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कृषि

चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण

  • 06 May 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये: चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण (DSR), चावल।

मेन्स के लिये: सिंचाई, डीएसआर।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पंजाब सरकार ने चावल के प्रत्यक्ष बीजारोपण (DSR) का विकल्प चुनने वाले किसानों के लिये प्रति एकड़ 1,500 रुपए प्रोत्साहन राशि की घोषणा की है।

  • राज्य में वर्ष 2021 में कुल धान या चावल क्षेत्र का 18% (5.62 लाख हेक्टेयर) DSR के तहत था, जबकि सरकार ने इसके तहत 10 लाख हेक्टेयर क्षेत्र लाने का लक्ष्य रखा है।

DSR और धान की सामान्य रोपाई में अंतर:

  • धान की रोपाई:
    • किसान धान की रोपाई में पहले धान के बीज बोकर नर्सरी तैयार करते हैं उसके बाद पौधों के रूप में उगाया जाता है।
    • नर्सरी वाला क्षेत्र रोपाई किये जाने वाले क्षेत्र का 5-10% होता है।
    • फिर इन पौधों को 25-35 दिन बाद उखाड़कर जल से भरे खेत में लगा दिया जाता है।
  • चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण (DRS):
    • DSR में पहले से अंकुरित बीजों को ट्रैक्टर से चलने वाली मशीन द्वारा सीधे खेत में ड्रिल किया जाता है।
    • इस पद्धति में कोई नर्सरी तैयारी या प्रत्यारोपण शामिल नहीं है।
    • इसमें किसानों को केवल अपनी ज़मीन को समतल करना और बुवाई से पहले सिंचाई करनी होती है।

DSR की आवश्यकता:

  • धान की रोपाई के दौरान पहले तीन हफ्तों में जल की उचित मात्रा को सुनिश्चित करने हेतु दैनिक रूप से पानी देना पड़ता है।
    • DSR के तहत पहली सिंचाई (बुवाई से पहले के अलावा) बुवाई के 21 दिन बाद ही आवश्यक है।
    • पंजाब कृषि विभाग के पिछले खरीफ सीज़न (2021-22) के आंँकड़ों के मुताबिक, 31.45 लाख हेक्टेयर में बासमती धान की बुआई हुई थी।
  • अध्ययनों के अनुसार, धान की किस्म के आधार पर एक किलो चावल उत्पादन के लिये लगभग 3,600 लीटर से 4,125 लीटर पानी की आवश्यकता होती है।
    • लंबी अवधि की किस्मों के लिये अधिक पानी की आवश्यकता होती है।
  • पंजाब में 32% क्षेत्र लंबी अवधि (लगभग 158 दिन) के धान की किस्मों के अंतर्गत आता है, और शेष धान उन किस्मों के अंतर्गत आता है, जिसे विकसित होने में 120 से 140 दिन लगते हैं।

DSR कितना पानी बचा सकता है:

  • एक विश्लेषण के मुताबिक, डीएसआर तकनीक से 15 से 20 प्रतिशत पानी बचाने में मदद मिल सकती है।
    • कुछ मामलों में पानी की बचत 22% से 23% तक की जा सकती है।
  • DSR के साथ पारंपरिक तरीकों में 25 से 27 बार सिंचाई के मुकाबले15-18 बार ही सिंचाई की आवश्यकता होती है।
  • अगर पूरी चावल की फसल को DSR तकनीक के दायरे में लाया जाए तो हर साल 810 से 1,080 अरब लीटर पानी बचाया जा सकता है।

DSR तकनीक के संभावित लाभ:

  • श्रमिकों की कम संख्या की आवश्यकता: DSR श्रम की कमी की समस्याओं को हल कर सकता है क्योंकि पारंपरिक पद्धति की तरह इसमें धान की नर्सरी की आवश्यकता नहीं होती है और 30 दिन पुरानी धान की नर्सरी का रोपण खेत में किया जा सकता है।
  • भूजल के लिये मार्ग: यह भूजल पुनर्भरण के लिये मार्ग प्रदान करता है क्योंकि यह मिट्टी की परत के नीचे कठोर परत के विकास को रोकता है, जैसा कि पोखर प्रत्यारोपण विधि में होता है।
    • यह पोखर प्रतिरोपित फसल की तुलना में 7-10 दिन पहले पक जाती है, इसलिये धान की पराली के प्रबंधन के लिये अधिक समय मिल जाता है।
  • उपज में वृद्धि: अनुसंधान परीक्षणों और किसानों के क्षेत्र सर्वेक्षण के परिणामों के अनुसार, इस तकनीक से प्रति एकड़ एक से दो क्विंटल अधिक पैदावार हो रही है।

DSR से हानि:

  • उपयुक्‍तता: धान की सीधी बुआई में यह सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है, किसानों को इसे हल्की संरचना वाली मृदा (Light Textured Soil) में नहीं बोना चाहिये क्योंकि यह तकनीक मध्यम से जटिल संरचना वाली मृदा के लिये उपयुक्त है जिसमें रेतीली दोमट, दोमट मृदा तथा गाद दोमट मृदा शामिल हैं तथा जो राज्य के लगभग 80% क्षेत्र में पाई जाती है।
    • उन खेतों में इस तकनीक का प्रयोग करने से बचने की कोशिश की जाती है जिनमें पिछले वर्ष धान (जैसे कपास, मक्का, गन्ना) के अलावा अन्य फसलें उगाई गई हो क्योंकि उस मृदा में इस तकनीक (DSR) के उपयोग से मृदा में लोहे की कमी और खरपतवार की समस्या उत्पन्न होने की संभावना है।
  • लेज़र और लेवलिंग की अनिवार्यता: खेत का स्तर लेज़र द्वारा एक समान होना चाहिये।
  • शाकनाशी का प्रयोग: शाकनाशी का छिड़काव बुवाई और पहली सिंचाई के साथ-साथ करना चाहिये।

चावल:

  • चावल भारत की अधिकांश आबादी का मुख्य भोजन है।
  • यह एक खरीफ की फसल है जिसे उगाने के लिये उच्च तापमान (25°C से अधिक तापमान) तथा उच्च आर्द्रता (100 सेमी. से अधिक वर्षा) की आवश्यकता होती है।
    • कम वर्षा वाले क्षेत्रों में धान की फसल के लिये सिंचाई की आवश्यकता होती है।
  • दक्षिणी राज्यों और पश्चिम बंगाल में जलवायु परिस्थितियों की अनुकूलता के कारण चावल की दो या तीन फसलों का उत्पादन किया जाता है।
    • पश्चिम बंगाल के किसान चावल की तीन फसलों का उत्पादन करते हैं जिन्हें 'औस', 'अमन और 'बोरो' कहा जाता है।
  • भारत में कुल फसली क्षेत्र का लगभग एक-चौथाई चावल की खेती के अंतर्गत आता है।
    • प्रमुख उत्पादक राज्य: पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और पंजाब।
    • अधिक उपज देने वाले राज्य: पंजाब, तमिलनाडु, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और केरल।
  • भारत चीन के बाद चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।

विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. भारत में पिछले पांँच वर्षों में खरीफ फसलों की खेती के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये (2019)

1. चावल की खेती का क्षेत्रफल सबसे अधिक है।

2. ज्वार की खेती के तहत क्षेत्रफल तिलहन की तुलना में अधिक है।

3. कपास की खेती का क्षेत्रफल गन्ने के क्षेत्रफल से अधिक है।

4. गन्ने की खेती के क्षेत्रफल में लगातार कमी आई है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (a)

  • इस प्रकार कथन 1 और 3 सही हैं, जबकि कथन 2 और 4 सही नहीं हैं। अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।

प्रश्न. निम्नलिखित फसलों पर विचार कीजिये: (2013)

1. कपास

2. मूंँगफली

3. चावल

4. गेहूंँ

उपर्युक्त में से कौन-सी खरीफ फसलें हैं?

(a) केवल 1 और 4
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 3
(d) केवल 2, 3 और 4

उत्तर: (c)


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन पिछले पांँच वर्षों में विश्व में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक रहा है? (2019)

(a) चीन
(b) भारत
(c) म्यांँमार
(d) वियतनाम

उत्तर: (b)

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