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शासन व्यवस्था

द बिग पिक्चर : खान एवं खनिज (संशोधन) विधेयक

  • 27 Mar 2021
  • 15 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकसभा ने खान और खनिज (विकास तथा विनियमन) (MMDR) संशोधन विधेयक, 2021  को मंज़ूरी प्रदान कर दी है

प्रमुख बिंदु :

  • MMDR अधिनियम, 1957: खान और खनिज क्षेत्रों का प्रबंधन खान और खनिज अधिनियम, 1957 के तहत किया जाता है जिसमें निम्नलिखित प्रावधान किये गए हैं-
    • देश की खनन पट्टियों का प्रशासन।
    • खनन पट्टियों को दिये जाने के पीछे उद्देश्य।
    • जिन क्षेत्रों में खानों की नीलामी की जाती है, उन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की बेहतरी को कैसे सुनिश्चित किया जाए।
  • भारत की खनिज क्षमता: भारत की खनिज क्षमता दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के समान है। भारत वर्तमान में 95 प्रकार (जिसमें 4 हाइड्रोकार्बन ऊर्जा खनिज 5 परमाणु खनिज 10 धात्विक 21 गैर-धात्विक एवं 55 छोटे खजिन शामिल है) के खनिजों का उत्पादन करता है, लेकिन इस वृहद् खनिज क्षमता के बावजूद भारत का खनन क्षेत्र अभी भी अस्पष्ट है।
    • भारत के खनन क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में केवल 1.75% का योगदान है, जबकि दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की जीडीपी में खनन क्षेत्र का योगदान लगभग 7 से 7.5% तक है
  • खनिजों का उच्च आयात: भारत लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपए मूल्य के खनिजों का आयात करता है।
  • भारत के अस्पष्ट खनन क्षेत्र : भारत ने अब तक केवल 10% स्पष्ट भूवैज्ञानिक क्षमता (OGP) वाले खनन क्षेत्रों की खोज की है।
    • भारत द्वारा OGP के केवल 5% क्षेत्र पर खनन कार्य किया जा रहा है।
    • ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में OGP के 70-80% क्षेत्र पर खनन किया जाता है।

MMDR (संशोधन) विधेयक, 2021

उद्देश्य:

  • नीलामी प्रक्रिया में पारदर्शिता: यह विधेयक वॉयस वोट (मौखिक रूप से जवाब देकर किसी विषय पर दिया गया वोट) द्वारा पारित किया गया है, जिसका उद्देश्य खानों की नीलामी प्रक्रियाओं में अधिक पारदर्शिता लाना है।
  • रोज़गार बढ़ाना: इस संशोधन का प्रमुख उद्देश्य खनन क्षेत्र में रोज़गार उपलब्ध कराना तथा देश की कुल जीडीपी में इसके योगदान को बढ़ाना है।
    • खान मंत्रालय ने इन सुधारों के आधार पर लगभग 55 लाख प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार उपलब्ध कराने का दावा किया है।
  • घरेलू एवं विदेशी निवेश को आकर्षित करना :  इस संशोधन के ज़रिये सरकार, खनन क्षेत्र में सुरक्षित और प्रभावी प्रौद्योगिकी को शामिल करने तथा घरेलू निवेश के साथ-साथ विदेशी निवेश को भी आकर्षित करने का प्रयास कर रही है। 
  • जीडीपी में खनन क्षेत्र  का योगदान बढ़ाना: इसका प्रमुख उद्देश्य जीडीपी में खनन क्षेत्र के योगदान को कम-से-कम 2.75% (वर्तमान में लगभग 1.75%) तक बढ़ाना है।

प्रस्तावित संशोधन:

  • कैप्टिव और नॉन-कैप्टिव माइंस के मध्य अंतर को हटाना: MMDR अधिनियम, 1957 केंद्र सरकार को किसी भी खदान जो कि केवल एक विशिष्ट उद्देश्य के लिये उपयोग की जाती है, को कैप्टिव माइंस के रूप में आरक्षित करने का अधिकार देता है।
    • यह विधेयक कैप्टिव और नॉन-कैप्टिव माइंस के मध्य अंतर को दूर करता है,  साथ ही माइंस को केवल एक विशिष्ट उद्देश्य / उद्योग / विशेष क्षेत्र तक सीमित नहीं किया जाएगा।
  • कैप्टिव माइंस से निकाले गए अयस्क और खनिज: इस संशोधन से पूर्व कैप्टिव माइंस से निकाले गए अयस्कों का उपयोग केवल कैप्टिव या विशिष्ट उद्योगों द्वारा किया जाता था।
    • इस विधेयक में यह चेतावनी दी गई है कि पट्टेदार द्वारा खुले बाज़ार में बेचे जाने वाले खनिजों के लिये सरकार को अतिरिक्त शुल्क  चुकाना होगा।
      • यह विधेयक कैप्टिव खानों के पट्टाधारकों को वार्षिक अयस्क उत्पादन का 50% हिस्सा खुले बाज़ार में बेचने की अनुमति देता है।
    • खुले बाज़ार में बेचने की 50% की सीमा लचीली है, यदि आवश्यक हो तो सरकार अधिसूचना के ज़रिये इस सीमा में वृद्धि कर सकती है।
  • वैधानिक मंज़ूरियों का हस्तांतरण: इस विधेयक में कहा गया है  कि सभी मंज़ूरियाँ और लाइसेंस तब तक जारी रहेंगे जब तक खनिज भंडार का खनन नहीं कर लिया जाता है और पट्टे के समापन या समाप्ति के बाद इसे अगले सफलतम बोलीदाता को हस्तांतरित कर दिया जाएगा।
    • यह पिछली लीज़ अवधि व्यवस्था के अंतर्गत निवेशकों को आकर्षित करने में मदद करेगा। नए पट्टेदार को खानों की लीज़ दो वर्ष की अवधि के लिये पूर्व-अंतर्निहित मंज़ूरी के साथ दी जाती है। इन दो वर्षों के दौरान नए पट्टेदार के लिये नई मंज़ूरियाँ हासिल करना मुश्किल होगा।
  • केंद्र सरकार की भागीदारी: इस विधेयक में कहा गया है कि यदि खदान के लिये पट्टे की अवधि समाप्त हो गई है और राज्य सरकार खदान की नीलामी करने में असमर्थ है, तो केंद्र सरकार (मुख्य उद्देश्य खदान को बेकार न छोड़ा जाए) नीलामी प्रक्रिया में भाग ले सकती है।
  • गैर-अनन्य लाइसेंस व्यवस्था को हटाना: यह अधिनियम कंपनियों को खनिज-क्षमता का पता लगाने के लिये खनन क्षेत्रों का पूर्व-परीक्षण हेतु गैर-अनन्य लाइसेंस जारी करने का प्रावधान करता है।
    • इस संशोधन विधेयक में गैर-अनन्य लाइसेंस व्यवस्था को हटाने का प्रावधान किया गया है।
  • सरकारी कंपनियों के खनन पट्टों का विस्तार: विधेयक में कहा गया है कि सरकार ऐसी खान को अधिकतम 10 वर्ष के लिये या जब तक नए पट्टेदार का चयन नहीं हो जाता, तब तक के लिये (इनमें से जो भी पहले हो) सरकारी कंपनी को दे सकती है। यह विचार उपयोग की दृष्टि से अधिक कुशल है।
    • राज्य सरकार द्वारा केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम (CPSE) को पट्टे पर देने के लिये अतिरिक्त रॉयल्टी का भुगतान किया जाएगा।
  • ज़िला खनिज फाउंडेशन: यह खनन कार्यों वाले ज़िलों में प्रभावित लोगों और क्षेत्रों के लाभ के लिये एक गैर-लाभकारी निकाय के रूप में स्थापित है। इसका वित्तपोषण खनिकों के योगदान से किया जाता है
    • इस विधेयक में यह प्रावधान किया गया है कि खनन क्षेत्र के विकास के लिये धन खर्च करने के संदर्भ में भी केंद्र सरकार निर्देश दे सकती।

संबंधित चुनौतियाँ:

  • पर्यावरणीय चिंता: इस अधिनियम में सुधार भारत में अत्यधिक खनन की प्रवृत्ति को रोकेगा, क्योंकि यह देश के विकास के लिये लाभदायक है। पर्यावरण के दृष्टिकोण से खनन हानिकारक है।
  • जनजातीय समुदाय:  खनन क्षेत्रों के अंतर्गत बहुतायत में जनजातीय समुदाय (विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह, PVTGs) रहते हैं। खनन क्षेत्रों में वृद्धि के कारण जनजातीय समूहों के निवास स्थान के लिये खतरा उत्पन्न होता है जिसकी वजह से  पुनर्वास और मुआवज़ा एक अहम मुद्दा बन गया है।
  • राज्य के मामलों में केंद्र सरकार का हस्तक्षेप: एक खदान की नीलामी प्रक्रिया संबंधी शक्तियाँ राज्य सरकार के हाथों में होती हैं, लेकिन दो पृथक राजनीतिक दलों के मामले में केंद्र और राज्य के मध्य शक्तियों में अस्पष्टता हो सकती है।
    • राज्य सरकारें नीलामी की पारदर्शी प्रक्रिया की तुलना में कम राजस्व प्राप्त होने की स्थिति में सरकारी कंपनियों को पट्टों के विस्तार के लिये रॉयल्टी के निर्धारण पर आपत्ति कर सकती हैं
    • इसके अतिरिक्त ज़िला खनिज निधि के व्यय को निर्देशित करने में केंद्र सरकार की भागीदारी भी राज्यों के लिये चिंता का विषय है

आगे की राह:

  • खनन क्षेत्र में सुधारों को प्रोत्साहित करना: खनन क्षेत्र में सुधार करने से इस पर आश्रित अन्य क्षेत्रों के विकास को बढ़ावा मिलेगा।
    • खनन उत्पादन में तीव्र वृद्धि से धातु और उनसे संबंधित उद्योगों को विकसित करने में मदद मिलेगी तथा ऑटोमोबाइल सेक्टर सहित अन्य  उद्योगों को भी इससे लाभ मिलेगा।
  • आयात कम करना: पर्याप्त क्षमता होने के बावजूद भारत बड़ी मात्रा में कच्चे माल का आयात करता है। आत्मनिर्भर भारत की धारणा को पूर्ण करने में खनन एक महत्त्वपूर्ण पहलू साबित होगा।
    • वर्तमान में कई उद्योग बड़ी मात्रा में कच्चे माल (स्टील, कॉपर आदि )का आयात करते हैं।
  • एक स्वतंत्र नियामक निकाय की आवश्यकता: राज्य और केंद्र में सत्तारूढ़ दलों के मध्य शक्तियों की अस्पष्टता के कारण खनन क्षेत्र के विकास को बाधित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये ।
    • इसके लिये एक स्वतंत्र विनियमन प्राधिकरण की ज़रूरत है जिसे सार्वजनिक और आर्थिक विकास के हित में काम करने हेतु अधिकार  प्रदान किया जाना चाहिये।
    • इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संसाधनों का अधिकतम उपयोग किसी विशेष पक्ष के लिये न होकर देश के समग्र लाभ के लिये  हो।
  • केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोग: राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को खनन उद्योगों के सर्वोत्तम हित के लिये एक साथ मिलकर सहयोग एवं काम करना चाहिये  और यह सुनिश्चित करना चाहिये कि खनन क्षेत्र में अधिक उन्नत प्रौद्योगिकियों को  शामिल किया जाए ताकि अधिक-से-अधिक निवेश को बढ़ावा मिले। इसके अतिरिक्त  खनन क्षेत्र के लोगों के लिये खनन क्षेत्रों के आसपास रहने की व्यवस्था के साथ ही उन्हें स्थानीय स्तर पर रोज़गार उपलब्ध कराया जाना चाहिये।
  • पर्यावरण संबंधी चिंताओं से निपटना: खनन, पर्यावरण के अनुकूल है यह सुनिश्चित करने के लिये सरकार को विभिन्न स्तरों पर एक साथ मिलकर काम करना चाहिये|
    • खनन परियोजनाओं को मंज़ूरी पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव (पर्यावरणीय प्रभाव आकलन, भूकंपीय अध्ययन और जैव विविधता) को ध्यान में रखते हुए दी जानी चाहिये।
  • निर्यात और रोज़गार को बढ़ावा देना: खनिज एक भारी उद्योग है क्योंकि इसमें प्रयुक्त कच्चा तथा तैयार माल दोनों ही भारी और स्थूल होते हैं। खनिजों का निर्यातक बनने के लिये भारत को अपने रेलवे ट्रैक, बंदरगाह क्षमता और शिपिंग सुविधाओं के बुनियादी ढाँचे में सुधार करने की आवश्यकता है।
    • भारत को रोज़गार उपलब्ध कराने पर भी ध्यान देना चाहिये क्योंकि खनन  क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर रोज़गार सृजन की बहुत अधिक संभावना है जो प्रवासन को रोकने में सहायक होगी और साथ ही शहरों को अत्यधिक प्रवासन की स्थिति से बचा सकती है।

खनन से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:

  • भारतीय संविधान की सूची-II (राज्य सूची) के क्रम संख्या-23 में प्रावधान है कि राज्य सरकार को अपनी सीमा के अंदर मौजूद खनिजों पर नियंत्रण रखने का अधिकार है,
  • सूची-I (केंद्रीय सूची) के क्रमांक-54 में प्रावधान है कि केंद्र सरकार को भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के भीतर खनिजों पर नियंत्रण रखने का अधिकार है,
    • उपर्युक्त प्रावधान खान और खनिज (विकास और विनियमन) (MMDR) अधिनियम,1957 का अनुसरण कर बनाया गया था।
  • सभी अपतटीय खनिजों (भारतीय समुद्री क्षेत्र में स्थित समुद्र या समुद्र तल से निकाले गए खनिज जैसे- प्रादेशिक जल, महाद्वीपीय शेल्फ और अनन्य आर्थिक क्षेत्र) पर केंद्र सरकार का स्वामित्व है।
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