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प्रारंभिक परीक्षा

कोशिका-मुक्त DNA

  • 03 Aug 2023
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?  

हाल के वर्षों में कोशिका-मुक्त या सेल-फ्री डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (cell-free  Deoxyribonucleic Acid- cfDNA) की खोज से चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय प्रगति देखी गई है। cfDNA रोग की पहचान, निदान और उपचार की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।

  • cfDNA चिकित्सा विज्ञान के संपूर्ण परिदृश्य को नया आकार देने के लिये तैयार है।

कोशिका-मुक्त DNA (cfDNA): 

  • परिचय: 
    • cfDNA, DNA के उन टुकड़ों को संदर्भित करता है जो कोशिकाओं के बाहर, विशेष रूप से शरीर के विभिन्न तरल पदार्थों में मौजूद होते हैं। अधिकांश DNA के विपरीत जो कोशिकाओं के भीतर घिरा होता है।
    • हालाँकि cfDNA के बारे में वैज्ञानिक वर्ष 1948 से ही जानते हैं लेकिन पिछले दो दशकों में वे यह समझ पाए हैं कि इसके साथ क्या किया जाए।
    • cfDNA को कोशिका मृत्यु या अन्य सेलुलर प्रक्रियाओं सहित विभिन्न परिस्थितियों में बाह्य कोशिकीय वातावरण में जारी किया जाता है।
    • इन cfDNA टुकड़ों में आनुवंशिक सूचना होती है और ये किसी व्यक्ति की स्वास्थ्य स्थिति, संभावित बीमारियों और आनुवंशिक विविधताओं के बारे में जानकारी प्रदान कर सकते हैं।
  • अनुप्रयोग: 
    • गैर-आक्रामक प्रसव-पूर्व परीक्षण (Non-Invasive Prenatal Testing- NIPT)
      • कोशिका-मुक्त DNA विकासशील भ्रूणों में डाउन सिंड्रोम (Down Syndrome) जैसे गुणसूत्र संबंधी असामान्यताओं की जाँच के लिये एक मूल्यवान उपकरण के रूप में कार्य करता है।
      • एमनियोसेंटेसिस जैसी प्रक्रियाओं के स्थान पर NIPT के उपयोग से गर्भवती माताओं और भ्रूण दोनों के लिये जोखिम कम हो जाता है। 
      • मातृ रक्त के cfDNA का विश्लेषण भ्रूण के आनुवंशिक स्वास्थ्य के बारे में अहम जानकारी प्रदान करता है।
    • प्रारंभिक अवस्था में कैंसर की पहचान: 
      • शीघ्र उपचार के लिये प्रारंभिक अवस्था में कैंसर की पहचान।
      • 'जेमिनी (GEMINI)' परीक्षण उच्च सटीकता के साथ फेफड़ों के कैंसर का पता लगाने के लिये cfDNA अनुक्रमण का उपयोग करता है।
      • cfDNA विश्लेषण और मौजूदा तरीकों के संयुक्त उपयोग से कैंसर का पता लगाने में बेहतर सहायता मिल सकती है। 
    • अंग प्रत्यारोपण की निगरानी: 
      • दाता से प्राप्त cfDNA प्रत्यारोपित अंगों के स्वाथ्य और स्वीकृति के लिये एक आशाजनक दृष्टिकोण प्रदान करता है।
      • cfDNA स्तरों में उतार-चढ़ाव सबसे पहले अंग अस्वीकृति या स्वीकृति का संकेत प्रदान कर सकता है। 
      • अंगों की अस्वीकृति का शीघ्र पता लगाने से अंग प्रत्यारोपण में समय पर आवश्यक उपचार की सुविधा मिलती है और परिणाम भी बेहतर प्राप्त होते हैं।
    • तंत्रिका संबंधी विकार बायोमार्कर: 
      • तंत्रिका संबंधी विकारों के लिये बायोमार्कर के रूप में cfDNA की क्षमता की जाँच करना।
      • अल्ज़ाइमर रोग, न्यूरोनल ट्यूमर और स्ट्रोक जैसी स्थितियों के निदान तथा निगरानी में सहायता करना। 
    • चयापचय विकार संबंधी अंतर्दृष्टि:
      • चयापचय संबंधी विकारों के लिये बायोमार्कर के रूप में cfDNA की भूमिका का पता लगाना।
      • टाइप-2 मधुमेह और गैर-अल्कोहल वसायुक्त यकृत (Fatty Liver) रोग जैसी स्थितियों का पता लगाना और प्रबंधन।
    • रोग अनुसंधान में प्रगति: 
      • cfDNA विश्लेषण का उपयोग शोधकर्ताओं द्वारा रोग के कारणों का पता लगाने, उपचार की प्रभावकारिता को ट्रैक करने के लिये किया जाता है।
      • cfDNA अनुप्रयोग जटिल बीमारियों और उनके अंतर्निहित आनुवंशिक कारकों की गहरी समझ में योगदान करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न.  विज्ञान में हुए अभिनव विकासों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा एक सही नहीं है? (2019)  

(a) विभिन्न जातियों की कोशिकाओं से लिये गए DNA के खंडों को जोड़कर प्रकार्यात्मक गुणसूत्र रचे जा सकते है।
(b)  प्रयोगशालाओं में कृत्रिम प्रकार्यात्मक DNA के हिस्से रचे जा सकते हैं।  
(c) किसी जंतु कोशिका से निकाले गए DNA के किसी हिस्से को जीवित कोशिका से बाहर प्रयोगशाला में, प्रतिकृत कराया जा सकता है।  
(d) पादपों और जंतुओं से निकाली गई कोशिकाओं में प्रयोगशाला की पेट्री डिश में कोशिका विभाजन कराया जा सकता है।

उत्तर: (a)  

  • वर्ष 2017 में अमेरिकी शोधकर्ता ई. कोली बैक्टीरिया के नए अर्द्ध -सिंथेटिक स्ट्रेन को विकसित करने में सफल रहे, जो एक जीवित जीव है, यह प्राकृतिक और कृत्रिम DNA दोनों को शामिल करता है तथा पूरी तरह से नए सिंथेटिक प्रोटीन बनाने में सक्षम है।
  • शुद्ध प्रोटीन युक्त इन-विट्रो DNA प्रतिकृति प्रणाली में विभिन्न प्रकार के डबल स्ट्रैंडेड DNA टेम्पलेट्स को बड़े पैमाने पर दोहराया जाता है।
  • सूक्ष्म प्रसार के माध्यम से पौधों को प्रयोगशाला में विकसित किया जा सकता है, उदाहरण के लिये क्लैमाइडोम्नास कोशिकाओं को प्रकाश विविधता के माध्यम से इसे दोहराया जा सकता है। अतः विकल्प (A) सही उत्तर है।

प्रश्न.  भारत में कृषि के संदर्भ में प्रायः समाचारों में आने वाले "जीनोम अनुक्रमण (जीनोम सिक्वेंसिंग)" की तकनीक का आसन्न भविष्य में किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है? (2017)  

  1. विभिन्न फसली पौधों में रोग प्रतिरोध और सूखा सहिष्णुता के लिये आनुवंशिक सूचकों का अभिज्ञान करने हेतु जीनोम अनुक्रमण का उपयोग किया जा सकता है।  
  2. यह तकनीक, फसली पौधों की नई किस्मों को विकसित करने में लगने वाले आवश्यक समय को घटाने में मदद करती है।  
  3. इसका प्रयोग फसलों में पोषी रोगाणु-संबंधों को समझने के लिये किया जा सकता है। 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये :

(a) केवल 1  
(b) केवल 2 और 3  
(c) केवल 1 और 3  
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (d) 

  • चीनी वैज्ञानिकों ने वर्ष 2002 में चावल के जीनोम को डिकोड किया। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के वैज्ञानिकों ने चावल की बेहतर किस्मों जैसे- पूसा बासमती-1 और पूसा बासमती-1121 को विकसित करने के लिये जीनोम अनुक्रमण का उपयोग किया, जिसने वर्तमान में भारत के चावल निर्यात में काफी हद तक वृद्धि की है। कई ट्रांसजेनिक किस्में भी विकसित की गई हैं, जिनमें कीट प्रतिरोधी कपास, शाकनाशी सहिष्णु सोयाबीन और वायरस प्रतिरोधी पपीता शामिल हैं। अत: कथन 1 सही है।
  • पारंपरिक प्रजनन में पादप प्रजनक अपने खेतों की जाँच करते हैं और उन पौधों की खोज करते हैं जो वांछनीय लक्षण प्रदर्शित करते हैं। ये लक्षण उत्परिवर्तन नामक एक प्रक्रिया के माध्यम से उत्पन्न होते हैं, लेकिन उत्परिवर्तन की प्राकृतिक दर उन सभी पौधों में लक्षणों को उत्पन्न करने के लिये बहुत धीमी और अविश्वसनीय है जो कि प्रजनक चाहते हैं। हालाँकि जीनोम अनुक्रमण में कम समय लगता है, इस प्रकार यह अधिक बेहतर विकल्प है। अत:  कथन 2 सही है।
  • जीनोम अनुक्रमण एक फसल के संपूर्ण DNA अनुक्रम का अध्ययन करने में सक्षम बनाता है, इस प्रकार यह रोगजनकों के अस्तित्व या प्रजनन क्षेत्र को समझने में सहायता प्रदान करता है। अत:  कथन 3 सही है।
  • अतः विकल्प (D) सही उत्तर है।

स्रोत: द हिंदू

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