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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

थोरियम आधारित परमाणु ऊर्जा उत्पादन

  • 04 Jan 2025
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

थोरियम, दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर (PHWR), तीन-चरणीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम, भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य, आग्नेय चट्टानें, भारी खनिज रेत, प्लूटोनियम, गामा विकिरण, मोनाजाइट, भारी जल, फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (FBR), थोरियम-आधारित रिएक्टर। 

मेन्स के लिये:

भारत के परमाणु ऊर्जा उत्पादन में थोरियम की आवश्यकता है।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड

चर्चा में क्यों?

भारत के सबसे बड़े विद्युत् उत्पादक, राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम (NTPC) लिमिटेड ने समृद्ध जीवन (ANEEL) थोरियम आधारित ईंधन के लिये उन्नत परमाणु ऊर्जा के विकास और तैनाती का पता लगाने के लिये अमेरिका स्थित क्लीन कोर थोरियम एनर्जी (CCTE) के साथ एक रणनीतिक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। 

समृद्ध जीवन के लिये उन्नत परमाणु ऊर्जा (ANEEL) क्या है?

  • परिचय: ANEEL एक पेटेंट प्राप्त परमाणु ईंधन है जो थोरियम और उच्च परख निम्न समृद्ध यूरेनियम (HALEU) का मिश्रण है।
    • इस ईंधन का नाम भारत के अग्रणी परमाणु वैज्ञानिकों में से एक डॉ. अनिल काकोडकर के सम्मान में रखा गया है।
    • HALEU 5% से 20% तक संवर्धित यूरेनियम है, जो कई उन्नत परमाणु रिएक्टर डिजाइनों के लिये आवश्यक है। 
      • वर्तमान में इसका उत्पादन केवल रूस और चीन में ही किया जाता है, तथा अमेरिका में इसका उत्पादन सीमित है।
  • PHWR के साथ अनुकूलता: ANEEL ईंधन का उपयोग मौजूदा PHWR में किया जा सकता है, जो भारत के परमाणु ऊर्जा का स्रोत हैं।  
    • वर्तमान में भारत में 22 रिएक्टर कार्यरत हैं, जिनकी स्थापित क्षमता 6780 मेगावाट है। इनमें से 18 रिएक्टर PHWR और 4 भारी जल रिएक्टर (LWR) हैं।
    • भारत 10 और PHWR का निर्माण कर रहा है, जिनमें से प्रत्येक की क्षमता 700 मेगावाट होगी।
  • थोरियम परिनियोजन में आसानी: आयातित HALEU का उपयोग करते हुए, ANEEL थोरियम परिनियोजन के लिये एक सरल और तेज़ विकल्प प्रदान करता है।
    • यूरेनियम-233 के उत्पादन की भारत की पारंपरिक विधि श्रम-केंद्रित है और इसमें यूरेनियम या प्लूटोनियम रिएक्टरों के चारों ओर थोरियम का उपयोग शामिल है।
  • लाभ:
    • दक्षता: ANEEL ईंधन की बर्न-अप दक्षता 60,000 मेगावाट-दिन प्रति टन है, जबकि पारंपरिक प्राकृतिक यूरेनियम के लिये यह 7,000 मेगावाट-दिन प्रति टन है।
      • एक सामान्य 220 मेगावाट PHWR में ईंधन बंडलों के आवश्यक जीवनकाल को 1,75,000 से घटाकर 22,000 करने से, ANEEL ईंधन अपशिष्ट की मात्रा और परिचालन व्यय को काफी हद तक कम कर देता है।
    • अप्रसार: थोरियम और व्ययित ANEEL ईंधन गैर-हथियारीकरण योग्य है, जिससे विदेशी यूरेनियम आपूर्तिकर्त्ताओं और रिएक्टर ऑपरेटरों के लिये प्रसार संबंधी चिंताएँ कम हो जाती हैं।
    • आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव: ANEEL ईंधन अपनी उच्च दक्षता और लंबे समय तक चलने वाले ईंधन बंडलों के कारण रिएक्टरों की परिचालन लागत को कम करता है।
      • यह भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों और परमाणु क्षमता को तीन गुना करने की वैश्विक प्रतिबद्धता के अनुरूप है, जैसा कि दुबई, संयुक्त अरब अमीरात में COP28 के दौरान उजागर किया गया था।
    • वैश्विक सहयोग: जब से कनाडाई परमाणु प्रयोगशालाओं और CCTE ने ANEEL ईंधन विकास और लाइसेंसिंग को बढ़ावा देने के लिये समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं, तब से ANEEL में HALEU-थोरियम मिश्रण ने विश्व का ध्यान आकर्षित किया है।

थोरियम:

  • परिचय: थोरियम चांदी जैसा, एक रेडियोधर्मी धातु है। यह आमतौर पर आग्नेय चट्टानों और हैवी मिनरल सैंड में पाया जाता है।
  • प्रचुरता: पृथ्वी की सतह पर थोरियम, यूरेनियम की तुलना में तीन गुना अधिक प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, थोरियम की औसत सांद्रता 10.5 भाग प्रति मिलियन (PPM) है, जबकि यूरेनियम की लगभग 3 PPM है।
  • फ़िज़नेबल (Fissionable) परंतु फिज़ाइल (Fissile) नहीं: थोरियम का एकमात्र प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला समस्थानिक थोरियम-232 है, जो फ़िज़नेबल (विखंडन हो सकता है) परंतु फिज़ाइल नहीं है (बाह्य न्यूट्रॉन के बिना शृंखला अभिक्रिया को जारी नहीं रख सकता)। 
    • थोरियम-232 को विखंडन के लिये उच्च ऊर्जा वाले न्यूट्रॉन की आवश्यकता होती है।

थोरियम आधारित परमाणु रिएक्टर क्या है?

  • थोरियम आधारित परमाणु रिएक्टर: इसमें यूरेनियम-235 या प्लूटोनियम-239 के स्थान पर  प्राथमिक ईंधन के रूप में थोरियम-232 का उपयोग किया जाता है।
    • थोरियम फिज़ाइल पदार्थ नहीं है, बल्कि फर्टाइल (Fertile) पदार्थ है, जिसका अर्थ है कि इसे परमाणु ईंधन के रूप में उपयोग करने के लिये यूरेनियम-235 या प्लूटोनियम-239 के साथ युग्मित करना आवश्यक है।
    • नाभिकीय अभिक्रिया को आरंभ करने और बनाए रखने के लिये थोरियम का उपयोग विखंडनीय पदार्थ जैसे 233U, 235U या 239Pu के साथ किया जाना आवश्यक है।
  • ईंधन चक्र की रणनीतियाँ: 
    • निम्न संवर्द्धित यूरेनियम (LEU) के साथ थोरियम: LEU में 19.75% का 235U संवर्द्धन होता है, इसे थोरियम के साथ मिलाकर थोरियम-LEU मिश्रित ऑक्साइड (M.O.X.) ईंधन बनाया जाता है।
    • प्लूटोनियम (Pu) के साथ थोरियम: यह विन्यास प्लूटोनियम को बाह्य विखंडनीय भण्डार के रूप में उपयोग करता है।
  • लाभ: 
    • परमाणु अपशिष्ट में कमी: थोरियम आधारित रिएक्टर यूरेनियम-प्लूटोनियम ईंधन चक्रों की तुलना में काफी कम दीर्घकालिक लघु एक्टिनाइड्स (आयनीकरण विकिरण उत्सर्जित करने वाले तत्व) उत्पन्न करते हैं।
    • सुरक्षा: व्यय ईंधन में 232U की उपस्थिति कठोर गामा विकिरण उत्पन्न करती है, जो शस्त्रीकरण को रोकती है।
    • पुनर्चक्रण क्षमता: 233U में कम गैर-विखंडनीय अवशोषण, बहु पुनर्चक्रण चक्रों की सुविधा प्रदान करता है, जिससे ईंधन दक्षता में सुधार होता है।
    • उन्नत ईंधन उपयोग: थोरियम जल-शीतित या विगलित-लवण रिएक्टरों में खपत की तुलना में अधिक विखंडनीय यूरेनियम-233 उत्पन्न कर सकता है, जिससे ईंधन का कुशल उपयोग सुनिश्चित होता है।
  • चुनौतियाँ: 
    • निष्कर्षण लागत: थोरियम निष्कर्षण महंगा होता है, क्योंकि यह दुर्लभ मृदा की मांग से प्रेरित मोनेज़ाईट खनन का उप-उत्पाद है, जिससे समर्पित खनन गैर-लाभकारी हो जाता है।
    • विखंडनीय चालकों पर निर्भरता: थोरियम एक उपजाऊ खनिज है। इसे शृंखला अभिक्रिया आरंभ करने और बनाए रखने के लिये यूरेनियम-235 या प्लूटोनियम-239 जैसी बाह्य विखंडनीय सामग्री की आवश्यकता होती है।
    • सीमित अनुभव: अधिकांश परमाणु ऊर्जा प्रणालियाँ ऐतिहासिक रूप से यूरेनियम के लिये अनुकूलित हैं, जिसके कारण थोरियम के संबंध में अनुसंधान, विकास एवं परिचालन अनुभव सीमित है।

भारत का तीन चरणीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम क्या है?

  • परिचय: यह परमाणु ऊर्जा विकसित करने की एक रणनीति है, जो देश में उपलब्ध सीमित यूरेनियम संसाधनों और विशाल थोरियम भंडार के विवेकपूर्ण उपयोग पर केंद्रित है।
    • इसे भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने और आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के लिये डॉ. होमी भाभा द्वारा तैयार किया गया था।
  • 3-चरण: 3-चरण की रणनीति विभिन्न प्रकार के रिएक्टरों को एकीकृत करके धीरे-धीरे थोरियम-आधारित विद्युत उत्पादन में परिवर्तित करती है।
    • चरण-I: इसमें PHWR की स्थापना शामिल है और इसमें ईंधन के रूप में प्राकृतिक यूरेनियम (U-238) और शीतलक एवं मॉडरेटर के रूप में भारी जल (ड्यूटेरियम ऑक्साइड) का उपयोग किया जाता है।
      • इन रिएक्टरों से निष्कर्षित ईंधन को प्लूटोनियम प्राप्त करने के लिये पुनः संसाधित किया जाता है।
    • चरण-II: इसमें चरण-I के रिएक्टरों में उत्पादित प्लूटोनियम द्वारा संचालित फास्ट ब्रीडर रिएक्टरों (FBRs) के उपयोग की परिकल्पना की गई है।
      • प्लूटोनियम के उपयोग के अतिरिक्त, FBR थोरियम से यूरेनियम-233 (U-233) का उत्पादन भी करते हैं।
    • चरण-III: इसमें ईंधन के रूप में यूरेनियम-233 (U-233) और थोरियम का उपयोग करके थोरियम-आधारित रिएक्टरों के उपयोग की परिकल्पना की गई है।
      • चरण-III का उद्देश्य थोरियम से उत्पन्न U-233 को भारत के प्राथमिक परमाणु ईंधन के रूप में उपयोग करना है।

नोट: प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (PFBR) का परिचालन भारत के तीन-चरणीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के दूसरे चरण की शुरुआत का प्रतीक है।

  • PFBR संयंत्र द्वारा अपनी खपत से अधिक परमाणु ईंधन का उत्पादन होता है। 
  • तमिलनाडु के कलपक्कम स्थित मद्रास परमाणु विद्युत संयंत्र में स्थानीय PFBR का परिचालन शुरू कर दिया गया है।

निष्कर्ष

भारत की परमाणु रणनीति (जो 3-चरणीय कार्यक्रम पर आधारित है) संधारणीय ऊर्जा हेतु प्रचुर मात्रा में थोरियम भंडार का दोहन करने पर केंद्रित है। उन्नत थोरियम ईंधन (ANEEL) हेतु CCTE के साथ सहयोग से कुशल तथा कम अपशिष्ट वाली परमाणु ऊर्जा के क्रम में एक आशाजनक भविष्य पर प्रकाश पड़ता है। इससे संबंधित चुनौतियों के बावजूद, भारत की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में थोरियम की क्षमता महत्त्वपूर्ण है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत की ऊर्जा रणनीति में थोरियम आधारित परमाणु रिएक्टरों के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। 3-चरणीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम इस उद्देश्य के साथ किस प्रकार संरेखित है?

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में, क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर "आई. ए. ई. ए. सुरक्षा उपायों" के अधीन रखे जाते हैं जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020)

(a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का
(b) कुछ आयातित यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य घरेलू आपूर्ति का
(c) कुछ विदेशी उद्यमों द्वारा संचालित होते हैं और अन्य घरेलू उद्यमों द्वारा
(d) कुछ सरकारी स्वामित्व वाले होते हैं और अन्य निजी स्वामित्व वाले

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारत के संदर्भ में 'अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आई. ए. ई. ए.)' के 'अतिरिक्त नयाचार (एडीशनल प्रोटोकॉल)' का अनुसमर्थन करने का निहितार्थ क्या है? (2018)

(a) असैनिक परमाणु रिएक्टर आई. ए. ई. ए. के रक्षोपायों के अधीन आ जाते हैं।
(b) सैनिक परमाणु अधिष्ठान आई. ए. ई. ए. के निरीक्षण के अधीन आ जाते हैं।
(c) देश के पास नाभिकीय पूर्तिकर्त्ता समूह (एन. एस. जी.) से यूरेनियम क्रय का विशेषाधिकार हो जाएगा।
(d) देश स्वतः एन. एस. जी. का सदस्य बन जाता है।

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती जरूरतों के परिप्रेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? परमाणु ऊर्जा से जुड़े तथ्यों एवं भयों की विवेचना कीजिये। (2018)

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