भारत का रक्षा आधुनिकीकरण: चुनौतियाँ और अवसर | 14 Oct 2024
प्रिलिम्स के लिये:रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO), अग्नि और पृथ्वी मिसाइल शृंखला, लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट, तेजस, सैन्य मामलों का विभाग (DMA), एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम, एस-400 वायु रक्षा प्रणाली, सुखोई-30 MKI विमान मेन्स के लिये:रक्षा क्षेत्र का आधुनिकीकरण और स्वदेशीकरण, रक्षा क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ और अवसर, भारत के रक्षा क्षेत्र में तकनीकी अवशोषण। |
वैश्विक शक्ति बनने की भारत की आकांक्षा के लिये अपने रक्षा बलों का आधुनिकीकरण करना आवश्यक है, जो रणनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं और अपने पड़ोस से सुरक्षा खतरों दोनों से प्रेरित है। चीन और पाकिस्तान के साथ अनसुलझे सीमा विवाद, जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद, उत्तर पूर्व में उग्रवाद, वामपंथी उग्रवाद (LWE) तथा शहरी आतंकवाद की बढ़ती चुनौती, ये सभी भारत की सुरक्षा चुनौतियों को और बढ़ा देते हैं। इन खतरों से प्रभावी ढंग से निपटने और आधुनिक युद्ध हेतु तैयार होने के लिये भारत को अपनी सेना को उन्नत अत्याधुनिक हथियारों से लैस करना होगा।
रक्षा आधुनिकीकरण क्या है?
- परिचय:
- रक्षा आधुनिकीकरण एक सतत् प्रक्रिया है जिसमें किसी देश के हथियारों, निगरानी प्रणालियों और प्रौद्योगिकी को अद्यतन करना शामिल है, ताकि खतरे की धारणा, परिचालन आवश्यकताओं एवं तकनीकी परिवर्तनों के आधार पर सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिये अपनी सेना को तैयार रखा जा सके।
- किसी भी राष्ट्र के लिये शत्रु देशों से अपनी रक्षा करने तथा आक्रमण को रोकने के लिये मज़बूत प्रतिरक्षा महत्त्वपूर्ण है।
- रक्षा आधुनिकीकरण की आवश्यकता:
- युद्ध क्षमताओं को बढ़ाना: युद्ध की तैयारी को बढ़ावा देने के लिये सशस्त्र बलों को अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी और हथियारों से लैस करना।
- परिचालन दक्षता में सुधार: सुरक्षा खतरों के लिये त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिये प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना।
- एकीकरण और संयुक्त संचालन: संयुक्त परिचालन प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये सेना, नौसेना और वायु सेना के बीच अधिक समन्वय तथा तालमेल को बढ़ावा देना।
- हाइब्रिड युद्ध का उदय: वर्तमान में रक्षा प्रौद्योगिकी में प्रगति के कारण इनफार्मेशन वारफेयर, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर, साइबर वारफेयर, अंतरिक्ष शस्त्रीकरण आदि जैसे नए खतरे सामने आए हैं, जिनसे निपटने के लिये उन्नत रक्षा उपकरणों की आवश्यकता है।
- इनफार्मेशन वारफेयर में विरोधी पर सूचना लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से किये जाने वाले ऑपरेशन शामिल होते हैं। इसमें विरोधी की जानकारी प्राप्त करने और उसका उपयोग करने के साथ-साथ अपनी जानकारी का प्रबंधन तथा सुरक्षा करना, उनकी सूचना प्रणालियों को बाधित करना व सूचना प्रवाह में बाधा डालना शामिल है।
- अंतरिक्ष का शस्त्रीकरण, पृथ्वी की कक्षा या सतह पर लक्ष्यों को नष्ट करने के लिये अंतरिक्ष में हथियारों को तैनात करने की प्रक्रिया है।
- भारत के रक्षा आधुनिकीकरण का फोकस:
- भारत का रक्षा आधुनिकीकरण "मेक इन इंडिया" के माध्यम से घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने, स्वदेशी विकास को प्राथमिकता देने के लिये खरीद नीतियों में सुधार, अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने, उन्नत प्रौद्योगिकी के लिये रणनीतिक साझेदारी बनाने और नेटवर्क-केंद्रित युद्ध को एकीकृत करने पर केंद्रित है।
नोट:
- भारत अपने रक्षा उपकरण मुख्य रूप से रूस से आयात करता है, जो वर्ष 2008 से मूल्य के हिसाब से इसके रक्षा आयात का लगभग 62% है। अन्य प्रमुख आपूर्तिकर्त्ताओं में फ्राँस (11%), संयुक्त राज्य अमेरिका (10%) और इज़राइल (7%) शामिल हैं।
भारत के रक्षा बलों के आधुनिकीकरण के लिये क्या पहल की गई हैं?
उन्नत हथियारों का अधिग्रहण:
- राफेल जेट: फ्राँस से राफेल लड़ाकू विमानों के शामिल होने से भारत की हवाई श्रेष्ठता बढ़ गई है।
- राफेल डसॉल्ट एविएशन द्वारा निर्मित एक ट्विन-जेट लड़ाकू विमान है तथा यह छोटी और लंबी दूरी के मिशनों को पूरा करने में सक्षम है।
- भारत ने वर्ष 2016 में फ्राँस से 36 राफेल जेट खरीदे थे और INS विक्रांत के लिये 26 राफेल मरीन लड़ाकू जेट खरीदने का सौदा चल रहा है ।
- S-400 वायु रक्षा प्रणाली: रूस से S-400 ट्रायम्फ का अधिग्रहण वायु रक्षा क्षमताओं को मज़बूत करता है।
- S-400 ट्रायम्फ एक गतिशील (Mobile) और सतह से हवा में मार करने वाली (Surface-to-Air Missile System- SAM) मिसाइल प्रणाली है, जो 400 किमी तक की रेंज, 30 किमी तक की ऊँचाई पर विभिन्न हवाई लक्ष्यों को भेदने और नष्ट करने में सक्षम है तथा एक साथ 36 लक्ष्यों को निशाना बनाने की क्षमता रखती है।
- भारत ने वर्ष 2018-19 में रूस के साथ पाँच S-400 मिसाइल स्क्वाड्रन के लिये एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये।
- अर्जुन Mk-1A टैंक: भारत ने स्वदेशी अर्जुन Mk-1A मुख्य युद्धक टैंकों के साथ अपनी बख्तरबंद/आर्मर्ड क्षमताओं को उन्नत किया है ।
- अर्जुन Mk-1A, अर्जुन Mk-1 मुख्य युद्धक टैंक (MBT) का उन्नत संस्करण है, जिसमें टैंक की मारक क्षमता, गतिशीलता और युद्ध क्षेत्र में बने रहने की सामर्थ्य में वृद्धि की गई है।
- अर्जुन Mk-1A के इंजन जर्मनी से आयात किये गए थे लेकिन अब भारत टैंकों के लिये स्वदेशी इंजन विकसित कर रहा है।
स्वदेशी विकास:
- LCA तेजस लड़ाकू विमान: स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) तेजस का विकास और प्रेरण।
- इसने पुराने हो चुके MiG-21 लड़ाकू विमानों का स्थान ले लिया।
- इसे एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (ADA) द्वारा विकसित किया गया है और इसका निर्माण राज्य के स्वामित्व वाली हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा किया जाता है।
- यह अपनी श्रेणी में सबसे हल्का, सबसे छोटा और टेललेस मल्टी-रोल सुपरसोनिक लड़ाकू विमान है जो हवा से हवा, हवा से सतह, सटीक-निर्देशित, हथियारों की एक शृंखला ले जाने के लिये डिज़ाइन किया गया। इसमें हवा से हवा में ईंधन भरने की क्षमता, 4000 किलोग्राम अधिकतम पेलोड क्षमता, मैक 1.8 की अधिकतम गति और विमान की मारक क्षमता 3,000 किमी. है।
- तेजस के विभिन्न प्रकार:
- तेजस ट्रेनर: वायु सेना के पायलटों को प्रशिक्षण देने के लिये 2-सीटर ऑपरेशनल कन्वर्जन ट्रेनर।
- LCA नेवी: भारतीय नौसेना के लिये ट्विन एवं सिंगल सीट वाहक-सक्षम।
- LCA तेजस नेवी MK2: यह LCA नेवी वेरिएंट का दूसरा चरण है।
- LCA तेजस Mk-1A: यह उच्च थ्रस्ट इंजन वाले LCA तेजस Mk-1 से बेहतर है।
- INS अरिहंत: यह भारत की पहली परमाणु ऊर्जा चालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी (SSBN) है जिसे वर्ष 2016 में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था। इसने पानी के नीचे की क्षमताओं को बढ़ाया है।
- मिसाइल प्रणाली: भारत ने अपनी मारक क्षमता में सुधार के लिये अग्नि, पृथ्वी और ब्रह्मोस जैसी स्वदेशी मिसाइल प्रणालियों को उन्नत किया है ।
- अग्नि शृंखला की बैलिस्टिक मिसाइलों की मारक क्षमता 700 किमी से 5,000 किमी तक है।
- पृथ्वी छोटी दूरी की सतह से सतह पर मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों की एक शृंखला है जिसकी मारक क्षमता 150 किमी से 500 किमी तक है।
- भारत-रूस संयुक्त उद्यम, ब्रह्मोस मिसाइल की मारक क्षमता 290 किमी. है और यह मैक 2.8 (ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना) की उच्च गति के साथ विश्व की सबसे तेज़ क्रूज़ मिसाइल है। यह ज़मीन, जहाज़, पनडुब्बी और हवा से लॉन्च किये जाने वाले वेरिएंट में उपलब्ध है।
प्रौद्योगिकी प्रगति:
- नेटवर्क-केंद्रित युद्ध : भारतीय सेना वास्तविक समय डेटा साझा करने और सेवाओं में समन्वित प्रतिक्रियाओं के लिये नेटवर्क-केंद्रित संचालन के एकीकरण के माध्यम से अपनी क्षमताओं को बढ़ा रही है। इसके तहत शुरू की गई परियोजनाएँ हैं:
- प्रोजेक्ट संजय: यह एकाधिक केंद्रों के साथ युद्धक्षेत्र निगरानी प्रणाली स्थापित करता है, जो आर्टिलरी कॉम्बैट कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम (ACCCS) से जुड़ी व्यापक स्थितिजन्य जागरूकता हेतु सेंसर को एकीकृत करता है।
- प्रोजेक्ट ई-सिटरेप: यह उत्तरी कमान से शुरू करते हुए स्थितिजन्य रिपोर्टिंग के लिये एक उद्यम-स्तरीय GIS प्लेटफॉर्म विकसित करता है।
- साइबर वारफेयर क्षमताएँ : महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा और साइबर खतरों का मुकाबला करने के लिये साइबर क्षमताओं को मज़बूत करना। इसमें निम्नलिखित पहल शामिल हैं:
- राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति: राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति का उद्देश्य साइबरस्पेस की सुरक्षा करना, साइबर हमलों को रोकने और उनका जवाब देने के लिये क्षमताओं का विकास करना तथा संस्थागत संरचनाओं, लोगों, प्रक्रियाओं एवं प्रौद्योगिकी में समन्वित प्रयासों के माध्यम से क्षति को न्यूनतम करना है।
- साइबर सुरक्षा कानून का उद्देश्य साइबर अपराधों से निपटने के लिये कानून बनाना तथा डेटा संरक्षण और घटना रिपोर्टिंग हेतु स्पष्ट कानूनी ढाँचा स्थापित करना है।
- भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया दल (CERT-In) एक केंद्रीय एजेंसी है जो साइबर घटनाओं पर सूचना संग्रहण, विश्लेषण और प्रसारण करने के लिये ज़िम्मेदार है।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता और रोबोटिक्स : रक्षा क्षेत्र में, AI-आधारित प्रौद्योगिकियों का उपयोग खुफिया, निगरानी और टोही (ISR) कार्यों के लिये किया जाता है।
- इन AI-आधारित प्रौद्योगिकियों का उपयोग प्रशिक्षण, निगरानी, रसद, साइबर सुरक्षा, मानव रहित हवाई वाहन (UAV) और स्वचालित घातक आयुध प्रणाली (Lethal autonomous weapons systems- LAWS) जैसे उन्नत सैन्य हथियारों सहित विभिन्न कार्यों के लिये किया जाता है।
- एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल (AEW&C) विमान: भारतीय वायुसेना ने नेत्र-I AEW&C विमान कार्यक्रम शुरू किया है, जो ब्राज़ील के एम्ब्रेयर विमान पर आधारित है।
- नेत्र-I AEW&C विमान कार्यक्रम DRDO की एक परियोजना है, जो भारतीय वायुसेना को एक महत्त्वपूर्ण निगरानी, कमान एवं नियंत्रण परिसंपत्ति प्रदान करती है, जिससे वायु और ज़मीन पर खतरों की निगरानी और उनका जवाब देने की इसकी क्षमता बढ़ जाती है।
- iDEX: रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार (iDEX) रक्षा उद्योग को आधुनिक बनाने के लिये एक सरकारी पहल है, जिसे अप्रैल 2018 में लॉन्च किया गया था।
- इसका उद्देश्य उद्योगों, MSME, स्टार्ट-अप्स, व्यक्तिगत नवप्रवर्तकों, अनुसंधान एवं विकास संस्थानों और शिक्षाविदों को शामिल करके रक्षा एवं एयरोस्पेस में नवाचार व प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देना है तथा उन्हें अनुसंधान एवं विकास हेतु वित्त पोषण और अन्य सहायता प्रदान करना है।
बुनियादी अवसंरचना विकास:
- सामरिक सड़क एवं रेल नेटवर्क : भारत सीमावर्ती क्षेत्रों में तेज़ी से सैन्य और उपकरण जुटाने के लिये सड़क एवं रेल नेटवर्क का निर्माण कर रहा है। इनमें निम्नलिखित पहल शामिल हैं:
- उन्नत वायुसैनिक अड्डे: विशेष रूप से पूर्वोत्तर राज्यों जैसे रणनीतिक स्थानों पर वायुसैनिक अड्डों का उन्नयन और निर्माण।
- उदाहरण: भारत चीन सीमा के पास दो प्रमुख एयरबेसों को उन्नत कर रहा है, एक पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में बागडोगरा एयर बेस और दूसरा असम के डिब्रूगढ़ में स्थित चबुआ एयर बेस।
रक्षा आधुनिकीकरण के लिये अन्य हालिया पहल क्या हैं?
- एकीकृत थिएटर कमांड: सामरिक भौगोलिक क्षेत्रों के लिये एक ही कमांडर के अधीन सेना, वायु सेना और नौसेना के एकीकृत नियंत्रण के लिये एक एकीकृत थियेटर कमांड का प्रस्ताव किया गया है ।
- यह संरचना कमांडर को परिचालन दक्षता बढ़ाने के लिये तीनों सेवाओं के संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की अनुमति देती है ।
- भर्ती: सेना ने सशस्त्र बलों में सेवा देने हेतु भारतीय युवाओं के लिये अग्निपथ योजना भर्ती योजना को मंजूरी दे दी है।
- रक्षा उत्पादन और निर्यात:
- आत्मनिर्भर भारत: सरकार घरेलू रक्षा उत्पादन बढ़ाने और आयात पर निर्भरता कम करने पर केंद्रित है।
- हाल ही में, भारत का स्वदेशी रक्षा उत्पादन वर्ष 2023-24 में 1.27 लाख करोड़ रुपए के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गया, जो वित्त वर्ष 2022-23 की तुलना में 16.7% की वृद्धि है।
- रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) 2020: रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP) रक्षा विनिर्माण में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को आकर्षित करने और विनिर्माण मूल्यों के स्वदेशीकरण पर केंद्रित है।
- रक्षा उपकरणों का निर्यात: भारत रक्षा निर्यातक बन रहा है, वियतनाम और फिलीपींस ब्रह्मोस मिसाइलों में रुचि रखते हैं तथा अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया तेजस विमान में रुचि रखते हैं।
- भारत का रक्षा निर्यात तेज़ी से बढ़ रहा है और वर्ष 2023-2024 में 2.63 बिलियन अमरीकी डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गया, जो वर्ष 2022-23 से 32.5% अधिक है।
- आत्मनिर्भर भारत: सरकार घरेलू रक्षा उत्पादन बढ़ाने और आयात पर निर्भरता कम करने पर केंद्रित है।
भारत में रक्षा आधुनिकीकरण की चुनौतियाँ क्या हैं?
- बजटीय बाधाएँ:
- भारत का रक्षा व्यय बढ़ रहा है, लेकिन यह प्रमुख शक्तियों के लिये वैश्विक औसत से कम है, जिससे उन्नत हथियारों के अधिग्रहण में कमी आई है। रक्षा, सामाजिक कल्याण और आर्थिक विकास के बीच प्रतिस्पर्धात्मक प्राथमिकताओं के परिणामस्वरूप अक्सर रक्षा आवंटन में समझौता होता है।
- SIPRI के अनुसार, भारत का सैन्य व्यय वर्ष 2023 में 83.6 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँच गया, जिससे यह वैश्विक स्तर पर चौथा सबसे बड़ा रक्षा व्यय करने वाला देश बन गया।
- रक्षा व्यय के मामले में अमेरिका 916 बिलियन अमेरिकी डॉलर (GDP का 3.4%) के साथ सबसे आगे है, इसके बाद चीन 296 बिलियन अमेरिकी डॉलर (GDP का 1.7%) और रूस 109 बिलियन अमेरिकी डॉलर (GDP का 5.9%) के साथ दूसरे स्थान पर है।
- भारत का रक्षा व्यय बढ़ रहा है, लेकिन यह प्रमुख शक्तियों के लिये वैश्विक औसत से कम है, जिससे उन्नत हथियारों के अधिग्रहण में कमी आई है। रक्षा, सामाजिक कल्याण और आर्थिक विकास के बीच प्रतिस्पर्धात्मक प्राथमिकताओं के परिणामस्वरूप अक्सर रक्षा आवंटन में समझौता होता है।
- धीमी निर्णय प्रक्रिया:
- भारत की रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया धीमी है, जिसमें योजना और क्रियान्वयन के बीच काफी देरी होती है। इस लंबी प्रक्रिया को अधिकतम 1-2 वर्ष तक कम करना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
- उत्पादन क्षमता में कमी:
- 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' जैसी सरकारी पहलों के बावजूद, घरेलू रक्षा उत्पादन क्षमता सशस्त्र बलों के बढ़ते खरीद बजट के साथ तालमेल नहीं रख पाई है।
- SIPRI के अनुसार , भारत वर्ष 2019-2023 के बीच विश्व का शीर्ष हथियार आयातक होगा, जिसमें वर्ष 2014-2018 और वर्ष 2019-2023 के बीच आयुध के आयात में 4.7% की वृद्धि हुई।
- आवश्यक हार्डवेयर के लिये आयात पर निर्भरता बहुत अधिक है, क्योंकि घरेलू उत्पादन का स्तर वार्षिक आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाता।
- आपूर्ति शृंखला व्यवधान:
- कोविड-19 महामारी के कारण वैश्विक स्तर पर सेमीकंडक्टर की कमी और भी बदतर हो गई है, जिससे आवश्यक सैन्य प्रौद्योगिकियों के उत्पादन में देरी हुई है।
- आपूर्ति शृंखलाओं में ये व्यवधान परियोजनाओं में बाधा डालते हैं और विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं पर निर्भरता बढ़ाते हैं, जिससे भारत के आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को चुनौती मिलती है।
- कोविड-19 महामारी के कारण वैश्विक स्तर पर सेमीकंडक्टर की कमी और भी बदतर हो गई है, जिससे आवश्यक सैन्य प्रौद्योगिकियों के उत्पादन में देरी हुई है।
- भू-राजनीतिक गतिशीलता:
- क्षेत्रीय तनाव, उभरती हुई शक्तियाँ, गैर-राज्यीय अभिकर्ता, तकनीकी प्रतिस्पर्धा और आपूर्ति शृंखला की कमज़ोरियों के कारण एक संवेदनशील एवं अनुकूलनीय सैन्य रणनीति की आवश्यकता है।
- ये कारक रक्षा नियोजन और संसाधन आवंटन को जटिल बना सकते हैं, जिसके लिये भारत को उभरते सुरक्षा परिवेश पर सावधानीपूर्वक विचार करना होगा तथा अपने आधुनिकीकरण प्रयासों को तद्नुसार समायोजित करना होगा।
आगे की राह:
- प्रोफेसर के. विजय राघवन समिति की सिफारिशों का कार्यान्वयन:
- प्रो. के. विजय राघवन समिति ने भारत में रक्षा अनुसंधान और विकास को बढ़ाने के लिये कई सिफारिशें प्रस्तावित कीं। इनमें शामिल हैं:
- रक्षा विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार विभाग: शैक्षणिक संस्थानों और स्टार्ट-अप्स के भीतर रक्षा अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिये एक टेक्नोक्रेट की अध्यक्षता में एक नया विभाग बनाया जाएगा।
- रक्षा प्रौद्योगिकी परिषद: भारत की रक्षा प्रौद्योगिकी रोडमैप निर्धारित करने के लिये प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय परिषद की स्थापना।
- राष्ट्रीय स्तर की प्रयोगशाला सुविधाएँ: केवल DRDO सुविधाओं पर निर्भर रहने के बजाय केंद्रीकृत अत्याधुनिक अनुसंधान प्रयोगशालाएँ स्थापित करना।
- प्रो. के. विजय राघवन समिति ने भारत में रक्षा अनुसंधान और विकास को बढ़ाने के लिये कई सिफारिशें प्रस्तावित कीं। इनमें शामिल हैं:
- विनियामक और खरीद प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना:
- विनियामक और खरीद प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के लिये दस्तावेज़ीकरण आवश्यकताओं को सरल बनाना तथा प्रसंस्करण समय को कम करना।
- निजी क्षेत्र को शामिल करना
- निजी क्षेत्र के लिये अवसर उत्पन्न करने और उनके निवेश की रक्षा करने की आवश्यकता है। आयुध प्रणाली विकास की उच्च लागत को देखते हुए, सरकारी नीतियों में स्पष्टता और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) के लिये समर्थन निजी कंपनियों के लिये वित्तीय जोखिम को कम करने हेतु आवश्यक है।
- वर्ष 2023-24 में रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र का योगदान 2022-23 में 19% से बढ़कर 20.8% हो गया, जिसे और बढ़ाने की आवश्यकता है।
- विशेषज्ञ अधिकारी संवर्ग का सृजन: नागरिक-सैन्य एकीकरण के माध्यम से विशिष्ट प्रशिक्षण और शिक्षा प्रदान करके विशेष अधिकारियों एवं साइबर विशेषज्ञों जैसे विशेष संवर्गों का सृजन।
- रक्षा अर्थव्यवस्था में निवेश:
- रक्षा क्षेत्र एक लाभदायक उद्यम हो सकता है। आधुनिकीकरण और आयात में कमी करके भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद को 2-3% तक बढ़ा सकता है तथा लाखों रोज़गार उत्पन्न कर सकता है, आर्थिक विकास एवं आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दे सकता है और साथ ही स्वयं को रक्षा निर्यातक के रूप में स्थापित कर सकता है।
- बंदरगाह अवसंरचना का आधुनिकीकरण:
- कुशल समुद्री परिचालन के लिये बंदरगाह सुविधाओं को बढ़ाना महत्त्वपूर्ण है। सागरमाला परियोजना जैसी पहलों का उद्देश्य इस बुनियादी अवसंरचना को पुनर्जीवित करना है।
- समुद्री प्रणाली को एकीकृत करना:
- समुद्री सुरक्षा के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें व्यापारियों, मत्स्य पालन और व्यापार के बीच नौसेना का समर्थन एवं समन्वय शामिल हो। एक केंद्रीय समन्वय निकाय की स्थापना से इस एकीकरण को बढ़ावा मिलेगा।
- नीली अर्थव्यवस्था का दोहन:
- भारत को नीली अर्थव्यवस्था का पूरा लाभ उठाना चाहिये, राष्ट्रीय हितों को छोटे पड़ोसी देशों के प्रति ज़िम्मेदारियों के साथ संतुलित करना चाहिये। मज़बूत समुद्री औद्योगिक बुनियादी अवसंरचना का विकास करने से भारत को अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ अपने समुद्री साझेदारों का समर्थन करने में भी सहायता मिलेगी।
रक्षा उपकरणों के घरेलू उत्पादन से संबंधित पहल
- घरेलू क्षेत्र के लिये पूंजी अधिग्रहण बजट (CAB) में वृद्धि
- रक्षा औद्योगिक गलियारे
- आयुध निर्माणी बोर्डों का निगमीकरण
- डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज
- सृजन पोर्टल
- रक्षा उत्पादन और निर्यात प्रोत्साहन नीति 2020 का मसौदा
- रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार (iDEX)
- मिशन रक्षा ज्ञान शक्ति
निष्कर्ष
जैसे-जैसे देश महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक परिवर्तनों के जवाब में सैन्य आधुनिकीकरण की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, युद्ध में उन्नत तकनीकें महत्त्वपूर्ण होती जा रही हैं। भविष्य के युद्धक्षेत्र काफी हद तक तकनीक से प्रभावित होंगे, जिसमें तकनीकी श्रेष्ठता भविष्य के संघर्षों के परिणामों को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इसलिये, तकनीकी आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता देना आवश्यक है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. कभी-कभी समाचार में उल्लिखित ‘टर्मिनल हाई ऑल्टिट्यूड एरिया डिफेंस (टी.एच.ए.ए.डी.)’ क्या है? (2018) (a) इज़रायल की एक राडार प्रणाली उत्तर: c प्रश्न. हिंद महासागर नौसैनिक परिसंवाद (सिम्पोज़ियम) (IONS) के संबंध में निम्नलिखित पर विचार कीजिए: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) प्रश्न: 'INS अस्रधारिणी' का, जिसका हाल ही में समाचारों में उल्लेख हुआ था, निम्नलिखित में से कौन-सा सर्वोत्तम वर्णन है? (2016) (a) उभयचर युद्धपोत उत्तर: (c) मेन्स:Q. S-400 हवाई रक्षा प्रणाली, विश्व में इस समय उपलब्ध अन्य किसी प्रणाली की तुलना में किस प्रकार से तकनीकी रूप से श्रेष्ठ है ? (2021) |