जैव विविधता और पर्यावरण
UNFCCC COP29- बाकू
- 25 Nov 2024
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प्रिलिम्स के लिये:जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन, नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य, कार्बन बाज़ार, संयुक्त राष्ट्र, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान, वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा, लीमा वर्क प्रोग्राम ऑन जेंडर, खाद्य और कृषि संगठन, ग्रीन क्लाइमेट फंड, पर्यावरण के लिये जीवन शैली (LiFE), जलवायु के लिये मैंग्रोव गठबंधन। मेन्स के लिये:भारत की जलवायु नीति, COP29 और इसके परिणाम, वैश्विक जलवायु शासन, वैश्विक जलवायु पहल में भारत का नेतृत्व |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCC) के पार्टियों के 29वें सम्मेलन (सीओपी29) का समापन बाकू, अजरबैजान में हुआ। इस सम्मेलन में लगभग 200 देशों के मध्य वैश्विक जलवायु चुनौतियों से निपटने के उद्देश्य संबंधी समझौतों पर वार्ता हुई।
COP29 की मुख्य बातें क्या हैं?
- नया जलवायु वित्त लक्ष्य: COP29 में एक बड़ी सफलता जलवायु वित्त पर नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG) है। इसका उद्देश्य विकासशील देशों के लिये जलवायु वित्त को वर्ष 2035 तक पूर्व लक्ष्य 100 अमेरिकी डॉलर से बढ़ाकर 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष तक अर्थात् तीन गुना कर विकसित देशों को आगे रखना है।
- इसमें सभी हितधारकों से वर्ष 2035 तक समस्त सार्वजनिक और निज़ी स्रोतों से जलवायु वित्तपोषण को बढ़ाकर 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष करने का आह्वान किया गया है, ताकि विकासशील देशों को जलवायु प्रभावों को कम करने और उनसे अनुकूलन करने में सहायता मिल सके।
- कार्बन बाज़ार समझौता: COP29 ने कार्बन बाज़ारों के लिये तंत्र को अंतिम रूप देने के लिये एक ऐतिहासिक समझौता किया, जिसमें देश-दर-देश व्यापार (पेरिस समझौते का अनुच्छेद 6.2) और संयुक्त राष्ट्र (UN) के तहत एक केंद्रीकृत कार्बन बाज़ार (पेरिस समझौते का अनुच्छेद 6.4) शामिल है।
- अनुच्छेद 6.2, देशों के बीच पारस्परिक रूप से सहमत शर्तों के आधार पर कार्बन क्रेडिट का व्यापार करने के लिये द्विपक्षीय समझौतों की अनुमति देता है।
- पेरिस समझौता ऋण व्यवस्था (जिसे अनुच्छेद 6.4 के नाम से भी जाना जाता है) का उद्देश्य एक केंद्रीकृत, संयुक्त राष्ट्र -प्रबंधित कार्बन उत्सर्जन ऑफसेट और व्यापार प्रणाली विकसित करना है।
- मीथेन कम करने पर घोषणा: अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन और संयुक्त अरब अमीरात समेत 30 से अधिक देशों ने जैविक अपशिष्ट से मीथेन कम करने पर COP29 घोषणा का समर्थन किया (भारत इसमें हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है)।
- घोषणापत्र में अपशिष्ट क्षेत्र के मीथेन उत्सर्जन को लक्षित किया गया है, जो वैश्विक मीथेन उत्सर्जन में 20% का योगदान देता है। यह पाँच प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है: राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC), विनियमन, डेटा, वित्त और भागीदारी।
- देशों को अपने NDC में जैविक अपशिष्ट से मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिये क्षेत्रीय लक्ष्य शामिल करने हेतु प्रोत्साहित किया जाता है।
- यह वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा (भारत इस पर हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है) पर आधारित है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक वैश्विक मीथेन उत्सर्जन को 30% तक कम करना है, तथा कृषि, अपशिष्ट एवं जीवाश्म ईंधन से निष्कासित मीथेन की समस्या का समाधान करना है।
- स्वदेशी लोग और स्थानीय समुदाय: COP29 ने जलवायु परिवर्तन से निपटने में स्वदेशी लोगों और स्थानीय समुदायों के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
- COP29 ने बाकू कार्ययोजना को अपनाया और स्थानीय समुदाय और स्वदेशी लोगों के मंच (LCIPP) के तहत सुविधाजनक कार्य समूह (FWG) के अधिदेश को नवीनीकृत किया।
- बाकू कार्ययोजना में स्वदेशी ज्ञान को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़ने, जलवायु संवादों में स्वदेशी भागीदारी को बढ़ाने तथा जलवायु नीतियों में स्वदेशी मूल्यों को शामिल करने को प्राथमिकता दी गई है।
- FWG बाकू कार्ययोजना को लिंग-संवेदनशील और सहयोगात्मक तरीके से क्रियान्वित करेगा, जिसकी प्रगति की समीक्षा 2027 में की जाएगी।
- LCIPP का FWG एक गठित निकाय है जिसकी स्थापना COP24 में LCIPP को और अधिक क्रियाशील बनाने तथा विविध निकायों के साथ कार्य करते हुए ज्ञान, सहभागिता और जलवायु नीतियों पर इसके कार्यों को सुगम बनाने के लिये की गई थी।
- COP29 ने बाकू कार्ययोजना को अपनाया और स्थानीय समुदाय और स्वदेशी लोगों के मंच (LCIPP) के तहत सुविधाजनक कार्य समूह (FWG) के अधिदेश को नवीनीकृत किया।
- लिंग और जलवायु परिवर्तन: लैंगिक दृष्टिकोण पर लीमा वर्क प्रोग्राम (LWPG) को अगले 10 वर्षों के लिये बढ़ाने का निर्णय लिया गया, जिससे जलवायु कार्यवाही में लैंगिक समानता की पुष्टि हुई और COP30 (बेलेम, ब्राज़ील) में एक नई लैंगिक कार्यवाही योजना को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
- 2014 में स्थापित LWPG का उद्देश्य लैंगिक संतुलन को बढ़ावा देना तथा लैंगिक विचारों को एकीकृत करना है, ताकि कन्वेंशन और पेरिस समझौते के तहत लैंगिक-संवेदनशील जलवायु नीति और कार्यवाही सुनिश्चित की जा सके।
- किसानों के लिये बाकू हार्मोनिया जलवायु पहल: खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के साथ साझेदारी में COP29 प्रेसीडेंसी ने किसानों के लिये बाकू हार्मोनिया जलवायु पहल शुरू की है।
- यह एक ऐसा मंच है जो खाद्य और कृषि के क्षेत्र में मौजूदा जलवायु पहलों के बिखरे हुए परिदृश्य को एक साथ लाता है, ताकि किसानों के लिये समर्थन प्राप्त करना आसान हो सके और वित्त तक उनकी पहुँच सुगम हो सके।
COP 29 पर भारत का रुख क्या है?
- समझौते का विरोध: भारत ने NCQG की अपर्याप्तता की आलोचना करते हुए उसे अस्वीकार कर दिया। विकासशील देशों के सामने आने वाली जलवायु चुनौतियों से निपटने के लिये 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर की प्रतिबद्धता को अपर्याप्त माना गया।
- भारत, अन्य ग्लोबल साउथी देशों के साथ मिलकर, विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिये कम से कम 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष की वकालत कर रहा है, जिसमें 600 बिलियन अमेरिकी डॉलर अनुदान या अनुदान-समतुल्य संसाधन के रूप में शामिल हैं।
- पेरिस समझौते का अनुच्छेद 9: भारत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि विकसित देशों को पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9 के अनुरूप जलवायु वित्त जुटाने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिये, जिसमें विकसित देशों पर ज़िम्मेदारी डाली गई है।
- हालाँकि, अंतिम समझौते ने विकसित देशों को उनके ऐतिहासिक उत्सर्जन और वित्तीय प्रतिबद्धताओं के लिये जवाबदेह ठहराने के बजाय, विकासशील देशों सहित सभी पक्षों पर ज़िम्मेदारी डाल दी।
- कमज़ोर राष्ट्रों के साथ एकजुटता: भारत ने अल्प विकसित देशों (LDC) और लघु द्वीप विकासशील राज्यों (SIDS) की चिंताओं का समर्थन किया, जिन्होंने यह कहते हुए वार्ता से किनारा कर लिया कि उचित और पर्याप्त वित्तीय लक्ष्य की उनकी मांगों को नजरअंदाज किया जा रहा है।
भारत के लिये COP क्यों महत्त्वपूर्ण है?
- भारत की जलवायु प्रतिबद्धताएँ और उपलब्धियाँ: भारत की पहली NDC वर्ष 2015 में प्रस्तुत की गई थी, और इसने वर्ष 2022 में अपने जलवायु लक्ष्यों को अद्यतन किया, जिसमें उत्सर्जन तीव्रता को 33-35% तक कम करने और गैर-जीवाश्म ईंधन से अपनी ऊर्जा क्षमता का 40% पूरा करने जैसी उपलब्धियों पर प्रकाश डाला गया।
- जलवायु वित्त को सुरक्षित करना: भारत हरित जलवायु कोष और कार्बन क्रेडिट बाज़ार जैसे तंत्रों के माध्यम से प्राप्त धन का प्रमुख लाभार्थी रहा है।
- भारत के लिये बाढ़ और चक्रवात जैसे जलवायु-प्रेरित प्रभावों से निपटने के लिये वित्तीय सहायता प्राप्त करने हेतु हानि और क्षति कोष पर COP चर्चाएँ महत्त्वपूर्ण हैं।
- वैश्विक जलवायु नेतृत्व: COP भारत को वैश्विक जलवायु कार्रवाई में अपने नेतृत्व का दावा करने का अवसर प्रदान करता है, जिसमें वैश्विक जलवायु चुनौती के लिये स्थायी समाधान को आगे बढ़ाने के क्रम में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) जैसी पहल शामिल हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव का लाभ उठाना: भारत COP में समान विचारधारा वाले विकासशील देशों (LMDC) और BASIC समूह का नेतृत्व करता है, जो ग्लोबल साउथ के प्रभाव को बढ़ाने के साथ न्यायसंगत जलवायु कार्रवाई एवं वित्तपोषण में सहायक है।
- COP जैसे मंच भारत को पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली (LiFE) के साथ जलवायु हेतु मैंग्रोव गठबंधन जैसी पहलों को बढ़ावा देने के अवसर प्रदान करते हैं।
वैश्विक जलवायु शासन में भारत की भूमिका किस प्रकार विकसित हुई है?
- 1970 से 2000 का दशक: इस दौरान भारत पश्चिमी पर्यावरणीय आह्वानों के प्रति सतर्क था क्योंकि भारत को आशंका थी कि इससे उसके आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न होगी।
- वर्ष 1972 के स्टॉकहोम सम्मेलन में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पर्यावरण संरक्षण और गरीबी उन्मूलन के बीच संतुलन की आवश्यकता पर बल दिया था।
- वर्ष 1992 के रियो डी जेनेरियो में आयोजित पृथ्वी शिखर सम्मेलन में UNFCCC पर हस्ताक्षर करके भारत ने औपचारिक रूप से सतत् विकास को अपनाया तथा साझा लेकिन विभेदित उत्तरदायित्वों (CBDR) का समर्थन किया, जिसमें विकसित तथा विकासशील देशों की अलग-अलग क्षमताओं एवं ज़िम्मेदारियों को मान्यता दी गई।
- भारत ने वर्ष 2002 में COP8 की मेजबानी की थी, जो जलवायु वार्ता में निष्क्रिय भागीदारी से सक्रिय भूमिका की ओर भारत के बदलाव का प्रतीक थी।
- भारत ने वर्ष 2008 में जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC) को अपनाया था, जो उत्सर्जन को कम करने एवं नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का परिचायक है।
- वर्ष 2015 के बाद: पेरिस समझौता, 2015 से वैश्विक जलवायु शासन में प्रमुख बदलाव आने के साथ भारत जैसे विकासशील देशों को असंगत दायित्वों का सामना किये बिना जलवायु कार्रवाई में योगदान करने का प्रोत्साहन मिला।
- कठोर उत्सर्जन न्यूनीकरण लक्ष्यों के क्रम में राष्ट्रीय स्तर पर अभिनिर्धारित योगदान (NDC) की ओर परिवर्तन से भारत को अपनी जलवायु प्रतिबद्धताओं को विकासात्मक प्राथमिकताओं के साथ संरेखित करने में सहायता मिलती है।
- भारत ने राष्ट्रीय स्तर पर अभिनिर्धारित योगदान (NDC) प्रस्तुत किये तथा वर्ष 2022 में उन्हें अद्यतन किया।
- भारत ने वर्ष 2022 में अन्य विकासशील देशों के लिये जलवायु वित्तपोषण हेतु 1.28 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान दिया, जिससे जलवायु नेतृत्वकर्त्ता के रूप में इसकी भूमिका मज़बूत हुई।
- जलवायु समानता एवं न्याय के लिये वकालत: भारत विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करने की वकालत करने के साथ हरित जलवायु कोष एवं लाॅस एंड डैमेज फंड जैसी व्यवस्थाओं का सक्रिय रूप से समर्थन करता है।
- अग्रणी वैश्विक पहल:
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA): वर्ष 2015 में भारत और फ्राँस द्वारा पेरिस में COP21 शिखर सम्मेलन में शुरू किये गए ISA का उद्देश्य वैश्विक स्तर पर सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना है।
- पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली (LiFE): इसके तहत कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिये धारणीय उपभोग पैटर्न की वकालत की गई है।
- जलवायु हेतु मैंग्रोव गठबंधन: यह जलवायु प्रभावों को कम करने के लिये मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: COP29 के परिणामों एवं वैश्विक जलवायु शासन हेतु उनके निहितार्थों पर चर्चा कीजिये। भारत का दृष्टिकोण जलवायु लक्ष्यों एवं विकास प्राथमिकताओं के साथ किस प्रकार संतुलित है? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्सप्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021) |