जैव विविधता और पर्यावरण
म्याँमार टीक ट्रेड: डाॅजी एंड काॅन्फ्लिक्ट वुड
प्रिलिम्स के लिये:म्याँमार टीक, जुंटा, CITES, IUCN रेड लिस्ट, अफ्रीकी सागौन, भारत और म्याँमार, अंतर्राष्ट्रीय खोजी पत्रकार संघ। मेन्स के लिये:अवैध लकड़ी का व्यापार और अन्य वन्यजीव प्रजातियों एवं जैवविविधता के संरक्षण से जुड़े मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय खोजी पत्रकार संघ (International Consortium of Investigative Journalists- ICIJ) द्वारा की गई जाँच से पता चला है कि म्याँमार के "काॅन्फ्लिक्ट वुड/विवादित लकड़ी" का चीन के बाद भारत दूसरा सबसे बड़ा आयातक बन गया है। भारत ने म्याँमार से सागौन के आयात पर प्रतिबंध नहीं लगाया है और वह इसका निर्यात अमेरिका एवं यूरोपीय संघ को करता है।
- सागौन की यह आपूर्ति न केवल म्याँमार के वन आवरण कम कर रही है बल्कि म्याँमार के सैन्य शासन को भी जीविका प्रदान करती है।
म्याँमार से आयातित सागौन/टीक को "विवादित लकड़ी" के रूप में वर्णित करने का कारण:
- फरवरी 2021 में म्याँमार में सैन्य तख्तापलट के बाद सैन्य जुंटा ने म्याँमार टिम्बर एंटरप्राइज़ेज़ (MTE) पर कब्ज़ा कर लिया, जिसका देश की मूल्यवान लकड़ी और सागौन व्यापार पर विशेष नियंत्रण था। इस "विवादित" लकड़ी की बिक्री सैन्य शासन हेतु आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
- लकड़ी के व्यापार पर पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद अवैध लकड़ी व्यापार के पारगमन (Transit) देश के रूप में इसकी लोकप्रियता बढ़ी है।
- फाँरेस्ट वॉच के अनुसार, फरवरी 2021 और अप्रैल 2022 के बीच भारतीय कंपनियों ने 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के सागौन का आयात किया।
- भारत विश्व में सागौन का सबसे बड़ा आयातक और संसाधित सागौन की लकड़ी के उत्पादों का सबसे बड़ा निर्यातक है।
म्याँमार के सागौन की विशेषता:
- परिचय:
- म्याँमार के पर्णपाती और सदाबहार वनों से प्राप्त सागौन की लकड़ी को इसकी टिकाऊ, जल और दीमक से अप्रभावित रहने की विशेषता के कारण अत्यधिक मूल्यवान माना जाता है। इसे विशेष रूप से लक्जरी नौकाओं के निर्माण, अच्छी गुणवत्ता के फर्नीचर, लकड़ी की सजावटी परतों और जहाज़ के डेक के निर्माण के लिये उपयोग किया जाता है। म्याँमार में सागौन वन आवरण और भंडार में कमी आ रही है, परिणामतः इस लकड़ी के मूल्य में वृद्धि होना स्वाभाविक है।
- ग्लोबल फाॅरेस्ट वॉच के अनुसार, म्याँमार के वन क्षेत्र में पिछले 20 वर्षों में स्विट्ज़रलैंड के आकार के बराबर क्षेत्र की कमी आई है।
- म्याँमार के सागौन की स्थिति:
- सागौन (टेक्टोना ग्रैंडिस) को सागोन, भारतीय ओक और टेका के रूप में भी जाना जाता है। यह वैश्विक वार्षिक लकड़ी की मांग के 1% की पूर्ति करता है।
- सागौन भारत, म्याँमार, लाओस और थाईलैंड में पाया जाने वाला एक बड़ा पर्णपाती वृक्ष है। सागौन विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में विकसित हो सकता है और यह अति शुष्क से लेकर बहुत नम क्षेत्रों में भी पाया जा सकता है। इसके सड़ने-गलने की संभावना काफी कम होती है और इस पर कीटों का प्रभाव भी नहीं देखा जाता है, हवा के संपर्क में आने से इस पेड़ का आतंरिक भाग हरे रंग से सुनहरे भूरे रंग में परिवर्तित हो जाता है।
- लकड़ी की यह प्रजाति IUCN रेड लिस्ट में लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध है, परंतु इसे CITES में सूचीबद्ध नहीं किया गया है।
- अफ्रीकी सागौन (पेरिकोप्सिस इलाटा), जिसे अफ्रोमोसिया, कोक्रोडुआ और असमेला के नाम से भी जाना जाता है, की छाल भूरे, हरे अथवा पीले-भूरे रंग की होती है। अफ्रीकी सागौन को वर्ष 2004 की IUCN रेड लिस्ट में लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है, और यह CITES के परिशिष्ट II में सूचीबद्ध है।
म्याँमार में सागौन की अवैध कटाई को रोकने हेतु लिये गए निर्णय:
- लकड़ी के व्यापार पर प्रतिबंध:
- वर्ष 2013 में यूरोपीय संघ ने इस अवैध लकड़ी को अपने बाज़ारों में प्रवेश से रोकने के लिये नियम बनाए (वर्ष 2000-2013 के मध्य म्याँमार से निर्यात की गई लकड़ी का 70% से अधिक का अवैध रूप से कटान)।
- फरवरी 2021 में सैन्य तख्तापलट के बाद यूरोपीय संघ और अमेरिका ने म्याँमार के साथ सभी प्रकार की लकड़ियों के व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया।
- प्रतिबंधों का प्रभाव:
- सागौन का निर्यात म्याँमार से अमेरिका और यूरोपीय संघ के कुछ देशों में जारी है, जबकि इटली, क्रोएशिया और ग्रीस जैसे देशों में आयात बढ़ गया है।
- चीन और भारत, ऐतिहासिक रूप से सागौन के सबसे बड़े आयातक हैं।
- म्याँमार और भारत में व्यापारियों को दो चुनौतियों का सामना करना पड़ता है: ज़मीनी संघर्ष और म्याँमार के अधिकारियों द्वारा नियमों में लगातार बदलाव।
- लकड़ी के निर्यात पर प्रतिबंध के बाद एक नए विनियमन ने केवल निर्धारित "आकार" के सागौन के निर्यात की अनुमति दी।
- कमियों को दूर किये जाने की आवश्यकता है:
- लकड़ी व्यापारियों का कहना है कि प्रतिबंधों के बावजूद खरीदार म्याँमार में सागौन की उत्पत्ति का पता लगाने के लिये इसका DNA परीक्षण कर सकते हैं। हालाँकि DNA परीक्षण अपेक्षाकृत एक नई अवधारणा है और आमतौर पर भारत में उपयोग नहीं की जाती है।
- यूरोपीय संघ के देशों के सागौन निर्यात के नियमों में खामियाँ पाई गई हैं, कुछ भारतीय कंपनियों ने लकड़ी की उत्पत्ति को निर्दिष्ट नहीं किया है या पारगमन या परिवहन पास (Transit passes) में अस्पष्ट भाषा का उपयोग किया है। विनियमन में सुधार कर इन खामियों को दूर किया जा सकता है।
सागौन के अवैध व्यापार से निपटने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
- लकड़ी के अवैध व्यापार से निपटने के लिये विज्ञान का अनुप्रयोग, जैसे:
- डिजिटल माइक्रोस्कोप: ब्राज़ील में कानून को लागू करने वाले कर्मचारियों को उनके द्वारा रोके गए लकड़ी के परिवहन की मैक्रोस्कोपिक एनाटोमिकल तस्वीरें लेने के लिये प्रशिक्षित किया गया है।
- रिपोर्टिंग लॉगिंग: लॉगिंग डिटेक्शन सिस्टम वास्तविक समय में गतिविधि को ट्रैक कर सकता है और डेटा को स्थानीय अधिकारियों या विश्व भर में किसी को भी प्रेषित कर सकता है।
- DNA प्रोफाइलिंग: सभी पेड़ों का एक अद्वितीय आनुवशिक फिंगरप्रिंट होता है, जिससे संबंधित लकड़ी के मूल वृक्ष का पता लगाने के लिये DNA प्रोफाइलिंग का उपयोग करने में सहायता मिलती है।
- आइसोटोप विश्लेषण: लकड़ी (जलवायु, भूविज्ञान और जीव विज्ञान) की भौगोलिक उत्पत्ति का निर्धारण करना जो कि इस क्षेत्र के लिये असाधारण बनाता है।
- निकट अवरक्त स्पेक्ट्रोस्कोपी: लकड़ी की पहचान और विशेषताओं की जानकारी पाने के लिये वैज्ञानिक निकट अवरक्त स्पेक्ट्रोस्कोपी के तहत निकट अवरक्त विद्युत चुंबकीय विकिरण का अनुप्रयोग करते हैं।
- कुशल और निष्पक्ष सहयोग के माध्यम से राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विनियमन सुनिश्चित करना, जैसे कि इस प्रजाति को CITES की सूची में जोड़ना।
- अन्य कृत्रिम सामग्रियों द्वारा लकड़ी के प्रतिस्थापन के लिये वैज्ञानिक समाधान ढूँढना।
- बाज़ार में मांग एवं आपूर्ति के अंतर को कम करने और कम लागत के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित सागौन विकसित करना।
स्रोत: इंडियन-एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
पीक प्लास्टिक्स: बेंडिंग द कंज़म्पशन कर्व
प्रिलिम्स के लिये:G20, माइक्रोप्लास्टिक्स, सिंगल यूज़ प्लास्टिक और प्लास्टिक अपशिष्ट के उन्मूलन पर राष्ट्रीय डैशबोर्ड, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2022, REPLAN परियोजना, चक्रीय अर्थव्यवस्था। मेन्स के लिये:प्लास्टिक से संबंधित मुद्दे, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित हालिया सरकारी पहल। |
चर्चा में क्यों?
एक नई रिपोर्ट के अनुसार, G20 देशों में प्लास्टिक की खपत वर्ष 2019 के 261 मिलियन टन से बढ़कर वर्ष 2050 तक 451 मिलियन टन यानी लगभग दोगुनी हो जाएगी।
- "पीक प्लास्टिक्स: बेंडिंग द कंज़म्पशन कर्व" रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र की प्लास्टिक संधि वार्ताकारों द्वारा विचाराधीन नीतियों के संभावित प्रभावों की पड़ताल करती है।
प्रमुख बिंदु
- इस रिपोर्ट में उत्पादन से लेकर निपटान तक प्लास्टिक के संपूर्ण जीवनचक्र को शामिल करते हुए तीन प्रमुख नीतियों के संभावित प्रभावों की पड़ताल की गई।
- इन नीतियों में एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध, एक प्रदूषक की पूर्ण समाप्ति की लागत के लिये विस्तारित निर्माता ज़िम्मेदारी योजना और नए प्लास्टिक उत्पादन पर कर का भुगतान करना है।
- इस रिपोर्ट के अनुसार, अधिक महत्त्वाकांक्षी उपायों के साथ-साथ इन नीतियों के कार्यान्वयन, जैसे कि वर्जिन प्लास्टिक के निर्माण को सीमित करने से भविष्य में प्लास्टिक के उपयोग में कमी आएगी।
- शोधकर्त्ताओं ने पीक प्लास्टिक खपत को उस समय बिंदु और मात्रा के रूप में वर्णित किया जब वैश्विक प्लास्टिक की खपत में वृद्धि होना बंद हो जाता है।
- यह विश्लेषण G20 के 19 देशों- अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, कोरिया गणराज्य, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्किये, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका पर आधारित है।
- रिपोर्ट के अनुसार, विस्तारित उत्पादक ज़िम्मेदारी योजनाओं का सिंगल यूज़ वाले प्लास्टिक उत्पादों की खपत पर बहुत कम प्रभाव पड़ेगा।
- सबसे प्रभावी नीति अनावश्यक सिंगल यूज़ वाली प्लास्टिक वस्तुओं पर वैश्विक प्रतिबंध होगी। दक्षिण कोरिया वर्ष 2019 में कुछ उत्पादों पर राष्ट्रीय प्रतिबंध लागू करने वाला पहला देश था, बाद में अन्य वस्तुओं को शामिल करने के लिये प्रतिबंध का विस्तार किया गया। भारत, फ्राँस, जर्मनी, इटली, कनाडा और चीन में भी राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध लगाए गए हैं।
प्लास्टिक का महत्त्व:
- प्लास्टिक प्रतिरोधी, निष्क्रिय और हल्का होने के कारण व्यवसायों, उपभोक्ताओं और समाज को कई प्रकार से लाभ प्रदान करता है। यह सब इसकी कम लागत और बहुमुखी प्रकृति के कारण है।
- प्लास्टिक का उपयोग चिकित्सा उद्योग में सामग्री को कीटाणुरहित रखने के लिये किया जाता है। सीरिंज और सर्जिकल उपकरण सभी सिंगल यूज़ प्लास्टिक होते हैं।
- ऑटोमोबाइल उद्योग में प्लास्टिक के उपयोग से वाहन के वज़न में उल्लेखनीय कमी हुई है, जिससे ईंधन की खपत कम होती है और परिणामस्वरूप ऑटोमोबाइल उद्योग से पर्यावरण को कम क्षति हो रही है।
प्लास्टिक से जुड़े मुद्दे:
- सिंगल यूज़ प्लास्टिक:
- प्लास्टिक मुख्य रूप से कच्चे तेल, गैस या कोयले से उत्पादित होता है और कुल प्लास्टिक का 40% को एक बार उपयोग के बाद फेंक दिया जाता है।
- प्लास्टिक का इस्तेमाल काफी कम समय के लिये होता है। इनमें से कई उत्पाद, जैसे कि प्लास्टिक बैग और खाद्य रैपर का उपयोग तो केवल मिनटों से लेकर घंटों तक ही होता है, फिर भी वे सैकड़ों वर्षों तक पर्यावरण में बने रह सकते हैं।
- प्लास्टिक मुख्य रूप से कच्चे तेल, गैस या कोयले से उत्पादित होता है और कुल प्लास्टिक का 40% को एक बार उपयोग के बाद फेंक दिया जाता है।
- माइक्रोप्लास्टिक्स:
- प्लास्टिक कचरा समुद्र, धूप, हवा और लहरों की क्रिया से छोटे कणों में टूट जाता है, जो अक्सर एक इंच के पाँचवें हिस्से से भी कम होता है, जिसे माइक्रोप्लास्टिक के रूप में जाना जाता है। ये विश्व के हर कोने में पाए जाते हैं और पूरे जल तंत्र में विद्यमान हैं।
- माइक्रोप्लास्टिक्स और भी छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित हो रहे हैं जिन्हें ‘माइक्रोफाइबर प्लास्टिक’ के नाम से जाना जाता है। ये नगरपालिका द्वारा उपलब्ध कराए गए पेयजल प्रणालियों के साथ-साथ हवाओं में भी पाए गए हैं
- माइक्रोप्लास्टिक्स और भी छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित हो रहे हैं जिन्हें ‘माइक्रोफाइबर प्लास्टिक’ के नाम से जाना जाता है। ये नगरपालिका द्वारा उपलब्ध कराए गए पेयजल प्रणालियों के साथ-साथ हवाओं में भी पाए गए हैं
- प्लास्टिक कचरा समुद्र, धूप, हवा और लहरों की क्रिया से छोटे कणों में टूट जाता है, जो अक्सर एक इंच के पाँचवें हिस्से से भी कम होता है, जिसे माइक्रोप्लास्टिक के रूप में जाना जाता है। ये विश्व के हर कोने में पाए जाते हैं और पूरे जल तंत्र में विद्यमान हैं।
- अन्य मामले:
- खाद्य शृंखला को असंतुलित करता है:
- प्रदूषणकारी प्लास्टिक विश्व के सूक्ष्म जीवों जैसे- प्लैंकटन पर दुष्प्रभाव डालता है। जब प्लास्टिक के अंतर्ग्रहण के कारण ये जीव विषाक्त हो जाते हैं, तो उन स्थूल जीवों के लिये समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जो भोजन के लिये इन पर निर्भर होते हैं।
- प्लास्टिक की थैलियों और स्ट्रॉ जैसी बड़ी वस्तुओं के कारण समुद्री जीवन अवरुद्ध होने के साथ ही जलीय जीव भूखे मर सकते हैं।
- प्रदूषणकारी प्लास्टिक विश्व के सूक्ष्म जीवों जैसे- प्लैंकटन पर दुष्प्रभाव डालता है। जब प्लास्टिक के अंतर्ग्रहण के कारण ये जीव विषाक्त हो जाते हैं, तो उन स्थूल जीवों के लिये समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जो भोजन के लिये इन पर निर्भर होते हैं।
- मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव:
- वर्ष 2018 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के चौंकाने वाले शोध के अध्ययन से पता चला कि 90% बोतलबंद पानी में माइक्रोप्लास्टिक मौजूद थे।
- हम अपने कपड़ों के माध्यम से प्लास्टिक को अवशोषित करते हैं, जिनमें से 70% सिंथेटिक सामग्री से बने होते हैं और त्वचा के लिये सबसे नुकसानदायक होते हैं
- हम अपने कपड़ों के माध्यम से प्लास्टिक को अवशोषित करते हैं, जिनमें से 70% सिंथेटिक सामग्री से बने होते हैं और त्वचा के लिये सबसे नुकसानदायक होते हैं
- वर्ष 2018 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के चौंकाने वाले शोध के अध्ययन से पता चला कि 90% बोतलबंद पानी में माइक्रोप्लास्टिक मौजूद थे।
- खाद्य शृंखला को असंतुलित करता है:
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित पहल:
- भारतीय पहल :
- वैश्विक:
- मई 2019 में बेसल कन्वेंशन की पार्टीज़ के सम्मेलन द्वारा प्लास्टिक वेस्ट पार्टनरशिप की स्थापना व्यापार, सरकार, शैक्षणिक और नागरिक समाज के संसाधनों, हितों एवं विशेषज्ञता को वैश्विक, क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर प्लास्टिक के उत्पादन को रोकने व इसे कम करने हेतु प्लास्टिक कचरे के पर्यावरणीय रूप से बेहतर प्रबंधन (ESM) में सुधार को बढ़ावा देने के लिये की गई थी।
आगे की राह
- हॉटस्पॉट्स की पहचान:
- प्लास्टिक के उत्पादन, खपत और निपटारे से जुड़े प्लास्टिक के प्रमुख हॉटस्पॉट की पहचान करने से सरकारों को प्रभावी नीतियाँ विकसित करने में मदद मिल सकती है जो सीधे प्लास्टिक समस्या के समाधान में भी मदद कर सकती है।
- प्लास्टिक अपशिष्ट का अपघटन:
- प्लास्टिक का हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में इस प्रकार समावेश हो गया है कि इसके अपघटन के लिये बैक्टीरिया विकसित हो चुके हैं।
- जापान में प्लास्टिक खाने वाले बैक्टीरिया का उत्पादन किया गया और पॉलिएस्टर प्लास्टिक (खाद्य पैकेजिंग तथा प्लास्टिक की बोतलें) का जैव अपघटन कर इसे संशोधित किया गया
- जापान में प्लास्टिक खाने वाले बैक्टीरिया का उत्पादन किया गया और पॉलिएस्टर प्लास्टिक (खाद्य पैकेजिंग तथा प्लास्टिक की बोतलें) का जैव अपघटन कर इसे संशोधित किया गया
- प्लास्टिक का हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में इस प्रकार समावेश हो गया है कि इसके अपघटन के लिये बैक्टीरिया विकसित हो चुके हैं।
- प्लास्टिक प्रबंधन के संदर्भ में चक्रीय अर्थव्यवस्था:
- चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular Economy) में प्लास्टिक सामग्री के उपयोग को कम करने, सामग्री को कम संसाधन गहन बनाने हेतु नया स्वरूप देने तथा नई सामग्रियों एवं उत्पादों के उत्पादन के लिये संसाधन के रूप में "अपशिष्ट" को पुनः प्राप्त करने की क्षमता है।
- चक्रीय अर्थव्यवस्था न केवल प्लास्टिक और कपड़ों की वैश्विक उपयोग पर लागू होती है, बल्कि सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है।
- चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular Economy) में प्लास्टिक सामग्री के उपयोग को कम करने, सामग्री को कम संसाधन गहन बनाने हेतु नया स्वरूप देने तथा नई सामग्रियों एवं उत्पादों के उत्पादन के लिये संसाधन के रूप में "अपशिष्ट" को पुनः प्राप्त करने की क्षमता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. पर्यावरण में निर्मुक्त हो जाने वाली 'सूक्ष्म मणिकाओं (माइक्रोबीड्स)' के विषय में अत्यधिक चिंता क्यों है? (2019) (a) उन्हें समुद्री परितंत्रों के लिये हानिकारक माना जाता है। उत्तर: (a) प्रश्न. भारत में 'विस्तारित उत्पादक ज़िम्मेदारी' को निम्नलिखित में से किसमें एक महत्त्वपूर्ण विशेषता के रूप में पेश किया गया था? (2019) (a) बायो-मेडिकल वेस्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 1998 उत्तर: (c) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
शासन व्यवस्था
अकादमिक स्वतंत्रता सूचकांक रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:अकादमिक स्वतंत्रता सूचकांक रिपोर्ट, वैश्विक सार्वजनिक नीति संस्थान, अकादमिक स्वतंत्रता। मेन्स के लिये:अकादमिक स्वतंत्रता सूचकांक रिपोर्ट, भारत में उच्च शिक्षा की स्थिति। |
चर्चा में क्यों?
अकादमिक स्वतंत्रता सूचकांक रिपोर्ट (Academic Freedom Index Report) के अनुसार, वर्ष 2022 में भारत का अकादमिक स्वतंत्रता सूचकांक 179 देशों में से निचले क्रम के 30% देशों में होगा।
- अकादमिक स्वतंत्रता इस सिद्धांत को संदर्भित करती है कि विद्वानों और शोधकर्त्ताओं को सरकार, निजी संस्थानों या अन्य बाहरी संस्थाओं के हस्तक्षेप, सेंसरशिप या प्रतिशोध के बिना अनुसंधान करने और अपने निष्कर्षों को संप्रेषित करने में सक्षम होना चाहिये।
अकादमिक स्वतंत्रता सूचकांक:
- इसे ग्लोबल पब्लिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट द्वारा फ्रेडरिक-अलेक्जेंडर यूनिवर्सिटी एर्लांगेन-नुर्नबर्ग, स्कॉलर्स एट रिस्क और वी-डेम इंस्टीट्यूट के साथ घनिष्ठ सहयोग में वैश्विक समय-शृंखला डेटासेट (1900-2019) के एक हिस्से के रूप में प्रकाशित किया गया है।
- रिपोर्ट पाँच संकेतकों का आकलन करके 179 देशों में शैक्षणिक स्वतंत्रता का अवलोकन प्रदान करती है। यह विश्व भर के 2,197 से अधिक देशों के विशेषज्ञों के आकलन पर आधारित है।
- संकेतकों में शामिल हैं:
- अनुसंधान और शिक्षण की स्वतंत्रता
- शैक्षणिक आदान-प्रदान और प्रसार की स्वतंत्रता,
- विश्वविद्यालयों की संस्थागत स्वायत्तता
- परिसर की अखंडता
- शैक्षणिक और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।
- स्कोर 0 (निम्न) से 1 (उच्च) तक के पैमाने में किये जाते हैं।
प्रमुख बिंदु
- वैश्विक:
- इसने भारत, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और मेक्सिको सहित 22 देशों की पहचान की, जहाँ विश्वविद्यालयों एवं विद्वानों को दस साल पहले की तुलना में काफी कम शैक्षणिक स्वतंत्रता प्राप्त है।
- वैश्विक आबादी के 0.7% का प्रतिनिधित्त्व करने वाले केवल पाँच छोटे देशों (गाम्बिया, उज़्बेकिस्तान, सेशेल्स, मोंटेनेग्रो और कज़ाखस्तान) ने अपनी रैंकिंग में सुधार किया है।
- शेष 152 देशों में शैक्षणिक स्वतंत्रता स्थिर रही है। औसत वैश्विक नागरिक हेतु शैक्षणिक स्वतंत्रता पिछले चार दशक पहले देखे गए स्तरों के सामान हो गई है।
- चीन और भारत की तरह संयुक्त राज्य अमेरिका एवं मेक्सिको जैसे आबादी वाले देशों ने पिछले एक दशक में शैक्षणिक स्वतंत्रता में गिरावट दर्ज की है।
- भारतीय अवलोकन:
- भारत का 0.38 स्कोर है, जो पाकिस्तान के 0.43 और संयुक्त राज्य अमेरिका के 0.79 से कम है।
- वर्ष 1974-1978 को छोड़कर भारत का स्वतंत्रता सूचकांक स्कोर अतीत में उच्च था, जो वर्ष 1950 और 2012 के बीच 0.60-0.70 था।
- चीन का अकादमिक स्वतंत्रता सूचकांक 2022 में 0.07 अंक पर था, जो इसे नीचे के 10% में शामिल करता है।
- भारत ने कैंपस इंटीग्रिटी में कम स्कोर किया, जो यह मापता है कि परिसर राजनीतिक रूप से प्रेरित निगरानी या सुरक्षा उल्लंघनों से कितने मुक्त हैं।
- भारत ने संस्थागत स्वायत्तता और राजनीतिक मुद्दों से संबंधित शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक अभिव्यक्ति में भी अच्छा प्रदर्शन नहीं किया।
- जहाँ तक अनुसंधान और शिक्षण की स्वतंत्रता, अकादमिक आदान-प्रदान एवं प्रसार की स्वतंत्रता का सवाल है तो भारत ने उपरोक्त तीन संकेतकों की तुलना में थोड़ा अच्छा प्रदर्शन किया है।
- भारत का 0.38 स्कोर है, जो पाकिस्तान के 0.43 और संयुक्त राज्य अमेरिका के 0.79 से कम है।
- भारत के न्यूनतम स्तर के घटक:
- वर्ष 2013 के आसपास शैक्षणिक स्वतंत्रता के सभी पहलुओं में तेज़ी से गिरावट आनी शुरू हुई, इस मामले ने 2014 के चुनाव के बाद ध्यान आकर्षित किया।
- शैक्षणिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिये कानूनी ढाँचे की कमी ने सत्तारूढ़ सरकार के कार्यकाल के दौरान शैक्षणिक स्वतंत्रता पर हमलों को सक्षम बनाया है।
- अकादमिक स्वतंत्रता के संस्थागत आयामों- संस्थागत स्वायत्तता, परिसर की अखंडता- शैक्षणिक और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बाधाओं के साथ संयुक्त रूप से अत्यधिक दबाव देखा गया है।
- सुझाव:
- भारत एवं चीन जैसे देशों में शैक्षणिक स्वतंत्रता में गिरावट के और अधिक परिणाम सामने आ सकते हैं क्योंकि इनकी संयुक्त आबादी 2.8 बिलियन है।
- उच्च शिक्षा के नीति निर्माताओं, अग्रणी विश्वविद्यालयों और शोध के लिये वित्त प्रदान करने वालों से यह आह्वान किया जाना चाहिये कि वे अपने स्वयं के शैक्षणिक संस्थानों के साथ-साथ विदेशों में भी शैक्षिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने का कार्य करें।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
भारतीय अर्थव्यवस्था
विश्व बैंक भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र को 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण देगा
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री-आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन, राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल, WHO की सिफारिश, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY), राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग। मेन्स के लिये:भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र की स्थिति, स्वास्थ्य सेवा से संबंधित हालिया सरकारी पहल। |
चर्चा में क्यों?
विश्व बैंक ने देश को भविष्य की महामारियों हेतु तैयार रहने और अपने स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने में मदद के लिये भारत को 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण की मंज़ूरी दी है।
- ऋण को 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर के दो भागों में विभाजित किया जाएगा।
ऋण का उपयोग:
- इस ऋण का उपयोग भारत के प्रमुख प्रधानमंत्री-आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन (Pradhan Mantri-Ayushman Bharat Health Infrastructure Mission- PM-ABHIM) का समर्थन करने हेतु किया जाएगा, जो देश भर में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के बुनियादी ढाँचे में सुधार करेगा, इसे अक्तूबर 2021 में लॉन्च किया गया था।
- ऋण का उपयोग कार्यक्रम के वित्तपोषण साधन के रूप में किया जाएगा, जो इनपुट के बजाय परिणाम प्राप्त करने पर केंद्रित है। ऋण की परिपक्वता अवधि 18.5 वर्ष है, जिसमें पाँच वर्ष की अनुग्रह अवधि भी शामिल है।
- महामारी तैयारी कार्यक्रम (PHSPP) के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली संभावित अंतर्राष्ट्रीय महामारियों का पता लगाने और रिपोर्ट करने के लिये भारत की निगरानी प्रणाली तैयार करने के सरकार के प्रयासों का समर्थन करने हेतु 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि प्रदान करेगा।
- संवर्द्धित स्वास्थ्य सेवा वितरण कार्यक्रम (EHSDP) एक पुन: डिज़ाइन किये गए प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल मॉडल के माध्यम से सेवा वितरण को मज़बूत करने के सरकार के प्रयासों का समर्थन करने के लिये 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रदान करेगा।
- इन ऋणों से एक साथ आंध्र प्रदेश, केरल, मेघालय, ओडिशा, पंजाब, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश जैसे सात राज्यों में स्वास्थ्य सेवा वितरण को प्राथमिकता दी जाएगी।
भारत का स्वास्थ्य-क्षेत्र:
- स्थिति:
- विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार, भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र के प्रदर्शन में समय के साथ सुधार हुआ है। भारत की जीवन प्रत्याशा वर्ष 1990 के 58 से बढ़कर वर्ष 2022 में 70.19 हो गई है।
- पाँच वर्ष से कम आयु की मृत्यु दर (36 प्रति 1,000 जीवित जन्म), शिशु मृत्यु दर (30 प्रति 1,000 जीवित जन्म), और मातृ मृत्यु दर (103 प्रति 100,000 जीवित जन्म) सभी भारत के आय स्तर के औसत के करीब हैं।
- प्रमुख मुद्दे :
- अपर्याप्त चिकित्सीय अवसंरचना: भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पतालों की कमी के साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं के बुनियादी उपकरणों और संसाधनों की कमी है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल के अनुसार, भारत में प्रति 1000 जनसंख्या पर केवल 0.9 बिस्तर (Bed) उपलब्ध हैं और इनमें से केवल 30% ग्रामीण क्षेत्रों में हैं।
- डॉक्टर-रोगी अनुपात में अंतर: सबसे गंभीर चिंताओं में से एक डॉक्टर-रोगी अनुपात में अंतर है। इंडियन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ के मुताबिक, भारत को वर्ष 2030 तक 20 लाख डॉक्टरों की आवश्यकता होगी।
- हालाँकि वर्तमान में सरकारी अस्पताल में एक डॉक्टर ~ 11000 रोगियों की परिचर्या करता है, जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की अनुशंसा अनुपात 1:1000 से अधिक है।
- पर्याप्त मानसिक स्वास्थ्य देखभाल का अभाव: भारत में प्रति व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की संख्या सबसे कम है।
- मानसिक स्वास्थ्य पर सरकार का व्यय भी बहुत कम है। इसके परिणामस्वरूप खराब मानसिक स्वास्थ्य परिणाम और मानसिक बीमारी से पीड़ित लोगों की पर्याप्त देखभाल नहीं हो पाती है।
- स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित सरकार की वर्तमान पहलें:
- अपर्याप्त चिकित्सीय अवसंरचना: भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पतालों की कमी के साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं के बुनियादी उपकरणों और संसाधनों की कमी है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन' के उद्देश्य हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (A) मेन्स:प्रश्न. “एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता के अलावा प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना धारणीय विकास की एक आवश्यक पूर्व शर्त है।” विश्लेषण कीजिये। (2021) |
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
जापान की एशिया ऊर्जा संक्रमण पहल
प्रिलिम्स के लिये:जापान की एशिया ऊर्जा संक्रमण पहल (AETI), दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (ASEAN), भारत-जापान एनर्जी डायलॉग, लाइफस्टाइल फॉर एन्वायरनमेंट (LiFE), ग्रीन हाइड्रोजन, धर्म गार्जियन, मालाबार, MILAN, वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC)। मेन्स के लिये:स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण, भारत-जापान द्विपक्षीय संबंधों की स्थिति। |
चर्चा में क्यों?
एशिया एनर्जी ट्रांज़िशन इनिशिएटिव (Asia Energy Transition Initiative- AETI) में भारत को शामिल कर जापान द्वारा भारत के स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण का समर्थन किये जाने की उम्मीद है।
- वर्ष 2021 में लॉन्च किया गया जापान का AETI, नवीकरणीय ऊर्जा हेतु 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वित्तीय सहायता सहित शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की दिशा में दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (ASEAN) देशों का शुरू में समर्थन करता है।
एशिया ऊर्जा संक्रमण पहल (AETI):
- जापान सरकार ने "एशिया एनर्जी ट्रांज़िशन इनिशिएटिव (AETI)" की घोषणा की है, जिसमें एशिया में ऊर्जा परिवर्तन को साकार करने के लिये विभिन्न प्रकार के समर्थन शामिल हैं।
- ऊर्जा संक्रमण हेतु रोडमैप तैयार करने में सहायता।
- संक्रमण के एशियाई संस्करण का वित्तीयन।
- 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर की वित्तीय सहायता।
- नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता, LNG आदि के लिये।
- एशियाई देशों में 1,000 लोगों के लिये डीकार्बोनाइज़ेशन तकनीकों में क्षमता निर्माण।
- अपतटीय पवन ऊर्जा उत्पादन, ईंधन-अमोनिया, हाइड्रोजन आदि के लिये।
- डीकार्बोनाइज़ेशन प्रौद्योगिकियों में क्षमता निर्माण और एशिया CCUS नेटवर्क के माध्यम से ज्ञान साझाकरण।
- ऊर्जा संक्रमण पर कार्यशालाएँ और सेमिनार।
- प्रौद्योगिकी विकास एवं परिनियोजन, 2 ट्रिलियन येन फंड की उपलब्धता का उपयोग।
भारत-जापान स्वच्छ ऊर्जा सहयोग की प्रमुख विशेषताएँ:
- भारत और जापान के बीच स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी मार्च 2022 में शुरू हुई थी।
- यह भारत-जापान ऊर्जा संवाद 2007 में शामिल एजेंडे पर काम करेगा और बाद में पारस्परिक लाभ के क्षेत्रों में विस्तार करेगा।
- भारत और जापान ने क्रमशः G20 और G7 की अध्यक्षता संभाली है।
- पर्यावरणीय स्थिरता के संदर्भ में पर्यावरण के लिये जीवन शैली (LiFE) भारत द्वारा G20 की अध्यक्षता में सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है।
- साथ ही जापान सरकार द्वारा फीड-इन प्रीमियम (FiP) योजना को अप्रैल 2022 में लागू किया गया था और इससे देश के ऊर्जा परिवर्तन में सुधार की उम्मीद है।
- जापान ने वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है और सरकार ने मई 2022 में स्वच्छ ऊर्जा रणनीति पर एक अंतरिम रिपोर्ट जारी की है।
- भारत ने वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य भी निर्धारित किया है।
- भारतीय उपमहाद्वीप की विशाल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता ग्रीन हाइड्रोजन (GH2) उत्पादन और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में वृद्धि कर सकती है।
- नेपाल एवं भूटान में भी अधिशेष जल विद्युत क्षमता है और भारत तथा बांग्लादेश जैसे देश ग्रीन हाइड्रोजन इलेक्ट्रोलाइज़र द्वारा इसका दोहन कर सकते हैं।
- भारत-जापान पर्यावरण सप्ताह जैसे कार्यक्रम तकनीकी, संस्थागत और कार्मिक सहयोग के माध्यम से प्रणाली में परिवर्तनीय नवीकरणीय ऊर्जा को एकीकृत करने के लिये एक रोडमैप बनाने में मदद करेंगे।
स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण:
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भारत-जापान द्विपक्षीय संबंधों की स्थिति:
- रक्षा संबंध: भारत-जापान रक्षा एवं सुरक्षा साझेदारी क्रमशः धर्म गार्जियन तथा मालाबार सहित द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय अभ्यासों और पहली बार मिलन अभ्यास (MILAN Exercise) में भाग लेने वाले जापान के सहयोग से विकसित हुई है।
- स्वास्थ्य-देखभाल: जापान के AHWIN और भारत के आयुष्मान भारत कार्यक्रम के समान लक्ष्य और उद्देश्य हैं, इसलिये दोनों पक्ष उन परियोजनाओं की पहचान करने के लिये मिलकर काम कर रहे हैं जो AHWIN के समान आयुष्मान भारत के सपने को साकार करने में मदद करेंगे।
- निवेश और ODA: भारत पिछले कुछ दशकों से जापान से आधिकारिक विकास सहायता (ODA) ऋण का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता रहा है। दिल्ली मेट्रो, ODA के उपयोग के माध्यम से जापान के सहयोग के सबसे सफल उदाहरणों में से एक है।
- भारत की वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) परियोजना जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी द्वारा आर्थिक साझेदारी (STEP) के लिये विशेष शर्तों के तहत प्रदान किये गए सॉफ्ट लोन द्वारा वित्तपोषित है।
- भारत की वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) परियोजना जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी द्वारा आर्थिक साझेदारी (STEP) के लिये विशेष शर्तों के तहत प्रदान किये गए सॉफ्ट लोन द्वारा वित्तपोषित है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. वर्तमान में G-8 के रूप में जाना जाने वाला विभिन्न देशों का एक समूह जिसकी पूर्व में G-7 के रूप में शुरूआत हुई। निम्नलिखित में से कौन उनमें से एक नहीं था? (2009) (a) कनाडा उत्तर: (d) |
स्रोत : डाउन टू अर्थ
सामाजिक न्याय
वुमन, बिज़नेस एंड द लॉ 2023 रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:विश्व बैंक की वुमन, बिज़नेस एंड द लॉ 2023 (WBL 2023) रिपोर्ट, विश्व बैंक समूह। मेन्स के लिये:भारत और दुनिया में महिलाओं से संबंधित मुद्दे तथा मानव संसाधन के विकास पर इसका प्रभाव, भारत को शामिल और/या इसके हितों को प्रभावित करने वाले समूह और समझौते, महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान। |
चर्चा में क्यों?
विश्व बैंक की वुमन, बिज़नेस एंड द लॉ 2023 रिपोर्ट में भारत ने क्षेत्रीय औसत से अधिक स्कोर किया है। रिपोर्ट ने भारत के संदर्भ में मुख्य व्यापारिक शहर मुंबई में कानून और विनियमों पर डेटा का उपयोग किया।
- भारत को आवागमन की स्वतंत्रता, महिलाओं के रोज़गार संबंधी निर्णयों और विवाह प्रतिबंधों से संबंधित कानूनों हेतु उचित स्कोर प्राप्त हुआ।
वुमन, बिज़नेस एंड द लॉ 2023 रिपोर्ट:
- परिचय: वुमन, बिज़नेस एंड द लॉ 2023 वार्षिक रिपोर्ट की शृंखला में 9वाँ संस्करण है जो 190 अर्थव्यवस्थाओं में महिलाओं के आर्थिक अवसर को प्रभावित करने वाले कानूनों और नियमों का विश्लेषण करती है।
- वुमन, बिज़नेस एंड द लॉ डेटा वर्ष 1971 से 2023 (कैलेंडर वर्ष 1970 से 2022) की अवधि हेतु उपलब्ध है।
- संकेतक: इसके आठ संकेतक हैं- गतिशीलता, कार्यस्थल, वेतन, विवाह, पितृत्त्व, उद्यमिता, संपत्ति और पेंशन।
- उपयोग: वुमन, बिज़नेस एंड द लॉ 2023 में डेटा और संकेतक, कानूनी लैंगिक समानता एवं महिलाओं की उद्यमशीलता तथा रोज़गार के बीच संबंध के प्रमाण हेतु उपयोग किया जाता है।
- वर्ष 2009 के बाद से महिला, व्यवसाय और कानून, लैंगिक समानता के अध्ययन को बढ़ावा दिया जा रहा है तथा महिलाओं के आर्थिक अवसरों और सशक्तीकरण में सुधार पर चर्चा की जा रही हैं।
रिपोर्ट के निष्कर्ष:
- भारत:
- भारत को निम्न मध्य आय वाले देश के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसका WBL इंडेक्स स्कोर 100 में से 74.4 है।
- 100 उच्चतम संभव स्कोर का प्रतिनिधित्त्व करता है।
- भारत का समग्र स्कोर दक्षिण एशिया के लिये क्षेत्रीय औसत (63.7) से अधिक है। यह दक्षिण एशिया क्षेत्र में उच्चतम स्कोर 80.6 (नेपाल) है।
- भारत में एक संपन्न नागरिक समाज ने भी अंतराल की पहचान करने, कानून का मसौदा तैयार करने और अभियानों, चर्चाओं तथा विरोध प्रदर्शनों के माध्यम से जनमत को व्यवस्थित करने में मदद की, अंततः वर्ष 2005 में घरेलू हिंसा अधिनियम के पारित होने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- भारत को निम्न मध्य आय वाले देश के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसका WBL इंडेक्स स्कोर 100 में से 74.4 है।
- वैश्विक स्तर पर:
- केवल 14 देशों ने 100 का पूर्ण स्कोर प्राप्त किया जिनमें बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्राँस, जर्मनी, ग्रीस, आइसलैंड, आयरलैंड, लातविया, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड, पुर्तगाल, स्पेन और स्वीडन शामिल हैं।
- वर्ष 2022 में वैश्विक औसत स्कोर 100 में से 76.5 है।
- विश्व भर में कामकाजी उम्र की लगभग 2.4 बिलियन महिलाएँ उन अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हैं जहाँ उन्हें पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त नहीं होता है।
- सुधार की वर्तमान गति से हर जगह कानूनी लैंगिक समानता तक पहुँच प्राप्त करने में कम-से-कम 50 वर्ष लगेंगे।
- लैंगिक समानता की दिशा में प्रगति 20 वर्षों में अपनी सबसे धीमी दर तक पहुँच चुकी है।
- अधिकांश सुधार अभिभावकों और पुरुषों (पिता) के लिये सवैतनिक अवकाश बढ़ाने, महिलाओं के काम पर प्रतिबंध हटाने और समान वेतन को अनिवार्य बनाने पर केंद्रित थे।
- कार्यस्थल और पितृत्त्व/मातृत्त्व (Parenthood) में अधिकांश सुधारों के बावजूद मापे गए अन्य क्षेत्रों में प्रगति असमान रही है।
भारत को किन क्षेत्रों पर ध्यान देने की आवश्यकता है?
- भारतीय कामकाजी महिलाओं के वेतन तथा पेंशन को प्रभावित करने वाले कानून जैसे वेतन, पेंशन, विरासत और संपत्ति के अधिकारों को प्रभावित करने वाले कानून भारतीय पुरुषों के साथ महिलाओं को समानता प्रदान नहीं करते हैं।
- सवैतनिक संकेतकों में सुधार के लिये भारत को समान गुणवत्ता के काम के लिये समान पारिश्रमिक अनिवार्य करना चाहिए, महिलाओं को रात्रि में काम करने की अनुमति के साथ ही पुरुषों की भाँति औद्योगिक स्तर पर नौकरियों में काम करने की अनुमति प्रदान करनी चाहिये।
- महिलाओं के वेतन को प्रभावित करने वाले कानून, बच्चों के जन्म के पश्चात् महिलाओं के काम को प्रभावित करने वाले कानून, व्यवसाय शुरू करने और उन्हें चलाने वाली महिलाओं पर प्रतिबंध, संपत्ति और विरासत में लिंग भेद तथा महिलाओं की पेंशन को प्रभावित करने वाले कानून इत्यादि को लेकर महिलाओं के लिये भारत वैद्यानिक समानता में सुधारों पर विचार कर सकता है।
- उदाहरण के लिये भारत का महिलाओं के वेतन को प्रभावित करने वाले कानूनों को मापने वाले संकेतक (WBL 2023 वेतन संकेतक) में सबसे कम स्कोर है।
- वैश्विक स्तर पर औसतन महिलाओं को पुरुषों की तुलना में केवल 77 प्रतिशत कानूनी अधिकार प्राप्त हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न.1 'व्यापार करने की सुविधा का सूचकांक (Ease of Doing Business Index)' में भारत की रैंकिंग समाचार पत्रों में कभी-कभी दिखती है। निम्नलिखित में से किसने इस रैंकिंग की घोषणा की है? (2016) (a) आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OBCD) उत्तर: C प्रश्न.2 विश्व आर्थिक संभावना (ग्लोबल इकनॉमिक प्रॉस्पेक्ट्स)' रिपोर्ट आवधिक रूप से निम्नलिखित में से कौन जारी करता है? (2015) (a) एशिया विकास बैंक उत्तर: D प्रश्न.3 'वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक' के रूप में जाना जाने वाला प्रकाशन निम्नलिखित में से किस संस्थान द्वारा जारी किया जाता है? (2014) (a) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष उत्तर: (a) प्रश्न. 4 'बायोकार्बन फंड इनिशिएटिव फॉर सस्टेनेबल फॉरेस्ट लैंडस्केप' का प्रबंधन कौन करता है? (a) एशियाई विकास बैंक उत्तर: (d) |