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स्टेट पी.सी.एस.

  • 27 Jun 2024
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उत्तर प्रदेश Switch to English

UP-प्रगति त्वरक कार्यक्रम (UPPAP)

चर्चा में क्यों?

बंगलूरु स्थित कृषि फर्म किसानक्राफ्ट लिमिटेड, उत्तर प्रदेश में धान के प्रत्यक्ष बीजारोपण (DSR) को बढ़ावा देने के लिये विश्व बैंक के जल संसाधन समूह (WRG) की न्यून मीथेन चावल परियोजना में शामिल हो गई है।

मुख्य बिंदु:

  • कंपनी ने बहु-स्थानीय परीक्षणों के लिये अपनी DSR बीज किस्मों को उपलब्ध कराने हेतु बीज कंपनियों डेल्टा एग्री जेनेटिक्स और सवाना सीड्स के साथ साझेदारी की
  • इसने DSR कृषि पद्धति के लिये उपयुक्त 15 नई धान की किस्में विकसित की हैं, जिसमें कम जल की आवश्यकता होती है।
  • इन किस्मों की उपज के लिये DSR तकनीक में पडलिंग (मृदा को दलदली करना) करने की आवश्यकता नहीं होती, जिससे मीथेन उत्सर्जन कम हो जाता है और जल की आवश्यकता भी आधी हो जाती है इसके अतिरिक्त कीटनाशकों एवं उर्वरकों का भी प्रयोग कम करना होता है
  • कंपनी रायबरेली, सीतापुर, प्रतापगढ़, बाराबंकी, उन्नाव और अयोध्या ज़िलों में पायलट प्रोजेक्ट चलाएगी।
  • चावल भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है, जिसकी कृषि के लिये स्वच्छ जल का सबसे बड़ा हिस्सा प्रयुक्त होता है तथा सिंचित भूमि के 28% भाग पर इसकी हिस्सेदारी है।
  • स्वच्छ जल की बढ़ती कमी और मृदा अपरदन के कारण, ड्राई डायरेक्ट सीडेड राइस (ड्राई-DSR) जैसी नई प्रौद्योगिकियाँ अधिक लोकप्रिय हो रही हैं।

यूपी-प्रगति (UP-PRAGATI)

  • उत्तर प्रदेश ने जल संसाधन समूह- 2030, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और निजी क्षेत्र के सहयोग से यूपी-प्रगति नामक एक त्वरक कार्यक्रम शुरू किया है।
  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य पूरे राज्य में आय को बढ़ावा देने के लिये तकनीकी और संस्थागत नवाचारों के माध्यम से कृषि में जल-उपयोग दक्षता एवं कम कार्बन प्रथाओं को बढ़ावा देना है।
  • यूपी प्रगति कार्यक्रम का उद्देश्य हितधारकों के सहयोग से आगामी पाँच वर्षों में 250,000 हेक्टेयर में पूरे राज्य में चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण (DSR) को बढ़ावा देना है।

चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण (Direct Seeded Rice- DSR)

  • चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण (DSR) जिसे 'बीज बिखेरना तकनीक (Broadcasting Seed Technique)' के रूप में भी जाना जाता है, धान की बुवाई की एक जल बचत विधि है।
  • इस विधि में बीजों को सीधे खेतों में बुवाई की जाती है। नर्सरी से जलमग्न खेतों में धान की रोपाई की पारंपरिक जल-गहन विधि के विपरीत यह विधि भू-जल की बचत करती है।
  • इस पद्धति में कोई नर्सरी तैयारी या प्रत्यारोपण शामिल नहीं है।
  • किसानों को केवल अपनी भूमि को समतल करना होता है और बुवाई से पहले सिंचाई करनी होती


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GST रिटर्न में उत्तर प्रदेश सबसे आगे

चर्चा में क्यों?

वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क (Goods and Services Tax Network- GSTN) के अनुसार, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और महाराष्ट्र मासिक रूप से वस्तु एवं सेवा कर (GST) रिटर्न में अग्रणी हैं, जो उनकी आर्थिक क्षमता को दर्शाता है।

  • GST एक मूल्य वर्द्धित कर है जो घरेलू उपभोग के लिये बेची जाने वाली अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं पर लगाया जाता है।

मुख्य बिंदु:

  • अप्रैल 2024 में देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश ने अपने मासिक लेन-देन (GSTR-3B के रूप में) का सारांश देते हुए 908,900 से अधिक GST रिटर्न की सूचना दी।
    • औद्योगिक तमिलनाडु ने 880,200 से अधिक GST रिटर्न दाखिल किये।
    • महाराष्ट्र 798,600 से अधिक GST रिटर्न के साथ तीसरे स्थान पर रहा।
  • मासिक रिटर्न दाखिल करने से राज्य में व्यावसायिक गतिविधि, अनुपालन स्तर, राजस्व क्षमता, कर प्रशासन दक्षता और वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग प्रतिबिंबित होती है।

वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क (GSTN)

  • GSTN भारत में GST के लिये एक अप्रत्यक्ष कराधान मंच प्रदान करता है।
  • यह प्लेटफॉर्म करदाताओं को रिटर्न दाखिल करने, भुगतान करने और अप्रत्यक्ष कर नियमों का अनुपालन करने में मदद करता है।
  • यह केंद्र और राज्य सरकारों, करदाताओं तथा अन्य हितधारकों को सूचना प्रौद्योगिकी बुनियादी ढाँचा एवं सेवाएँ प्रदान करता है।
  • GSTN एक सरकारी स्वामित्व और सीमित देनदारी वाली गैर-लाभकारी कंपनी है। इसे वर्ष 2013 में कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 (अब कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 8) के तहत शामिल किया गया था।
  • इसमें एक अध्यक्ष होता है जिसकी नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती है।
    • GSTN बोर्ड ने जून 2022 में आयोजित अपनी 49वीं बोर्ड बैठक में इसे सरकारी कंपनी में बदलने की मंज़ूरी दी, अतः इसमें 100% हिस्सेदारी सरकार (50% केंद्र सरकार के साथ और 50% राज्य सरकारों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के साथ संयुक्त रूप से) के पास होगी

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रामपुर: चाकुओं का शहर

चर्चा में क्यों?

उत्तर प्रदेश के रामपुर ज़िले को रामपुरी चाकू उद्योग के कारण "चाकुओं का शहर" के रूप में जाना जाता है, जो 18वीं शताब्दी से ही अपने उत्कृष्ट चाकुओं के निर्माण के लिये प्रसिद्ध एक स्थापित ऐतिहासिक गढ़ है।

मुख्य बिंदु:

  • रामपुरी चाकू शहर की शिल्पकला का प्रतीक और शाही संरक्षण का प्रतिबिंब माने जाते हैं, जिसमें कौशल तथा परिशुद्धता को महत्त्व दिया जाता था।
    • उच्च गुणवत्ता वाले स्टील से बने ब्लेड को हड्डी, सींग और हाथीदाँत सहित विभिन्न सामग्रियों से तैयार किये गए हैंडल द्वारा तैयार किया जाता था
    • हैंडल प्रायः अलंकृत नक्काशी से सुशोभित होते थे, जिसके कारण प्रत्येक चाकू कला की एक बेहतरीन कृति होती थी
  • 1990 के दशक के मध्य में उत्तर प्रदेश ने 4.5 इंच से अधिक लंबे ब्लेड वाले चाकुओं के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया था। हिंसा को कम करने के उद्देश्य से किये गए इस नियमन ने रामपुर के पारंपरिक चाकू कारीगरी/निर्माण उद्योग को प्रभावित किया था।
    • हाल के दशकों में नियामक चुनौतियों के बावजूद भी यहाँ के कारीगरों ने कानूनी अनुकूलन के साथ चाकू कारीगरी की तीक्ष्णता और जटिल शिल्प कौशल को बनाए रखते हुए अपनी विरासत को कायम रखा है।
  • यह उपाधि रामपुर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, स्थिति स्थापकता और शिल्प को संरक्षित करने की प्रतिबद्धता का सम्मान करती है, जिसने इसकी पहचान बनाई है तथा विश्व भर के चाकू प्रेमियों को आकर्षित किया है।

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सुचेता कृपलानी की जयंती

चर्चा में क्यों?

स्वतंत्रता आंदोलन और भारतीय राजनीति में अग्रणी व्यक्तित्त्व के रूप में उनके उल्लेखनीय योगदान की स्मृति में 25 जून, 2024 को सुचेता कृपलानी की जयंती मनाई जाएगी।

मुख्य बिंदु:

  • परिचय:
    • वह एक भारतीय राजनीतिज्ञ और स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिनका जन्म 25 जून, 1908 को हरियाणा के अंबाला ज़िले में हुआ था
    • वह उन 15 महिलाओं में से एक थीं जिन्हें वर्ष 1946 में भारत के संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिये गठित नई भारतीय संविधान सभा के सदस्य के रूप में चुना गया था।
  • प्रमुख योगदान:
    • सुचेता कृपलानी भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सबसे आगे आईं और वर्ष 1944 में उनकी भागीदारी के लिये अंग्रेज़ों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। 
    • वह 1940 के दशक के दौरान स्वतंत्रता आंदोलन के लिये महिला विंग अखिल भारतीय महिला कॉन्ग्रेस (AIMC) की संस्थापक थीं
    • उन्होंने वर्ष 1946 में नोआखली में शरणार्थियों के पुनर्वास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई
    • वह भारत में पहली महिला मुख्यमंत्री (उत्तर प्रदेश, 1963) बनीं।

भारत छोड़ो आंदोलन

  • 8 अगस्त, 1942 को महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का आह्वान किया और मुंबई में अखिल भारतीय काॅन्ग्रेस कमेटी के सत्र में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया।
  • गांधीजी ने ग्वालिया टैंक मैदान में अपने भाषण में "करो या मरो" का आह्वान किया, जिसे अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से जाना जाता है।
  • स्वतंत्रता आंदोलन की 'ग्रैंड ओल्ड लेडी' के रूप में लोकप्रिय अरुणा आसफ अली को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मुंबई के ग्वालिया टैंक मैदान में भारतीय ध्वज फहराने के लिये जाना जाता है।
  • 'भारत छोड़ो' का नारा एक समाजवादी और ट्रेड यूनियनवादी यूसुफ मेहरली द्वारा गढ़ा गया था, जिन्होंने मुंबई के मेयर के रूप में भी काम किया था।
    • मेहरअली ने "साइमन गो बैक" का नारा भी गढ़ा था।


मध्य प्रदेश Switch to English

मध्य प्रदेश: भारत का बाघ राज्य

चर्चा में क्यों?

देश में सबसे ज़्यादा बाघ मध्य प्रदेश में हैं। देश के वनों में मौजूद लगभग 3,800 बाघों में से 785 मध्य प्रदेश में हैं।

वर्ष 2011 से 2018 के बीच थोड़े समय के लिये कर्नाटक ने बाघों की सर्वाधिक संख्या के मामले में मध्य प्रदेश को पीछे छोड़ दिया था।

मुख्य बिंदु:

  • वर्ष 2022 की बाघ गणना के अनुसार देश में बाघों की संख्या 3,682 से 3,925 के बीच है, जिसमें से मध्य प्रदेश 785 बाघों के साथ शीर्ष पर है, उसके बाद क्रमशः कर्नाटक (563), उत्तराखंड (560) और महाराष्ट्र (444) का स्थान है।
  • उत्तराखंड का जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान 260 बाघों के साथ पूरे देश के सभी बाघ अभयारण्यों में शीर्ष पर है।
  • वन अधिकारियों के अलावा जनजातियों और वनवासियों सहित हितधारकों द्वारा किये गए प्रयासों से भी उल्लेखनीय प्रगति हुई है, जिससे बिग कैट प्रजातियों के संरक्षण में सहायता मिली है।
  • पहली बाघ गणना वर्ष 1972 में की गई थी, जिसमें बाघों की संख्या 1,827 दर्ज की गई थी।
  • भारत की बाघ संख्या को आवास की कमी, अवैध शिकार और मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारण गंभीर खतरों का सामना करना पड़ा है
  • 20वीं सदी के प्रारंभ में भारत में बाघों की संख्या अच्छी थी लेकिन 1970 के दशक तक उनकी संख्या में चिंताजनक रूप से कमी आ गई थी।
  • इसकी अनुक्रिया में सरकार ने वर्ष 1973 में 'प्रोजेक्ट टाइगर' शुरू किया, जिसका उद्देश्य बाघों के लिये सुरक्षित आवास उपलब्ध कराने और शिकार गतिविधियों पर अंकुश लगाने हेतु पूरे देश में बाघ अभयारण्यों का एक नेटवर्क बनाना था।
  • भारत के वनों का पारिस्थितिक संतुलन और जैवविविधता बनाए रखना भी परियोजना का एक उद्देश्य था।

बाघ अभ्यारण्य/टाइगर 


झारखंड Switch to English

भूमिगत कोयला गैसीकरण हेतु भारत की पहली पायलट परियोजना

चर्चा में क्यों?

कोयला मंत्रालय, ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (ECL) झारखंड के जामताड़ा ज़िले में कास्ता कोयला ब्लॉक में भूमिगत कोयला गैसीकरण (UCG) के लिये एक पायलट परियोजना का संचालन कर रहा है।

मुख्य बिंदु:

  • इसका उद्देश्य कोयला गैसीकरण का प्रयोग करके कोयला उद्योग में क्रांति लाना है, ताकि इसे मीथेन, हाइड्रोजन, कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्बन डाइ-ऑक्साइड जैसी मूल्यवान गैसों में परिवर्तित किया जा सके।
    • इन गैसों का उपयोग सिंथेटिक प्राकृतिक गैस, ईंधन, उर्वरक, विस्फोटक और अन्य औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिये रासायनिक फीडस्टॉक के उत्पादन में किया जा सकता है।
  • कोयला मंत्रालय कोयला गैसीकरण परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिये पूरी तरह से प्रतिबद्ध है तथा कोयले को विभिन्न उच्च मूल्य वाले रासायनिक उत्पादों में परिवर्तित करने की उनकी क्षमता का अभिनिर्धारण करता है।
    • पहले चरण में बोरहोल ड्रिलिंग और कोर परीक्षण के माध्यम से तकनीकी व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार करना शामिल है। अगले चरण में पायलट स्तर पर कोयला गैसीकरण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
  • इस पायलट परियोजना के सफल क्रियान्वयन से भारत के ऊर्जा क्षेत्र के लिये परिवर्तनकारी अवसर उत्पन्न होने की उम्मीद है।  यह देश के कोयला संसाधनों के दीर्घकालिक और कुशल उपयोग को प्रदर्शित करेगा।

 कोयला गैसीकरण

  • प्रक्रिया: कोयला गैसीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कोयले को वायु, ऑक्सीजन, भाप या कार्बन डाइ-ऑक्साइड के साथ आंशिक रूप से ऑक्सीकृत करके ईंधन गैस बनाया जाता है।
    • इस गैस का प्रयोग ऊर्जा प्राप्त करने के लिये पाइप्ड प्राकृतिक गैस, मीथेन और अन्य गैसों के स्थान पर किया जाता है।
    • कोयले का इन-सीटू/स्व-स्थानीय गैसीकरण या भूमिगत कोयला गैसीकरण (UCG) वह तकनीक है जिसमें कोयले को भू-तल में रहते हुए ही गैस में परिवर्तित कर दिया जाता है और फिर कुओं के माध्यम से उसका निष्कर्षण किया जाता है।
  • सिंथेटिक गैस का उत्पादन: यह सिंथेटिक गैस का उत्पादन करता है जो मुख्य रूप से मीथेन (CH4), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), हाइड्रोजन (H2), कार्बन डाइ-ऑक्साइड (CO2) और जल वाष्प (H2O) का मिश्रण है।
    • सिंथेटिक गैस का प्रयोग विभिन्न प्रकार के उर्वरकों, ईंधनों, विलायकों और सिंथेटिक सामग्रियों के उत्पादन में किया जा सकता है।


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