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राष्‍ट्रीय आयोग विधेयक- 2020 (भारतीय चिकित्सा और होम्योपैथी)

  • 22 Sep 2020
  • 16 min read

संदर्भ:

हाल ही में भारतीय संसद से ‘राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा पद्धति आयोग विधेयक, 2020’ और ‘राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग विधेयक, 2020’ को पारित कर दिया गया है। इन दो विधेयकों के पारित होने के बाद देश में भारतीय चिकित्सा पद्धति और होम्योपैथी चिकित्सा में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। ये दोनों विधेयक मौजूदा ‘भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1970’ और ‘होम्योपैथी केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1973’ को प्रतिस्थापित करेंगे।       

 

पृष्ठभूमि:    

  • गौरतलब है कि इन दोनों विधेयकों को सबसे पहले जनवरी 2020 में राज्यसभा में प्रस्तुत किया गया था, जिसके बाद इसे स्वास्थ्य और परिवार कल्याण से संबंधित स्थायी समिति के पास विचार-विमर्श के लिये भेज दिया गया था। 
  • इन विधेयकों पर समिति की रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद मार्च 2020 में इसे राज्यसभा से पारित किया गया था। 
  • 14 सितंबर, 2020 को इन दोनों विधेयकों को लोकसभा भी से पारित कर दिया गया है।

परिवर्तन की आवश्यकता क्यों?    

  • देश में भारतीय चिकित्सा पद्धति और होम्योपैथी चिकित्सा क्षेत्र में शिक्षा तथा पेशेवर गतिविधियों के जुड़े मौजूदा कानून बहुत ही पुराने थे। 
  • हाल के वर्षों में स्वास्थ्य क्षेत्र में आधुनिक ज़रूरतों के अनुरूप गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा शोध का अभाव देखने को मिला है।  
  • गौरतलब है कि योजना आयोग (Planing Commission) की 9वीं रिपोर्ट में भारत में होम्योपैथी चिकित्सा से जुड़े शिक्षण संस्थानों के अध्यापकों/प्रशिक्षकों और इस संस्थानों में दिए जा रहे प्रशिक्षण की गुणवत्ता पर चिंता व्यक्त की गई थी।    
  • साथ ही भारतीय चिकित्सा पद्धति के मौजूदा राष्ट्रीय आयोग की कार्यप्रणाली पर भी कई बार प्रश्न उठाये गए थे।  

राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग विधेयक, 2020:  

(National Commission for Homoeopathy Bill, 2020)      

उद्देश्य: 

  • होम्योपैथी शिक्षा और प्रैक्टिस को प्रभावी बना कर राष्ट्रीय स्वास्थ्य लक्ष्यों को बढ़ावा देना और होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति में गुणात्मक सुधार करना।
  • होम्योपैथी से जुड़े चिकित्सकों को आधुनिक चिकित्सा अनुसंधान का हिस्सा बनने और मेडिकल रजिस्टर रखरखाव की सुविधा देना। 
  • होम्योपैथी केंद्रीय परिषद अधिनियम, 1973 में संशोधन कर राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग (National Commission for Homeopathy) की स्थापना करना।  

प्रमुख सुधार:  

  • इस विधेयक के तहत देश में होम्योपथी शिक्षा पद्धति में संरचनात्मक सुधार लाने की बात कही गई है। 
  • विधेयक के तहत स्वास्थ्य क्षेत्र में वैश्विक स्तर के गुणवत्ता पूर्ण शोध को बढ़ावा देने पर विशेष ध्यान दिया गया है। 
  • इस विधेयक में होम्योपैथी के क्षेत्र में स्नातक और परास्नातक के बाद किसी विषय अथवा रोग पर विशेषज्ञता प्राप्त करने के लिये पाठ्यक्रम तथा अन्य मानकों के निर्धारण का प्रावधान किया गया है।    

परीक्षाओं का आयोजन: 

  • सभी मेडिकल संस्थानों में होम्योपैथी शिक्षा में स्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश हेतु एक ‘राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा’ (NEET) और परास्नातक कक्षाओं में प्रवेश हेतु स्नातकोत्तर राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया जाएगा। 
  • स्नातक की शिक्षा पूरी होने के बाद छात्रों का ‘नेशनल एग्जिट टेस्ट’ (National Exit Test) होगा, इस परीक्षा के आधार पर प्रैक्टिस करने का लाइसेंस मिलेगा और साथ ही संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता का मूल्यांकन भी हो सकेगा। 
  • विधेयक में शिक्षण के क्षेत्र से जुड़ने के इच्छुक परास्नातक छात्रों के लिये एक ‘राष्ट्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा’ का प्रस्ताव भी रखा गया है।     

राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग

(National Homeopathy Commission- NHC):

  • इस आयोग में 20 सदस्य होंगे, जिनकी नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाएगी। 
  • यह आयोग स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित मानव संसाधन और अवसंरचना संबंधी ज़रूरतों का मूल्यांकन करेगा। 
  • इसके अतिरिक्त आयोग के कार्यों में स्वास्थ्य संस्थानों और होम्योपैथिक से जुड़े पेशेवर लोगों के कार्यों को विनियमित करने हेतु नीतियों का निर्माण, राज्य होम्योपैथी आर्युविज्ञान परिषदों द्वारा विधेयक के क्रियान्वयन की निगरानी और विधेयक के तहत गठित स्वायत्त बोर्डों के बीच समन्वय स्थापित करना भी शामिल है।
  • राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग के अतिरिक्त विधेयक के पारित होने के तीन वर्षों के अंदर राज्य सरकारों द्वारा होम्योपैथी के लिये राज्य आयुर्विज्ञान परिषद की स्थापना की जाएगी।
  • इस विधेयक के प्रावधानों के तहत केंद्र सरकार द्वारा होम्योपैथी सलाहकार परिषद का गठन किया जाएगा, राज्य/केंद्र शासित प्रदेश  इस परिषद के माध्यम से NHC के समक्ष अपने विचारों और चिंताओं को प्रस्तुत कर सकेंगे। साथ ही यह परिषद मेडिकल NHC को शिक्षा के न्यूनतम मानदंडों को निर्धारित करने के संदर्भ में सुझाव देने का कार्य भी करेगी। 
  • इस विधेयक में राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग की निगरानी में कुछ स्वायत्त बोर्डों के गठन का प्रावधान भी किया गया।    

स्वायत्त बोर्ड: 

  • होम्योपैथी शिक्षा बोर्ड: संस्थानों की स्थापना से संबंधित मानदंडों, पाठ्यक्रमों और दिशा-निर्देश तैयार करने तथा स्नातक एवं परास्नातक के उत्तीर्ण छात्रों को मान्यता देने हेतु।  
  • होम्योपैथी चिकित्सा मूल्यांकन एवं रेटिंग बोर्ड:  संस्थानों की रेटिंग और मूल्यांकन की प्रक्रिया के निर्धारण के कार्य के साथ यह बोर्ड नए आयुर्विज्ञान संस्थानों की स्थापना की अनुमति प्रदान करेगा।  
  • बोर्ड ऑफ एथिक्स एंड मेडिकल रजिस्ट्रेशन: यह बोर्ड सभी लाइसेंस धारक होम्योपैथिक मेडिकल प्रैक्टीशनर्स का राष्ट्रीय रजिस्टर रखेगा और उनके पेशेवर आचरण की निगरानी करेगा, इस रजिस्टर में शामिल चिकित्सकों को ही होम्योपैथिक चिकित्सा की प्रैक्टिस करने की अनुमति होगी।     
  • पेशेवर और नैतिक दुर्व्यवहार से संबंधित मामलों में अपील: 
    • विधेयक में दिए गए प्रावधानों के तहत पंजीकृत होम्योपैथिक चिकित्सक के खिलाफ पेशेवर और नैतिक दुर्व्यवहार के मामलों से संबंधी शिकायत राज्य आयुर्विज्ञान परिषद में दर्ज की जा सकेगी।
    • चिकित्सक, परिषद के फैसले के खिलाफ या अपनी किसी अन्य समस्या के लिये होम्योपैथी एथिक्स और मेडिकल रजिस्ट्रेशन बोर्ड में अपील कर सकता है तथा बोर्ड के फैसले से असंतुष्ट होने की स्थिति में वह राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग में बोर्ड के फैसले के खिलाफ अपील कर सकता है।

राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा पद्धति आयोग विधेयक, 2020: 

(The National Commission for Indian System of Medicine Bill, 2020)  

  • राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग विधेयक, 2020 की तरह ही इस विधेयक में भी भारतीय चिकित्सा पद्धति के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सुधार प्रस्तावित किये गए हैं। 
  • राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयोग की स्थापना: इस आयोग में कुल 29 सदस्य होंगे जिनकी नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाएगी। 
    • इस आयोग के कार्यों में स्वास्थ्य संस्थानों और भारतीय चिकित्सा पद्धति से जुड़े पेशेवर लोगों के कार्यों को विनियमित करने हेतु नीतियों का निर्माण, भारतीय चिकित्सा प्रणाली की राज्य आर्युविज्ञान परिषदों द्वारा विधेयक के क्रियान्वयन की निगरानी और विधेयक के तहत गठित स्वायत्त बोर्डों के बीच समन्वय स्थापित करना आदि शामिल है।
  • राज्य आयुर्विज्ञान परिषद: इस विधेयक के पारित होने के तीन वर्षों के भीतर राज्य सरकारों द्वारा भारतीय चिकित्सा प्रणाली की राज्य आयुर्विज्ञान परिषदों की स्थापना की जाएगी। 
    • साथ ही इस विधेयक के प्रावधानों के तहत केंद्र सरकार भारतीय चिकित्सा प्रणाली सलाहकार परिषद की स्थापना करेगी।
  •  स्वायत्त बोर्ड:  
    • आयुर्वेद बोर्ड 
    • यूनानी, सिद्ध एवं सोवा-रिग्पा बोर्ड  
    • भारतीय चिकित्सा प्रणाली के लिये चिकित्सा मूल्यांकन एवं रेटिंग बोर्ड
    • एथिक्स और मेडिकल रजिस्ट्रेशन बोर्ड 
  • प्रवेश परीक्षा: 
    • इस विधेयक द्वारा विनियमित सभी मेडिकल संस्थानों में भारतीय चिकित्सा प्रणाली के प्रत्येक विषय के स्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश हेतु एक ‘राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा’ (NEET) और परास्नातक कक्षाओं में प्रवेश हेतु स्नातकोत्तर राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षाओं का आयोजन किया जाएगा।  

    • साथ ही स्नातक की शिक्षा पूरी होने के बाद छात्रों के लिये ‘नेशनल एग्जिट टेस्ट’ (National Txit Test) और शिक्षण के क्षेत्र से जुड़ने के इच्छुक परास्नातक छात्रों के लिये एक ‘राष्ट्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा’ का प्रस्ताव भी रखा गया है।  

विधेयक के लाभ:

  • चिकित्सा मूल्यांकन एवं रेटिंग बोर्ड के माध्यम से अलग-अलग मापदंडों (अध्यापक, अवसंरचना, शोध आदि की गुणवत्ता) के आधार पर शिक्षण संस्थानों के मूल्यांकन से पारदर्शिता बढ़ेगी और छात्रों को दाखिले के समय संस्थान के चुनाव में आसानी होगी।
  • इस विधेयक के तहत निजी मेडिकल कॉलेजों और मानित विश्वविद्यालय में 50% सीटों पर शिक्षण शुल्क का विनियमन का भी प्रावधान किया गया है, जिसका सीधा लाभ निम्न आय वर्ग से संबंधित छात्रों को प्राप्त होगा।
  • विधेयक के प्रावधानों के अनुरूप राष्ट्रीय निकायों और अलग-अलग बोर्डों की स्थापना के माध्यम से होम्योपैथी तथा भारतीय चिकित्सा पद्धति के संदर्भ में शिक्षण पाठ्यक्रम, अध्यापकों संस्थान आदि के संदर्भ में ‘न्यूनतम मानक आवश्यकता’ (Minimum Standard Requirement) की निगरानी की जा सकेगी तथा इनमें बेहतर समन्वय स्थापित किया जा सकेगा।     
  • इस विधेयक के माध्यम से देश में भारतीय चिकित्सा पद्धति और होम्योपैथी चिकित्सा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सुधर होगा जिससे लोगों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ मिल सकेगा।   

चुनौतियाँ और समाधान: 

  • हाल के वर्षों में स्वास्थ्य क्षेत्र में तकनीकों के प्रयोग के साथ-साथ कई बड़े बदलाव देखने को मिले हैं परंतु भारतीय चिकित्सा पद्धति और होम्योपैथी का क्षेत्र इन बदलावों को अपनाने में पीछे रह गया है, ऐसे में इन क्षेत्रों से जुड़े पाठ्यक्रमों में आधुनिक बदलावों के अनुरूप आवश्यक परिवर्तन किये जाने चाहिये।   
  • देश भर में शिक्षण संस्थानों में पाठ्यक्रमों और अन्य मानकों में समानता स्थापित करने का प्रयास किया जाना चाहिये। 
  • होम्योपैथी और भारतीय चिकित्सा पद्धति के क्षेत्र में शोध को बढ़ावा देने पर विशेष ध्यान देना होगा।  
  • आगे की राह:  
  • इस विधेयक में स्वायत्त बोर्डों के कुल 12 सदस्यों में से मात्र 4 को छोड़कर अन्य को केंद्र सरकार द्वारा मनोनीत करने का प्रावधान किया गया है, बोर्ड के सदस्यों के चयन में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बढ़ावा  देते हुए पारदर्शिता के साथ सभी सदस्यों का चुनाव किया जाना चाहिये।
  • एक निश्चित समयांतराल (तीन या पाँच वर्ष) पर सभी चिकित्सकों द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सेवाओं के मूल्यांकन का प्रावधान किया जाना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: वर्तमान में परंपरागत भारतीय चिकित्सा पद्धति के क्षेत्र में व्याप्त चुनौतियों को दूर करने हेतु राष्ट्रीय आयोग विधेयक- 2020 (भारतीय चिकित्सा और होम्योपैथी) कितना लाभकारी होगा? चर्चा कीजिये।

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