विश्व के प्रवासियों की धार्मिक संरचना पर रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:विश्व के प्रवासियों की धार्मिक संरचना, उत्प्रवासी, अप्रवासी, धार्मिक अल्पसंख्यक, खाड़ी सहयोग परिषद (GCC), मध्य पूर्व-उत्तरी अफ्रीका, ब्रिटिश भारत, प्रेषण, सकल घरेलू उत्पाद (GDP मेन्स के लिये:वैश्वीकृत विश्व में प्रवास के कारण, परिणाम और महत्त्व। |
स्रोत : बिज़नेस स्टैण्डर्ड
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में प्यू रिसर्च सेंटर ने संयुक्त राष्ट्र और 270 जनगणनाओं एवं सर्वेक्षणों के डेटा के आधार पर विश्व के प्रवासियों की धार्मिक संरचना(The Religious Composition of the World’s Migrants) शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की
- वर्ष 2020 में 280 मिलियन से अधिक व्यक्ति या विश्व की आबादी का 3.6%, अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों के रूप में रह रहे थे
- धर्म, प्रवासन में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो मातृभूमि से प्रस्थान और गंतव्य देश में स्वागत दोनों को प्रभावित करता है।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- हिंदू प्रवासियों के बीच रुझान: वर्ष 2020 में भारत हिंदू प्रवासियों (बाहरी प्रवासियों) और अप्रवासियों (अंदर-प्रवासियों) दोनों के लिये शीर्ष देश के रूप में उभरा।
- भारत में जन्मे 7.6 मिलियन हिंदू विदेश में रह रहे थे।
- अन्य देशों में जन्मे लगभग 3 मिलियन हिंदू भारत में रह रहे थे।
- ईसाइयों के बीच रुझान: वैश्विक प्रवासी आबादी में सबसे बड़ा हिस्सा ईसाईयों का है, जिनकी संख्या 47% है।
- भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के बीच प्रवास के रुझान: भारतीय प्रवासियों में धार्मिक अल्पसंख्यकों की संख्या अत्यधिक है।
- भारतीय प्रवासियों में ईसाई समुदाय की हिस्सेदारी 16% है, लेकिन भारत की आबादी में उनकी हिस्सेदारी केवल 2% है।
- भारत में जन्मे सभी प्रवासियों में से 33% मुसलमान हैं, लेकिन भारत की आबादी में उनकी हिस्सेदारी केवल 15% है।
- भारत मुस्लिम प्रवासियों का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है, क्योंकि 6 मिलियन भारतीय मुसलमान विदेशों में रहते हैं- मुख्य रूप से संयुक्त अरब अमीरात (1.8 मिलियन), सऊदी अरब (1.3 मिलियन) और ओमान (720,000)।
- GCC देशों में रुझान: खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) देशों में प्रवासी जनसंख्या वर्ष 1990 के बाद से 277% बढ़ी है।
- GCC प्रवासियों में अधिकांश मुसलमान (75%) हैं, जबकि हिंदू और ईसाई क्रमशः 11% व 14% हैं।
- GCC देशों (बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब, यूएई) में वर्ष 2020 तक 9.9 मिलियन भारतीय प्रवासी हैं।
- वैश्विक प्रवासन के रुझान: वर्ष 1990 से 2020 तक अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों की संख्या में 83% की वृद्धि हुई है, जो वैश्विक जनसंख्या वृद्धि 47% से काफी अधिक है।
- प्रवासी औसतन 2,200 मील की दूरी तय करते हैं।
- धार्मिक संरेखण और प्रवासन पैटर्न: प्रवासी अक्सर उन देशों में स्थानांतरित होते हैं, जहाँ उनका धर्म मूल देश की आबादी के धर्म के साथ संरेखित होता है।
- यह प्रवृत्ति सांस्कृतिक और धार्मिक परिचिय से प्रेरित हो सकती है, जो गंतव्य के चयन तथा एकीकरण प्रक्रिया दोनों को प्रभावित करती है।
हिंदू प्रवासन पैटर्न और रुझान क्या है?
- वैश्विक स्तर पर कम प्रतिनिधित्व: हिंदू प्रवासी सभी अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों का एक छोटा हिस्सा (5%) हैं, जिनमें से वर्ष 2020 तक 13 मिलियन हिंदू अपने जन्म के देश से बाहर रह रहे हैं।
- यह वैश्विक जनसंख्या में उनके अनुपात (15%) से काफी कम है।
- तय की गई दूरी: हिंदू प्रवासी अधिक लंबी दूरी की यात्रा करते हैं, जो उनके मूल देश से औसतन 3,100 मील है, जबकि सभी प्रवासियों के लिये वैश्विक औसत 2,200 मील है।
- यह एशिया में उत्पन्न सभी धार्मिक समूहों के बीच तय की गई सबसे लंबी औसत दूरी है।
- हिंदू प्रवासियों के गंतव्य क्षेत्र: एशिया-प्रशांत क्षेत्र में हिंदू प्रवासियों की सबसे बड़ी हिस्सेदारी (44%) है, इसके बाद मध्य पूर्व-उत्तरी अफ्रीका (24%) और उत्तरी अमेरिका (22%) का स्थान है।
- इसका एक छोटा हिस्सा यूरोप (8%) में रहता है तथा लैटिन अमेरिका या उप-सहारा अफ्रीका में बहुत कम लोग रहते हैं।
- हिंदू प्रवासियों के मूल क्षेत्र: हिंदू प्रवासियों का विशाल बहुमत (95%) एशिया-प्रशांत क्षेत्र से आता है, विशेष रूप से भारत से जहाँ विश्व के हिंदू प्रवासियों का 57% हिस्सा रहता है तथा वैश्विक हिंदू आबादी का 94% हिस्सा यहीं रहता है।
- अन्य महत्त्वपूर्ण स्रोतों में बांग्लादेश (हिंदू प्रवासियों का 12%) और नेपाल (11%) शामिल हैं।
- हिंदू प्रवासियों के लिये भारत एक प्रमुख गंतव्य है, जहाँ सभी हिंदू प्रवासियों का 22% (3 मिलियन) निवास करता है।
- इसका मुख्य कारण ऐतिहासिक घटनाएँ हैं, विशेषकर वर्ष 1947 में ब्रिटिश भारत का विभाजन और उसके बाद पाकिस्तान तथा बांग्लादेश जैसे अपने नए देशों में उनका उत्पीड़न।
- हिंदू प्रवास के लिये उल्लेखनीय देश शामिल:
- भारत से अमेरिका: हिंदुओं के लिये सबसे आम प्रवास मार्ग भारत से अमेरिका है, जहाँ 1.8 मिलियन हिंदू इस मार्ग से जाते हैं। ये प्रवासी अक्सर रोज़गार, उच्च शिक्षा और आय स्तर की तलाश में होते हैं।
- बांग्लादेश से भारत: दूसरा सबसे आम मार्ग बांग्लादेश से भारत की ओर प्रवास है, जिसमें 1.6 मिलियन हिंदू ऐतिहासिक, सामाजिक और आर्थिक कारकों से प्रेरित होकर इस मार्ग पर आते हैं।
प्रवासी समुदाय अपने देश में विकास को कैसे बढ़ावा देते हैं?
- पर्याप्त वित्तीय प्रवाह: प्रवासी समुदाय धन भेजकर अपने गृह देशों में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
- वर्ष 2022 में उभरते और विकासशील देशों के प्रवासियों ने 430 बिलियन अमेरिकी डॉलर भेजे, जो इन देशों को अन्य देशों या अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों से प्राप्त वित्तीय सहायता से तीन गुना अधिक है।
- सकल घरेलू उत्पाद पर प्रभाव: कई देशों में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में धन प्रेषण का एक बड़ा हिस्सा होता है, जैसे कि ताजिकिस्तान में 37%, नेपाल में 30% तथा टोंगा, लाइबेरिया व हैती में लगभग 25
- प्रवासी निवेश: प्रवासी प्रायः स्वदेश के व्यवसायों और सरकारी बॉण्ड में निवेश करते हैं, जिससे वित्तीय पूंजी बढ़ती है
- ज्ञान अंतरण और विशेषज्ञता: प्रवासी विदेश में अर्जित ज्ञान और विशेषज्ञता को अपने देश/स्वदेश में वापस स्थानांतरित करते हैं।
- यह शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और बेहतर व्यवसाय तथा शासन पद्धतियों को विकसित करके उत्पादकता को बढ़ा सकता है।
- ज्ञान अंतराल को समाप्त करना: प्रवासी सदस्य अपने कौशल, वैश्विक संपर्कों और स्थानीय रीति-रिवाजों की समझ का उपयोग स्वदेश के व्यवसायों को चुनौतियों से निपटने, दक्षता में सुधार करने तथा नए बाज़ारों में विस्तार करने में मदद करने के लिये करते हैं।
- उदाहरण के लिये अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनियों में भारतीय अधिकारियों ने भारत को आउटसोर्सिंग की सुविधा प्रदान की है।
निष्कर्ष
प्रवास और प्रवासी समुदाय धन प्रेषण, निवेश और ज्ञान अंतरण के माध्यम से स्वदेश के विकास को बढ़ावा देते हैं। इन लाभों को अधिकतम करने के लिये सरकारों को सुदृढ़ प्रवासी नेटवर्क बनाना चाहिये, निवेश बाधाओं को कम करना चाहिये, प्रेषण लागत में कटौती करनी चाहिये और प्रवासी-संचालित पहलों का समर्थन करना चाहिये। ये रणनीतियाँ पूंजी प्रवाह, उत्पादकता और सतत् विकास को बढ़ाएँगी।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. चर्चा कीजिये कि प्रवास और प्रवासी समुदाय अपने गृह देशों की आर्थिक वृद्धि और विकास में किस प्रकार योगदान करते हैं |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) प्रश्न. 'अमेरिका एवं यूरोपीय देशों की राजनीति और अर्थव्यवस्था में भारतीय प्रवासियों को एक निर्णायक भूमिका निभानी है'। उदाहरणों सहित टिप्पणी कीजिये। (2020) प्रश्न. दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था एवं समाज में भारतीय प्रवासियों को एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है। इस संदर्भ में दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय प्रवासियों की भूमिका का मूल्यनिरूपण कीजिये।(2017) |
किसानों की आय बढ़ाने हेतु 7 नई योजनाएँ
प्रिलिम्स के लिये:कृषि और संबद्ध क्षेत्र, पशुधन और बागवानी, डिजिटल कृषि मिशन (DAM), एग्री स्टैक, कृषि निर्णय सहायता प्रणाली, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), नई शिक्षा नीति 2020, कृषि विज्ञान केंद्र मेन्स के लिये:भारतीय कृषि क्षेत्र में प्रौद्योगिकी की भूमिका। |
स्रोत:पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों के लिये लगभग 14,000 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय वाली सात नई योजनाओं की घोषणा की।
- ये योजनाएँ अनुसंधान और शिक्षा को आगे बढ़ाने, जलवायु लचीलापन बढ़ाने, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन को अनुकूलित करने, कृषि क्षेत्र में डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने तथा पशुधन एवं बागवानी के विकास पर केंद्रित हैं।
- इन पहलों का व्यापक उद्देश्य किसानों को जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियाँ अपनाने के लिये आवश्यक क्षमताएँ प्रदान करना है।
प्रमुख योजनाएँ क्या हैं?
- डिजिटल कृषि मिशन (DAM): डिजिटल कृषि मिशन के दो आधार स्तंभ हैं: एग्री स्टैक और कृषि निर्णय समर्थन प्रणाली।
- एग्री स्टैक: यह प्रौद्योगिकियों और डिजिटल डेटाबेस का एक संग्रह है, जो किसानों तथा कृषि क्षेत्र पर केंद्रित है।
- एग्री स्टैक किसानों के लिये एक एकीकृत मंच तैयार करेगा, जो उन्हें कृषि खाद्य मूल्य शृंखला में संपूर्ण सेवाएँ प्रदान करेगा।
- कार्यक्रम के अंतर्गत प्रत्येक किसान के पास एक विशिष्ट डिजिटल पहचान (किसान ID) होगी, जिसमें व्यक्तिगत विवरण, कृषि की भूमि के बारे में जानकारी, साथ ही उत्पादन और वित्तीय विवरण शामिल होंगे।
- प्रत्येक ID को व्यक्ति की डिजिटल राष्ट्रीय ID आधार से जोड़ा जाएगा।
- कृषि निर्णय समर्थन प्रणाली: इसका उद्देश्य प्रासंगिक भू-स्थानिक और गैर-भू-स्थानिक डेटा जैसे रिमोट-सेंसिंग डेटा, मौसम डेटा, मृदा डेटा, फसल हस्ताक्षर लाइब्रेरी, जलाशय डेटा, भूजल डेटा और सरकारी योजनाओं से संबंधित डेटा को एक मानकीकृत रूप में एकीकृत व संगृहीत करना है।
- मृदा प्रोफाइल मानचित्रण:
- इसके अंतर्गत लगभग 142 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि के लिये 1:10,000 पैमाने पर विस्तृत मृदा प्रोफाइल मानचित्रों की परिकल्पना की गई है, जिसमें 29 मिलियन हेक्टेयर मृदा प्रोफाइल सूची का मानचित्रण पहले ही किया जा चुका है।
- खाद्य एवं पोषण सुरक्षा कार्यक्रमों के लिये फसल विज्ञान: ये छह प्रमुख स्तंभों पर आधारित हैं, अनुसंधान व शिक्षा को आगे बढ़ाना, पौधों के आनुवंशिक संसाधनों का प्रबंधन, खाद्य एवं चारा फसलों का आनुवंशिक संवर्धन, दलहन और तिलहन फसलों में सुधार, कीट विज्ञान, सूक्ष्म जीव विज्ञान तथा परागण पर अनुसंधान के साथ-साथ वाणिज्यिक फसल किस्मों का विकास।
- कृषि शिक्षा, प्रबंधन और सामाजिक विज्ञान का सुदृढ़ीकरण: इसका उद्देश्य भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के तत्त्वावधान में कृषि शिक्षा, प्रबंधन और सामाजिक विज्ञान का सुदृढ़ीकरण करना है
- इस पहल का उद्देश्य नई शिक्षा नीति, 2020 के अनुरूप कृषि अनुसंधान और शिक्षा को आधुनिक बनाना है।
- यह कार्यक्रम डिजिटल DPI, AI, बिग डेटा और रिमोट सेंसिंग जैसी अत्याधुनिक तकनीकों पर आधारित है। इसके अतिरिक्त इसमें प्राकृतिक कृषि तथा जलवायु अनुकूलता पर केंद्रित घटक शामिल होंगे।
- संधारणीय पशुधन स्वास्थ्य और उत्पादन: यह योजना पशुधन और डेयरी क्षेत्रों से किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से संधारणीय पशुधन स्वास्थ्य तथा उत्पादन को प्रोत्साहन के लिये समर्पित है।
- यह योजना पशु स्वास्थ्य प्रबंधन, पशु चिकित्सा शिक्षा, डेयरी उत्पादन एवं प्रौद्योगिकी में उन्नति, पशु आनुवंशिक संसाधन प्रबंधन एवं सुधार, साथ ही पशु पोषण और छोटे मवेशियों (जुगाली करने वाले छोटे पशुओं) के विकास जैसे क्षेत्रों को प्राथमिकता देगी।
- उद्यान कृषि का सतत् विकास: कैबिनेट ने उद्यान कृषि के सतत् विकास पर केंद्रित एक महत्त्वपूर्ण योजना को भी स्वीकृति दी है।
- इस पहल का उद्देश्य बागवानी फसलों की खेती के माध्यम से किसानों की आय बढ़ाना है।
- कार्यक्रम में उष्णकटिबंधीय, उपोष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण बागवानी किस्मों सहित फसलों की एक विस्तृत शृंखला है जिनमें जड़, प्रकंद, कंदीय तथा शुष्क फसलें; साथ ही सब्जियाँ, फूलों की कृषि, मशरूम की फसलें, बागान की फसलें, मसाले, औषधीय एवं सुगंधित पौधे शामिल है।
- कृषि विज्ञान केंद्र (KVK): कृषि विज्ञान केंद्रों का उद्देश्य देश भर में कृषि विस्तार सेवाओं और स्थायी संसाधन प्रबंधन पद्धतियों को बढ़ावा देना है।
- KVK का उद्देश्य प्रौद्योगिकी मूल्यांकन, शोधन और प्रदर्शन के माध्यम से कृषि एवं संबद्ध उद्यमों में स्थान-विशिष्ट प्रौद्योगिकी मॉड्यूल का मूल्यांकन करना है।
- प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन (NRM): NRM योजना को भी कैबिनेट ने स्वीकृति दी।
- यह वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये प्राकृतिक संसाधनों का सतत् उपयोग है, जबकि यह सुनिश्चित करता है कि भविष्य की पीढ़ियाँ अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सकें।
भारत के कृषि क्षेत्र में प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है?
- फसल तैयारी चरण:
- मृदा स्वास्थ्य निगरानी: उन्नत मृदा सेंसर और रिमोट सेंसिंग तकनीकें मृदा स्वास्थ्य एवं पोषक तत्त्वों के स्तर की सटीक निगरानी करने में सक्षम बनाती हैं। यह उर्वरकों तथा मृदा संशोधनों के लक्षित अनुप्रयोग, मृदा उर्वरता एवं स्थायी कृषि पद्धतियों को बढ़ाने की अनुमति देता है।
- कृषि मशीनरी: कृषि क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने में मशीनीकरण का अहम योगदान रहा है। आधुनिक कृषि मशीनरी को अपनाने से परिचालन दक्षता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और श्रम लागत में कमी आई है, जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है।
- जैव प्रौद्योगिकी: इसने आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों जो कीटों और रोगों के प्रति प्रतिरोधी हैं, अनावृष्टि-सहिष्णु हैं तथा उपज बढ़ाने वाली हैं, के विकास में मदद की है । इन नवाचारों के कारण कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुई है, फसल का नुकसान कम हुआ है तथा फसल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
- खेती का चरण:
- ड्रोन की भूमिका: ड्रोन या मानव रहित हवाई वाहन (UAV) कृषि में परिवर्तनकारी उपकरण के रूप में उभरे हैं। इनका उपयोग हवाई बीजारोपण, सटीक कीटनाशक छिड़काव और दूरस्थ डेटा संग्रह, अनुसंधान की सुविधा एवं कृषि प्रबंधन प्रक्रियाओं को बढ़ाने के लिये बड़े पैमाने पर किया जाता है।
- कृषि-तकनीक स्टार्टअप की भूमिका: कृषि-तकनीक स्टार्टअप नवीन तकनीकों और आधुनिक कृषि पद्धतियों का प्रयोग करके कृषि परिवर्तन को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- वे कृषि तकनीकों में उन्नति, दक्षता में सुधार और वित्त तक पहुँच बढ़ाने में योगदान देते हैं, जिससे कृषि क्षेत्र में क्रांति आती है।
- जलवायु अनुकूलन प्रौद्योगिकियाँ: जलवायु-अनुकूल फसल किस्मों और मौसम पूर्वानुमान उपकरणों जैसे नवाचार किसानों को बदलती जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल ढलने में सहायता करते हैं
- ये प्रौद्योगिकियाँ जलवायु-संबंधी जोखिमों को कम करने और फसल के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिये रणनीतियों के विकास का समर्थन करती हैं।
- नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण: सौर ऊर्जा चलित सिंचाई प्रणाली और बायोगैस उत्पादन जैसी नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को अपनाना, टिकाऊ कृषि पद्धतियों का समर्थन करता है
- ये नवाचार जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करते हैं और किसानों के लिये ऊर्जा लागत को कम करते हैं।
- कटाई का चरण और खाद्य प्रसंस्करण:
- आपूर्ति शृंखला अनुकूलन: ब्लॉकचेन और IoT (इंटरनेट ऑफ थिंग्स) जैसे प्रौद्योगिकी-संचालित समाधान, कृषि आपूर्ति शृंखलाओं की पारदर्शिता एवं दक्षता को बढ़ाते हैं। ये प्रौद्योगिकियाँ ट्रेसबिलिटी में सुधार करती हैं, लेन-देन की लागत कम करती हैं और उत्पादों की समय पर डिलीवरी सुनिश्चित करती हैं।
- सटीक पशुधन खेती: पशुधन के लिये पहनने योग्य सेंसर और निगरानी प्रणाली जैसी प्रौद्योगिकियाँ पशु स्वास्थ्य, व्यवहार एवं उत्पादकता पर वास्तविक समय का डेटा प्रदान करती हैं। इससे पशुधन के बेहतर प्रबंधन तथा पशु कल्याण में वृद्धि होती है।
- इन तकनीकों ने खाद्य अपव्यय को कम किया है और खाद्य भंडारण तथा परिवहन की दक्षता में सुधार किया है, जिससे समग्र खाद्य सुरक्षा में वृद्धि हुई है।
- खाद्य प्रसंस्करण और संरक्षण: खाद्य प्रसंस्करण और संरक्षण में तकनीकी प्रगति ने यह सुनिश्चित किया है कि भोजन सुरक्षित रहे तथा इसकी शेल्फ लाइफ लंबी हो।
- बाज़ार तक पहुँच: प्रौद्योगिकी ने किसानों के लिये बाज़ार तक पहुँच में क्रांतिकारी बदलाव किया है, जिससे उन्हें स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाज़ारों तक पहुँचने में मदद मिली है।
- इंटरनेट और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के उदय ने किसानों को बिचौलियों को दरकिनार करते हुए सीधे खरीदारों से जुड़ने और लाभप्रदता बढ़ाने में सक्षम बनाया है।
- ज्ञान साझा करने के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म: डिजिटल प्लेटफॉर्म और ऑनलाइन फोरम कृषि ज्ञान और सर्वोत्तम पद्धतियों के प्रसार की सुविधा प्रदान करते हैं
- किसान विशेषज्ञ सलाह, शैक्षिक संसाधनों और सहकर्मियों के सहयोग को प्राप्त कर सकते हैं, जिससे उन्हें बेहतर कृषि निर्णय लेने में मदद मिलेगी।
कृषि से संबंधित प्रमुख पहलें:
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY)
-
पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये जैविक मूल्य शृंखला विकास मिशन (MOVCDNER)
निष्कर्ष
कृषि-तकनीक में उत्पादकता, दक्षता और धारणीयता में वृद्धि द्वारा भारत के कृषि परिदृश्य में परिवर्तन लाने की पर्याप्त संभावना है, लेकिन इसका सफल कार्यान्वयन कई महत्त्वपूर्ण चुनौतियों को नियंत्रित करने पर निर्भर करता है। इसके अतिरिक्त पारंपरिक पद्धतियों के साथ कृषि-तकनीक को एकीकृत करना, विनियामक एवं नीतिगत अंतराल को संबोधित करना तथा पर्यावरणीय व सामाजिक प्रभावों पर विचार करना एक समावेशी और संवहनीय/सतत् कृषि परिवर्तन को प्रोत्साहित करने हेतु आवश्यक है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत के कृषि क्षेत्र में परिवर्तन लाने में कृषि-तकनीक की भूमिका की विवेचना कीजिये। इसके कार्यान्वयन से जुड़ी प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालिये तथा इन मुद्दों को हल करने के उपाय बताइये?UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs) |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किन्हें कृषि में सार्वजनिक निवेश माना जा सकता है। (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 5 उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न. 'डिजिटल भारत' कार्यक्रम खेत उत्पादकता और आय को बढ़ाने में किसानों की किस प्रकार सहायता कर सकता है? सरकार ने इस संबंध में क्या कदम उठाए हैं? (2015) प्रश्न. फसल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधता के लिये किस प्रकार अवसर प्रदान करती हैं? (2021) |
चावल-गेहूँ उत्पादन का पृथक्करण
प्रिलिम्स के लिये:चावल, गेहूँ, खरीफ, रबी, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), आधिकारिक घरेलू व्यय सर्वेक्षण डेटा 2022-23, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, हाइब्रिड चावल बीज उत्पादन, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, जलवायु-स्मार्ट कृषि। मेन्स के लिये:बदलते उपभोग पैटर्न, जलवायु अनुकूल कृषि की आवश्यकता |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नीति निर्माताओं ने चावल और गेहूँ के उत्पादन और खपत में बदलाव के कारण इनके उत्पादन को पृथक् करने का आह्वान किया।
चावल में अधिशेष उत्पादन होता है जबकि गेहूँ में उत्पादन कम और खपत अधिक होती है।
चावल और गेहूँ उत्पादन को पृथक् करने की क्या आवश्यकता है?
- विपरीत अधिशेष स्थितियाँ:
- चावल अधिशेष: भारत ने सत्र 2021-22 में 21.21 मिलियन टन (mt) , सत्र 2022-23 में 22.35 मिलियन टन और सत्र 2023-24 में 16.36 मिलियन टन चावल (बासमती और गैर-बासमती) का निर्यात किया।
- रिकॉर्ड शिपमेंट के बावजूद सरकारी गोदामों में चावल का स्टॉक अगस्त 2024 में 45.48 मिलियन टन के सर्वकालिक उच्च स्तर पर था।
- गेहूँ की कमी: गेहूँ का निर्यात सत्र 2021-22 में 7.24 मिलियन टन से गिरकर सत्र 2022-23 में 4.69 मिलियन टन और सत्र 2023-24 में 0.19 मिलियन टन रह गया।
- सरकार ने मई 2022 में गेहूँ के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया फिर भी अगस्त 2024 में गेहूँ का स्टॉक 26.81 मीट्रिक टन के निचले स्तर पर था, जो हाल के वर्षों में सबसे कम में से एक है।
- चावल अधिशेष: भारत ने सत्र 2021-22 में 21.21 मिलियन टन (mt) , सत्र 2022-23 में 22.35 मिलियन टन और सत्र 2023-24 में 16.36 मिलियन टन चावल (बासमती और गैर-बासमती) का निर्यात किया।
- उत्पादन क्षेत्रों में अंतर
- चावल: चावल खरीफ (दक्षिण-पश्चिम मानसून) और रबी (सर्दियों-वसंत) दोनों शस्य ऋतुओं के दौरान उगाया जाता है। पश्चिम बंगाल में किसान चावल की तीन फसलें उगाते हैं जिन्हें औस (ग्रीष्म ऋतु), अमन (वर्षा ऋतु) और बोरो (शीत ऋतु) कहा जाता है
- इसके अलावा इसकी खेती का प्रसार विस्तृत भौगोलिक क्षेत्रों में है, जिसमें 16 राज्य प्रत्येक 2 मीट्रिक टन से अधिक का योगदान देते हैं। जैसे, उत्तर (पंजाब, उत्तर प्रदेश) से दक्षिण (तमिलनाडु, तेलंगाना), मध्य (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़), पूर्व (पश्चिम बंगाल, असम) और पश्चिम (महाराष्ट्र, गुजरात) तक।
- गेहूँ: गेहूँ की एक ही रबी फसल होती है और केवल आठ राज्य हैं, जिनमें से प्रत्येक में 2 मीट्रिक टन से अधिक उत्पादन होता है, मुख्यतः उत्तरी, मध्य और पश्चिमी क्षेत्र में।
- शीर्ष चार राज्यों (उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा) का उत्पादन में 76% योगदान है।
- उत्पादन में अस्थिरता: गेहूँ अपनी मौसमी और भौगोलिक बाधाओं के कारण अधिक अस्थिर है, जिससे उत्पादन में उतार-चढ़ाव के प्रति यह अधिक संवेदनशील हो जाता है।
- चावल: चावल खरीफ (दक्षिण-पश्चिम मानसून) और रबी (सर्दियों-वसंत) दोनों शस्य ऋतुओं के दौरान उगाया जाता है। पश्चिम बंगाल में किसान चावल की तीन फसलें उगाते हैं जिन्हें औस (ग्रीष्म ऋतु), अमन (वर्षा ऋतु) और बोरो (शीत ऋतु) कहा जाता है
- सीमित कारक:
- चावल: जल की उपलब्धता मुख्य सीमित कारक है जिसे आसानी से प्रबंधित किया जा सकता है। उदाहरण के लिये, तेलंगाना जैसे राज्यों ने बेहतर सिंचाई और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) आश्वासन के कारण चावल उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि की है।
- गेहूँ: जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप गेहूँ की फसल छोटी, गर्म और कम पूर्वानुमानित सर्दियों के प्रति संवेदनशील हो गई है, जिससे अनुकूलन करना चुनौतीपूर्ण हो गया है।
- मार्च में तापमान में वृद्धि (अनाज निर्माण) तथा नवंबर-दिसंबर (बुवाई अवधि) में उच्च तापमान के कारण हाल के वर्षों में पैदावार कम हो गई है, जिसके कारण सरकारी स्टॉक कम हो गया है।
- उपभोग की बदलती प्रवृत्तियाँ:
- गेहूँ: आधिकारिक घरेलू व्यय सर्वेक्षण डेटा 2022-23 से पता चलता है कि ग्रामीण भारत में प्रति व्यक्ति मासिक गेहूँ की खपत 3.9 किलोग्राम और शहरी भारत में 3.6 किलोग्राम है, जो 1,425 मिलियन की आबादी के लिये लगभग 65 मीट्रिक टन है।
- गेहूँ उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बेकरी वस्तुओं, सुविधाजनक खाद्य पदार्थों और मिठाइयों के लिये प्रसंस्कृत रूपों (मैदा, सूजी/रवा) में खपत किया जाता है, जिसके शहरीकरण व उच्च आय के साथ बढ़ने की उम्मीद है।
- आज अधिकांश दक्षिण भारतीय परिवारों में प्रतिदिन भोजन में कम से कम एक बार गेहूँ का उपभोग किया जाता है, जबकि उत्तर में चावल उतना लोकप्रिय नहीं हुआ है जितना कि दक्षिण में गेहूँ
- चावल: चावल की खपत में कोई समान वृद्धि की प्रवृत्ति नहीं है। चावल आधारित सुविधाजनक खाद्य पदार्थों में नवाचार सीमित हैं, जो स्थिर खपत पैटर्न का संकेत देते हैं।
- गेहूँ: आधिकारिक घरेलू व्यय सर्वेक्षण डेटा 2022-23 से पता चलता है कि ग्रामीण भारत में प्रति व्यक्ति मासिक गेहूँ की खपत 3.9 किलोग्राम और शहरी भारत में 3.6 किलोग्राम है, जो 1,425 मिलियन की आबादी के लिये लगभग 65 मीट्रिक टन है।
चावल और गेहूँ की कृषि को समर्थन देने हेतु सरकार की क्या पहल हैं?
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन
- हाइब्रिड धान बीज उत्पादन
- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना
- न्यूनतम समर्थन मूल्य
- कृषि अवसंरचना कोष (AIF)
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)
- फसल विविधीकरण कार्यक्रम (CDP)
चावल और गेहूँ के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
आधार |
चावल |
गेहूँ |
तापमान |
22-32 डिग्री सेल्सियस के बीच उच्च आर्द्रता |
10-15°C (बुवाई का समय) और 21-26°C (पकने और कटाई) के बीच तेज धूप |
वर्षा |
लगभग 150-300 से.मी |
लगभग 75-100 से.मी |
मिट्टी का प्रकार |
गहरी चिकनी और दोमट मिट्टी |
अच्छी जल निकासी वाली उपजाऊ दोमट और चिकनी मिट्टी |
शीर्ष उत्पादक |
पश्चिम बंगाल >उत्तर प्रदेश >पंजाब |
उत्तर प्रदेश >मध्य प्रदेश >पंजाब |
भारत की वैश्विक स्थिति |
चीन के बाद विश्व में चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक |
चीन के बाद विश्व में गेहूँ का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक |
चावल-गेहूँ उपभोग में अंतर कम करने के लिये क्या सिफारिशें हैं?
- गेहूँ नीति: बढ़ती खपत और भौगोलिक/जलवायु संबंधी चुनौतियाँ भारत को अल्पावधि में गेहूँ का आयातक बना सकती हैं।
- दीर्घावधि के लिये सरकार को प्रति एकड़ पैदावार बढ़ाने और जलवायु-अनुकूल किस्मों के प्रजनन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
- चावल नीति: चावल की घरेलू खपत उत्पादन के साथ तालमेल नहीं रख पा रही है।
- सरकार को सफेद गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध हटाना चाहिये।
- उबले हुए गैर-बासमती पर 20% शुल्क और बासमती शिपमेंट पर 950 अमेरिकी डॉलर प्रति टन की न्यूनतम कीमत हटाई जानी चाहिये।
- ब्रेकफास्ट सीरियल(अनाज), सूप, शिशु आहार, पैकेज्ड मिक्स आदि जैसे चावल आधारित खाद्य प्रसंस्करण में इसकी खपत बढ़ाने हेतु नवाचार की आवश्यकता है।
- नीति का विघटन: अब समय आ गया है कि चावल और गेहूँ को एक दूसरे से अलग करके देखा जाए और एक दूसरे से न जोड़ा जाए। दोनों अनाज मौजूदा और भविष्य के लिहाज से अलग-अलग हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में चावल और गेहूँ के उत्पादन और खपत के बीच अंतर बढ़ता जा रहा है। क्या आप इस बात से सहमत हैं? अपने तर्कों की पुष्टि कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारतीय खाद्य निगम के लिये खाद्यान्नों की आर्थिक लागत न्यूनतम समर्थन मूल्य और किसानों को भुगतान किये गये बोनस (यदि कुछ है) के साथ-साथ और क्या शामिल है? (2019) (a)केवल परिवहन लागत उत्तर: (c) प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के अधीन बनाए गये उपबंधों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a)केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. गत वर्षों में कुछ विशेष फसलों पर ज़ोर ने सस्यन पैटर्नों में किस प्रकार परिवर्तन ला दिये हैं? मोटे अनाजों (मिलेटों) के उत्पादन और उपभोग पर बल को विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिये। (2018) प्रश्न. सस्यन तंत्र में धान और गेहूँ की गिरती हुई उपज के लिये क्या-क्या मुख्य कारण है? तंत्र में फसलों की उपज के स्थिरीकरण में सस्य विविधीकरण किस प्रकार मददगार होता है? (2017) |