प्रयागराज शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 29 जुलाई से शुरू
  संपर्क करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 01 Dec, 2023
  • 80 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

हरित ऊर्जा उत्पादन के लिये शुगर प्रेसमड

प्रिलिम्स के लिये:

हरित ऊर्जा उत्पादन के लिये शुगर प्रेसमड, संपीड़ित बायोगैस (CBG), इथेनॉल बायोफ्यूल, बायो-मिथेनेशन, अवायवीय अपघटन (ऐनरोबिक डाइज़ेशन)

मेन्स के लिये:

हरित ऊर्जा उत्पादन के लिये शुगर प्रेसमड, भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना, संसाधन जुटाने, वृद्धि, विकास और रोज़गार से संबंधित मुद्दे

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

भारत चीनी के अवशिष्ट उप-उत्पाद प्रेसमड को संपीड़ित बायोगैस (Compressed Biogas- CBG) बनाकर हरित ऊर्जा उत्पादन के लिये एक मूल्यवान संसाधन के रूप में उपयोग करने पर विचार कर रहा है।

भारत विश्व की चीनी अर्थव्यवस्था में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है तथा वर्ष 2021-22 से ब्राज़ील को पीछे छोड़कर अग्रणी चीनी उत्पादक के रूप में उभर रहा है। इसके अतिरिक्त यह विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा चीनी निर्यातक है।

संपीड़ित बायोगैस (CBG) क्या है?

  • CBG एक नवीकरणीय, पर्यावरण के अनुकूल गैसीय/गैस-युक्त ईंधन है जो कार्बनिक पदार्थों के अवायवीय अपघटन से प्राप्त होता है। इसका उत्पादन बायो-मिथेनेशन अथवा अवायवीय अपघटन नामक एक प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है, जिसमें बैक्टीरिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में विभिन्न प्रकार के कार्बनिक स्रोत (कृषि अपशिष्ट, पशु खाद, खाद्य अपशिष्ट, सीवेज कीचड़ तथा अन्य बायोमास सामग्री) को तोड़ देते हैं।
  • परिणामी बायोगैस में मुख्य रूप से मीथेन (आमतौर पर 90% से अधिक), कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड के अंश तथा नमी मौजूद होती है।
  • बायोगैस को CBG में परिवर्तित करने के लिये कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड और नमी जैसी अशुद्धियों को दूर करने के लिये शुद्धिकरण चरणों को नियोजित किया जाता है।
  • तत्पश्चात् शुद्ध की गई मीथेन गैस को उच्च दबाव में संपीड़ित किया जाता है, आमतौर पर लगभग 250 बार अथवा उससे अधिक, इसलिये इसे "संपीड़ित बायोगैस" कहा जाता है।

प्रेसमड क्या है?

  • परिचय:
    • प्रेसमड, जिसे फिल्टर केक अथवा प्रेस केक के रूप में भी जाना जाता है, चीनी उद्योग में एक अवशिष्ट उप-उत्पाद है जिसने हरित ऊर्जा उत्पादन के लिये एक मूल्यवान संसाधन के रूप में मान्यता प्राप्त की है।
    • यह उप-उत्पाद भारतीय चीनी मिलों को अवायवीय अपघटन के माध्यम से बायोगैस उत्पादन के लिये फीडस्टॉक के रूप में उपयोग करके अतिरिक्त आय सृजन करने का अवसर प्रदान करता है, जिससे संपीड़ित बायोगैस (CBG) का उत्पादन होता है।
      • अवायवीय अपघटन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से बैक्टीरिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में कार्बनिक पदार्थ- जैसे पशु खाद, अपशिष्ट जल बायोसोलिड और खाद्य अपशिष्ट को तोड़ देते हैं।
    • इनपुट के रूप में गन्ने की एक इकाई को संसाधित करते समय प्रेसमड की पैदावार आमतौर पर भार के हिसाब से 3-4% तक होती है।

नोट:

केंद्र सरकार की सस्टेनेबल अल्टरनेटिव टुवार्ड्स अफोर्डेबल ट्रांसपोर्टेशन स्कीम (SATAT) द्वारा निर्धारित न्यूनतम गारंटी मूल्य पर विचार करते हुए प्रेसमड में लगभग 460,000 टन CBG उत्पन्न करने की क्षमता है, जिसका मूल्य 2,484 करोड़ रुपए है।

  • CBG उत्पादन के लिये प्रेसमड उपयोग के लाभ:
    • कम जटिलताएँ: इसके लाभकारी गुणों में स्थायी गुणवत्ता, सोर्सिंग में सरलता तथा अन्य फीडस्टॉक्स की तुलना में कम जटिलताएँ शामिल हैं।
    • सरलीकृत आपूर्ति शृंखला: यह फीडस्टॉक आपूर्ति शृंखला से संबंधित जटिलताओं को समाप्त करती है, जैसा कि कृषि अवशेषों के मामले में पाया जाता है, जहाँ कटाई एवं एकत्रीकरण के लिये बायोमास कटिंग मशीनरी की आवश्यकता होती है।
    • एकल सोर्सिंग: फीडस्टॉक/चारा आम तौर पर एक या दो उत्पादकों अथवा चीनी मिलों से प्राप्त होता है, जबकि कृषि अवशेषों (जिनमें कई उत्पादक तथा किसान शामिल होते हैं) से यह प्राप्त करने के दिन (प्रतिवर्ष 45 दिनों) सीमित होते हैं।
    • गुणवत्ता और दक्षता: मवेशियों के गोबर जैसे विकल्पों की तुलना में इसमें गुणवत्ता में स्थिरता और अधिक रूपांतरण दक्षता बनाए रखते हुए कम फीडस्टॉक मात्रा की आवश्यकता होती है।
      • एक टन CBG का उत्पादन करने के लिये लगभग 25 टन प्रेसमड की आवश्यकता होती है। इसकी तुलना में समान गैस उत्पादन के लिये मवेशियों के गोबर की 50 टन की आवश्यकता होती है।
    • लागत-प्रभावशीलता: कृषि अवशेष तथा मवेशी गोबर जैसे अन्य फीडस्टॉक की तुलना में कम लागत (0.4-0.6 रुपए प्रति किलोग्राम)। यह पूर्व-शोधन लागत को समाप्त करता है क्योंकि इसमें कृषि अवशेषों के विपरीत कार्बनिक पॉलिमर लिग्निन की कमी होती है।
  • प्रेसमड उपयोग से संबंधित चुनौतियाँ:
    • प्रेसमड को बढ़ती कीमतों, अन्य उद्योगों में उपयोग के लिये प्रतिस्पर्द्धा तथा क्रमिक अपघटन के कारण भंडारण जटिलताओं जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिसके लिये नवीन भंडारण समाधान की आवश्यकता होती है।
    • एक जैविक अवशेष के रूप में पशु चारा, जैव ऊर्जा उत्पादन (बायोगैस अथवा जैव ईंधन के लिये) एवं कृषि मृदा संशोधन जैसे क्षेत्रों में इसकी मांग की जाती है। यह प्रतिस्पर्द्धा कभी-कभी विशिष्ट अनुप्रयोगों के लिये इसकी उपलब्धता को सीमित कर सकती है अथवा इसकी लागत बढ़ा सकती है।
    • एक जैविक अवशेष के रूप में इसकी मांग पशु चारा, बायोएनर्जी उत्पादन (बायोगैस अथवा जैव ईंधन के लिये) तथा कृषि मृदा संशोधन जैसे क्षेत्रों में की जाती है। यह प्रतिस्पर्द्धा कभी-कभी इसकी उपलब्धता को सीमित कर सकती है या विशिष्ट अनुप्रयोगों के चलते प्रतिस्पर्द्धा के कारण इसकी लागत में वृद्धि हो सकती है।

भारत का प्रेसमड उत्पादन परिदृश्य क्या है?

  • उत्पादन आँकड़े:
    • वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत का चीनी उत्पादन 32.74 मिलियन टन तक पहुँच गया, जिससे लगभग 11.4 मिलियन टन प्रेसमड का उत्पादन हुआ।
  • गन्ना उत्पादक राज्य:
    • प्राथमिक गन्ना उत्पादक राज्य विशेष रूप से उत्तर प्रदेश तथा महाराष्ट्र, भारत के कुल गन्ना खेती क्षेत्र का लगभग 65% कवर करते हुए महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हैं।
      • प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु एवं बिहार शामिल हैं, जो भारत के कुल गन्ना उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा बनाते हैं।

आगे की राह

  • CBG उत्पादन के लिये प्रेसमड की पूरी क्षमता का उपयोग करने के लिये विभिन्न हस्तक्षेप महत्त्वपूर्ण हैं:
    • राज्य स्तरीय नीतियाँ: राज्यों द्वारा सहायक बायोएनर्जी नीतियों का कार्यान्वयन, अनुमोदन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के साथ प्रोत्साहन प्रदान करना।
    • मूल्य नियंत्रण तंत्र: प्रेसमड कीमतों को नियंत्रित करने के लिये तंत्र की स्थापना करना तथा चीनी मिलों एवं CBG संयंत्रों के बीच दीर्घकालिक समझौतों को प्रोत्साहित करना।
    • तकनीकी प्रगति: मीथेन उत्सर्जन को रोकने तथा गैस हानि को कम करने के लिये सर्वोतम प्रेसमड भंडारण तकनीकों के लिये अनुसंधान और विकास।
    • प्रशिक्षण पहल: संयंत्र और वैज्ञानिक उपकरण संचालन तथा फीडस्टॉक के वर्णन को लेकर CBG संयंत्र संचालकों के लिये प्रशिक्षण सत्र आयोजित करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य (FRP) किसके द्वारा अनुमोदित किया गया है? (2015)

(a) आर्थिक मामलों पर कैबिनेट समिति
(b) कृषि लागत और मूल्य आयोग
(c) विपणन और निरीक्षण निदेशालय, कृषि मंत्रालय
(d) कृषि उपज बाज़ार समिति

उत्तर: (a)


प्रश्न. भारत में गन्ने की खेती में वर्तमान प्रवृत्तियों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. जब 'बड चिप सेटलिंग्स (Bud Chip Settlings)' को नर्सरी में उगाकर मुख्य कृषि भूमि में प्रतिरोपित किया जाता है, तब बीज सामग्री में पर्याप्त बचत होती है।
  2. जब सैट्स का सीधे रोपण किया जाता है, तब एक कलिका (Single Budded) सैट्स का अंकुरित प्रतिशत कई कलिका सैट्स की तुलना में बेहतर होता है।
  3. खराब मौसम की दशा में यदि सैट्स का सीधे रोपण होता है तो एक कलिका सैट्स का जीवित बचना बड़े सैट्स की तुलना में बेहतर होता है।
  4. गन्ने की खेती उत्तक संवर्द्धन से तैयार की गई सैटलिंग से की जा सकती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 4
(d) केवल 2, 3 और 4

उत्तर: (c)

व्याख्या:

उत्तक संवर्द्धन तकनीक:

  • उत्तक संवर्द्धन एक ऐसी तकनीक है जिसमें पौधों के टुकड़ों को संवर्द्धित किया जाता है और प्रयोगशाला में उगाया जाता है।
  • यह मौजूदा वाणिज्यिक किस्मों के रोग मुक्त गन्ने के बीज के तेज़ी से उत्पादन और आपूर्ति का एक नया तरीका प्रदान करता है।
  • यह स्रोत पौधे की प्रति बनाने के लिये मेरिस्टेम का उपयोग करता है।
  • यह आनुवंशिक पहचान को भी संरक्षित करता है।
  • उत्तक संवर्द्धन तकनीक अपनी बोझिल प्रक्रिया और सीमाओं के कारण अलाभकारी होती जा रही है।

बड चिप तकनीक:

  • उत्तक संवर्द्धन के व्यवहार्य विकल्प के रूप में यह द्रव्यमान को कम करती है और बीजों के त्वरित गुणन को सक्षम बनाती है।
  • यह विधि दो से तीन कली सैट्स लगाने की पारंपरिक विधि की तुलना में अधिक किफायती और सुविधाजनक सिद्ध हुई है।
  • इसके तहत रोपण के लिये उपयोग की जाने वाली बीज सामग्री पर पर्याप्त बचत के साथ रिटर्न अपेक्षाकृत बेहतर है। अतः कथन 1 सही है।
  • शोधकर्त्ताओं ने पाया है कि दो कलियों वाले सैट्स बेहतर उपज के साथ लगभग 65 से 70% अंकुरण प्रदान करते हैं। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • खराब मौसम में बड़े सैट्स बेहतर ढंग से जीवित रहते हैं लेकिन रासायनिक उपचार से संरक्षित होने पर सिंगल बडेड सैट भी 70% अंकुरण प्रदान करते हैं। अतः कथन 3 सही नहीं है।
  • उत्तक संवर्द्धन का उपयोग गन्ने को अंकुरित करने और उगाने के लिये किया जा सकता है जिसे बाद में खेत में रोपित किया जा सकता है। अतः कथन 4 सही है। इसलिये विकल्प (c) सही उत्तर है।


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

तेज़ रेडियो विस्फोट

प्रिलिम्स के लिये:

फास्ट रेडियो बर्स्ट्स (FRB), रेडियो फ्रीक्वेंसी उत्सर्जन, डीप स्पेस, न्यूट्रॉन तारे, लेज़र इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ,वेधशाला  (LIGO), लेज़र इंटरफेरोमीटर स्पेस एंटीना।

मेन्स के लिये:

न्यूट्रॉन सितारों का संलयन और तेज़ रेडियो विस्फोट (FRB) का उत्सर्जन।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिक फास्ट रेडियो बर्स्ट्स (FRB) के एक नए पहलू को समझने की कोशिश कर रहे हैं, जो दूर की आकाशगंगाओं से आने वाले रहस्यमय रेडियो सिग्नल हैं।

फास्ट रेडियो बर्स्ट्स/तेज़ रेडियो विस्फोट (FRB) क्या हैं?

  • फास्ट रेडियो बर्स्ट (FRB) गहरे अंतरिक्ष से उत्पन्न होने वाले रेडियो फ्रीक्वेंसी उत्सर्जन के शक्तिशाली और संक्षिप्त विस्फोट हैं। ये रहस्यमय और तीव्र संकेत केवल मिलीसेकेंड तक ही रहते हैं लेकिन करोड़ों सूर्यों के बराबर ऊर्जा की मात्रा छोड़ते हैं।
  • खगोलविदों ने प्रस्तावित किया है कि विस्फोट करने वाले तारों के अवशेषों से बनने वाले एक प्रकार के न्यूट्रॉन तारे, चुंबकीय ध्रुव, FRB के लिये एक संभावित उत्पत्ति हो सकते हैं।
  • चुंबकों का घूर्णन अन्य न्यूट्रॉन तारों की तुलना में तुलनात्मक रूप से धीमा होता है।
  • न्यूट्रॉन तारे तब बनते हैं जब कोई विशाल तारा टूटता जाता है। कोर का मुख्य केंद्रीय क्षेत्र टूटता है और प्रत्येक प्रोटॉन इलेक्ट्रॉन एक-दूसरे को न्यूट्रॉन में बदल जाता है। ये नव-निर्मित न्यूट्रॉन एक न्यूट्रॉन तारे को पीछे छोड़ते हुए इसके पतन को रोक सकते हैं।
  • एक चुंबकीय क्षेत्र अन्य न्यूट्रॉन सितारों की तुलना में एक हज़ार गुना अधिक मज़बूत होता है और यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की तुलना में एक खरब गुना अधिक शक्तिशाली होता है।

FRBs की उत्पत्ति में न्यूट्रॉन तारे कैसे शामिल हैं?

  • FRB की घटना दो न्यूट्रॉन तारों की टक्कर के परिणामस्वरूप हो सकती है।
  • टक्कर से दो अलग-अलग संकेत उत्पन्न हो सकते हैं: गुरुत्वाकर्षण तरंगें, जो अंतरिक्ष-समय में तरंग पैदा करती हैं और FRBs
    • अतीत में न्यूट्रॉन स्टार विलय को  विद्युत चुंबकीय समकक्ष देखा गया है।
  • वर्ष 2015 में संयुक्त राज्य अमेरिका में लेज़र इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्ज़र्वेटरी (LIGO) और इटली में विर्गो उपकरण ने पहली बार दो न्यूट्रॉन तारों की टक्कर से गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाकर एक अभूतपूर्व अवलोकन किया

लेज़र इंटरफेरोमीटर स्पेस एंटीना (LISA)

  • LISA यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) और नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के नेतृत्व में एक नियोजित अंतरिक्ष-आधारित गुरुत्वाकर्षण तरंग वेधशाला है। 
  • LISA को अंतरिक्ष के माध्यम से गुरुत्वाकर्षण तरंगों के पारित होने के कारण त्रिकोणीय संरचना में तीन अंतरिक्ष यानों के बीच की दूरी में सूक्ष्म परिवर्तन को मापकर गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाने और निरीक्षण करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • इस अंतरिक्ष-आधारित वेधशाला से ब्रह्मांड की हमारी समझ में योगदान देने वाले विशाल ब्लैक होल और अन्य खगोलीय घटनाओं के विलय जैसे ब्रह्मांडीय घटनाओं में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करने की उम्मीद है।

LIGO क्या है?

  • परिचय:
    • LIGO का मतलब लेज़र इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्ज़र्वेटरी है। 
    • यह एक अभूतपूर्व वेधशाला है जिसे गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाने और उनका अध्ययन करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • यह ब्लैक होल टकराव या न्यूट्रॉन स्टार विलय जैसी घटनाओं द्वारा उत्पन्न अंतरिक्ष-समय में तरंगों को देखकर ब्रह्मांड के रहस्यों का पता लगाने का एक नया तरीका प्रदान करता है।
  • गुरुत्वाकर्षण तरंगों की जानकारी: 
    • अमेरिका में LIGO ने पहली बार वर्ष 2015 में गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाया, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2017 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।
      • ये गुरुत्वाकर्षण तरंगें 1.3 अरब वर्ष पूर्व दो ब्लैक होल के विलय से उत्पन्न हुई थीं, जिनका द्रव्यमान सूर्य से लगभग 29 और 36 गुना अधिक था।
      • ब्लैक होल विलय कुछ सबसे मज़बूत गुरुत्वाकर्षण तरंगों का स्रोत है।

निष्कर्ष:

वैज्ञानिक दूर की आकाशगंगाओं से आने वाले संक्षिप्त और शक्तिशाली संकेतों फास्ट रेडियो बर्स्ट्स (FRBs) की जाँच कर रहे हैं। मैग्नेटार, विस्फोटित तारों के घने अवशेष, प्रस्तावित स्रोत हैं। न्यूट्रॉन तारे की टक्कर से FRBs एवं गुरुत्वाकर्षण तरंगें दोनों उत्पन्न हो सकती हैं, जैसा कि LIGO और Virgo द्वारा देखा गया है। आगामी लेज़र इंटरफेरोमीटर स्पेस एंटीना (LISA) का उद्देश्य ब्रह्मांडीय घटनाओं के बारे में हमारी समझ को गहरा करना है।

 यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रश्न: हाल ही में वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से अरबों प्रकाश-वर्ष दूर विशालकाय ‘ब्लैक होल्स के विलय का प्रेक्षण किया। इस प्रेक्षण का क्या महत्त्व है? (2019)

(a) हिग्स बोसॉन कणों का अभिज्ञान हुआ।
(b) गुरुत्वीय तरंगों का अभिज्ञान हुआ।
(c) ‘वॉर्महोल’से होते हुए अंतरा-मंदाकिनीय अंतरिक्ष यात्रा की संभावना की पुष्टि हुई।
(d) इसने वैज्ञानिकों को ‘विलक्षणता (सिंगुलैरिटि)’ को समझना सुकर बनाया।

उत्तर: b

व्याख्या:

  • हर कुछ मिनट में ब्लैक होल का एक जोड़ा एक-दूसरे से टकराता है। ये प्रलय अंतरिक्ष-समय के ताने-बाने में लहरें छोड़ते हैं जिन्हें गुरुत्वाकर्षण तरंगें कहा जाता है।
  • ब्रह्मांड में कुछ सबसे हिंसक और ऊर्जावान प्रक्रियाओं के कारण अंतरिक्ष-समय में गुरुत्वाकर्षण तरंगों' का निर्माण होता है।
  • अल्बर्ट आइंस्टीन ने 1916 में अपने जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी में गुरुत्वाकर्षण तरंगों के अस्तित्व की भविष्यवाणी की थी।
  • सबसे मज़बूत गुरुत्वाकर्षण तरंगें विनाशकारी घटनाओं से उत्पन्न होती हैं जैसे कि ब्लैक होल का टकराना, सुपरनोवा का ढहना, न्यूट्रॉन तारों या सफेद बौने तारों का आपस में जुड़ना आदि।
  • वैज्ञानिकों ने एक बार फिर पृथ्वी से लगभग एक अरब प्रकाश वर्ष दूर दो हल्के ब्लैक होल के विलय से उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाया है।
  • इसे लेज़र इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्ज़र्वेटरी (LIGO) द्वारा रिकॉर्ड किया गया था।
  • अत: विकल्प (b) सही उत्तर है।

मेन्स:

प्रश्न. नासा का जूनो मिशन पृथ्वी की उत्पत्ति और विकास को समझने में किस प्रकार सहायता करता है?


सामाजिक न्याय

उच्च शिक्षा में मुस्लिम छात्रों के नामांकन में गिरावट

प्रिलिम्स के लिये:

उच्च शिक्षा में मुस्लिम छात्रों के नामांकन में गिरावट, एजुकेशन प्लस के लिये एकीकृत ज़िला सूचना प्रणाली (UDISE+), अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (AISHE), नया सवेरा- नि:शुल्क कोचिंग और संबद्ध योजना

मेन्स के लिये:

उच्च शिक्षा में मुस्लिम छात्रों के नामांकन में गिरावट, केंद्र और राज्यों द्वारा आबादी के कमज़ोर वर्गों हेतु कल्याणकारी योजनाएँ तथा इन योजनाओं का प्रदर्शन

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

एजुकेशन प्लस के लिये एकीकृत ज़िला सूचना प्रणाली (Unified District Information System for Education Plus- UDISE+) और अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (All India Survey of Higher Education- AISHE) के आँकड़ों के विश्लेषण के आधार पर तैयार की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, उच्च शिक्षा में मुस्लिम छात्रों के नामांकन में काफी गिरावट दर्ज की गई है।

एजुकेशन प्लस के लिये एकीकृत ज़िला सूचना प्रणाली (UDISE+) रिपोर्ट क्या है?

  • यह एक व्यापक अध्ययन है जो स्कूली छात्रों के नामांकन और ड्रॉपआउट दर, स्कूलों में शिक्षकों की संख्या तथा शौचालय सुविधा, भवन अवसंरचना एवं विद्युत जैसी अन्य बुनियादी सुविधाओं पर जानकारी प्रदान करता है।
  • इसे वर्ष 2018-2019 में डेटा प्रविष्टि में तेज़ी लाने, त्रुटियों को कम करने, डेटा गुणवत्ता में सुधार तथा सत्यापन प्रक्रिया को सरल बनाने के लिये लॉन्च किया गया था।
  • यह एक विद्यालय और उसके संसाधनों से संबंधित कारकों के विषय में विवरण एकत्रित करने के लिये एक एप्लीकेशन है।
  • यह वर्ष 2012-13 में शिक्षा मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया UDISE का एक अद्यतन तथा उन्नत संस्करण है।

अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (AISHE) क्या है?

  • AISHE शिक्षा मंत्रालय की एक पहल है। वेब-आधारित इस वार्षिक सर्वेक्षण का उद्देश्य भारत में उच्च शिक्षण संस्थानों की स्थिति का आकलन करना और सुधार के क्षेत्रों का पता लगाना है। AISHE सर्वेक्षण को ध्यान में रखते हुए छात्र उच्च शिक्षण संस्थानों में नामांकन पर विचार करते हैं।
  • यह सर्वेक्षण महाविद्यालयों के शिक्षकों, परीक्षा परिणाम, शिक्षा बजट, कार्यक्रम, छात्र नामांकन और बुनियादी ढाँचे जैसी विभिन्न श्रेणियों पर रेटिंग प्रदान करने में मदद कर सकता है। इस सर्वेक्षण में एकत्रित किये गए डेटा का उपयोग सूचित नीतिगत निर्णय लेने तथा उच्च शिक्षा में बेहतर शोध करने के के उद्देश्य से किया जाता है।

 मुस्लिम छात्रों के नामांकन में गिरावट पर रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • नामांकन संबंधी डेटा:
    • वर्ष 2020-21 में उच्च शिक्षा में मुस्लिम छात्रों (आयु वर्ग 18-23) के नामांकन में 8.5% से अधिक की उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है।
    • वर्ष 2019-20 में नामांकित छात्रों की संख्या 21 लाख थी, जो घटकर वर्ष 2020-21 में 19.21 लाख हो गई।
      • वर्ष 2016-17 से 2020-21 तक नामांकन में समग्र वृद्धि दर्ज की गई, किंतु हालिया वर्षों में इसमें गिरावट दर्ज की गई, वर्ष 2019-20 से 2020-21 तक 1,79,147 छात्रों की गिरावट दर्ज की गई।

  • सापेक्ष नामांकन प्रतिशत:
    • कुल छात्र आबादी की तुलना में उच्च शिक्षा में वर्ष 2016-17 में नामांकित मुस्लिम छात्रों का प्रतिशत 4.87 था, जो वर्ष 2020-21 में घटकर 4.64% हो गया
  • शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर नामांकन पैटर्न:
    • सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में एक सामान्य पैटर्न पाया गया है जिसमें मुस्लिम छात्रों की संख्या में कक्षा 6 से गिरावट आनी शुरू होती है जो कक्षा 11 तथा 12 में सबसे निचले स्तर पर पहुँच जाता है।
    • मुस्लिम छात्रों का नामांकन प्रतिशत उच्च प्राथमिक (कक्षा 6-8) में 14.42% से गिरकर उच्च माध्यमिक (कक्षा 11-12) में 10.76% हो गया है।
  • राज्य स्तरीय असमानताएँ:
    • बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में मुस्लिम छात्रों का सकल नामांकन अनुपात अपेक्षाकृत कम है, जो दर्शाता है कि इन राज्यों में कई मुस्लिम बच्चे अभी भी शिक्षा प्रणाली का हिस्सा नहीं हैं।
    • असम (29.52%) और पश्चिम बंगाल (23.22%) में मुस्लिम छात्रों की उच्च ड्रॉपआउट दर दर्ज की गई, जबकि जम्मू-कश्मीर में यह आँकड़ा 5.1% और केरल में 11.91% है।
  • सुझाव:
    • वित्तीय बोझ को कम करने और उच्च शिक्षा तक पहुँच में वृद्धि करने के लिये मुस्लिम छात्रों हेतु छात्रवृत्ति, अनुदान तथा वित्तीय सहायता बढ़ाने की आवश्यकता है।
      • कई मुस्लिम छात्र कम आय वाले परिवारों से आते हैं और उच्च शिक्षा की लागत वहन करने में उन्हें विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
    • शिक्षा के अंतर को कम करने और धार्मिक पृष्ठभूमि अथवा आर्थिक स्थिति को नज़रअंदाज करते हुए सभी छात्रों के लिये समान अवसर उपलब्ध कराने हेतु समावेशी नीतियों एवं लक्षित समर्थन लागू करना महत्त्वपूर्ण है।

भारत में अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिये प्रमुख योजनाएँ क्या हैं?

  • छात्रों के शैक्षिक सशक्तीकरण के लिये प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना, पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना, योग्यता-सह-साधन आधारित छात्रवृत्ति योजना: प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT)।
  • नया सवेरा- नि:शुल्क कोचिंग और संबद्ध योजना: इस योजना का उद्देश्य तकनीकी/व्यावसायिक पाठ्यक्रमों और प्रतियोगी परीक्षाओं की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिये अल्पसंख्यक समुदायों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के छात्रों/उम्मीदवारों को निःशुल्क कोचिंग प्रदान करना है।
  • पढ़ो परदेश: अल्पसंख्यक समुदायों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के छात्रों को विदेश में उच्च अध्ययन के लिये शैक्षिक ऋण पर ब्याज सब्सिडी की योजना।
  • नई रोशनी: अल्पसंख्यक समुदायों की महिलाओं का नेतृत्त्व विकास।
  • सीखो और कमाओ: यह 14-35 वर्ष आयु वर्ग के युवाओं हेतु एक कौशल विकास योजना है और इसका लक्ष्य मौजूदा श्रमिकों, स्कूल छोड़ने वालों आदि की रोज़गार क्षमता में सुधार करना है।
  • प्रधानमंत्री जन विकास कार्यक्रम (PMJVK): यह चिह्नित अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों के विकासात्मक कमियों का समाधान करने के लिये तैयार की गई योजना है।
    • इस योजना के तहत कार्यान्वयन के क्षेत्रों की पहचान वर्ष 2011 की जनगणना की अल्पसंख्यक आबादी और सामाजिक-आर्थिक व बुनियादी सुविधाओं के आँकड़ों के आधार पर की गई है तथा इन्हें अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों के रूप में चिह्नित किया जाएगा।
  • विकास के लिये पारंपरिक कला/शिल्प में कौशल और प्रशिक्षण का उन्नयन (Upgrading the Skills and Training in Traditional Arts/Crafts for Development- USTTAD): इसे मई 2015 में लॉन्च किया गया था, इसका उद्देश्य स्वदेशी कारीगरों/शिल्पकारों के पारंपरिक कौशल की समृद्ध विरासत को संरक्षित करना है।
    • इस योजना के तहत अल्पसंख्यक कारीगरों और उद्यमियों को एक राष्ट्रव्यापी विपणन मंच प्रदान करने तथा रोज़गार के अवसर सृजित करने के लिये देश भर में हुनरहाट का भी आयोजन किया जाता है।
  • प्रधानमंत्री-विरासत का संवर्द्धन (PM Vikaas): वर्ष 2023 में अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के बजट में नए PM Vikaas कार्यक्रम को भी शामिल किया गया है।
    • यह देश भर में अल्पसंख्यक और कारीगर समुदायों के कौशल, उद्यमिता और नेतृत्त्व प्रशिक्षण आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करने वाली एक कौशल संबंधी पहल है।
    • इस योजना को कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के 'स्किल इंडिया मिशन' के संयोजन में स्किल इंडिया पोर्टल (SIP) के साथ एकीकृत करके लागू किया जाएगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत में यदि किसी धार्मिक संप्रदाय/समुदाय को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाता है, तो वह किस विशेष लाभ का हकदार है? (2011)

  1. यह विशिष्ट शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन कर सकता है। 
  2.  भारत का राष्ट्रपति स्वतः ही लोकसभा के लिये किसी समुदाय के एक प्रतिनिधि को नामित करता है। 
  3.  इसे प्रधानमंत्री के 15 सूत्री कार्यक्रम का लाभ मिल सकता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल  2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न. भारत में दूरसंचार, बीमा, विद्युत आदि जैसे क्षेत्रकों में स्वतंत्र नियामकों का पुनरीक्षण निम्नलिखित में से कौन करता/करती हैं? (2019)

  1. संसद द्वारा गठित तदर्थ समितियाँ
  2. संसदीय विभाग संबंधी स्थायी समितियाँ
  3. वित्त आयोग
  4. वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग
  5. नीति (NITI) आयोग

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 3, 4 और 5
(d) केवल 2 और 5

उत्तर: (a)


शासन व्यवस्था

फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय

प्रिलिम्स के लिये :

फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO अधिनियम), यौन अपराध, आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018

मेन्स के लिये :

फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय, केंद्र और राज्यों द्वारा जनसंख्या के कमज़ोर वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का प्रदर्शन।

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तीन वर्षों (वर्ष 2026 तक) के लिये फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय (FTSCs) को जारी रखने की मंज़ूरी दे दी है।

  • प्रारंभ में अक्तूबर 2019 में एक वर्ष के लिये शुरू की गई इस योजना को मार्च 2023 तक अतिरिक्त दो वर्षों के लिये बढ़ा दिया गया था।

फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय (FTSCs) क्या है?

  • परिचय:
    • FTSCs भारत में स्थापित विशेष न्यायालय हैं जिनका प्राथमिक उद्देश्य यौन अपराधों से संबंधित मामलों की सुनवाई प्रक्रिया में तेज़ी लाना है, विशेष रूप से यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO अधिनियम) के तहत बलात्कार और उल्लंघन से जुड़े मामलों की सुनवाई में तेज़ी लाना है।
    • FTSCs की स्थापना सरकार द्वारा यौन अपराधों की चिंताजनक आवृत्ति और नियमित न्यायालयों में लंबित मुकदमों की लंबी अवधि के चलते की गई, जिसके परिणामस्वरूप पीड़ितों को न्याय प्राप्ति में देरी हुई।
  • स्थापना:
    • केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 में दंड विधि (संशोधन) अधिनियम लागू किया, जिसमें बलात्कार अपराधियों के लिये मृत्युदंड सहित कठोर दंड के प्रावधान किये गए।
    • इसके बाद ऐसे मामलों में त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिये FTSC की स्थापना की गई।
  • केंद्र प्रायोजित योजना:
    • FTSC स्थापित करने की योजना अगस्त 2019 में एक केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के स्वत: संज्ञान रिट याचिका (आपराधिक) में निर्देशों के बाद तैयार की गई थी।
  • अब तक की उपलब्धियाँ:
    • तीस राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने इस योजना में भाग लिया है तथा 414 विशिष्ट POCSO न्यायालयों सहित 761 FTSC का संचालन किया गया है, जिन्होंने 1,95,000 से अधिक मामलों का समाधान किया है।
    • ये न्यायालय यौन अपराधों के पीड़ितों को समय पर न्याय प्रदान करने के राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकार के प्रयासों का समर्थन करते हैं। यहाँ तक कि दूरवर्ती इलाकों में भी।

फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा तथा कम निपटान दर:
    • भारत में विशेष न्यायालय अक्सर नियमित न्यायालयों की तरह ही चुनौतियों से जूझते हैं, क्योंकि उन्हें आमतौर पर नए बुनियादी ढाँचे के रूप में स्थापित करने के बजाय नामित किया जाता है।
    • इससे न्यायाधीशों पर अत्यधिक बोझ पड़ता है, जिन्हें आवश्यक सहायक कर्मचारियों अथवा बुनियादी ढाँचे के बिना उनके मौजूदा कार्यभार के अलावा अन्य श्रेणियों के मामले भी सौंप दिया जाता है।
    • परिणामस्वरूप इन विशेष न्यायालयों में मामलों के निपटारे की दर धीमी हो जाती है।
    • प्रति न्यायालय प्रतिवर्ष लगभग 165 POCSO मामलों के निपटान के अनुमानित लक्ष्य की प्राप्ति में भी काफी कमी है, देश में 1,000 से अधिक FTSCs में से वर्तमान में प्रत्येक की औसतन वार्षिक तौर पर केवल 28 मामलों को निपटान किया जा रहा है।

  • लंबे समय तक लंबितता:
    • 31 जनवरी 2023 तक FTSCs में 2.43 लाख से अधिक POCSO मामले लंबित हैं
      • अनुमानों से पता चलता है कि अरुणाचल प्रदेश, दिल्ली, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और मेघालय जैसे राज्यों में बैकलॉग/लंबित मामलों के निपटान में कई दशकों का समय लगेगा।
      • विभिन्न राज्यों में अनुमानित परीक्षण अवधि भिन्न होती है, यह 21 से 30 वर्ष तक की हो सकती है।
  • दोषसिद्धि दर संबंधी चुनौतियाँ:
    • एक वर्ष के भीतर परीक्षण पूरा करने का लक्ष्य रखने के बावजूद शोधों से पता चलता है कि दोषसिद्धि दर काफी कम है।
      • विचाराधीन 2,68,038 मामलों में से केवल 8,909 में दोषसिद्धि की जा सकी है, इसे लेकर FTSC की प्रभावकारिता को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
  • सीमित क्षेत्राधिकार:
    • इन न्यायालयों की स्थापना एक विशिष्ट क्षेत्राधिकार के साथ की जाती हैं, जो संबंधित मामलों के निपटान की उनकी क्षमता को सीमित कर सकती है। इससे न्याय वितरण में देरी हो सकती है तथा कानूनों के कार्यान्वयन में स्थिरता की कमी हो सकती है।
      • एक आदर्श स्थिति में इन विशेष न्यायालयों में मामलों का निपटान एक वर्ष के भीतर किया जाना आवश्यक है। हालाँकि मई 2023 तक दिल्ली के FTSC में कुल 4,369 लंबित मामलों में से केवल 1,049 मामलों का ही निपटान किया गया था। यह मामलों के निपटान संबंधी लक्ष्य के पूरा होने में विलंबता को इंगित करता है।
  • न्यायाधीशों की रिक्तियाँ और प्रशिक्षण का अभाव:
    • न्यायाधीशों की रिक्तियाँ और प्रशिक्षण का अभाव मामलों के प्रभावी निपटान क्षमता को प्रभावित करता है।
      • वर्ष 2022 तक पूरे भारत में निचली न्यायालयों में रिक्ति दर 23% थी।
    • सामान्य न्यायालयों के नियमित न्यायाधीशों को अक्सर FTSC में कार्य करने के लिये प्रतिनियुक्त किया जाता है।
    • हालाँकि इन न्यायालयों को मामलों के शीघ्र और प्रभावी निपटान के लिये विशेष प्रशिक्षण वाले न्यायाधीशों की आवश्यकता होती है।
  • कुछ अपराधों को अन्य अपराधों से अधिक प्राथमिकता दिया जाना:
    • भारत में विशेष न्यायालयों की स्थापना सामान्यतः सरकार की न्यायिक और कार्यकारी दोनों शाखाओं द्वारा लिये गए तदर्थ निर्णयों के आधार पर की जाती है।
    • इसका अर्थ है कि अपराधों की कुछ श्रेणियों के अन्य अपराधों की तुलना में तेज़ी से निपटान के लिये मनमाने ढंग से प्राथमिकता दी जाती है।

आगे की राह

  • सुचारु और कुशल संचालन सुनिश्चित करने के लिये FTSCs को कोर्ट रूम, सहायक कर्मचारी और आधुनिक तकनीक सहित पर्याप्त बुनियादी ढाँचा प्रदान किया जाना चाहिये।
  • इन विशिष्ट न्यायालयों की स्थापना और रखरखाव के लिये अतिरिक्त धन आवंटित किया जाना चाहिये।
  • निपटान दर को बढ़ाने के लिये FTSCs को सख्त मामला प्रबंधन, स्थगन के कारण होने वाली अनावश्यक देरी को कम करने और साक्ष्य की समय पर प्रस्तुति सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • यह न्यायाधीशों और सहायक कर्मचारियों के लिये विशेष प्रशिक्षण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने तथा कार्यवाही की गति बढ़ाने में मदद कर सकता है।
  • रिक्तियों को तुरंत भरने के प्रयास किये जाने चाहिये और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि प्रासंगिक विशेषज्ञता वाले न्यायाधीशों को इन अदालतों में नियुक्त किया जाए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. हम देश में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के बढ़ते मामले देख रहे हैं। इसके खिलाफ मौजूदा कानूनी प्रावधानों के बावजूद ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस खतरे से निपटने के लिये कुछ नवीन उपाय सुझाइये। (2014)


भारतीय राजनीति

राजनीतिक फंडिंग का प्रकटीकरण

प्रिलिम्स के लिये:

जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, सर्वोच्च न्यायालय, चुनावी बॉण्ड, संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रचार अधिनियम, यूरोपीय संघ, यूरोपीय संसद का विनियमन, राजनीतिक दल, चुनाव और ब्रिटेन का जनमत संग्रह अधिनियम, 2000, लोकतंत्र, विधि का शासन, निर्वाचन आयोग 

मेन्स के लिये:

लोकतांत्रिक प्रक्रिया में पारदर्शिता को बढ़ावा देने और चुनावी भ्रष्टाचार को रोकने के लिये राजनीतिक दान के प्रकटीकरण का महत्त्व  

स्रोत: द हिंदू  

चर्चा में क्यों?

वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों और दान के संबंध में चिंताओं के मद्देनज़र, चुनावी बॉण्ड को चुनौती पर सर्वोच्च न्यायालय की सुनवाई का निष्कर्ष इस चुनौती के समाधान के भारत में लोकतंत्र और विधि के शासन पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव की एक महत्त्वपूर्ण जाँच का संकेत देता है। 

राजनीतिक फंडिंग क्या है?

  • परिचय:
    • राजनीतिक फंडिंग/चंदा से तात्पर्य राजनीतिक दलों या उम्मीदवारों को उनकी गतिविधियों, अभियानों और समग्र कामकाज का समर्थन करने के लिये प्रदान किये गए वित्तीय योगदान से है।
    • राजनीतिक दलों के लिये लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में प्रभावी ढंग से भाग लेने, चुनाव अभियान चलाने और विभिन्न राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने के लिये राजनीतिक फंडिंग महत्त्वपूर्ण है।
  • भारत में वैधानिक प्रावधान:
    • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951: जन प्रतिनिधित्व (RPA) अधिनियम भारत में चुनावों के संबंध में नियमों और विनियमों की रूपरेखा तैयार करता है, जिसमें चुनाव खर्चों की घोषणा, योगदान और खातों के रखरखाव से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
    • आयकर अधिनियम, 1961: आयकर अधिनियम राजनीतिक दलों और उनके दानदाताओं के कर उपचार को नियंत्रित करता है।
      • राजनीतिक दलों को कर नियमों का पालन करना होगा और राजनीतिक दानकर्त्ता व्यक्ति या संस्थाएँ कुछ शर्तों के तहत कर लाभ के लिये पात्र हो सकते हैं।
    • कंपनी अधिनियम, 2013: कंपनी अधिनियम राजनीतिक दलों को कॉर्पोरेट डोनेशन को नियंत्रित करता है, एक कंपनी द्वारा योगदान की जाने वाली अधिकतम राशि निर्दिष्ट करता है और वित्तीय विवरणों में राजनीतिक योगदान का प्रकटीकरण अनिवार्य करता है।
  • राजनीतिक चंदा जुटाने के तरीके:
    • एकल व्यक्ति: RPA की धारा 29B राजनीतिक दलों को एकल व्यक्तियों से दान प्राप्त करने की अनुमति देती है, जबकि करदाताओं को 100% कटौती का दावा करने की अनुमति देती है।
    • राज्य/सार्वजनिक अनुदान: यहाँ सरकार चुनाव संबंधी उद्देश्यों के लिये पार्टियों को धन मुहैया कराती है। राज्य वित्तपोषण दो प्रकार का होता है:
      • प्रत्यक्ष धन: सरकार राजनीतिक दलों को सीधे धन प्रदान करती है। हालाँकि भारत में प्रत्यक्ष फंडिंग प्रतिबंधित है।
      • अप्रत्यक्ष फंडिंग: इसमें प्रत्यक्ष फंडिंग को छोड़कर अन्य तरीके शामिल हैं, जैसे मीडिया तक निःशुल्क पहुँच, रैलियों के लिये सार्वजनिक स्थानों पर निःशुल्क पहुँच, निःशुल्क या रियायती परिवहन सुविधाएँ। भारत में इसके विनियमन की अनुमति दी गई है।
    • कॉर्पोरेट फंडिंग: भारत में कॉर्पोरेट निकायों द्वारा दान कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 182 के तहत नियंत्रित किया जाता है।
    • चुनावी बॉण्ड योजना: चुनावी बॉण्ड प्रणाली को वर्ष 2017 में एक वित्त विधेयक के माध्यम से पेश किया गया था और इसे वर्ष 2018 में लागू किया गया था।
      • वे दाता की गोपनीयता बनाए रखते हुए व्यक्तियों और संस्थाओं के लिये पंजीकृत राजनीतिक दलों को फंडिंग देने के साधन के रूप में कार्य करते हैं।
    • चुनावी ट्रस्ट योजना, 2013: इसे केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) द्वारा अधिसूचित किया गया था।
      • इलेक्टोरल ट्रस्ट कंपनियों द्वारा स्थापित एक ट्रस्ट है जिसका एकमात्र उद्देश्य अन्य कंपनियों एवं व्यक्तियों से प्राप्त योगदान को राजनीतिक दलों में वितरित करना है।

राजनीतिक फंडिंग का प्रकटीकरण करने की आवश्यकता क्यों है? 

  • राजनीतिक फंडिंग प्रकटीकरण पर वैश्विक मानक:
    • भारत में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में चुनावी  बॉण्ड  की अनुमति देने वाले संशोधन ने राजनीतिक दानदाताओं के लिये पूर्ण अनामिता बनाए रखी है।
      • यह अंतर्राष्ट्रीय प्रथाओं के बिल्कुल विपरीत है, जहाँ प्रचलित आवश्यकता राजनीतिक दान का पूर्ण रूप से प्रकटीकरण करना है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका सहित दुनिया भर के देश राजनीतिक फंडिंग विनियम में पारदर्शिता को अनिवार्य करते हैं, प्रकटीकरण की आवश्यकताएँ वर्ष 1910 से चली आ रही हैं।
    • यूरोपीय संघ द्वारा वर्ष 2014 में यूरोपीय राजनीतिक दलों के वित्तपोषण पर नियम बनाए, जिसमें दान पर सीमाएँ, प्रकटीकरण आदेश एवं बड़े योगदान के लिये तत्काल रिपोर्टिंग शामिल थी।
  • राजनीतिक फंडिंग विनियमों में मौलिक आवश्यकताएँ: 
    • वैश्विक स्तर पर अधिकांश कानूनी नियम राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के लिये दो मूलभूत आवश्यकताओं पर सहमत हैं:
      • विशिष्ट न्यूनतम राशि से अधिक के दानदाताओं का व्यापक प्रकटीकरण तथा फंडिंग पर सीमाएँ सुनिश्चित करना।
      • इन उपायों का उद्देश्य पारदर्शिता सुनिश्चित करना, भ्रष्टाचार को रोकना तथा राजनीतिक व्यवस्था एवं लोकतंत्र में जनता का विश्वास बनाए रखना है।
  • नागरिकों के विश्वास को कायम रखना:
    • राजनीतिक फंडिंग का सार्वजनिक प्रकटीकरण अनिवार्य है क्योंकि राजनीतिक दल प्रतिनिधि लोकतंत्र की नींव के रूप में कार्य करते हैं।
    • पारदर्शी वित्तीय खाते पार्टियों और राजनेताओं दोनों में नागरिकों के विश्वास को बनाए रखने, कानून के शासन की रक्षा करने तथा चुनावी एवं राजनीतिक प्रक्रियाओं के भीतर भ्रष्टाचार का मुकाबला करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
      • यह पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करता है, उन लोकतांत्रिक सिद्धांतों को मज़बूत करता है जो पारदर्शिता और निष्पक्षता पर निर्भर हैं।
  • अनुचित प्रभाव की रोकथाम: 
    • प्रकटीकरण के बिना धन कुछ लोगों के लिये राजनीतिक प्रक्रिया को अनुचित रूप से प्रभावित करने का एक उपकरण बन सकता है। पारदर्शिता कॉर्पोरेट हितों को राजनीति और बड़े पैमाने पर वोट खरीदने से रोकने में सहायता प्रदान करती है।
  • समान अवसर बनाए रखना: 
    • जब एक पार्टी के पास अतिरिक्त वित्त तक पहुँच होती है उस स्थिति में न्यायसंगतता समाप्त हो जाती है। प्रकटीकरण यह सुनिश्चित करता है कि सभी पक्षों को समान अवसर प्राप्त हों।

चुनावी बॉण्ड योजना के अंर्तगत प्रकटीकरण से छूट:

  • वित्त अधिनियम, 2017 में संशोधन के माध्यम से केंद्र सरकार ने राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त दान का प्रकटीकरण करने से छूट दी है।
  • इसका अर्थ यह है कि मतदाताओं को यह नहीं पता होगा कि किस व्यक्ति, कंपनी अथवा संगठन ने किस पार्टी को और कितनी मात्रा में फंड दिया है।
  • हालाँकि एक प्रतिनिधि लोकतंत्र में नागरिक अपना वोट उन लोगों के लिये डालते हैं जो संसद में उनका प्रतिनिधित्व करेंगे।

सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ:

  • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को चुनावी बॉण्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को प्राप्त धन पर अद्यतन डेटा प्रदान करने का निर्देश दिया है।
  • भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने लंबे समय से माना है कि "जानने का अधिकार", विशेष रूप से चुनावों के संदर्भ में, भारतीय संविधान के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 19) का एक अभिन्न अंग है।

राजनीतिक फंडिंग में क्या सुधार आवश्यक हैं?

  • चुनावी न्याय:
    • चुनावी न्याय लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों को बनाए रखने में प्रमुख भूमिका निभाता है, यह सुनिश्चित करता है कि निर्वाचन प्रक्रिया के सभी पहलू विधि के अनुरूप हों एवं निर्वाचन अधिकारों की रक्षा करें।
    • यह प्रणाली स्वतंत्र, निष्पक्ष और प्रामाणिक चुनावों को सुविधाजनक बनाने में सहायक है, जो एक सशक्त लोकतंत्र के लिये आवश्यक है।
  • चुनावी बॉण्ड के मुद्दों को संबोधित करना:
    • चुनावी बॉण्ड, अज्ञात दाता विवरण की अनुमति देते हुए लोकतांत्रिक पारदर्शिता तथा स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की अखंडता के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं।
    • उन्हें संवैधानिक रूप से सुदृढ़ बनाने के अतिरिक्त इस मुद्दे का समाधान करने के किये एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो वैधता से परे हो एवं निर्वाचन प्रक्रिया में पारदर्शिता के लोकतांत्रिक सार को संरक्षित करने पर केंद्रित हो।
  • रिपोर्टिंग तथा स्वतंत्र लेखापरीक्षा के लिये तंत्र:
    • इसमें एक निर्दिष्ट नाममात्र सीमा से ऊपर के दानदाताओं की पहचान तथा निर्वाचन आयोग को महत्त्वपूर्ण दान की तत्काल रिपोर्ट करना शामिल है।
    • इसमें राजनीतिक दल के खातों को प्रचारित करना, दल के खातों की स्वतंत्र ऑडिटिंग तथा फंडिंग व व्यय पर सीमा स्थापित करना भी शामिल है।
  • चुनावों का राज्य वित्तपोषण:
    • चुनावों के लिये राज्य द्वारा वित्तपोषण, एक ऐसी प्रणाली को संदर्भित करता है जिसमें सरकार राजनीतिक दलों तथा उम्मीदवारों को निर्वाचन प्रक्रिया में उनकी भागीदारी को सुविधाजनक बनाने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
    • यह फंडिंग आमतौर पर सार्वजनिक संसाधनों से प्राप्त होती है एवं इसका उद्देश्य निजी दान पर निर्भरता को कम करना, राजनीतिक अभियानों में निहित स्वार्थों के संभावित प्रभाव को कम करना है।

विधिक दृष्टिकोण: चुनावी बॉण्ड मामला

https://www.drishtijudiciary.com/

  UPSC  सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017) 

  1. भारत का निर्वाचन आयोग पाँच सदस्यीय निकाय है। 
  2. संघ का गृह मंत्रालय आम चुनाव और उपचुनाव दोनों के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है। 
  3. निर्वाचन आयोग मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवाद निपटाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (d)  


मेन्स:

प्रश्न. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के इस्तेमाल संबंधी हाल के विवाद के आलोक में भारत में चुनावों की 'विश्वास्यता सुनिश्चित करने के लिये भारत के निर्वाचन आयोग के समक्ष क्या-क्या चुनौतियाँ है? (2018)


भारतीय अर्थव्यवस्था

कोयला संयंत्रों को बंद करने से जुड़े जोखिम

प्रिलिम्स के लिये:

कोयला संयंत्रों के बंद होने से जुड़े जोखिम, स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण, फँसी संपत्तियों (Stranded Assets) के जोखिम, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान (NBFC)

मेन्स के लिये:

कोयला संयंत्रों के बंद होने से जुड़े जोखिम

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारत स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में धीरे-धीरे प्रगति कर रहा है। हालाँकि विद्युत उत्पादन में स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर इस संक्रमण से कोयला संयंत्रों के बंद होने से जुड़े जोखिमों को लेकर आशंकाएँ बढ़ती जा रही हैं।

स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण में वर्तमान रुझान क्या हैं?

  • पिछले पाँच वर्षों में नई कोयला आधारित विद्युत परियोजनाओं के वित्तपोषण में गिरावट आई है, जबकि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर आधारित परियोजनाओं के वित्तपोषण में लगातार वृद्धि देखी गई है।
  • ऊर्जा मिश्रण में कोयले की हिस्सेदारी अभी भी काफी अधिक है, भारत में नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है।
  • वर्ष 2022-23 में कुल ऊर्जा क्षमता में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी 41% रही, जो वर्ष 2011-12 में 32% की वृद्धि दर्शाती है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2017 के बाद से कोयला चालित विद्युत उत्पादन की तुलना में नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में वार्षिक वृद्धि हुई है।
  •   बिजली मिश्रण में स्वच्छ ऊर्जा लगभग 23% तक बढ़ गई है, जबकि भारत की वर्तमान ऊर्जा ज़रूरतों का 55% से अधिक को अभी भी कोयले से पूरा किया जा रहा है। वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिये हरित ऊर्जा की ओर इस संक्रमण में तेज़ी लाना आवश्यक है।

स्वच्छ ऊर्जा की ओर परिवर्तन के आर्थिक निहितार्थ क्या हैं?

  • फँसी हुई संपत्तियों का जोखिम:
    • बाज़ार की स्थितियों में अप्रत्याशित बदलाव, विनियामक परिवर्तन, उपभोक्ता की बदलती प्राथमिकताएँ और तकनीकी प्रगति के कारण फँसी परिसंपत्तियों का मूल्य खोने और देनदारियाँ बनने का खतरा है।
      • फँसी हुई संपत्तियाँ ऐसी संपत्तियाँ हैं जो अप्रत्याशित या समय से पहले बट्टे खाते में डालने, अवमूल्यन या देनदारियों में रूपांतरण जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता  है।
    • इससे उन बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिये संभावित जोखिम उत्पन्न हो गया है जिनका जीवाश्म ईंधन क्षेत्र से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंध है।
  • वित्तीय संभावनाएँ:
    • भारत में कोयला संयंत्रों को बंद करने से संबद्ध वित्तीय जोखिम अपेक्षाकृत अधिक है क्योंकि इन संयंत्रों की औसत कार्यकाल केवल 13 वर्ष है।
    • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान (NBFC), कोयला परियोजनाओं से संबद्ध ऋण का 90% बोझ वहन करते हैं।
      • इसके अलावा निजी बैंकों ने कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांटों का वित्तपोषण करना  काफी कम कर दिया है।
  • क्षेत्रीय कमज़ोरियाँ: 
    • छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड जैसे क्षेत्रों में राज्य की कोयला बिजली क्षमताओं में तनावग्रस्त संपत्तियों की हिस्सेदारी अधिक है (क्रमशः 58%, 55% और 27%)।
      • इससे परिसंपत्ति अवमूल्यन के कारण उनके वित्तीय हानि का सामना करने का जोखिम बढ़ गया है क्योंकि भारत सतत् ऊर्जा प्रथाओं की ओर बढ़ रहा है।

आगे की राह

  • कठोर नियम और विनियम निवेशकों को कोयले से नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में एक सहज एवं पूर्वानुमानित संक्रमण प्रदान करते हैं, सरकारों के लिये आवश्यक है कि वे इसमें शामिल सभी पक्षों के लिये जोखिमों को कम करते हुए इन स्रोतों की ओर कदम बढ़ाएँ।
  • जीवाश्म ईंधन पर निर्भर संपत्तियों से धन को उत्तरोत्तर नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में स्थानांतरित करके वित्तीय संस्थान अपने निवेश पोर्टफोलियो में विविधता ला सकते हैं। वैश्विक स्थिरता लक्ष्यों के अनुरूप यह कार्रवाई फँसी हुई परिसंपत्तियों से जुड़े खतरों को भी कम कर सकती है।

भारतीय अर्थव्यवस्था

सेबी बोर्ड ने नियामक ढाँचे को स्वीकृति प्रदान की


भारतीय अर्थव्यवस्था

सेबी बोर्ड ने नियामक ढाँचे को स्वीकृति प्रदान की

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी), वैकल्पिक निवेश कोष (AIF), वित्तीय बेंचमार्क के लिये IOSCO सिद्धांत, सेबी (म्यूचुअल फंड) विनियम, 1996, सेबी (रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट) विनियम, 2014, लघु और मध्यम REIT (SM REIT), सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE), ज़ीरो कूपन ज़ीरो प्रिंसिपल इंस्ट्रूमेंट्स (ZCZP)।

मेन्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय मानकों और सिद्धांतों के अनुसार सेबी द्वारा पूंजी बाज़ार के लिये मज़बूत नियामक ढाँचा और इसकी आवश्यकता और महत्त्व।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) बोर्ड ने प्रतिभूति बाज़ार में वित्तीय बेंचमार्क को नियंत्रित एवं प्रशासित करने में पारदर्शिता तथा जवाबदेही बढ़ाने हेतु  सूचकांक प्रदाताओं के लिये एक ढाँचे को स्वीकृति प्रदान की है।

सेबी द्वारा बनाए गए नए नियम:

  • सूचकांक प्रदाताओं के पंजीकरण हेतु ढाँचा:
    • सेबी ने सूचकांक प्रदाताओं के पंजीकरण के लिये एक ढाँचा स्थापित करने वाले नियमों को स्वीकृति प्रदान करने की घोषणा की। यह ढाँचा विशेष रूप से 'महत्त्वपूर्ण सूचकांकों' पर लागू होगा, जिन्हें सेबी वस्तुनिष्ठ मानदंडों के आधार पर पहचानेगा।
  • AIF निवेश हेतु डिमटेरियलाइज़ेशन (अभौतिकीकरण) की आवश्यकता:
    • सेबी ने वैकल्पिक निवेश कोष (AIF) के लिये सितंबर 2024 के बाद किये गए नए निवेश को डीमटेरियलाइज़्ड रूप में रखने की शुरुआत की।
      • हालाँकि मौजूदा निवेश इस नियम के अधीन नहीं हैं, जब तक कि संबंधित कानून द्वारा आवश्यक न हो या जब तक AIF निवेशित कंपनी स्वयं या अन्य सेबी-पंजीकृत व्यवसायों के साथ संयोजन में नियंत्रित न हो।
    • संरक्षकों की नियुक्ति का आदेश, जो पहले विशिष्ट AIF श्रेणियों पर लागू होता था, अब सभी AIF पर लागू होगा।
  • सेबी (रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट) विनियमों में संशोधन:
    • सेबी बोर्ड ने रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट् (REIT) के विनियमों में संशोधन को स्वीकृति प्रदान की, ताकि कम-से-कम ₹50 करोड़ की संपत्ति मूल्य वाले लघु और मध्यम REIT (SM REIT) के लिये एक नियामक ढाँचा तैयार किया जा सके।
    • विशेष प्रयोजन वाहनों (SPV)के माध्यम से लघु और मध्यम REIT (SM REIT) अपने रियल एस्टेट परिसंपत्ति स्वामित्व के लिये अलग योजनाएँ स्थापित करने में सक्षम होंगे।
  • सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE) ढाँचे में लचीलापन:
  • NPO के लिये नामावली में बदलाव (Nomenclature Change) और सुविधाजनक उपाय:
    • सेबी ने सामाजिक क्षेत्र के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण व्यक्त करने के लिये नामकरण को "सामाजिक लेखा परीक्षक" से "सामाजिक प्रभाव मूल्यांकनकर्त्ता" में परिवर्तन को स्वीकृति प्रदान की है।
    • इस उपाय का उद्देश्य SSE में शामिल NPO को राहत प्रदान करना और सामाजिक प्रभाव पहल के लिये सेबी के समर्थन को सुदृढ़ करना है।

प्रमुख शब्दावली:

  • सूचकांक प्रदाता: यह वित्तीय सूचकांकों के मूल्यों, उन्हें बनाए रखने और गणना करने के लिये ज़िम्मेदार संस्था है। वित्तीय सूचकांक वित्तीय बाज़ारों के एक विशिष्ट खंड के प्रदर्शन का एक सांख्यिकीय माप है।
  • वैकल्पिक निवेश कोष (AIF): AIF से तात्पर्य भारत में स्थापित किसी भी निवेश से है, जो एक निजी तौर पर एकत्रित निवेश माध्यम है जो अपने निवेशकों के लाभ के लिये एक परिभाषित निवेश नीति के अनुसार निवेश करने के लिये परिष्कृत निवेशकों, चाहे वह भारतीय हो या विदेशी, से धन एकत्र करता है।
  • श्रेणियाँ:
    • श्रेणी I AIF: सामान्यतः ये स्टार्ट-अप या शुरुआती चरण के उद्यमों में निवेश करते हैं जिन्हें सरकार या नियामक सामाजिक या आर्थिक रूप से वांछनीय मानते हैं।
      • जैसे: उद्यम पूंजी निधि, अवसंरचना निधि।
    • श्रेणी II AIF: ये वे AIF हैं जो श्रेणी I और III में नहीं आते हैं और जो सेबी (वैकल्पिक निवेश निधि) विनियम, 2012 के नियमों के अनुसार दिन-प्रतिदिन की परिचालन आवश्यकताओं को पूरा करने के अतिरिक्त अन्य लाभ या ऋण नहीं लेते हैं।
      • जैसे: रियल एस्टेट फंड, निजी इक्विटी फंड।
    • श्रेणी III AIF:  ये AIF जो विविध या जटिल व्यापारिक रणनीतियों को नियोजित करते हैं और सूचीबद्ध या गैर-सूचीबद्ध संजातीय (derivatives) निवेश का लाभ उठा सकते हैं।
      • जैसे: हेज (hedge) फंड, सार्वजनिक इक्विटी फंड में निजी निवेश।
  • रियल एस्टेट निवेश ट्रस्ट (REIT): यह निवेश का वह साधन है, जो व्यक्तियों को संपत्ति का प्रत्यक्ष प्रबंधन या स्वामित्व किये बिना बड़े पैमाने पर रियल एस्टेट में निवेश करने और आय अर्जित करने की अनुमति प्रदान करता है।
    • REIT, रियल एस्टेट परिसंपत्तियों के विविध पोर्टफोलियो में निवेश करने के लिये कई निवेशकों से पूंजी एकत्र करता है, जिसमें आवासीय या वाणिज्यिक संपत्तियाँ, शॉपिंग सेंटर, कार्यालय, होटल आदि शामिल हैं।
  • सोशल स्टॉक एक्सचेंज (SSE): SSE मौजूदा स्टॉक एक्सचेंज के भीतर एक अलग खंड के रूप में कार्य करेगा और सामाजिक उद्यमों को अपने तंत्र के माध्यम से सामान्य जन से धन एकत्रित करने में सहायता करेगा।
    • यह उद्यमों के लिये अपनी सामाजिक पहलों हेतु वित्त प्राप्त करने, दृश्यता हासिल करने और धन एकत्रित करने और अधिक पारदर्शिता प्रदान करने के माध्यम के रूप में कार्य करेगा।

सेबी (SEBI):

  • परिचय:
    • सेबी भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के अनुसार 12 अप्रैल, 1992 को स्थापित एक वैधानिक निकाय (एक गैर-संवैधानिक निकाय जिसे संसद द्वारा स्थापित किया गया) है।
    • सेबी का मूल कार्य प्रतिभूतियों में निवेशकों के हितों की रक्षा करना तथा प्रतिभूति बाज़ार को बढ़ावा देना एवं विनियमित करना है।
    • सेबी का मुख्यालय मुंबई में स्थित है तथा क्षेत्रीय कार्यालय अहमदाबाद, कोलकाता, चेन्नई और दिल्ली में स्थित हैं।
  • पृष्ठभूमि:
    • सेबी के अस्तित्व में आने से पहले पूंजीगत मुद्दों का नियंत्रक (Controller of Capital Issues) नियामक प्राधिकरण था; इसे पूंजी मुद्दे (नियंत्रण) अधिनियम, 1947 के तहत अधिकार प्राप्त थे।
    • अप्रैल 1988 में भारत सरकार के एक प्रस्ताव के तहत सेबी का गठन भारत में पूंजी बाज़ार के नियामक के रूप में किया गया था।
    • प्रारंभ में सेबी एक गैर-वैधानिक निकाय था जिसे किसी भी तरह की वैधानिक शक्ति प्राप्त नहीं थी, लेकिन सेबी अधिनियम, 1992 के माध्यम से यह एक स्वायत्त निकाय बना और इसे वैधानिक शक्तियाँ प्रदान की गईं।
  • संरचना:
    • सेबी बोर्ड में एक अध्यक्ष और कई अन्य पूर्णकालिक और अंशकालिक सदस्य होते हैं।
    • सेबी समय-समय पर तत्कालीन महत्त्वपूर्ण मुद्दों की जाँच हेतु विभिन्न समितियाँ भी नियुक्त करता है।
    • इसके अतिरिक्त सेबी के निर्णय से असंतुष्ट संस्थाओं के हितों की रक्षा के लिये एक प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (Securities Appellate Tribunal- SAT) का गठन भी किया गया है।
      • SAT में एक पीठासीन अधिकारी और दो अन्य सदस्य शामिल होते हैं।
      • सेबी के पास वही शक्तियाँ हैं, जो एक दीवानी न्यायालय में निहित होती हैं। इसके अलावा यदि कोई व्यक्ति ‘प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण’ (SAT) के निर्णय या आदेश से सहमत नहीं है तो वह सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभूति आयोग संगठन (IOSCO): 

  • परिचय:
    • स्थापना: अप्रैल 1983
    • मुख्यालय: मेड्रिड, स्पेन
      • IOSCO का एशिया पैसिफिक हब (IOSCO Asia Pacific Hub) कुआलालंपुर, मलेशिया में स्थित है।
    • यह एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो विश्व के प्रतिभूति नियामकों को एक साथ लाता है,  IOSCO विश्व के 95% से अधिक प्रतिभूति बाज़ारों को कवर करता है तथा प्रतिभूति क्षेत्र के लिये वैश्विक मानक निर्धारक का कार्य करता है।
    • यह प्रतिभूति बाज़ारों की मज़बूती हेतु मानक स्थापित करने के लिये G20 समूह और वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) के साथ मिलकर कार्य करता है।
      • वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) एक अंतर्राष्ट्रीय निकाय है, जो वैश्विक वित्तीय प्रणाली के संदर्भ में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करता है।
    • IOSCO के प्रतिभूति विनियमन के सिद्धांतों और लक्ष्यों को FSB द्वारा तर्कसंगत वित्तीय प्रणालियों के लिये प्रमुख मानकों के रूप में समर्थन प्रदान किया गया है।
    • IOSCO की प्रवर्तन भूमिका का विस्तार ‘अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग मानक’ (IFRS) की व्याख्या के मामलों तक है, जहाँ IOSCO सदस्य एजेंसियों द्वारा की गई प्रवर्तन कार्रवाइयों का एक (गोपनीय) डेटाबेस रखा जाता है।
      • IFRS एक लेखा मानक है जिसे अंतर्राष्ट्रीय लेखा मानक बोर्ड (IASB) द्वारा वित्तीय जानकारी के प्रस्तुतीकरण में पारदर्शिता बढ़ाने के लिये एक सामान्य लेखांकन भाषा प्रदान करने के उद्देश्य से जारी किया गया है।
  • उद्देश्य:
    • निवेशकों की सुरक्षा, निष्पक्ष, कुशल और पारदर्शी बाज़ारों को बनाए रखने तथा प्रणालीगत जोखिमों को दूर करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त एवं विनियमन, निरीक्षण व प्रवर्तन के मानकों का पालन सुनिश्चित करने, लागू करने और बढ़ावा देने में सहयोग करना।
    • प्रतिभूति बाज़ारों की अखंडता में सूचना के आदान-प्रदान और कदाचार के खिलाफ प्रवर्तन में सहयोग तथा बाज़ारों एवं बाज़ार के मध्यस्थों की निगरानी में सहयोग के माध्यम से निवेशकों की सुरक्षा व विश्वास को बढ़ावा देने के लिये; और
    • बाज़ारों के विकास में सहायता, बाज़ार के बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने और उचित विनियमन को लागू करने के लिये अपने अनुभवों के आधार पर वैश्विक तथा क्षेत्रीय दोनों स्तरों पर जानकारी का आदान-प्रदान करने के लिये।
  • सदस्यता का महत्त्व: 
    • IOSCO, सदस्यों को साझा हितों के क्षेत्रों, वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिये मंच प्रदान करता है।
    • सेबी IOSCO का सदस्य है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. पंजीकृत विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा उन विदेशी निवेशकों, जो स्वयं को सीधे पंजीकृत कराए बिना भारतीय स्टॉक बाज़ार का हिस्सा बनना चाहते हैं, निम्नलिखित में से क्या जारी किया जाता है? (2019)

(a) जमा प्रमाण पत्र
(b) वाणिज्यिक पत्र
(c) वचन-पत्र (प्राॅमिसरी नोट)
(d) सहभागिता पत्र (पार्टिसिपेटरी नोट) 

उत्तर: (d)


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow