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भारत का कार्बन बाज़ार: एक हरित प्रगति

  • 12 Nov 2024
  • 31 min read

यह संपादकीय 12/11/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Giving shape to India’s carbon credit mechanism” पर आधारित है। यह लेख COP-29 में कार्बन फाइनेंस और क्रेडिट फ्रेमवर्क की महत्त्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख करता है, जो भारत के अपने घरेलू कार्बन बाज़ार को विकसित करने के प्रयासों पर केंद्रित है। यह दो प्रमुख चुनौतियों: ग्रीनवाशिंग से बचने के लिये कार्बन क्रेडिट की अखंडता सुनिश्चित करने और विशेष रूप से पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 के तहत अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ तालमेल बिठाने पर प्रकाश डालता है।

प्रिलिम्स के लिये:

COP-29, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान, कार्बन मार्केट, पेरिस समझौता, ग्रीनवाशिंग, ग्रीनहाउस गैस, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, EU-ETS, प्रदर्शन उपलब्धि व्यापार (PAT) योजना, ऊर्जा संरक्षण संशोधन अधिनियम 2022, स्मार्ट सिटीज़ मिशन     

मेन्स के लिये:

घरेलू कार्बन बाज़ार विकसित करने में भारत के लिये अवसर, भारत में कार्बन बाज़ार के विकास से संबंधित प्रमुख मुद्दे। 

बाकू, अज़रबैजान में COP-29 के आयोजन के दौरान कार्बन फाइनेंस और क्रेडिट फ्रेमवर्क विकसित एवं विकासशील देशों के बीच चर्चा के महत्त्वपूर्ण बिंदु बनकर उभरे हैं। भारत, वर्ष 2023 में अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान को अपडेट करने के बाद, अपने घरेलू कार्बन बाज़ार को विकसित करने के लिये तैयार है। हालाँकि वैश्विक अनुभव दो महत्त्वपूर्ण चुनौतियों को उजागर करते हैं: ग्रीनवाशिंग को रोकने के लिये कार्बन क्रेडिट की अखंडता को बनाए रखना और अंतर्राष्ट्रीय मानकों, विशेष रूप से पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 के साथ संरेखण सुनिश्चित करना। 

कार्बन क्रेडिट क्या हैं? 

  • कार्बन क्रेडिट के संदर्भ में: कार्बन क्रेडिट व्यापार योग्य प्रमाण-पत्र हैं जो ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन से बचने या वायुमंडल से अधिक निष्कासन के दावे का प्रतिनिधित्व करते हैं।
    • ये संस्थाओं को इन दावों को खरीदारों को अंतरित करने की अनुमति देते हैं, जो जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिये उन्हें ‘निवृत्त’ कर सकते हैं।
  • प्रमाणन और इकाइयाँ: क्रेडिट सरकारों या स्वतंत्र निकायों द्वारा प्रामाणित होते हैं और आमतौर पर एक मीट्रिक टन CO₂ के परिवर्जन या निष्कासन को दर्शाते हैं। 
    • अनुपालन और स्वैच्छिक रिपोर्टिंग के लिये ‘ऑफसेट’ के बजाय कार्बन क्रेडिट को प्राथमिकता दी जाती है।
    • GHG प्रभावों की तुलना करने के लिये 100-वर्षीय ग्लोबल वार्मिंग क्षमता (GWP) का प्रयोग करके उत्सर्जन को CO2-समतुल्य (CO2e) में मानकीकृत किया जाता है। 
  • वैकल्पिक उपयोग: कार्बन क्रेडिट का उपयोग दावों की भरपाई किये बिना भी किया जाता है, तथा इसका उपयोग केवल जलवायु शमन में किया जाता है।
    • इसके लिये उच्च गुणवत्ता वाले क्रेडिट की आवश्यकता होती है जो कड़े मानदंडों को पूरा करते हों।

घरेलू कार्बन बाज़ार विकसित करने में भारत के लिये क्या अवसर हैं? 

  • आर्थिक मूल्य सृजन और बाज़ार का आकार: भारत कार्बन क्रेडिट का एक महत्त्वपूर्ण निर्यातक है और इसने वर्ष 2010 और 2022 के दौरान स्वैच्छिक कार्बन बाज़ारों में 278 मिलियन क्रेडिट जारी किये हैं, जो वैश्विक आपूर्ति का 17% है।
    • व्यापार के अतिरिक्त, यह बाज़ार कार्बन क्रेडिट सत्यापन एजेंसियों, हरित वित्त संस्थाओं और पर्यावरण परामर्श फर्मों के लिये अवसर उत्पन्न करता है, जिससे संभावित रूप से 200,000 से अधिक नई नौकरियों का सृजन होगा।
    • गुणक प्रभाव भारत के 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है, साथ ही सतत् विकास को भी बढ़ावा दे सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय जलवायु नेतृत्व: विश्व में तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक तथा नवीकरणीय ऊर्जा अंगीकरण में अग्रणी होने के नाते, भारत वैश्विक जलवायु वित्त संरचना को आयाम देने के लिये अपने कार्बन बाज़ार का लाभ उठा सकता है। 
    • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन जैसी पहलों में हाल का नेतृत्व जलवायु कार्रवाई का नेतृत्व करने की भारत की क्षमता को दर्शाता है। 
    • कार्बन बाज़ार जलवायु वार्ताओं में भारत की स्थिति को मज़बूत बना सकता है, विशेष रूप से विकासशील देशों के गठबंधनों में, साथ ही दक्षिण-दक्षिण सहयोग और प्रौद्योगिकी अंतरण के अवसर भी उत्पन्न कर सकता है।
  • औद्योगिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता और नवाचार: कार्बन मूल्य निर्धारण विभिन्न क्षेत्रों में औद्योगिक आधुनिकीकरण और नवाचार को बढ़ावा दे सकता है। 
    • उद्योग दक्षता में सुधार के लिये कार्बन बाज़ार का लाभ उठा सकते हैं, ठीक उसी तरह जैसे EU-ETS ने वर्ष 2005 से औद्योगिक उत्सर्जन को 41% तक कम करने में मदद की है।
    • इससे स्वदेशी स्वच्छ/हरित प्रौद्योगिकियों के विकास के अवसर उत्पन्न होते हैं, विशेषकर सीमेंट और इस्पात जैसे कठिन उद्योगों में। 
    • JSW स्टील की कार्बन कटौती पहल जैसी हाल की सफलता की कहानियाँ भारतीय उद्योग के लिये कम कार्बन उत्सर्जन उपायों में अग्रणी बनने की क्षमता दर्शाती हैं।
  • डिजिटल अवसंरचना एवं प्रौद्योगिकी एकीकरण: भारत का मज़बूत डिजिटल अवसंरचना पारदर्शी, कुशल कार्बन बाज़ार बनाने के लिये विशिष्ट अवसर प्रस्तुत करता है। 
    • UPI और COWIN जैसी डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं की सफलता परिष्कृत कार्बन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म के निर्माण के लिये एक टेम्पलेट प्रदान करती है। 
    • ब्लॉकचेन, IoT और AI का एकीकरण कार्बन क्रेडिट सत्यापन एवं व्यापार में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है, लागत कम कर सकता है तथा पारदर्शिता बढ़ा सकता है। 
      • इससे भारत जलवायु कार्रवाई के लिये डिजिटल समाधान में अग्रणी बन सकता है।
  • हरित निवेश उत्प्रेरक: एक अच्छी तरह से डिज़ाइन किया गया कार्बन बाज़ार महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय हरित वित्त को आकर्षित कर सकता है। 
    • उभरते बाज़ारों (चीन को छोड़कर) में विदेशी वित्तपोषण में ESG निवेश का हिस्सा अब लगभग 18% है। 
    • भारत का कार्बन बाज़ार इस पूंजी को स्थायी परियोजनाओं, विशेष रूप से नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता और वन संरक्षण में निवेश के लिये एक संरचित मार्ग प्रदान कर सकता है। बाज़ार तंत्र भारत के हरित बॉण्ड और स्थायी वित्त पहलों का भी समर्थन कर सकता है।
  • ग्रामीण विकास और कृषि परिवर्तन: कार्बन बाज़ार कृषि और वानिकी कार्बन क्रेडिट के माध्यम से ग्रामीण भारत के लिये विशेष अवसर प्रस्तुत करते हैं।
    • महाराष्ट्र जैसे राज्यों में हाल ही में संचालित पायलट परियोजनाओं से पता चलता है कि किसान कार्बन कृषि के माध्यम से अतिरिक्त आय अर्जित कर रहे हैं। 
      • वे निर्वनीकरण (वनों की कटाई) और कार्बन राजस्व से प्रतिवर्ष 65,000 रुपए प्रति एकड़ तक अर्जित कर रहे हैं, जबकि धान की कृषि से उन्हें मात्र 10,000 रुपए प्रति एकड़ की आय हो रही है।
    • संरचित बाज़ार संधारणीय कृषि, कृषि वानिकी और ग्रामीण नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं को प्रोत्साहित कर सकता है, जिससे संभावित रूप से किसानों को लाभ होगा तथा साथ ही खाद्य सुरक्षा एवं जलवायु अनुकूलन को भी बढ़ावा मिलेगा।
  • क्षेत्र परिवर्तन के अवसर: विभिन्न क्षेत्र विशिष्ट अवसर प्रस्तुत करते हैं: ऊर्जा क्षेत्र नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण में तेज़ी ला सकता है, विनिर्माण क्षेत्र दक्षता में सुधार के लिये धन जुटा सकता है, रियल एस्टेट क्षेत्र हरित भवन को अपनाने में तेज़ी ला सकता है और परिवहन क्षेत्र विद्युत गतिशीलता में तेज़ी ला सकता है।  
    • 13 ऊर्जा-गहन क्षेत्रों को शामिल करने वाली परफॉरमेंस अचीव ट्रेड (PAT) योजना की हाल की सफलता, बाज़ार तंत्र के लिये उद्योग की तत्परता को दर्शाती है। 
    • यह क्षेत्रीय दृष्टिकोण विशिष्ट कार्बन क्रेडिट श्रेणियाँ और व्यापार तंत्र बना सकता है।
  • ज्ञान अर्थव्यवस्था विकास: कार्बन बाज़ार का निर्माण कार्बन लेखांकन, सत्यापन, व्यापार और जलवायु वित्त में विशेषज्ञता विकसित करने के अवसर उत्पन्न करता है। 
    • इससे भारत वैश्विक स्तर पर उभरते कार्बन बाजारों के लिये ज्ञान केंद्र के रूप में स्थापित हो सकता है।
    • जलवायु विश्वविद्यालय नेटवर्क (100 से अधिक विश्वविद्यालयों को जोड़ने वाला) जैसी हालिया पहल विशेष कौशल और अनुसंधान क्षमता निर्माण की संभावनाएँ दर्शाती हैं।
    • बाज़ार पर्यावरण शिक्षा और व्यावसायिक विकास में नवाचार को बढ़ावा दे सकता है।
  • शहरी स्थिरता एकीकरण: कार्बन बाज़ार अपशिष्ट प्रबंधन, शहरी वानिकी और स्वच्छ परिवहन परियोजनाओं के माध्यम से सतत् शहरी विकास को गति दे सकता है।
    • इंदौर जैसे शहर, जो अपशिष्ट कार्बन क्रेडिट से राजस्व उत्पन्न करते हैं, इसकी सम्भावनाओं को दर्शाते हैं। 
    • बाज़ार तंत्र भारत के स्मार्ट सिटीज़ मिशन को समर्थन दे सकता है, कम कार्बन अवसंरचना को प्रोत्साहित कर सकता है तथा शहरी स्थानीय निकायों के लिये जलवायु पहलों को वित्तपोषित करने हेतु नए राजस्व स्रोत सृजित कर सकता है।

भारत में कार्बन बाज़ार के विकास से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • बाज़ार डिज़ाइन एवं मूल्य निर्धारण जटिलता: भारत को एक कुशल बाज़ार संरचना तैयार करने में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जो पर्यावरणीय लक्ष्यों को आर्थिक वास्तविकताओं के साथ संतुलित कर सके। 
    • उचित सीमा निर्धारित करना, भत्ते आवंटित करना तथा मूल्य अस्थिरता को नियंत्रित करते हुए बाज़ार में चल-निधि सुनिश्चित करना, जटिल नीतिगत निर्णयों की आवश्यकता रखता है। 
    • भारत के औद्योगिक परिदृश्य की विविधता, प्रौद्योगिकीय क्षमताओं और उत्सर्जन तीव्रता में भिन्नता के कारण एक समान मूल्य निर्धारण तंत्र विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है। 
    • बाज़ार की प्रभावशीलता को बनाए रखते हुए रणनीतिक क्षेत्रों की सुरक्षा की आवश्यकता के कारण यह और भी जटिल हो जाता है।
  • मापन, रिपोर्टिंग और सत्यापन अवसंरचना: उत्सर्जन डेटा संग्रहण और सत्यापन प्रणालियों में वर्तमान अंतराल महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं। 
    • भारत के विविध औद्योगिक आधार के कारण यह चुनौती और भी बढ़ जाती है, क्योंकि कई छोटे और मध्यम उद्यमों में सटीक उत्सर्जन निगरानी के लिये तकनीकी क्षमता का अभाव है। विभिन्न क्षेत्रों में विश्वसनीय आधारभूत उत्सर्जन डेटा स्थापित करना एक बुनियादी चुनौती बनी हुई है।
  • नियामक ढाँचा और संस्थागत क्षमता: ऊर्जा संरक्षण संशोधन अधिनियम, 2022 के बावजूद, महत्त्वपूर्ण नियामक अंतराल बने हुए हैं। 
    • ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम के कार्यान्वयन में हाल में हुए विलंब से संस्थागत क्षमता संबंधी बाधाओं पर प्रकाश पड़ता है। 
    • विभिन्न एजेंसियों (ऊर्जा दक्षता ब्यूरो, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, CERC) के बीच समन्वय की आवश्यकता परिचालन जटिलताएँ उत्पन्न करती है। 
    • जटिल कार्बन बाज़ार परिचालनों के प्रबंधन के लिये वर्तमान नियामक ढाँचे में पर्याप्त सुधार की आवश्यकता हो सकती है।
  • उद्योग की तत्परता और अनुपालन लागत: कई भारतीय उद्योग, विशेष रूप से MSME, जो प्रतिवर्ष लगभग 110 मिलियन टन समतुल्य CO2 उत्पन्न करते हैं, उन्हें बाज़ार में भागीदारी में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। 
    • निगरानी उपकरण, सत्यापन प्रक्रिया और व्यापारिक बुनियादी अवसंरचना सहित अनुपालन की लागत सीमांत भागीदारों के लिये निषेधात्मक हो सकती है।
    • कार्बन लेखांकन और व्यापार रणनीतियों में तकनीकी क्षमता अंतराल कुछ क्षेत्रों तथा क्षेत्रों के लिये नुकसानदेह हो सकता है, जिससे संभावित रूप से बाज़ार में विकृतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार एकीकरण मुद्दे: राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए घरेलू कार्बन बाज़ारों को अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाना जटिल चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।
    • COP29 में अनुच्छेद 6 की वार्ता, संबंधित समायोजन और ऋण गुणवत्ता के बारे में चल रही बहस को उजागर करती है। 
    • भारत को अपनी कार्बन परिसंपत्तियों पर संप्रभुता बनाए रखने और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार अनुकूलता सुनिश्चित करने के बीच संतुलन बनाना होगा। 
    • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और प्रतिस्पर्द्धात्मकता संबंधी चिंताओं के माध्यम से कार्बन लीकेज के जोखिम को ध्यान में रखते हुए सावधानीपूर्वक नीति-निर्माण की आवश्यकता है।
  • दोहरी गणना एवं अतिरिक्तता संबंधी चिंताएँ: क्रेडिट इंटिग्रिटी सुनिश्चित करना और दोहरी गणना को रोकना एक बहुत बड़ी चुनौती बनी हुई है। 
    • स्वैच्छिक योजनाओं के तहत वानिकी ऋणों की हाल की आलोचना, जहाँ 30% तक को अतिरिक्तता के प्रश्नों का सामना करना पड़ा, सत्यापन चुनौतियों को उजागर करती है। 
    • विभिन्न योजनाओं (प्रदर्शन उपलब्धि व्यापार (PAT) योजना, नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाणपत्र, प्रस्तावित कार्बन बाज़ार) के मध्य ओवरलैप से बहु गणना का जोखिम पैदा होता है। 
    • विभिन्न कार्यक्रमों में कार्बन क्रेडिट के लिये स्पष्ट स्वामित्व अधिकार और ट्रैकिंग तंत्र स्थापित करने के लिये परिष्कृत प्रणालियों एवं प्रोटोकॉल की आवश्यकता होती है।
  • क्षेत्रीय एवं क्षेत्रवार असमानताएँ: राज्यों में औद्योगिक विकास और तकनीकी क्षमता में वृहत भिन्नताएँ समानता संबंधी चिंताएँ उत्पन्न करती हैं। 
    • उच्च औद्योगिक संकेंद्रण वाले राज्य (गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान) बाज़ार गतिशीलता पर हावी हो सकते हैं। 
    • इस संभावना पर सावधानीपूर्वक विचार किया जाना चाहिये कि बाज़ार लाभ विकसित क्षेत्रों में केंद्रित हो जाएगा, जबकि कम विकसित क्षेत्रों पर असंगत लागतें थोपी जाएंगी।
  • प्रौद्योगिकी एवं अवसंरचना अंतराल: वर्तमान प्रौद्योगिकी अवसंरचना परिष्कृत कार्बन बाज़ार परिचालनों के लिये अपर्याप्त हो सकती है। 
    • अंतर्राष्ट्रीय कार्बन रजिस्ट्री में साइबर सुरक्षा उल्लंघन प्रौद्योगिकी जोखिमों को उजागर करते हैं। 
      • जनवरी 2011 में, हैकरों ने चेक कार्बन रजिस्ट्री के मुख्यालय पर बम की धमकी जारी करके, वहाँ से लगभग 1.2 मिलियन क्रेडिट चुरा लिये।
    • सुरक्षित, पारदर्शी ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म, विश्वसनीय निगरानी प्रणाली और सत्यापन प्रौद्योगिकियों के विकास के लिये बहुत बड़े निवेश की आवश्यकता होती है। 
    • क्षेत्रों और उद्योगों के बीच डिजिटल डिवाइड परिचालन संबंधी चुनौतियाँ और बाज़ार पहुँच संबंधी समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है।
  • बाज़ार में हेरफेर और सट्टेबाजी का जोखिम: अन्य बाज़ारों के अनुभव से पता चलता है कि मूल्य में हेरफेर और अत्यधिक सट्टेबाज़ी की संभावना अधिक है। 
    • एक जाँच में पाया गया कि वेरा द्वारा वर्षावन कार्बन ऑफसेट का 90% से अधिक हिस्सा, जिसका डिज़्नी और शेल जैसी कंपनियों द्वारा व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, ‘फैंटम क्रेडिट’ हो सकता है, जिसका उत्सर्जन पर बहुत कम वास्तविक प्रभाव पड़ता है। 
    • इसके अलावा, ग्रीनवाशिंग– जहाँ कंपनियाँ संदिग्ध ऑफसेट का प्रयोग करके कार्बन तटस्थता का दावा करती हैं- बाज़ार की विश्वसनीयता और उपभोक्ता विश्वास के लिये जोखिम उत्पन्न करती है, जिससे कार्बन बाज़ारों की अखंडता एवं अधिक जटिल हो जाती है। 

कार्बन बाज़ार के विकास में तेज़ी लाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है? 

  • चरणबद्ध कार्यान्वयन रणनीति: उच्च उत्सर्जन वाले क्षेत्रों (विद्युत ऊर्जा, सीमेंट, इस्पात) से शुरू करते हुए एक स्तरीय दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है, जहाँ PAT योजना के तहत निगरानी क्षमताएँ पहले से मौजूद हैं। 
    • छोटे उद्योगों में क्षमता निर्माण करते हुए धीरे-धीरे मध्यम-उत्सर्जन क्षेत्रों में विस्तार करना चाहिये।
    • यह उपागम, चीन की सफल उत्सर्जन व्यापार प्रणाली की भांति, संस्थागत क्षमता का निर्माण करते हुए बाज़ार को परिपक्वता प्रदान करता है। 
  • एकीकृत डिजिटल अवसंरचना: पारदर्शी ट्रैकिंग और ट्रेडिंग के लिये ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी को एकीकृत करते हुए एक एकीकृत कार्बन रजिस्ट्री प्लेटफॉर्म विकसित करने की आवश्यकता है। 
    • मानकीकृत डिजिटल रिपोर्टिंग प्रारूपों को अनिवार्य तथा विभिन्न प्रणालियों में निर्बाध डेटा एकीकरण के लिये API बनाया जाना चाहिये।
    • IoT सेंसर और स्वचालित डेटा सत्यापन का उपयोग करके रियल टाइम मॉनिटरिंग और सत्यापन प्रणाली लागू किया जाना चाहिये। यह डिजिटल फ्रेमवर्क विनिमय की लागत को कम करेगा और बाज़ार की पारदर्शिता को बढ़ाएगा।
  • क्षमता निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र: उद्योग पेशेवरों, लेखा परीक्षकों और नियामकों को लक्षित करते हुए एक समर्पित कार्बन बाज़ार कौशल विकास कार्यक्रम स्थापित किया जाना चाहिये। 
    • कार्बन बाज़ार पेशेवरों और सत्यापन एजेंसियों के लिये मानकीकृत प्रमाणन कार्यक्रम बनाए जाने चाहिये। उत्सर्जन गणना और रिपोर्टिंग के लिये उद्योग-विशिष्ट मार्गदर्शन तथा उपकरण बनाए जाने चाहिये।
  • गतिशील मूल्य प्रबंधन प्रणाली: अत्यधिक अस्थिरता को रोकने के लिये न्यूनतम और अधिकतम मूल्यों के साथ प्राइस कॉलर तंत्र को लागू करने तथा सार्थक कार्बन मूल्य निर्धारण सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। 
    • आपूर्ति-मांग संतुलन को प्रबंधित करने के लिये EU-ETS के समान एक बाज़ार स्थिरता रिज़र्व बनाया जाना चाहिये।
    • तकनीकी क्षमताओं और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धात्मकता को ध्यान में रखते हुए  क्षेत्र-विशिष्ट भत्ता आवंटन पद्धति विकसित करना चाहिये।
  • क्षेत्रीय एकीकरण फ्रेमवर्क: भारत के NDC के अनुरूप क्षेत्र-विशिष्ट उत्सर्जन तीव्रता मानक और कटौती के मार्ग तैयार करने की आवश्यकता है।
    • दोहरी गणना को रोकने के लिये मौजूदा योजनाओं (PAT, REC) को कार्बन बाज़ार से जोड़ने के लिये तंत्र विकसित करना चाहिये।
    • कैप-एंड-ट्रेड के अंतर्गत शामिल न होने वाले क्षेत्रों से परियोजना-आधारित क्रेडिट के लिये स्पष्ट प्रोटोकॉल स्थापित करना चाहिये। 
    • वैकल्पिक अनुपालन तंत्रों सहित हार्ड-टू-ऐबेट क्षेत्रों के लिये विशिष्ट प्रावधान तैयार किया जाना चाहिये। सामूहिक भागीदारी और ज्ञान साझा करने के लिये उद्योग समूह बनाए जाने चाहिये।
  • अंतर्राष्ट्रीय संरेखण: प्रारंभ से ही अनुच्छेद 6 की ज़रूरतों के अनुरूप कार्बन बाज़ार अवसंरचना का विकास करने की आवश्यकता है। 
    • अंतर्राष्ट्रीय ऋण अंतरण और तद्नुरूप समायोजन के लिये स्पष्ट फ्रेमवर्क तैयार किया जाना चाहिये। 
    • बाज़ार को जोड़ने और क्षमता निर्माण के लिये द्विपक्षीय साझेदारियाँ स्थापित की जानी चाहिये।
  • क्षेत्रीय विकास फ्रेमवर्क: स्थानीय समर्थन और निगरानी के लिये राज्य स्तरीय कार्बन बाज़ार प्रकोष्ठों का निर्माण किये जाने की आवश्यकता है। 
    • स्थानीय औद्योगिक प्रोफाइल पर विचार करते हुए क्षेत्रीय कार्बन बाज़ार विकास योजनाएँ विकसित की जानी चाहिये। 
    • भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये राज्यों के साथ राजस्व साझा करने हेतु तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष: 

भारत के कार्बन बाज़ार में सतत् विकास के लिये अपार संभावनाएँ हैं। बाज़ार डिज़ाइन, डेटा इंटिग्रिटी और विनियामक फ्रेमवर्क जैसी चुनौतियों का समाधान करके, भारत एक मज़बूत एवं  कुशल बाज़ार बना सकता है। इससे उत्सर्जन में कमी आएगी, हरित निवेश आकर्षित होगा और भारत जलवायु कार्रवाई में वैश्विक अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित होगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. जलवायु शमन के लिये एक उपकरण के रूप में कार्बन ट्रेडिंग की भूमिका पर चर्चा कीजिये। विकासशील देशों पर पड़ने वाले प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करते हुए इसकी क्षमता का विश्लेषण कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स: 

प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन 'कार्बन के सामाजिक मूल्य' पद का सर्वोत्तम रूप से वर्णन करता है?  (2020)

आर्थिक मूल्य के रूप में यह निम्नलिखित में से किसका माप है?

(a) प्रदत्त वर्ष में एक टन CO के उत्सर्जन से होने वाली दीर्घकालीन क्षति
(b) किसी देश की जीवाश्म ईंधनों की आवश्यकता, जिन्हें जलाकर देश अपने नागरिकों को वस्तुएँ और सेवाएँ प्रदान करता है
(c) किसी जलवायु शरणार्थी (Climate refugee) द्वारा किसी नए स्थान के प्रति अनुकूलित होने हेतु किये गए प्रयास
(d) पृथ्वी ग्रह पर किसी व्यक्ति विशेष द्वारा अंशदत कार्बन पदचिह्न

उत्तर: (a) 


प्रश्न 2. "कार्बन क्रेडिट" के संबंध में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही नहीं है? (2011) 

(a) कार्बन क्रेडिट प्रणाली को क्योटो प्रोटोकॉल के साथ अनुमोदित किया गया 
(b) कार्बन क्रेडिट उन देशों या समूहों को प्रदान किया जाता है जिन्होंने ग्रीनहाउस गैसों को अपने उत्सर्जन कोटा से नीचे ला दिया है 
(c) कार्बन क्रेडिट प्रणाली का लक्ष्य कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की वृद्धि को सीमित करना है 
(d) कार्बन क्रेडिट का कारोबार संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा समय-समय पर तय की गई कीमत पर किया जाता है। 

उत्तर: (d) 


प्रश्न 3. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023) 

कथन-I: ऐसी संभावना है कि कार्बन बाज़ार, जलवायु परिवर्तन से निपटने का एक सबसे व्यापक साधन हो जाए।

कथन-II: कार्बन बाज़ार संसाधनों को प्राइवेट सेक्टर से राज्य को हस्तांतरित कर देते हैं।

उपर्युक्त कथनों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा एक सही है?

(a) कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-II, कथन-I की सही व्याख्या है।
(b) कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-II, कथन-I की सही व्याख्या नहीं है।
(c) कथन-I सही है किंतु कथन-II गलत है।
(d) कथन-I गलत है किंतु कथन-II सही है।

उत्तर: (b)


मेन्स:

Q. क्या यू.एन.एफ.सी.सी.सी. के अधीन स्थापित कार्बन क्रेडिट और स्वच्छ विकास यांत्रिकत्वों का अनुसरण जारी रखा जाना चाहिये, यद्यपि कार्बन क्रेडिट के मूल्य में भारी गिरावट आई है? आर्थिक संवृद्धि के लिये भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं की दृष्टि से चर्चा कीजिये। (2014)

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