PMLA के तहत लोक सेवकों पर मुकदमा चलाने हेतु पूर्व अनुमति
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के उस निर्णय को बरकरार रखा, जिसमें धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत लोक सेवकों पर मुकदमा चलाने के लिये सरकार की पूर्व अनुमति को आवश्यक बताया गया था।
- इस निर्णय से यह स्पष्ट हुआ है कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 197(1) (जिसे अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है ), जिसके तहत लोक सेवकों पर मुकदमा चलाने के लिये सरकार की पूर्व मंज़ूरी को अनिवार्य बनाया गया है, PMLA मामलों पर भी लागू होती है।
CrPC की धारा 197(1) क्या है?
- इस अधिनियम के तहत सरकारी कर्मचारियों, न्यायाधीशों या मजिस्ट्रेटों पर आधिकारिक कर्त्तव्यों के दौरान किये गए कार्यों के संदर्भ में मुकदमा चलाने से पहले सरकार की पूर्व मंज़ूरी को अनिवार्य बनाया गया है।
- इसका उद्देश्य दुर्भावनापूर्ण अभियोजन को रोकने के साथ सद्भावनापूर्वक निर्णय की रक्षा करना है। केंद्र सरकार से जुड़े कर्मियों के लिये मंज़ूरी केंद्र सरकार से और राज्य के मामलों में राज्य सरकार से मिलनी चाहिये।
- अपवाद: विशिष्ट अपराधों, विशेषकर भारतीय दंड संहिता, 1860 ( BNS, 2023) के तहत लिंग आधारित हिंसा एवं यौन अपराधों से जुड़े अपराधों में लोक सेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिये पूर्व मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं होती है।
PMLA और CrPC के बीच क्या संबंध है?
- PMLA की धारा 65: इसके तहत PMLA मामलों पर CrPC के प्रावधानों को (जब तक कि वे PMLA के साथ विरोधाभासी न हों) लागू करने का प्रावधान किया गया है।
- PMLA की धारा 71: इसके तहत प्रावधान है कि असंगतता के मामलों में PMLA प्रावधानों का अन्य विधियों पर अधिभावी प्राधिकार होगा।
- सर्वोच्च न्यायालय का फैसला: अपीलकर्त्ता प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने तर्क दिया था कि PMLA की धारा 71 (जो PMLA को अन्य कानूनों पर अधिभावी अधिकार देती है) से पूर्व मंज़ूरी की आवश्यकता को बाहर रखा जाना चाहिये। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने इस दावे को खारिज कर दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि CrPC की धारा 197(1) PMLA से असंगत नहीं है, इसलिये PMLA के तहत लोक सेवकों से संबंधित मामलों में इसका लागू होना आवश्यक है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने आगे स्पष्ट किया कि धारा 71 से धारा 197(1) को निरस्त नहीं किया जा सकता है क्योंकि ऐसा करने से PMLA की धारा 65 निरर्थक हो जाएगी।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के निहितार्थ: इससे PMLA मामलों में CrPC को लागू करने के संदर्भ में मानक स्थापित होने के साथ धारा 71 के तहत PMLA के अधिभावी प्राधिकार की सीमाएँ स्पष्ट हुई हैं।
- यह निर्णय सरकार की सहमति के बिना PMLA के तहत लोक सेवकों पर मुकदमा चलाने की ED की क्षमता को सीमित करता है तथा उचित प्रक्रिया की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
- सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय धन शोधन से निपटने के लिये सरकार के प्रयासों और लोक सेवकों के निष्पक्ष कानूनी प्रक्रियाओं के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करता है।
नोट: CBI बनाम डॉ. आर.आर. किशोर केस, 2023 में, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (DSPE ) अधिनियम, 1946 की धारा 6A (जिसमें संयुक्त सचिव रैंक और उससे उच्च स्तर के अधिकारियों को गिरफ्तार करने के लिये सरकार की पूर्व अनुमति की आवश्यकता पर बल दिया गया) असंवैधानिक थी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसा कानून संविधान के अनुच्छेद 13(2) के तहत प्रारंभ से ही अमान्य है और धारा 6A वर्ष 2003 में अपने आरंभ से ही अमान्य है।
सिविल सेवकों के लिये संवैधानिक संरक्षण
- संविधान का भाग XIV: संघ और राज्यों के अधीन सेवाओं से संबंधित है।
- अनुच्छेद 309: संसद और राज्य विधानसभाओं को सिविल सेवकों की भर्ती एवं सेवा शर्तों को विनियमित करने का अधिकार दिया गया है।
- प्रसादपर्यंत का सिद्धांत: अनुच्छेद 310 में कहा गया है कि सिविल सेवक राष्ट्रपति या राज्यपाल की इच्छा पर पद धारण कर सकते हैं, लेकिन यह शक्ति निरपेक्ष नहीं है।
- अनुच्छेद 311: यह सिविल सेवकों के लिये दो प्रमुख सुरक्षा उपाय निर्धारित करता है।
- पदच्युत या निराकरण केवल नियुक्ति प्राधिकारी या उससे उच्च पद के प्राधिकारी द्वारा ही किया जा सकता है।
- पदच्युत या रैंक में अवनति के लिये बचाव हेतु उचित अवसर के साथ जाँच की आवश्यकता होती है।
और पढ़ें: सर्वोच्च न्यायालय ने PMLA मामलों में ED की गिरफ्तारी की शक्तियों को सीमित किया
आचार्य जीवतराम भगवानदास कृपलानी
स्रोत: AIR
आचार्य जीवतराम भगवानदास कृपलानी की जयंती प्रत्येक वर्ष 11 नवंबर को मनाई जाती है।
- परिचय: आचार्य कृपलानी का जन्म हैदराबाद (सिंध, अब पाकिस्तान में) में वर्ष 1888 में हुआ था, वे एक प्रमुख सांसद और सामाजिक न्याय के योद्धा थे।
- उन्होंने विकेंद्रीकृत औद्योगीकरण, ग्रामीण क्षेत्रों के विकास तथा लघु एवं कुटीर उद्योगों में रोज़गार का पुरज़ोर समर्थन किया।
- स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका: महात्मा गांधी के दर्शन से गहराई से प्रेरित। स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका: महात्मा गांधी के सिद्धांत से गहराई से प्रेरित।
- कृपलानी ने चंपारण सत्याग्रह (1917), खेड़ा सत्याग्रह (1918), अहमदाबाद मिल हड़ताल (1918) और नमक सत्याग्रह (1930) जैसे विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया।
- 1920 के दशक में कॉन्ग्रेस पार्टी में शामिल हुए और वर्ष 1946 में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष बने।
- योगदान: कृपलानी ने संविधान सभा के सदस्य और मौलिक अधिकार उप-समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
- स्वतंत्रता के बाद उन्होंने कृषक मज़दूर प्रजा पार्टी (1951) का गठन किया, जिसका प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में विलय हो गया और बाद में वे संसद के एक स्वतंत्र सदस्य बन गए।
- उन्होंने अपनी आत्मकथा माई टाइम्स (My Times) लिखी और साप्ताहिक पत्रिका विजिल का संचालन किया।
- मृत्यु: 19 मार्च 1982।
अधिक पढ़ें: आचार्य कृपलानी
राष्ट्रपति भवन में कोणार्क व्हील्स
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रपति भवन के सांस्कृतिक केंद्र एवं अमृत उद्यान में कोणार्क मंदिर के प्रतिष्ठित कोणार्क व्हील्स की चार बलुआ पत्थर की प्रतिकृतियाँ स्थापित की गई हैं। यह पहल राष्ट्रपति भवन में पारंपरिक सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक तत्त्वों को शामिल करने के विविध प्रयासों में से एक है।
- कोणार्क मंदिर को वर्ष 1984 में UNESCO विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। इसका निर्माण ओडिशा मंदिर वास्तुकला शैली में किया गया है।
ओडिशा मंदिर वास्तुकला शैली
- यह नागर वास्तुकला शैली की उप-शैली है और यह पूर्वी भारत के मंदिरों में मिलती है।
- ओडिशा के मंदिरों की मुख्य स्थापत्य विशेषताओं को तीन क्रमों में वर्गीकृत किया गया है अर्थात् रेखापिडा, पिधादेउल और खाकरा।
- अधिकांश मुख्य मंदिर स्थल प्राचीन कलिंग (आधुनिक पुरी ज़िले) में स्थित हैं, जिनमें भुवनेश्वर या प्राचीन त्रिभुवनेश्वर, पुरी और कोणार्क शामिल हैं।
- सामान्यतः शिखर (जिसे ओडिशा में देउल कहा जाता है) लगभग शीर्ष तक सीधा रहता है, फिर एकाएक अंदर की ओर मुड़ा रहता है।
- ओडिशा में हमेशा की तरह देउल से पहले मंडप बनाए जाते हैं, जिन्हें जगमोहन कहा जाता है।
- ओडिशा के मंदिरों में आमतौर पर चाहरदीवारी होती है।
- मुख्य मंदिर की योजना लगभग हमेशा वर्गाकार होती है, जो इसके अधिष्ठान के ऊपरी हिस्से में गोलाकार होती है।
- कक्ष आमतौर पर वर्गाकार होने के साथ मंदिरों के बाहरी भाग में भव्य नक्काशी देखने को मिलती है तथा उनके अंदरूनी भाग आमतौर पर सपाट होते हैं।
कोणार्क सूर्य मंदिर से संबंधित मुख्य तथ्य और इसका महत्त्व क्या है?
- परिचय:
- कोणार्क सूर्य मंदिर पूर्वी ओडिशा के पवित्र शहर पुरी के पास स्थित है।
- इसका निर्माण राजा नरसिंहदेव प्रथम द्वारा 13वीं शताब्दी (1238-1264 ई.) में कराया गया था। यह गंग वंश के वैभव, स्थापत्य, मज़बूती और स्थिरता के साथ-साथ ऐतिहासिक परिवेश का प्रतिनिधित्व करता है।
- पूर्वी गंग राजवंश को रूधि गंग या प्राच्य गंग के नाम से भी जाना जाता है।
- यह एक प्रमुख भारतीय शाही राजवंश था जिसने 5वीं शताब्दी से 15वीं शताब्दी के प्रारंभ तक कलिंग पर शासन किया था।
- मंदिर की मुख्य विशेषताएँ:
- विमान के ऊपर एक ऊंचा टॉवर (शिखर) था, जिसे रेखा देउल के नाम से भी जाना जाता था, जिसे 19वीं शताब्दी में ध्वस्त कर दिया गया था।
- पूर्व की ओर जगमोहन (दर्शक कक्ष या मंडप) अपने पिरामिड आकार रूप में है।
- इससे पूर्व की ओर नटमंदिर (नृत्य हॉल-जिसकी वर्तमान में छत नहीं है), एक ऊँचे चबूतरे पर स्थित है।
- वास्तुशिल्पीय महत्त्व:
- रथ का डिज़ाइन: मंदिर एक विशाल रथ का आकार है जिसमें 7 घोड़े हैं जो सप्ताह के दिनों का प्रतीक हैं और 24 पहिए हैं जो दिन के 24 घंटों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- पहिया निर्माण: प्रत्येक पहिये का व्यास 9 फीट 9 इंच है तथा इसमें 8 मोटी और 8 पतली तीलियाँ हैं, जो प्राचीन सूर्यघड़ी के रूप में काम करती हैं।
- जटिल नक्काशी में गोलाकार पदक, पशु और किनारों पर पत्ते, साथ ही पदकों के भीतर विलासिता के दृश्य शामिल हैं।
- प्रतीकात्मक तत्त्व: पहियों के 12 जोड़े वर्ष के महीनों को दर्शाते हैं, जबकि कुछ व्याख्याएँ पहिये को 'जीवन के चक्र' से जोड़ती हैं जो सृजन, संरक्षण और प्राप्ति का चक्र है।
- सांस्कृतिक विरासत:
- धर्म और कर्म: कोणार्क चक्र बौद्ध धर्म के धर्मचक्र के समान है, जो धर्म और कर्म के ब्रह्मांडीय चक्र का प्रतीक है।
- राशि प्रतिनिधित्व: एक अन्य व्याख्या के अनुसार 12 पहिये राशि चिह्न का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो इसे ज्योतिषीय और ब्रह्मांडीय सिद्धांतों से जोड़ता है।
- सूर्यघड़ी की कार्यक्षमता:
- समय मापन: दो पहिये सूर्योदय से सूर्यास्त तक का समय निर्धारित कर सकते हैं।
- स्पोक व्यवस्था: चौड़ी स्पोक 3 घंटे के अंतराल को दर्शाती हैं, पतली स्पोक 1.5 घंटे की अवधि को दर्शाती हैं तथा स्पोक के बीच की मालाएँ 3 मिनट की वृद्धि को दर्शाती हैं।
- मध्यरात्रि चिह्न: शीर्ष मध्य का चौड़ा स्पोक मध्यरात्रि का प्रतीक है, जिसमें डायल समय प्रदर्शित करने के लिये वामावर्त घूमता है।
- समय मापन: दो पहिये सूर्योदय से सूर्यास्त तक का समय निर्धारित कर सकते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न: नागर, द्राबिंड और वेसर हैं (2012) (a) भारतीय उपमहाद्वीय के तीन मुख्य जातीय समूह उत्तर: (c) |
भर्ती मानदंडों में कोई मध्यांतर परिवर्तन नहीं
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने तेज प्रकाश पाठक बनाम राजस्थान उच्च न्यायालय मामले, 2013 में फैसला सुनाया कि सरकारी नौकरियों के संदर्भ में भर्ती नियमों को चयन प्रक्रिया के बीच में नहीं बदला जा सकता है जब तक कि स्पष्ट रूप से ऐसी अनुमति न मिली हो।
- इस फैसले में के. मंजूश्री बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले, 2008 में निर्धारित सिद्धांतों का समर्थन किया गया, जिसमें कहा गया था कि चयन प्रक्रिया के दौरान भर्ती मानदंडों में बदलाव अस्वीकार्य है।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि हरियाणा राज्य बनाम सुभाष चंद्र मारवाह मामले, 1973 के फैसले पर विचार न करके के. मंजूश्री केस 2008 को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है।
- मारवाह मामले में न्यायालय ने फैसला सुनाया कि न्यूनतम पात्रता अंक प्राप्त करना चयन की गारंटी नहीं है क्योंकि सरकार लोक हित के लिये उच्च मानक निर्धारित कर सकती है।
- भर्ती नियमों में समानता (अनुच्छेद 14) और लोक रोज़गार में भेदभाव न होना (अनुच्छेद 16 ) जैसे संवैधानिक मानकों को पूरा किया जाना आवश्यक है।
और पढ़ें: स्वतंत्र भारत के महत्त्वपूर्ण निर्णय
डोनाल्ड ट्रंप संयुक्त राज्य अमेरिका के 47 वें राष्ट्रपति
स्रोत: पी. आई. बी.
भारत के प्रधानमंत्री ने डोनाल्ड ट्रंप को संयुक्त राज्य अमेरिका के 47 वें राष्ट्रपति के रूप में पुनः निर्वाचित होने पर बधाई दी।
- राष्ट्रपति ट्रंप के पहले कार्यकाल (2017-21) के दौरान भारत-अमेरिका साझेदारी की सकारात्मक गति को प्रतिबिंबित करते हुए, भारत के प्रधानमंत्री ने अपने यादगार संवादों को याद किया, जिसमें वर्ष 2019 में ह्यूस्टन में हाउडी मोदी कार्यक्रम (Howdy Modi Event) और वर्ष 2020 में अहमदाबाद में नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम (Namaste Trump Event) शामिल हैं।
- दोनों नेताओं ने भारत-अमेरिका व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी के महत्त्व को दोहराया तथा प्रौद्योगिकी, रक्षा, ऊर्जा, अंतरिक्ष एवं कई अन्य क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को और मज़बूत करने के लिये मिलकर काम करने की अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की।
और पढ़ें: भारत-अमेरिका साझेदारी
राष्ट्रीय शिक्षा दिवस 2024
स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड
हाल ही में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की जयंती और भारत के शैक्षिक परिदृश्य में उनके योगदान का स्मरण करने के क्रम में 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस (NED) मनाया गया। भारत के पहले शिक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने आधारभूत संस्थानों की स्थापना के साथ सुलभ एवं समावेशी शिक्षा की वकालत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- भारत सरकार ने पहली बार वर्ष 2008 में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की जयंती के स्मरण में राष्ट्रीय शिक्षा दिवस की घोषणा की थी।
उपलब्धियाँ:
- उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- उन्होंने वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR), साहित्य अकादमी, ललित कला अकादमी, संगीत नाटक अकादमी और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) की स्थापना की।
- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) खड़गपुर की शुरुआत की, जिससे भारत के प्रमुख तकनीकी शिक्षा संस्थानों की नींव रखी गई।
राष्ट्रीय शिक्षा दिवस का महत्त्व:
- यह शिक्षा को सामाजिक उन्नति एवं सशक्तीकरण के क्रम में आवश्यक मूल अधिकार के रूप में रेखांकित करने पर केंद्रित है।
- इसके तहत छात्रों एवं शिक्षकों को अबुल कलाम आज़ाद के सिद्धांतों पर चिंतन करने तथा रचनात्मकता एवं आजीवन सीखने के मूल्यों को बढ़ावा देने हेतु प्रोत्साहित करना शामिल है।
- इसके तहत शैक्षिक मुद्दों पर प्रकाश डालने के साथ भारतीय शिक्षा प्रणाली में आधुनिक चुनौतियों का समाधान करने के क्रम में सुधारों पर चर्चा को महत्त्व दिया जाता है।
और पढ़ें: अबुल कलाम आज़ाद: राष्ट्रीय शिक्षा दिवस