मध्य प्रदेश का 9वाँ टाइगर रिज़र्व | मध्य प्रदेश | 03 Dec 2024
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने शिवपुरी ज़िले में माधव राष्ट्रीय उद्यान को टाइगर रिज़र्व के रूप में मान्यता देने की स्वीकृति प्रदान की है। इस निर्णय के परिणामस्वरूप, माधव मध्य प्रदेश में 9वें बाघ आरक्षित क्षेत्र के रूप में स्थापित होगा।
- समिति ने पार्क में एक नर और एक मादा बाघ को छोड़ने की अनुमति भी प्रदान की।
मुख्य बिंदु
- प्रस्तावित बाघ अभयारण्य क्षेत्र:
- इसका विस्तार 1,751 वर्ग किलोमीटर होगा, जिसमें 300 वर्ग किलोमीटर का मुख्य क्षेत्र शामिल होगा।
- 75 वर्ग किलोमीटर और 1,276 वर्ग किलोमीटर का बफर ज़ोन होगा।
- सफल प्रजनन कार्यक्रम के बाद, माधव राष्ट्रीय उद्यान ने सितंबर 2024 में बाघ शावकों के जन्म के साथ बाघ संरक्षण में एक मील का पत्थर स्थापित किया।
- बाघ पुन:प्रवेश का दूसरा चरण:
- दीर्घकालिक विस्तार योजनाएँ:
- माधव टाइगर रिज़र्व पाँच वर्षों के भीतर 1,600 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तार करने की दीर्घकालिक योजना का हिस्सा है।
- 100 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले बाघ सफारी की भी योजना बनाई गई है, जिसमें 20 करोड़ रुपये का बुनियादी ढाँचा निवेश होगा, जिससे पारिस्थितिकी पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलने की आशा है।
- संरक्षण और पारिस्थितिक पर्यटन लाभ:
- इस पहल का उद्देश्य माधव और कुनो राष्ट्रीय उद्यानों में वन्यजीव प्रबंधन को सुदृढ़ करना है।
- इस परियोजना से इको-पर्यटन को बढ़ावा मिलने तथा स्थानीय समुदायों को लाभ मिलने तथा क्षेत्रीय विकास में योगदान मिलने की आशा है।
- मध्य प्रदेश की लंबित अधिसूचनाएँ:
- रातापानी वन्यजीव अभयारण्य, जिसे वर्ष 2008 में बाघ अभयारण्य के रूप में सैद्धांतिक मंज़ूरी दी गई थी, अभी भी आधिकारिक अधिसूचना का इंतजार कर रहा है।
- रिपोर्टों से पता चलता है कि रातापानी के निकट खनन गतिविधियों के कारण राजनीतिक प्रतिरोध के कारण इसके औपचारिक नामकरण में देरी हुई है।
माधव राष्ट्रीय उद्यान
- परिचय:
- माधव राष्ट्रीय उद्यान मध्य प्रदेश के शिवपुरी ज़िले में स्थित है।
- यह ऊपरी विंध्य पहाड़ियों का एक हिस्सा है।
- यह पार्क मुगल बादशाहों और ग्वालियर के महाराजाओं का शिकारगाह था। इसे वर्ष 1959 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला।
- पारिस्थितिकी तंत्र:
- इसमें विविध पारिस्थितिकी तंत्र है जिसमें झीलें, शुष्क पर्णपाती और शुष्क कांटेदार वन शामिल हैं।
- यह वन बाघों, तेंदुओं, नीलगाय, चिंकारा (गज़ेला बेनेट्टी) और चौसिंघा (टेट्रासेरस क्वाड्रिकॉर्निस) तथा हिरणों (चीतल, सांभर और बार्किंग डियर) का पर्यावास है।
- बाघ गलियारा:
- यह पार्क देश के 32 प्रमुख बाघ गलियारों में से एक के अंतर्गत आता है, जो बाघ संरक्षण योजना के माध्यम से संचालित होते हैं। बाघ संरक्षण योजना वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत कार्यान्वित की जाती है।
COP-16 सम्मेलन | हरियाणा | 03 Dec 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हरियाणा के पर्यावरण, वन और वन्यजीव मंत्री ने 2 से 13 दिसंबर, 2024 तक सऊदी अरब के रियाद में मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCCD)- COP 16 में भाग लेने के लिये नई दिल्ली से एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया।
मुख्य बिंदु
- सहयोग के लिये मंच:
- यह आयोजन ग्रीन जोन के व्यवसायों, वैज्ञानिकों, वित्तीय संस्थानों, गैर-सरकारी संगठनों (NGO) और प्रभावित समुदायों के लिये एक प्रभावी मंच के रूप में कार्य करेगा।
- इसका उद्देश्य भूमि पुनर्स्थापन और सूखा प्रबंधन के लिये सहयोग को सुविधाजनक बनाना और स्थायी समाधान विकसित करना है।
- अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी:
- COP-16 में विश्व भर के विभिन्न देशों के प्रतिनिधि एक साथ आएँगे।
- इस सम्मेलन के माध्यम से मरुस्थलीकरण से संबंधित चुनौतियों के समाधान पर वैश्विक स्तर पर चर्चा को प्रोत्साहन मिलने की संभावना है।
मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCCD)
- वर्ष 1994 में स्थापित, यह पर्यावरण और विकास को सतत् भूमि प्रबंधन से जोड़ने वाला एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
- यह विशेष रूप से शुष्क, अर्द्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है, जिन्हें शुष्क भूमि के रूप में जाना जाता है, जहाँ कुछ सबसे कमज़ोर पारिस्थितिकी तंत्र और लोग पाए जा सकते हैं।
- सम्मेलन के 197 पक्ष शुष्क भूमि पर लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने, भूमि और मृदा की उत्पादकता को बनाए रखने और बहाल करने तथा सूखे के प्रभावों को कम करने के लिये मिलकर काम करते हैं।
- UNCCD भूमि, जलवायु और जैव विविधता की परस्पर जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिये अन्य दो रियो सम्मेलनों के साथ काम करता है:
- जैव विविधता पर कन्वेंशन (CBD)
- जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC)
पोलियो प्रतिरक्षण अभियान | हरियाणा | 03 Dec 2024
चर्चा में क्यों?
भारतीय विशेषज्ञ सलाहकार समूह (IEAG) ने 8 दिसंबर 2024 से प्रारंभ होने वाले पोलियो उप-राष्ट्रीय टीकाकरण दिवस (SNID) के अंतर्गत हरियाणा के छह जिलों को शामिल करने का निर्णय लिया है। ये ज़िले कैथल, झज्जर, गुरुग्राम, फरीदाबाद, सोनीपत और नूंह हैं।
IEAG विशेषज्ञों का एक समूह है जो भारत सरकार को पोलियो उन्मूलन पर सलाह देता है और रणनीतिक मार्गदर्शन प्रदान करता है।
मुख्य बिंदु
- पोलियो SNID राउंड:
- मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य (MCH) निदेशक ने आगामी SNID दौर की तैयारियों की समीक्षा के लिये राज्य टास्क फोर्स की बैठक की अध्यक्षता की।
- उपस्थित लोगों में राज्य टीकाकरण अधिकारी, राज्य मुख्यालय के अधिकारी, ज़िला टीकाकरण अधिकारी तथा महिला एवं बाल विकास, शिक्षा, श्रम, शहरी स्थानीय निकाय, पंचायती राज, जनसंपर्क, आयुष, चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान, भारतीय चिकित्सा संघ तथा भारतीय बाल चिकित्सा अकादमी जैसे प्रमुख हितधारक विभागों के प्रतिनिधि शामिल थे।
- पोलियो-मुक्त स्थिति और सतर्कता की आवश्यकता:
- इस बात पर प्रकाश डाला गया कि हरियाणा और भारत वर्ष 2011 से पोलियो मुक्त बने हुए हैं, जो लगातार प्रयासों के कारण एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
- उन्होंने आगामी SNID दौर में 0-5 वर्ष की आयु के सभी पात्र बच्चों को शामिल करने के महत्त्व पर बल दिया, विशेष रूप से मलावी और मोजाम्बिक में पोलियो वायरस के मामलों की रिपोर्ट के मद्देनज़र, जिनका संबंध पाकिस्तान से है।
- उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना:
- अधिकारियों को निर्देश दिया गया कि वे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में संवेदनशील संख्या की 100% कवरेज प्राप्त करने के लिये व्यापक नामांकन और सूक्ष्म नियोजन सुनिश्चित करना, जैसे:
- शहरी मलिन बस्तियाँ
- खानाबदोश स्थल
- निर्माण स्थल
- ईंट भट्टे
- पोल्ट्री फार्म
- कारखाने
- गन्ना क्रशर
- पत्थर-कुचलने वाले क्षेत्र
- प्रशिक्षण और पर्यवेक्षण:
- प्रभावी टीकाकरण सुनिश्चित करने के लिये सभी टीका लगाने वालों को प्रशिक्षण दिया जाएगा।
- राज्य मुख्यालय के अधिकारी ज़िला स्तर पर गतिविधियों की निगरानी एवं पर्यवेक्षण करेंगे।
- वास्तविक समय पर फीडबैक प्राप्त करने तथा सभी ज़िलों में बहु-स्तरीय पर्यवेक्षण लागू करने के लिये ज़िला-स्तरीय पर्यवेक्षण योजना तैयार की जाएगी।
पोलियो
- परिचय:
- पोलियो एक अपंगकारी और संभावित रूप से घातक वायरल संक्रामक रोग है जो तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है।
- तीन अलग-अलग और प्रतिरक्षात्मक रूप से भिन्न जंगली पोलियोवायरस उपभेद हैं:
- जंगली पोलियोवायरस प्रकार 1 (WPV1)
- जंगली पोलियोवायरस प्रकार 2 (WPV2)
- जंगली पोलियोवायरस प्रकार 3 (WPV3)
- लक्षणात्मक रूप से, तीनों स्ट्रेन एक जैसे हैं, यानी वे अपरिवर्तनीय पक्षाघात या यहाँ तक कि मौत का कारण बनते हैं। हालाँकि, आनुवंशिक और वायरोलॉजिकल अंतर हैं, जो इन तीनों स्ट्रेन को अलग-अलग वायरस बनाते हैं जिन्हें अलग-अलग खत्म किया जाना चाहिये।
- प्रसार:
- यह वायरस व्यक्ति-से-व्यक्ति में मुख्यतः मल-मौखिक मार्ग से फैलता है या कभी-कभी एक ही माध्यम से संक्रमित होता है (उदाहरण के लिये, दूषित जल या भोजन के माध्यम से)।
- यह मुख्य रूप से 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है। वायरस आंत में बढ़ता है, जहाँ से यह तंत्रिका तंत्र पर आक्रमण कर सकता है और पक्षाघात का कारण बन सकता है।
- लक्षण:
- पोलियो से पीड़ित ज़्यादातर लोग बीमार महसूस नहीं करते। कुछ लोगों में सिर्फ मामूली लक्षण होते हैं, जैसे बुखार, थकान, मतली, सिरदर्द, हाथ-पैरों में दर्द आदि।
- दुर्लभ मामलों में, पोलियो संक्रमण के कारण मांसपेशियों की कार्यक्षमता स्थायी रूप से समाप्त हो जाती है (लकवा)।
- यदि साँस लेने के लिये उपयोग की जाने वाली मांसपेशियाँ लकवाग्रस्त हो जाएँ या मस्तिष्क में संक्रमण हो जाए तो पोलियो घातक हो सकता है।
- रोकथाम और उपचार:
- इसका कोई उपचार नहीं है, लेकिन टीकाकरण के माध्यम द्वारा इसे रोका जा सकता है।
- टीकाकरण:
राजेंद्र प्रसाद जयंती | बिहार | 03 Dec 2024
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री ने देश के प्रथम राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
मुख्य बिंदु
- डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के सिवान ज़िले के जीरादेई में हुआ था।
- शिक्षा:
- उन्होंने 1902 में कलकत्ता प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया।
- 1915 में प्रसाद ने कलकत्ता विश्वविद्यालय के विधि विभाग से विधि में स्नातकोत्तर की परीक्षा दी, परीक्षा उत्तीर्ण की और स्वर्ण पदक जीता।
- 1916 में उन्होंने पटना उच्च न्यायालय से अपना कानूनी करियर शुरू किया। 1937 में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।
- स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका:
- गांधीजी से संबंधित:
- जब गांधीजी बिहार के चंपारण ज़िले में स्थानीय किसानों की शिकायतों के समाधान के लिये तथ्य-खोज अभियान पर थे, तो उन्होंने राजेंद्र प्रसाद को स्वयंसेवकों के साथ चंपारण आने के लिये बुलाया।
- चंपारण सत्याग्रह ने न केवल उन्हें महात्मा गांधी के करीब ला दिया, बल्कि उनके जीवन की पूरी दिशा ही बदल दी।
- 1919 के रॉलेट एक्ट और 1919 के जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने राजेंद्र प्रसाद को गांधीजी के करीब ला दिया।
- असहयोग का आह्वान:
- नमक सत्याग्रह:
- मार्च 1930 में गांधीजी ने नमक सत्याग्रह शुरू किया। डॉ. प्रसाद के मार्गदर्शन में बिहार के नखास तालाब में नमक सत्याग्रह शुरू किया गया।
- डॉ. प्रसाद और भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस:
- वह 1911 में कलकत्ता में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के वार्षिक अधिवेशन के दौरान आधिकारिक रूप से इसमें शामिल हुए।
- उन्होंने अक्तूबर 1934 में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के बम्बई अधिवेशन की अध्यक्षता की।
- अप्रैल 1939 में कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष पद से सुभाष चंद्र बोस के त्याग-पत्र के बाद वे दूसरी बार अध्यक्ष चुने गये।
- 1946 में वे पंडित जवाहरलाल नेहरू की अंतरिम सरकार में खाद्य एवं कृषि मंत्री के रूप में शामिल हुए और “अधिक खाद्यान्न उगाओ (Grow More Food)” का नारा दिया।
- डॉ. प्रसाद और संविधान सभा:
- जुलाई 1946 में जब भारत का संविधान बनाने के लिये संविधान सभा की स्थापना हुई तो वे इसके अध्यक्ष चुने गए।
- डॉ. प्रसाद की अध्यक्षता में संविधान सभा की समितियों में शामिल हैं:
- राष्ट्रीय ध्वज पर तदर्थ समिति
- प्रक्रिया नियमों पर समिति
- वित्त और कर्मचारी समिति
- संचालन समिति
- 26 जनवरी, 1950 को स्वतंत्र भारत का संविधान स्वीकृत हुआ और वे भारत के प्रथम राष्ट्रपति चुने गए।
- पुरस्कार एवं सम्मान:
- 1962 में , राष्ट्रपति के रूप में 12 वर्षों के बाद, डॉ॰ प्रसाद सेवानिवृत्त हुए और तत्पश्चात उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
- डॉ. प्रसाद ने अपने जीवन और स्वतंत्रता से पहले के दशकों को कई पुस्तकों में दर्ज किया, जिनमें शामिल हैं:
- चंपारण में सत्याग्रह
- भारत विभाजित
- उनकी आत्मकथा "आत्मकथा"
- महात्मा गांधी और बिहार, कुछ यादें
- बापू के कदमों में
- मृत्यु:
- डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने अपने जीवन के अंतिम कुछ महीने पटना के सदाकत आश्रम में संन्यास में व्यतीत किये। 28 फरवरी, 1963 को उनका निधन हो गया।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह जयंती | उत्तर प्रदेश | 03 Dec 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने दूरदर्शी राष्ट्रवादी राजा महेंद्र प्रताप सिंह (1886-1979) की 138वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
मुख्य बिंदु
- पृष्ठभूमि:
- राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जन्म 1 दिसंबर, 1886 को हाथरस, उत्तर प्रदेश में हुआ था।
- वह एक स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी, लेखक और समाज सुधारक थे।
- उन्होंने 1909 में उत्तर प्रदेश के वृंदावन में एक तकनीकी संस्थान, प्रेम महाविद्यालय की स्थापना की।
- स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान:
- महेंद्र प्रताप ने 1906 में कोलकाता में हुए कॉन्ग्रेस अधिवेशन में सक्रिय रूप से भाग लिया, स्वदेशी आंदोलन का समर्थन किया और स्वदेशी उद्योगों और स्थानीय कारीगरों का समर्थन किया।
- महेंद्र प्रताप भारत के स्वतंत्रता संग्राम में गहराई से शामिल थे। 1915 में, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन का विरोध करते हुए, काबुल, अफगानिस्तान में भारत की पहली अनंतिम सरकार की घोषणा की, जिसके अध्यक्ष वे स्वयं थे।
- उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारत की लड़ाई के लिये जर्मनी, जापान और रूस जैसे देशों से समर्थन मांगा।
- कहा जाता है कि बोल्शेविक क्रांति के दो वर्ष बाद 1919 में उनकी मुलाकात व्लादिमीर लेनिन से हुई थी।
- उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1940 में जापान में भारत के कार्यकारी बोर्ड का भी गठन किया था।
- अंतर्राष्ट्रीयवादी एवं शांति समर्थक:
- महेंद्र प्रताप को शांति के लिये वैश्विक वकालत और भारत और अफगानिस्तान में ब्रिटिश अत्याचारों को उजागर करने के उनके प्रयासों के लिये 1932 में नोबेल शांति पुरस्कार के लिये नामांकित किया गया था।
- 1929 में महेंद्र प्रताप ने बर्लिन में विश्व महासंघ की स्थापना की, जिसने बाद में संयुक्त राष्ट्र के निर्माण को प्रभावित किया।
- राजनीतिक कैरियर:
- स्वतंत्रता के बाद, उन्होंने पंचायती राज के विचार को बढ़ावा देने के लिये कड़ी मेहनत की और मथुरा (1957) से संसद सदस्य के रूप में कार्य किया।
- मृत्यु:
- 29 अप्रैल, 1979 को उनकी मृत्यु हो गई।