ्तारी व हिरासत से मुक्ति प्रदान कर सकती है।
- ध्यातव्य है कि संसद ने अब तक सभी विशेषाधिकारों को व्यापक रूप से संहिताबद्ध करने हेतु कोई विशेष कानून नहीं बनाया है।
विशेषाधिकार समिति
- यह एक स्थायी समिति है। यह सदन और उसके सदस्यों के विशेषाधिकारों के उल्लंघन के मामलों की जाँच करती है तथा उचित कार्रवाई की सिफारिश करती है।
- लोकसभा समिति में 15 सदस्य होते हैं, जबकि राज्यसभा समिति में 10 सदस्य होते हैं।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
जलवायु परिवर्तन और टिड्डियों का पर्याक्रमण
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन, चक्रवात, विश्व बैंक, विश्व खाद्य कार्यक्रम मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन और टिड्डियों के पर्याक्रमण में संबंध |
चर्चा में क्यों?
रेगिस्तानी टिड्डियों (Desert Locusts) का पर्याक्रमण (Infestation) या हमला, जिसने हाल के वर्षों में पूर्वी अफ्रीका से लेकर भारत तक बड़े पैमाने पर तबाही मचाई है, जलवायु परिवर्तन से निकटता से जुड़ा हुआ है।
- इस संदर्भ में ग्लोबल लैंडस्केप्स फोरम क्लाइमेट हाइब्रिड कॉन्फ्रेंस (Global Landscapes Forum Climate Hybrid Conference) द्वारा प्रस्तावित प्रस्ताव में जलवायु परिवर्तन को कम करने की योजनाओं में कीटों और बीमारियों के खिलाफ कार्रवाई को शामिल किये जाने की बात भी कही गई है।
- यह सम्मेलन हाल ही में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के 26वें कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ के साथ आयोजित किया गया था।
वैश्विक परिदृश्य फोरम:
- वैश्विक परिदृश्य फोरम (Global Landscapes Forum- GLF) भूमि के एकीकृत उपयोग हेतु विश्व का सबसे बड़ा ज्ञान आधारित मंच है, जो सतत् विकास लक्ष्यों और पेरिस जलवायु समझौते के प्रति समर्पित है।
- इसका नेतृत्व सेंटर फॉर इंटरनेशनल फॉरेस्ट्री रिसर्च (Center for International Forestry Research- CIFOR) द्वारा इसके सह-संस्थापक संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, विश्व बैंक तथा चार्टर सदस्यों के सहयोग से किया जाता है।
प्रमुख बिंदु
- टिड्डियों का हमला और उसका प्रभाव:
- रेगिस्तानी टिड्डी के बारे में: रेगिस्तानी टिड्डी ( शिस्टोसेर्का ग्रेगेरिया) एक छोटे सींग वाली टिड्डी होती है।
- जब ये एकांत में होती हैं तो कोई नुकसान नहीं करती लेकिन जिस समय टिड्डियों की आबादी तेज़ी से बढ़ती है तो इनके व्यवहार में बदलाव आता है।
- ये विशाल झुंड बनाकर 'ग्रेगियस फेज़' (Gregarious Phase) में प्रवेश करती हैं, जो प्रतिदिन 150 किमी. तक की यात्रा कर सकती हैं और अपने रास्ते में आने वाली फसल को खा जाती हैं।
- प्रभाव: टिड्डियों का पर्याक्रमण आजीविका को नुकसान पहुंँचा सकता है और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में क्षेत्रीय निवेश के लिये खतरनाक साबित हो सकता है।
- विश्व बैंक के अनुसार: वर्ष 2020 में अकेले पूर्वी अफ्रीका और यमन में टिड्डियों के कारण 8.5 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है।
- विश्व खाद्य कार्यक्रम के अनुसार: यदि झुंड की वृद्धि को नियंत्रित नहीं किया गया तो दीर्घकालिक प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति लागत 1 बिलियन डाॅलर से अधिक हो सकती है।
- रेगिस्तानी टिड्डी के बारे में: रेगिस्तानी टिड्डी ( शिस्टोसेर्का ग्रेगेरिया) एक छोटे सींग वाली टिड्डी होती है।
- टिड्डियों का प्रजनन और जलवायु परिवर्तन से संबंध:
- प्रभावित क्षेत्र: टिड्डियांँ खासतौर पर भारत, पाकिस्तान और ईरान समेत कई देशों के किसानों के लिये एक अभिशाप साबित हुई हैं।
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: वर्ष 2020 में अरब सागर के ऊपर चक्रवाती पैटर्न में बदलाव का कारण पूर्वी अफ्रीका, पश्चिम और दक्षिण एशिया में टिड्डियों का पर्याक्रमण है।
- ईरान में असामान्य वर्षा ने उनके प्रजनन में मदद की है।
- टिड्डियों को निष्क्रिय उड़ने वाले के रूप में जाना जाता है और आमतौर पर ये हवा का अनुसरण करती हैं।
- इन्हें उड़ान भरने के लिये पछुआ हवाओं से सहायता मिली है, जो बंगाल की खाड़ी में चक्रवात अम्फान (2019) के कारण बने कम दबाव के क्षेत्र से और अधिक मज़बूत हुई है।
- कीटनाशक उपयुक्त समाधान नहीं है:
- व्यापक स्पेक्ट्रम वाले कीटनाशकों के भारी उपयोग से रेगिस्तानी टिड्डियों के आक्रमण को अवरुद्ध तो किया जा सकता है परंतु ये पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव भी डालते हैं।
- कीटनाशक परागणकों और वन्यजीवों के लिये खतरा हैं।
- व्यापक स्पेक्ट्रम कीटनाशक एक शक्तिशाली कीटनाशक है जो जीवों के पूरे समूह या प्रजातियों को लक्षित करता है और आमतौर पर पौधों के लिये हानिकारक होते हैं।
- खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, मार्च 2021 तक पूर्वी अफ्रीका में टिड्डियों को नियंत्रित करने के लिये 1.8 मिलियन लीटर कीटनाशकों का इस्तेमाल किया गया था। यह वर्ष 2021 के अंत तक बढ़कर दो मिलियन लीटर से अधिक हो सकता है।
- व्यापक स्पेक्ट्रम वाले कीटनाशकों के भारी उपयोग से रेगिस्तानी टिड्डियों के आक्रमण को अवरुद्ध तो किया जा सकता है परंतु ये पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव भी डालते हैं।
आगे की राह:
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: उपग्रह और मौसम डेटा का क्षेत्र अवलोकन के साथ प्रजनन स्थलों पर कुशल शासन मॉडल बनाने के लिये उपयोग किया जा सकता है।
- सही लागत लेखांकन: सही लागत लेखांकन के माध्यम से पर्यावरण और मानवीय लागतों की गणना करना।
- सही लागत लेखांकन एक नए प्रकार की बहीखाता पद्धति है जो न केवल किसी कंपनी के भीतर सामान्य वित्तीय मूल्यों को देखती है, बल्कि प्राकृतिक और सामाजिक पूंजी पर प्रभावों की गणना भी करती है।
- एक कुशल नियंत्रित मॉडल विकसित करना: टिड्डियों के हमले पर नियंत्रण पाना कृषि-खाद्य प्रणाली के लिये उपयोगी साबित हो सकता है।
- किसानों और स्थानीय समुदायों के बीच जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ उन्हें निर्णय लेने में शामिल करने की आवश्यकता है।
- अनुसंधान के लिये धन जुटाना: जैव कीटनाशकों के अनुसंधान के लिये निधि प्रदान करना आवश्यक है जो कि वर्तमान में बेहद कम है।
- टिड्डियों के हमलों को रोकने के लिये ज़िम्मेदार संगठनों को गंभीर वित्तीय बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
- फरवरी 2020 में पूर्वी अफ्रीका में टिड्डियों के प्रकोप से निपटने के लिये FAO को $138 मिलियन की आवश्यकता थी। संगठन को दानदाताओं से केवल $33 मिलियन प्राप्त हुए।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
चीन ने पाकिस्तान को दिया सबसे बड़ा युद्धपोत: पीएनएस तुगरिल
प्रिलिम्स के लिये:पीएनएस तुगरिल, हिंद महासागर क्षेत्र, 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल, चागोस द्वीप समूह मेन्स के लिये:हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की उपस्थिति एवं चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन ने पाकिस्तान को पहला टाइप 054A/P फ्रिगेट (युद्धपोत) सौंपा। इसे पीएनएस तुगरिल (PNS Tughril) नाम दिया गया है।
- चार प्रकार के 054A/P युद्धपोतों में पहला युद्धपोत पीएनएस तुगरिल है जिसका निर्माण पाकिस्तानी नौसेना के लिये किया जा रहा है।
प्रमुख बिंदु
- विशेषताएँ:
- यह जहाज़ तकनीकी रूप से उन्नत और अत्यधिक सक्षम है जिसमें सतह से सतह, सतह से हवा और व्यापक निगरानी क्षमता के अलावा पानी के नीचे मारक क्षमता हासिल की जा सकती है।
- इस युद्धपोत में विश्व स्तरीय स्टील्थ क्षमता है और यह किसी भी रडार के संपर्क में आसानी से नहीं आएगा।
- इसमें लंबी दूरी की मारक क्षमता वाली मिसाइलें और एक अत्याधुनिक तोप भी है जो एक मिनट में कई राउंड फायर करने में सक्षम है।
- यह युद्धपोत अत्याधुनिक युद्ध प्रबंधन प्रणाली (BMS) से लैस है, जो पाकिस्तानी नौसेना की युद्ध क्षमता को कई गुना बढ़ा देगा।
- बीएमसी (BMS) मूल रूप से रडार और इंटरसेप्टर मिसाइल के बीच संपर्क स्थापित करता है।
- भारत की चिंताएँ:
- यह हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री रक्षा सुनिश्चित करने हेतु समुद्री चुनौतियों का सामना करने के लिये पाकिस्तानी नौसेना की क्षमता को मज़बूती प्रदान करेगा।
- यह पाकिस्तानी नौसेना की समुद्री रक्षा क्षमताओं को मज़बूत करते हुए पाकिस्तानी नौसेना के बेड़े (Fleet) का मुख्य आधार बनेगा।
- उन्नत नौसैनिक जहाज़ों के अलावा चीन ने JF-17 थंडर लड़ाकू विमान बनाने के लिये पाकिस्तानी वायुसेना के साथ साझेदारी की है।
- हिंद महासागर क्षेत्र में हॉर्न ऑफ अफ्रीका के जिबूती में अपना पहला सैन्य अड्डा बनाने के अलावा चीन ने अरब सागर में पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह का नियंत्रण हासिल किया है जो चीन के झिंजियांग प्रांत से 60 अरब अमेरिकी डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) से संबंधित है।
- चीन श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को भी 99 साल के लिये लीज पर हासिल कर उसका विकास कर रहा है।
- पाकिस्तानी नौसेना के आधुनिकीकरण के साथ-साथ नौसैनिक अड्डों का नियंत्रण हासिल होने से हिंद महासागर और अरब सागर में चीनी नौसेना की व्यापक उपस्थिति की संभावना है।
- यह हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री रक्षा सुनिश्चित करने हेतु समुद्री चुनौतियों का सामना करने के लिये पाकिस्तानी नौसेना की क्षमता को मज़बूती प्रदान करेगा।
हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की उभरती स्थिति
- समुद्र तटीय राष्ट्रों के साथ विभिन्न समझौते: भारत ने अपने सैन्य अड्डों तक पहुँच प्राप्त करने हेतु तटवर्ती हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region- IOR) में कई राष्ट्रों के साथ समझौतों पर बातचीत की है।
- इंडोनेशिया के रणनीतिक दृष्टिकोण से गहरे समुद्र में स्थित सबांग बंदरगाह (Sabang Port) और ओमान के डुक्म बंदरगाह ( Duqm Port) तक पहुँच स्थापित करने जैसे समझौते नई दिल्ली की भू-राजनीतिक स्थिति को मज़बूत करते हैं क्योंकि ये चीन के 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल' का मुकाबला करने में सक्षम है।
- IOR के अतिरिक्त जुड़ाव: भारत ने IOR के बाहर के राष्ट्रों के साथ समझौता किया है तथा लॉजिस्टिक्स सपोर्ट एग्रीमेंट के माध्यम से फ्राँस व संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ सहयोग को और मज़बूत किया है।
- यह भारत को अमेरिकी सीमांकन क्षेत्र के डिएगो गार्सिया (मध्य हिंद महासागर में चागोस द्वीप समूह का सबसे दक्षिणी सदस्य) और फ्राँसीसी सीमांकन क्षेत्र के रीयूनियन द्वीप पर बंदरगाह सुविधाओं तक पहुँच प्रदान करता है।
- चतुर्भुज वार्ता: संयुक्त राज्य अमेरिका भारत के साथ अनौपचारिक चतुर्भुज सुरक्षा संवाद या "क्वाड" के माध्यम से जुड़ा है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया और जापान भी शामिल हैं।
- पेरिस-दिल्ली-कैनबरा अक्ष (एक्सिस): फ्राँस ने हिंद-प्रशांत में "पेरिस-दिल्ली-कैनबरा अक्ष” (एक्सिस) के निर्माण का आह्वान किया है, जो IOR की भू-राजनीतिक स्थिति पर भारत के बढ़ते प्रभाव को रेखांकित करता है।
- हिंद महासागर क्षेत्र के लिये सूचना संलयन केंद्र (IFC-IOR): IFC-IOR की स्थापना इस क्षेत्र के लिये समुद्री सूचना केंद्र के रूप में कार्य करके क्षेत्र और उससे परे समुद्री सुरक्षा को मज़बूत करने के दृष्टिकोण से की गई है।
- समुद्री अभ्यास: भारत ने अपने "मालाबार" नौसैनिक अभ्यास के एक संस्करण का समापन किया, जिसमें अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल थे।
- वर्ष 2018 में भारत ने 16 अन्य देशों के साथ अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में ‘मिलन’ (MILAN) नामक बहुपक्षीय नौसैनिक अभ्यास तथा ऑस्ट्रेलियाई, जापानी एवं अमेरिकी नौसेना बलों के साथ नौकायन के रिम ऑफ द पैसिफिक एक्सरसाइज़ (RIMPAC) का भी आयोजन किया।
- नौसनिक जहाज़: भारत में पहले से ही एक परिचालित वाहक, आईएनएस विक्रमादित्य है और एक दूसरे आईएनएस विक्रांत के परिचालन की योजना है, इसने विक्रांत का अनुसरण करने के लिये विमान वाहक के एक वर्ग को विकसित करने हेतु महत्त्वाकांक्षी योजना की रूपरेखा तैयार की है।
- भारतीय नौसेना ने भविष्य में 57 वाहक-आधारित लड़ाकू जेट खरीदने की योजना की रूपरेखा तैयार की है, साथ ही परमाणु शक्ति वाले आक्रामक जहाज़ों के एक नए अरिहंत-वर्ग के साथ अपने पनडुब्बी बेड़े का आधुनिकीकरण किया है।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
डबल एस्ट्रॉयड रिडायरेक्शन टेस्ट: नासा
प्रिलिम्स के लिये:डबल एस्ट्रॉयड रिडायरेक्शन टेस्ट, नासा, फाल्कन 9 रॉकेट मेन्स के लिये:ग्रह रक्षा प्रणाली का महत्त्व और आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
नासा जल्द ही ‘डबल एस्ट्रॉयड रिडायरेक्शन टेस्ट’ (DART) नाम से अपना पहला ग्रह रक्षा परीक्षण मिशन लॉन्च करेगा।
- ‘DART’ अंतरिक्षयान को स्पेसएक्स फाल्कन 9 रॉकेट द्वारा लॉन्च किया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
- मिशन का उद्देश्य:
- यह मिशन भविष्य में पृथ्वी की ओर किसी क्षुद्रग्रह/एस्ट्रॉयड के आने की स्थिति में तैयार की जाने वाली नई तकनीक का परीक्षण करेगा।
- इसका उद्देश्य नई विकसित तकनीक का परीक्षण करना है, जो एक अंतरिक्षयान को क्षुद्रग्रह से टकराकर उसकी दिशा को बदलने की अनुमति देगा।
- अंतरिक्षयान के क्षुद्रग्रह से टकराने के बाद वैज्ञानिक पृथ्वी पर मौजूद दूरबीनों से क्षुद्रग्रह के प्रक्षेपवक्र पर इसके प्रभाव का अध्ययन करेंगे।
- ‘DART’ अंतरिक्ष में किसी क्षुद्रग्रह की गति को बदलने हेतु गतिज प्रभावकारी तकनीक का पहला परिक्षण होगा।
- इस अंतरिक्षयान का लक्ष्य एक छोटा सा चंद्रमा है, जिसे ‘डिमोर्फोस’ (ग्रीक भाषा में ‘दो रूपों वाला’) कहा जाता है।
- डिमोर्फोस, ‘डिडिमोस’ (ग्रीक भाषा में ‘जुड़वाँ’) नामक एक बड़े क्षुद्रग्रह की परिक्रमा करता है।
- यह एक आत्मघाती मिशन है और अंतरिक्षयान पूरी तरह से नष्ट हो जाएगा।
- अंतरिक्षयान और क्षुद्रग्रह की टक्कर 26 सितंबर से 1 अक्तूबर, 2022 के बीच होने की संभावना है।
- मिशन के विषय में
- ‘DART’ एक कम लागत वाला अंतरिक्षयान है।
- इसमें दो सोलर ऐरेज़ शामिल हैं और अंतरिक्षयान के संचालन के लिये ये हाइड्राज़ीन प्रणोदक का उपयोग करटे हैं।
- इसमें लगभग 10 किलोग्राम ‘ज़ेनॉन’ (Xenon) भी होता है जिसका उपयोग नए थ्रस्टर्स को प्रदर्शित करने के लिये किया जाएगा, जिसे ‘नासा इवोल्यूशनरी ज़ेनॉन थ्रस्टर-कमर्शियल (NEXT-C)) कहा जाता है।
- NEXT-C ग्रेडेड आयन थ्रस्टर सिस्टम प्रदर्शन और अंतरिक्षयान एकीकरण क्षमताओं का एक संयोजन प्रदान करता है, जो इसे अंतरिक्ष रोबोट मिशन के लिये विशिष्ट रूप से अनुकूल बनाता है।
- अंतरिक्षयान में एक उच्च-रिज़ॉल्यूशन इमेजर होता है जिसे ‘डिडिमोस रिकोनिसेंस एंड एस्ट्रॉयड कैमरा फॉर ऑप्टिकल नेविगेशन’ (DRACO) कहा जाता है।
- ‘DRACO’ से प्राप्त इमेज वास्तविक समय में पृथ्वी पर भेजी जाएंगी और डिमोर्फोस (लक्ष्य क्षुद्रग्रह) के प्रभाव स्थल और सतह का अध्ययन करने में मदद करेंगी।
- साथ ही यह मिशन ‘LICIACube’ (लाइट इटालियन क्यूबसैट फॉर इमेजिंग ऑफ एस्ट्रॉयड) नामक एक छोटा उपग्रह या क्यूबसैट भी ले जाएगा।
- ‘LICIACube’ से टक्कर के परिणामस्वरूप उत्पन्न प्रभाव और इससे निर्मित क्रेटर की छवियों को कैप्चर करेगा।
- ‘डिमोर्फोस’ के चयन का कारण:
- डिडिमोस’ परीक्षण मिशन के लिये एक आदर्श निकाय है, क्योंकि यह एक ‘एक्लिप्सिंग बाइनरी’ है जिसका अर्थ है कि इसमें एक चंद्रमा है जो नियमित रूप से क्षुद्रग्रह की परिक्रमा करता है और जिसे मुख्य क्षुद्रग्रह के सामने से गुज़रने पर देखा जा सकता है।
- पृथ्वी पर मौजूद दूरबीन यह समझने के लिये इसका अध्ययन कर सकते हैं कि डिमोर्फोस को डिडिमोस की परिक्रमा करने में कितना समय लगता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय इतिहास
अबुल कलाम आज़ाद: राष्ट्रीय शिक्षा दिवस
प्रिलिम्स के लिये:असहयोग आंदोलन, अबुल कलाम आज़ाद, नमक सत्याग्रह, प्रथम विश्व युद्ध, भारत रत्न मेन्स के लिये:भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अबुल कलाम आज़ाद का योगदान |
चर्चा में क्यों?
प्रत्येक वर्ष 11 नवंबर को स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की जयंती के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय शिक्षा दिवस (National Education Day) के रूप में मनाया जाता है।
- वर्ष 2008 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय (अब शिक्षा मंत्रालय) ने मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के जन्मदिन को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। शिक्षा के महत्त्व को उजागर करने के उद्देश्य से देश के शैक्षणिक संस्थान इस दिन सेमिनार, निबंध-लेखन, कार्यशालाओं आदि का आयोजन करते हैं।
प्रमुख बिंदु
- जन्म: मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जिनका मूल नाम मुहियुद्दीन अहमद था, का जन्म 11 नवंबर, 1888 को मक्का, सऊदी अरब में हुआ था।
- आज़ाद एक शानदार वक्ता थे, जैसा कि उनके नाम से संकेत मिलता है- ‘अबुल कलाम’ का शाब्दिक अर्थ है ‘संवादों का देवता’ (Lord of Dialogues)।
- संक्षिप्त परिचय:
- वे एक पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ और शिक्षाविद् थे।
- योगदान (स्वतंत्रता पूर्व):
- ये विभाजन के कट्टर विरोधी थे तथा हिंदू मुस्लिम एकता के समर्थक थे।
- वर्ष 1912 में उन्होंने उर्दू में अल-हिलाल नामक एक साप्ताहिक पत्रिका शुरू की, जिसने मॉर्ले-मिंटो सुधारों (1909) के बाद दो समुदायों के बीच हुए मनमुटाव को समाप्त कर हिंदू-मुस्लिम एकता को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- वर्ष 1909 के सुधारों के तहत मुसलमानों के लिये अलग निर्वाचक मंडल के प्रावधान का हिंदुओं द्वारा विरोध किया गया था।
- सरकार ने अल-हिलाल पत्रिका को अलगाववादी विचारों का प्रचारक माना और 1914 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया।
- मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने हिंदू-मुस्लिम एकता पर आधारित भारतीय राष्ट्रवाद और क्रांतिकारी विचारों के प्रचार के समान मिशन के साथ अल-बालाग नामक एक और साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन शुरू किया।
- वर्ष 1916 में ब्रिटिश सरकार ने इस पत्र पर भी प्रतिबंध लगा दिया तथा मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को कलकत्ता से निष्कासित कर बिहार निर्वासित कर दिया गया, जहाँ से उन्हें वर्ष 1920 में प्रथम विश्व युद्ध के बाद रिहा कर दिया गया था।
- वर्ष 1912 में उन्होंने उर्दू में अल-हिलाल नामक एक साप्ताहिक पत्रिका शुरू की, जिसने मॉर्ले-मिंटो सुधारों (1909) के बाद दो समुदायों के बीच हुए मनमुटाव को समाप्त कर हिंदू-मुस्लिम एकता को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- आज़ाद ने गांधीजी द्वारा शुरू किये गए असहयोग आंदोलन (1920-22) का समर्थन किया और 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस में शामिल हुए।
- वर्ष 1923 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुना गया। 35 वर्ष की आयु में वह भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस की अध्यक्षता करने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति बन गए।
- वर्ष 1930 में मौलाना आज़ाद को गांधीजी के नमक सत्याग्रह में शामिल होने तथा नमक कानून का उल्लंघन करने के लिये गिरफ्तार किया गया था। उन्हें डेढ़ साल तक मेरठ जेल में रखा गया था।
- वे 1940 में फिर से कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष बने और 1946 तक इस पद पर बने रहे।
- ये विभाजन के कट्टर विरोधी थे तथा हिंदू मुस्लिम एकता के समर्थक थे।
- एक शिक्षाविद्:
- शिक्षा के क्षेत्र में मौलाना आज़ाद उदारवादी सर्वहितवाद/सार्वभौमिकता के प्रतिपादक थे, जो वास्तव में उदार मानवीय शिक्षा प्रणाली थी।
- शिक्षा के संदर्भ में आज़ाद की विचारधारा पूर्वी और पश्चिमी अवधारणाओं के सम्मिलन पर केंद्रित थी जिससे पूरी तरह से एकीकृत व्यक्तित्व का निर्माण हो सके। जहाँ पूर्वी अवधारणा आध्यात्मिक उत्कृष्टता और व्यक्तिगत मोक्ष पर आधारित थी वहीं पश्चिमी अवधारणा ने सांसारिक उपलब्धियों और सामाजिक प्रगति पर अधिक बल दिया।
- वे जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के संस्थापक सदस्यों में से एक थे जिसे मूल रूप से वर्ष 1920 में संयुक्त प्रांत के अलीगढ़ में स्थापित किया गया था।
- उनकी रचनाएँ: बेसिक कॉन्सेप्ट ऑफ कुरान, गुबार-ए-खातिर, दर्श-ए-वफा, इंडिया विन्स फ्रीडम आदि।
- योगदान (स्वतंत्रता के पश्चात्):
- वर्ष 1947 में वह स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री बने और वर्ष 1958 में अपनी मृत्यु तक इस पद पर बने रहे। अपने कार्यकाल में उन्होंने देश के उत्थान के लिये उल्लेखनीय कार्य किये।
- शिक्षा मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान देश में पहले IIT, IISc, स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना की गई थी।
- विज्ञान संबंधी शिक्षा में प्रगति और विकास के लिये निम्नलिखित संस्थानों की स्थापना की गई:
- वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान (वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद)।
- परमाणु विकास हेतु एक अलग संस्थान।
- भारतीय कृषि एवं वैज्ञानिक अनुसंधान परिषद।
- भारतीय आयुर्विज्ञान अुनसंधान परिषद।
- भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद।
- भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद।
- अन्य देशों में भारतीय संस्कृति के परिचय हेतु भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (Indian Council for Cultural Relations-ICCR)।
- निम्नलिखित तीन अकादमियों का गठन किया:
- साहित्य के विकास के लिये साहित्य अकादमी।
- भारतीय संगीत एवं नृत्य के विकास के लिये संगीत नाटक अकादमी।
- चित्रकला के विकास के लिये ललित कला अकादमी।
- वर्ष 1947 में वह स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री बने और वर्ष 1958 में अपनी मृत्यु तक इस पद पर बने रहे। अपने कार्यकाल में उन्होंने देश के उत्थान के लिये उल्लेखनीय कार्य किये।
- मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को मरणोपरांत वर्ष 1992 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।