शासन व्यवस्था
एमएमडीआर संशोधन विधेयक, 2021
- 20 Mar 2021
- 7 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कोयला और खान मंत्री ने लोकसभा में खान और खनिज (विकास तथा विनियमन) संशोधन विधेयक, 2021 पेश किया।
- इस विधेयक द्वारा खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 जो कि भारत में खनन क्षेत्र को नियंत्रित करता है, में संशोधन किया गया है।
प्रमुख बिंदु
प्रस्तावित परिवर्तन:
- खनिजों के अंतिम उपयोग पर लगे प्रतिबंध को हटाना:
- वर्ष 1957 का एक्ट केंद्र सरकार को अधिकार देता है कि वह नीलामी प्रक्रिया के ज़रिये किसी खान (कोयला, लिग्नाइट और परमाणु खनिज को छोड़कर) को लीज़ पर देते समय उसे किसी खास अंतिम उपयोग के लिये (जैसे- लौह अयस्क की खान को स्टील प्लांट के लिये रिज़र्व करना) रिज़र्व कर सकती है। ऐसी खानों को कैप्टिव खान (Captive Mine) कहा जाता है।
- नया विधेयक प्रावधान करता है कि कोई भी खान किसी खास अंतिम उपयोग के लिये आरक्षित नहीं होगी।
- कैप्टिव खानों द्वारा खनिजों की बिक्री:
- इस बिल में प्रावधान किया गया है कि कैप्टिव खानें (परमाणु खनिजों को छोड़कर) अपनी ज़रूरत को पूरा करने के बाद अपने वार्षिक उत्पादन का 50% हिस्सा खुले बाज़ार में बेच सकती हैं।
- केंद्र सरकार अधिसूचना के ज़रिये इस सीमा में वृद्धि कर सकती है।
- पट्टेदार को खुले बाज़ार में बेचे गए खनिजों के लिये अतिरिक्त शुल्क चुकाना होगा।
- इस बिल में प्रावधान किया गया है कि कैप्टिव खानें (परमाणु खनिजों को छोड़कर) अपनी ज़रूरत को पूरा करने के बाद अपने वार्षिक उत्पादन का 50% हिस्सा खुले बाज़ार में बेच सकती हैं।
- कुछ मामलों में केंद्र सरकार द्वारा नीलामी:
- यह विधेयक केंद्र सरकार को अधिकार देता है कि वह राज्य सरकार की सलाह से नीलामी प्रक्रिया के पूरे होने की एक समय-सीमा निर्दिष्ट करे।
- यदि राज्य सरकार इस निर्दिष्ट अवधि में नीलामी प्रक्रिया को पूरा नहीं कर पाती है तो केंद्र सरकार यह नीलामी कर सकती है।
- वैधानिक मंज़ूरियों का हस्तांतरण:
- यह प्रावधान करता है कि हस्तांतरित मंज़ूरियाँ नए पट्टेदार की पूरी लीज़ अवधि के दौरान वैध रहेंगी।
- नए पट्टेदार को खानों की लीज़ दो वर्ष की अवधि के लिये दी जाती है। इन दो वर्षों के दौरान नए पट्टेदार को नई मंज़ूरियाँ हासिल करनी होती हैं।
- यह प्रावधान करता है कि हस्तांतरित मंज़ूरियाँ नए पट्टेदार की पूरी लीज़ अवधि के दौरान वैध रहेंगी।
- लीज़ अवधि खत्म होने वाली खानों का आवंटन:
- विधेयक में कहा गया है कि जिन खानों की लीज़ की अवधि खत्म हो गई है, उन खानों को कुछ मामलों में सरकारी कंपनियों को आवंटित किया जा सकता है।
- यह प्रावधान तब लागू होगा, जब नई लीज़ देने के लिये नीलामी प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है या नीलामी के एक साल के अंदर ही नई लीज़ अवधि खत्म हो गई है।
- राज्य सरकार ऐसी खान को अधिकतम 10 वर्ष के लिये या जब तक नए पट्टेदार का चयन नहीं हो जाता, तब तक के लिये (इनमें से जो भी पहले हो) सरकारी कंपनी को दे सकती है।
- सरकारी कंपनियों की लीज़ अवधि बढ़ाना:
- इस अधिनियम में प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार सरकारी कंपनियों की खनन लीज़ की अवधि निर्धारित करेगी और सरकारी कंपनियों की लीज़ की अवधि अतिरिक्त राशि चुकाने पर बढ़ाई जा सकती है।
- खनन लीज़ अवधि खत्म होने की शर्तें:
- यदि पट्टेदार लीज़ मिलने के दो वर्ष के भीतर खनन कार्य शुरू नहीं कर पाता है।
- यदि दो वर्षों तक उसका खनन का काम बंद रहता है।
- अगर पट्टेदार के पुनः आवेदन करने के बाद राज्य सरकार ने उसे छूट दे दी है तो इस अवधि के खत्म होने के बाद उसकी लीज़ खत्म नहीं होगी।
- इस विधेयक में कहा गया है कि लीज़ की अवधि खत्म होने के बाद राज्य सरकार सिर्फ एक बार और एक वर्ष तक के लिये इसकी अवधि बढ़ा सकती है।
- नॉन-एक्सक्लूसिव रिकोनिसेंस परमिट:
- यह अधिनियम नॉन-एक्सक्लूसिव रिकोनिसेंस परमिट (Non-Exclusive Reconnaissance Permit- कोयला, लिग्नाइट और परमाणु खनिजों के अतिरिक्त दूसरे खनिजों के लिये) का प्रावधान करता है।
- रिकोनिसेंस का अर्थ है, कुछ सर्वेक्षणों के ज़रिये खनिजों का शुरुआती पूर्वेक्षण (Prospecting)। यह विधेयक इस परमिट के प्रावधान को हटाता है।
- यह अधिनियम नॉन-एक्सक्लूसिव रिकोनिसेंस परमिट (Non-Exclusive Reconnaissance Permit- कोयला, लिग्नाइट और परमाणु खनिजों के अतिरिक्त दूसरे खनिजों के लिये) का प्रावधान करता है।
महत्त्व:
- पारदर्शिता:
- इस अधिनियम से नीलामी प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता आएगी क्योंकि ऐसी धारणा है कि राज्य सरकारें कुछ मामलों में उनके पसंदीदा बोलीदाताओं को प्राथमिकता देती हैं तथा उन्हें लीज़ नहीं मिलने पर नीलामी प्रक्रिया रद्द करने का प्रयास करती हैं।
- उत्पादन बढ़ाना:
- खनिकों (Miner) के लिये लचीलेपन में वृद्धि के कारण कैप्टिव खानों से अधिक-से-अधिक उत्पादन करने की अनुमति मिलेगी क्योंकि वे अब अपनी आवश्यकता से अधिक उत्पादन को बेचने में सक्षम होंगे।
- ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस:
- यह ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस (Ease of Doing Business) को बढ़ाएगा, प्रक्रिया का सरलीकरण करेगा और उन सभी प्रभावित पक्षों को लाभान्वित करेगा जहाँ खनिज मौजूद हैं।
- यह परियोजनाओं के कार्यान्वयन की प्रक्रिया को भी तेज़ कर देगा।
- कुशल ऊर्जा बाज़ार:
- यह एक कुशल ऊर्जा बाज़ार का निर्माण करेगा और कोयला आयात को कम करके अधिक प्रतिस्पर्द्धा लाएगा।
- उच्च-स्तरीय प्रौद्योगिकी तक पहुँच: