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डेली न्यूज़

  • 12 May, 2023
  • 55 min read
शासन व्यवस्था

पोषण भी, पढ़ाई भी

प्रिलिम्स के लिये:

प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ECCE), नई शिक्षा नीति, एकीकृत बाल विकास सेवाएँ (ICDS), राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, पल्स पोलियो टीकाकरण (PPI)

मेन्स के लिये:

आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ता की भूमिका और ज़िम्मेदारियाँ, आँगनवाड़ी से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री ने सरकार के प्रमुख कार्यक्रम 'पोषण भी, पढ़ाई भी' की शुरुआत की, जो देश भर के आँगनवाड़ियों में प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (Early Childhood Care and Education- ECCE) पर केंद्रित होगा।

प्रमुख बिंदु  

  • मंत्रालय ने ECCE को प्रभावी ढंग से लागू करने हेतु आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं (Anganwadi Workers- AWW) के प्रशिक्षण के लिये 600 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं।
  • राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान (National Institute of Public Cooperation and Child Development- NIPCCD) आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं को प्रशिक्षण प्रदान करेगा।
  • कार्यक्रम का उद्देश्य आँगनवाड़ी केंद्रों को न केवल पोषण केंद्रों बल्कि शिक्षा प्रदान करने वाले केंद्रों में बदलना है।
    • ECCE कार्यक्रम नई शिक्षा नीति के सिद्धांतों के अनुरूप मातृभाषा में शिक्षा को प्राथमिकता देगा।
  • "पोषण भी, पढ़ाई भी" ECCE नीति द्वारा प्रस्तुत किये गए परिवर्तनों के माध्यम से प्रत्येक बच्चे को प्रतिदिन कम-से-कम दो घंटे उच्च-गुणवत्ता वाली प्री-स्कूल शिक्षा प्रदान की जाएगी।

आँगनवाड़ी:  

  • परिचय::  
    • आँगनवाड़ी भारत में एक प्रकार का ग्रामीण बाल देखभाल केंद्र है। इसे एकीकृत बाल विकास सेवा (Integrated Child Development Services- ICDS) कार्यक्रम के हिस्से के रूप में स्थापित किया गया था।
    • छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों को बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल, पोषण और प्रारंभिक बचपन की शिक्षा प्रदान करने में आँगनवाड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
      • "आँगनवाड़ी" शब्द का अनुवाद "आँगन आश्रय" के रूप में किया गया है।
  • स्थिति:  
    • देश भर में करीब 13.9 लाख आँगनवाड़ी केंद्र कार्यरत हैं जिनमें 6 वर्ष से कम उम्र के लगभग 8 करोड़ लाभार्थी बच्चों को पूरक पोषण और प्रारंभिक देखभाल एवं शिक्षा प्रदान की जा रही है, यह विश्व में इस तरह की सेवाओं का सबसे बड़ा सार्वजनिक प्रावधान बन गया है।
  • आँगनवाड़ी सेविकाओं की भूमिका और ज़िम्मेदारियाँ: 
    • 3-6 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के लिये आँगनवाड़ी में गैर-औपचारिक पूर्व-विद्यालय गतिविधियों का आयोजन करना और आँगनवाड़ी में उपयोग के लिये स्वदेशी मूल के खिलौनों तथा खेल उपकरणों के डिज़ाइन एवं निर्माण में सहायता करना।
    • वे बच्चों और गर्भवती/स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिये घर ले जा सकने वाले राशन अथवा गर्म पके हुए भोजन जैसे पूरक पोषण के वितरण के केंद्र के रूप में काम करते हैं। इन प्रावधानों का उद्देश्य कुपोषण को रोकना और समग्र स्वास्थ्य में सुधार करना है।
    • स्वास्थ्य और पोषण शिक्षा प्रदान करना तथा माताओं को स्तनपान/शिशु और युवा आहार प्रथाओं के बारे में परामर्श देना।
      • आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं के स्थानीय लोगों से जुड़े होने के कारण उनकी अपेक्षा की जाती है, वे विवाहित महिलाओं को परिवार नियोजन/जन्म नियंत्रण उपायों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करते हैं।
    • आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं का कर्त्तव्य है कि वे प्रत्येक महीने में हुए जन्मों से संबंधित जानकारी को पंचायत सचिव/ग्राम सभा सेवा के साथ साझा करेंगे, जिन्हें जन्म और मृत्यु के रजिस्ट्रार/उप रजिस्ट्रार के रूप में अधिसूचित किया गया है।
    • ICDS योजना के तहत स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के वितरण और रिकॉर्ड के रखरखाव में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत संलग्न मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं (ASHA) का मार्गदर्शन करना।
    • अपने घर के दौरे के दौरान बच्चों में विकलांगता की पहचान करना और मामले को तुरंत निकटतम PHC या ज़िला विकलांगता पुनर्वास केंद्र के पास भेजना।
    • पल्स पोलियो प्रतिरक्षण (PPI) ड्राइव के आयोजन में सहयोग करना
  • मुद्दे:  
    • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: कई आँगनवाड़ी केंद्रों में शौचालय, साफ पानी और बच्चों के सीखने एवं खेलने के लिये पर्याप्त जगह जैसी बुनियादी सुविधाओं सहित उचित बुनियादी ढाँचे का अभाव है।
      • साथ ही कई आँगनवाड़ी केंद्रों में आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं और सहायिकाओं समेत प्रशिक्षित स्टाफ की भी कमी है।
    • कम पारिश्रमिक: आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं एवं सहायिकाओं को अक्सर उनके काम के लिये अपर्याप्त मुआवज़ा दिया जाता है। कम पारिश्रमिक से पदावनति हो सकती है और प्रदान की जाने वाली सेवाओं की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। यह कुशल कर्मियों की भर्ती तथा प्रतिधारण को भी बाधित करता है।
    • सीमित आउटरीच: कुछ मामलों में आँगनवाड़ी सबसे हाशिये पर और दूरदराज़ के समुदायों तक पहुँचने में विफल रहती हैं, जिससे कमज़ोर बच्चों को महत्त्वपूर्ण सेवाओं तक पहुँच नहीं मिलती है। अपर्याप्त परिवहन सुविधाएँ और आँगनवाड़ी के लाभों के बारे में जागरूकता की कमी इस मुद्दे में योगदान करती है।
    • निगरानी और मूल्यांकन: आँगनवाड़ी सेवाओं के प्रभाव और प्रभावशीलता का आकलन करने के लिये निगरानी एवं मूल्यांकन तंत्र अपर्याप्त या कम उपयोग किये गए हैं।
      • मज़बूत निगरानी की कमी सुधार के लिये क्षेत्रों की पहचान और ज़रूरतों के आधार पर संसाधनों के आवंटन में बाधा बन सकती है

आगे की राह

  • समुदाय आधारित शिक्षा: संवादात्मक शिक्षण सत्र आयोजित करने के लिये स्थानीय विशेषज्ञों, सेवानिवृत्त शिक्षकों और स्वयंसेवकों को संगठित करके समुदाय की भागीदारी को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।  
    • इसमें कहानी, कला एवं शिल्प कार्यशालाओं तथा व्यावहारिक प्रदर्शनों के माध्यम से अपने ज्ञान और कौशल को बच्चों के साथ साझा करना चाहिये।
  • पोषाहार उद्यानिकी: आँगनबाड़ी केंद्रों पर छोटे-छोटे वनस्पति उद्यानों की स्थापना को बढ़ावा देने से बच्चे बागवानी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग ले सकते हैं, पोषण के बारे में सीख सकते हैं और स्थानीय रूप से उगाए जाने वाले उत्पादों के महत्त्व को जान सकते हैं।
    • बच्चों के लिये पौष्टिक आहार बनाने में ताज़ी सब्जियों का उपयोग किया जा सकता है।
  • पोषण-केंद्रित खाना पकाने का प्रदर्शन: माता-पिता और देखभाल करने वालों के लिये नियमित रूप से खाना पकाने का प्रदर्शन आयोजित करना, इसके लिये स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री का उपयोग करने हेतु पौष्टिक और ताज़े व्यंजनों का उपयोग किया जाना चाहिये।
    • यह घर पर पौष्टिक खाना पकाने की प्रथाओं को अपनाने को प्रोत्साहित करता है और इस प्रकार पोषण एवं समग्र विकास के बीच की कड़ी को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन (नेशनल न्यूट्रिशन मिशन)' के उद्देश्य हैं? (2017) 

  1. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण संबंधी जागरूकता उत्पन्न करना।
  2. छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में रक्ताल्पता को कम करना। 
  3. बाजरा, मोटे अनाज और अपरिष्कृत चावल के उपभोग को बढ़ाना।
  4. मुर्गी के अंडो के उपभोग को बढ़ाना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 3 और 4 

उत्तर: (a) 

व्याख्या: 

  • राष्ट्रीय पोषण मिशन (पोषण अभियान) महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जो आँगनवाड़ी सेवाओं, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, स्वच्छ-भारत मिशन आदि जैसे विभिन्न कार्यक्रमों के साथ अभिसरण सुनिश्चित करता है।
  • राष्ट्रीय पोषण मिशन (NNM) का लक्ष्य 0-6 वर्ष के बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के पोषण की स्थिति में वर्ष 2017-18 से शुरू होने वाले अगले तीन वर्षों के दौरान समयबद्ध तरीके से सुधार करना है। अतः कथन 1 सही है।
  • NNM का लक्ष्य अल्प-पोषण, रक्ताल्पता (छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोरियों में) को कम करना और शिशुओं के जन्म के समय होने वाली कम वज़न की समस्या को खत्म करना है। अत: कथन 2 सही है।
  • NNM के तहत बाजरा, अपरिष्कृत  चावल, मोटे अनाज और अंडों के उपभोग से संबंधित ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। अतः कथन 3 और कथन 4 सही नहीं हैं। अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस   


सामाजिक न्याय

मानवाधिकार रक्षकों और अनुचित व्यावसायिक अभ्यास पर रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

मानव अधिकार, मानवाधिकार रक्षक, न्यायिक उत्पीड़न, मानवाधिकार रक्षकों पर संयुक्त राष्ट्र घोषणा

मेन्स के लिये:

मानवाधिकार रक्षक और वर्ष 2022 में व्यवसाय, व्यवसाय और मानवाधिकारों का उल्लंघन

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में बिज़नेस एंड ह्यूमन राइट्स रिसोर्स सेंटर (BHRRC) ने "मानवाधिकार रक्षक और वर्ष 2022 में व्यवसाय: हमारे ग्रह की रक्षा के लिये कॉर्पोरेट शक्ति को चुनौती देने वाले लोग" शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें गैर-ज़िम्मेदार व्यावसायिक अभ्यासों के कारण "मानव समुदायों, पर्यावरण और आजीविका” पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाने वाले कार्यकर्त्ताओं पर हमलों की जाँच करने का आह्वान किया गया है।

  • बिज़नेस एंड ह्यूमन राइट्स रिसोर्स सेंटर ब्रिटेन स्थित एक केंद्र है जो व्यापार में मानवाधिकारों को मज़बूत करने और शोषण को खत्म करने के लिये प्रतिबद्ध है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु: 

  • वैश्विक: 
    • कुल हमले: 
      • जनवरी 2015 से लेकर मार्च 2023 तक हानिकारक व्यावसायिक अभ्यास के बारे में चिंता जताने वाले मानवाधिकार रक्षकों पर लगभग 4,700 हमले हुए हैं।
      • उनमें से 555 लोगों पर वर्ष 2022 में हमले हुए थे, “यह खुलासा करते हुए कि गैर-ज़िम्मेदार व्यावसायिक गतिविधि के बारे में वैध चिंता जताने के लिये हर सप्ताह औसतन 10 से अधिक रक्षकों पर हमला किया गया था।
    • खनन क्षेत्र: 
      • मानवाधिकार रक्षकों के लिये खनन क्षेत्र सबसे खतरनाक है, वर्ष 2022 में हुए कुल हमलों में से 30% इस क्षेत्र से संबंधित हैं।
      • स्वदेशी रक्षकों के लिये यह क्षेत्र और भी खतरनाक है, वर्ष 2022 में स्वदेशी लोगों पर हुए 41% हमले खनन से संबंधित थे।
    • गैर-घातक हमलों को लेकर कोई जाँच नहीं: 
      • निगमों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन और पर्यावरणीय अपराधों के खिलाफ लड़ने वाले लोगों को कई हमलों का सामना करना पड़ा है, जिनमें से 86% गैर-घातक हमले थे। हालाँकि ये हमले गंभीर हिंसा की स्थिति को बढ़ावा दे सकते हैं।
      • गैर-घातक हमलों की अक्सर जाँच और मुकदमा नहीं चलाया जाता है, जो रक्षकों को उनके महत्वपूर्ण कार्य करने से हतोत्साहित कर सकता है और गंभीर अपराधिक हिंसा के वातावरण को बढ़ावा दे सकता है।
    • प्रमुख हमले:
      • न्यायिक उत्पीड़न, जिसमें मनमाने ढंग से गिरफ्तारी, अनुचित सुनवाई और सार्वजनिक भागीदारी के खिलाफ रणनीतिक मुकदमे शामिल हैं, दुनिया भर में प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हमले का सबसे आम रूप था।
        • संगठन द्वारा ट्रैक किये गए हमलों के लगभग आधे मामले इसी प्रकृति के थे।
      • न्यायिक उत्पीड़न मानव अधिकारों की वकालत करने वालों को नुकसान पहुँचाकर परेशान कर सकता है, उनको बेरोज़गार बनाने के साथ ही उनके संसाधनों को सीमित कर सकता है।
        • इसका एक भयानक प्रभाव हो सकता है, दूसरों को दुरुपयोग के खिलाफ बोलने से रोक सकता है।
    • महिलाओं पर हमले:
      • लगभग एक-चौथाई हमले महिलाओं के खिलाफ थे, जिन्होंने "कॉर्पोरेट शक्ति और पितृसत्तात्मक लिंग मानदंड दोनों" को चुनौती दी थी।
      • इनमें से कई हमले ऑनलाइन धमकी और मिथ्या थे जिससे उन्हें दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक नुकसान हुआ।
      • यह रणनीति महिला रक्षकों को बदनाम करने, अलग-थलग करने और चुप कराने के लिये अपनाई गई।
  • भारत: 
    • भारत ने 2022 में हानिकारक व्यावसायिक प्रथाओं का विरोध करने वाले रक्षकों पर हमलों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या दर्ज की। भारत ने हमलों (जिसने एक या अधिक व्यक्तियों को प्रभावित किया) की ऐसी 54 घटनाएँ देखीं।
      • 63 ऐसी घटनाओं के साथ भारत से खराब प्रदर्शन करने वाला एकमात्र देश ब्राज़ील था। 
      • मेक्सिको, कंबोडिया और फिलीपींस में क्रमशः 44, 40 और 32 हमले किये गए।
    • भारत में हमलों से जुड़ी कंपनियों की सबसे बड़ी संख्या थी।
  • सिफारिश: 
    • राज्यों को मानवाधिकारों, सतत् विकास और एक स्वस्थ वातावरण को बढ़ावा देने तथा हमलों के लिये शून्य-सहिष्णुता के प्रति वचनबद्धता, अधिकारों की रक्षा के अधिकार एवं व्यक्तिगत व सामूहिक दोनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देने वाले कानून को पारित और कार्यान्वित करना चाहिये।  
    • अधिक प्रभावी सुरक्षा तंत्रों को सूचित करने के लिये गैर-घातक और घातक हमलों का डेटा एकत्र कर रिपोर्ट की जानी चाहिये। कंपनियों द्वारा रक्षकों को चुप कराने से रोकने के लिये SLAPP (सार्वजनिक भागीदारी के खिलाफ रणनीतिक मुकदमा) कानून पारित करना चाहिये
    • उल्लंघन की स्थिति में प्रभावी उपाय सुनिश्चित करना, जिसमें रक्षकों के खिलाफ प्रतिशोध के कृत्यों हेतु व्यवसायों को जवाबदेह बनाने के लिये न्यायिक प्रणाली को सुदृढ़ करना और हमलों के लिये ज़िम्मेदार लोगों की जाँच तथा अभियोजन में सक्रिय रूप से भाग लेना शामिल है। 
    • व्यापार और मानवाधिकारों पर एक बाध्यकारी संयुक्त राष्ट्र संधि का समर्थन करने के साथ यह सुनिश्चित करना चाहिये कि यह स्पष्ट रूप से उन सभी जोखिमों की पहचान करता है जिसके लिये मानवाधिकारों की रक्षा का अधिकार प्राप्त है।  

व्यवसायों में मानव अधिकारों का उल्लंघन:

  • श्रम अधिकारों का उल्लंघन: व्यवसाय जबरन श्रम, बाल श्रम, लिंग आधारित भेदभाव, और संघ की स्वतंत्रता एवं सामूहिक सौदेबाज़ी के अधिकारों के उल्लंघन जैसी प्रथाओं में संलग्न होकर अपने श्रमिकों के अधिकारों का उल्लंघन कर सकते हैं।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: व्यवसाय प्रदूषण, वनों की कटाई और अन्य गतिविधियों के माध्यम से पर्यावरणीय नुकसान में योगदान दे सकते हैं जो स्थानीय समुदायों एवं स्वच्छ हवा, जल और स्वस्थ वातावरण के अधिकारों को नुकसान पहुँचा सकता है। 
  • आपूर्ति शृंखलाओं में मानवाधिकारों का हनन: कंपनियाँ अपने उत्पादों या सेवाओं को उन आपूर्तिकर्त्ताओं से प्राप्त कर सकती हैं जो मानव अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, जैसे कि मानव तस्करी या शोषण आदि।
  • भूमि अधिकारों का उल्लंघन: वे व्यवसायिक भूमि अधिग्रहण या विकास परियोजनाओं में शामिल होने के साथ-साथ स्थानीय समुदायों को विस्थापित करते हैं, भूमि अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, या उनकी आजीविका को नुकसान पहुँचाते हैं।
  • भ्रष्टाचार: वे रिश्वतखोरी, जबरन वसूली या धन शोधन  जैसे भ्रष्ट आचरणों में लिप्त हो सकते हैं, जो वैधानिक शासन और नागरिकों के अधिकारों को कमज़ोर कर सकता है।

मानवाधिकार रक्षकों की सुरक्षा संबंधी प्रयास: 

  • मानवाधिकार रक्षकों पर संयुक्त राष्ट्र की घोषणा:
    • यह घोषणा वर्ष 1998 में मानवाधिकार रक्षकों के लिये संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आम सहमति से अपनाई गई थी।
      • इसमें यह कहा गया है, मानवाधिकार रक्षक वे लोग या समूह हैं जो शांतिपूर्वक मानव अधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने के लिये कार्य करते हैं। वे यह सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं कि उन अधिकारों का पालन किया जा रहा है या नहीं, जो कि अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार समझौतों में उल्लिखित हैं।
  • इस घोषणा को "सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त मानव अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने तथा संरक्षित करने के लिये व्यक्तियों, समूहों एवं समाज के अंगों के अधिकार और उत्तरदायित्व पर घोषणा" कहा जाता है।
  • यह कानूनी रूप से बाध्यकारी साधन नहीं है, लेकिन इसमें ऐसे सिद्धांत और अधिकार शामिल हैं जो कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय साधनों में निहित मानवाधिकार मानकों पर आधारित हैं।
  • नोट: भारत में मानवाधिकार रक्षकों को सुरक्षा प्रदान करने के लिये कोई विशिष्ट कानून नहीं है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग देश में मानवाधिकारों के प्रचार और संरक्षण के अपने जनादेश को अक्षरश: पूर्ण करने के लिये मानवाधिकार रक्षकों के साथ मिलकर कार्य करता है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. मूल अधिकारों के अतिरिक्त भारत के संविधान का निम्नलिखित में से कौन-सा/से भाग मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (1948) के सिद्धांतों और प्रावधानों को प्रतिबिंबित करता/करते है/हैं? (2020)

  1. उद्देशिका
  2. राज्य की नीति के निदेशक सिद्धांत 
  3. मूल कर्तव्य

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. एमनेस्टी इंटरनेशनल क्या है? (2015)

(a) गृहयुद्धों के शरणार्थियों की मदद करने के लिये संयुक्त राष्ट्र का एक अभिकरण
(b) विश्वव्यापी मानव अधिकार आंदोलन
(c) अति निर्धन लोगों की मदद करने के लिये एक गैर-सरकारी स्वैच्छिक संगठन
(d) युद्ध से विनष्ट हुए क्षेत्रों में चिकित्सा आकस्मिक्ताओं को पूरा करने के लिये एक अंतर-सरकारी अभिकरण

उत्तर: (b)


प्रश्न. यद्धपि  मानवाधिकार अयोगों ने भारत में मानव अधिकारों के संरक्षण में काफी हद तक योगदान दिया है फिर भी वे ताकतवर और प्रभावशालियों के विरुद्ध अधिकार जताने में असफल रहे हैं। इनकी संरचनात्मक और व्यावहारिक सीमाओं का विश्लेषण करते हुए सुधारात्मक उपायों का सुझाव दीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2021)

स्रोत: डाउन टू अर्थ 


जैव विविधता और पर्यावरण

एशिया-प्रशांत देशों में जलवायु परिवर्तन लचीलापन घाटा

प्रिलिम्स के लिये:

शुद्ध-शून्य उत्सर्जन, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, वैश्विक जलवायु संकट

मेन्स के लिये:

एशिया-प्रशांत क्षेत्र में कमज़ोर समूहों पर जलवायु-प्रेरित आपदाओं का प्रभाव, जलवायु परिवर्तन से जुड़ी आर्थिक लागत

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में एक अध्ययन रिपोर्ट "द रेस टू नेट ज़ीरो: एक्सेलेरेटिंग क्लाइमेट एक्शन इन एशिया एंड द पैसिफिक" में एशिया एवं प्रशांत के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग (UNESCAP) ने खुलासा किया है कि एशिया एवं प्रशांत के अधिकांश देशों के पास चरम मौसमी घटनाओं तथा प्राकृतिक आपदाओं के कारण उत्पन्न बढ़ते खतरों का प्रबंधन करने हेतु पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।

  • यह अध्ययन क्षेत्र में अनुकूलन और शमन प्रयासों का समर्थन करने के लिये आवश्यक डेटा और संसाधनों की कमी को दर्शाता है।

मुख्य बिंदु

  • एशिया-प्रशांत में बढ़ती जलवायु चुनौतियाँ:
    • इस क्षेत्र में पिछले 60 वर्षों में बढ़ते तापमान ने वैश्विक औसत को पार कर लिया है, जिससे तीव्र चरम मौसम की घटनाएँ एवं प्राकृतिक खतरे उत्पन्न हो गए हैं।
    • उष्णकटिबंधीय चक्रवात, गर्म हवाएँ, बाढ़ तथा सूखे के कारण जीवन की महत्त्वपूर्ण हानि, विस्थापन, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ और गरीबी के स्तर में वृद्धि हुई है।
    • इस तरह की आपदाओं से सर्वाधिक प्रभावित शीर्ष 10 देशों में से छह एशिया-प्रशांत क्षेत्र में स्थित हैं, जिससे खाद्य प्रणालियों में व्यवधान उत्पन्न हो रहा है, अर्थव्यवस्थाओं और समाजों को नुकसान हो रहा है। 
  • कमज़ोर समूहों पर विषम प्रभाव:
    • जलवायु परिवर्तन और जलवायु-प्रेरित आपदाएँ महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों, विकलांग व्यक्तियों, प्रवासियों, स्वदेशी आबादी तथा कमज़ोर स्थितियों वाले युवा लोगों सहित कमज़ोर समूहों पर गंभीर रूप से बोझ डालती हैं।
    • इन चुनौतियों के कारण गरीबी और सामाजिक असमानता जैसे अंतर्निहित कारकों के उभार में तेज़ी देखी जा रही है जो विकास की प्रगति में बाधा बन रहे हैं।
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में क्षेत्रों का योगदान:
    • एशिया-प्रशांत क्षेत्र विश्व के आधे से अधिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिये ज़िम्मेदार हैं।
      • यह क्षेत्र तीव्र विकास और विशाल आबादी के चलते वैश्विक जलवायु संकट में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। 
    • इस क्षेत्र के भीतर विभिन्न निचले इलाके और कमज़ोर छोटे द्वीपीय देश स्थित हैं, जो इसे जलवायु परिवर्तन संबंधी जोखिमों के प्रति सुभेद्य बनाते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन की आर्थिक लागत:
    • ESCAP का अनुमान है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में प्राकृतिक और जैविक खतरों से लगभग 780 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वार्षिक औसत नुकसान हुआ है।
      • मध्यम जलवायु परिवर्तन परिदृश्य के अनुसार, इस नुकसान के 1.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर सबसे खराब स्थिति में 1.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
    • जलवायु कार्रवाई के लिये मौजूदा वित्तपोषण इस क्षेत्र की आवश्यकताओं को पूरा करने और ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस कम करने तक सीमित है।

आवश्यक पहल: 

  • उत्सर्जन अंतराल को समाप्त करना: 
    • ऊर्जा क्षेत्र: 
      • राष्ट्रीय ऊर्जा प्रणालियों का पुनर्गठन और नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना में निवेश करना।
      • जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में संक्रमण।
      • नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ाने हेतु सीमा पार विद्युत ग्रिड को बढ़ावा देना।
      • स्थानीय समाधानों और विकेंद्रीकृत विद्युत उत्पादन पर ज़ोर देना।
    • परिवहन क्षेत्र: 
      • निम्न-कार्बन वाले परिवहन मार्गों में स्थानांतरण।
      • कीकृत भूमि उपयोग योजना के माध्यम से परिवहन दूरी को कम करना।
      • कम कार्बन या शुद्ध-शून्य उत्सर्जन वाले टिकाऊ परिवहन साधनों को प्रोत्साहित करना।
      • वाहन और ईंधन दक्षता में सुधार।
    • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश: 
      • क्षेत्रीय व्यापार समझौतों में जलवायु संबंधी विचारों को एकीकृत करना।
      • जलवायु-स्मार्ट व्यापार प्रथाओं को बढ़ावा देना।
      • निजी क्षेत्र को निम्न-कार्बन मार्गों और धारणीयता प्रथाओं को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करना।
      • स्थिरता रिपोर्टिंग और ग्रीनहाउस गैस लेखांकन के माध्यम से पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्त्व बढ़ाना।

UNESCAP: 

  • परिचय: UNESCAP एशिया-प्रशांत क्षेत्र हेतु संयुक्त राष्ट्र की क्षेत्रीय विकास शाखा है।
    • इसमें भारत सहित एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 53 सदस्य देश और 9 सहयोगी सदस्य हैं। 
  • स्थापना: 1947 
  • मुख्यालय: बैंकाॅक, थाईलैंड
  • उद्देश्य: सदस्य देशों को परिणामोन्मुख परियोजनाएँ, तकनीकी सहायता और क्षमता निर्माण प्रदान करके इस क्षेत्र की कुछ सबसे बड़ी चुनौतियों पर नियंत्रण प्राप्त करना। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय राजव्यवस्था

दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच शक्ति का विभाजन

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 239AA के तहत दिल्ली के लिये विशेष प्रावधान, NCT, अनुसूची VII, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम 2021 

मेन्स के लिये:

अनुच्छेद 239AA के तहत दिल्ली के लिये विशेष प्रावधान, संघ शासित प्रदेशों का प्रशासन

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी में नौकरशाही को नियंत्रित करने के मुद्दे पर दिल्ली सरकार के पक्ष में निर्णय सुनाया। इस निर्णय में कहा कि दिल्ली सरकार के पास सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि को छोड़कर सेवाओं पर विधायी तथा कार्यकारी शक्तियाँ शामिल हैं। 

मुद्दा:

  • इस मामले में मुद्दा यह है कि क्या NCT (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) दिल्ली की सरकार के पास भारत के संविधान की अनुसूची VII, सूची II और प्रविष्टि 41 के तहत 'सेवाओं' के संबंध में विधायी और कार्यकारी शक्तियाँ शामिल हैं और क्या अधिकारी वर्ग की IAS, IPS, DANICS और DANIPS जैसी विभिन्न 'सेवाएँ', जिन्हें भारत संघ द्वारा दिल्ली को आवंटित किया गया है, दिल्ली सरकार के NCT के प्रशासनिक नियंत्रण में आती हैं।  
  • दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच शक्ति विभाजन का मुद्दा पहली बार वर्ष 2019 में उठाया गया जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों की पीठ द्वारा इस मामले को एक बड़ी पीठ के विचार के लिये छोड़ दिया था कि प्रशासनिक सेवाओं पर किसका नियंत्रण होगा
  • दिल्ली सरकार ने दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन (संशोधन) बिल, 2021 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी, जिसमें प्रावधान किया गया था कि दिल्ली की विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में संदर्भित "सरकार" शब्द का अर्थ उपराज्यपाल (L-G) होगा। 

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: 

  • सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार के पक्ष में निर्णय सुनाते हुए कहा कि उपराज्यपाल सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि को छोड़कर अन्य सेवाओं पर दिल्ली सरकार के निर्णय का पालन करेगा।
  • केंद्र के प्रति असहमति प्रकट करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने तर्क देते हुए कहा कि संविधान एक संघीय संविधान है, जहाँ तक ​​संघ शासित प्रदेश का संबंध है, वह एकात्मक नहीं है। 
    • साथ ही यह भी कहा कि "लोकतंत्र और संघवाद के सिद्धांत हमारे संविधान की आवश्यक विशेषताएँ हैं, जो कि मूल ढाँचे का हिस्सा हैं"।
      • संघवाद "स्वायत्तता के साथ-साथ समानता के भाव के एकीकारण और बहुलतावादी समाज में विविध आवश्यकताओं को समायोजित करने का एक साधन है"।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 239AA दिल्ली के NCT के लिये एक विधानसभा की स्थापना करता है क्योंकि इसकी विधानसभा के सदस्य दिल्ली के मतदाताओं द्वारा चुने जाते हैं।  
    • यदि लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को अधिकारियों को नियंत्रित करने की शक्ति नहीं दी जाती है, तो उत्तरदायित्व की त्रिपक्षीय शृंखला का सिद्धांत व्यर्थ हो जाएगा।
    • सामूहिक उत्तरदायित्व का सिद्धांत अधिकारियों के उत्तरदायित्व तक विस्तृत है, जो बदले में मंत्रियों को रिपोर्ट करते हैं। यदि अधिकारी मंत्रियों को रिपोर्ट करना बंद कर देते हैं या उनके निर्देशों का पालन नहीं करते हैं, तो सामूहिक ज़िम्मेदारी का संपूर्ण सिद्धांत प्रभावित होता है।
  • दिल्ली सरकार अन्य राज्यों की तरह सरकार के प्रतिनिधि रूप का प्रतिनिधित्व करती है अतः संघ की शक्ति का कोई और विस्तार संवैधानिक योजना के विपरीत होगा।

संविधान का अनुच्छेद 239AA: 

  • संविधान (69वाँ संशोधन) अधिनियम, 1991 द्वारा संविधान में अनुच्छेद 239AA शामिल किया गया था ताकि दिल्ली को विशेष राज्य का दर्जा दिया जा सके।
    • इसमें कहा गया है कि दिल्ली के NCT में प्रशासक और विधानसभा होगी।
    • कानून प्रवर्तन, लोक व्यवस्था और भूमि से संबंधित मामलों को छोड़कर विधानसभा को "राज्य सूची या समवर्ती सूची के किसी भी मामले के संबंध में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के पूरे या किसी भी हिस्से हेतु कानून बनाने की शक्ति होगी, जहाँ तक ऐसा कोई मामला संविधान के प्रावधानों के अधीन केंद्रशासित प्रदेशों पर लागू होता है।" 
  • इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 239AA में यह भी बताया गया है कि उपराज्यपाल को या तो मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना होगा या वह राष्ट्रपति द्वारा द्वारा लिये गए निर्णय को लागू करने के लिये बाध्य है।
  • इसके अतिरिक्त यदि मंत्रिपरिषद और उपराज्यपाल "किसी भी मामले" पर असहमत हों, तब अनुच्छेद 239AA उपराज्यपाल को राष्ट्रपति से परामर्श करने का अधिकार देता है।
  • इस प्रकार उपराज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच यह दोहरा नियंत्रण एक शक्ति संघर्ष में परिणत हो सकता है।

भारत में केंद्रशासित प्रदेशों का प्रशासन:

  • परिचय: 
    • संविधान का भाग VIII (अनुच्छेद 239 से 241) केंद्रशासित प्रदेशों से संबंधित है।
    • भारत में केंद्रशासित प्रदेशों को राष्ट्रपति द्वारा उनके द्वारा नियुक्त प्रशासक के माध्यम से प्रशासित किया जाता है। यह प्रशासक निर्वाचित नहीं बल्कि राष्ट्रपति का एक प्रतिनिधि होता है।
      • कुछ केंद्रशासित प्रदेशों में, जैसे कि दिल्ली और पुद्दुचेरी में प्रशासक के पास महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ होती हैं जिसमें केंद्रशासित प्रदेश (UT) के लिये कानून और नियम बनाने की शक्ति भी शामिल है।
      • लक्षद्वीप तथा दादरा और नगर हवेली जैसे अन्य केंद्रशासित प्रदेशों में प्रशासक की शक्तियाँ चुनी हुई सरकार को सलाह देने तक सीमित हैं।
    • संघ शासित प्रदेशों में न्यायपालिका भी संविधान और संसद द्वारा बनाए गए कानूनों से शासित होती है। हालाँकि कुछ केंद्रशासित प्रदेशों में, जैसे कि दिल्ली उच्च न्यायालय के पास अन्य केंद्रशासित प्रदेशों, जैसे- लक्षद्वीप की तुलना में व्यापक शक्तियाँ हैं।
  • दिल्ली और पुद्दुचेरी के लिये विशेष प्रावधान:
    • पुद्दुचेरी (1963 में), दिल्ली (1992 में) और वर्ष 2019 में जम्मू और कश्मीर (अब तक गठित) केंद्रशासित प्रदेशों में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में विधानसभा और  मंत्रिपरिषद का प्रावधान है।
      • केंद्रशासित प्रदेश पुद्दुचेरी की विधानसभा संविधान की सातवीं अनुसूची में सूची II या सूची III में वर्णित मामलों के संबंध में कानून बना सकती है, जहाँ तक ये मामले केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में लागू होते हैं। 
      • राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा के पास भी ये शक्तियाँ हैं, इस अपवाद के साथ कि सूची II की प्रविष्टियाँ 1, 2 और 18 विधानसभा की विधायी क्षमता के भीतर नहीं हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न.क्या सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (जुलाई 2018) दिल्ली के उपराज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच राजनीतिक कशमकश को निपटा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

वर्ष 2030 में भारत का विद्युत क्षेत्र: नवीकरणीय ऊर्जा की ओर संक्रमण और कोयले के उपयोग में गिरावट

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण, पेरिस समझौता, अक्षय ऊर्जा का लक्ष्य, जलवायु प्रतिबद्धताएँ

मेन्स के लिये:

भारत का ऊर्जा संक्रमण और भविष्य में विद्युत उत्पादन मिश्रण, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाने में आने वाली चुनौतियाँ, अपने नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने में भारत की प्रगति

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में विद्युत मंत्रालय के तहत आने वाले केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (Central Electricity Authority- CEA) ने ऑप्टिमल जेनरेशन मिक्स 2030 वर्ज़न 2.0 शीर्षक से एक नई रिपोर्ट प्रकाशित की है।

प्रमुख बिंदु 

  • ऊर्जा उत्पादन स्रोतों में कोयले की हिस्सेदारी: 
    • ऊर्जा उत्पादन स्रोतों में कोयले की हिस्सेदारी वर्ष 2022-23 के 73% से घटकर वर्ष 2030 तक 55% होने का अनुमान है।
    • कोयले के उपयोग पर प्रभाव: 
      • हालाँकि विद्युत उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी कम होना तय है, लेकिन वर्ष 2023 और 2030 के बीच कोयला जनित विद्युत क्षमता और उत्पादन में वृद्धि होगी।
      • कोयले की क्षमता में 19% की वृद्धि का अनुमान है, और इस अवधि के दौरान उत्पादन में 13% की वृद्धि होने की उम्मीद है।
  • सौर ऊर्जा योगदान:
    • विद्युत उर्जा के संदर्भ में सौर ऊर्जा द्वारा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद है।
      • अनुमान वर्ष 2030 तक 109 GW से 392 GW तक सौर क्षमता को चौगुना करने का संकेत देते हैं।
      • इसी अवधि में सौर उत्पादन 173 BU से बढ़कर 761 BU होने की उम्मीद है।

नोट: 

  • विद्युत क्षमता उत्पादन से भिन्न होती है। क्षमता वह अधिकतम शक्ति है जो एक संयंत्र उत्पन्न कर सकता है और इसे वाट (या गीगावाट या मेगावाट) में व्यक्त किया जाता है।
  • उत्पादन एक घंटे में उत्पादित विद्युत की वास्तविक मात्रा है, जिसे वाट-घंटे या बिलियन यूनिट (BU) में व्यक्त किया जाता है।
  • अन्य RE स्रोतों का योगदान:
    • भावी विद्युत उर्जा हेतु बड़े जलविद्युत और पवन ऊर्जा के अनुमान सीमित बने हुए हैं।
      • वर्ष 2030 तक बड़े पनविद्युत उत्पादन 8% से बढ़कर 9% होने की उम्मीद है।
      • दूसरी ओर पवन उत्पादन, अद्यतन संस्करण (पिछली रिपोर्ट में 12%) में 9% तक घटने का अनुमान है।
    • इसमें वर्तमान के 12% की तुलना में वर्ष 2030 में छोटी पनविद्युत योजना, पंप-भंडारण पनविद्युत परियोजना, सौर, पवन और बायोमास सहित नवीकरणीय स्रोतों में विद्युत मिश्रण का 31% हिस्सा होने की उम्मीद है।
  • विद्युत उत्पादन मिश्रण में प्राकृतिक गैस की भूमिका:
    • प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी बढ़ाने की आकांक्षा के बावजूद विद्युत उत्पादन में इसका योगदान कम है।
    • रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2030 तक 2,121.5 मेगावाट कोयला संयंत्रों को बंद किये जाने की संभावना है, जिसमें 304 मेगावाट कोयला संयंत्रों को वर्ष 2022-23 के दौरान बंद करना निर्धारित है।
  • ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन:
    • भारत के कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में विद्युत क्षेत्र का योगदान लगभग 40% है।
    • विद्युत क्षेत्र के उत्सर्जन में 11% की वृद्धि का अनुमान है, जो वर्ष 2030 में कार्बन डाइ ऑक्साइड (CO2) 1.114 गीगा टन तक पहुँच जाएगा, यह वैश्विक विद्युत क्षेत्र के उत्सर्जन का 10% है
  • जलवायु प्रतिबद्धताएँ: 
    • जलवायु प्रतिबद्धताओं के संदर्भ में CEA के अनुमानों से संकेत मिलता है कि भारत वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म स्रोतों से 50% स्थापित विद्युत क्षमता प्राप्त करने के लिये पेरिस समझौते के वादे को पूरा करने की संभावना रखता है। 
    • रिपोर्ट के अनुसार, गैर-जीवाश्म स्रोतों के साथ भारत की हिस्सेदारी वर्ष 2030 तक 62% होगी। यदि परमाणु ऊर्जा पर विचार किया जाता है तो यह हिस्सेदारी 64% होगी।

भारत  का अक्षय ऊर्जा विद्युत उत्पादन लक्ष्य:

  • भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य: 
    • वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता: 
      • 100 गीगावाट सौर ऊर्जा से।
      • 60 गीगावाट पवन ऊर्जा से।
      • 10 गीगावाट बायोमास ऊर्जा से।
      • 5 गीगावाट जलविद्युत से।
    • वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा: 
      • इसकी घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा COP26 शिखर सम्मेलन में की गई है। 
    • वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 50% विद्युत ऊर्जा:
  • भारत की वैश्विक रैंकिंग: 
    • यह विश्व में सौर और पवन ऊर्जा की चौथी सबसे बड़ी स्थापित क्षमता वाला देश है।
    • यह विश्व में चौथा सबसे आकर्षक नवीकरणीय ऊर्जा बाज़ार है।

CEA: 

  • परिचय: 
    • CEA एक वैधानिक संगठन है जो भारत सरकार को नीतिगत मामलों पर सलाह देता है और देश में विद्युत व्यवस्था के विकास हेतु योजना तैयार करता है।
    • यह वर्ष 1951 में विद्युत आपूर्ति अधिनियम, 1948 के तहत स्थापित किया गया था, जिसे अब विद्युत अधिनियम, 2003 द्वारा हटा दिया गया है।
  • कार्य: 
    • नीति निर्माण: 
      • राष्ट्रीय विद्युत योजना और टैरिफ नीति तैयार करना।
      • राष्ट्रीय विद्युत नीति, ग्रामीण विद्युतीकरण, जलविद्युत विकास आदि से संबंधित मामलों पर केंद्र सरकार को सलाह देना।
    • तकनीकी मानक: 
      • विद्युत संयंत्रों तथा विद्युत लाइनों के निर्माण, संचालन और रखरखाव के लिये तकनीकी मानक निर्दिष्ट करना।
      • पारेषण लाइनों के संचालन और रख-रखाव के लिये ग्रिड मानक तथा सुरक्षा आवश्यकताएँ निर्दिष्ट करना।
    • डेटा संग्रह और अनुसंधान: 
      • विद्युत उत्पादन, पारेषण, वितरण एवं उपयोग पर डेटा संग्रह करना तथा रिकॉर्ड रखना और विद्युत क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना।
    • कार्यान्वयन निगरानी और समन्वय:
      • विद्युत परियोजनाओं और योजनाओं के कार्यान्वयन की निगरानी करना।
      • विद्युत संबंधी मामलों पर राज्य सरकारों, राज्य विद्युत बोर्डों, क्षेत्रीय विद्युत समितियों आदि के साथ समन्वय करना।

RE स्रोतों से विद्युत उत्पादन की भारत की पहल:

नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने में चुनौतियाँ:

  • अंतराल और परिवर्तनशीलता:
    • मौसम की स्थिति के कारण RE स्रोत अंतराल और परिवर्तनशील हैं।
    • मांग के साथ ऊर्जा आपूर्ति का मिलान करना और ग्रिड की स्थिरता को बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • ग्रिड एकीकरण:
    • बड़े पैमाने पर नवीकरणीय ऊर्जा को मौजूदा पावर ग्रिड में एकीकृत करना जटिल हो सकता है।
    • विश्वसनीय विद्युत आपूर्ति के लिये ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर और संतुलन तंत्र का उन्नयन ज़रूरी है।
  • भूमि और संसाधन उपलब्धता:
    • भूमि और संसाधन की उपलब्धता, नवीकरणीय ऊर्जा प्रतिष्ठानों को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक होती है।
    • उपयुक्त स्थानों की पहचान करना, भूमि का अधिग्रहण और पर्यावरण संबंधी चिंताओं को दूर करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
  • कोयला निर्भर अर्थव्यवस्था से संक्रमण:
    • भारत के ऊर्जा क्षेत्र में कोयले का वर्चस्व है क्योंकि विद्युत उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी लगभग 70% हिस्सा है। 
    • साथ ही भारत में कोयला क्षेत्र से लगभग 1.2 मिलियन प्रत्यक्ष रोज़गार और 20 मिलियन तक अप्रत्यक्ष एवं निर्भर रोज़गार के सृजन का अनुमान है।
      • इसमें परिवर्तन से कोयला क्षेत्र में रोज़गार में कमी आ सकती जिसके चलते प्रभावित समुदायों के लिये एक सुचारु परिवर्तन सुनिश्चित करने की आवश्यकता होगी।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न.  'इच्छित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान' शब्द को कभी-कभी समाचारों में किस संदर्भ में देखा जाता है? (2016)

(a) युद्ध प्रभावित मध्य-पूर्व से शरणार्थियों के पुनर्वास के लिये यूरोपीय देशों द्वारा की गई प्रतिज्ञा
(b) जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिये विश्व के देशों द्वारा उल्लिखित कार्ययोजना
(c) एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक की स्थापना में सदस्य देशों द्वारा योगदान की गई पूंजी
(d) सतत् विकास लक्ष्यों के संबंध में दुनिया के देशों द्वारा उल्लिखित कार्ययोजना

उत्तर: (b)


मेन्स:  

प्रश्न. पारंपरिक ऊर्जा उत्पादन के विपरीत सूर्य के प्रकाश से विद्युत ऊर्जा प्राप्त करने के लाभों का वर्णन कीजिये। इस प्रयोजनार्थ हमारी सरकार द्वारा प्रस्तुत पहल क्या हैं? (2020)

स्रोत: डाउन टू अर्थ 


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