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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पुर्नगठित राष्ट्रीय बाँस मिशन

  • 27 Apr 2018
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति द्वारा 14वें वित्त आयोग (2018-19 तथा 2019-20) की शेष अवधि के दौरान सतत् कृषि के लिये राष्ट्रीय मिशन (National Mission for Sustainable Agriculture - NMSA) के अंतर्गत केंद्र प्रायोजित राष्ट्रीय बाँस मिशन (National Bamboo Mission - NBM) को स्वीकृति दी गई है। मिशन सम्पूर्ण मूल्य श्रृंखला बनाकर और उत्पादकों (किसानों) का उद्योग के साथ कारगर संपर्क स्थापित करके बाँस क्षेत्र का सम्पूर्ण विकास सुनिश्चित करेगा।

  • मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने एनबीएम के दिशा-निर्देशों को तैयार करने तथा दिशा-निर्देशों में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय की स्वीकृति के साथ राज्यों की विशेष सिफारिशों के अनुसार समय-समय पर उठाए गए कदमों के लिये लागत के तौर-तरीकों सहित अन्य परिवर्तन करने हेतु कार्यकारी समिति को शक्तियाँ प्रदान करने को भी अपनी मंज़ूरी दे दी।

व्यय

  • 14वें वित्त आयोग (2018-19 तथा 2019-20) की शेष अवधि के दौरान मिशन लागू करने के लिये 1290 करोड़ रुपए का (केंद्रीय हिस्से के रूप में 950 करोड़ रुपए के साथ) प्रावधान किया गया है।

लाभार्थी

  • इस योजना से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से किसानों, स्थानीय दस्तकारों और बाँस क्षेत्र में काम कर रहे अन्य लोगों को लाभ होगा।
  • पौधरोपण के अंतर्गत लगभग एक लाख हेक्टेयर क्षेत्र को लाने का प्रस्ताव किया गया है। इसलिये यह आशा की जाती है कि पौधरोपण को लेकर प्रत्यक्ष रूप से लगभग एक लाख किसान लाभान्वित होंगे।

कवर किये गए राज्य/ज़िले

  • मिशन उन सीमित राज्यों में जहाँ बाँस के सामाजिक, वाणिज्यिक और आर्थिक लाभ हैं वहाँ बाँस के विकास पर ध्यान केंद्रित करेगा, विशेषकर पूर्वोत्तर क्षेत्र में और मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा, कर्नाटक, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, आंध्र प्रेदश, तेलंगाना, गुजरात, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में।
  • आशा है कि यह मिशन 4,000 शोधन/उत्पाद विकास इकाइयाँ स्थापित करेगा और 1,00,000 हेक्टेयर क्षेत्र को पौधरोपण के अंतर्गत लाएगा।

प्रभाव

  • बाँस पौधरोपण से कृषि उत्पादकता और आय बढ़ेगी, परिणामस्वरूप भूमिहीनों सहित छोटे और मझौले किसानों एवं महिलाओं की आजीविका के अवसरों में वृद्धि होगी और उद्योग को गुणवत्ता संपन्न सामग्री मिलेगी।
  • इस तरह यह मिशन न केवल किसानों की आय बढ़ाने के लिये संभावित उपाय के रूप में काम करेगा, बल्कि जलवायु को सुदृढ़ बनाने और पर्यावरण संबंधी लाभों में भी योगदान करेगा। 
  • मिशन कुशल और अकुशल दोनों क्षेत्र में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार सृजन में सहायक होगा।

विवरण
पुनर्गठित एनबीएम का प्रयास है

  • कृषि आय के पूरक के रूप में गैर-वन सरकारी और निजी भूमि में बाँस पौधरोपण क्षेत्र में वृद्धि करना और जलवायु परिवर्तन की दिशा में मज़बूती से योगदान करना।
  • नवाचारी प्राथमिक प्रोसेसिंग इकाइयों की स्थापना करके, शोधन तथा मौसमी पौधे लगाकर, प्राथमिक शोधन करके, संरक्षण प्रौद्योगिकी तथा बाज़ार अवसंरचना स्थापित करके फसल के बाद के प्रबंधन में सुधार करना।
  • सूक्ष्म, लघु और मझौले स्तरों पर उत्पाद के विकास को प्रोत्साहित करना और बड़े उद्योगों की पूर्ति करना।
  • भारत में अविकसित बाँस उद्योग का कायाकल्प करना।
  • कौशल विकास, क्षमता सृजन और बाँस क्षेत्र के विकास के बारे में जागरूकता को प्रोत्साहित करना।

कार्यान्वयन, रणनीति और लक्ष्य
बाँस क्षेत्र के विकास के लिये निम्नलिखित कदम उठाए जाएंगे

  • मिशन का फोकस इन राज्यों में बाँस के विकास पर होगा, जहाँ बाँस के सामाजिक, वाणिज्यिक और आर्थिक लाभ हैं।
  • वाणिज्यिक और औद्योगिक मांग की बाँस प्रजातियों की वंशानुगत श्रेष्ठ पौध सामग्री पर फोकस होगा।
  • बाँस क्षेत्र में प्रारंभ से अंत तक संरक्षण की नीति अपनाई जाएगी, यानी बाँस उत्पादकों से लेकर उपभोक्ताओं तक सम्पूर्ण मूल्य श्रृंखला होगी।
  • निर्धारित क्रियान्वयन दायित्वों के साथ मंत्रालयों/विभागों/एजेंसियों के एकीकरण के लिये एक मंच के रूप में मिशन को विकसित किया गया है।
  • कौशल विकास और प्रशिक्षण के माध्यम से अधिकारियों, फील्ड में काम करने वाले लोगों, उद्यमियों तथा किसानों के क्षमता सृजन पर बल दिया जाएगा।
  • बाँस उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिये अनुसंधान और विकास पर फोकस किया जाएगा।

पृष्ठभूमि

  • बाँस के आर्थिक उपयोग की संभावना को देखते हुए भारत सरकार ने राष्ट्रीय बाँस मिशन शुरू किया।
  • यह कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा 2006 में बाँस क्षेत्र के समग्र विकास के लिये केंद्रीय योजना के रूप में प्रारंभ किया गया। 
  • मिशन का बल मुख्य रूप से बाँस के प्रचार और उत्पादन पर था तथा प्रसंस्करण, उत्पाद विकास एवं मूल्यवर्द्धन पर सीमित प्रयास किये गए थे।
  • उत्पादकों (किसानों) तथा उद्योग के बीच संपर्क की कड़ी कमज़ोर थी। पुनर्गठित प्रस्ताव गुणवत्ता संपन्न पौधारोपण के प्रचार, उत्पाद विकास तथा मूल्यवर्द्धन पर एक साथ बल देता है।
  • इसमें प्राथमिक प्रसंस्करण और शोधन, सूक्ष्म, लघु एवं मझौले उद्यम, उच्च मूल्य के उत्पाद, बाज़ार और कौशल विकास शामिल हैं। इस तरह इसमें बाँस क्षेत्र के विकास के लिये संपूर्ण मूल्य श्रृंखला बनाने पर बल दिया गया है।

पहले से चल रही योजना का विवरण और प्रगति

  • राष्ट्रीय बाँस मिशन (एनबीएम) को प्रारंभ में 2006-07 में केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में शुरू किया गया था। 2014-15 में इसे एकीकृत बागवानी विकास मिशन (Mission for Integrated Development of Horticulture - MIDH) के अंतर्गत शामिल कर लिया गया। 
  • 2006-07 से बाँस पौधरोपण के अंतर्गत 3.62 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया गया और बाँस के 39 थोक बाज़ार, 40 बाँस बाज़ार स्थापित किये गए तथा 29 खुदरा दुकानें खोली गईं।

निष्कर्ष
खाद्य पदार्थ की पौष्टिकता तथा आजीविका संबंधी पारिस्थितिकीय सुरक्षा के मामले में बाँस की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। बाँस क्षेत्र रोज़गार सृजन में योगदान कर सकता है ताकि ग्रामीण कमज़ोर वर्गों की आजीविका चलती रहे। विदित हो कि भारत में बाँस उत्पादन कम है। साथ ही बाँस की मांग और सप्लाई के बीच खाई भी अधिक है। इसलिये गुणवत्ता संपन्न बाँस उत्पादन बढ़ाना आवश्यक है, ताकि बाँस के संबंधित परंपरागत उपयोग के अतिरिक्त समाज के अन्य क्षेत्रों में बाँस की बढ़ती मांग पूरी की जा सके। भारत में बाँस क्षेत्र को तेज़ी से विकसित करने की ज़रूरत है। यह काम उचित रणनीति बनाए बिना संभव नहीं है।

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