समुद्री बचाव समन्वय केंद्र
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में भारतीय तटरक्षक बल (Indian Coast Guard- ICG) और पाकिस्तान समुद्री सुरक्षा एजेंसी (Pakistan Maritime Security Agency- MSA) के संयुक्त बचाव अभियान ने उत्तरी अरब सागर में डूबे हुए भारतीय जहाज़ एमएसवी अल पिरानपीर (MSV Al Piranpir) के 12 चालक दल के सदस्यों को सफलतापूर्वक बचा लिया है।
- इस संयुक्त प्रयास ने दोनों देशों के समुद्री बचाव समन्वय केंद्रों (Maritime Rescue Coordination Centres-MRCC) की महत्त्वपूर्ण भूमिका को उजागर किया जिन्होंने मानवीय खोज और बचाव अभियान के दौरान निर्बाध संचार बनाए रखा।
समुद्री बचाव समन्वय केंद्र क्या हैं?
- परिचय: MRCC एक इकाई है जो समुद्र में खोज और बचाव (Search and Rescue- SAR) सेवाओं के कुशल संगठन को बढ़ावा देने एवं खोज तथा बचाव क्षेत्र (Search and Rescue Region- SRR) के भीतर M-SAR संचालन के संचालन का समन्वय करने के लिये ज़िम्मेदार है।
- भारत में MRCC भारतीय तटरक्षक बल (ICG) के अंतर्गत विशेषीकृत इकाइयाँ हैं।
- खोज और बचाव क्षेत्र (SRR): यह MRCC से जुड़ा परिभाषित आयामों का एक क्षेत्र है जिसके भीतर SAR सेवाएँ प्रदान की जाती हैं। भारतीय तटरक्षक बल भारतीय समुद्री खोज और बचाव क्षेत्र (ISRR) में SAR मिशनों का समन्वय करता है।
- भारतीय SRR को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, जिनमें से प्रत्येक में मुंबई, चेन्नई और पोर्ट ब्लेयर में एक MRCC है।
- SAR सहयोग:
- SAR पर संबंधित अभिसमय (भारत द्वारा अनुसमर्थित):
- समुद्री खोज और बचाव पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (SAR) 1979
- संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (UNCLOS) 1982
- समुद्र में जीवन की सुरक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन (SOLAS) 1974
- SAR पर संबंधित अभिसमय (भारत द्वारा अनुसमर्थित):
- SAR सहयोग के लिये अन्य पहल:
- भारत का SAGAR विज़न
- जिबूती आचार संहिता (DCoC): यह पश्चिमी हिंद महासागर और अदन की खाड़ी में समुद्री चोरी और सशस्त्र डकैती को रोकने के विषय से संबंधित एक आचार संहिता एक रूप में जाना जाता है।
- भारत, जापान, नॉर्वे, ब्रिटेन और अमेरिका को पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है।
- भारत का SAGAR विज़न
भारतीय तटरक्षक बल (ICG)
- ICG की स्थापना तटरक्षक अधिनियम, 1978 द्वारा भारत के एक स्वतंत्र सशस्त्र बल के रूप में की गई थी।
- यह रक्षा मंत्रालय के तहत कार्यरत एक सशस्त्र बल, खोज और बचाव एवं समुद्री कानून प्रवर्तन एजेंसी है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
- बहुआयामी तटरक्षक बल की रूपरेखा दूरदर्शी रुस्तमजी समिति द्वारा 1974 द्वारा तैयार की गई थी।
- SAR के लिये ICG कर्तव्य: SAR से संबंधित, तटरक्षक कर्तव्य चार्टर में निम्नलिखित शामिल हैं:
- समुद्र में समुद्री कानूनों का प्रवर्तन
- संकट के समय समुद्र में मछुआरों को सहायता प्रदान करने सहित उन्हें सुरक्षा प्रदान करना।
- समुद्र में जीवन और संपत्ति की सुरक्षा
- समुद्र में खोज और बचाव
- भारतीय तटरक्षक बल के महानिदेशक राष्ट्रीय समुद्री SAR समन्वय प्राधिकरण (NMSARCA) के रूप में कार्य करते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सप्रश्न: कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला एलीफेंट पास का उल्लेख निम्नलिखित में से किस मामले के संदर्भ में किया जाता है? (2009) (a) बांग्लादेश उत्तर: (d) प्रश्न: निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2019) सागर सागर से लगा हुआ :देश
उपर्युक्त में से कौन-से युग्म सही सुमेलित हैं? (a) केवल 1, 2 और 4 उत्तर: (b) प्रश्न: भूमध्यसागर, निम्नलिखित में से किन देशों की सीमा है? (2017)
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (c) |
ग्राउंड लेवल ओज़ोन
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने भारत में ग्राउंड लेवल ओजोन प्रदूषण (GLOP) को नियंत्रित करने के लिये उठाए जा रहे कदमों पर प्रकाश डाला।
ग्राउंड लेवल ओज़ोन प्रदूषण क्या है?
- ग्राउंड लेवल ओज़ोन: ग्राउंड लेवल ओज़ोन (O₃) प्रदूषण से तात्पर्य पृथ्वी की सतह पर ओज़ोन की अत्यधिक उपस्थिति से है, जो वायुमंडल में रासायनिक प्रतिक्रियाओं के माध्यम से निर्मित होता है।
- समताप मंडल में ओज़ोन परत के विपरीत, जो हानिकारक पराबैंगनी विकिरण से जीवन की रक्षा करती है, ग्राउंड लेवल ओज़ोन एक हानिकारक प्रदूषक है, जो स्वास्थ्य के लिये गंभीर खतरा और पर्यावरणीय क्षति उत्पन्न करती है।
- ग्राउंड लेवल ओज़ोन का निर्माण: ग्राउंड लेवल ओज़ोन एक द्वितीयक प्रदूषक है, जिसका अर्थ है कि यह सीधे उत्सर्जित नहीं होता है, बल्कि नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (VOCs) के बीच रासायनिक प्रतिक्रियाओं के माध्यम से निर्मित होती है।
- NOx (वाहनों, विद्युत् संयंत्रों और औद्योगिक प्रक्रियाओं द्वारा उत्सर्जित) और VOCs (वाहनों, पेट्रोल पंपों, सॉल्वैंट्स और अपशिष्ट जलाने से उत्सर्जित)।
- ये प्रतिक्रियाएँ सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में होती हैं, जिससे धूप वाले दिनों और गर्म मौसम के दौरान ओज़ोन का निर्माण अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
- विनियमन: भारत में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने ओज़ोन के लिये राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (NAAQS) निर्धारित किये हैं, जिसमें 8 घंटे की औसत सीमा 100 µg/m³ और 1 घंटे की सीमा 180 µg/m³ शामिल है।
- ग्राउंड लेवल ओज़ोन की निगरानी राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (NAMP) के तहत की जाती है, जिसका प्रबंधन CPCB द्वारा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (SPCB) और राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (NEERI) के सहयोग से किया जाता है।
प्रभाव:
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: ग्राउंड लेवल ओज़ोन के कारण श्वसन संबंधी समस्याएँ होती हैं और अस्थमा तथा हृदय रोग जैसी व्याधियाँ और भी चिंताजनक हो जाती हैं। दीर्घकालिक उद्भासन से फेफड़ों की क्षमता प्रभावित हो सकती है, जिससे गंभीर क्षति हो सकती है।
- यदि उत्सर्जन को नियंत्रित नहीं किया गया तो 2050 तक भारत में ओज़ोन परत के संपर्क में आने से दस लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो सकती है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: ओज़ोन से फसलों को नुकसान पहुँचता है, कृषि उत्पादकता में कमी आती है, विकास और प्रकाश संश्लेषण को बाधित कर वनों को नुकसान पहुँचता है।
GLOP को नियंत्रित करने के उपाय:
- ओज़ोन क्षयकारी पदार्थ (ODS): ODS को नियंत्रित करने के लिये पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने ओज़ोन क्षयकारी पदार्थ (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 को अधिसूचित किया है, जो भारत में ODS के उपयोग, आयात और निर्यात को नियंत्रित करता है।
- क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFC) की तरह ODS भी ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाते हैं। वे क्षोभमंडल में स्थिर होते हैं लेकिन समतापमंडल में यूवी प्रकाश के तहत इनका विघटन हो जाता है, जिससे ओज़ोन परत का क्षरण होता है।
- स्वच्छ ईंधन: सरकार ने वाहनों और औद्योगिक उत्सर्जन को कम करने के लिये संपीड़ित प्राकृतिक गैस, द्रवित पैट्रोलियम गैस और इथेनॉल-मिश्रित ईंधन के उपयोग को प्रोत्साहित किया है।
- वाष्प पुनर्प्राप्ति तंत्र (VRS): ईंधन पुन:भरण के दौरान VOC उत्सर्जन को न्यूनतम करने के लिये पेट्रोल पंपों पर, विशेष रूप से दिल्ली-एनसीआर में VRS की संस्थापना की गई है।
- पीएम इलेक्ट्रिक ड्राइव से वाहन के नवप्रवर्तन में क्रांति (PM-ई ड्राइव)
- इलेक्ट्रिक वाहन (EV)
- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP)
- भारत स्टेज-VI (BS-VI) अनुरूप वाहन
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2019)
फसल/जैव मात्रा के अवशेषों के दहन के कारण वायुमंडल में उपर्युक्त में से कौन-से निर्मुक्त होते हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) |
ecDNA चुनौतीपूर्ण आनुवंशिकी सिद्धांत
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में नेचर में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि एक्स्ट्राक्रोमोसोमल DNA (ecDNA), आनुवंशिक सामग्री का एक पहले से अनदेखा घटक, कैंसर की प्रगति और दवा प्रतिरोध में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- ये निष्कर्ष आनुवांशिकी की पारंपरिक समझ को चुनौती देते हैं और कैंसर को समझने और उसका इलाज करने के लिये नए रास्ते खोलते हैं।
ecDNA क्या है और यह पारंपरिक आनुवंशिक सिद्धांतों को कैसे चुनौती देता है?
- परिचय: ecDNA एक प्रकार का DNA है जो कोशिकाओं के नाभिक में गुणसूत्रों के बाहर मौजूद होता है।
- DNA किसी जीव के विकास, कार्य और प्रजनन के लिये महत्त्वपूर्ण आनुवंशिक जानकारी संग्रहीत करता है। यूकेरियोटिक कोशिकाओं में यह गुणसूत्रों में कुंडलित होता है।
- मनुष्य में 23 जोड़ी गुणसूत्र होते हैं, जिन पर जीन होते हैं जो प्रोटीन को कूटबद्ध करते हैं और लक्षणों का निर्धारण करते हैं।
- गठन: ecDNA का निर्माण तब होता है जब क्रोमोथ्रिप्सिस (गुणसूत्रों का टूटना और पुनर्व्यवस्थित होना) या DNA प्रतिकृति में त्रुटियों जैसी प्रक्रियाओं के कारण DNA के कुछ हिस्से गुणसूत्रों से अलग हो जाते हैं, जिससे गोलाकार संरचनाएँ बनती हैं जो नाभिक के भीतर स्वतंत्र रूप से मौजूद रहती हैं।
- महत्त्व: ecDNA सामान्यतः कैंसर कोशिकाओं में पाया जाता है, जहाँ इसमें ऑन्कोजीन की कई प्रतियाँ हो सकती हैं, जो ट्यूमर के विकास, आनुवंशिक विविधता और दवा प्रतिरोध में योगदान करती हैं।
- आनुवंशिकी के पारंपरिक नियम को चुनौतियाँ: आनुवंशिकी के पारंपरिक सिद्धांत मुख्य रूप से मेंडेलियन वंशानुक्रम और वंशानुक्रम के गुणसूत्र सिद्धांत पर आधारित हैं, जिसे ecDNA द्वारा निम्नलिखित तरीकों से चुनौती दी जाती है:
- यादृच्छिक जीन वितरण में व्यवधान: पारंपरिक आनुवंशिकी में यह माना जाता है कि कोशिका विभाजन के दौरान जीन यादृच्छिक रूप से और स्वतंत्र रूप से वितरित होते हैं। ecDNA इस सिद्धांत का उल्लंघन करते हुए कई जीनों के समूह बनाता है, जिन्हें अक्षुण्ण पैकेज के रूप में पारित किया जाता है, जिससे कैंसर कोशिकाओं को विश्वसनीय रूप से लाभप्रद आनुवंशिक संयोजन प्राप्त करने की अनुमति मिलती है।
- ऑन्कोजीन की सुगम वंशानुक्रम: ecDNA क्लस्टर में प्राय: ऑन्कोजीन (कैंसर के विकास को बढ़ावा देने वाले जीन) और अन्य विनियामक तत्त्व होते हैं जो ट्यूमर के अस्तित्व का समर्थन करते हैं। यह समूहीकरण सुनिश्चित करता है कि कैंसर कोशिकाएँ गैर-यादृच्छिक, उद्देश्य-संचालित तरीके से लाभकारी लक्षणों को विरासत में ले सकती हैं और बढ़ा सकती हैं, जिससे उपचार के प्रति उनकी अनुकूलन क्षमता और प्रतिरोध बढ़ जाता है।
- अनुकूल आनुवंशिक संयोजनों का संरक्षण: अर्धसूत्री विभाजन के दौरान गुणसूत्र क्रॉसिंग ओवर और पुनर्संयोजन से गुजरते हैं, जिससे आनुवंशिक विविधता होती है। इसके विपरीत, ecDNA पुनर्संयोजन के बिना विशिष्ट लाभकारी संयोजनों को संरक्षित करता है, जिससे ट्यूमर की प्रगति के लिये महत्त्वपूर्ण लक्षण बनाए रखता है।
ecDNA कैंसर और दवा प्रतिरोध में कैसे योगदान देता है?
- ecDNA ऑन्कोजीन की कई प्रतियाँ ले जा सकता है, जिससे कैंसर को बढ़ावा देने वाले जीन में वृद्धि होती है और ट्यूमर का विकास होता है।
- यह जीनोम के अन्य भागों से विनियामक तत्त्व (प्रवर्धक) ले सकता है, जिससे असामान्य जीन गतिविधि उत्पन्न होती है जो कैंसर को बढ़ावा देती है।
- ecDNA की गैर-मेंडेलियन वंशागति ट्यूमर के भीतर आनुवंशिक विविधता उत्पन्न करती है, जिससे लक्षित उपचार जटिल हो जाता है।
- लक्ष्य को बदलकर या कैंसर कोशिकाओं को दवाइयों को बाहर करने में सहायता करने वाले जीन की मात्रा बढ़ाकर, ecDNA कीमोथेरेपी की प्रभावशीलता में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
- यह कैंसर कोशिकाओं को शीघ्रता से नए उत्परिवर्तन विकसित करने में सहायता करता है, जिससे ट्यूमर को उपचार का प्रतिरोध करने और दवाओं के अनुकूल होने में सहायता प्राप्त होती है।
लक्षणों की वंशागति पर मेंडल के आनुवंशिकी के नियम
- प्रभुत्व का नियम: प्रभावी लक्षण सदैव उपस्थित होने पर अभिव्यक्त होते हैं; अप्रभावी लक्षण केवल तभी प्रकट होते हैं जब दोनों जीन प्रतियाँ अप्रभावी हों।
- पृथक्करण का नियम: युग्मक निर्माण के दौरान प्रत्येक माता-पिता अपनी एक जीन प्रतिलिपि संतान को देते हैं।
- स्वतंत्र वर्गीकरण का नियम: विभिन्न लक्षणों के जीन स्वतंत्र रूप से विरासत में मिलते हैं, जब तक कि वे एक ही गुणसूत्र पर निकट स्थित न हों।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |
मलेरिया की रोकथाम हेतु नवोन्वेषी रणनीतियाँ
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
मलेरिया की रोकथाम में हाल ही में हुई प्रगति ने आनुवंशिक रूप से रूपांतरित मच्छरों से हटकर आनुवंशिक रूप से रूपांतरित मलेरिया उत्पन्न करने वाले परजीवियों पर ध्यान केंद्रित किया है। इस अभिनव दृष्टिकोण का उद्देश्य परजीवी के जीवन चक्र के यकृत चरण के दौरान प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत करना है, जिससे संभावित रूप से अधिक प्रभावी मलेरिया के टीके निर्मित हो सकते हैं।
आनुवंशिक रूप से रूपांतरित परजीवी मलेरिया को रोकने में कैसे सहायक हैं?
- आनुवंशिक रूप से रूपांतरित परजीवी: मलेरिया उत्पन्न करने वाले परजीवियों को उनके व्यवहार का अध्ययन करने, बीमारियों को रोकने या उपचार देने के लिये आनुवंशिक रूप से परिवर्तित किया गया था। उन्हें यकृत में प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, ताकि रक्तप्रवाह में प्रवेश करने से पहले बीमारी को रोका जा सके।
- मलेरिया उत्पन्न करने वाले परजीवी संक्रमण का कारण बनते हैं और लक्षण तभी दिखाई देने लगते हैं जब वे यकृत चरण से रक्तप्रवाह में पहुँचते हैं।
- यह विधि बाद में अपरिवर्तित परजीवियों के संपर्क में आने पर मलेरिया के विरुद्ध बेहतर सुरक्षा प्रदान करती है, जिससे समग्र टीका प्रभावकारिता में सुधार होता है।
- इसके अतिरिक्त, आनुवंशिक रूप से रूपांतरित मच्छर जंगली मच्छरों के साथ संभोग करके मलेरिया के प्रति प्रतिरोध विकसित कर सकते हैं।
- इम्यून प्राइमिंग, एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक होस्टर प्रारंभिक रोगजनक संपर्क के बाद अपनी प्रतिरक्षा सुरक्षा में सुधार करता है, जिससे समान या विभिन्न रोगजनकों के साथ बाद के संक्रमण के बाद बेहतर सुरक्षा प्राप्त होती है।
- परीक्षण की प्रभावकारिता: आयोजित परीक्षण में, देर से सक्रिय होने वाले आनुवंशिक रूप से रूपांतरित परजीवियों ( इस मामले में पी फाल्सीपेरम ) के संपर्क में आने वाले 89% प्रतिभागी मलेरिया से सुरक्षित रहे, जबकि जल्दी सक्रिय होने वाले परजीवियों के संपर्क में आने वाले केवल 13% प्रतिभागी ही मलेरिया से सुरक्षित रहे।
- शीघ्र-रोक से तात्पर्य है कि परजीवी को यकृत में प्रवेश करने के पहले दिन ही मार दिया जाता है, जबकि विलंबित-रोक से तात्पर्य है कि उसे छठे दिन मार दिया जाता है।
- पारंपरिक तरीकों से तुलना: पारंपरिक तरीकों, जैसे कि विकिरण-निष्फल मच्छरों तथा विकिरण-क्षीणित स्पोरोजोइट्स (मलेरिया परजीवियों की संक्रामक अवस्था) को समान सुरक्षा स्तरों के लिये अत्यधिक जोखिम (1,000 मच्छरों के काटने तक) की आवश्यकता होती है।
मलेरिया क्या है?
- परिचय:
- मलेरिया, प्लास्मोडियम परजीवी के कारण होने वाली एक जानलेवा बीमारी है, जो मादा एनोफिलीज मच्छरों द्वारा फैलती है। मनुष्यों को संक्रमित करने वाली पाँच प्रजातियों में से, पी. फाल्सीपेरम और पी. विवैक्स सबसे खतरनाक हैं।
- संक्रमित व्यक्ति को काटने के बाद, मच्छर अगले व्यक्ति को मलेरिया परजीवी फैलाता है। परजीवी यकृत तक पहुँचते हैं, परिपक्व होते हैं, और फिर लाल रक्त कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं।
- भारत में मलेरिया की प्रमुख विशेषताएँ:
- राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NVBDCP) के अनुसार, भारत में मलेरिया एक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बनी हुई है, जिसके लगभग 1 मिलियन मामले प्रतिवर्ष रिपोर्ट किये जाते हैं।
- लगभग 95% आबादी मलेरिया प्रभावित क्षेत्रों में रहती है, जिनमें से 80% मामले आदिवासी, पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्रों में होते हैं, जहाँ 20% आबादी रहती है।
- वर्ष 2022 में WHO के तहत शामिल दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र के कुल मलेरिया के मामलों में भारत की हिस्सेदारी 66% रही, जिसमें कुल मामलों के 46% में प्लास्मोडियम वाइवैक्स की भूमिका थी।
- उपचार:
- WHO द्वारा अनुशंसित मलेरिया वैक्सीन जैसे RTS,S/AS01 और R21/Matrix-M
- वैश्विक पहल:
- विश्व मलेरिया दिवस– 25 अप्रैल ( 2007 में शुरू किया गया )
- WHO वैश्विक मलेरिया कार्यक्रम (GMP) (वर्ष 2015 में शुरू किया गया)
- मलेरिया से संबंधित सरकारी पहल:
- राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम (NMCP)– 1953
- राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम– 2003
- मलेरिया उन्मूलन अनुसंधान गठबंधन-भारत (MERA-India)- वर्ष 2019 में 'विश्व मलेरिया दिवस' की पूर्व संध्या पर शुरू किया गया।
- राष्ट्रीय रणनीतिक योजना: मलेरिया उन्मूलन 2023-27
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. क्लोरोक्वीन जैसी दवाओं के प्रति मलेरिया परजीवी के व्यापक प्रतिरोध ने मलेरिया से निपटने हेतु टीका विकसित करने के प्रयासों को प्रोत्साहित किया है। प्रभावी मलेरिया टीका विकसित करने में क्या कठिनाइयाँ हैं? (2010) (a) मलेरिया प्लाज़्मोडियम की कई प्रजातियों के कारण होता है। उत्तर: b |
बीमा सखी योजना
स्रोत: पी.आई.बी.
हाल ही में प्रधानमंत्री ने महिला सशक्तीकरण और वित्तीय समावेशन के लिये अपनी प्रतिबद्धता के अनुरूप भारतीय जीवन बीमा निगम (Life Insurance Corporation- LIC) की ‘बीमा सखी योजना’ की शुरुआत की।
- LIC की बीमा सखी विशेष रूप से महिलाओं हेतु वजीफा आधारित कार्यक्रम है, जो तीन वर्ष की अवधि के लिये विशेष प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
- पात्रता: भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) की ‘बीमा सखी योजना’ पहल 18-70 वर्ष की आयु की उन महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये बनाई गई है, जिन्होंने 10वीं कक्षा उत्तीर्ण की है हैं।
- प्रत्येक बीमा सखी को पहले वर्ष 7,000 रुपए, दूसरे वर्ष 6,000 रुपए तथा तीसरे वर्ष 5,000 रुपए मासिक वजीफा मिलेगा।
- इसके अतिरिक्त महिला एजेंट अपनी बीमा पॉलिसियों के आधार पर कमीशन भी अर्जित कर सकती हैं।
- प्रशिक्षण के बाद वे LIC एजेंट के रूप में काम कर सकती हैं और स्नातक बीमा सखियों को LIC में विकास अधिकारी की भूमिका के लिये अर्हता प्राप्त करने का अवसर मिलेगा।
और पढ़ें: बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना
NCGG का क्षमता निर्माण कार्यक्रम
स्रोत: पी.आई.बी
हाल ही में मसूरी स्थित राष्ट्रीय सुशासन केंद्र (NCGG) में श्रीलंकाई सिविल सेवकों हेतु क्षमता निर्माण कार्यक्रम का छठा संस्करण शुरू हुआ।
- इस कार्यक्रम में श्रीलंका के 40 सिविल सेवकों ने भाग लिया जिसमें शासन, नीतिगत रूपरेखा, शासन में AI तथा लोक प्रशासन में भारत के सफल मॉडल पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- NCGG: इसकी स्थापना वर्ष 2014 में भारत सरकार द्वारा कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्थान के रूप में की गई थी।
- यह राष्ट्रीय प्रशासनिक अनुसंधान संस्थान (NIAR) से विकसित हुआ है, जिसकी स्थापना वर्ष 1995 में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (LBSNAA) द्वारा की गई थी।
- NIAR को बाद में एकीकृत करने के साथ इसका नाम बदलकर NCGG कर दिया गया, जो भारत एवं 20 से अधिक देशों के सिविल सेवकों को प्रशिक्षित करने पर केंद्रित है। इसमें शासन सुधार, डिजिटल इंडिया, SVAMITVA, SDG तथा आयुष्मान भारत जैसे विविध विषय शामिल हैं।
क्वांटम कंप्यूटिंग में गूगल की सफलता
स्रोत: BS
गूगल ने विलो (Willow) नामक चिप युक्त एक नया क्वांटम कंप्यूटर प्रस्तुत किया है, जो पाँच मिनट से कम समय में ऐसी गणना करने में सक्षम है, जिसे करने में सर्वाधिक उन्नत सुपर कंप्यूटरों को 10 सेप्टिलियन वर्ष (यह समय अवधि ज्ञात ब्रह्मांड की आयु से भी अधिक है) से अधिक समय लगेगा।
- "क्वांटम सुप्रीमेसी" के रूप में वर्णित यह उपलब्धि दर्शाती है कि गूगल का क्वांटम कंप्यूटर ऐसे कार्य कर सकता है जिन्हें पारंपरिक कंप्यूटरों द्वारा नहीं किया जा सकता।
- हालाँकि, ये कार्य (Task) मुख्य रूप से सैद्धांतिक हैं और दवा की खोज जैसे तत्काल व्यावहारिक अनुप्रयोगों का इनमें अभाव है जैसे- जैसे यादृच्छिक संख्या उत्पन्न करना।
- एक महत्त्वपूर्ण सफलता में "त्रुटि सुधार सीमा" (error correction threshold) को पार करना शामिल है, जो कंप्यूटेशनल अथवा गणना संबंधी त्रुटियों को कम करने तथा व्यावहारिक अनुप्रयोगों को सक्षम करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
- वैज्ञानिक अब अपना ध्यान "क्वांटम एडवांटेज" प्राप्त करने की ओर केंद्रित कर रहे हैं, जहाँ क्वांटम कंप्यूटर AI, रसायन विज्ञान और चिकित्सा जैसे व्यावहारिक क्षेत्रों में प्रगति को गति प्रदान कर सकते हैं।
- पारंपरिक कंप्यूटिंग बनाम क्वांटम कंप्यूटिंग: पारंपरिक कंप्यूटर गणना करने के लिये जानकारी को "बिट्स" के रूप में संसाधित करते हैं, जिनमें से प्रत्येक 1 या 0 का प्रतिनिधित्व करता है।
- इसके विपरीत, क्वांटम कंप्यूटर "क्यूबिट" का उपयोग करते हैं, जिसमें जानकारी क्वांटम यांत्रिकी के सिद्धांतों का उपयोग करते हुए, 1 और 0 दोनों रूपों में एक साथ मौजूद हो सकती है।
- यह अद्वितीय गुण क्यूबिट को एक साथ कई अवस्थाओं में विद्यमान रहने की अनुमति देता है, जिससे कंप्यूटेशनल शक्ति/गणनात्मक क्षमता में तीव्रता से वृद्धि होती है।
और पढ़ें: भारत और क्वांटम कंप्यूटिंग
चिकित्सा यात्रा हेतु आयुष वीज़ा
स्रोत: पी.आई.बी
हाल ही में आयुष मंत्रालय ने आयुष वीज़ा पर ध्यान केंद्रित किया है, जो भारत की पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों के तहत उपचार चाहने वाले विदेशियों हेतु मेडिकल वैल्यू ट्रैवल वीज़ा को बढ़ावा देने की एक पहल है।
- आयुष वीज़ा: वर्ष 2023 में चार उप-श्रेणियों के साथ आयुष वीज़ा की शुरुआत की गई: आयुष वीज़ा (AY-1), आयुष अटेंडेंट वीज़ा (AY-2), ई-आयुष वीज़ा और ई-आयुष अटेंडेंट वीज़ा।
- उद्देश्य: विदेशियों को मान्यता प्राप्त अस्पतालों या कल्याण केंद्रों में चिकित्सीय देखभाल एवं आयुष प्रणालियों के माध्यम से उपचार प्राप्त करने में सहायता प्रदान करना।
- मान्यता: अस्पताल एवं स्वास्थ्य सेवा प्रदाता हेतु राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड (NABH), राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग (NCH) एवं भारतीय चिकित्सा प्रणालियों के लिये राष्ट्रीय आयोग (NCISM) द्वारा मान्यता प्राप्त आयुष सेवाएँ प्रदान करने वाले अस्पतालों में उपचार उपलब्ध है।
- मेडिकल वैल्यू ट्रैवल हेतु पहल:
- एडवांटेज हेल्थकेयर इंडिया पोर्टल: भारत में चिकित्सा या स्वास्थ्य उपचार चाहने वाले विदेश के लोगों हेतु वन-स्टॉप पोर्टल।
- आयुष मेडिकल वैल्यू ट्रैवल सम्मलेन 2024: सितंबर 2024 में मुंबई में आयोजित होने वाले इस सम्मलेन में पारंपरिक भारतीय चिकित्सा को आधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं के साथ एकीकृत करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
और पढ़ें: चिकित्सा एवं कल्याण पर्यटन हेतु राष्ट्रीय रणनीति तथा रोडमैप
धारिणी 3डी भ्रूण मस्तिष्क एटलस
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT ) मद्रास के शोधकर्त्ताओं ने एक ऐतिहासिक साधन तैयार किया है जिसे धारिणी (DHARINI) नाम दिया गया है, जो भ्रूण (मादा के गर्भाशय में विकसित होने वाला अजन्मा शिशु) के मस्तिष्क का एक विस्तृत 3D मानचित्र है, जो मस्तिष्क विकारों को समझने के लिये एक बड़ी उपलब्धि है।
- धारिणी (DHARINI) विश्व का सबसे बड़ा और सबसे विस्तृत उच्च-रिज़ॉल्यूशन में भ्रूण के मस्तिष्क का 3D एटलस है, जिसमें मस्तिष्क के 5,000 से अधिक खंडों और 500 क्षेत्रों का प्रतिचित्रण है।
- इस एटलस में दूसरी त्रैमासिक अवधि (गर्भावस्था के 14, 17, 21, 22 और 24 सप्ताह) के भ्रूण के मस्तिष्क के चित्रण हैं, जो तीव्र वृद्धि एवं विकास की महत्त्वपूर्ण अवधि है।
- यह साधन ऑटिज़्म जैसे मस्तिष्क विकारों की पहचान करने में मदद कर सकता है और सेरेब्रल पाल्सी जैसे रोगों और अवसाद एवं द्विध्रुवीय विकार जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता है।
- इस शोध में निर्जीव मस्तिष्क के पतले अंशों का उपयोग किया गया, जिससे कोशिकीय स्तर पर विस्तृत इमेजिंग संभव हो सकी।
- धारिनी एकमात्र ऐसा ब्रेन एटलस है जो भ्रूण के मस्तिष्क में होने वाली संवृद्धि को दर्शाता है। सार्वजनिक रूप से उपलब्ध एकमात्र ऐसा ही एटलस, जिसे 2016 में यू.एस. एलन इंस्टीट्यूट द्वारा जारी किया गया था, में एक वयस्क महिला के मस्तिष्क का प्रतिचित्रण किया था।
- आगामी समय में DHARINI कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग की प्रगति में सहायक होगा, जिससे वैज्ञानिकों को मानव मस्तिष्क को बेहतर ढंग से समझने और कृत्रिम बुद्धिमत्ता मॉडल में सुधार करने में मदद मिलेगी।
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