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डेली न्यूज़

  • 10 Jan, 2025
  • 45 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-मालदीव रक्षा सहयोग को मज़बूत करना

प्रिलिम्स के लिये:

सागर, तटीय रडार प्रणाली, एकुवेरिन, एकथा, दोस्ती, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन, अदन की खाड़ी, होर्मुज जलडमरूमध्य, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट 

मेन्स के लिये:

भारत की विदेश नीति और सुरक्षा, हिंद महासागर में भारत की रणनीतिक पहल, भारत और मालदीव संबंधों के प्रमुख पहलू

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मालदीव के रक्षा मंत्री के साथ वार्ता के दौरान रक्षा उपकरण और प्लेटफॉर्म प्रदान करके मालदीव की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिये भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि की।

  • यह कदम भारत की "नेबरहुड फर्स्ट" पॉलिसी और दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सुरक्षा और रक्षा सहयोग को मज़बूत करने को दर्शाता है।

भारत-मालदीव रक्षा सहयोग कैसे है?

  • ऐतिहासिक संदर्भ: भारत मालदीव का प्रमुख रक्षा साझेदार रहा है, जो संकट के समय प्रायः प्रथम प्रतिक्रियादाता के रूप में कार्य करता है। इसे वर्ष 1988 में ऑपरेशन कैक्टस द्वारा प्रदर्शित किया गया था, जहाँ भारत ने मालदीव में तख्तापलट के प्रयास को रोकने के लिये और वर्ष 2004 की सुनामी के दौरान हस्तक्षेप किया था।
  • रक्षा परियोजनाएँ: भारत ने मालदीव राष्ट्रीय रक्षा बल (MNDF) के लिये समग्र प्रशिक्षण केंद्र (CTC) और उथुरु थिला फाल्हू (UTF) एटोल में सिफावरु में तटरक्षक "एकथा" MNDF बंदरगाह और मरम्मत सुविधा के निर्माण जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    • अक्तूबर 2023 में, भारत ने आपसी विश्वास को दर्शाते हुए मालदीव के तटरक्षक जहाज हुरावी की निःशुल्क मरम्मत की घोषणा की।
    • भारत ने मालदीव को एक तटीय रडार प्रणाली सौंपी है, जिसमें 15.8 मिलियन अमेरिकी डॉलर के भारतीय अनुदान से निर्मित 10 रडार स्टेशन शामिल हैं।
  • प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: भारत MNDF की लगभग 70% प्रशिक्षण आवश्यकताओं को पूरा करता है, तथा 1,500 से अधिक MNDF कार्मिकों को विभिन्न भारतीय रक्षा अकादमियों में प्रशिक्षित किया गया है। 
  • संस्थागत तंत्र: रक्षा सहयोग पर चर्चा एवं समीक्षा के लिये रक्षा सचिव स्तर पर वर्ष 2016 में वार्षिक रक्षा सहयोग वार्ता (DCD) शुरू की गई थी।
    • भारत और मालदीव के बीच 5वीं रक्षा सहयोग वार्ता (DCD) सितंबर 2024 में नई दिल्ली में आयोजित की गई।

भारत-मालदीव द्विपक्षीय संबंध

  • राजनीतिक संबंध: भारत वर्ष 1965 में स्वतंत्रता के बाद मालदीव को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था और वर्ष 1972 में माले में अपना राजनयिक मिशन स्थापित किया।
  • ये दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) के संस्थापक सदस्य हैं और दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (SAFTA) के हस्ताक्षरकर्त्ता हैं।
  • व्यापार और अर्थव्यवस्था: भारत और मालदीव ने वर्ष 1981 में एक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिससे द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा मिला।
  • वर्ष 2024 में भारत ने मालदीव को 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता करने के साथ 3,000 करोड़ रुपए का द्विपक्षीय मुद्रा विनियमन किया। इसके अतिरिक्त, भारतीय स्टेट बैंक ने मालदीव के लिये 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर के ट्रेजरी बिल जारी किये।
  • भारत वर्ष 2022 में मालदीव का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहने के साथ वर्ष 2023 में सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया।
  • भारतीय आयात में मुख्य रूप से स्क्रैप धातुएँ शामिल हैं जबकि निर्यात में इंजीनियरिंग सामान, फार्मास्यूटिकल्स, सीमेंट तथा कृषि उत्पाद शामिल हैं।
  • वर्ष 2022 में भारतीय व्यापारिक यात्रियों के लिये वीज़ा-मुक्त प्रवेश से वाणिज्यिक संबंधों में और वृद्धि हुई।
  • वर्ष 2024 में भारत और मालदीव ने सीमापार व्यापार के लिये स्थानीय मुद्राओं के उपयोग को बढ़ावा देने के क्रम में एक रूपरेखा को अंतिम रूप दिया है।
  • पर्यटन: पर्यटन मालदीव की अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण है जिसकी सकल घरेलू उत्पाद में लगभग एक चौथाई तथा कुल रोज़गार (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष) में लगभग 70% हिस्सेदारी है।
  • भारत, मालदीव में पर्यटकों का सबसे बड़ा स्रोत बन गया जिसमें भारतीयों का लगातार तीन वर्षों (2020, 2021 और 2022) तक पर्यटन योगदान में अग्रणी स्थान रहा।
  • मार्च 2022 में, भारत और मालदीव ने दोनों देशों के बीच संपर्क बढ़ाने के लिये ओपन स्काई अरेंजमेंट पर सहमति व्यक्त की।

भारत-मालदीव सहयोग का क्या महत्त्व है?

  • भौगोलिक महत्त्व: मालदीव की हिंद महासागर में रणनीतिक अवस्थिति है, जो पश्चिमी चोकपॉइंट्स ( अदन की खाड़ी और होर्मुज जलडमरूमध्य) तथा पूर्वी चोकपॉइंट (मलक्का जलडमरूमध्य) के बीच एक "टोल गेट" के रूप में कार्य करता है। 
    • प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग मार्गों से इसकी निकटता, भारत के लिये इसे एक महत्त्वपूर्ण साझेदार बनाती है क्योंकि इसका लगभग 50% बाह्य व्यापार तथा 80% ऊर्जा आयात इन्हीं मार्गों से होता है।
    • भारत के दक्षिण में स्थित मालदीव समुद्री यातायात की निगरानी एवं क्षेत्रीय सुरक्षा बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण है
  • आर्थिक और सामाजिक लाभ: भारत चावल, दवाइयों एवं बुनियादी ढाँचा सामग्री जैसी आवश्यक वस्तुओं का प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता है। 
    • भारत के ऑपरेशन नीर ने वर्ष 2014 के माले जल संकट के दौरान INS दीपक और INS शुकन्या के माध्यम से लगभग 2000 टन जल पहुँचाया था।
    • सुनामी और कोविड-19 जैसे संकटों के दौरान भारत की सहायता ने एक विश्वसनीय साझेदार के रूप में इसकी भूमिका को मज़बूत किया है।
  • बाह्य प्रभाव का प्रतिकार: मालदीव के साथ भारत का सहयोग, क्षेत्र में बाह्य शक्तियों, विशेषकर चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करता है, तथा क्षेत्रीय शांति बनाए रखने में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका को सुदृढ करता है।

भारत-मालदीव रक्षा संबंधों में चुनौतियाँ क्या हैं?

  • भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: बेल्ट एँड रोड इनिशिएटिव (BRI) और 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' जैसी पहलों के माध्यम से चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिये चिंता का विषय है।
    • मालदीव के बुनियादी ढाँचे में चीनी निवेश, जैसे सिनामाले ब्रिज़, और सैन्य समझौते, इस क्षेत्र में भारत के सामरिक प्रभुत्व को चुनौती देते हैं।
  • आंतरिक राजनीतिक परिवर्तन: वर्ष 2023 में "इंडिया आउट" अभियान ने मालदीव में बढ़ती भारत विरोधी भावनाओं को उज़ागर किया है, जिसमें भारतीय सैन्य कर्मियों की वापसी और भारतीय बुनियादी ढाँचे के विकास को रोकने की मांग की गई। 
    • मालदीव के राजनीतिक नेतृत्व में इन बदलावों ने रक्षा प्राथमिकताओं और भारत के साथ विदेश नीति संरेखण को प्रभावित किया है।
  • सुरक्षा संकट: मालदीव में पाकिस्तान समर्थित जिहादी गुटों और ISIS (इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एँड सीरिया) समेत कट्टरपंथी इस्लामी समूहों की बढ़ती उपस्थिति भारत के लिये प्रत्यक्ष सुरक्षा संकट उत्पन्न करती है, क्योंकि ये समूह भारतीय संपत्तियों को निशाना बनाने के लिये मालदीव को आधार के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।

आगे की राह

  • बहुपक्षीय सहयोग: हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) जैसे क्षेत्रीय ढाँचे में मालदीव की भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
    • समुद्री सुरक्षा बढ़ाने के लिये भारत, मालदीव और श्रीलंका के बीच त्रिपक्षीय सहयोग को सुदृढ़ करना।
  • बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ: भारत को चीनी निवेश के लिये व्यवहार्य विकल्प प्रदान करने हेतु ग्रेट माले कनेक्टिविटी परियोजना जैसी महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को प्राथमिकता देनी चाहिये और उन्हें शीघ्रता से पूरा करना चाहिये
  • जन-केंद्रित पहल: चिकित्सा सहायता और सामुदायिक अवसंरचना विकास जैसी नागरिक-सैन्य परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करके सद्भावना को बढ़ावा देना।
    • सार्वजनिक कूटनीति को मज़बूत करने के लिये दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक एवं शैक्षिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: हिंद महासागर में क्षेत्रीय सुरक्षा के संदर्भ में भारत-मालदीव रक्षा सहयोग के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।


  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

मेन्स 

प्रश्न 1. पिछले दो वर्षों में मालदीव में राजनीतिक विकास पर चर्चा कीजिये। क्या वे भारत के लिये चिंता का कोई कारण हो सकते हैं? (2013)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

प्रवासी भारतीय दिवस (PBD)

प्रिलिम्स के लिये:

प्रवासी भारतीय दिवस (PBD), भारतीय प्रवासियों का वर्गीकरण, महात्मा गांधी, श्री अटल बिहारी वाजपेयी

मेन्स के लिये:

प्रवासी भारतीय: विकसित भारत में योगदान, संबंधित चुनौतियाँ तथा योजनाएँ, आगे की राह 

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों?

प्रत्येक दो साल में 9 जनवरी को मनाया जाने वाला प्रवासी भारतीय दिवस (PBD) एक उल्लेखनीय आयोजन है जिसके तहत भारतीय प्रवासियों द्वारा अपनी मातृभूमि के लिये दिये गए योगदान पर प्रकाश डाला जाता है।

  • 18वें प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन का आयोजन ओडिशा द्वारा 8 से 10 जनवरी 2025 तक किया गया जिसका विषय 'विकसित भारत में प्रवासी भारतीयों का योगदान' है।

प्रवासी भारतीय दिवस (PBD) क्या है?

  • पृष्ठभूमि और इतिहास: यह द्विवार्षिक उत्सव वर्ष 1915 के उस दिन की याद में मनाया जाता है जब महात्मा गांधी देश के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करने के लिये दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे।
  • PBDके प्राथमिक लक्ष्य:
    • भारत के विकास में प्रवासी भारतीयों के योगदान पर प्रकाश डालना।
    • विदेश में भारत के बारे में बेहतर समझ विकसित करना।
    • भारत के लक्ष्यों का समर्थन करना तथा विश्व भर में स्थानीय भारतीय समुदायों के कल्याण की दिशा में कार्य करना।
    • प्रवासी भारतीयों को अपनी पैतृक भूमि की सरकार एवं लोगों के साथ जुड़ने के लिये एक मंच प्रदान करना।  
  • PBD सम्मेलन:
    • प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन की शुरुआत पहली बार वर्ष 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के तहत प्रवासी भारतीय समुदाय को मान्यता देने एवं उनके साथ जुड़ने हेतु एक मंच के रूप में की गई थी।
  • 18वाँ PBD कन्वेंशन, 2025:
    • इस सम्मेलन के दौरान भारत के प्रधानमंत्री ने प्रवासी भारतीय एक्सप्रेस का उद्घाटन किया, जो भारतीय प्रवासियों के लिये एक विशेष पर्यटक ट्रेन है। 
      • प्रवासी भारतीय एक्सप्रेस का संचालन विदेश मंत्रालय की प्रवासी तीर्थ दर्शन योजना के अंतर्गत किया गया। 
    • इस अवसर पर गुजरात के मांडवी से ओमान के मस्कट में प्रवास करने वाले लोगों के दुर्लभ दस्तावेजों को प्रदर्शित करने के क्रम में एक प्रदर्शनी का भी उद्घाटन किया गया।
    • प्रधानमंत्री ने गिरमिटिया (स्वतंत्रता-पूर्व भारत के गिरमिटिया मजदूर) के महत्व पर प्रकाश डाला, जिन्हें फिजी, मॉरीशस, त्रिनिदाद और टोबैगो आदि देशों में भेजा गया था। 
      • गिरमिटियाओं का एक व्यापक डाटाबेस बनाने का भी सुझाव दिया गया।
  • प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार (PBSA):
  • प्रवासी भारतीय कार्यक्रम के तहत दिया जाने वाला यह पुरस्कार किसी अनिवासी भारतीय (NRI), भारतीय मूल के व्यक्ति (PIO); अथवा उनके द्वारा स्थापित एवं संचालित किसी संगठन या संस्था को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान है।
  • यह पुरस्कार विदेशों में भारत के बारे में बेहतर समझ पैदा करने, भारत के उद्देश्यों का समर्थन करने तथा स्थानीय भारतीय समुदाय के कल्याण के लिये कार्य करने में प्रवासी भारतीयों के योगदान को याद करने के लिये दिया जाता है।

डायस्पोरा क्या है?

  • पृष्ठभूमि एवं उत्पत्ति: 
    • डायस्पोरा शब्द की जड़ें ग्रीक शब्द डायस्पेरो से जुड़ी हैं, जिसका अर्थ है प्रसार। भारतीयों के पहले जत्थे को गिरमिटिया व्यवस्था के तहत गिरमिटिया मजदूरों के रूप में पूर्वी प्रशांत तथा कैरिबियाई द्वीपों में ले जाने के बाद से भारतीय डायस्पोरा में कई गुना वृद्धि हुई है।
  • प्रवासी समुदाय का वर्गीकरण:
    • अनिवासी भारतीय (NRI): NRI ऐसे भारतीय हैं जो विदेशों के निवासी हैं। किसी व्यक्ति को NRI माना जाता है यदि:
      • कोई व्यक्ति गैर-निवासी है, यदि वह एक वर्ष में 182 दिनों से कम या विगत 4 वर्षों में 365 दिनों से कम तथा चालू वर्ष में 60 दिनों से कम समय के लिये भारत में निवास कर रहा हो।
    • भारतीय मूल के व्यक्ति (PIO): PIO से तात्पर्य ऐसे विदेशी नागरिक (जो पूर्व में भारतीय पासपोर्ट धारक हो) से है, जिसका या उसके माता-पिता/दादा-दादी का जन्म भारत में हुआ हो या जो किसी भारतीय नागरिक या PIO का जीवनसाथी हो।
      • पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बाँग्लादेश, चीन, ईरान, भूटान, श्रीलंका और नेपाल के नागरिक PIO श्रेणी में शामिल नहीं हैं।
      • वर्ष 2015 में PIO श्रेणी को समाप्त कर दिया गया और OCI श्रेणी में विलय कर दिया गया।
    • प्रवासी भारतीय नागरिक (OCI): वर्ष 2005 में OCI की एक अलग श्रेणी बनाई गई। 
      • ऐसे व्यक्तियों के नाबालिग बच्चे (पाकिस्तान और बाँग्लादेश के नागरिकों को छोड़कर) भी OCI कार्ड के लिये पात्र थे।
        • OCI कार्ड उस विदेशी नागरिक को दिया जाता है, जो 26 जनवरी 1950 को भारतीय नागरिकता के लिये पात्र था या किसी ऐसे क्षेत्र का निवासी था जो 15 अगस्त 1947 के बाद भारत का हिस्सा बना।

प्रवासी भारतीयों का भौगोलिक वितरण

देश

प्रवासी भारतीय

USA 

5,409,062

UK 

1,864,318

संयुक्त अरब अमीरात

3,568,848

दक्षिण अफ़्रीका

1,700,000

सऊदी अरब

2,463,509

म्याँमार

2,002,660

मलेशिया

2,914,127

कुवैत

995,528

ओमान

686,635

कनाडा

2,875,954

प्रवासी भारतीय किस प्रकार विकसित भारत में योगदान दे सकते हैं?

  • आर्थिक सशक्तीकरण और समावेशी विकास: प्रवासी भारतीय धन प्रेषण और निवेश के माध्यम से भारत में आर्थिक विकास को गति देते हैं।
    • भारतीय व्यवसायों को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों से जोड़कर और साझेदारियों को बढ़ावा देकर, वे भारत के व्यापार पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ाते हैं, वंचित क्षेत्रों को सशक्त बनाते हैं, और देश के विकसित अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य का समर्थन करते हैं।
    • उदाहरण के लिये: एक अमेरिकी NRI द्वारा आविष्कृत थोरियम आधारित ईंधन, ANEEL, को स्वच्छ परमाणु ऊर्जा के लिये भारत में लागू किया जाना है।
  • वैश्विक व्यापार संबंधों को बढ़ावा देना: सीमापार साझेदारी, निवेश प्रवाह और ज्ञान के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाकर, प्रवासी भारत के निर्यात आधार का विस्तार करने, व्यापार संबंधों में विविधता लाने और वैश्विक स्तर पर भारत के उत्पादों एवं सेवाओं को बढ़ावा देने में सहायक हैं।
  • नवोन्मेषी पारिस्थितिकी तंत्र को समर्थन: उभरते बाज़ारों में प्रवासी नेतृत्व वाली व्यापार साझेदारी भी आपसी विकास के अवसर प्रदान करती है। साझा संसाधनों और संयुक्त उद्यमों के माध्यम से, ये साझेदारियाँ उच्च विकास वाले वैश्विक बाज़ारों में भारत के प्रवेश को गति प्रदान कर सकती हैं, जिससे इसके विकास की संभावनाएँ और बढ़ेंगी।
  • वैश्विक चुनौतियों से निपटने में प्रवासी समुदाय की भूमिका: ज़मीनी स्तर पर पर्यावरणीय प्रयासों को बढ़ावा देने और समर्थन देने तथा जलवायु कार्रवाई की वकालत करने में प्रवासी समुदाय की सक्रिय भागीदारी, सतत् विकास में भारत के वैश्विक नेतृत्व में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है। 
    • अपने अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव का लाभ उठाकर प्रवासी समुदाय वैश्विक नीतियों को आकार देने में सहायक हो सकता है तथा भारत के विकास लक्ष्यों से संबंधित मुद्दों की ओर ध्यान आकर्षित कर सकता है। 
  • सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ाना: भारतीय प्रवासी (सांस्कृतिक राजदूत के रूप में कार्य करते हैं) अपने मेज़बान देशों में कार्यक्रमों, त्योहारों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से भारतीय परंपराओं, स्थापत्य और विरासत को बढ़ावा देकर सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ा सकते हैं।
    • अमेरिका के विभिन्न राज्यों में दिवाली पर अवकाश घोषित करना सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक प्रमुख उदाहरण है

प्रवासी भारतीयों से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • पहचान और एकीकरण: प्रवासी भारतीयों के कई सदस्यों को अपनी सांस्कृतिक पहचान और उन समाजों के साथ एकीकरण के दबाव के बीच संतुलन बनाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिनमें वे रहते हैं। इससे अलगाव की भावना या सांस्कृतिक विरासत की हानि हो सकती है।
    • सांस्कृतिक मूल्यों में अंतर के कारण प्रायः संघर्ष उत्पन्न होते हैं, जैसे कि नॉर्वे और जर्मनी जैसे देशों में बाल हिरासत के मामले, जहाँ स्थानीय कानून भारतीय सांस्कृतिक प्रथाओं और पारिवारिक मानदंडों के अनुरूप नहीं होते।
  • राजनीतिकरण और धार्मिक भय: संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप जैसे पश्चिमी देशों में विशेष रूप से हिंदुओं और सिखों को निशाना बनाकर राजनीतिकरण और धार्मिक पूर्वाग्रह के बढ़ते मामले, सामाजिक अलगाव में योगदान करते हैं और सामुदायिक एकीकरण में बाधा डालते हैं।
  • कानूनी और नागरिकता संबंधी मुद्दे: वीज़ा स्थिति, नागरिकता अधिकार और आव्रजन कानूनों की जटिलताओं से संबंधित मुद्दे भारतीय प्रवासियों को प्रभावित कर सकते हैं, विशेष रूप से उन देशों में जहाँ प्रतिबंधात्मक आव्रजन नीतियाँ हैं।
    • H-1B वीज़ा को लेकर अमेरिका में भारतीय प्रवासियों के खिलाफ बढ़ते विरोध ने, उनके महत्त्वपूर्ण योगदान के बावजूद, भारतीयों में नाराजगी बढ़ा दी है।
  • धन प्रेषण में चुनौतियाँ: आर्थिक अस्थिरता, विनिमय दर में उतार-चढ़ाव या बैंकिंग संबंधी समस्याएँ प्रवासी भारतीयों से भारत में आने वाले धन प्रेषण के प्रवाह को प्रभावित कर सकती हैं, जिससे इस सहायता पर निर्भर रहने वाले परिवारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

प्रवासी भारतीयों के कल्याण से संबंधित सरकारी पहल

आगे की राह

  • कानूनी संरक्षण और अधिकार: यह सुनिश्चित करना कि प्रवासी समुदाय के कानूनी अधिकार उनके मेज़बान देशों में सुरक्षित रहें, जिसमें समान अवसरों तक पहुँच, भेदभाव से सुरक्षा और आव्रजन कानूनों के तहत निष्पक्ष व्यवहार शामिल है।
  • कांसुलर सहायता को मज़बूत करना: प्रवासी समुदाय की जरूरतों को पूरा करने के लिये कानूनी और वित्तीय मुद्दों पर सहायता सहित सुलभ और कुशल कांसुलर सेवाएँ प्रदान करना। नियमित आउटरीच कार्यक्रम और सलाहकार सेवाएँ मातृभूमि के साथ संबंधों को मज़बूत करने में मदद कर सकती हैं।
  • सामाजिक एकीकरण को बढ़ावा देना: सांस्कृतिक आदान-प्रदान, शिक्षा और सामुदायिक गतिविधियों के माध्यम से सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देने से प्रवासी और मेज़बान समुदायों के बीच संवाद और समझ को बढ़ावा मिलता है।
    • उदाहरण के लिये, ऐसी परिस्थितियों में जहाँ सांस्कृतिक मतभेद प्रायः गलतफहमियों और संघर्षों का कारण बनते हैं, वहाँ ऐसा वातावरण विकसित करना आवश्यक है जो स्वीकार्यता को महत्त्व देता हो और विविधता का सम्मान करता हो।
  • आर्थिक सहभागिता को समर्थन: कर छूट, स्टार्टअप्स के लिये वित्तीय सहायता और सरलीकृत निवेश प्रक्रिया जैसे प्रोत्साहन प्रदान करके भारत में निवेश को प्रोत्साहित करना।
    • धन-प्रेषण स्वीकृति को बेहतर बनाने के लिये, भारत सिंगापुर की तरह सीमा-पार भुगतान के लिये UPI जैसी प्रौद्योगिकियों के उपयोग का विस्तार कर सकता है।
  • कौशल विकास और ज्ञान हस्तांतरण: ऐसे कार्यक्रमों को बढ़ावा देना जो प्रवासी समुदाय और भारत के बीच विशेष रूप से प्रौद्योगिकी, उद्यमिता और शिक्षा के क्षेत्र में ज्ञान के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाते हैं। 
    • इससे भारत में कौशल विकास और नवाचार में मदद मिलेगी, जिससे दोनों पक्षों को लाभ होगा।

निष्कर्ष

जैसे-जैसे भारत अपनी स्वतंत्रता की शताब्दी की ओर बढ़ रहा है, वर्ष 2047 के लिये साझा दृष्टिकोण में निरंतर और संरचित प्रवासी भागीदारी शामिल होनी चाहिये। इसमें विशिष्ट लक्ष्यों के साथ दीर्घकालिक रोडमैप तैयार करना और युवा प्रवासियों को शामिल करना शामिल है, जिनके नवीन विचार और वैश्विक अनुभव भारत के विकास लक्ष्यों में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। इन संबंधों को मज़बूत करने से एक उज्जवल, अधिक जुड़े हुए भविष्य का निर्माण करने में मदद मिलेगी। सहयोग और साझा उद्देश्य के माध्यम से, हम वर्ष 2047 तक एक जीवंत और समृद्ध भारत को प्राप्त करने के लिये अपने वैश्विक समुदाय की शक्ति का उपयोग कर सकते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न: 'विकसित भारत' के लक्ष्य को प्राप्त करने में प्रवासी भारतीयों की भूमिका का विश्लेषण कीजिये

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रश्न. दक्षिण पूर्व एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था एवं समाज में प्रवासी भारतीयों को एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है। इस संदर्भ में, दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय प्रवासियों की भूमिका का मूल्यनिरूपण कीजिये। (2017)

प्रश्न. अमेरिका एवं यूरोपीय देशों की राजनीति एवं अर्थव्यवस्था में भारतीय प्रवासियों को एक निर्णायक भूमिका निभानी है। उदाहरणों सहित टिप्पणी कीजिये। (2020)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत के तालिबान के साथ संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

चाबहार बंदरगाह, हिज़्बुल्लाह, हमास, बेल्ट एंड रोड फर्स्ट, इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (MSKP), बौद्ध धर्म, सूफीवाद, सार्क, मॉस्को वार्ता, अंतर-अफगान शांति वार्ता

मेन्स के लिये:

भारत-अफगानिस्तान संबंध: महत्त्व और आगे की राह

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

वैश्विक भू-राजनीतिक मंच के बीच भारत के विदेश सचिव ने दुबई में अफगानिस्तान के विदेश मंत्री के साथ वार्ता की।

  • यह भारत के राष्ट्रीय और सुरक्षा हितों को सुरक्षित करने के लिये अफगानिस्तान के तालिबान शासकों के साथ भारत की सर्वोच्च वैचारिक वार्ता है

वार्ता के मुख्य परिणाम क्या हैं?

  • मानवीय सहायता का विस्तार: भारत ने मानवीय सहायता के साथ-साथ विकास परामर्श में भी अपनी भागीदारी बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की।
    • अब तक भारत ने 50,000 मीट्रिक टन गेहूँ, 300 टन दवाइयाँ, भूकंप सहायता, कीटनाशक, पोलियो और कोविड-19 वैक्सीन की खुराक, स्वच्छता किट, सर्दियों के कपड़े और स्टेशनरी भेजी है।
  • खेल सहयोग: दोनों पक्षों ने खेल सहयोग, विशेषकर क्रिकेट में सहयोग को मज़बूत करने पर चर्चा की, जो अफगानिस्तान के युवाओं के लिये महत्त्व रखता है। 
  • चाबहार बंदरगाह: दोनों पक्षों ने व्यापार, वाणिज्यिक गतिविधियों तथा अफगानिस्तान को मानवीय सहायता पहुँचाने के लिये चाबहार बंदरगाह को एक प्रमुख प्रवेशद्वार के रूप में उपयोग को बढ़ावा देने पर सहमति व्यक्त की।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: अफगान सरकार ने भारत की सुरक्षा चिंताओं को स्वीकार किया तथा विभिन्न स्तरों पर संपर्क बनाए रखने पर सहमति व्यक्त की।

हाल ही में हुई भारत-अफगानिस्तान वार्ता के लिये ज़िम्मेदार कारक

  • परिवर्तित वैश्विक गतिशीलता: 
    • तालिबान-पाकिस्तान में बदलाव: पाकिस्तान, जो कभी तालिबान का सहयोगी था, अब तालिबान के लिये तनाव का स्रोत बन गया है।
      • भारत को अफगानिस्तान में अपने समर्थकों को एकजुट करने के लिये तालिबान के साथ जुड़ने के लिये प्रेरित किया।
    • ईरान की भागीदारी: ईरान को झटका तब लगा, जब इज़रायल ने हिज़्बुल्लाह और हमास पर अपना प्रभुत्व जमा लिया और ईरान पर आतंकवादी हमले शुरू कर दिये। ईरान का ध्यान अफगानिस्तान में तालिबान से निपटने की बजाय इज़रायल को रोकने पर अधिक है।
      • हमास और हिज़्बुल्लाह ईरान के प्रतिनिधि हैं, जो इज़रायल के विरुद्ध संघर्ष कर रहे हैं।
    • रूस का नामकरण परिवर्तन: रूस, यूक्रेन में अपने युद्ध में उलझा हुआ है और तालिबान के साथ संबंधों को सुधारने की कोशिश कर रहा है
      • रूस अफगानिस्तान के इस्लामिक कम्युनिस्ट जैसे रूस एवं अफगानिस्तान के इस्लामिक कम्युनिस्टों को एक बड़ा सुरक्षा संकट उत्पन्न हो गया है और दिसंबर 2024 में  सीरियाई शासन के पतन के पश्चात् संघर्ष में रूस और अफगानिस्तान के बीच तालिबान को अपना सहयोगी दर्ज़ा दिया गया है।
    • चीन का प्रभाव: चीन अफगानिस्तान के सेंट्रल बैंक की परिसंपत्तियों पर लगी रोक हटाने की मांग कर रहा है, और काबुल की शहरी विकास परियोजनाओं में शामिल हो रहा है। चीन अपनी बेल्ट एंड रोड पहल के लिये अफगानिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों पर नज़र रखता है।
      • भारत अफगानिस्तान में चीन के प्रभुत्व को रोकने का प्रयास कर रहा है, जिससे भारत के हितों को नुकसान पहुँच सकता है।
    • डोनाल्ड ट्रंप की वापसी: इस बात की चिंता है कि अमेरिका तालिबान के साथ पुनः संपर्क स्थापित कर सकता है और भारत इसे एक अवसर के रूप में देख रहा है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भविष्य में अफगानिस्तान के किसी भी घटनाक्रम में उसके हित केंद्रीय बने रहें।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: भारत ने तालिबान से अफगानिस्तान से सक्रिय लश्कर-ए-तैयबा (LeT), जैश-ए-मोहम्मद (JeM) और इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (ISKP) जैसे भारत विरोधी तत्त्वों पर अंकुश लगाने का आग्रह किया है।
  • विकास कार्य: तालिबान अधिकारियों ने कहा था कि भारत की परियोजनाएँ – जिनका पिछले 20 वर्षों में अनुमानित मूल्य 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर है – अत्यंत लाभदायक रही हैं और वे चाहते हैं कि भारत अफगानिस्तान में निवेश करता रहे।

नोट : नई दिल्ली ने अफगानिस्तान में तालिबान शासन को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी है, लेकिन काबुल में एक तकनीकी मिशन बनाए रखा है।

  • काबुल में भारत का तकनीकी मिशन, अफगानिस्तान में उसकी राजनयिक उपस्थिति का हिस्सा है, जो पूर्ण राजनयिक कार्यों के बजाय विकासात्मक और मानवीय प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करता है।

भारत-तालिबान संबंध

  • तालिबान शासन (1996-2001): भारत ने तालिबान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित नहीं किये।
    • भारत ने तालिबान के विरोधी समूह नॉर्दर्न एलायंस का समर्थन किया।
    • तालिबान ने वर्ष 1999 में इंडियन एयरलाइंस की उड़ान 814 के अपहरणकर्त्ताओं के साथ बातचीत में भारत की सहायता की थी, जिससे बंधकों की सुरक्षित वापसी में मदद मिली थी।
  • अफगानिस्तान अधिग्रहण से पूर्व (15 अगस्त 2021 से पूर्व ):
    • मॉस्को वार्ता (2017): मॉस्को वार्ता ने अफगानिस्तान में सुलह प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिये अफगानिस्तान, चीन, भारत और अन्य हितधारकों के प्रतिनिधियों को एक साथ लाया।
    • अंतर-अफगान शांति वार्ता (2020): भारत ने दोहा में अंतर-अफगान शांति वार्ता में भाग लिया, जो तालिबान के साथ उसके जुड़ाव में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
  • अफ़गानिस्तान अधिग्रहण के बाद (15 अगस्त, 2021 के बाद ) :
    • पहली वार्ता (अगस्त 2021): कतर में भारत के राजदूत ने तालिबान के प्रतिनिधियों से उनके दोहा कार्यालय में वार्ता की।
    • निरंतर संपर्क (जून 2022): पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान के संयुक्त सचिव ने प्रमुख तालिबान नेताओं से मुलाकात की, जिससे काबुल में भारतीय दूतावास में एक तकनीकी टीम भेजने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
      • तकनीकी टीम भारतीय अधिकारियों को काबुल में तालिबान के मंत्रियों और प्रतिनिधियों से मिलने की अनुमति देती है।
  • मुंबई में अफगान महावाणिज्यदूत: भारत ने तालिबान को मुंबई स्थित अफगान वाणिज्य दूतावास में एक नया महावाणिज्यदूत नियुक्त करने की अनुमति दे दी।

भारत के लिये अफगानिस्तान का क्या महत्त्व है?

  • मध्य एशिया के लिये सेतु: मध्य एशिया में महत्त्वपूर्ण आर्थिक और ऊर्जा संसाधन हैं, और अफगानिस्तान भारत को पाकिस्तान और चीन पर निर्भरता से बचते हुए इन संसाधनों तक पहुँचने के लिये चाबहार बंदरगाह के माध्यम से एक मार्ग प्रदान करता है।
    • अफगानिस्तान की सीमा पाकिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और चीन से लगती है।
  • पाकिस्तान के प्रभाव का मुकाबला करना: अफगानिस्तान में प्रभाव बनाए रखकर भारत इस क्षेत्र में अपनी भूमिका को मज़बूत कर सकता है तथा दक्षिण एशिया और मध्य एशिया में अपनी रणनीतिक स्थिति को बढ़ा सकता है।  
  • आतंकवाद-विरोध: अफगानिस्तान में भारत की भागीदारी दक्षिण एशिया में आतंकवाद और उग्रवाद के खिलाफ लड़ाई में उसके नेतृत्व पर प्रकाश डालती है।
  • पारस्परिक लाभ: भारत ने अफगानिस्तान में विभिन्न परियोजनाओं (जैसे सड़कें, बांध, स्कूल, अस्पताल, संसद भवन आदि) में 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश किया है जिससे अफगान लोगों के लिये बेहतर जीवन मिलने के साथ भारतीयों तथा अफगानियों को पारस्परिक लाभ मिल सकता है।

 भारत की तालिबान नीति के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • आतंकवाद: अफगानिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार के पतन से देश अस्थिर हो गया है तथा हक्कानी नेटवर्क, अल-कायदा एवं लश्कर-ए-तैयबा जैसे चरमपंथी नेटवर्क मज़बूत हुए हैं, जिनके द्वारा सीमापार आतंकवाद के माध्यम से भारत को निशाना बनाया है।
    • उदाहरण के लिये, आतंकवादी समूहों की उपस्थिति भारत के हितों के विरुद्ध होने के साथ भारत की सुरक्षा के लिये खतरा पैदा कर सकती है।
  • पाकिस्तान की रणनीतिक भूमिका: पाकिस्तान, अफगानिस्तान में भारत की उपस्थिति को अपनी स्ट्रेटजिक डेप्थ नीति के लिये प्रत्यक्ष खतरा मानता है, जिसका उद्देश्य अफगानिस्तान का भारत के खिलाफ एक बफर के रूप में उपयोग करना है।
    • पाकिस्तान भारत पर बलूचिस्तान एवं अन्य क्षेत्रों में उग्रवाद को समर्थन देने का आरोप लगाता है।
  • राजनयिक मान्यता: भारत ने तालिबान शासन को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी है क्योंकि यह समावेशी सरकार बनाने, मानवाधिकारों का सम्मान करने तथा आतंकवाद पर अंकुश लगाने में निष्क्रिय रहा है।
  • शरणार्थी संकट: काबुल के पतन के कारण भारत में बड़ी संख्या में अफगान शरणार्थी आ गए, जिससे संसाधनों पर दबाव पड़ा तथा सुरक्षा, एकीकरण एवं उनके बीच संभावित कट्टरपंथी तत्त्वों के बारे में चिंताएँ पैदा हुईं।

आगे की राह

  • केंद्रित वित्तीय निवेश: भारत को अफगानिस्तान की आबादी के लिये दीर्घकालिक समर्थन बनाए रखने के क्रम में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा तथा मानवीय राहत जैसी मैत्रीपूर्ण परियोजनाओं पर केंद्रित प्रभावशाली परियोजनाओं का रणनीतिक मूल्यांकन तथा कार्यान्वयन करना चाहिये।
  • लोकतांत्रिक नेतृत्व: भारत को महिलाओं एवं अल्पसंख्यकों के अधिकारों को बढ़ावा देने के लिये अफगान नागरिक समाज के साथ सक्रिय रूप से जुड़ना चाहिये।
  • व्यापार पहुँच के लिये सार्क का उपयोग करना: भारत को स्थल मार्ग से व्यापार पहुँच के विकल्प तलाशने के लिये सार्क मंच का लाभ उठाना चाहिये, जिससे अफगानिस्तान एवं भारत दोनों को लाभ होगा।
  • विमर्श को बढ़ावा देना: अफगानिस्तान के लोगों की चिंताओं को दूर करने के लिये प्रयास किए जाने चाहिए तथा छात्र शिक्षा वीज़ा को फिर से शुरू करने की आवश्यकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: अफगानिस्तान में तालिबान शासन के साथ भारत की भागीदारी का मूल्यांकन कीजिये। यह भारत के राष्ट्रीय तथा सुरक्षा हितों के लिये किस प्रकार उपयोगी है?

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स

प्रश्न: निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2022)

  1. अज़रबैजान
  2. किर्गिज़स्तान 
  3. ताजिकिस्तान
  4. तुर्कमेनिस्तान
  5. उज़्बेकिस्तान 

उपर्युक्त देशों में से कौन अफगानिस्तान के साथ सीमा साझा करते हैं?

(a) केवल 1, 2 और 5
(b) केवल 1, 2, 3 और 4
(c) केवल 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (c)


कृषि

राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम का 8वाँ संस्करण


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