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भारतीय आबादी में आनुवंशिक विविधता

  • 08 Aug 2023
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय आबादी में आनुवंशिक विविधता, DNA (डी-ऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड), अंतर्विवाही प्रथाएँ, संपूर्ण-जीनोम अनुक्रमण।

मेन्स के लिये:

भारतीय आबादी में आनुवंशिक विविधता।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन जेनेटिक्स के एक अध्ययन में भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों में बड़ा आनुवंशिक अंतर पाया गया है।

अध्ययन की पद्धति:

  • शोधकर्त्ताओं ने आनुवंशिक अध्ययन के लिये लगभग 5,000 व्यक्तियों का DNA एकत्र किया, जिनमें मुख्यतः भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के लोग शामिल थे। इस समूह में कुछ मलय, तिब्बती और अन्य दक्षिण-एशियाई समुदायों के लोगों के DNA भी शामिल थे।
  • इसके बाद उन्होंने DNA में परिवर्तन, DNA के उपलब्ध न होने, दो अलग-अलग DNA होने की स्थिति दर्शाने वाले क्षेत्रों की पहचान करने के लिये संपूर्ण-जीनोम अनुक्रमण का प्रयोग किया।

शोध के प्रमुख बिंदु:

  • अंतर्विवाही प्रथाएँ:
    • भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न समुदायों के व्यक्तियों के बीच मेलजोल बहुत कम है।
    • जाति-आधारित, क्षेत्र-आधारित और सजातीय (करीबी रिश्तेदार) विवाह जैसी अंतर्विवाही प्रथाओं ने सामुदायिक स्तर पर आनुवंशिक पैटर्न को संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाई है।
      • एक आदर्श स्थिति में जनसंख्या  में यादृच्छिक संभोग (random mating) का गुण होता है, जिससे आनुवंशिक विविधता और वेरिएंट/भिन्नता की आवृत्ति कम होती है, जो विकारों से जुड़ी होती है।
  • क्षेत्रीय रुझान:
    • ताइवान जैसी अपेक्षाकृत बहिष्कृत आबादी की तुलना में दक्षिण एशियाई समूह और इसमें स्थित दक्षिण-भारतीय एवं पाकिस्तानी उपसमूह ने संभावित सांस्कृतिक कारकों के कारण आनुवंशिक समयुग्मज की उच्च आवृत्ति का प्रदर्शन किया है।
      • सामान्यतः मनुष्य के पास प्रत्येक जीन की दो प्रतियाँ होती हैं। जब किसी व्यक्ति के पास एक ही प्रकार की दो प्रतियाँ होती हैं, तो इसे ‘सम्युग्मज जीनोटाइप’ कहा जाता है।
      • प्रमुख विकारों से जुड़े अधिकांश आनुवंशिक वेरिएंट प्रकृति में अप्रभावी होते हैं जो केवल दो प्रतियों में मौज़ूद होने पर ही अपना प्रभाव डालते हैं। (विभिन्न प्रकार का होना - अर्थात् विषमयुग्मजी होना-सुरक्षात्मक होता है।)
    • एक अनुमान के अनुसार दक्षिण-भारतीय और पाकिस्तानी उपसमूहों में उच्च स्तर की अंतःप्रजनन दर थी, जबकि बंगाली उपसमूह में काफी कम अंतःप्रजनन देखा गया।
      • ऐसे वेरिएंट, जो जीन के कामकाज को बाधित कर सकते थे, न केवल दक्षिण एशियाई समूह में अधिक संख्या में पाए गए, बल्कि कुछ अनोखे वैरिएंट भी मोज़ूद थे जो यूरोपीय व्यक्तियों में नहीं पाए गए।
  • समयुग्मक वेरिएंट की उच्च आवृत्ति का जोखिम:
    • दुर्लभ समयुग्मक वेरिएंट की उपस्थिति से हृदय रोग, मधुमेह, कैंसर और मानसिक विकार जैसे रोगों का खतरा बढ़ गया है।

आनुवंशिक वैविध्य पर अन्य अध्ययन:

  • वर्ष 2009 में, सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, हैदराबाद में कुमारसामी थंगराज के समूह द्वारा नेचर जेनेटिक्स में एक अध्ययन से पता चला कि भारतीयों के एक छोटे समूह को अपेक्षाकृत कम उम्र में हृदय विफलता का खतरा होता है।
  • ऐसे व्यक्तियों के DNA में हृदय की लयबद्ध धड़कन के लिये महत्त्वपूर्ण जीन में 25 आधारभूत-युग्मक (base-pair) की कमी थी (वैज्ञानिक इसे 25-आधारभूत-युग्मक का विलोपन कहते हैं)।
  • यह विलोपन भारतीय आबादी के लिये असामान्य था तथा दक्षिण पूर्व एशिया में कुछ समूहों को छोड़कर, यह अन्यत्र नहीं पाया गया था।
  • यह विलोपन लगभग 30,000 वर्ष पूर्व हुआ था, जब कुछ ही समय बाद लोगों ने उपमहाद्वीप में बसना शुरू किया था और आज लगभग 4% भारतीय आबादी इससे प्रभावित है।
    • ऐसी आनुवांशिक नवीनताओं की पहचान करने से जनसंख्या-विशिष्ट स्वास्थ्य जोखिमों और कमज़ोरियों को समझने में मदद मिलती है।

आनुवंशिक वैविध्य पर ऐसे अध्ययनों का क्या महत्त्व है?

  • अध्ययनों से पता चला है कि विशिष्ट आनुवंशिक विविधताएँ भारतीय आबादी के स्वास्थ्य से संबद्ध हैं, ये प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं के लिये अधिक प्रभावी हस्तक्षेप का कारण बन सकती हैं।
  • देश में किये गए आनुवंशिक अनुसंधान, वंचित समुदायों को बहुराष्ट्रीय निगमों और अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थानों द्वारा संभावित दुरुपयोग से बचा सकते हैं।

भारतीय जीनोम के विस्तृत मानचित्र का महत्त्व:

  • भारत की अविश्वसनीय विविधता के कारण आर्थिक, वैवाहिक तथा भौगोलिक कारकों सहित विभिन्न कारणों से भारतीय जीनोम के विस्तृत मानचित्र की जानकारी आवश्यक है।
  • ऐसा मानचित्र स्वास्थ्य असमानताओं के आनुवंशिक आधार को समझने एवं जनसंख्या स्वास्थ्य हस्तक्षेपों का मार्गदर्शन करने में सहायता प्रदान कर सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

 प्रश्न. भारत में कृषि के संदर्भ में प्रायः समाचारों में आने वाले "जीनोम अनुक्रमण(जीनोम सिक्वेंसिंग)" की तकनीक का आसन्न भविष्य में किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है? (2017) 

  1. विभिन्न फसली पौधों में रोग प्रतिरोध और सूखा सहिष्णुता के लिये आनुवंशिक सूचकों का अभिज्ञान करने के लिये जीनोम अनुक्रमण का उपयोग किया जा सकता है। 
  2. यह तकनीक, फसली पौधों की नई किस्मों को विकसित करने में लगने वाले आवश्यक समय को घटाने में मदद करती है। 
  3. इसका प्रयोग फसलों में पोषी रोगाणु-संबंधों को समझने के लिये किया जा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये :   

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (d)

 स्रोत: द.हिंदू

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