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भारतीय अर्थव्यवस्था

दुर्लभ खनिज

  • 12 Jun 2024
  • 30 min read

प्रिलिम्स के लिये:

दुर्लभ खनिज, आपूर्ति शृंखला, नवीकरणीय ऊर्जा, अर्द्धचालक, लिथियम, दुर्लभ मृदा तत्त्व, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI), स्पष्ट भूवैज्ञानिक क्षमता (OGP), खान और खनिज (विकास एवं  विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2021, राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट (NMET), इलेक्ट्रिक वाहन (EV), अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, द्वितीयक बाज़ार, नीति आयोग, ऊर्जा, पर्यावरण तथा जल परिषद (CEEW)।

मेन्स के लिये:

भारत के हरित और टिकाऊ भविष्य के लिये दुर्लभ खनिजों की भूमिका

दुर्लभ खनिज क्या हैं?

  • परिचय:
    • दुर्लभ खनिज ऐसे खनिज हैं जो  किसी देश के आर्थिक विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये आवश्यक हैं।
    • इन खनिजों की उपलब्धता की कमी या कुछ भौगोलिक स्थानों में निष्कर्षण या प्रसंस्करण की एकाग्रता से आपूर्ति शृंखला की भेद्यता और यहाँ तक कि आपूर्ति में व्यवधान की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

भारत के लिये दुर्लभ खनिज क्यों आवश्यक हैं?

  • आधुनिक प्रौद्योगिकी की नींव:
    • दुर्लभ खनिज वह आधार हैं जिन पर आधुनिक प्रौद्योगिकी का निर्माण होता है।
    • इनका उपयोग मोबाइल फोन से लेकर सौर पैनलों, इलेक्ट्रिक वाहन बैटरियों से लेकर चिकित्सा अनुप्रयोगों तक, आवश्यक उत्पादों की एक विस्तृत शृंखला में किया जाता है।
  • ऊर्जा संक्रमण:
    • वे नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, जिनकी आवश्यकता दुनिया भर के कई देशों की "नेट ज़ीरो" प्रतिबद्धताओं को पूरा करने हेतु होगी।
    • विश्व को सौर पैनल, अर्द्धचालक, पवन टर्बाइन तथा भंडारण एवं परिवहन के लिये उन्नत बैटरी जैसे उत्पादों के निर्माण हेतु दुर्लभ खनिजों की आवश्यकता है।
  • भविष्योन्मुखी अर्थव्यवस्था:
    • भविष्य की वैश्विक अर्थव्यवस्था उन प्रौद्योगिकियों द्वारा संचालित होगी जो लिथियम, ग्रेफाइट, कोबाल्ट, टाइटेनियम और दुर्लभ मृदा तत्त्वों जैसे खनिजों पर निर्भर होंगी।
    • दुर्लभ खनिज हरित और डिजिटल अर्थव्यवस्था के निर्माण खंड हैं।
  • आत्मनिर्भरता:
    • दुर्लभ खनिजों की पहचान से भारत को देश की दीर्घकालिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए ऐसी खनिज परिसंपत्तियों के अधिग्रहण और संरक्षण की योजना बनाने में मदद मिलेगी।
    • इससे आयात पर निर्भरता भी कम होगी क्योंकि भारत कुछ तत्त्वों के लिये 100% आयात पर निर्भर है।

खनिजों की महत्ता को कौन-से कारक प्रभावित करते हैं?

  • अधिकांश देशों के लिये गंभीरता का आकलन दो मुख्य मापदंडों अर्थात आर्थिक महत्त्व और आपूर्ति जोखिम के आधार पर किया जाता है।
    • भारतीय संदर्भ में भी उन्हीं दो मापदंडों को ध्यान में रखा गया।
    • दो मुख्य मापदंड:
      • आर्थिक महत्त्व: यह अध्ययन इस बात की जाँच करता है कि विभिन्न औद्योगिक उपयोगों के लिये कच्चे माल का वितरण किस प्रकार किया जाता है तथा जब आपूर्ति शृंखला में कुछ खनिज उपलब्ध नहीं होते हैं तो उस उद्योग पर पड़ने वाले प्रभावों का मूल्यांकन करता है।
      • आपूर्ति जोखिम: यह जाँच करता है कि किस प्रकार कच्चे माल का वैश्विक उत्पादन कुछ देशों में केंद्रित है, इन आपूर्तिकर्त्ता देशों की शासन व्यवस्था और पर्यावरण संबंधी प्रथाएँ, अन्य देशों में आयात पर निर्भरता तथा व्यापार प्रतिबंध

दुर्लभ खनिज मूल्य शृंखला के पाँच स्तंभ क्या हैं?

  • दुर्लभ खनिजों के लिये संपूर्ण मूल्य शृंखला (Value chain) के प्रत्येक चरण अर्थात् भूविज्ञान और अन्वेषण, खनिज निष्कर्षण, मध्यवर्ती प्रसंस्करण, उन्नत विनिर्माण तथा पुनर्चक्रण में क्षमता निर्माण शामिल है।
  • भूविज्ञान एवं अन्वेषण:
  • खनिज निष्कर्षण:
    • खनन के दो मुख्य प्रकार हैं सतही और भूमिगत खनन।
    • यद्यपि विशिष्ट कार्य अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन उनमें आमतौर पर ड्रिलिंग, विस्फोट, उत्खनन, लोडिंग और प्रसंस्करण के लिये खनिजों को ले जाने हेतु भारी मशीनरी का उपयोग शामिल होता है।
  • मध्यवर्ती प्रसंस्करण:
    • भारत की औद्योगिक विशेषज्ञता का पर्यावरण, सामाजिक और शासन (Environmental, Social and Governance- ESG) ढाँचे में लाभ उठाया जाना चाहिये, ताकि न्यूनतम पर्यावरणीय प्रभाव के साथ दुर्लभ खनिजों को परिष्कृत करने के लिये प्रौद्योगिकी विकसित की जा सके।
    • वाष्प धातुकर्म जैसी धातु शोधन प्रौद्योगिकियाँ, भविष्य की प्रौद्योगिकियाँ हैं। 
    • यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि धातु शोधन अवसंरचना की कमी भारत में दुर्लभ खनिज पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण में बाधा न बने।
  • उन्नत विनिर्माण:
    • एक बार प्रसंस्करण के बाद, धातुएँ अनेक उत्पादों में अपना स्थान बना लेती हैं।
    • पृथक किये गए दुर्लभ मृदा ऑक्साइडों को धातुओं में परिवर्तित करके संयुक्त रूप से स्थायी चुंबक बनाए जा सकते हैं, जो इलेक्ट्रिक वाहनों (Electric Vehicles- EV) के मोटरों और पवन टर्बाइनों के महत्त्वपूर्ण घटक हैं।
    • वे क्षेत्र जो कई महत्त्वपूर्ण घटकों के निर्माण के लिये दुर्लभ खनिजों का उपयोग करते हैं:
      • बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण
      • दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पाद
      • श्वेत वस्तुएँ  (ACs & LED)
      • उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल
      • एडवांस केमिस्ट्री सेल (Advance Chemistry Cell- ACC) बैटरी
  • पुनर्चक्रण:
    • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का पूर्वानुमान है कि वर्ष 2040 तक पुनर्नवीनीकृत खनिज की मात्रा बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाएगी।
    • हरित भविष्य की ओर वैश्विक परिवर्तन से जीवन-पर्यन्त स्वच्छ एवं डिजिटल प्रौद्योगिकियों की मात्रा में वृद्धि होने की आशा है।
    • इसलिये एक मज़बूत पुनर्चक्रण नीति समय की मांग है, ताकि मज़बूत पुनर्चक्रण अवसंरचना और द्वितीयक बाज़ारों के माध्यम से उपभोक्ता-उपरांत वस्तुओं में निहित खनिजों तथा धातुओं तक पहुँच बढ़ाई जा सके, खनन एवं औद्योगिक अपशिष्ट धाराओं से उनकी वसूली को प्रोत्साहित किया जा सके।

भारत में दुर्लभ खनिजों के लिये क्या नई पहल की गई हैं?

  • योजना आयोग:
    • योजना आयोग (अब नीति आयोग) की 2011 की रिपोर्ट में देश के औद्योगिक विकास के लिये खनिज संसाधनों की सुनिश्चित उपलब्धता की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया था।
      • 12 खनिजों और धातुओं को रणनीतिक खनिजों के रूप में पहचाना गया जिनमें टिन, कोबाल्ट, लिथियम, जर्मेनियम, गैलियम, इंडियम, नियोबियम, बेरिलियम, टैंटालम, टंगस्टन, बिस्मथ तथा सेलेनियम शामिल थे।
  • खान मंत्रालय:
    • खान मंत्रालय ने दुर्लभ-पृथ्वी तत्त्वों (Rare-Earth Elements- REE) और ऊर्जा-महत्त्वपूर्ण  तत्त्वों की उपलब्धता की स्थिति की समीक्षा के लिये 2011 में एक संचालन समिति का गठन किया था।
    • “दुर्लभ मृदा एवं ऊर्जा दुर्लभ खनिज: भारत के लिये एक रोडमैप और रणनीति” (Rare Earths and Energy Critical Minerals: A Roadmap and Strategy for India)  शीर्षक वाले अध्ययन में भारत के उत्पादन, खपत और भंडार की समीक्षा की गई।
  • ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (Council on Energy, Environment and Water- CEEW):
    •  CEEW द्वारा किये गए एक अध्ययन में विनिर्माण क्षेत्र के लिये खनिज संसाधन सुरक्षा सुनिश्चित करने से संबंधित भारत में अनुसंधान की कमी पर प्रकाश डाला गया है।
    • अध्ययन में 13 खनिजों की पहचान की गई जो वर्ष 2030 तक सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण हो जायेंगे।
      • 13 खनिजों में रेनियम, बेरिलियम, दुर्लभ मृदा (भारी), जर्मेनियम, ग्रेफाइट, टैंटालम, ज़िरकोनियम, क्रोमियम, चूना पत्थर, नियोबियम, दुर्लभ मृदा (हल्का), सिलिकॉन और स्ट्रोंटियम शामिल थे।
  • भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India- GSI):
    • भारत में REE अन्वेषण को बढ़ाने के लिये एक रणनीतिक योजना भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) और परमाणु खनिज प्रभाग (Atomic Mineral Division- AMD) द्वारा संयुक्त रूप से प्रस्तुत की गई थी।
    • इसमें भारत के लिये दुर्लभ मृदा तत्त्वों को सुरक्षित करने पर ज़ोर दिया गया।
  • सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति केंद्र (Centre for Socio and Economic Progress- CSEP):
    • 2023 में CSEP ने “भारत में खनिजों की महत्ता का आकलन” (Assessing the Criticality of Minerals in India) शीर्षक से एक कार्य पत्र जारी किया।
    • इसने दो आयामों अर्थात भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये आर्थिक महत्त्व और आपूर्ति जोखिम के आधार पर भारत में 43 गैर-ईंधन खनिजों की महत्ता का मूल्यांकन किया।

दुर्लभ खनिजों पर नई समिति का अधिदेश क्या है?

  • खान मंत्रालय ने महत्त्वपूर्ण एवं रणनीतिक खनिजों की पहचान के लिये एक समिति गठित की।
  • समिति की अध्यक्षता खान मंत्रालय की संयुक्त सचिव डॉ. वीना कुमारी डरमल ने की।
  • रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला गया कि दुर्लभ खनिजों का वर्गीकरण कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे- उपलब्धता, संसाधनों पर एकाधिकार, अग्रणी प्रौद्योगिकियों/स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग, प्रतिस्थापन, आपूर्ति जोखिम, पुनर्चक्रण आदि।
  • दुर्लभ खनिजों की पहचान के लिये प्रयुक्त मानदंड:
    • समिति ने भारत के लिये दुर्लभ खनिजों की पहचान के लिये तीन-चरणीय मूल्यांकन किया।
      • पहले चरण में ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे विभिन्न देशों की दुर्लभ खनिज रणनीतियों का अध्ययन किया गया।
      • दूसरे चरण में विभिन्न मंत्रालयों के साथ अंतर-मंत्रालयी परामर्श किया गया ताकि उनके क्षेत्रों के लिये दुर्लभ खनिजों की पहचान की जा सके, जैसे- विद्युत मंत्रालय, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, परमाणु ऊर्जा विभाग आदि।
      • तीसरे चरण में प्रतिस्थापन सूचकांक, खनिज क्रॉस-कटिंग सूचकांक, आयात निर्भरता आदि जैसे विभिन्न कारकों की सटीक गणना के लिये एक विस्तृत सांख्यिकीय अभ्यास किया गया।
  • तीन-चरणीय मूल्यांकन प्रक्रिया के आधार पर कुल 30 खनिजों को भारत के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण पाया गया है, जिनमें से दो खनिज उर्वरक खनिजों के रूप में महत्त्वपूर्ण हैं।

भारत में दुर्लभ खनिजों के अनुप्रयोग और उपलब्धता क्या हैं?

क्रमांक

दुर्लभ खनिज

प्रमुख अनुप्रयोग

भारत में उपलब्धता

1.

एंटीमनी (Antimony)

ज्वाला मंदक (Flame Retardants), लेड-एसिड बैटरी, लेड मिश्र धातु, प्लास्टिक (उत्प्रेरक और स्टेबलाइज़र्स), काँच तथा चीनी मिट्टी की चीज़ें

हिमाचल प्रदेश के लाहुल और स्पीति ज़िलों में कोई प्रमाणित भंडार नहीं है, केवल अनुमानित भंडार ही उपलब्ध हैं।

इसे आमतौर पर हिंदुस्तान ज़िंक  लिमिटेड द्वारा सीसा जस्ता-चाँदी  प्रगलन में उप-उत्पाद के रूप में प्राप्त किया जाता है।

2.

बेरिलियम (Beryllium)

कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक और ऑप्टिकल उत्पादों का निर्माण

उपलब्ध नहीं है। वर्तमान आवश्यकताएँ आयात के माध्यम से पूर्ण की जाती हैं।

3.

बिस्मथ (Bismuth)

रसायन, फार्मास्यूटिकल्स, लोहे की ढलाई (Casting of Iron)

उपलब्ध नहीं है। वर्तमान आवश्यकताएँ आयात के माध्यम से पूर्ण की जाती हैं।

4.

कैडमियम (Cadmium)

विद्युत उपकरण, रासायनिक उत्पाद, सौर सेल, इलेक्ट्रोप्लेटिंग और सिल्वर सोल्डरिंग का निर्माण

कैडमियम जस्ता प्रगलन और शोधन के दौरान एक उप-उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है।

5.

कोबाल्ट

इलेक्ट्रिक वाहन (EV), बैटरी, संक्षारण प्रतिरोधी मिश्र धातु, एयरोस्पेस अनुप्रयोग, रंग और रंजक, कार्बनिक तथा अकार्बनिक रासायनिक यौगिक।

उपलब्ध नहीं है। वर्तमान आवश्यकताएँ आयात के माध्यम से पूरी की जाती हैं।

6.

ताँबा

इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद, इलेक्ट्रिकल वायरिंग, सौर पैनल, ऑटोमोटिव उद्योग

वर्तमान ताँबा सांद्र उत्पादन, ताँबा प्रगलन संयंत्रों और रिफाइनरियों की मांग का केवल 4% ही पूरा करता है, जिसके लिये भारी मात्रा में आयात की आवश्यकता होती है।

7.

गैलियम

अर्द्धचालक, एकीकृत सर्किट, LED, विशेष थर्मामीटर, बैरोमीटर सेंसर।

एल्युमिना उत्पादन के दौरान उप-उत्पाद के रूप में गैलियम प्राप्त होता है।

दो संयंत्रों, अर्थात् उत्तर प्रदेश के रेणुकूट में HINDALCO

और ओडिशा के NALCO दामनजोड़ी एल्युमिना रिफाइनरी ने अतीत में गैलियम प्राप्त किया था।

8.

जर्मेनियम

ऑप्टिकल फाइबर, उपग्रह, सौर सेल, इन्फ्रारेड नाइट विज़न सिस्टम

उपलब्ध नहीं है। वर्तमान आवश्यकताएँ आयात के माध्यम से पूर्ण की जाती हैं।

9.

ग्रेफाइट

बैटरी, स्नेहक, EV के लिये ईंधन सेल, इलेक्ट्रिक वाहन

9 मिलियन टन का भंडार मौजूद है।

10.

हाफनियम

सुपर मिश्र धातु, उत्प्रेरक अग्रदूत, अर्द्धचालक, परमाणु रिएक्टर।

आमतौर पर सभी ज़िरकोनियम यौगिकों में 1.4% से 3% के बीच हेफनियम होता है।

इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड (IREL) और केरल मिनरल्स एंड मेटल्स लिमिटेड (KMML) ज़िरकोन के उत्पादन में शामिल हैं।

11.

इंडियम

इलेक्ट्रॉनिक्स (लैपटॉप, LED मॉनिटर/टीवी, स्मार्टफोन) और अर्द्धचालक

उपलब्ध नहीं है। वर्तमान आवश्यकताएँ आयात के माध्यम से पूरी की जाती हैं।

12.

लिथियम

इलेक्ट्रिक वाहन, रिचार्जेबल बैटरी, काँच के बने पदार्थ, चीनी मिट्टी की चीज़ें, ईंधन विनिर्माण, स्नेहक।

जम्मू-कश्मीर (J&K) के रियासी ज़िले के सलाल-हैमना क्षेत्र में 5.9 मिलियन टन लिथियम-संसाधन मौजूद हैं।

13.

मोलिब्डेनम

इस्पात मिश्र धातु, स्नेहक, चिकित्सा क्षेत्र, विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक्स।

तमिलनाडु राज्य के हरूर में खनन योग्य भंडार उपलब्ध हैं।

14.

नाइओबियम

धातु मिश्र धातु (स्टील), जेट इंजन, रॉकेट, निर्माण बीम, तेल रिग और पाइपलाइन, सुपरकंडक्टिंग मैग्नेट, MRI स्कैनर, परमाणु ऊर्जा संयंत्र

उपलब्ध नहीं है। वर्तमान आवश्यकताएँ आयात के माध्यम से पूरी की जाती हैं।

15.

निकेल

स्टेनलेस स्टील, सौर पैनल, बैटरी, एयरोस्पेस, रक्षा अनुप्रयोग और इलेक्ट्रिक वाहन

वेदांता का गोवा में NICOMET नाम से निकल और कोबाल्ट संयंत्र है।

16.

प्लैटिनम समूह तत्त्व (PGE)

आभूषण, दवा (पेसमेकर, कीमोथेरेपी), सेना द्वारा उपयोग किये जाने वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, ऑप्टिकल फाइबर,LCD, टरबाइन ब्लेड

ओडिशा में नीलगिरि, बौला नुआसाही और सुकिंदा क्षेत्र।

कर्नाटक के शिमोगा शिस्ट बेल्ट में हनुमानपुरा क्षेत्र।

17.

फॉस्फोरस

खनिज उर्वरक, डिटर्जेंट, खाद्य योजक, पशु चारा, जंग हटाने वाले, संक्षारण निरोधक

राजस्थान, झारखंड और मध्य प्रदेश।

18.

पोटाश

रासायनिक उर्वरक, जल मृदुकरण, सड़क से बर्फ हटाना, pH समायोजन, विस्फोटक।

नागौर (राजस्थान), पन्ना (मध्य प्रदेश), सोनभद्र और चित्रकूट (उत्तर प्रदेश)

19.

दुर्लभ मृदा तत्त्व (REE) 

स्थायी चुंबक, उत्प्रेरक, पॉलिशिंग, बैटरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा प्रौद्योगिकियाँ, पवन ऊर्जा क्षेत्र, विमानन और अंतरिक्ष

भारत में समुद्र तट की रेत से मोनाज़ाइट का अनुमानित संसाधन 11.93 मीट्रिक टन है, जिसमें 55%-65% दुर्लभ मृदा ऑक्साइड है।

20.

रेनीयाम

सुपर मिश्र धातु, एयरोस्पेस, पेट्रोलियम उद्योग में उत्प्रेरक

उपलब्ध नहीं है। वर्तमान आवश्यकताएँ आयात के माध्यम से पूरी की जाती हैं

21.

सेलेनियम

सिरेमिक, पेंट और प्लास्टिक के लिये पिगमेंट, फोटोसेल, सौर सेल तथा  फोटोकॉपियर में उपयोगी, स्टेनलेस स्टील बनाने के लिये एडिटिव

उपलब्ध नहीं है। वर्तमान आवश्यकताएँ आयात के माध्यम से पूरी की जाती हैं।

22.

सिलिकॉन

अर्द्धचालक, इलेक्ट्रॉनिक्स और परिवहन उपकरण, पेंट, एल्युमीनियम मिश्र धातु

भारत ने 59000 मीट्रिक टन सिलिकॉन का उत्पादन किया और 2022 के आँकड़ों के अनुसार उत्पादन में 12वें स्थान पर है।

23.

स्ट्रोंटियम

एल्युमिनियम के मिश्र धातु, रंगद्रव्य और भराव, काँच, चुंबक, आतिशबाज़ी अनुप्रयोग

उपलब्ध नहीं है। वर्तमान आवश्यकताएँ आयात के माध्यम से पूरी की जाती हैं।

24.

टैंटलम

कैपेसिटर, सुपरलॉय, कार्बाइड, चिकित्सा प्रौद्योगिकी

उपलब्ध नहीं है। वर्तमान आवश्यकताएँ आयात के माध्यम से पूरी की जाती हैं

25.

टेल्यूरियम

सौर ऊर्जा, तापविद्युत उपकरण, रबर वल्केनाइजिंग

उपलब्ध नहीं है। वर्तमान आवश्यकताएँ आयात के माध्यम से पूरी की जाती हैं।

26.

टिन

लेड एसिड बैटरी, धातु पैकेजिंग, सोल्डर, गृह सजावट

छत्तीसगढ़ में सांद्र और धातु के रूप में उत्पादित

27.

टाइटेनियम

पेंट, प्लास्टिक और कागज़ में रंग वर्णक, धातु मिश्र धातु (एल्युमीनियम, स्टील, मोलिब्डेनम), विमान, अंतरिक्ष यान, मिसाइल तथा रॉकेट, गैर संक्षारक पाइप, जहाज़ एवं पनडुब्बी पतवार

तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, केरल, गुजरात और महाराष्ट्र के तटीय ज़िले।

28.

टंगस्टन

हथियार, रॉकेट, मिसाइल, काटने के उपकरण (टंगस्टन कार्बाइड), फिलामेंट तार, इलेक्ट्रोड और सुपर मिश्र धातु, तेल और गैस ड्रिलिंग के लिये उच्च प्रवेश मिश्र धातु जैसे कठोर सामग्रियों का उत्पादन

उपलब्ध नहीं है। वर्तमान आवश्यकताएँ आयात के माध्यम से पूरी की जाती हैं।

29.

वैनेडियम

मिश्र धातु (स्टील), सैन्य कवच चढ़ाना, परमाणु रिएक्टर घटक, अतिचालक चुंबक का विनिर्माण

1.4.2015 तक वैनेडियम अयस्क का कुल अनुमानित भंडार 24.63 मिलियन टन है।

30.

ज़िरकोन

परमाणु ईंधन के लिये अच्छा रॉड आवरण धातु, पुनः प्रवेश वाहनों और जेट इंजनों में कोटिंग्स, अंतरिक्ष शटल में हीट शील्ड में प्रयुक्त

तमिलनाडु के मनवलकुरिची में भारी खनिज रेत के लाभकारीकरण के दौरान उप-उत्पाद के रूप में प्राप्त किया गया।

समिति की अतिरिक्त सिफारिशें क्या हैं?

  • राष्ट्रमंडल वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान संगठन (Commonwealth Scientific and Industrial Research Organisation- CSIRO) की तर्ज पर दुर्लभ खनिजों पर एक राष्ट्रीय संस्थान स्थापित करने की आवश्यकता है।
    • CSIRO एक ऑस्ट्रेलियाई सरकार की कॉर्पोरेट इकाई है और विश्व के बहुविषयक विज्ञान तथा अनुसंधान संगठनों में से एक है।
  • खान मंत्रालय में दुर्लभ खनिजों के लिये उत्कृष्टता केंद्र (Centre of Excellence for Critical Minerals- CECM) के रूप में एक विंग स्थापित किया जा सकता है।
    • इसका उद्देश्य अगली पीढ़ी के दुर्लभ खनिज भंडारों की खोज के लिये अधिक कुशल तरीकों की पहचान करना होगा।
    • यह भारत के लिये दुर्लभ खनिजों की सूची को समय-समय पर, अधिमानतः प्रति तीन वर्ष में अद्यतन करेगा तथा समय-समय पर दुर्लभ खनिज रणनीति को अधिसूचित करेगा।

निष्कर्ष:

स्वच्छ ऊर्जा और उत्सर्जन में कमी लाने पर भारत के ध्यान ने दुर्लभ खनिजों के महत्त्व को बढ़ा दिया है, जो इलेक्ट्रिक वाहनों तथा नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों के लिये आवश्यक हैं। ये खनिज भारत के हरित एवं अधिक स्थिर भविष्य की ओर संक्रमण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। इन संसाधनों को समझना एवं उनका उपयोग करना भारत की वृद्धि, प्रतिस्पर्द्धात्मकता व सतत् विकास को बढ़ावा देगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न 1. निम्नलिखित खनिजों पर विचार कीजिये : (2020)

  1. बेंटोनाइट
  2. क्रोमाइट
  3. कायनाइट
  4. सिलीमेनाइट

भारत में उपर्युक्त में से कौन-सा/से आधिकारिक रूप से नामित प्रमुख खनिज (Major Minerals) है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 4
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 2,3 और 4

उत्तर: D


प्रश्न 2. हाल में तत्त्वों के एक वर्ग, जिसे 'दुर्लभ मृदा धातु' कहते हैं, की कम आपूर्ति पर चिंता जताई गई। क्यों? (2012)

  1. चीन, जो इन तत्त्वों का सबसे बड़ा उत्पादक है, द्वारा इनके निर्यात पर कुछ प्रतिबंध लगा दिया गया है।
  2. चीन, ऑस्ट्रेलिया, कनाड़ा और चिली को छोड़कर अन्य किसी भी देश में ये तत्त्व नहीं पाये जाते हैं।
  3. दुर्लभ मृदा धातु विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक सामानों के निर्माण में आवश्यक हैं और इन तत्त्वों की मांग  बढ़ती जा रही है।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही हैं/है

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 ओर 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: C


मेन्स:

प्रश्न. विश्व में खनिज तेल के असमान वितरण के बहुआयामी प्रभावों की विवेचना कीजिये। (2021)

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