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सामाजिक न्याय

माधव राष्ट्रीय उद्यान में विस्थापन संबंधी मुद्दा

  • 17 Feb 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

माधव राष्ट्रीय उद्यान

मेन्स के लिये:

माधव राष्ट्रीय उद्यान में विस्थापन संबंधी मुद्दा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मध्य प्रदेश के माधव राष्ट्रीय उद्यान (Madhav National Park) में भूमि अतिक्रमण के मामले सामने आए हैं।

मुख्य बिंदु:

  • माधव राष्ट्रीय उद्यान की तरफ से दावा किया गया है कि बाघ गलियारे के निर्माण हेतु ज़मीन अधिग्रहण किये जाने के कारण 20 वर्ष पहले विस्थापित हुए 39 आदिवासी परिवारों को आवंटित करने के लिये भूमि उपलब्ध नहीं है।
  • हालाँकि सैकड़ों अन्य लोग जिन्हें ज़मीन खाली करने पर मुआवज़ा दिया गया, वे अभी भी वहाँ कृषि कार्यों में संलग्न हैं तथा संबंधित बाघ गलियारे की भूमि का अतिक्रमण कर रहे हैं।
  • अक्तूबर, 2019 में माधव राष्ट्रीय उद्यान शिवपुरी के मुख्य वन संरक्षक ने अपने एक पत्र में बताया कि कई लोगों ने मुआवज़ा प्राप्त करने के बाद भी गलियारे की ज़मीन खाली नहीं की और कई अतिक्रमण जारी रखा है जबकि कई विस्थापितों ने इस ज़मीन पर फिर से खेती करना प्रारंभ कर दिया है।
  • 77 परिवारों ने मुआवज़ा लेने से इनकार कर दिया तथा इस ज़मीन पर पुनः कृषि कार्य प्रारंभ कर दिया।

पृष्ठभूमि:

  • इस राष्ट्रीय उद्यान के बाघ गलियारे के अंतर्गत 15 गाँव आते हैं जहाँ बाघों को आखिरी बार 1970 के दशक में देखा गया था।
  • इन गाँवों में से 10 गाँवों को वर्ष 2000 में दूसरी जगह विस्थापित कर दिया गया था।
  • जबकि बचे हुए 468 परिवारों में से 391 ने मुआवज़ा स्वीकार कर लिया और कई व्यक्तियों ने अपनी भूमि को छोड़ने से इनकार कर दिया।

पुनर्वास पैकेज और उससे संबंधित समस्या?

  • पुनर्वास पैकेज के रूप में प्रत्येक परिवार के लिये दो हेक्टेयर भूमि और पुनर्वास का वायदा किया गया था।
  • जब बालापुर नामक गाँव के ग्रामीणों को स्थानांतरित किया जा रहा था, तब अधिकारियों ने 61 परिवारों को गलती से राजस्व भूमि के बदले वन भूमि आवंटित कर दी थी।
  • अतः सरकार ने 39 स्थानांतरित परिवारों के लिये भूमि आवंटन की प्रक्रिया रोक दी, जो अभी भी दो हेक्टेयर भूमि के आवंटन की प्रतीक्षा में हैं।
  • राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से लंबित जमीन की अधिसूचना वापस लेने की मांग की है।

जनजातीय संवेदनशीलता:

  • विस्थापित 39 सहरिया जनजाति के परिवारों के पुरुष, विशेष रूप से कमज़ोर आदिवासी समूह जो कि पारंपरिक रूप से वन उपज और खेती पर निर्भर हैं, ने अवैध रूप से संचालित पत्थर की खदानों में काम करना प्रारंभ कर दिया, जिसके कारण वे तपेदिक रोग से पीड़ित हो गए तथा कई की मृत्यु हो गई। इसके परिणामस्वरुप लगभग 15 महिलाएँ विधवा हो गईं।
  • इस स्थिति को देखकर मध्य प्रदेश मानवाधिकार आयोग ने सभी ज़िला प्राधिकरणों को उनके परिवारों को मुआवज़ा देने का निर्देश दिया।

विधवाओं का गाँव:

  • इस क्षेत्र में उपस्थित बुरी बड़ोद गाँव जिसे विधवाओं के गाँव की संज्ञा दी जाती है, के निवासियों ने लंबित कृषि भूमि के आवंटन की मांग करते हुए यह भी कहा है कि आवंटित भूमि पूरी तरह से बारिश पर निर्भर होने के कारण कृषि योग्य नहीं है।
  • इन विस्थापितों ने उपजाऊ और खेती योग्य भूमि की मांग करते हुए तर्क दिया है कि ये लोग जंगल में तेंदू पत्ते, महुआ और गोंद से अपनी आजीविका चला लेते थे परंतु अब ये लोग कृषि मज़दूरों के रूप में काम करने के लिये पलायन को बाध्य हैं।

माधव राष्ट्रीय उद्यान:

  • माधव राष्ट्रीय उद्यान मध्य प्रदेश में शिवपुरी शहर के पास ऊपरी विंध्यन पहाड़ियों के एक हिस्से के रूप में स्थित है।
  • यह राष्ट्रीय उद्यान मुगल सम्राटों और ग्वालियर के महाराजा का शिकार-स्थल था।
  • इसे वर्ष 1958 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा प्रदान किया गया।
  • इस उद्यान में पारिस्थितिकी तंत्र के विविध आयाम जैसे-झीलें, जंगल और घास के मैदान शामिल हैं।
  • इस उद्यान में नीलगाय, चिंकारा और चौसिंगा जैसे एंटीलोप (Antelope) तथा चीतल, सांभर और बार्किंग डीयर (Barking Deer) जैसे मृग पाए जाते हैं।
  • इस राष्ट्रीय उद्यान में तेंदुआ, भेड़िया, सियार, लोमड़ी, जंगली कुत्ता, जंगली सुअर, साही, अजगर आदि जानवर भी देखे जा सकते हैं।

स्रोत- द हिंदू

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