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जैव विविधता और पर्यावरण

जलवायु के लिये मैंग्रोव गठबंधन

  • 12 Nov 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु के लिये मैंग्रोव गठबंधन, मैंग्रोव, ग्लोबल वार्मिंग, सुंदरबन

मेन्स के लिये:

मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

मिस्र के शर्म अल शेख में COP-27 जलवायु शिखर सम्मेलन के दौरान संयुक्त अरब अमीरात और इंडोनेशिया ने "जलवायु के लिये मैंग्रोव गठबंधन (Mangrove Alliance for Climate- MAC)" की घोषणा की।

जलवायु के लिये मैंग्रोव गठबंधन (MAC):

  • इसमें यूएई, इंडोनेशिया, भारत, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और स्पेन शामिल हैं।
  • इसका उद्देश्य ग्लोबल वार्मिंग को रोकने में मैंग्रोव की भूमिका और जलवायु परिवर्तन के समाधान के रूप में इसकी क्षमता के बारे में दुनिया भर को बताना तथा जागरूकता का प्रसार करना है।
  • हालाँकि अंतर-सरकारी गठबंधन स्वैच्छिक आधार पर काम करता है जिसका अर्थ है कि सदस्यों को जवाबदेह ठहराने के लिये कोई वास्तविक ‘चेक एंड बैलेंस’ नहीं है।
  • इसके बज़ाय, पार्टियाँ मैंग्रोव लगाने और बहाल करने के बारे में अपनी प्रतिबद्धताओं एवं समय-सीमा को तय करेंगी।
  • सदस्य तटीय क्षेत्रों के अनुसंधान, प्रबंधन और संरक्षण में विशेषज्ञता साझा करेंगे और एक-दूसरे का समर्थन करेंगे।

मैंग्रोव:

  • परिचय:
    • मैंग्रोव को लवणीय पौधों और झाड़ियों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय समुद्र तटों के अंतर-ज्वारीय क्षेत्रों में उगते हैं।
    • वे उन जगहों पर बड़े पैमाने पर उगते हैं जहाँ स्वच्छ जल समुद्री जल के साथ मिलता है और जहाँ तलछट मिट्टी जमा होती है।
  • विशेषताएँ:
    • लवणीय वातावरण: वे अत्यधिक प्रतिकूल वातावरण, जैसे अधिक खारेपनऔर कम ऑक्सीजन की स्थिति, में भी जीवित रह सकते हैं।
    • कम ऑक्सीजन: किसी भी पौधे के भूमिगत ऊतक को श्वसन के लिये ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है लेकिन मैंग्रोव वातावरण में मिट्टी में ऑक्सीजन सीमित या शून्य होती है।
      • इसलिये मैंग्रोव जड़ प्रणाली वातावरण से ऑक्सीजन को अवशोषित करती है।
      • इस उद्देश्य के लिये मैंग्रोव की जड़ें आम पौधों से अलग होती हैं जिन्हें ब्रीदिंग रूट्स या न्यूमेटोफोर्स कहा जाता है।
      • इन जड़ों में कई छिद्र होते हैं जिनके माध्यम से ऑक्सीजन भूमिगत ऊतकों में प्रवेश करती है।
    • चरम स्थितियों में उत्तरजीविता: जड़ें पानी में डूबे रहने के कारण मैंग्रोव के पेड़ गर्म, कीचड़युक्त, खारे परिस्थितियों में पनपते हैं, जिसमें दूसरे पौधे जीवित नहीं रह पाते हैं।
    • मोमयुक्त पत्ते: मैंग्रोव, रेगिस्तानी पौधों की तरह मोटे पत्तों में ताज़ा पानी जमा करते हैं।
      • पत्तियों पर एक मोम का लेप जल को अपने अंदर अवशोषित रखता है और वाष्पीकरण को कम करता है।
    • विवियोपोरस: उनके बीज मूल वृक्ष से जुड़े रहते हुए अंकुरित होते हैं। एक बार अंकुरित होने के बाद अंकुर बढ़ने लगते है।
      • परिपक्व अंकुर पानी में गिर जाता है और किसी अलग स्थान पर पहुँच कर ठोस ज़मीन में जड़ें जमा लेता है।
  • महत्त्व:
    • मैंग्रोव तटीय पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न कार्बनिक पदार्थों, रासायनिक तत्त्वों और महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों को रोकते हैं।
    • वे समुद्री जीवों के लिये बुनियादी खाद्य शृंखला संसाधन प्रदान करते हैं।
    • वे विभिन्न प्रकार के समुद्री जीवों के लिये भौतिक आवास और नर्सरी प्रदान करते हैं, जिनमें से कई का महत्त्वपूर्ण मनोरंजक या व्यावसायिक मूल्य है।
    • मैंग्रोव उथले तटरेखा क्षेत्रों में हवा और लहर की गतिविधियों को कम करके बफर के रूप में भी काम करते हैं।
  • शामिल क्षेत्र:
    • वैश्विक मैंग्रोव कवर:
    • दुनिया में कुल मैंग्रोव कवर 1,50,000 वर्ग किमी. है।
    • एशिया में दुनिया भर में मैंग्रोव की सबसे बड़ी संख्या है।
      • दक्षिण एशिया में दुनिया के मैंग्रोव कवर का 6.8% हिस्सा शामिल है।
    • भारत में मैंग्रोव :
      • दक्षिण एशिया में कुल मैंग्रोव कवर में भारत का योगदान 45.8% है।
      • भारतीय राज्य वन रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारत में मैंग्रोव कवर 4992 वर्ग किमी. है जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 0.15% है।
      • सबसे बड़ा मैंग्रोव वन: पश्चिम बंगाल में सुंदरबन दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव वन क्षेत्र हैं। यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध है।
        • इसके बाद गुजरात और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह हैं।

मैंग्रोव द्वारा सामना किये जाने वाले खतरे:

  • तटीय क्षेत्रों का व्यावसायीकरण:
    • जलीय कृषि, तटीय विकास, चावल और ताड़ के तेल की खेती तथा औद्योगिक गतिविधियाँ तेज़ी से इन मैंग्रोव व उनके पारिस्थितिक तंत्र की जगह ले रही हैं।
  • झींगा फार्म:
    • मैंग्रोव वनों के कुल नुकसान का कम-से-कम 35% झींगा फार्मों के उद्भव से हुआ है।
    • झींगा की कृषि का उदय हाल के दशकों में संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप, जापान और चीन में झींगा के प्रति बढ़ते झुकाव की प्रतिक्रिया है।
  • तापमान संबंधित मुद्दे:
    • कम समय में दस डिग्री का उतार-चढ़ाव पौधे को नुकसान पहुँचाने के लिये पर्याप्त होता है और कुछ घंटों के लिये भी बेहद कम तापमान कुछ मैंग्रोव प्रजातियों के लिये अत्यधिक खतरनाक या जानलेवा हो सकता है।
  • मृदा से संबंधित मुद्दे:
    • जिस मिट्टी में मैंग्रोव की जड़ें होती हैं, वह पौधों के लिये एक चुनौती बन जाती है क्योंकि इसमें ऑक्सीजन की भारी कमी होती है।
  • अत्यधिक मानव हस्तक्षेप:
    • पिछले कुछ समय से समुद्र के स्तर में परिवर्तनों के दौरान मैंग्रोव ज़मीन की तरफ बढ़ गए हैं, लेकिन कई जगहों पर मानव विकास अब एक बाधा है जो मैंग्रोव के विस्तार को सीमित करता है।
    • मैंग्रोव अक्सर तेल रिसाव के कारण भी नकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं।

संबंधित पहलें:

  • यूनेस्को नामित साइटें: बायोस्फीयर रिज़र्व, विश्व धरोहर स्थलों और यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क में मैंग्रोव का समावेशन दुनिया भर में मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के प्रबंधन एवं संरक्षण में सुधार करने में योगदान देता है।
  • इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर मैंग्रोव इकोसिस्टम (ISME): ISME एक गैर-सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना वर्ष 1990 में मैंग्रोव के अध्ययन, उनके संरक्षण, तर्कसंगत प्रबंधन और टिकाऊ उपयोग को बढ़ाने के उद्देश्य से की गई थी।
  • ब्लू कार्बन इनिशिएटिव: अंतर्राष्ट्रीय ब्लू कार्बन पहल तटीय और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण एवं पुनरुत्थान के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को कम करने पर केंद्रित है।
    • यह कंज़र्वेशन इंटरनेशनल (CI), IUCN, और इंटरगवर्नमेंटल ओशनोग्राफिक कमीशन-यूनेस्को (IOC-यूनेस्को) द्वारा समन्वित है।
  • मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस: यूनेस्को 26 जुलाई को मैंग्रोव पारिस्थितिक तंत्र के बारे में जागरूकता बढ़ाने और उनके स्थायी प्रबंधन एवं संरक्षण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मैंग्रोव दिवस मनाता है।

आगे की राह

  • मैंग्रोव के संरक्षण को सक्रिय सामुदायिक भागीदारी, पर्यावरण सुरक्षा और प्राकृतिक आपदाओं से किसी भी जोखिम को कम करने के साथ व्यापक परिप्रेक्ष्य से जोड़ने की आवश्यकता है।
    • ऐसे उपायों को अग्रिम अनुकूलन उपायों के मद्देनज़र अधिक समग्र रूप से अपनाए जाने की आवश्यकता है जो सफल और प्रभावी प्रबंधन के लिये आवश्यक हैं। 
  • वनों की कटाई और वन क्षरण से उत्सर्जन को कम करने के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रमों में मैंग्रोव का एकीकरण समय की मांग है।
  • मैंग्रोव वनीकरण से एक नया कार्बन सिंक बनाना और मैंग्रोव वनों की कटाई से उत्सर्जन को कम करना देशों के लिये अपने NDC लक्ष्यों को पूरा करने तथा कार्बन तटस्थता प्राप्त करने के दो संभावित तरीके हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रीलिम्स:

प्रश्न. भारत के निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में मैंग्रोव वन, सदाबहार वन और पर्णपाती वन का संयोजन है? (2015)

(a) उत्तर तटीय आंध्र प्रदेश
(b) दक्षिण-पश्चिम बंगाल
(c) दक्षिणी सौराष्ट्र
(d) अंडमान और निकोबार द्वीप समूह

उत्तर: (D)


प्रश्न. मैंग्रोव की कमी के कारणों पर चर्चा कीजिये और तटीय पारिस्थितिकी को बनाए रखने में उनके महत्त्व को समझाइये। (मुख्य परीक्षा, 2019)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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