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अप्राकृतिक यौन संबंधों के अनिर्दिष्ट प्रावधानों पर सवाल

  • 16 Aug 2024
  • 2 min read

स्रोत: द हिंदू 

दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की जगह नए अधिनियमित भारतीय न्याय संहिता- 2023 में अप्राकृतिक यौन संबंध और सोडॉमी (गुदामैथुन) के लिये दंडात्मक प्रावधानों को निर्दिष्ट न करने पर चिंता जताई।

  • न्यायालय ने BNS में IPC की धारा 377, जिसे पूर्व में गैर-सहमति वाले अप्राकृतिक यौन संबंधों को अपराध माना जाता था, के समतुल्य प्रावधानों की अनुपस्थिति पर सवाल उठाया।
    • भारत में ‘अप्राकृतिक यौन संबंध’ से तात्पर्य प्रकृति के विरुद्ध मानी जाने वाली यौन गतिविधियों से है। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 377 ‘अप्राकृतिक अपराध’ से संबंधित है तथा इसे किसी भी पुरुष, महिला या पशु के साथ प्रकृति के विरुद्ध स्वैच्छिक शारीरिक संभोग के रूप में परिभाषित करती है।
  • इस चूक से LGBTQ समुदाय, यौन उत्पीड़न के पुरुष पीड़ितों और अन्य कमज़ोर समूहों की सुरक्षा पर चिंताएँ जताई गई हैं।
    • केंद्र सरकार ने इस मुद्दे को स्वीकार किया, लेकिन इस बात पर ज़ोर दिया कि न्यायालय विधायिका को कानून में विशिष्ट प्रावधान लागू करने का निर्देश नहीं दे सकते।
  • वर्ष 2018 में, सर्वोच्च न्यायालय ने IPC की धारा 377 के उन हिस्सों को हटाकर समलैंगिकता को अपराध मुक्त कर दिया, जिन्हें LGBTQ समुदाय के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना गया था।
  • 1 जुलाई 2024 को BNS लागू हुआ, जिसने IPC की जगह ली, लेकिन गैर-सहमति वाले यौन कृत्यों के खिलाफ कानूनी सुरक्षा में एक बहुत बड़ी चूक के लिये इसकी आलोचना की गई है।

और पढ़ें: भारतीय न्याय संहिता- 2023, सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिकता को अपराध से मुक्त किया

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