उत्तराखंड Switch to English
मिलीमीटर वेव ट्रांसीवर
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स (C-DOT) ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-रुड़की (IIT-रुड़की) के साथ "5G ग्रामीण कनेक्टिविटी के लिये मिलीमीटर वेव ट्रांसीवर" के विकास के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
प्रमुख बिंदु
- मिलीमीटर वेव बैकहॉल प्रौद्योगिकी परियोजना:
- इसका उद्देश्य विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर 5G कनेक्टिविटी के लिये मिलीमीटर वेव बैकहॉल प्रौद्योगिकी विकसित करना है।
- सीमित संख्या में छोटे सेल-आधारित स्टेशनों (SBS) को फाइबर के माध्यम से नेटवर्क गेटवे से जोड़ा जाएगा, जिससे बुनियादी ढाँचे की जरूरतें कम हो जाएंगी।
- ट्रांसीवर के विकास में संयुक्त ऑप्टिकल और मिलीमीटर तरंग दृष्टिकोण का उपयोग किया जाएगा।
- इससे प्रौद्योगिकी के समग्र आकार और लागत में कमी आने की उम्मीद है, जिससे यह अधिक कुशल और सस्ती हो जाएगी।
- इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय सेमीकंडक्टर निर्माण उद्योगों पर भारत की निर्भरता को कम करना तथा आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना है।
- यह बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) सृजित करने और मिलीमीटर वेव तथा SUB-THz प्रौद्योगिकी में कुशल कार्यबल विकसित करने तथा 5G और 6G में प्रगति के लिये तैयारी करने में योगदान देगा।
- इसका उद्देश्य विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर 5G कनेक्टिविटी के लिये मिलीमीटर वेव बैकहॉल प्रौद्योगिकी विकसित करना है।
- स्थानीय उद्योग और रोज़गार के लिये समर्थन:
- यह परियोजना लघु और मध्यम स्तर के उद्योगों को भारत में विशेष रूप से बहुलक-आधारित और धातु-एकीकृत संरचनाओं में विनिर्माण इकाइयाँ स्थापित करने के लिये प्रोत्साहित करती है।
- स्थानीय विनिर्माण में वृद्धि से भारतीय इंजीनियरिंग स्नातकों के लिये रोज़गार के अवसर सृजित होंगे।
- TTDF योजना के अंतर्गत वित्तपोषण सहायता:
- यह समझौता दूरसंचार विभाग की दूरसंचार प्रौद्योगिकी विकास निधि (TTDF) योजना के तहत हस्ताक्षरित किया गया है।
- TTDF का उद्देश्य भारतीय स्टार्टअप्स, शिक्षाविदों और अनुसंधान एवं विकास संस्थानों को वित्तपोषित करना तथा दूरसंचार उत्पादों और समाधानों के घरेलू विकास और व्यावसायीकरण में सहायता करना है।
मिलीमीटर तरंग
- परिचय:
- यह एक वायरलेस संचार तकनीक है जो डेटा संचारित करने के लिये उच्च आवृत्ति रेडियो तरंगों का उपयोग करती है।
- मिलीमीटर तरंगों की आवृत्ति रेंज 30-300 GHz और तरंगदैर्घ्य रेंज 1-10 मिलीमीटर होती है।
- उपयोग:
- 5G: 5G में मिलीमीटर तरंगों का उपयोग उच्च गति, बढ़ी हुई बैंडविड्थ संचार प्रदान करने के लिये किया जाता है।
- विस्फोटक का पता लगाना: मिलीमीटर तरंगें कपड़ों के माध्यम से गुजर सकती हैं और शरीर से परावर्तित हो सकती हैं, जिससे इमेजिंग सिस्टम को छिपी हुई वस्तुओं का पता लगाने में मदद मिलती है।
- अन्य अनुप्रयोग: मिलीमीटर तरंगों का उपयोग व्यावसायिक और आवासीय ब्रॉडबैंड एक्सेस, कैंपस क्षेत्र नेटवर्क, आउटडोर वाई-फाई हॉटस्पॉट आदि के लिये किया जा सकता है।
टेलीमैटिक्स विकास केंद्र (C-DOT)
- इसकी स्थापना 1984 में हुई थी। यह दूरसंचार विभाग, संचार मंत्रालय का एक स्वायत्त दूरसंचार R&D (अनुसंधान और विकास) केंद्र है।
- यह सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत सोसायटी है।
- यह विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग (DSIR) के साथ पंजीकृत सार्वजनिक वित्त पोषित अनुसंधान संस्थान है।
हरियाणा Switch to English
ICAR-NRC इक्विन को वैश्विक मान्यता
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत पशुपालन और डेयरी विभाग (DAHD) ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, हिसार (ICAR-NRC इक्विन) को इक्विन पिरोप्लास्मोसिस के लिये विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH) संदर्भ प्रयोगशाला के रूप में नामित करने की सुविधा प्रदान की है।
मुख्य बिंदु
- इक्विन पिरोप्लास्मोसिस:
- इक्विन पिरोप्लास्मोसिस, जो टिक-जनित (टिक के काटने से फैलने वाले रोग) प्रोटोज़ोआ परजीवी बेबेसिया कैबाली और थेलेरिया इक्वी के कारण होता है, घोड़ों, गधों, खच्चरों और ज़ेबरा को प्रभावित करता है, जिससे गंभीर स्वास्थ्य और आर्थिक चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
- भारत में इस रोग की सीरोप्रिवलेंस 15-25% है तथा उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में यह 40% तक है, जिससे स्वास्थ्य पर प्रभाव, उत्पादकता में गिरावट और व्यापार प्रतिबंधों के कारण आर्थिक क्षति होती है।
- NRC इक्विन ने इक्विन पिरोप्लास्मोसिस के लिये उन्नत नैदानिक उपकरण विकसित किये हैं, जिनमें एलिसा, अप्रत्यक्ष फ्लोरोसेंट एंटीबॉडी टेस्ट, प्रतिस्पर्द्धी एलिसा (ELISA), रक्त स्मीयर परीक्षा, MASP इन-विट्रो कल्चर सिस्टम और एंटीजन का पता लगाने के लिये PCR शामिल हैं।
- भारत में घोड़ों की जनसंख्या:
- 20वीं पशुधन जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 0.55 मिलियन अश्व (घोड़े, टट्टू, गधे, खच्चर) हैं जो आजीविका और विभिन्न उद्योगों में योगदान देते हैं।
- इनमें से 0.34 मिलियन घोड़े और टट्टू, 0.12 मिलियन गधे और 0.08 मिलियन खच्चर हैं, जिनकी अधिकांश संख्या उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और हरियाणा में है।
- 20वीं पशुधन जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 0.55 मिलियन अश्व (घोड़े, टट्टू, गधे, खच्चर) हैं जो आजीविका और विभिन्न उद्योगों में योगदान देते हैं।
- WOAH संदर्भ प्रयोगशाला के रूप में NRC इक्विन की भूमिका:
- WOAH संदर्भ प्रयोगशाला के रूप में, NRC इक्विन वैश्विक स्तर पर सहयोग करेगा, नैदानिक सेवाएँ प्रदान करेगा, तकनीकी विशेषज्ञता साझा करेगा और इक्विन पिरोप्लास्मोसिस पर अनुसंधान को आगे बढ़ाएगा।
- NRC इक्विन अब WOAH का दर्जा प्राप्त करने वाली चौथी भारतीय प्रयोगशाला है, जो एवियन इन्फ्लूएंज़ा, रेबीज़, PPR और लेप्टोस्पायरोसिस के लिये मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं में शामिल हो गई है।
- औपचारिक घोषणा:
- ICAR-NRC इक्विन का आधिकारिक पदनाम मई 2025 में 92वें WOAH महाधिवेशन और विश्व प्रतिनिधि सभा (World Assembly of Delegates) में घोषित किया जाएगा।
- यह पदनाम भारत की नैदानिक क्षमताओं और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारियों को सुदृढ़ करता है तथा पशु स्वास्थ्य, विशेषकर अश्व रोगों के क्षेत्र में भारत की अग्रणी स्थिति को बढ़ाता है।
विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH)
- OIE के रूप में स्थापित, WOAH एक मानक-निर्धारक निकाय है जिसे स्वच्छता और पादप स्वच्छता उपायों पर समझौते के तहत मान्यता प्राप्त है।
- यह वैश्विक पशु स्वास्थ्य में सुधार के लिये कार्य करता है और इसका मुख्यालय पेरिस, फ्राँस में है।
- WOAH के 183 सदस्य देश थे, जिनमें भारत भी शामिल था।
- यह देशों को रोग के प्रवेश को रोकने में सहायता करने के लिये स्थलीय पशु स्वास्थ्य संहिता (Terrestrial Animal Health Code) जैसे दिशा-निर्देश बनाता है ।
- विश्व व्यापार संगठन (WTO) WOAH मानकों को अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छता दिशा-निर्देश के रूप में स्वीकार करता है।
राजस्थान Switch to English
मेवाड़ राजपरिवार के महेंद्र सिंह मेवाड़ का निधन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पूर्व सांसद और मेवाड़ राजपरिवार के सदस्य महेंद्र सिंह मेवाड़ का उदयपुर में निधन हो गया। वे महाराणा प्रताप के वंशज थे।
मुख्य बिंदु
- महाराणा प्रताप:
- राणा प्रताप सिंह, जिन्हें महाराणा प्रताप के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म 9 मई, 1540 को राजस्थान के कुंभलगढ़ में हुआ था।
- वह मेवाड़ के 13वें राजा थे और उदय सिंह द्वितीय के सबसे बड़े पुत्र थे।
- महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने चित्तौड़ को अपनी राजधानी बनाकर मेवाड़ राज्य पर शासन किया।
- उदय सिंह द्वितीय उदयपुर (राजस्थान) शहर के संस्थापक भी थे।
- हल्दीघाटी का युद्ध:
- हल्दीघाटी का युद्ध 1576 में मेवाड़ के राणा प्रताप सिंह और आमेर के राजा मान सिंह, जो मुगल सम्राट अकबर के सेनापति थे, के बीच लड़ा गया था।
- महाराणा प्रताप ने बहादुरी से युद्ध लड़ा लेकिन मुगल सेना से हार गये।
- माना जाता है कि महाराणा प्रताप के निष्ठावान घोड़े चेतक ने युद्ध के मैदान से लौटते समय अपने प्राण त्याग दिये थे।
- पुनर्विजय:
- 1579 के बाद मेवाड़ पर मुगल दबाव कम हो गया और प्रताप ने कुंभलगढ़, उदयपुर और गोगुंदा सहित पश्चिमी मेवाड़ को पुनः प्राप्त कर लिया।
- इस समय के दौरान, उन्होंने आधुनिक डूंगरपुर के निकट एक नई राजधानी चावंड की स्थापना भी की।
- मृत्यु:
- 19 जनवरी, 1597 को उनकी मृत्यु हो गई। उनके पुत्र अमर सिंह ने उनका स्थान लिया, जिन्होंने 1614 में अकबर के पुत्र सम्राट जहाँगीर के अधीन हो गए।
प्रताप गौरव केंद्र
- यह राजस्थान के उदयपुर शहर में टाइगर हिल पर स्थित एक पर्यटन स्थल है।
- इसका उद्देश्य आधुनिक तकनीक की सहायता से महाराणा प्रताप और क्षेत्र की ऐतिहासिक विरासत के संबंध में जानकारी उपलब्ध कराना है।
बिहार Switch to English
राजगीर स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स
चर्चा में क्यों?
राजगीर स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स 11 से 20 नवंबर, 2024 तक बिहार के राजगीर में महिला एशियाई हॉकी चैंपियंस ट्रॉफी, 2024 का आयोजन करेगा।
मुख्य बिंदु
- लगभग 740 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित यह परिसर भारत के सबसे बड़े और सबसे उन्नत परिसरों में से एक है, जिसे आत्मनिर्भर होने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- खेल सुविधाएँ और मानक:
- मुख्य क्रिकेट स्टेडियम के अलावा, इस परिसर में हॉकी, फुटबॉल, कबड्डी, वॉलीबॉल, तैराकी और कुश्ती सहित 25 खेलों के आयोजन की व्यवस्था होगी, जो सभी अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाए गए हैं।
- यह पहला ऐसा अखाड़ा है जो बनकर तैयार हो चुका है, इसमें लगभग 8,000-10,000 दर्शक बैठ सकते हैं तथा इसका खेल मैदान पेरिस में प्रयुक्त मैदान के समान है।
- वास्तुकला शैली और डिज़ाइन:
- बिहार सरकार ने कार्यालय भवनों, आवासीय सुविधाओं और खेल स्थलों के लिये ईंट और पत्थर का चयन किया, जिससे परिसर को एक भव्य, पारंपरिक रूप दिया गया।
- हॉकी मैदान में शिक्षा के केंद्र के रूप में प्राचीन नालंदा के भित्ति चित्र शामिल हैं तथा इस थीम को चेंजिंग रूम में भी दर्शाया गया है।
- भित्ति चित्र एक ग्राफिक कला का रूप है, जिसे दीवार, छत या अन्य स्थायी सतहों पर सीधे चित्रित या स्थापित किया जाता है।
महिला एशियाई हॉकी चैंपियंस ट्रॉफी
- यह एक द्विवार्षिक अंतर्राष्ट्रीय फील्ड हॉकी प्रतियोगिता है जिसमें एशियाई हॉकी महासंघ के सदस्य संघों की शीर्ष छह महिला राष्ट्रीय टीमें भाग लेती हैं।
- इस टूर्नामेंट में एशिया की सर्वश्रेष्ठ छह महिला राष्ट्रीय टीमें शामिल हैं।
- दक्षिण कोरिया के पास सबसे अधिक खिताब हैं, जिसने तीन बार यह टूर्नामेंट जीता है।
- भारत और जापान ने यह टूर्नामेंट दो-दो बार जीता है।
छत्तीसगढ़ Switch to English
गोट्टी कोया जनजातियों की स्थिति पर रिपोर्ट
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और ओडिशा से माओवादी हिंसा के कारण छत्तीसगढ़ से विस्थापित हुए गोट्टी कोया जनजातियों की स्थिति पर विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा है।
प्रमुख बिंदु
- पृष्ठभूमि और विस्थापन चुनौतियाँ:
- आयोग को मार्च 2022 में एक याचिका प्राप्त हुई, जिसमें बताया गया कि माओवादी हिंसा के कारण 2005 में छत्तीसगढ़ से पलायन करने वाले गोट्टी कोया जनजातियों को अब पड़ोसी राज्यों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
- जनजातीय अधिकार कार्यकर्त्ताओं के अनुसार लगभग 50,000 गोट्टी कोया जनजाति विस्थापित हो गए हैं, जो अब ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र में 248 बस्तियों में रह रहे हैं।
- चिंताएँ:
- तेलंगाना सरकार ने कम से कम 75 बस्तियों में आंतरिक रूप से विस्थापित गोट्टी कोया परिवारों से भूमि वापस ले ली, जिससे उनकी आजीविका प्रभावित हुई और उनकी असुरक्षा बढ़ गई।
- अधिकारियों के अनुसार, छत्तीसगढ़ से आये गोट्टी कोया लोग तेलंगाना में अनुसूचित जनजाति में नहीं आते, इसलिये उन्हें वहाँ वन अधिकार प्राप्त नहीं हैं।
- आयोग ने आर्थिक एवं सामाजिक अध्ययन केंद्र के निदेशक तथा वन विभाग के प्रतिनिधियों से तेलंगाना में गोट्टी कोया बस्तियों में किये गये सर्वेक्षणों के निष्कर्ष प्रस्तुत करने को कहा।
- विस्थापित जनजातियों पर सरकारी आँकड़े:
- सरकार ने संसद को बताया कि पुनर्वास कार्यक्रमों के बावजूद छत्तीसगढ़ के जनजाति परिवार वापस लौटने को तैयार नहीं हैं।
- केंद्रीय जनजातीय मामलों के राज्य मंत्री के अनुसार, सुकमा, बीजापुर और दंतेवाड़ा ज़िलों में वामपंथी उग्रवाद के कारण 2,389 परिवारों के 10,489 लोग विस्थापित हुए।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग
- परिचय:
- इसकी स्थापना 2004 में अनुच्छेद 338 में संशोधन करके और 89वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के माध्यम से संविधान में एक नया अनुच्छेद 338A जोड़कर की गई थी। इसलिये, यह एक संवैधानिक निकाय है।
- इस संशोधन द्वारा पूर्ववर्ती राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग को दो पृथक आयोगों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया:
- राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC)
- राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST)
- उद्देश्य:
- अनुच्छेद 338A, अन्य बातों के साथ-साथ, NCST को संविधान के तहत या किसी अन्य कानून के तहत या सरकार के किसी अन्य आदेश के तहत अनुसूचित जनजातियों को प्रदान किये गए विभिन्न सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन की देखरेख करने और ऐसे सुरक्षा उपायों के कामकाज का मूल्यांकन करने की शक्तियाँ प्रदान करता है।
- संघटन:
- इसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य होते हैं, जिन्हें राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुहर सहित वारंट द्वारा नियुक्त करते हैं।
- कम से कम एक सदस्य महिला होनी चाहिये।
- अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य 3 वर्ष की अवधि के लिये पद धारण करते हैं।
- इसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्य होते हैं, जिन्हें राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुहर सहित वारंट द्वारा नियुक्त करते हैं।
गोट्टी कोया जनजाति
- गोट्टी कोया भारत के कुछ बहु-नस्लीय और बहुभाषी जनजातीय समुदायों में से एक है।
- वे आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों में गोदावरी नदी के दोनों किनारों पर वनों, मैदानों और घाटियों में रहते हैं ।
- ऐसा कहा जाता है कि वे उत्तर भारत के बस्तर स्थित अपने मूल निवास से मध्य भारत में प्रवास कर आये थे ।
भाषा:
- कोया भाषा, जिसे कोयी भी कहा जाता है, एक द्रविड़ भाषा है। यह गोंडी से मिलती-जुलती है और इस पर तेलुगु का बहुत प्रभाव है।
- अधिकांश कोया लोग कोयी के अलावा गोंडी या तेलुगु भी बोलते हैं।
पेशा:
- परंपरागत रूप से वे पशुपालक और झूम कृषि करने वाले किसान थे, लेकिन आजकल उन्होंने स्थायी कृषि के साथ-साथ पशुपालन और मौसमी वन संग्रह को भी अपना लिया है।
- वे ज्वार, रागी, बाजरा की कृषि करते हैं।
समाज और संस्कृति:
- सभी गोट्टी कोया पाँच उपविभागों में से एक से संबंधित हैं जिन्हें गोत्रम कहा जाता है। हर गोट्टी कोया एक कबीले में पैदा होता है, और वह इसे छोड़ नहीं सकता।
- उनका परिवार पितृवंशीय और पितृस्थानीय होता है। इस परिवार को "कुटुम" कहा जाता है। एकल परिवार ही इसका प्रमुख प्रकार है।
- कोया लोगों में एकपत्नीत्व प्रथा प्रचलित है।
- वे अपने स्वयं के जातीय धर्म का पालन करते हैं, लेकिन कई हिंदू देवी-देवताओं की भी पूजा करते हैं।
- कई गोट्टी कोया देवता महिला हैं, जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण "माता पृथ्वी" है।
- वे जरूरतमंद परिवारों की मदद करने और उन्हें खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिये गाँव स्तर पर सामुदायिक निधि और अनाज बैंक चलाते हैं।
- वे मृतकों को या तो दफना देते हैं या उनका दाह संस्कार कर देते हैं। वे मृतकों की याद में मेन्हीर बनवाते हैं।
- उनके मुख्य त्योहार विज्जी पंडुम (बीज आकर्षक त्योहार) और कोंडालाकोलुपु (पहाड़ी देवताओं को प्रसन्न करने का त्योहार) हैं।
- वे त्यौहारों और विवाह समारोहों के दौरान पर्माकोक (बाइसन सींग नृत्य) नामक एक रंगीन नृत्य करते हैं ।
उत्तर प्रदेश Switch to English
गंगा के जल की गुणवत्ता बिगड़ रही है
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने पाया है कि उत्तर प्रदेश में गंगा नदी में सीवेज या गंदगी छोड़े जाने के कारण जल की गुणवत्ता खराब हो रही है।
मुख्य बिंदु
- NGT की चिंताएँ:
- NGT ने उत्तर प्रदेश में सीवेज उपचार की स्थिति की समीक्षा की, जिसमें पाया गया कि प्रयागराज ज़िले में सीवेज उपचार में 128 मिलियन लीटर प्रतिदिन (MLD) का अंतर है।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की एक रिपोर्ट में यह जानकारी सामने आई है कि प्रयागराज में 25 अनुपयोगी नाले गंगा में बिना किसी उपचार के सीवेज का प्रवाह कर रहे हैं, जबकि 15 अन्य नाले यमुना में इसी प्रकार का प्रदूषण फैला रहे हैं।
- उत्तर प्रदेश में 326 नालों में से 247 का उपयोग नहीं किया गया है और वे गंगा तथा उसकी सहायक नदियों में अपशिष्ट जल छोड़ते हैं।
- NGT ने उत्तर प्रदेश में सीवेज उपचार की स्थिति की समीक्षा की, जिसमें पाया गया कि प्रयागराज ज़िले में सीवेज उपचार में 128 मिलियन लीटर प्रतिदिन (MLD) का अंतर है।
- NGT के निर्देश:
- NGT ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को एक शपथ-पत्र प्रस्तुत करने का आदेश दिया, जिसमें प्रत्येक नाले के सीवेज, उससे जुड़े सीवेज उपचार संयंत्रों (STP) और STP को क्रियाशील बनाने की समयसीमा का विवरण हो।
- शपथ-पत्र में अनुपचारित सीवेज निर्वहन को रोकने के लिये अल्पकालिक उपाय भी शामिल होने चाहिये।
- सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) मुद्दे:
- CPCB की रिपोर्ट में बताया गया है कि गंगा के किनारे स्थित 16 शहरों में 41 STP में से छह बंद हैं तथा 35 क्रियाशील संयंत्रों में से केवल एक ही नियमों का अनुपालन करता है।
- 41 स्थानों पर जल की गुणवत्ता में फेकल कोलीफॉर्म का स्तर सुरक्षित सीमा (500/100 मिली.) से अधिक पाया गया, जबकि 17 स्थानों पर यह 2,500 एमपीएन/100 मिली. से अधिक पाया गया, जो अनुपचारित मलजल से होने वाले गंभीर प्रदूषण का संकेत है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB)
- यह एक वैधानिक संगठन है, जिसका गठन वर्ष 1974 में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के तहत किया गया था।
- CPCB को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत शक्तियाँ और कार्य भी सौंपे गए।
- यह एक क्षेत्रीय इकाई के रूप में कार्य करता है तथा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के संबंध में पर्यावरण एवं वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ भी प्रदान करता है।
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