आपदा प्रबंधन
हिंद महासागर सुनामी 2004 के 20 वर्ष
- 26 Dec 2024
- 16 min read
प्रिलिम्स के लिये:सुंडा ट्रेंच, इंडो-ऑस्ट्रेलियन प्लेट, बर्मा माइक्रोप्लेट, यूरेशियन प्लेट, कोको द्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, सुनामी, ज्वालामुखी, भारतीय सुनामी प्रारंभिक चेतावनी केंद्र (ITEWC), भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS), हिंद महासागर, मैंग्रोव, महाबलीपुरम, परमाणु ऊर्जा संयंत्र , कलपक्कम परमाणु संयंत्र, यूनेस्को, अंतर-सरकारी महासागरीय आयोग (IOC), तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ), NDMA, SDMA। मेन्स के लिये:सुनामी पूर्वानुमान में नई पहल, सुनामी आपदा प्रबंधन। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
26 दिसंबर 2024 को वर्ष 2004 के हिंद महासागर भूकंप और सुनामी की 20वीं वर्षगाँठ मनाई गई।
2004 का हिंद महासागर भूकंप और सुनामी क्या था?
- उत्पत्ति और कारण: इस भूकंप की तीव्रता 9.1 थी, जिससे यह 1900 के बाद से विश्व स्तर पर दर्ज किया गया तीसरा सबसे बड़ा भूकंप [अन्य दो: चिली, 1960 (तीव्रता 9.5) और अलास्का, 1964 (तीव्रता 9.2)] बन गया।
- भूकंप की उत्पत्ति सुंडा ट्रेंच में हुई, जहाँ इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट बर्मा माइक्रोप्लेट ( यूरेशियन प्लेट का हिस्सा ) के नीचे क्षेपित हो गई।
- भौगोलिक प्रभाव: इसने दक्षिण में सुमात्रा से लेकर उत्तर में कोको द्वीप समूह तक 1,300 किमी. के क्षेत्र को प्रभावित किया।
- भूकंप के झटके इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भारत, मलेशिया, मालदीव, म्याँमार, सिंगापुर, श्रीलंका और थाईलैंड में महसूस किये गये।
- कार निकोबार में भारतीय वायुसेना का बेस पूरी तरह नष्ट हो गया, जो विनाश की भयावहता को दर्शाता है।
- मृत्यु और विस्थापन: सुनामी के कारण अनुमानतः 227,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई, जिससे यह इतिहास में सबसे घातक सुनामी बन गयी।
- घरों और बुनियादी ढाँचे के विनाश के कारण 1.7 मिलियन से अधिक लोग विस्थापित हुए।
- भारत के लिये सबक: भारत ने अपने पूर्वी तट पर इतनी बड़ी घटना की आशा नहीं की थी, क्योंकि इससे पहले केवल वर्ष 1881 में (कार निकोबार द्वीप के निकट एक बड़े भूकंप से) और 1883 में (क्राकाटोआ विस्फोट से) सुनामी आई थी जिसमे छोटी लहरें उठी थीं।
- मृत्यु दर में कमी: वर्ष 1999 के ओडिशा सुपर साइक्लोन में 10,000 से अधिक लोग मारे गए थे, जबकि चक्रवात यास (2021) में छह से भी कम लोग हताहत हुए, जो दर्शाता है कि भारत ने आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।
- हालाँकि, चक्रवातों के कारण होने वाली बुनियादी संरचना की क्षति अभी भी चिंता का विषय है। उदाहरण के लिये, चक्रवात दाना (2024) ने ओडिशा में व्यापक क्षति पहुँचाई जिसका अनुमान 616 करोड़ रुपए है।
सुनामी:
- सुनामी समुद्र के नीचे भूकंप या ज्वालामुखी विस्फोट के कारण उत्पन्न विशाल लहरें हैं।
- हालाँकि सुनामी ज्वालामुखी प्रस्फुटन, भूस्खलन, परमाणु विस्फोट, समुद्री पर्वत के ढहने तथा उल्कापिंड के प्रभाव के कारण भी उत्पन्न हो सकती है।
- समुद्र की गहराई में सुनामी लहरों की ऊँचाई में व्यापक रूप से वृद्धि नहीं होती।
- लेकिन जैसे-जैसे सुनामी भूमि के पास पहुँचती है, समुद्र की गहराई कम होने के साथ-साथ वे अधिक ऊँचाई तक पहुँच जाती हैं।
- सुनामी लहरों की गति लहर के स्रोत से दूरी के बजाय समुद्र की गहराई पर निर्भर करती है।
- सुनामी लहरें गहरे पानी में जेट विमानों जितनी तेज़ी से प्रवाहित होती हैं, तथा उथले पानी में पहुँचने पर धीमी हो जाती हैं।
- सुनामी प्रवण क्षेत्र: भारत अपनी विशिष्ट भू-जलवायु और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के कारण विभिन्न प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के प्रति संवेदनशील है।
- 7,516 किलोमीटर लंबी तटरेखा में से लगभग 5,700 किलोमीटर हिस्सा चक्रवातों और सुनामी से प्रभावित है।
वर्ष 2004 के हिंद महासागर सुनामी के बाद क्षति को न्यूनतम करने हेतु कौन-से कदम उठाए गए?
- पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ: भारतीय सुनामी पूर्व चेतावनी केंद्र (ITEWC) की स्थापना वर्ष 2007 में केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा की गई थी।
- ITEWC हैदराबाद स्थित भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS) से संचालित होता है, तथा संभावित सुनामी का पता लगाने और उसके लिये पूर्व चेतावनी जारी करने हेतु भारतीय महासागर बेसिन में भूकंपीय स्टेशनों, तल दाब रिकार्डरों और ज्वारीय स्टेशनों का उपयोग करता है।
- ITEWC हिंद महासागर सुनामी चेतावनी एवं शमन प्रणाली (IOTWMS) के अनुमोदित सुनामी सेवा प्रदाता के रूप में कार्य करता है, जो वैश्विक सुनामी चेतावनी एवं शमन प्रणाली का एक अभिन्न अंग है।
- विश्व भर में लगभग 150 स्टेशन भूकंपीय गतिविधियों का निरीक्षण करते हैं, जबकि गहरे समुद्र में सुनामी का आकलन और रिपोर्टिंग (DART) सुनामी की पहचान करने के लिये समुद्र तल के दबाव में बदलाव को मापते हैं।
- ITEWC हैदराबाद स्थित भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS) से संचालित होता है, तथा संभावित सुनामी का पता लगाने और उसके लिये पूर्व चेतावनी जारी करने हेतु भारतीय महासागर बेसिन में भूकंपीय स्टेशनों, तल दाब रिकार्डरों और ज्वारीय स्टेशनों का उपयोग करता है।
- वास्तविक समय निगरानी: सुनामी उत्पन्न करने वाले भूकंपों का पता लगाने और मात्र 10 मिनट में चेतावनी जारी करने के लिये वास्तविक समय महासागर निगरानी प्रणालियाँ विकसित की गईं।
- भारत उन्नत सुनामी चेतावनी प्रणाली वाला विश्व का पाँचवाँ देश बन गया है, तथा वह अमेरिका, जापान, चिली और ऑस्ट्रेलिया के साथ शामिल हो गया है।
- वैश्विक स्तर पर, बढ़ते समुद्री स्तर और संभावित सुनामी का पता लगाने के लिये समुद्र-स्तर निगरानी स्टेशनों की संख्या 2004 में केवल एक से बढ़कर वर्तमान में 14,000 हो गई है।
- तकनीकी उन्नति: पूर्व चेतावनी प्रणालियों में अब बेहतर एल्गोरिदम और सुपरकंप्यूटर का उपयोग किया जाता है, जिससे तीव्र मॉडलिंग संभव हो जाती है, तथा सुनामी के व्यवहार का अधिक तेज़ी से और अधिक सटीक पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
- सुनामी भू-विज्ञान अनुसंधान: अमेरिकी भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के ब्रायन एटवाटर द्वारा अग्रणी सुनामी भू-विज्ञान का कार्य इतिहास में सुनामी के साक्ष्य की खोज के लिये शुरू हुआ।
- मैंग्रोव दलदलों और तटीय क्षेत्रों की जाँच से अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह तथा महाबलीपुरम (पल्लव राजवंश का एक बंदरगाह) में विगत में हुई सुनामी घटनाओं (1,000 वर्ष पूर्व) का पता चला।
- धीमी गति से फिसलने की घटनाओं (स्लो स्लिप) पर अनुसंधान: शोधकर्त्ताओं ने बड़े भूकंपों से पहले और बाद में होने वाली प्रक्रियाओं को समझने के लिये प्लेट सीमाओं पर भूकंपीय धीमी गतिविधियों का अध्ययन करना शुरू किया।
- अध्ययन से पता चला कि वर्ष 2004 के भूकंप से पहले, वर्ष 2003 और 2004 के बीच दक्षिण अंडमान में ज़मीन के नीचे हलचल देखी गई थी।
- परमाणु संयंत्र भेद्यता अध्ययन: वर्ष 2004 की सुनामी के बाद, शोधकर्त्ताओं ने कलपक्कम जैसे परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की सुनामी जोखिमों के प्रति भेद्यता का आकलन किया।
- कलपक्कम परमाणु संयंत्र जल स्तर बढ़ने के कारण स्वतः बंद हो गया और रिएक्टर को छह दिन बाद पुनः चालू किया गया।
- जलप्लावन अध्ययन: तटीय अवसंरचना जोखिमों का मूल्यांकन किया गया तथा सुनामी मॉडलिंग के लिये गणितीय विधियों की सहायता से जलप्लावन सीमा निर्धारित की गई।
- उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित: विशेषज्ञों ने मकरान तट (ईरान और पाकिस्तान) और म्याँमार तट जैसे अन्य उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों का अध्ययन करना शुरू कर दिया।
- मकरान तट से भारत के पश्चिमी तट की ओर आने वाली सुनामी से इस क्षेत्र के परमाणु रिएक्टरों पर प्रभाव पड़ सकता है।
- वैश्विक सहयोग: सुनामी चेतावनी प्रणाली को वैश्विक स्तर पर अधिक समन्वित किया गया है तथा विभिन्न देश भूकंप एवं सुनामी की निगरानी के लिये मिलकर कार्य कर रहे हैं।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी के बाद, यूनेस्को अंतर-सरकारी महासागरीय आयोग (IOC) को महासागरीय बेसिनों में वैश्विक सुनामी चेतावनी सेवाएँ स्थापित करने का कार्य सौंपा गया था।
सुनामी शमन हेतु NDMA के दिशानिर्देश क्या हैं?
- जोखिम मानचित्रण: संवेदनशील तटीय क्षेत्रों हेतु व्यापक सुनामी जोखिम आकलन करने के साथ सुनामी से सबसे अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिये।
- पूर्व चेतावनी प्रणाली: एक प्रभावी सुनामी पूर्व चेतावनी प्रणाली की स्थापना करनी चाहिये, जिसमें संभावित सुनामी खतरों की निगरानी के लिये भूकंपीय सेंसर तथा ज्वार-भाटा मापने वाले उपकरण शामिल हों।
- SMS, रेडियो, टेलीविज़न जैसी सार्वजनिक प्रणालियों के माध्यमों से सुनामी चेतावनी को प्रसारित करना चाहिये।
- तटीय ज़ोनिंग: तटीय क्षेत्रों में नियंत्रित तथा सतत् विकास के लिये तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) अधिसूचना को लागू करने पर बल देना चाहिये।
- कम जोखिम वाले क्षेत्रों में सुरक्षित विकास को बढ़ावा देने के साथ मैंग्रोव एवं रेत के टीलों जैसे प्राकृतिक अवरोधों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- सुनामी-रोधी अवसंरचना: सुनामी-रोधी अवसंरचना का निर्माण (जिसमें अपेक्षित सुनामी लहर की ऊँचाई से ऊँची इमारतें, सुदृढ़ संरचनाएँ तथा आपातकालीन आश्रय स्थल शामिल हैं) किया जाना चाहिये।
- सुनामी तरंगों के प्रभाव को कम करने के लिये उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में समुद्री दीवारें, ब्रेकवाटर तथा तटबंधों का निर्माण करना चाहिये।
- सामुदायिक तैयारी: सुनामी जोखिम, चेतावनी संकेत तथा आपातकालीन कार्रवाईयों के संबंध में नियमित रूप से सार्वजनिक जागरूकता अभियान चलाना चाहिये।
- स्पष्ट संकेत एवं मानचित्र के साथ तटीय क्षेत्रों के लिये सुनामी से निपटने की योजना बनानी चाहिये।
- संस्थागत ढाँचा: प्रभावी सुनामी शमन एवं प्रतिक्रिया के लिये NDMA और SDMA सहित राष्ट्रीय, राज्य तथा स्थानीय एजेंसियों के बीच समन्वय करना चाहिये।
- प्रतिक्रिया एवं पुनर्प्राप्ति: खोज और बचाव, चिकित्सा सहायता, आश्रय तथा भोजन एवं जल वितरण के साथ सुनामी प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति योजनाएँ विकसित करनी चाहिये।
- प्रभावित क्षेत्रों के पुनर्निर्माण हेतु रणनीतियाँ (जिसमें घरों, बुनियादी ढाँचे के पुनर्निर्माण और आजीविका के लिये वित्तीय एवं रसद सहायता शामिल हो) बनानी चाहिये।
निष्कर्ष
- वर्ष 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी से पूर्व चेतावनी प्रणालियों से संबंधित कमियों पर प्रकाश पड़ा, जिससे वैश्विक एवं क्षेत्रीय स्तर पर सुनामी संबंधी तैयारियों में काफी प्रगति हुई। ITEWC की स्थापना, बेहतर निगरानी तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग जैसी पहलों से आपदा प्रतिक्रिया में काफी सुधार हुआ है, फिर भी इसमें चुनौतियाँ (विशेषकर विकासशील देशों में) बनी हुई हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: वर्ष 2004 की हिंद महासागर की सुनामी के बाद प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों में सुधार की दिशा में उठाए गए कदमों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्सप्रश्न. आपदा प्रबंधन में पूर्ववर्ती प्रतिक्रियात्मक उपागम से हटते हुए भारत सरकार द्वारा आरंभ किये गए अभिनूतन उपायों की विवेचना कीजिये। (2020) प्रश्न: भूकंप संबंधित संकटों के लिये भारत की भेद्यता की विवेचना कीजिये। पिछले तीन दशकों में, भारत के विभिन्न भागों में भूकंप द्वारा उत्पन्न बड़ी आपदाओं के उदाहरण प्रमुख विशेषताओं के साथ दीजिये। (2021) प्रश्न: दिसंबर 2004 को सुनामी भारत सहित चौदह देशों में तबाही लायी थी। सुनामी के होने के लिये ज़िम्मेदार कारकों एवं जीवन तथा अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले उसके प्रभावों पर चर्चा कीजिये। एन.डी.एम.ए. के दिशा निर्देशों (2010) के प्रकाश में, इस प्रकार की घटनाओं के दौरान जोखिम को कम करने की तैयारियों की क्रियाविधि का वर्णन कीजिये। (2017) |