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बिहार

शास्त्रीय भाषा मैथिली की मांग

  • 12 Oct 2024
  • 6 min read

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, बिहार में जनता दल (यूनाइटेड) पार्टी ने औपचारिक रूप से भारत सरकार से मैथिली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने की मांग की है, क्योंकि इस श्रेणी में कई अन्य भाषाओं को शामिल किया गया है।

प्रमुख बिंदु 

  • मान्यता प्राप्त भाषाएँ: केंद्र सरकार ने हाल ही में मराठी, बंगाली, पाली, प्राकृत और असमिया सहित कई भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया है। 
    • इससे पहले, तमिल, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और ओडिया जैसी भाषाओं को शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता दी गई थी।
  • ऐतिहासिक संदर्भ: मैथिली भाषा का साहित्यिक इतिहास लगभग 1,300 वर्ष पुराना है और राज्य ने इसे शास्त्रीय भाषा के रूप में वर्गीकृत करने की मांग की है। 
    • सरकार द्वारा गठित एक विशेषज्ञ समिति ने अगस्त 2018 में 11 सिफारिशें की थीं, जिनमें मैथिली भाषा को शास्त्रीय भाषाओं में शामिल करना भी शामिल था ।
  • शास्त्रीय भाषाओं को समझना:
    • "भारतीय शास्त्रीय भाषाएँ" या "सेम्मोझी (Semmozhi)" शब्द उन भाषाओं को संदर्भित करता है जिनका लंबा इतिहास और समृद्ध साहित्यिक विरासत है। भारत में ग्यारह भाषाओं को शास्त्रीय भाषाओं के रूप में मान्यता प्राप्त है।
    • मान्यता प्राप्त शास्त्रीय भाषाओं में शामिल हैं:
      • तमिल (2004)
      • संस्कृत (2005)
      • तेलुगु (2008)
      • कन्नड़ (2008)
      • मलयालम (2013)
      • ओडिया (2014)
      • मराठी (2024)
      • बंगाली (2024)
      • पाली (2024)
      • प्राकृत (2024)
      • असमिया (2024)
    • शास्त्रीय भाषा की स्थिति का महत्त्व: 1 नवंबर, 2004 के एक सरकारी प्रस्ताव के अनुसार, शास्त्रीय भाषाओं की स्थिति का महत्व है, जिसमें शामिल हैं:
      •  शास्त्रीय भारतीय भाषाओं के विद्वानों के लिये वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार।
      • शास्त्रीय भाषा अध्ययन के लिये उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना।
      • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, केंद्रीय विश्वविद्यालयों से शुरुआत करते हुए, शास्त्रीय भाषाओं के प्रतिष्ठित विद्वानों के लिये व्यावसायिक पीठों का निर्माण करेगा।
    • किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित करने के मानदंड: संस्कृति मंत्रालय के अनुसार, किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित करने के मानदंड में शामिल होते हैं:
      • भाषा की आयु: भाषा का प्रलेखित इतिहास या प्रारंभिक ग्रंथ 1,500 से 2,000 वर्ष पुराना होना चाहिये।
      • सांस्कृतिक मूल्य: इसमें प्राचीन साहित्य होना चाहिये जिसे इसके वक्ता अपनी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा मानते हों।
      • मौलिकता: साहित्यिक विरासत मौलिक होनी चाहिये और अन्य भाषाओं से उधार ली हुई नहीं होनी चाहिये।
      • असंततता: शास्त्रीय भाषा और उसके आधुनिक रूपों के बीच स्पष्ट अंतर होना चाहिये, जो उसके विकास में संभावित असंततता को दर्शाता हो।

भाषा को बढ़ावा देने के लिये अन्य प्रावधान

  • आठवीं अनुसूची: भाषा के निरंतर विकास और संवर्द्धन को प्रोत्साहित करना। 8वीं अनुसूची में 22 भाषाएँ शामिल हैं: 
    • असमिया, बंगाली, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगु, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी। 
  • अनुच्छेद 344 (1) में हिंदी के प्रगामी प्रयोग के लिये संविधान के प्रारंभ से पाँच वर्ष की समाप्ति पर राष्ट्रपति द्वारा एक आयोग के गठन का प्रावधान है। 
  • अनुच्छेद 351 में प्रावधान है कि हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाना संघ का कर्तव्य होगा।  
  • भाषाओं को बढ़ावा देने के अन्य प्रयास: 
    • प्रोजेक्ट अस्मिता: प्रोजेक्ट अस्मिता का लक्ष्य पाँच वर्षों के भीतर भारतीय भाषाओं में 22,000 पुस्तकें प्रकाशित करना है।  
    • नई शिक्षा नीति (NEP): NEP नीति का उद्देश्य संस्कृत विश्वविद्यालयों को बहु-विषयक संस्थानों में बदलना है। 
    • केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (CIIL): यह संस्थान चार शास्त्रीय भाषाओं: कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और ओडिया को बढ़ावा देने के लिये कार्य करता है। 

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