छत्तीसगढ़ Switch to English
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने अप्राकृतिक यौन संबंध पर रोक लगाई
चर्चा में क्यों?
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि अगर कोई पुरुष अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध या यौन क्रियाएँ करता है तो उसे बलात्कार नहीं माना जाएगा आर्थात यदि कोई पति अपनी पत्नी के साथ भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत परिभाषित अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता है, तो इसे भी अपराध नहीं माना जा सकता।
मुख्य बिंदु
- पृष्ठभूमि:
- छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने बस्तर ज़िले के एक निवासी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की, जिसमें उसने अपनी पत्नी की वर्ष 2017 में हुई मौत के मामले में अपनी दोषसिद्धि को चुनौती दी थी।
- सत्र न्यायालय ने पहले फैसला सुनाया था कि महिला जबरन शारीरिक संबंध बनाने के कारण बीमार हो गई और बाद में उसकी मौत हो गई।
- ट्रायल कोर्ट का दोषसिद्धि:
- सत्र न्यायालय ने अपीलकर्त्ता को निम्नलिखित प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया:
- धारा 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध)
- धारा 376 (बलात्कार)
- भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 304 (हत्या की कोटि में न आने वाला गैर इरादतन हत्या)।
- अपीलकर्त्ता को उसकी पत्नी के मृत्यु पूर्व दिये गए बयान के आधार पर 10 वर्ष के कठोर कारावास की सज़ा सुनाई गई।
- उच्च न्यायालय का निर्णय:
- यदि पत्नी की आयु 15 वर्ष से अधिक है तो पति द्वारा पत्नी के साथ किया गया यौन संबंध या कृत्य बलात्कार नहीं कहा जा सकता।
- न्यायालय ने फैसला सुनाया कि इन परिस्थितियों में अप्राकृतिक यौन संबंध के लिये सहमति का अभाव महत्त्वहीन हो जाता है, जिससे धारा 376 और 377 लागू नहीं होतीं।
- उच्च न्यायालय ने मृत्यु पूर्व दिये गए बयान की सत्यता पर भी संदेह व्यक्त किया तथा इसकी विश्वसनीयता पर भी चिंता जताई।
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बिहार Switch to English
औरंगाबाद ज़िले में 195 योजनाओं का उद्घाटन
चर्चा में क्यों?
मुख्यमंत्री ने अपनी प्रगति यात्रा के दौरान औरंगाबाद ज़िले में 195 योजनाओं का उद्घाटन एवं शिलान्यास किया।
मुख्य बिंदु
- मुख्यमंत्री ने 554 करोड़ रुपए से अधिक की लागत की कुल 195 विकासात्मक योजनाओं का रिमोट के माध्यम से उद्घाटन एवं शिलान्यास किया। इनमें 127.43 करोड़ रुपए की लागत से 79 योजनाओं का उद्घाटन एवं 426.76 करोड़ रुपए की लागत से 116 योजनाओं का शिलान्यास शामिल है।
- प्रमुख विकास योजनाएँ:
- देव प्रखंड के बेढनी पंचायत में पंचायत सरकार भवन के शिलापट्ट का उद्धघाटन किया।
- सदर अस्पताल में 9 मंज़िला मॉडल अस्पताल का उद्घाटन किया।
- डॉ. भीमराव अंबेडकर आवासीय विद्यालय का उद्घाटन किया।
- रिंग रोड और मेडिकल कॉलेज का निर्माण होगा।
- स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स का निर्माण निर्माण होगा।
- रुद्र कुंड और सूर्य कुंड के सौंदर्याकरण का अवलोकन किया।
- अदरी नदी पर प्रस्तावित रिवर फ्रंट निर्माण का अवलोकन किया।
- मुख्यमंत्री ने लाभुकों को मुख्यमंत्री प्रखंड परिवहन योजना का सांकेतिक चेक और चाबी, आयुष्मान कार्ड, मुख्यमंत्री उद्यमी योजना (वर्ष 2024-2025) के अंतर्गत 147 चयनित लाभुकों को प्रथम किश्त के रुप में 2 करोड़ 94 लाख रुपए का सांकेतिक चेक, मुख्यमंत्री निःशक्त जन विवाह प्रोत्साहन अनुदान योजना का सांकेतिक चेक लाभुकों को प्रदान किया।
औरंगाबाद ज़िला
- स्थापना: गंगा नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित इस ज़िले की स्थापना वर्ष 1972 में की गई थी और यह पूर्वी चंपारण ज़िला और गया ज़िलों से बनाया गया था।
- नदियाँ: औरंगाबाद ज़िले में आदिरी, पुनपुन, औरंगा, बटाणे, मोहर और मदर मानक नदियाँ बहती हैं।
- भाषा: यहाँ की स्थानीय भाषा मैथिली है, लेकिन हिंदी और अंग्रेज़ी भी व्यापक रूप से बोली जाती हैं।
- पर्यटन स्थल: गृद्धकूट पर्वत, बारबरीन का मकबरा, देव सूर्य मंदिर, उमगा सूर्य मंदिर, दाऊद का किला आदि।
- शक्ति संयंत्र: कोयला आधारित नबीनगर सुपर थर्मल पावर परियोजना औरंगाबाद के सिवानपुर गाँव में स्थित है।
अदरी नदी
- यह नदी धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्त्वपूर्ण है। इस नदी के किनारे दूर-दराज़ एवं आस-पास के लोगों द्वारा छठ महोत्सव मनाया जाता है।
- यह औरंगाबाद शहर के बीच से गुजरती है और पुनपुन नदी की एक सहायक नदी है।
- इसका उद्गम स्थल देव प्रखंड के अदरी गाँव से माना जाता है।
- ज्ञातव्य है कि यह मानव निर्मित नदी है।
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उत्तराखंड Switch to English
आदर्श संस्कृत गाँव
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड सरकार ने राज्य की दूसरी भाषा संस्कृत के संरक्षण और संवर्द्धन के लिये अपने 13 ज़िलों में से प्रत्येक में एक गाँव को 'आदर्श संस्कृत गाँव' के रूप में नामित किया है।
मुख्य बिंदु
- संस्कृत को बढ़ावा देने के लिये सरकार की प्रतिबद्धता:
- राज्य के शिक्षामंत्री ने संस्कृत को 'देववाणी' (देवताओं की भाषा) बताते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि संस्कृत का संरक्षण और संवर्द्धन सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है।
- उन्होंने कहा कि आदर्श संस्कृत गाँव नई पीढ़ी को संस्कृत के माध्यम से भारतीय दर्शन और ज्ञान परंपराओं से जोड़ने में मदद करेंगे।
- दैनिक जीवन में संस्कृत का एकीकरण:
- सरकार ने ग्रामीणों को दैनिक जीवन में संस्कृत में बातचीत करने का प्रशिक्षण देने के लिये विशेष प्रशिक्षकों की नियुक्ति की है।
- ग्रामीणों को धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान वेदों, पुराणों और उपनिषदों की श्लोकों को सुनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा।
- महिलाओं और बच्चों को त्योहारों और समारोहों के दौरान संस्कृत में धार्मिक गीत गाने के लिये प्रेरित किया जाएगा।
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बच्चों को संस्कृत पढ़ने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा, जिसका उद्देश्य समाज के विभिन्न वर्गों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देना है।
- आदर्श संस्कृत गाँवों की सूची:
- सरकार ने उत्तराखंड के विभिन्न जिलों में 13 गाँवों को आदर्श संस्कृत गाँव के रूप में नामित किया है :
- गढ़वाल क्षेत्र: नूरपुर पंजनहेड़ी (हरिद्वार), भोगपुर (देहरादून), कोटगाँव (उत्तरकाशी), डिम्मर (चमोली), गोदा (पौड़ी), बैजी (रुद्रप्रयाग), मुखेम (टिहरी)।
- कुमाऊँ क्षेत्र: पांडे (नैनीताल), जैंती (अल्मोड़ा), खर्ककार्की (चंपावत), उर्ग (पिथौरागढ़), शेरी (बागेश्वर), नगला तराई (उधमसिंह नगर)।
- सरकार ने उत्तराखंड के विभिन्न जिलों में 13 गाँवों को आदर्श संस्कृत गाँव के रूप में नामित किया है :
- उत्तराखंड में संस्कृत शिक्षा:
- राज्य में 100 से अधिक संस्कृत माध्यमिक विद्यालय हैं, जो भाषा को बढ़ावा देने के प्रयासों को और मज़बूत करते हैं।
संस्कृत
- यह एक प्राचीन भारतीय-आर्य भाषा है जिसमें सबसे प्राचीन दस्तावेज़, वेदों की रचना की गई है जिसे वैदिक संस्कृत कहा जाता है।
- शास्त्रीय संस्कृत, जो उस समय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिम में प्रयुक्त होने वाली उत्तर वैदिक भाषा के करीब थी, को अब तक रचित सबसे उत्कृष्ट व्याकरणों में से एक, अष्टाध्यायी (“आठ अध्याय”) में सुंदर ढंग से वर्णित किया गया है, जिसकी रचना पाणिनि ने की थी (लगभग 6वीं-5वीं शताब्दी ई.पू.)।
संस्कृत को देवनागरी लिपि के अलावा विभिन्न क्षेत्रीय लिपियों में भी लिखा गया है, जैसे उत्तर में शारदा (कश्मीर), पूर्व में बांग्ला (बंगाली), पश्चिम में गुजराती और विभिन्न दक्षिणी लिपियाँ, जिनमें ग्रंथ वर्णमाला भी शामिल है, जिसे विशेष रूप से संस्कृत ग्रंथों के लिये तैयार किया गया था।
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मध्य प्रदेश Switch to English
मध्यप्रदेश में पहली बार सफल हृदय प्रत्यारोपण
चर्चा में क्यों
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के AIIMS में पहली बार सफल हृदय प्रत्यारोपण किया गया है।
- मुख्यमंत्री ने इस उपलब्धि पर डॉक्टरों को बधाई दी और राज्य में अंगदान को बढ़ावा देने के लिये कई महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ कीं।
मुख्य बिंदु
- दिनेश मालवीय को मिला नया जीवन: यह ट्रांसप्लांट नर्मदापुरम निवासी दिनेश मालवीय के शरीर में किया गया है जिससे उन्हे नया जीवन मिल पाया।
- दिनेश मालवीय हृदय रोग से पीड़ित थे। उनका हृदय सिर्फ 20% ही काम कर रहा था।
- अंगदानकर्त्ता: यह ट्रांसप्लांट सागर ज़िले के बलिराम कुशवाहा के परिवार द्वारा किये गए अंगदान के परिणामस्वरूप संभव हुआ। हृदय को पीएम श्री एयर एंबुलेंस सेवा के माध्यम से AIIMS भोपाल लाया गया था और वहाँ इसे ट्रांसप्लांट किया गया।
- तत्परता और कर्तव्यनिष्ठा का प्रमाण: यह स्वास्थ्य विभाग, नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज जबलपुर और एम्स भोपाल के चिकित्सीय स्टॉफ की तत्परता और कर्तव्यनिष्ठा का प्रमाण है।
- एम्स भोपाल के डॉक्टरों की एक टीम रातों-रात जबलपुर पहुँची और अंग रिट्रीवल की प्रक्रिया को अंजाम दिया।
- इस पूरी प्रक्रिया में जबलपुर, भोपाल और इंदौर में तीन ग्रीन कॉरिडोर बनाए गए। पुलिस और चिकित्सा विभाग ने बेहतरीन समन्वय से अंगों का समय पर परिवहन सुनिश्चित हुआ।
- ब्रेन डेड मरीज़ का हृदय ग्रीन कॉरिडोर और एयर एम्बुलेंस के माध्यम से जबलपुर से भोपाल लाया गया।
- राज्य स्तरीय संस्थान की होगी स्थापना: मुख्यमंत्री ने घोषणा की, कि राज्य के सभी मेडिकल कॉलेजो में ट्रांसप्लांट की सुविधा बढ़ाई जाएगी और राज्य स्तरीय संस्थान की स्थापना की जाएगी।
- इससे मेडिकल छात्रों को सीखने की सुविधा मिल सकेगी, साथ ही अंग प्रत्यारोपण और देहदान को लेकर जागरुकता को बढ़ावा दिया जाएगा।
- अंगदानकर्त्ता को राजकीय सम्मान: प्रदेश सरकार अंगदान को बढ़ावा देने के कई प्रयास कर रही है-
- जो लोग देहदान करेंगे, उनके परिवार के लोगों का आयुष्मान कार्ड बनाया जाएगा।
- अंगदान करने वाले का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा और राष्ट्रीय पर्वों पर सम्मानित किया जाएगा।
पीएम श्री एयर एंबुलेंस सेवा
- मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने फरवरी 2024 में प्रदेश की पहली इमरजेंसी एयर एंबुलेंस सेवा का शुभारंभ किया था।
- मुख्यमंत्री ने इस सेवा की शुरुआत करते हुए इसका नाम "मुख्यमंत्री एयर एंबुलेंस सेवा" से "पीएम श्री एयर एंबुलेंस सेवा" कर दिया।
- मध्य प्रदेश यह सेवा देने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। पवनहंस के साथ मिलकर यह सेवाएँ दी जा रही हैं।
- यह सेवा सड़कों व औद्योगिक स्थलों में होने वाले हादसों, प्राकृतिक आपदा में गंभीर पीड़ित घायल व्यक्ति को त्वरित उपचार के लिये हवाई परिवहन सुविधा उपलब्ध कराती है।
- यह सेवा सभी जिलों में लागू है और कोई भी व्यक्ति इसका लाभ ले सकता है।
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राजस्थान Switch to English
बाणेश्वर मेला - 2025
चर्चा में क्यों?
डूंगरपुर ज़िले के बेणेश्वर धाम पर बेणेश्वर मेले का 8 से 12 फरवरी 2025 तक आयोजन किया गया।
मुख्य बिंदु
- मेले के बारे में:
- यह मेला भीलों की समृद्ध आदिवासी संस्कृति को प्रदर्शित करता है और इसे "आदिवासियों का कुंभ मेला” कहा जाता है।
- बाणेश्वर मेला राजस्थान के डूंगरपुर ज़िले में आयोजित होने वाला एक विशाल आदिवासी मेला है। यह जनवरी या फरवरी के महीनों में आयोजित होने वाला एक वार्षिक उत्सव है, जो बाणेश्वर महादेव (भगवान शिव) को समर्पित है।
- इस पवित्र अवसर पर गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश से भील लोग यात्रा करते हुए आते हैं ताकि नदियों के (माही और सोम के) संगम पर डुबकी लगा सकें।
- इतिहास
- यह मेला वास्तव में दो मेलों का संयोजन है - एक शिव मंदिर में और दूसरा विष्णु मंदिर में आयोजित किया जाता है।
- बाणेश्वर नाम की उत्पत्ति डूंगरपुर के शिव मंदिर में स्थित शिव लिंग से हुई है। स्थानीय भाषा में, बाणेश्वर का अर्थ है 'डेल्टा का स्वामी'। यह मेला डेल्टा पर आयोजित किया जाता है, जो सोम और माही नदियों के संगम से बनता है।
- यह मेला 500 वर्ष पहले शुरू हुआ था जब मावजी की पत्नी जनकुंवरी ने अपने ससुर के लिये एक विष्णु मंदिर बनवाया था क्योंकि उनका मानना था कि मावजी भगवान विष्णु के अवतार थे।
- सांस्कृतिक कार्यक्रम व खेल:
- बेणेश्वर मेले के दौरान ज़िला प्रशासन, पर्यटन विभाग और जनजाति विकास विभाग की ओर से कई सांस्कृतिक व खेलकूद कार्यक्रम आयोजित किये गए, साथ ही पुरुष और महिला वर्ग की एथलेटिक्स, सितोलिया प्रतियोगिता आयोजित की गई।
- इसी प्रकार तीरंदाजी, वालीबॉल, रस्साकसी महिलाओं की मटका दौड़, भजन मंडली, साफा बाँधों प्रतियोगिताएँ आयोजित की गईं।
डूंगरपुर ज़िला
- डूंगरपुर ज़िले के संस्थापक डूंगरसिंह (1358) थे। यह राजस्थान का तीसरा सबसे छोटा ज़िला है।
- सीमा साझा: यह चार जिलों उदयपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ व सलूंबर के साथ सीमा साझा करता है।
- इसकी गुजरात से अंतर्राज्यीय सीमा लगती है।
- दर्शनीय स्थल: डूंगरपुर में जूना महल, उदई बिलास पैलेस, गैब सागर झील और बादल महल प्रमुख ऐतिहासिक महत्त्व के स्थल हैं।
- स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले डूँगरपुर तथा बॉसवाड़ा का क्षेत्र ‘वागड़’ कहलाता था।
- यह राज्य में सर्वाधिक लिंगानुपात (994) वाला ज़िला है।
- यह ज़िला चारों ओर से अरावली की पहाड़ियों से घिरा हुआ है।
- राज्य में अरब सागर मानसून की शाखा सर्वप्रथम डूँंगरपुर ज़िले में ही प्रवेश करती है।
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झारखंड Switch to English
राँची फार्म में एवियन फ्लू का प्रकोप
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, राँची में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (BAU) के एक पोल्ट्री फार्म में एवियन फ्लू का मामला पाए जाने के बाद अधिकारियों ने कुल 325 पक्षियों को मार डाला। उन्होंने पूरे प्रभावित क्षेत्र को भी सैनिटाइज किया।
मुख्य बिंदु
- रोकथाम के उपाय:
- अधिकारियों ने आश्वासन दिया कि घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह एक स्थानीय घटना है, जो गिनी फाउल्स को प्रभावित कर रही है, जिन्हें फार्म में अनुसंधान के उद्देश्य से रखा गया था।
- अधिकारी प्रकोप के एक किलोमीटर के दायरे में आने वाले क्षेत्रों का मानचित्रण करेंगे और उन्हें अधिसूचित करेंगे।
- 10 किलोमीटर के दायरे में स्थित स्थान निगरानी में रहेंगे।
- H5N1 का पता लगाना:
- पशु चिकित्सा महाविद्यालय स्थित फार्म में पिछले 20 दिनों में लगभग 150 गिनी मुर्गियाँ मर गईं।
- ICAR -राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग संस्थान (NIHSAD), भोपाल ने नमूनों में H5N1 एवियन इन्फ्लूएंजा ए वायरस की उपस्थिति की पुष्टि की।
- केंद्र सरकार के निर्देश:
- केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने राज्य को रोकथाम उपायों को लागू करने के निर्देश दिये, जिनमें शामिल हैं:
- संक्रमित और निगरानी क्षेत्रों की घोषणा
- प्रभावित परिसर तक पहुँच प्रतिबंधित करना
- आगे प्रसार को रोकने के लिये पक्षियों को मारना
- केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने राज्य को रोकथाम उपायों को लागू करने के निर्देश दिये, जिनमें शामिल हैं:
- राज्य सरकार का जवाब:
- राज्य पशुपालन विभाग ने एक सलाह और मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) जारी की:
- प्रभावित क्षेत्र में पक्षियों की बिक्री और खरीद पर प्रतिबंध लगाना।
- एक नियंत्रण कक्ष स्थापित किया जा रहा है, जो शीघ्र ही चालू हो जाएगा।
- राज्य पशुपालन विभाग ने एक सलाह और मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) जारी की:
एवियन इन्फ्लूएंजा
- एवियन इन्फ्लूएंजा, जिसे अक्सर बर्ड फ्लू के रूप में जाना जाता है, एक अत्यधिक संक्रामक वायरल संक्रमण है, जो मुख्य रूप से पक्षियों और घरेलू मुर्गियों को प्रभावित करता है।
- वर्ष 1996 में, दक्षिणी चीन में घरेलू जलपक्षियों में अत्यधिक रोगजनक एवियन इन्फ्लूएंजा H5N1 वायरस की पहली बार पहचान की गई थी। इस वायरस का नाम A/goose/Guangdong/1/1996 रखा गया है।
मनुष्यों में संक्रमण और संबंधित लक्षण:
- H5N1 एवियन इन्फ्लूएंजा के मानव मामले कभी-कभी होते हैं। संक्रमण को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलाना मुश्किल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, जब लोग संक्रमित होते हैं, तो मृत्यु दर लगभग 60% होती है।
- इसमें बुखार, खाँसी और मांसपेशियों में दर्द जैसे हल्के फ्लू जैसे लक्षणों से लेकर निमोनिया जैसी गंभीर श्वसन समस्याएँ, साँस लेने में कठिनाई और यहाँ तक कि मानसिक स्थिति में बदलाव और दौरे जैसी संज्ञानात्मक समस्याएँ भी हो सकती हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR)
- इसकी स्थापना 16 जुलाई 1929 को सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत एक पंजीकृत सोसायटी के रूप में की गई थी।
- यह भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त संगठन है।
- इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
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हरियाणा Switch to English
अरावली सफारी पार्क
चर्चा में क्यों?
हाल ही में देश भर से कई सेवानिवृत्त भारतीय वन सेवा अधिकारियों ने प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन सौंपकर गुरुग्राम और नूह के कुछ हिस्सों में प्रस्तावित 10,000 एकड़ के अरावली सफारी पार्क परियोजना का विरोध किया।
- उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र में किसी भी हस्तक्षेप में विनाश के बजाए "संरक्षण और पुनर्स्थापन" को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
मुख्य बिंदु
- अरावली सफारी पार्क:
- पारिस्थितिकीय चिंताएँ:
- इस परियोजना से पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र में वाहनों का आवागमन और निर्माण कार्य बढ़ने से पर्यावरण को हानि हो सकती है।
- उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि अरावली की पहाड़ियाँ गुरुग्राम और नूंह के जल-संकटग्रस्त क्षेत्रों के लिये महत्त्वपूर्ण जल भंडार के रूप में काम करती हैं।
- पार्क में प्रस्तावित “अंडरवाटर जोन” जल स्तर को प्रभावित सकता है, जिससे उस क्षेत्र में और जल की कमी हो सकती है, जिसे पहले से ही केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा “अतिदोहित” के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- कानूनी और पर्यावरणीय प्रतिबंध:
- इस बात पर ज़ोर दिया गया कि सफारी पार्क "वन" श्रेणी के अंतर्गत आता है, जहाँ पर्यावरण कानून वनों की कटाई, भूमि की सफाई और निर्माण पर सख्त प्रतिबंध लगाते हैं।
- उन्होंने वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के कई आदेशों का हवाला दिया, जो ऐसी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाते हैं।
- हरियाणा के वन क्षेत्र और स्थिरता पर प्रभाव:
- हरियाणा में भारत में सबसे कम वन क्षेत्र है और अरावली पर्वतमाला एक महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी बफर के रूप में कार्य करती है।
- अधिकारियों ने चेतावनी दी कि क्षेत्र में खनन और मानव बस्तियाँ पर्यावरण संतुलन को बिगाड़ देंगी, सतत विकास लक्ष्यों (SDG) का उल्लंघन करेंगी और दीर्घकालिक पारिस्थितिक स्थिरता को नुकसान पहुँचाएंगी।
- पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र:
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना (2002-2016) में यह प्रावधान किया गया था कि राज्य सरकारों को पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों की सीमाओं के 10 किलोमीटर के भीतर आने वाले क्षेत्र को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) घोषित करना चाहिये।
- जबकि 10 किलोमीटर का नियम एक सामान्य सिद्धांत के रूप में लागू किया जाता है, इसके आवेदन की सीमा अलग-अलग हो सकती है। 10 किलोमीटर से परे के क्षेत्रों को भी केंद्र सरकार द्वारा ESZ के रूप में अधिसूचित किया जा सकता है, अगर वे पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण "संवेदनशील गलियारे" रखते हैं।
अरावली पर्वतमाला
- उत्तर-पश्चिमी भारत की अरावली पर्वतमाला, जो विश्व के सबसे पुराने वलित पर्वतों में से एक है, अब 300 से 900 मीटर की ऊँचाई वाले अवशिष्ट पर्वतों का रूप ले चुकी है।
- इसका विस्तार गुजरात के हिम्मतनगर से शुरू होकर हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली (लगभग 720 किमी.) तक है।
- पर्वतों को दो मुख्य श्रेणियों में विभाजित किया गया है- सांभर सिरोही श्रेणी और राजस्थान में सांभर खेतड़ी श्रेणी, जहाँ इनका विस्तार लगभग 560 किलोमीटर है।
- दिल्ली से हरिद्वार तक फैली अरावली की छिपी हुई शाखा गंगा और सिंधु नदियों के जल निकासी के बीच विभाजन पैदा करती है
- यह एक वलित पर्वत है, जिनमें चट्टानें मुख्य रूप से वलित भूपर्पटी से बनती हैं, जब दो अभिसारी प्लेटें पर्वतजनित गति नामक प्रक्रिया द्वारा एक दूसरे की ओर गति करती हैं।
- अरावली की उत्पत्ति लाखों साल पहले हुई थी, जब भारतीय उपमहाद्वीप की मुख्य भूमि यूरेशियन प्लेट से टकराई थी। कार्बन डेटिंग से पता चला है कि पर्वतमाला में खनन किये गए ताँबे और अन्य धातुएँ कम-से-कम 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व की हैं।
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