शासन व्यवस्था
भारत में चिकित्सा नैतिकता और उपभोक्ता अधिकार
प्रिलिम्स के लिये:चिकित्सा नैतिकता के सिद्धांत, NCDRC, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) मेन्स के लिये:चिकित्सा लापरवाही के नैतिक निहितार्थ, मानवीय क्रियाकलापों में नैतिकता के निर्धारक और परिणाम |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में NCDRC ने जॉनसन एंड जॉनसन लिमिटेड पर 35 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। यह जुर्माना एक उपभोक्ता से संबंधित मामले में लगाया गया है, जिसमें कंपनी द्वारा निर्मित दोषपूर्ण हिप रिप्लेसमेंट डिवाइस से रोगी को चिकित्सा संबंधी जटिलताएँ हुई थीं।
- इससे चिकित्सा नैतिकता और प्रोटोकॉल के सख्त पालन की आवश्यकता पर प्रकाश पड़ता है।
नोट:
हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी (हिप आर्थ्रोप्लास्टी) का उद्देश्य दर्द से राहत देना, कूल्हे के जोड़ की कार्यक्षमता में सुधार करना तथा रोगियों को बेहतर ढंग से चलने में मदद करना है।
- हिप प्रत्यारोपण का उपयोग गठिया या एवैस्कुलर नेक्रोसिस जैसी स्थितियों के कारण कूल्हे में होने वाले दर्द और अकड़न को कम करने के लिये किया जाता है।
- ये प्रत्यारोपण उपकरण विभिन्न सामग्रियों से बनाए जाते हैं जिनमें धातु, सिरेमिक और प्लास्टिक शामिल हैं, बॉल अक्सर कोबाल्ट-क्रोमियम मिश्र धातु या सिरेमिक से बनी होती है और स्टेम आमतौर पर टाइटेनियम या कोबाल्ट-क्रोमियम मिश्र धातु से बना होता है।
चिकित्सा पद्धतियों में नैतिकता से किस प्रकार निर्देशन मिलता है?
- चिकित्सा नैतिकता: चिकित्सा नैतिकता का आशय मानव स्वास्थ्य के क्षेत्र में सही आचरण करना है तथा इससे किसी संस्कृति में किसी निश्चित समय पर क्या सही या गलत माना जाता है, के बीच अंतर करने में सहायता मिलती है।
- यह डॉक्टरों, अस्पतालों, अन्य स्वास्थ्य पेशेवरों और मरीजों के प्रति दायित्वों से संबंधित है।
- चिकित्सा पद्धति में नैतिक सिद्धांत मौलिक होते हैं तथा स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के कार्यों का मार्गदर्शन करने में अक्सर विधिक दायित्वों से अधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं।
- चिकित्सा नैतिकता के सिद्धांत:
- स्वायत्तता का सम्मान: उचित सूचित सहमति प्राप्त करके अपने उपचार के संबंध में सूचित विकल्प के संबंध में रोगी के अधिकार को स्वीकार करना।
- परोपकार: इसमें संपूर्ण शल्य प्रक्रिया के दौरान रोगी के स्वास्थ्य और कल्याण को प्राथमिकता देना तथा उनके सर्वोत्तम हित में कार्य करना शामिल है।
- अहितकर व्यवहार: एक चिकित्सा व्यवसायी/चिकित्सा उपकरण आपूर्ति करने वाली कंपनी को मरीजों को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिये और यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उन्हें आवश्यक चिकित्सा देखभाल मिले। इसके साथ ही इन्हें ऐसे किसी भी लापरवाहीपूर्ण कार्य से बचना चाहिये जिससे रोगी आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल से वंचित हो सकते हैं।
- न्याय: इसमें सभी रोगियों के साथ निष्पक्ष और समान व्यवहार करना शामिल है चाहे उनका धर्म, राष्ट्रीयता, जाति या सामाजिक स्थिति कुछ भी हो।
- हिप्पोक्रेटिक ओथ/शपथ: हिप्पोक्रेटिक ओथ नव स्नातक चिकित्सा पेशेवरों के लिये एक मौलिक सिद्धांत है। आचार संहिता का पालन करने के संबंध में इसको दीक्षांत समारोहों के दौरान लिया जाता है।
- इसमें भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम 2002 के तहत निर्धारित सिद्धांत शामिल हैं जो मानवता की सेवा करने, चिकित्सा कानूनों का पालन करने, जीवन का सम्मान करने, रोगी कल्याण को प्राथमिकता देने, गोपनीयता बनाए रखने तथा शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने पर केंद्रित हैं।
- यह शपथ एक नैतिक दिशानिर्देश के रूप में कार्य करती है तथा चिकित्सकों को चिकित्सा पेशे की प्रतिष्ठित परंपराओं और नैतिक मानकों को बनाए रखने में मार्गदर्शन करती है।
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) क्या है?
परिचय:
- राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय है जिसे वर्ष 1988 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (CPA), 1986 के तहत स्थापित किया गया था।
- NCDRC का उद्देश्य उपभोक्ता विवादों का सस्ता, शीघ्र और सुलभ समाधान सुनिश्चित करना है।
- NCDRC का नेतृत्व भारत के सर्वोच्च न्यायालय के वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के वर्तमान या सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश द्वारा किया जाता है।
CPA, 1986 के प्रावधान:
- अधिकार क्षेत्र: CPA, 1986 की धारा 21 के तहत NCDRC को 2 करोड़ रुपए से अधिक मूल्य की शिकायतों पर विचार करने का अधिकार मिलता है।
- इसके अतिरिक्त इसे राज्य आयोगों और ज़िला फोरमों द्वारा जारी आदेशों पर अपीलीय एवं पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार भी प्राप्त है।
- अपीलीय प्राधिकारी: यदि कोई उपभोक्ता ज़िला फोरम द्वारा लिये गए निर्णय से असंतुष्ट है तो वह राज्य आयोग में अपील कर सकता है।
- इसके बाद भी यदि उपभोक्ता राज्य आयोग के निर्णय से असंतुष्ट है तो वह संबंधित मामले को NCDRC के समक्ष उठा सकता है।
- इस अधिनियम की धारा 23 के अनुसार NCDRC के निर्णय से असंतुष्ट कोई भी व्यक्ति 30 दिनों के अंदर भारत के सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।
- कवरेज का दायरा: इस अधिनियम के प्रावधानों में 'वस्तुएँ' और 'सेवाएँ' दोनों शामिल हैं।
- उपभोक्ता मंच:
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (CPA), 2019 में प्रावधान है कि दावे के मूल्य के आधार पर ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर शिकायतें दर्ज की जा सकती हैं।
- ज़िला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (DCDRC): 50 लाख रुपए तक के दावों के लिये।
- राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (SCDRC): 50 लाख रुपए से 2 करोड़ रुपए तक के दावों के लिये
- राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC): 2 करोड़ रुपए से अधिक के दावों के लिये।
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (CPA), 2019 में प्रावधान है कि दावे के मूल्य के आधार पर ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर शिकायतें दर्ज की जा सकती हैं।
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA):
- CCPA उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (CPA), 2019 की धारा 10 के तहत स्थापित नियामक निकाय है, यह उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन और अनुचित व्यापार प्रथाओं से संबंधित मामलों को नियंत्रित करता है।
- यह उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अधीन कार्य करता है।
- CCPA की शक्तियाँ:
- उपभोक्ता अधिकार: एक समूह के रूप में उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा और उन्हें लागू करना।
- अनुचित व्यापार व्यवहार: व्यक्तियों को अनुचित व्यापार व्यवहार में संलग्न होने से रोकता है।
- विज्ञापन विनियमन: CPA, 2019 की धारा 21 CCPA को झूठे या भ्रामक विज्ञापनों के विरुद्ध निर्देश और दंड जारी करने की शक्ति प्रदान करती है।
भारत में चिकित्सा नैतिकता के मुद्दे क्या हैं?
- सूचित सहमति: प्रायः रोगियों से अपर्याप्त या कोई सूचित सहमति प्राप्त नहीं होती है, विशेष रूप से कमज़ोर आबादी वाले नैदानिक परीक्षणों में।
- उदाहरण: विश्व के विभिन्न हिस्सों में किये गए कोविड-19 वैक्सीन परीक्षणों को लेकर विवाद।
- रोगी की गोपनीयता: रोगी के डेटा की सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिये उपायों का अभाव है।
- उदाहरण: वर्ष 2023 में ESIC डेटाबेस के एक महत्त्वपूर्ण डेटा उल्लंघन ने लाखों रोगियों की व्यक्तिगत स्वास्थ्य जानकारी को उज़ागर कर दिया, जिसमें आधार संख्या, चिकित्सा इतिहास और संपर्क विवरण जैसे संवेदनशील डेटा शामिल थे।
- हितों का टकराव: ऐसे मामले सामने आते हैं, जहाँ चिकित्सा पेशेवरों की उनके द्वारा अनुशंसित उपचारों या प्रक्रियाओं में वित्तीय भागीदारी होती है।
- वर्ष 2023 में दिल्ली के एक प्रमुख हृदय रोग विशेषज्ञ का एक स्टेंट निर्माण कंपनी के साथ वित्तीय संबंध पाया गया, जिसे परामर्श और इक्विटी हिस्सेदारी रखने पर पर्याप्त भुगतान प्राप्त हुआ था।
- डॉक्टर-रोगी विश्वास: स्वास्थ्य सेवा के व्यावसायीकरण और पारदर्शिता की कमी के कारण डॉक्टरों और मरीज़ों के बीच विश्वास में कमी आई है।
- उदाहरण: सरकारी अस्पतालों में कार्यरत डॉक्टर निज़ी तौर पर प्रैक्टिस करते हैं, जो मरीज़ों से मनमानी फीस वसूलते हैं।
- नियामक निरीक्षण: नैतिक दिशा-निर्देशों के सुभेद्य प्रवर्तन और अनुपालन के परिणामस्वरूप नैदानिक परीक्षणों और रोगी की देखभाल में दुरुपयोग होता है।
उपभोक्ता संरक्षण संबंधित पहलें
आगे की राह
- स्वास्थ्य देखभाल में नैतिक जागरूकता उत्पन्न करना: नैतिक सिद्धांतों और उनके व्यावहारिक अनुप्रयोगों पर स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों को शिक्षित करने के लिये व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम और कार्यशालाएँ लागू करना।
- नैतिक दुविधाओं पर चर्चा को सुविधाजनक बनाने और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिये स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों के भीतर खुले संवाद और पारदर्शिता की संस्कृति को प्रोत्साहित करना।
- संरचित संचार प्रोटोकॉल: SBAR (परिस्थिति-पृष्ठभूमि-मूल्यांकन-सिफारिश) तकनीक जैसे संरचित संचार प्रोटोकॉल को लागू करने से स्पष्टता में सुधार होने के साथ त्रुटियों में कमी आ सकती है।
- सूचित सहमति सुनिश्चित करने में प्रक्रिया, जोखिम, लाभ और विकल्पों के संबंध में विस्तृत व्याख्या के साथ-साथ समझ का सत्यापन भी शामिल है।
- निवारण तंत्र को मज़बूत करना: सरकार सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के माध्यम से वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) और ऑनलाइन विवाद समाधान (ODR) की मौज़ूदा अवसंरचना का उपयोग करके उपभोक्ता शिकायत समाधान को बढ़ा सकती है।
- राष्ट्रीय उपभोक्ता लोक न्यायालय हेल्पलाइन का निर्माण: एक तकनीक-सक्षम राष्ट्रीय उपभोक्ता लोक न्यायालय हेल्पलाइन शिकायतकर्त्ताओं, कंपनियों और कानूनी अधिकारियों के बीच संचार की सुविधा प्रदान कर सकती है, जिससे त्वरित समाधान सुनिश्चित हो सके।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: Q. चिकित्सा नैतिकता क्या है? विशेष रूप से भारत में रोगी-चिकित्सक संबंधों के बिगड़ते स्वरूप में इसके महत्त्व पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रारंभिक परीक्षाप्रश्न 1. भारत में कानून के प्रावधानों के तहत 'उपभोक्ताओं' के अधिकारों/विशेषाधिकारों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: c |
शासन व्यवस्था
FCRA, 2010 के तहत NGO पर कार्रवाई
प्रारंभिक परीक्षा के लिये:NGO, विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम, 2010 (FCRA), ऑक्सफैम इंडिया, नागरिक समाज संगठन (CSO), संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद। मुख्य परीक्षा के लिये:FCRA के तहत गैर सरकारी संगठनों का विनियमन एवं भारत में विकासात्मक गतिविधियों पर उनके प्रभाव। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने पाँच प्रमुख गैर सरकारी संगठनों की वित्तीय गतिविधियों एवं उनके उद्देश्यों पर चिंताओं के कारण, विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम, 2010 (FCRA) के तहत कार्रवाई की है।
- इन गैर सरकारी संगठनों में ऑक्सफैम इंडिया, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (CPR), एनवायरनिक्स ट्रस्ट (ET), लीगल इनिशिएटिव फॉर फॉरेस्ट एंड एनवायरनमेंट (LIFE) और केयर इंडिया सॉल्यूशन फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (CISSD) शामिल हैं।
- हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (ICJ) ने भारत के FCRA की आलोचना करते हुए कहा कि यह दमनकारी है और इसमें संशोधन किया जाना चाहिये।
इन NGO के विरुद्ध प्रमुख आरोप क्या हैं?
मुद्दा |
विवरण |
विकास परियोजनाओं में बाधक |
LIFE पर आरोप है कि वह भारत में कोयला खदानों और ताप विद्युत परियोजनाओं का विरोध करने के लिये अमेरिकी एनजीओ अर्थजस्टिस का साधन बना हुआ है। |
विरोध प्रदर्शन हेतु फंडिंग मिलना |
ET और सर्वाइवल इंटरनेशनल ने कथित तौर पर झारखंड में एक ताप विद्युत संयंत्र के निर्माण का विरोध किया तथा भारत में कोयला उद्योगों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन को संगठित करने के लिये यूरोपीय जलवायु फाउंडेशन (ECF) के साथ सहयोग किया। |
फंड का कुप्रबंधन |
CPR को अपने नमाति-पर्यावरण न्याय कार्यक्रम के लिये विदेशी धन प्राप्त हुआ, जिसका उपयोग कथित तौर पर निर्दिष्ट अनुसंधान या शैक्षिक गतिविधियों के बजाय मुकदमेबाजी के लिये किया गया। |
विदेशी एजेंटों के साथ मिलकर भ्रष्ट गतिविधियों में शामिल होना |
ऑक्सफैम इंडिया पर ऑस्ट्रेलिया में भारतीय कंपनियों की खनन गतिविधियों को रोकने की साजिश रचने, कथित तौर पर ऑक्सफैम ऑस्ट्रेलिया का समर्थन करने तथा विदेशों में भारतीय हितों के खिलाफ कार्य करने का आरोप है। |
अवैध गतिविधियों के लिये अन्य गैर सरकारी संगठनों का उपयोग |
FCRA लाइसेंस रद्द होने के बाद ऑक्सफैम ने अवैध गतिविधियों के लिये धन को पुनर्निर्देशित करने हेतु वैध अनुमति वाले "कठपुतली एनजीओ" की ओर ध्यान केंद्रित किया, जैसे कि जोश और अमन बिरादरी ट्रस्ट को धन उपलब्ध कराना। |
राजनीतिक एजेंडा |
गैर सरकारी संगठनों पर समग्र रूप से जनहित की सेवा करने के बजाय विशिष्ट धार्मिक समुदायों या जातियों को बढ़ावा देने का आरोप लगाया जाता है। |
वित्तीय सहायता |
ऑक्सफैम इंडिया ने कथित तौर पर कोयला विरोधी अभियानों (विशेष रूप से ओडिशा के ढिंकिया में) में विरोध प्रदर्शनों हेतु ET को वित्तीय सहायता दी थी। |
FCRA विदेशी धन प्राप्त करने वाले NGO को कैसे नियंत्रित करता है?
- FCRA की निगरानी: केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) FCRA के कार्यान्वयन की निगरानी करता है।
- FCRA के माध्यम से मंत्रालय विदेशी दान को नियंत्रित किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऐसे फंड से देश की आंतरिक सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
- पंजीकरण की आवश्यकता: विदेशी दान प्राप्त करने का आशय रखने वाले किसी भी संघ, समूह या NGO को FCRA के तहत पंजीकरण करना अनिवार्य है। यह पंजीकरण NGO को सामाजिक, शैक्षिक, धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिये योगदान प्राप्त करने की अनुमति देता है।
- पंजीकरण की पाँच वर्ष की वैधता: एक बार जब कोई NGO, FCRA के तहत पंजीकृत हो जाता है तो उसका पंजीकरण पाँच वर्ष के लिये वैध हो जाता है। इस अवधि के बाद NGO को विदेशी योगदान प्राप्त करना जारी रखने के लिये नवीनीकरण के लिये आवेदन करना होगा।
- वर्ष 2010 का कानून और वर्ष 2020 में संशोधन: मूल FCRA अधिनियम, 1976 को निरसित कर दिया गया और वर्ष 2010 में विदेशी योगदान को नियंत्रित करने वाले कानून को आधुनिक बनाने के लिये नए कानून द्वारा प्रतिस्थापित किया गया। वर्ष 2020 में विनियमों को सख्त करने और विदेशी दान की निगरानी में सुधार करने के लिये अतिरिक्त संशोधन किये गए।
- उद्देश्य-पूर्वक उपयोग: विदेशी निधियों का उपयोग केवल उसी उद्देश्य के लिये किया जाना चाहिये, जिसके लिये उन्हें प्राप्त किया गया था, जैसा कि अधिनियम के तहत निर्धारित किया गया है।
- हस्तांतरण संबंधी प्रतिबंध: पंजीकृत गैर सरकारी संगठनों को अन्य गैर सरकारी संगठनों को विदेशी धनराशि हस्तांतरित करने पर प्रतिबंध है।
- SBI बैंक खाता: पंजीकृत संस्थाओं को विदेशी धन प्राप्त करने के लिये भारतीय स्टेट बैंक, दिल्ली में एक समर्पित बैंक खाता खोलना अनिवार्य है।
- वार्षिक रिटर्न: गैर सरकारी संगठनों को वार्षिक रिटर्न दाखिल करना आवश्यक है, ताकि विदेशी योगदान के उपयोग में पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके।
- प्रतिबंधित संस्थाएँ: FCRA चुनाव उम्मीदवारों, पत्रकारों, मीडिया कंपनियों, न्यायाधीशों, सरकारी कर्मचारियों, विधायिका के सदस्यों, राजनीतिक दलों और राजनीतिक प्रकृति के संगठनों को विदेशी योगदान प्राप्त करने से रोकता है।
- सरकार को रद्द करने का अधिकार: यदि कोई NGO FCRA प्रावधानों का उल्लंघन करता हुआ पाया जाता है तो सरकार उसका पंजीकरण रद्द कर सकती है।
- रद्दीकरण के कारणों में गलत बयान, दो वर्षों तक निष्क्रियता, प्रमाणपत्र की शर्तों का उल्लंघन या राष्ट्रीय हित के विरुद्ध कार्य शामिल हैं।
गैर सरकारी संगठनों को बेहतर ढंग से विनियमित करने के लिये किन सुधारों की आवश्यकता है?
- परिभाषाओं में स्पष्टता: सरकार को NGO को विदेशी अनुदान देने पर प्रतिबंध लगाने से पूर्व लोकहित और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे शब्दों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना चाहिये।
- इससे कल्याणकारी कार्यों में वास्तविक रूप से शामिल नागरिक समाज संगठनों (CSO) के विरुद्ध कानून के दुरुपयोग का जोखिम कम होने की संभावना रहती है।
- स्वतंत्र निरीक्षण: गैर सरकारी संगठनों के विदेशी वित्तपोषण की निगरानी के लिये एक स्वतंत्र नियामक निकाय की स्थापना से उनके कामकाज में पारदर्शी प्रक्रिया सुनिश्चित होगी।
- स्तरीकृत विनियामक प्रणाली: राष्ट्रीय सुरक्षा में शामिल गैर सरकारी संगठनों के लिये सख्त रिपोर्टिंग हेतु स्तरीकृत विनियमन दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है, जबकि मानवीय या विकास कार्यों में शामिल गैर सरकारी संगठनों के लिये नियमों को आसान बनाया जा सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ संरेखित करना: FCRA को अंतर्राष्ट्रीय संधियों और मानवाधिकार दायित्वों, जैसे कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा उल्लिखित, के साथ संरेखित करने के लिये संशोधित करना।
- इससे राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं और नागरिक समाज की अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण तक पहुँच की आवश्यकता के बीच उचित संतुलन स्थापित हो सकेगा।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: FCRA के अंतर्गत गैर सरकारी संगठनों के विरुद्ध उठाए गए आरोपों और भारत में विकासात्मक गतिविधियों पर उनके प्रभावों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नमुख्य परीक्षाप्रश्न: क्या नागरिक समाज और गैर-सरकारी संगठन, आम नागरिक को लाभ प्रदान करने के लिये लोक सेवा प्रदायगी का वैकल्पिक प्रतिमान की चुनौतियों के विवेचना कीजिये। |
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारतीयों में मधुमेह की वृद्धि में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड और फास्ट फूड की भूमिका
प्रारंभिक परीक्षा:अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स, डायबिटिक कैपिटल, ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस, इंसुलिन, एडवांस्ड ग्लाइकेशन एंड प्रोडक्ट्स, खाद्य प्रसंस्करण, स्वीटनर्स, संतृप्त वसा, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI), उच्च वसा, उच्च शर्करा और नमक (HFSS) वाले खाद्य पदार्थ, सक्षम आंगनवाड़ी, पोषण 2.0। मुख्य परीक्षा के लिये:स्वास्थ्य पर अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स (UPF) का प्रभाव, स्वस्थ आहार प्रथाओं को बढ़ावा देने के उपाय। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ फूड साइंसेज़ एंड न्यूट्रीशन में प्रकाशित एक अध्ययन में भारत में बढ़ते मधुमेह के मामलों में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड और फास्ट फूड में पाए जाने वाले एडवांस्ड ग्लाइकेशन एंड प्रोडक्ट्स (AGEs) की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है।
- यह क्लिनिकल परीक्षण भारत में अपनी तरह का पहला परीक्षण था और इसका वित्तपोषण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा किया गया था।
अध्ययन की मुख्य बातें क्या हैं?
- AGEss की भूमिका: AGEs युक्त खाद्य पदार्थों के अधिक सेवन से भारत, विश्व की "मधुमेह राजधानी" के रूप में स्थापित हुआ है जहाँ 101 मिलियन से अधिक लोग इससे प्रभावित हैं।
- AGEs, ग्लाइकेशन के माध्यम से बनने वाले हानिकारक यौगिक हैं। ग्लाइकेशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें उच्च तापमान पर खाना पकाने (जैसे तलने या भूनने) के दौरान शर्करा की प्रोटीन या वसा के साथ अभिक्रिया होती है।
- AGEs से ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस (जो मुक्त कणों और एंटीऑक्सीडेंट के बीच असंतुलन है) को बढ़ावा मिलता है जिससे सूजन आने के साथ कोशिका क्षति होती है।
- मधुमेह के प्रति संवेदनशीलता: समय के साथ अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स (UPF) रक्त शर्करा में वृद्धि का कारण बनते हैं।
- इनमें फाइबर की मात्रा कम और कैलोरी की मात्रा अधिक होने से वजन और मोटापा बढ़ता है जिससे मधुमेह का जोखिम भी बढ़ जाता है।
- इंसुलिन संवेदनशीलता पर प्रभाव: AGEs की कम सांद्रता वाले आहार (जिसमें मुख्य रूप से उबालकर या भाप से पकाए गए खाद्य पदार्थ शामिल थे) में उच्च AGEs सांद्रता वाले आहार की तुलना में बेहतर इंसुलिन संवेदनशीलता के साथ इसके प्रभाव के रूप में सूजन का भी कम स्तर देखा गया।
- आहार में AGEss को कम करना, मधुमेह के जोखिम को कम करने के लिये एक व्यवहार्य रणनीति (विशेष रूप से उन लोगों के लिये जिनमें टाइप 2 मधुमेह विकसित होने का उच्च जोखिम है) हो सकती है।
नोट:
- भारत में मधुमेह का प्रसार: भारत में मधुमेह का प्रसार वर्ष 2021 में 11.4% था। इसका तात्पर्य है कि लगभग 101 मिलियन भारतीय मधुमेह से पीड़ित थे।
- भारत में तेजी से हो रहे पोषण परिवर्तन, परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट, वसा और पशु उत्पादों की बढ़ती खपत तथा गतिहीन जीवन शैली के कारण मोटापा एवं मधुमेह की समस्या बढ़ रही है।
अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ स्वास्थ्य के लिये हानिकारक क्यों हैं?
- संतृप्त वसा, नमक और चीनी: अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ आमतौर पर संतृप्त वसा, नमक और चीनी युक्त होते हैं, जो हृदय रोग, उच्च रक्तचाप और मधुमेह जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनते हैं।
- योजकों के नकारात्मक प्रभाव: अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में प्रायः संरक्षक, कृत्रिम रंग, मिठास और पायसीकारी जैसे योजक शामिल हैं।
- इन पदार्थों का स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जो संभावित रूप से सूजन, आँत संबंधी रोग और चयापचय संबंधी समस्याओं में योगदान देता है।
- पोषक तत्वों के अवशोषण में परिवर्तन: भोजन को जिस प्रकार से संसाधित किया जाता है, उसका शरीर की प्रतिक्रिया पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
- उदाहरण के लिये, जब मेवों को पूरी तरह से खाया जाता है, तो उन्हें प्रसंस्कृत करने की तुलना में न्यूनतम वसा अवशोषित होती है और तेल निकलता है, जिससे पोषक तत्व और कैलोरी सेवन में परिवर्तन होता है।
- स्वास्थ्य पर आँत संबंधी प्रभाव: गट माइक्रोबायोम (Gut microbiome), जो पाचन और प्रतिरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है, इन खाद्य पदार्थों में आमतौर पर पाए जाने वाले उच्च स्तर के शर्करा, अस्वास्थ्यकर वसा और योजकों के कारण बाधित हो सकता है।
- समग्र जीवनशैली पर प्रभाव: जो लोग अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन करते हैं, वे अन्य अस्वास्थ्यकर व्यवहारों में भी संलग्न हो सकते हैं, जैसे शारीरिक निष्क्रियता या अनियमित भोजन पैटर्न आदि।
खाद्य प्रसंस्करण/फूड प्रोसेसिंग के प्रकार क्या हैं?
- खाद्य प्रसंस्करण: यह अनाज, मांस, सब्जियाँ और फलों जैसे कच्चे कृषि उत्पादों को न्यूनतम अपशिष्ट के साथ अधिक मूल्यवान और सुविधाजनक खाद्य उत्पादों में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है।
- खाद्य प्रसंस्करण के प्रकार:
- न्यूनतम प्रसंस्कृत: इसमें फल, सब्जियाँ, दूध, मछली, दाल, अंडे, मेवा और बीज़ शामिल हैं, जिसमें कोई अतिरिक्त सामग्री नहीं जोड़ी गई है, इनकी प्राकृतिक अवस्था में न्यूनतम परिवर्तन किया गया है।
- प्रसंस्कृत सामग्रियाँ: इन्हें अकेले खाने के बजाय अन्य खाद्य पदार्थों में मिलाया जाता है, जैसे नमक, चीनी और तेल।
- प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ: इन्हें कम-से-कम प्रसंस्कृत और घर पर बनाई जा सकने वाली प्रसंस्कृत सामग्री के संयोजन से बनाया जाता है। जैसे, जैम, अचार, पनीर आदि।
- अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ: ये औद्योगिक रूप से निर्मित खाद्य उत्पाद हैं, जिसमें आमतौर पर ऐसे तत्व शामिल हैं जो घरेलू रसोई में आमतौर पर नहीं पकाए जाते।
- इन खाद्य पदार्थों में प्रायः संरक्षक, रंग, स्वाद, पायसीकारी (Emulsifier) और मिठास जैसे योजक शामिल हैं।
- इनमें आमतौर पर चीनी, अस्वास्थ्यकर वसा और नमक की मात्रा अधिक होती है, जबकि फाइबर, विटामिन और खनिज कम होते हैं।
- "तत्काल" या "रेडी-टू-ईट योग्य" के रूप में विपणन किये जाने वाले खाद्य पदार्थ, साथ ही पहले से पैक किये गए स्नैक्स और जमे हुए भोजन आमतौर पर इस श्रेणी में आते हैं।
- उदाहरण के रूप में शर्करायुक्त पेय पदार्थ, पैकेज्ड स्नैक्स, इंस्टेंट नूडल्स और रेडी-टू-ईट फूड आदि।
भारत में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड/अति प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की खपत में वृद्धि क्यों हो रही है?
- शहरीकरण: भारत में तीव्र गति से बढ़ता शहरीकारण, जिसके कारण त्वरित और सुविधाजनक भोजन विकल्पों की आवश्यकता बढ़ रही है।
- अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ आसानी से उपलब्ध होते हैं, इन्हें बनाने के लिये न्यूनतम तैयारी की आवश्यकता होती है, जिससे ये व्यस्त व्यक्तियों और परिवारों के लिये आकर्षक बन जाते हैं।
- आहार संबंधी प्राथमिकताओं में सांस्कृतिक बदलाव: पश्चिमी शैली के आहार की ओर अधिक रुझान बढ़ा है, जिसमें फास्ट फूड, मीठे स्नैक्स और रेडी-टू-ईट फूड का अधिक सेवन शामिल है।
- कामकाजी महिलाओं की बढ़ती संख्या: अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों को पारंपरिक भोजन तैयार करने के लिये समय बचाने वाले विकल्प के रूप में देखा जाता है, जिससे कामकाजी व्यक्तियों को अपने पेशेवर और व्यक्तिगत जीवन को अधिक आसानी से संतुलित करने में सहायता मिलती है।
- ताज़े भोजन की उपलब्धता: शहरी क्षेत्रों में ताज़े भोजन की उपलब्धता सीमित हो सकती है।
- अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ उन लोगों के लिये आसानी से विकल्प उपलब्ध कराकर इस अंतर की आपूर्ति कर सकते हैं, जिन्हें स्वस्थ विकल्पों तक पहुँचने में कठिनाई होती है।
- आक्रामक विपणन और उपलब्धता: UPF का भारी प्रचार किया जाता है, प्रायः उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिये स्वास्थ्य संबंधी भ्रामक दावे किये जाते हैं।
- सेलिब्रिटी विज्ञापन और लक्षित विज्ञापन, विशेष रूप से बच्चों के लिये, इन उत्पादों को और अधिक बढ़ावा देते हैं।
- स्टेटस सिंबल: यह धारणा बढ़ती जा रही है कि प्रोसेस्ड और पैकेज्ड खाद्य पदार्थों का सेवन उच्च सामाजिक स्थिति का प्रतीक है।
स्वस्थ भोजन की आदतों को बढ़ावा देने के लिये सरकार की क्या पहल हैं?
UPF की खपत को रोकने के लिये क्या सिफारिशें हैं?
- AGEs की कम सांद्रता वाला आहार: इस प्रकार के आहार को अपनाने की सिफारिश की जाती है, जिसमें फल, सब्जियाँ, साबुत अनाज और कम वसा वाले डेयरी उत्पाद शामिल हैं।
- बेकरी और शर्करा युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन कम करना और भोजन में स्टार्च रहित सब्जियाँ शामिल करना।
- खाना पकाने की विधियाँ: न्यून तापमान वाली विधियों, जैसे उबालने या भाप से पकाने, का उपयोग करके पकाए गए खाद्य पदार्थों को उच्च तापमान विधियों, जैसे तलने या भूनने, से तैयार किये गए खाद्य पदार्थों के स्थान पर उपयोग किया जाना चाहिये।
- HFSS संबंधी खाद्य पदार्थों की स्पष्ट परिभाषा: भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) को उच्च वसा, चीनी और नमक (HFSS) वाले खाद्य पदार्थों को परिभाषित करना चाहिये, ताकि हानिकारक उत्पादों की पहचान करने में सहायता मिल सके और उनकी बिक्री एवं उपभोग पर विनियमन का मार्गदर्शन किया जा सके।
- पोषक तत्व आधारित कराधान: अत्यधिक वसा, चीनी और नमक वाले उत्पादों पर उच्च कर लगाने से निर्माताओं को अपने उत्पादों को पुनः तैयार करने तथा स्वास्थ्यवर्द्धक विकल्पों को अधिक किफायती बनाने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा।
- PLI योजना में संशोधन: पोषण से संबंधित उत्पादन को समर्थन देने के लिये उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना में संशोधन करने से स्वास्थ्यवर्द्धक खाद्य उत्पादों को प्रतिस्पर्द्धात्मक बाज़ार का लाभ मिल सकता है।
- प्रचार पर प्रतिबंध: HFSS खाद्य पदार्थों के प्रचार को सीमित करने के लिये विपणन नियमों को सख्त किया जाना चाहिये, विशेष रूप से बच्चों को लक्षित करने वाले मीडिया में।
- नीतियों और कार्यक्रमों को मज़बूत करना: अपर्याप्त पोषण और आहार संबंधी रोगों की दोहरी चुनौतियों को स्पष्ट रूप से लक्षित करने के लिये सक्षम आँगनवाड़ी और पोषण 2.0 जैसी मौज़ूदा पहलों का विस्तार किया जाना चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (UPF) के सार्वजनिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा कीजिये। इनके उपभोग को हतोत्साहित करने और स्वस्थ आहार पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रारंभिक परीक्षा:एस्पार्टेम एक कृत्रिम स्वीटनर है, जो बाज़ार में बेचा जाता है। इसमें अमीनो अम्ल होते हैं, जबकि अन्य अमीनो अम्ल की तरह कैलोरी प्रदान करता है। फिर भी इसका उपयोग खाद्य पदार्थों में न्यूनतम कैलोरी वाले स्वीटनिंग एजेंट के रूप में किया जाता है। इस उपयोग का आधार क्या है? (2011) एस्पार्टेम टेबल चीनी जितना ही मीठा होता है, लेकिन टेबल चीनी के विपरीत, यह आवश्यक एंजाइमों की कमी के कारण मानव शरीर में आसानी से ऑक्सीकृत नहीं होता है जब एस्पार्टेम का उपयोग खाद्य प्रसंस्करण में किया जाता है, तो मीठा स्वाद बना रहता है, लेकिन यह ऑक्सीकरण के प्रति प्रतिरोधी हो जाता है एस्पार्टेम चीनी जितना ही मीठा होता है, लेकिन शरीर में जाने के बाद यह मेटाबोलाइट्स में परिवर्तित हो जाता है, जिससे कोई कैलोरी नहीं मिलती एस्पार्टेम टेबल चीनी की तुलना में कई गुना अधिक मीठा होता है, इसलिये एस्पार्टेम की कम मात्रा से बने खाद्य पदार्थ ऑक्सीकरण पर कम कैलोरी प्रदान करते हैं उत्तर: (d) मुख्य:प्रश्न: देश में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की चुनौतियाँ और अवसर क्या हैं? खाद्य प्रसंस्करण को प्रोत्साहित करके किसानों की आय में पर्याप्त वृद्धि कैसे की जा सकती है? (2020) |
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
भौतिकी का नोबेल पुरस्कार 2024
प्रारंभिक परीक्षा के लिये:नोबेल पुरस्कार, आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क, मशीन लर्निंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ChatGPT, कृत्रिम न्यूरॉन्स, भौतिकी का नोबेल पुरस्कार 2023, डीप लर्निंग, रिकरेंट न्यूरल नेटवर्क मुख्य परीक्षा के लिये:AI और मशीन लर्निंग, आईटी और कंप्यूटर, आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क में प्रगति। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज़ द्वारा वर्ष 2024 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार जॉन हॉपफील्ड और जेफ्री हिंटन को दिया गया है। इनके अभूतपूर्व कार्य आधुनिक आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क (ANN) और मशीन लर्निंग (ML) का आधार हैं।
- इनके कार्यों का भौतिकी से लेकर जीव विज्ञान, वित्तीय क्षेत्र, चिकित्सा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसे विभिन्न क्षेत्रों पर गहरा प्रभाव है, जिसमें OpenAI का ChatGPT (जेनरेटिव प्री-ट्रेन्ड ट्रांसफॉर्मर) भी शामिल है।
जॉन हॉपफील्ड का योगदान क्या है?
- हॉपफील्ड नेटवर्क: जॉन हॉपफील्ड को हॉपफील्ड नेटवर्क बनाने के लिये जाना जाता है, जो एक प्रकार का रिकरेंट न्यूरल नेटवर्क (RNN) है जो ANN और AI में आधारभूत रहा है।
- 1980 के दशक में विकसित हॉपफील्ड नेटवर्क को कृत्रिम नोड्स (कृत्रिम न्यूरॉन्स) के नेटवर्क में सरल बाइनरी पैटर्न (0 और 1) को संग्रहीत करने के लिये डिज़ाइन किया गया।
- इस नेटवर्क की एक प्रमुख विशेषता एसोसिएटिव मेमोरी है जिससे यह अपूर्ण या विकृत इनपुट से पूरी जानकारी प्राप्त करने में सक्षम है (इसी प्रकार मानव मस्तिष्क किसी परिचित संवेदना, जैसे कि गंध से प्रेरित होकर यादों को बनाए रखता है)।
- हॉपफील्ड नेटवर्क, हेब्बियन लर्निंग (तंत्रिका मनोविज्ञान की एक अवधारणा जहाँ न्यूरॉन्स के बीच बार-बार होने वाली अंतःक्रियाएँ उनके कनेक्शन को मज़बूत बनाती हैं) पर आधारित है।
- परमाणु व्यवहार के साथ समानताएँ दर्शाते हुए, हॉपफील्ड ने सांख्यिकीय भौतिकी का उपयोग करके इस नेटवर्क में ऊर्जा अवस्थाओं को न्यूनतम करने के साथ पैटर्न पहचान तथा शोर में कमी लाने की दिशा में कार्य किया, जो जैविक मस्तिष्क के कार्यों की नकल करने के साथ तंत्रिका नेटवर्क एवं कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के विकास में एक बड़ी सफलता है।
- प्रभाव: हॉपफील्ड की मॉडल प्रणाली का उपयोग कम्प्यूटेशनल कार्यों को हल करने, पैटर्न को पूरा करने और इमेज प्रसंस्करण में सुधार करने के लिये किया जाता है।
जेफ्री हिंटन का क्या योगदान है?
- प्रतिबंधित बोल्ट्ज़मैन मशीनें (RBMs): हॉपफील्ड के कार्य के आधार पर 2000 के दशक में हिंटन ने प्रतिबंधित बोल्ट्ज़मैन मशीनों (RBMs) के लिये एक लर्निंग एल्गोरिदम विकसित किया, जिसके द्वारा न्यूरॉन्स की कई परतों को जोड़कर गहन लर्निंग को सक्षम बनाया गया।
- RBM, स्पष्ट निर्देशों के बजाय उदाहरणों से सीखने में सक्षम थीं। इससे मशीन को पहले से सीखे गए डेटा के साथ समानता के आधार पर नए पैटर्न को पहचानने में सक्षम बनाया गया।
- बोल्ट्ज़मैन मशीनों द्वारा अपरिचित श्रेणियों (यदि वह लर्निंग पैटर्न के अनुरूप हों) की पहचान की जा सकती थी।
- अनुप्रयोग: हिंटन के कार्य से स्वास्थ्य देखभाल निदान से लेकर वित्तीय मॉडलिंग और यहाँ तक कि चैटबॉट जैसी AI प्रौद्योगिकियों तक अनेक क्षेत्रों में सफलता मिली है।
नोट: प्रायोगिक भौतिकी के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य के लिये वर्ष 2023 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार पियरे एगोस्टिनी, फ़ेरेन्क क्रॉस्ज़ और ऐनी एल. हुइलियर को दिया गया था।
कृत्रिम तंत्रिका नेटवर्क (ANN) क्या हैं?
- परिचय: ANN मस्तिष्क की संरचना से प्रेरित हैं, जहाँ जैविक न्यूरॉन्स जटिल कार्यों को करने के लिये आपस में जुड़े होते हैं। ANN में कृत्रिम न्यूरॉन्स (नोड्स) सामूहिक रूप से सूचना को संसाधित करते हैं, जिससे डेटा, मस्तिष्क के सिनैप्स के समान, सिस्टम के माध्यम से प्रवाहित होता है।
- ANN की सामान्य संरचना:
- आवर्तक तंत्रिका नेटवर्क (RNN): इसे अनुक्रमिक या समय शृंखला डेटा पर प्रशिक्षित किया जाता है ताकि एक मशीन लर्निंग (ML) मॉडल का निर्माण किया जा सके जो आनुक्रमिक इनपुट के आधार पर अनुक्रमिक भविष्यवाणियाँ कर सकें या निष्कर्ष प्रस्तुत कर सकें।
- कन्वोल्यूशनल न्यूरल नेटवर्क (CNN): ग्रिड जैसे डेटा (जैसे, चित्र) के लिये डिज़ाइन किये गए, CNN चित्रों का वर्गीकरण और ऑब्जेक्ट पहचान कार्यों के लिये त्रि-आयामी डेटा का उपयोग करते हैं।
- फीडफॉरवर्ड न्यूरल नेटवर्क: सबसे सरल आर्किटेक्चर, जहाँ सूचना पूर्ण रूप से जुड़ी लेयर्स के साथ इनपुट से आउटपुट तक एक दिशा में प्रवाहित होती है।
- यह आवर्तक और संवलनशील तंत्रिका नेटवर्क की तुलना में आसान है।
- ओटो इनकोडर: अप्रशिक्षित शिक्षण के लिये प्रयुक्त, ये इनपुट डेटा संगृहीत करते हैं, उसे संपीड़ित करते हैं ताकि सबसे महत्त्वपूर्ण भाग ही अधिशेष रहें, और फिर इस संपीड़ित संस्करण से मूल डेटा का पुनर्निर्माण करते हैं।
- जेनरेटिव एडवर्सरियल नेटवर्क (GAN): ये एक शक्तिशाली प्रकार के न्यूरल नेटवर्क हैं जिनका उपयोग अनसुपरवाइज्ड लर्निंग के लिये किया जाता है। इनमें दो नेटवर्क होते हैं: एक जेनरेटर, जो नकली डेटा बनाता है, और एक डिस्क्रिमिनेटर, जो वास्तविक और नकली डेटा के बीच अंतर करता है।
- इस प्रतिकूल प्रशिक्षण (एक मशीन लर्निंग तकनीक जो मॉडलों को अधिक सुदृढ़ करने में सहायक है) के माध्यम से, GAN यथार्थवादी, उच्च गुणवत्ता वाले नमूने उत्पन्न करते हैं।
- ये बहुमुखी AI उपकरण हैं, जो छवि संश्लेषण, शैली हस्तांतरण और टेक्स्ट-टू-इमेज संश्लेषण में व्यापक रूप से उपयोग किये जाते हैं, जो जनरेटिव मॉडलिंग में क्रांतिकारी परिवर्तन लाते हैं।
मशीन लर्निंग क्या है?
- परिचय: यह कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की एक शाखा है, जो डेटा और एल्गोरिदम का उपयोग करके कंप्यूटर को अनुभवों से सीखने और समय के साथ उनकी सटीकता में सुधार करने में सक्षम बनाती है।
- परिचालन तंत्र:
- निर्णय प्रक्रिया: एल्गोरिदम इनपुट के आधार पर डेटा का पूर्वानुमान या वर्गीकरण करते हैं, जिसे लेबल या लेबल रहित किया जा सकता है।
- एरर फंक्शन: यह फंक्शन सटीकता का आकलन करने के लिये ज्ञात उदाहरणों के विरुद्ध मॉडल की भविष्यवाणियों का मूल्यांकन करता है।
- मॉडल अनुकूलन प्रक्रिया: यह मॉडल अपने पूर्वानुमानों को बेहतर बनाने के लिये अपने भार को तब तक समायोजित करता है, जब तक कि वह सटीकता के स्वीकार्य स्तर तक नहीं पहुँच जाता है।
- मशीन लर्निंग बनाम डीप लर्निंग बनाम न्यूरल नेटवर्क:
- पदानुक्रम: AI में मशीन लर्निंग भी शामिल है; मशीन लर्निंग में गहन शिक्षण शामिल है; यह गहन शिक्षण तंत्रिका नेटवर्क पर निर्भर करता है।
- डीप लर्निंग: मशीन लर्निंग का एक उपसमूह, जो विभिन्न लेयर्स (डीप न्यूरल नेटवर्क) वाले न्यूरल नेटवर्क का उपयोग करता है और लेबल किये गए डेटासेट की आवश्यकता के बगैर असंरचित डेटा को संसाधित कर सकता है।
- तंत्रिका नेटवर्क: लेयर्स (इनपुट, अदृश्य, आउटपुट) में संरचित मशीन लर्निंग मॉडल का एक विशिष्ट प्रकार, जो मानव मस्तिष्क किस प्रकार कार्य करता है, इसको कॉपी करता है।
- जटिलता: जैसे-जैसे AI से न्यूरल नेटवर्क में परिवर्तन होता है, कार्यों की जटिलता और विशिष्टता बढ़ती जाती है तथा गहन शिक्षण और न्यूरल नेटवर्क व्यापक AI ढाँचे के भीतर विशेष उपकरण बनकर उभरते हैं।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: आधुनिक प्रौद्योगिकी पर न्यूरल नेटवर्क और मशीन लर्निंग के प्रभाव का विश्लेषण करें। विभिन्न क्षेत्रों में उनके अनुप्रयोगों के उदाहरण प्रदान करें। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रारंभिक परीक्षा:प्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 3 और 5 उत्तर: (b) मुख्य परीक्षा:Q. तर्कसंगत निर्णय लेने के लिये निवेश (इनपुट) के विश्वसनीय स्रोत के रूप में डिजिटल प्रौद्योगिकी का प्रभाव एक बहस का मुद्दा है। उपयुक्त उदाहरण के साथ आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (2021) |