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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

निर्देशित ऊर्जा व हाइपरसोनिक हथियार

  • 25 Mar 2023
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

निर्देशित ऊर्जा हथियार (DEWs) और हाइपरसोनिक हथियार की विशेषताएँ

मेन्स के लिये:

निर्देशित ऊर्जा व हाइपरसोनिक हथियार का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल ने वांछित रेंज तथा सटीकता प्राप्त करने के लिये निर्देशित ऊर्जा हथियारों (Directed Energy Weapons- DEWs) और हाइपरसोनिक हथियारों के विकास को बढ़ावा देने तथा उन्हें अपने हवाई प्रणालियों में एकीकृत करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

निर्देशित ऊर्जा व हाइपरसोनिक हथियार:

  • परिचय:
    • आम भाषा में निर्देशित-ऊर्जा हथियार लेज़र, माइक्रोवेव अथवा कण बीम के माध्यम से केंद्रित ऊर्जा का उपयोग करके अपने लक्ष्य को नष्ट करता है।
      • उदाहरण- माइक्रोवेव हथियार, लेज़र हथियार, ड्रोन रक्षा प्रणाली आदि।
    • हाइपरसोनिक हथियार वह होता है जो ध्वनि की गति से पाँच से दस गुना (मैक 5 से मैक 10 तक) गति से अपने लक्ष्य पर वार कर सकता है।
  • पारंपरिक गोला-बारूद की तुलना में DEWs के लाभ:
    • DEWs में (विशेष रूप से लेज़र में) उच्च परिशुद्धता, प्रति भेदन कम लागत, लॉजिस्टिक लाभ और ट्रैक न किये जाने (Stealth Capacity) की अधिक क्षमता होती है।
    • यह प्रकाश की गति से घातक बल (लगभग 300,000 किलोमीटर प्रति सेकंड) संचारित करता है।
    • वायुमंडलीय कर्षण और गुरुत्वाकर्षण के संकुचित प्रभाव का इसके वेग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
    • लक्ष्यों के विरुद्ध उपयोग की गई ऊर्जा के प्रकार और तीव्रता को अलग-अलग करके उनके प्रभावों को अनुकूलित किया जा सकता है।
  • कमियाँ:
    • सीमित मारक क्षमता: अधिकांश DEWs की सीमित मारक क्षमता होती है और लक्ष्य एवं हथियार के बीच की दूरी बढ़ने पर उनकी प्रभावशीलता तेज़ी से घट जाती है
    • उच्च लागत: DEWs और हाइपरसोनिक हथियारों का विकास एवं निर्माण महँगा हो सकता है, साथ ही कुछ स्थितियों में उनकी प्रभावशीलता की तुलना में लागत को उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
    • प्रत्युपाय: DEWs को चिंतनशील सामग्रियों या अन्य प्रत्युपायों (Countermeasures) का उपयोग करके प्रत्युत्तर दिया जा सकता है, जो उनकी प्रभावशीलता को कम कर सकते हैं।
    • हथियारों की प्रतिस्पर्द्धा: एक देश द्वारा हाइपरसोनिक हथियारों और DEWs के विकास से हथियारों की प्रतिस्पर्द्धा शुरू हो सकती है, क्योंकि अन्य देश प्रतिक्रिया में अपने स्वयं के हाइपरसोनिक हथियार विकसित करना चाहते हैं। इससे तनाव एवं अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • भारत के लिये महत्त्व:
    • एयरोस्पेस उद्योग में इन प्रौद्योगिकियों का अनुप्रयोग युद्ध लड़ने के तरीके को बदल सकता है जिससे भारत को भविष्य के युद्ध लड़ने और जीतने के लिये आवश्यक अत्याधुनिक प्लेटफॉर्म, हथियारों, सेंसर और नेटवर्क का उत्पादन करने में सक्षम बनाया जा सकता है।
    • DEWs और हाइपरसोनिक हथियार भारत की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाकर चीन, पाकिस्तान जैसे शत्रु राष्ट्रों के खिलाफ एक निवारक के रूप में कार्य कर सकते हैं।
  • DEWs वाले अन्य देश:

भारत की DEWs और हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी परियोजनाएँ:

  • 1KW लेज़र हथियार: DRDO ने 1KW लेज़र हथियार का परीक्षण किया है, जो 250 मीटर दूर लक्ष्य को भेद सकता है।
  • दिशात्मक रूप से अप्रतिबंधित रे-गन ऐरे (DURGA) II: DRDO ने एक परियोजना DURGA II शुरू की है, जो 100 किलोवाट का हल्का DEW है।
  • हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी विकास: भारत में हाइपरसोनिक तकनीक का विकास और परीक्षण DRDO एवं ISRO दोनों द्वारा किया गया है।

आगे की राह

  • रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की अवधारणा के लिये भारतीय रक्षा प्रोद्योगिकी का उपयोग कर स्वदेशी डिज़ाइन एवं विकास क्षमताओं को विकसित करना शामिल होना चाहिये।
  • हमारी रक्षा क्षमता को बढ़ाने के लिये रक्षा अनुसंधान एवं विकास में निवेश बढ़ाने की ज़रूरत है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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