प्रारंभिक परीक्षा
बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी की शताब्दी
- 25 Nov 2024
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स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 'बोस-आइंस्टीन' सांख्यिकी की शताब्दी मनाई गई, जिसमें कण अविभेद्यता (Particle Indistinguishability) पर सत्येंद्र नाथ बोस के अभूतपूर्व कार्य को सम्मानित किया गया।
- उनके योगदान ने बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट सहित क्वांटम यांत्रिकी में प्रमुख प्रगति की नींव रखी और आधुनिक भौतिकी को आकार देना जारी रखा।
सत्येंद्र नाथ बोस कौन थे?
- प्रारंभिक जीवन: 1 जनवरी 1894 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में जन्मे बोस एक होनहार छात्र थे, जो कम उम्र से ही गणित में उत्कृष्ट थे।
- वे रेडियो तरंग अनुसंधान के अग्रणी जगदीश चंद्र बोस से प्रेरित थे, एस.एन. बोस ने क्वांटम यांत्रिकी के क्षेत्र में कदम रखा, जिसके कारण इस क्षेत्र में उनका अभूतपूर्व योगदान हुआ।
बोस का योगदान:
- बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी: वर्ष 1924 में, बोस ने "प्लैंक का नियम और प्रकाश क्वांटम की परिकल्पना" नामक एक शोधपत्र प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने कणों, विशेष रूप से फोटॉनों को अविभाज्य इकाइयों के रूप में गिनने का एक नया तरीका प्रस्तुत किया।
- अल्बर्ट आइंस्टीन ने बोस के पेपर के महत्त्व को पहचाना और उनके विचारों को आगे बढ़ाया, जिसके परिणामस्वरूप बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी का विकास हुआ और बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट की खोज हुई।
- बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी ने चिरसम्मत यांत्रिकी की पूर्वधारणा को चुनौती दी कि कण अलग-अलग पहचाने जा सकते हैं, जहाँ प्रत्येक कण को अद्वितीय माना जाता है और उसे व्यक्तिगत रूप से ट्रैक किया जा सकता है।
- बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी क्वांटम यांत्रिकी में कणों के दो वर्गों के बीच अंतर करती है: बोसॉन और फर्मिऑन।
- बोसोन, जिनका नाम बोस के नाम पर रखा गया है, एक ही क्वांटम अवस्था में रह सकते हैं, जिससे वे एक दूसरे से अलग नहीं हो सकते। इसका मतलब है कि एक बोसोन को दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता।
- इसके विपरीत, फर्मिऑन पाउली अपवर्जन सिद्धांत का पालन करते हैं (किसी भी दो इलेक्ट्रॉनों की चार इलेक्ट्रॉनिक क्वांटम संख्याएँ समान नहीं हो सकतीं), जो पदार्थ की संरचना को नियंत्रित करता है।
- बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट (BEC): बोस के कार्य को आइंस्टीन द्वारा विस्तारित किया गया, जिससे BEC की भविष्यवाणी हुई, जो पदार्थ की एक अनूठी अवस्था है, जो तब बनती है जब बोसॉनिक परमाणुओं को परम शून्य (- 273.15 डिग्री सेल्सियस) के करीब ठंडा किया जाता है, जिससे वे तरंग-जैसे गुणों के साथ एक एकल क्वांटम इकाई में विलीन हो जाते हैं।
- यह अवधारणा सैद्धांतिक ही रही जब तक कि वर्ष 1995 में एरिक कॉर्नेल और कार्ल विमन द्वारा प्रयोगात्मक रूप से इसकी पुष्टि नहीं की गई, जिन्हें वर्ष 2001 में उनके कार्य के लिये नोबेल पुरस्कार मिला।
- आधुनिक भौतिकी में प्रासंगिकता: हिग्स बोसोन जैसी खोजें और क्वांटम कंप्यूटिंग में प्रगति बोस के सिद्धांतों की स्थायी प्रासंगिकता को उज़ागर करती है। बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी न केवल भौतिकी बल्कि ब्रह्मांड विज्ञान और संघनित पदार्थ विज्ञान को भी प्रभावित करती है।
- पुरस्कार और सम्मान: सत्येंद्र नाथ बोस, जिन्हें व्यापक रूप से गॉड पार्टिकल के जनक के रूप में जाना जाता है, को वर्ष 1954 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। 1959 में, उन्हें भारत का राष्ट्रीय प्रोफेसर नामित किया गया, जो किसी विद्वान के लिये सर्वोच्च सम्मान था, वे इस पद पर 15 वर्षों तक रहे।
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