प्रारंभिक परीक्षा
पाणिनि की अष्टाध्यायी और व्याकरण की सबसे बड़ी पहेली
- 21 Jan 2023
- 8 min read
हाल ही में कैंब्रिज के विद्वान डॉ. ऋषि राजपोपत ने संस्कृत की सबसे बड़ी पहेली- 'अष्टाध्यायी' में पाई जाने वाली व्याकरण की समस्या को हल करने का दावा किया है।
अष्टाध्यायी:
- 2,000 से अधिक वर्ष पहले लिखा गया, अष्टाध्यायी या 'आठ अध्याय', विद्वान पाणिनि द्वारा चौथी शताब्दी ईसा पूर्व के अंत में लिखा गया एक प्राचीन ग्रंथ है।
- यह एक भाषायी लेख है जिसने मानक निर्धारित किया कि संस्कृत कैसे लिखी और बोली जानी है।
- यह भाषा के ध्वन्यात्मकता, वाक्य विन्यास और व्याकरण को गहराई से समझता है, इसमें एक "भाषा मशीन" भी शामिल है, जो उपयोगकर्त्ताओं को किसी भी संस्कृत शब्द के मूल और प्रत्यय में प्रवेश करने एवं बदले में व्याकरणिक रूप से सही शब्द तथा वाक्य प्राप्त करने में मदद करता है।
- अष्टाध्यायी ने 4,000 से अधिक व्याकरणिक नियम निर्धारित किये है।
- बाद के भारतीय व्याकरण जैसे पतंजलि का महाभाष्य (दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व) और जयादित्य की कासिका वृत्ति तथा वामन (7वीं शताब्दी ईस्वी), अधिकतर पाणिनि पर टीकाएँ थीं।
पहेली (Puzzle):
- भ्रामक नियम:
- अष्टाध्यायी में दो या दो से अधिक व्याकरण के नियम एक साथ लागू हो सकते थे, जिससे भ्रम पैदा होता था।
- पाणिनि ने इसका समाधान करने के लिये एक 'मेटा-नियम' (नियमों को नियंत्रित करने वाला नियम) प्रस्तुत किया था, जिसकी ऐतिहासिक रूप से व्याख्या की गई थी कि यदि समान प्रकार के दो नियमों में विवाद होता है, तो 'अष्टाध्यायी' के क्रम में बाद में आने वाले नियम मान्य होगा।
- हालाँकि यह अपवाद पैदा करता रहा, जिसके लिये विद्वानों को अतिरिक्त नियम लिखते रहना पड़ा। यहीं से डॉ ऋषि राजपोपत की खोज हुई।
- हालाँकि इसने अपवादों को बढ़ावा दिया जिससे नए नियमों का निर्माण आवश्यक हो गया। यहीं कारण है कि डॉ. ऋषि राजपोपत ने नवीन नियम प्रस्तुत किया।
- समाधान:
- विद्वानों ने यह तर्क देते हुए एक सरल दृष्टिकोण अपनाया कि इतिहास में मेटा-नियम की गलत व्याख्या की गई है, वास्तव में पाणिनि का मतलब यह था कि किसी शब्द के बाएँ और दाएँ पक्षों पर लागू होने वाले नियमों के संबंध में पाठकों को दाएँ हाथ के नियम का उपयोग करना चाहिये।
- इस तर्क का उपयोग करते हुए डॉ. राजपोपत ने पाया कि 'अष्टाध्यायी' अंततः एक सटीक 'भाषा मशीन' बन सकती है, जो लगभग प्रत्येक बार व्याकरणिक रूप से ध्वनि शब्दों और वाक्यों का निर्माण करती है।
उदाहरण के लिये, एक वाक्य ‘ज्ञानम् दियाते गुरुना’ अर्थात् ज्ञान गुरु द्वारा दिया जाता है, में गुरुना शब्द बनाने में नियम संबंधी विरोधाभास दिखता है, जिसका अर्थ है ‘गुरु द्वारा’ और यह एक ज्ञात शब्द है।
इस शब्द में मूल में शामिल है गुरु+आ और पाणिनि के सूत्रों के अनुसार, एक नया शब्द जिसका अर्थ ‘गुरु द्वारा’ होगा, बनाने के दो नियम लागू होते हैं, एक ‘गुरु’ शब्द के लिये, और एक ‘आ’ के लिये। इसका समाधान उस नियम को चुनकर किया जाता है जो दाईं ओर के शब्द पर लागू होता है, जिसके परिणामस्वरूप सही नया रूप ‘गुरुना’ बनता है।
उदाहरण के के लिये राजपोपट ने वृक्ष धातु रूप से बने शब्दों का उल्लेख किया है। ‘वृक्ष’ और ‘भ्याम’ शब्दों को जोड़कर ‘वृक्षाभ्याम’ बनता है, जहाँ पहले शब्द की अंतिम ‘अ’ ध्वनि को लंबी ‘आ’ ध्वनि से बदल दिया जाता है। दूसरी ओर ‘वृक्ष’ और ‘सु’ के संयोजन से वृक्षेषु बनता है जहाँ वही ध्वनि ‘ई’ से बदल जाती है। अब, जब ‘वृक्ष’ शब्द को बहुवचन ‘भ्या’ में जोड़ा जाना है, तो क्या ‘ए’ को ‘ऐ’ या ‘ई’ से बदल दिया जाना चाहिये?
- महत्त्व:
- इस खोज से अब पाणिनि प्रणाली का उपयोग करके लाखों संस्कृत शब्दों का निर्माण करना संभव हो सकता है और चूँकि उनके व्याकरण के नियम सटीक और सूत्रबद्ध थे, वे कंप्यूटर सिखाए जा सकने वाले संस्कृत भाषा के एल्गोरिद्म के रूप में कार्य कर सकते हैं।
भाषा विज्ञान के जनक पाणिनि:
- संभवतः चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में पाणिनि के विषय में जानकारी मिलती है, यह सिकंदर की विजय और मौर्य साम्राज्य की स्थापना का युग था, इसके अतिरिक्त उन्हें 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व, जो कि बुद्ध और महावीर काल रहा, का भी माना जाता है।
- वह संभवतः सलातुरा (गांधार) में रहते थे, जो आज के समय में उत्तर-पश्चिम पाकिस्तान में स्थित है, और संभवतः तक्षशिला के महान विश्वविद्यालय से भी जुड़े थे। यहीं से कौटिल्य और चरक को शासन कला और चिकित्सा के क्षेत्र में अपनी महत्त्वपूर्ण पहचान बनाने में मदद मिली।
- पाणिनि के महान व्याकरण, 'अष्टाध्यायी' की रचना के समय तक संस्कृत वस्तुतः अपने शास्त्रीय रूप में पहुँच चुकी थी और उसके बाद बहुत कम विकसित हुई।
- पाणिनि का व्याकरण, जिसका आधार पहले के कई व्याकरणविदों द्वारा किया गया कार्य था, ने संस्कृत भाषा को प्रभावी रूप से स्थिरता प्रदान की।
- पहले के कार्यों ने आधार को एक शब्द के मूल तत्त्व के रूप में मान्यता दी थी तथा कुछ 2,000 एकाक्षरिक आधारों को वर्गीकृत किया था, जिसे उपसर्ग, प्रत्यय एवं विभक्ति के साथ भाषा के सभी शब्दों को प्रदान करने का विचार था।